________________ प्रयम उद्देशक] [265 9. जो भिक्षु अनेक बार चातुर्मासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो उसे मायारहित पालोचना करने पर चातुर्मासिक प्रायश्चित्त पाता है और मायासहित पालोचना करने पर पंचमासिक प्रायश्चित्त प्राता है / 10. जो भिक्षु अनेक बार पंचमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो उसे मायारहित आलोचना करने पर पंचमासिक प्रायश्चित्त आता है और मायासहित पालोचना करने पर पाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है। इसके उपरान्त मायासहित या मायारहित आलोचना करने पर भी वही पाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है। 11. जो भिक्षु मासिक यावत् पंचमासिक परिहारस्थानों में से किसी परिहारस्थान की एक बार प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो उसे मायारहित आलोचना करने पर प्रासेवित परिहारस्थान के अनुसार मासिक यावत् पंचमासिक प्रायश्चित्त आता है और मायासहित आलोचना करने पर आसेवित परिहारस्थान के अनुसार द्विमासिक यावत् पाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है / इसके उपरान्त मायासहित या मायारहित आलोचना करने पर वही पाण्मासिक प्रायश्चित्त प्राता है। 12. जो भिक्षु मासिक यावत् पंचमासिक इन परिहारस्थानों में से किसी एक परिहारस्थान की अनेक बार प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो उसे मायारहित अालोचना करने पर प्रासेवित परिहारस्थान के अनुसार मासिक यावत् पंचमासिक प्रायश्चित्त पाता है और मायासहित आलोचना करने पर प्रासेवित परिहारस्थान के अनुसार द्विमासिक यावत् पाण्मासिक प्रायश्चित्त पाता है / इसके उपरान्त मायासहित या मायारहित आलोचना करने पर वही पाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है। 13. जो भिक्षु चातुर्मासिक या कुछ अधिक चातुर्मासिक, पंचमासिक या कुछ अधिक पंचमासिक इन परिहारस्थानों में से किसी एक परिहारस्थान की एक बार प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो उसे मायारहित आलोचना करने पर आसेवित परिहारस्थान के अनुसार चातुर्मासिक या कुछ अधिक चातुर्मासिक, पंचमासिक या कुछ अधिक पंचमासिक प्रायश्चित्त पाता है और मायासहित आलोचना करने पर आसेवित परिहारस्थान के अनुसार पंचमासिक या कुछ अधिक पंचमासिक या पाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है। इसके उपरान्त मायरसहित या मायारहित मालोचना करने पर भी वही पाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है। 14. जो भिक्षु अनेक बार चातुर्मासिक या अनेक बार कुछ अधिक चातुर्मासिक, अनेक बार पंचमासिक या अनेक बार कुछ अधिक पंचमासिक इन परिहारस्थानों से से किसी एक परिहारस्थान की प्रतिसेवना करके पालोचना करे तो उसे मायारहित आलोचना करने पर आसेवित परिहारस्थान के अनुसार चातुर्मासिक या कुछ अधिक चातुर्मासिक, पंचमासिक या कुछ अधिक पंचमासिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org