________________ r m mmmm 311 321 324 333 335 338 345 346 348 MY तीसरा उद्देशक गण धारण करने का विधि-निषेध उपाध्याय प्रादि पद देने के विधि-निषेध अल्पदीक्षापर्याय वाले को पद देने का विधान निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी को आचार्य के नेतृत्व बिना रहने का निषेध अब्रह्मसेवी को पद देने के विधि-निषेध संयम त्यागकर जाने वाले को पद देने के विधि-निषेध पापजीवी बहुश्रुतों को पद देने का निषेध तीसरे उद्देशक का सारांश चौथा उद्देशक आचार्यादि के साथ रहने वाले निर्ग्रन्थों की संख्या अग्रणी साधु के काल करने पर शेष साधुओं का कर्तव्य ग्लान आचार्यादि के द्वारा पद देने का निर्देश संयम त्याग कर जाने वाले आचार्यादि के द्वारा पद देने का निर्देश उपस्थापन के विधान अन्य गण में गये भिक्षु का विवेक अभिनिचारिका में जाने के विधि-निषेध चाँप्रविष्ट एवं चर्यानिवृत्त भिक्षु के कर्तव्य शैक्ष और रत्नाधिक का व्यवहार रत्नाधिक को अग्रणी मानकर विचरने का विधान चौथे उद्देशक का सारांश पांचवां उद्देशक प्रवतिनी आदि के साथ विचरने वाली निर्ग्रन्थियों की संख्या अग्रणी साध्वी के काल करने पर साध्वी का कर्तव्य प्रवर्तिनी के द्वारा पद देने का निर्देश आचार-प्रकल्प-विस्मृल को पद देने का विधि-निषेध स्थविर के लिए प्राचार-प्रकल्प के पूनरावर्तन करने का विधान परस्पर आलोचना करने के विधि-निषेध परस्पर सेवा करने का विधि-निषेध सर्पदंशचिकित्सा के विधि-निषेध पांचवें उद्देशक का सारांश छट्ठा उद्देशक स्वजन-परजन-गह में गोचरी जाने का विधि-निषेध आचार्य प्रादि के अतिशय M M MY 355 358 359 कानिदश 363 368 372 374 376 [ 79] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org