________________ प्रतिमानों का निरूपण है। सप्तम अध्ययन में श्रमणप्रतिमाओं पर चिन्तन करते हुए भावभ्रमणप्रतिमा के समाधिप्रतिमा, उपधानप्रतिमा, विवेकप्रतिमा, प्रतिसंलीनप्रतिमा और विवेकप्रतिमा ये पाँच प्रकार बताये हैं। अष्टम अध्ययन में पर्युषणाकल्प पर चिन्तन कर परिवसना, पर्युषणा, पयु पशमना, वर्षावास, प्रथम-समवसरण, स्थापना और ज्येष्ठ ग्रह को पर्यायवाची बताया है। श्रमण वर्षावास में एक स्थान पर स्थित रहता है और पाठ माह तक वह परिभ्रमण करता है। नवम अध्ययन में मोहनीयस्थान पर विचार कर उसके पाप, बर्य, वैर, पंक, पनक, क्षोभ, असात, संग, शल्य, अतर, निरति, धर्त्य ये मोह के पर्यायवाची बताए गये हैं। दशम अध्ययन में जन्ममरण के मूल कारणों पर चिन्तन कर उससे मुक्त होने का उपाय बताया गया है। नियुक्तिसाहित्य के पश्चात् भाष्यसाहित्य का निर्माण हुआ, किन्तु दशाश्रुतस्कन्ध पर कोई भी भाष्य नहीं लिखा गया। भाष्यसाहित्य के पश्चात् चूर्णिसाहित्य का निर्माण हुआ। यह गद्यात्मक व्याख्यासाहित्य है / इसमें शुद्ध प्राकृत और संस्कृत मिश्रित प्राकृत में व्याख्या लिखी गई है। चूर्णिकार जिनदासगणि महत्तर का नाम चुणिसाहित्य में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। दशाश्रुतस्कन्धचूर्णि का मूल आधार दशाश्रुतस्कन्ध नियुक्ति है। इस चूणि में प्रथम मंगलाचरण किया गया है। उसके पश्चात् दस अध्ययनों के अधिकारों का विवेचन किया गया है। जो सरल और सुगम है। मूलपाठ में और चूर्णिसम्मत पाठ में कुछ अन्तर है। यह चणि मुख्य रूप से प्राकृत भाषा में है। यत्र-तत्र संस्कृत शब्दों व वाक्यों के प्रयोग भी दिखाई देते हैं / चूणि के पश्चात् संस्कृत टीकाओं का युग आया। उस युग में अनेक आगमों पर संस्कृत भाषा में टीकाएं लिखी गई / ब्रह्ममुनि (ब्रह्मर्षि) ने दशाश्रुतस्कन्ध पर एक टीका लिखी है तथा प्राचार्य घासीलालजी म. ने दशाश्रुतस्कन्ध पर संस्कृत में व्याख्या लिखी और आचार्य सम्राट आत्मारामजी म. ने दशाश्रतस्कन्ध पर हिन्दी में टीका लिखी। और आचार्य अमोलकऋषिजी म. ने सर्वप्रथम हिन्दी अनुवाद लिखा। मणिविजयजी गणि ग्रन्थमाला भावनगर से दशाश्रुतस्कन्ध मूल नियुक्ति चूणि सहित वि. सं. 2011 में प्रकाशित हुआ। सुखदेवसहाय ज्वालाप्रसाद हैदराबाद से वीर सं. 2445 को अमोलकऋषिजी कृत हिन्दी अनुवाद दशाश्रुतस्कन्ध का प्रकाशित हुप्रा / जैन शास्त्रमाला कार्यालय सैदमिट्ठा बाजार लाहौर से प्राचार्य प्रात्मारामजी म. कृत सन् 1936 में हिन्दी टीका प्रकाशित हुई। संस्कृत व्याख्या व हिन्दी अनुवाद के साथ जैन शास्त्रोद्धार समिति राजकोट से सन् 1960 में घासीलालजी म. का दशाश्रुतस्कन्ध प्रकाशित हुआ। आगम अनुयोग प्रकाशन साण्डेराव से प्रायार-दशा के नाम से मूलस्पर्शी अनुवाद सन 1981 में प्रकाशित हमा / यत्र-तत्र उसमें विशेषार्थ भी दिया गया है। प्रस्तुत सम्पादन-प्रागम साहित्य के मर्मज्ञ महामनीषी मुनि श्री कन्हैयालालजी म. "कमल" ने किया है। यह सम्पादन सुन्दर ही नहीं, अति सुन्दर है। आगम के रहस्य का तथा श्रमणाचार के विविध उलझे हुए प्रश्नों का उन्होंने प्राचीन व्याख्या साहित्य के प्राधार से तटस्थ चिन्तनपरक समाधान प्रस्तुत किया है। स्वल्प शब्दों में [ 61 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org