Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू० २३ सुदर्शनाजम्बूवर्णनम्
२६७ च्छन्दकं-देवोपवेशनार्थमासनम् प्रज्ञप्तम्, तच्च 'पंचधणुसयाई पश्च धनु शतानि-पञ्चशतधषि 'आयामविक्खंभेणं' आयामविष्कम्भेणं 'साइरेगाई' सातिरेकाणि-साधिकानि 'पंच धणुमयाई उद्धं उच्चत्तेणं' पञ्चधनु:-शतानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन । अत्र 'जिणपडिमा वण्णओ' जिन प्रतिमावर्णको बोध्यः, स च प्राग्वत् ‘णेयव्योति' नेतव्यः-ग्राह्यः, इति । 'तत्थ णं' तत्र-चतसृषु शालासु खलु 'जे से पुरथिमिल्ले' या सा पौरस्त्या-पूर्व दिग्गता 'साले' शालाऽस्ति 'एत्थ णं' अत्र-अत्रान्तरे खलु एकं 'भवणे' भान-गृहं 'पण्णत्ते' प्रज्ञप्तम् तच्च मानतः 'कोसं आयामेणं' क्रोशमायामेन प्रज्ञप्तम्, 'एवमेव' एवमेव-भवनवदेव 'णवरमित्थ' नवरं-केवलम् अत्र-भवने 'सयगिज्ज' शयनीयं शय्या, वर्णनीयम् 'सेसेसु' शेषासु-पूर्व दिगवस्थितशालातिरिक्तामु दाक्षिणात्यादि शालासु मूले पुस्त्वं प्राकृतत्वाब्दोध्यम् प्रत्येकमेकैकसद्भावेन त्रयः 'पासायव.सया' प्रासादातंसकाः-प्रासादवराः 'सीहासणा सपरिवारा' सिंहासनानि-सपरिवाराणि आसन कहा है वह आसन 'पंच धणुसयाई उद्धं उच्चत्तणं' पांचसो धनुष का ऊंचा है। यहां पर 'जिणपडिमावण्णओ' जिनप्रतिमा व्यन्तरादिक का वर्णन कर लेवे। वह वर्णन पहले कहे अनुसार 'णेयव्वोत्ति' समझलेवें।।
'तत्थ णं'चार शाखा में 'जे से पुरथिमिल्ले साले' जो पूर्व दिशा की ओर गई हुई शाखा है 'एत्थ वहां पर एक 'भवणे' भवन 'पण्णत्तं' कहा है। उसका मान 'कोसं आयामेणं' एक कोस का उसका आयाम कहा है 'एव मेव' भवन के जैसा ही उसका वर्णन समझलेवें । 'णवरं मित्थ' विशेष केवल इस भवन में 'सयणिज्ज' शय्या का वर्णन करले।' 'सेसेसु' पूर्वदिशा में गई हुई शाखा से अतिरिक्त दक्षिण दिशादि अन्य दिशा की ओर गई हुई शाखाओं में मूल में जो पुल्लिग से निर्देश किया है वह प्राकृत होने से हुवा है ऐसा समझलें। प्रत्येक दिशामें एक एक के क्रम से तीनों दिशा की तीन शाखा होती है 'पासाय वडे सया' प्रासादावतंसक अर्थात् उत्तम महल 'सोहासणा सपरिवारा' भद्रासनादि पायसे। धनुष २८९ युछे. मी या 'जिणपडिमा वण्णओ' यन्त न प्रति. भानु न ४री आयु. मे १ न पडेसा ४॥ प्रमाणे 'णेयव्वोत्ति' सम से 'तत्थणं' से या२ शापासीमा 'जे से पुरथिमिल्ले साले' ने पूर्व हशा त२३ गयेस शाम छ. 'एत्थणं' त्यां मे 'भवणे' भवन ‘पण्णत्तं' ४७स छे. तेनु मान-कोसं आयामेण' से 132। तन मायाम ४९स छ 'एवमेव' सपनना ४थन प्रमाणे ॥ तेनु पर्थन सभा. 'णवरमित्थ' विशेष १५ मा भवनमा 'सयणिज्ज' शयानुन ४श : 'सेसेसु' पूशामा गयेस शमा शिवायनी दक्षिण कोरे हिशमां गये थमायामा મૂલમાં જે પુલિંગથી નિર્દેશ કરેલ છે તે પ્રાકૃત હેવાથી થયેલ છે. તેમ સમજવું. દરેક Pawi मे सेना अभथी ये शानी १ पासो थाय छे. 'पासायवडेंसया' प्रासादास अर्थात् उत्तम भडेस 'सीहासणा सपरिवारा' मद्रासना परिवार सहित
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા