Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू०३९ पण्डकवनगताऽभिषेकशिलावर्णनम् ४८३ श्वतस्र उक्ताः, तत्राद्या शिला कुत्रास्तीति पृच्छति-'कहि णं भंते !' इत्यादि-क्व खल भदन्त ! 'पंडगवणे' पण्डकवने 'पंडुसिला णाम सिला' पाण्डुशिला नाम शिला 'पण्णत्ता ?' प्रज्ञप्ता ?, भगवानुत्तरयति-'गोयमा !' गौतम ! 'मंदरचूलियाए' मन्दरचूलिकायाः 'पुरस्थिमेणं' पौरस्त्येन पूर्वदिशि 'पंडगवणपुरथिमपेरंते' पण्डकवनपौरस्त्यपर्यन्ते- पण्डकवनस्य पूर्वसीमापर्यन्ते 'एत्थ' अत्र अत्रान्तरे 'ण' खलु 'पंडगवणे' पण्डकवने 'पंडुसिला णामं सिला' पाण्डुशिला नाम शिला 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्ता, सा च 'उत्तरदाहिणायया' उत्तरदक्षिणायता उत्तर दक्षिणयोर्दिशोरायता दीर्घा तथा 'पाईणपडीणवित्थिण्णा' प्राचीनप्रतीचीनविस्तीर्णा पूर्व पश्चिमदिशोर्विस्तारयुक्ता ‘अद्धचंदसंठाणसंठिया' अर्द्धचन्द्रसंस्थानसंस्थिता अर्द्धचन्द्राकारेणसंस्थिता 'पंचजोयणसयाई पञ्चयोजनशतानि 'आयामेणं' आयामेन मुख विभागेन 'अद्धाइजाई' अर्द्धवतीयानि 'जोयणसयाई योजनशतानि 'विक्खंभेणं' विष्कम्भेण-विस्तारण 'चत्तारि' चत्वारि 'जोयणाई' योजनानि 'बाहल्लेणं' वाहल्येन पिण्डेन 'सव्वकणगामई'
और अतिरक्तकम्बला ४ 'कहिणं भंते ! पंडुसिलाणामं सिला पण्णत्ता' हे भदन्त ! पण्डकवन में पांडुशिला नामकी शिला कहां पर कही गई है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-गोयमा ! मंदरचूलिआए पुरथिमेणं' पंडगवणपुरथिमपेरंते, एत्थ णं पंडगवणे पंडुसिला णाम सिला पण्णत्ता' हे गौतम ! मंदरचूलिका की पूर्वदिशा में तथा पंडकवन की पूर्व सीमा के अन्त में पंडकवन में पांडुशिला नामकी शिला कही गई है । 'उत्तर दाहिणायया, पाईण पडीणविच्छिण्णा अद्धचंदसंठाणसंठिया पंचजोयणसयाई आयामेणं अद्धाइजाई जोयणसयाई विक्ख. भेणं चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं सव्वकणगामई अच्छा वेइयावणसंडेणं सवओ समंता संपरिक्खित्ता वण्णओ' यह शिला उत्तर से दक्षिण तक लम्बी है और पूर्व से पश्चिम तक विस्तीर्ण है । इसका आकार अर्धचंद्र के आकार जैसा है पांचसो योजन का इसका आयाम है और अढाई सौ योजन का इसका विष्कम्भ है एवं इसका बाहल्य-मोटाई-चार योजन का है। सर्वात्मना सुवर्णमय है और पांइशिता नामनी शिता या स्थणे भासी छ ? नाममा प्रमुछे-'गोयमा ! मंदर चूलिआए पुरथिमेणं पंडगवणपुरस्थिमपेरते, एत्थणं पंडगवणे पंडुसिला णामं सिला पण्णत्ता' है ગૌતમ ! મંદર ચૂલિકાની પૂર્વ દિશામાં તથા પંડકવનની પૂર્વ સીમાના અંતમાં પડકવનમાં पांड शिक्षा नाम: शिक्षा मावसी छ. 'उत्तरदाहिणायया, पाईणपडीणविच्छिण्णा अद्धचंदसंठाणसंठिया पंच जोयणसयाई आयामेणं अद्धाइज्जाई जोयणसयाई विक्खंभेणं चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं सव्व कणगामई अच्छा वेइया वणसंडेणं सवओ समंता संपरिक्खित्ता वण्णओ' । શિલા ઉત્તરથી દક્ષિણ સુધી લાંબી છે અને પૂર્વથી પશ્ચિમ સુધી વિસ્તીર્ણ છે. એને આકાર અર્ધ ચંદ્રના આકાર જેવો છે. ૫૦૦ એજન એટલે એને આયામ છે તથા ૨૫૦ એજન એટલે આને વિષ્કભ છે. બાહલ્ય (મોટા) ચાર જન જેટલું છે. આ સર્વાત્માના સુવર્ણ
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર