Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 686
________________ प्रकाशिका टीका-पञ्चमवक्षस्कारः सू. ७ इशानेन्द्रावसरनिरूणम् योजनशतानि, द्वितीये द्विके पट्योजनशतानि तथा तृतीये द्विके सप्तयोजनशतानि, तथा चतुर्थे द्विके अष्टौ योजनशतानि ततोऽग्रेतने कल्पचतुष्के विमानानाम् उच्चत्वं नवयोजन. शतानि तथा 'मदिया सव्वेसिं जोयणसाहस्सिया सकवजा मंदरे समोअरंति, जाव पज्जुवासंतिति' सर्वेषां महेन्द्रध्वजा योजनसाहस्रिकाः सहस्रयोजनविस्तीर्णाः शक्रवर्जाः मन्दरे. समवसरन्ति यावत् पर्युपासते, अत्र यावत् पदसंग्रहश्च, अव्यवहितपूर्वसूत्रवत् बोध्यम् व्याख्यानं च तत्रैव द्रष्टव्यम् ॥ सू०७॥ अथ भवनवासिनः मूलम्-तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिंदे असुरराया चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए चमरंसि सीहासणंसि चउसटीए सामाणियसाहस्सीहिं तायत्तीसाए तायत्तीसेहिं चउहिं लोगपालेहिं पंचहिं अग्गमहिसीहि सपरिवाराहि तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अणियाहिवई हिं चउहिं चउसद्विहिं आयरक्खसाहस्सीहि अण्णेहिअ जहा सक्के णवरं इमं णाणत्तं दुमो पायत्ताणीआहिवई ओघस्सरा घंटा विमाणं पण्णासं जोयणसहस्साई महिंदज्झओ पंचजोयणसयाई विमाणकारी आभिओगिओ देवो अवसिटुं तं चेव जाव मंदरे समोसरइ पज्जुवास. ऊंचाई पांचसौ योजन की होती है तृतीय और चतुर्थकल्प में विमानों की ऊंचाई ६ छसौ योजन की होती है, पांचवें और छठे कल्प में विमानों की ऊंचाइ सातसौ योजन की होती है। सातवें और आठवें कल्प में विमानों की ऊंचाई आठसौ योजन की होती है इसके बाद ९ वें १० वें और ११ वें १२ वें कल्पमें ९-९ सौ योजन की ऊंचाई है। समस्त विमानों की महेन्द्र ध्वजाएं एक हजार योजन की विस्तीर्ण हैं । शक को छोडकर ये सब माहेन्द्र पर्वत पर आये यावत् यहां पर वे पर्युपासना करने लगे। यहां यावत्पद से संगृहीत पाठ अव्यवहितपूर्व सूत्र की तरह जानना चाहिये और उसका व्याख्यान भी वहीं पर देखलेना चाहिये ॥७॥ ચતુર્થ ક૯૫માં વિમાનની ઊંચાઈ ૬૦૦ એજન જેટલી હોય છે. પંચમ અને ષષ્ઠ કપમાં વિમાનોની ઊંચાઈ ૭૦૦ એજન જેટલી હોય છે. સપ્તમ એને અષ્ટમાં ક૯૫માં વિમાનેની ઊંચાઈ ૮૦૦ એજન જેટલી છે. ત્યાર બાદ ૯, ૧૦, ૧૧ અને ૧૨ માં કપમાં ૯-૯ સે જન જેટલી ઊંચાઈ હોય છે. સર્વ વિમાની મહેન્દ્ર ધ્વજાઓ એક હજાર એજન જેટલી વિસ્તીર્ણ હોય છે. શોને બાદ કરીને એ બધા મહેન્દ્ર પર્વત ઉપર આવ્યાં. યાવત તેઓ ત્યાં પર્ય પાસના કરવા લાગ્યા અહિં યાવત પદથી સંગૃહીત પાઠ અવ્યવહિત પૂર્વ સૂત્રની જેમજ જાણવું જોઈએ. અને તેનું વ્યાખ્યાન પણ ત્યાં જ જોઈ લેવું જોઈએ. છા ज० ८५ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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