Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 716
________________ प्रकाशिका टीका-पञ्चमवक्षस्कारः सू. १० अच्युतेन्द्रकृततीर्थकराभिषेकादिनिरूपणम् ७०३ मर्यः तत्र स्थानस्थानानीत चन्दनानि वस्तूनि मार्गान्तरेषु तथा एकत्रीकृतानि सन्ति यथा हट्टश्रेणिप्रतिरूपं दधति 'जाव गन्धवट्टिभूअंति' यावत् गन्धवर्तिभूतमिति, अत्र यावत्पदात् 'पंडगवणं मंचाइमचकलिथं करेंति 'अप्पेगइया णाणाविहगरागउसियज्झयपडागमंडिअं करेंति अप्पेगइया गोसीसचंदण ददरदिग्ण पंचंगुलितलं करेंति, अप्पेगइया उवचिअचंदणकलसं अप्पेगइया चदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं करेंति, अप्पेगइया आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्यारिअ मल्लदामकलावं करेंति अप्पेगइया पंचवण्णसरससुरहिमुक्कपुंजोवयारकलियं करेंति, अप्पेगइया कालागुरुपवर कुंदुरुक्कतुरुक्कडझंतधूवमघमघंत गंधुटुआभिरामं सुगंध. वरगंधियं' इति ग्राह्यम् अप्येककाः देवाः पण्डकवनं मञ्चातिमञ्चकलितं कुर्वन्ति अप्येककाः पण्डकवनं नानाविहरागोच्छ्रितध्वजपताकमण्डितं कुर्वन्ति अप्येककाः देवाः गोशीर्षचन्दनददरदत्त पञ्चाङ्गुलितलं कुर्वन्ति अप्येककाः देवाः उपचित 'स्थापित' चन्दनकलशं कुर्वन्ति अप्येककाः देवाः चन्दनघटसुकृत 'सुरचित' तोरणप्रतिद्वारदेशभागम् कुर्वन्ति अप्येककाः आसक्तोत्सित विपुलवृत्तव्याधारित 'प्रलम्बित' माल्यदामकलापं कुर्वन्ति, अप्येककाः, पञ्चवर्णसरससुरभिमुक्त पुञ्जोपचारकलितं कुर्वन्ति अप्येककाः देवाः कालगुरुप्रवरकुन्दुरुष्कतुरुष्क दह्यमानधूपमघमघन्तगन्धोद्धृताभिरामं सुगन्धवरगन्धितं कुर्वन्ति । पुनः प्रकारान्तरेण देवकृत्यमाह 'अप्पेगइया हिरण्णवासं वासंति' अप्येककाः हिरण्यवर्षे वर्षन्ति हिरण्यस्य रूप्यस्य चन्दनादि वस्तुओं की वहां राशि लगादी गई इससे वे हृदश्रेणि के जैसे हो गई यहां यावत्पद से 'पंडगवणं मंचाइ मंचकलिअं करेंति, अप्पेगइया णाणाविहराग ऊसिअज्झयपडाग मंडिअं करेंति, अप्पेगइया गोसीस चंदणदद्दरदिपणपंचं. गुलितलं करेंति, अप्पेगइयाउवचिअ चंदणकलसं, अप्पेगइया चंदणघडसुकय तोरणपडिदुवारदेसभागं करेंति, अप्पेगइया आसतोसत्त विपुल ववग्घारिअ मल्लदामकलापं करेंति, अप्पेगइया पंचवण्ण सरससुरहि मुक्क पुंजोवयारकलिअं करेंति, अप्पेगइया कालागुरुपवर कुंदरुक्क तुरुक्क डझंत धूव मघ-मघंत गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधिअं' इस पाठका ग्रहण हुआ है इस पाठका अर्थ स्पष्ट है 'गंधवहि भूअंति' इस तरह वह पाण्डुकवन एक सुगंधित गुटिका के TA वी २४ ४. सही यावत पहथी 'पंडगवणं मंचाइमंचकलिअंकरें ति, अप्पेगइया णाणाविहरागऊसिअज्झयपडागमंडिअं करें ति, अप्पेगइया गोसीसचंदणददरदिण्ण पंचंगुलितलं करेंति, अप्पेगइया उवचिअचंदणकलस, अप्पेगइया चंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं करेंति. अप्पेगइया आसत्तोसित्तविपुलवदृतग्घारिअमल्लदामकलापं करें ति, अप्पेगइया पंच वण्ण सरससुरहि मुक्कपुंजोवयारकलि कोरेति, अप्पेगइया कालागुरुपवर कुंदुरुक्क तुरुक्क उज्झंत धूव मघमघंत गधुडुयाभिरामं सुगंधवरगंधिअं' 41 48 सहीत थये। छ. म । म २५ ॥ छे. 'गंधवट्टिभूअंति' 4 प्रमाणे ते पांडवन से सुधित शुटि २९ गयु. 'अप्पेगइया જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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