Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 788
________________ प्रकाशिका टीका-षष्ठोवक्षस्कारः सू. २ द्वारदशकेन प्रतिपाद्यविषयनिरूपणम् ७७५ कियत्य आभियोग्यश्रेणयश्च प्रज्ञप्ता:-कथिता इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! 'जंबुद्दीवे दीवे अट्ठसही विज्जाहरसेढीओ' जम्बूद्वीपे द्वीपे-जम्बूद्वीप नामकद्वीपे अष्टषष्टिः विद्याधरश्रेणयः, प्रज्ञप्ताः तथा-'अट्ठसट्ठी आभिओगसेढीओ पण्णत्ताओ' अष्टपष्टिराभियोग श्रेणयः प्रज्ञप्ताः तत्र विद्याधरश्रेणयोऽष्टषष्टिः विद्याधरावासभूता वैता. ढयानां पूर्वापरसमुद्रपरिक्षिप्ता आयतमेखला भवन्ति, चतुर्विंशत्य पि वैताढयेषु दक्षिणतउत्तरतश्चैकैकश्रेणी सद्भावात, तथैव अष्टषष्टिः श्रेणय आभियोग्यानां भवन्ति, 'एवामेवसपथ्यावरेणं जंबुद्दीवे दीवे छत्तीसं सेढिसए भवतीति मक्खाय' एवमेव सपूर्वापरेण-पूर्वापर संकलनेन जम्बूद्वीपे द्वीपे पत्रिंशत् श्रेणीशतम्-पत्रिंशदधिकश्रेणीनां शतं भवतीति आख्यातम, मया-बर्द्धमानस्वामिना तथाऽन्यैरपि आदिनाथ प्रभृति तीर्थंकरैरिति ।। सम्प्रति-अष्टमं विजयद्वारमाह-'जंबुद्दीवेणं भंते !' इत्यादि। 'जंबुद्दी वेणं भंते दीवे' जम्बूद्वीपे खलु भदन्त ! द्वीपे सर्व द्वीपमध्यवर्ति जम्बूद्वीपे इत्यर्थः 'केवइया चकवष्टि धर श्रेणियां और कितनी आभियोग्य श्रेणियां कही गई है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे अट्ठसट्ठी विजाहरसेढीओ अट्ठसट्ठी आभिओगसेढीओ पण्णत्ताओ' हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामके द्वीप में अडसठ विद्याधर श्रेणियां कही गई है-ये विद्याधर श्रेणियां विद्याधरों के आवास स्थान रूप हैं एवं वैताढयों के पूर्व अपर उदधि आदि से ये परिच्छिन्न है घिरी हुई हैं तथा जैसी मेखला आयत होती है वैसी आयत ये हैं। ३४ वैताढयों में दक्षिण में और उत्तर में एक एक श्रेणि है इसी तरह से आभियोग्य श्रेणियां भी ६८ हैं। 'एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे छत्तीसं सेढिसए भवंतीति मक्खाय' इस तरह जम्बूद्वीप में सब श्रेणियां मिलकर १३६ हो जाती हैं ऐसा तीर्थंकर प्रभुओं का कथन है। विजयद्वारकथन-'जंबुद्दीवे दीवे केवइया चक्कवटि विजया केवइयाओ भालियाय श्रेणीमा वामां मावदी छ ? मेन ममा प्रभु छ-'गोयमा ! जंबु. दीवे दीवे अदृसट्ठी विज्जाहरसेढीओ अट्ठ-सट्ठी आभिओग सेढीओ पण्णत्ताओ' हे गौतम ! જંબૂદ્વીપ નામક દ્વીપમાં ૬૮ વિદ્યાધર શ્રેણીઓ કહેવામાં આવેલી છે. એ વિદ્યાધર શ્રેણીઓ વિદ્યાધરોના આવાસસ્થાન રૂપ છે તેમજ વૈતાદ્યોના પૂર્વ અપર ઉદધિ વગેરેથી એ પરિચ્છિન્ન છે–આવેષ્ટિત છે, તેમજ જે પ્રમાણે મેખલા આયત હોય છે, તે પ્રમાણે જ એ પણ આયત છે. ૩૪ વૈતાઢયોમાં દક્ષિણમાં અને ઉત્તરમાં એક-એક શ્રેણી છે. આ પ્રમાણે सानियाय श्रेणीमा ५५ ६८ छ. 'एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे छत्तीसं सेढिसए भवंतीति मक्खाय' मा प्रमाणे पूदी ५मा मधी श्रेणीमा मजा १७६ थाय छे. मे તીર્થંકર પ્રભુનું કથન છે. वियद्वार ४थन- जंबुद्दीवे दीवे केवइया चक्कवटि विजया केवइयाओ रायहाणीओ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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