Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 698
________________ प्रकाशिका टीका - पञ्चमवक्षस्कारः सू. ९ अच्युतेन्द्र कृताभिषेक सामग्री संग्रहणम् अथ अमीषां प्रस्तुतकर्मणीति वक्तव्यमाह - 'तं एणं से एच्चए देविंदे देवराया' मूलम् - तप णं से अच्चुए देविंदे देवराया महं देवाहिवे आभिओगे देवे सहावे, सदावित्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाशुप्पिया महत्थं महग्घं महारिहं विउलं तित्थयराभिसेअं उवटुवेह - तणं ते आभिओगा देवा हट्टतुट्ट जाव पडिसुगित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवकमंति अवक्कमित्ता वेउव्विअ समुग्धाएणं जाव समोहणित्ता अटू सहस्सं सोवणि कलसाणं एवं रूप्पमयाणं मणिमयाणं सुवण्णरुप्पमयाणं सुवणमणिमयाणं रूपमणिमयाणं सुवण्णरुपमणिमयाणं अट्ठ सहस्सं भोमिज्जाणं अट्टसहस्तं चंदणकलसाणं एवं भिंगाराणं आयं. साण थालाणं पाइणं सुपईट्टगाणं चित्ताणं रयणकरंडगाणं वायकरगाणं पुष्पचंगेरीणं, एवं जहा सूरिआभस्त सव्वचंगेरीओ सव्वपडलगाई विसेसिअतराई भाणिअव्वाई सीहासण छत्तचामरतेल्लसमुग्ग जाव सरिसवसमुग्गा तालिअंता जाव असहस्सं कडुच्छुगाणं विउव्वंति, विउदिवत्ता साहाविए विउब्विए अ कलसे जाव कडुच्छ्रुपअ गिण्हित्ता जेणेव खीरोदए समुद्दे तेणेव आगम्म खीरोद्गं गिव्हंति गिव्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई पउमाई जाव सहस्सपत्ताई ताई णिण्हंति एवं पुक्खरो ६८५ धान ऐसा है - जिन कल्याणक आदिकों में दश कल्पेन्द्र, २० भवनवासीन्द्र, ३२ व्यन्तरेन्द्र एवं चन्द्र और सूर्य इस तरह से ६४ इन्द्रों की संख्या हो जाती है परन्तु चन्द्र और सूर्य व्यक्तिरूप से यहां एक एक ही संख्या में परिगणित नहीं हुए हैं किन्तु जाति की अपेक्षा से ही गृहीत हुए हैं इसलिये यहां चन्द्र और सूर्य को बहुवचनान्त पद से व्यक्त किया गया है । अतः इस कथन से चन्द्र और सूर्य असंख्यात भी आते हैं ||८|| આદિમાં ૧૦ કુપેન્દ્રો, ૨૦ ભવનવાસીન્દ્રો, ૩૨ વ્યન્તરેન્દ્રો તેમજ ચન્દ્ર અને સૂ આમ ૬૪ ઈન્દ્રોની સખ્યા થઇ જાય છે. પરંતુ અહીં ચન્દ્ર અને સૂર્ય વૈયક્તિક રૂપમાં એક-એકની સખ્યામાં પરિગણિત થયા નથી, અહીં એ બન્ને જાતિની અપેક્ષાએ જ ગૃહીત થયા છે. એથી અહીં' ચન્દ્ર અને સૂર્ય ખન્નેને બહુ વચનાન્ત પદથી વ્યક્ત કરવામાં આવેલા છે. એથી મા કથન મુજબ ચન્દ્ર અને સૂર્ય અસખ્યાત પણ હોય છે. ૫ ૮ ૫ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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