Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 703
________________ ६९० जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे इन्द्राभिषेकसमये सूर्यचङ्गेयः तथाऽत्रापि वक्तव्याः दृष्टम् इदं जीवाभिगमे तृतीयप्रतिपत्ती 'अट्ठसहस्सं आभरणचंगेरीणं लोमहत्थचंगेरीणं' इति तथा सर्वपटलकानि वक्तव्यानि, तथाहि अष्टसहस्राणि पुष्पपटलकानाम् इमानि वस्तूनि सूर्याभाभिषेकोपयोगवस्तुभिः संख्ययैव तुल्यानि न तु गुणेन इत्याह-विशेषिततराणि अतिशय विशिष्टानि भणितव्यानि प्रथमकल्पीयदेवविकुर्वणातोऽच्युत कल्पदेवविकुर्वणाया अधिकतरत्वात् विशिष्टत्वात् तथा 'सीहासणछत्तचामर तेल्लसमुग्ग जाव सरिसक्समुग्गा सिंहासन छत्रचामर तिलसमुद्रक यावत् सर्षपजाव असहस्सं कडुच्छुगाणं विउव्वंति' जिस तरह राजप्रश्नीय सूत्र में इन्द्राभिषेक के समय में सूर्याभदेव के प्रकरण में समस्त चंगेरिकाओं की, समस्त पुष्प पटलों की विकुर्वणा हुई कही गई है उसी प्रकार यहां पर भी इन सब अभिषेक योग्य सामग्री वस्तुओं की अतिविशिष्टरूप से विकुर्वणा की गई ऐसा कहना चाहिये क्यों कि प्रथम कल्पके देवों की विकुर्वणा की अपेक्षा अच्युतकल्पगत देवों की विकुर्वणा अधिकतर होती है अतः इन विकुर्वितहुई समस्तवस्तुओं की संख्या १००८ रूप से ही समान थी गुण से नहीं ऐसा नहीं है कि सूर्याभदेव के प्रकरण में विकुर्वित की गई अभिषेक योग्य वस्तुएं संख्याकी अपेक्षा समान थी किन्तु ये सब गुणकी अपेक्षा विशिष्टतर थीं यही बात 'विशेषित तराई' इस पद द्वारा कही गई है क्योंकि प्रथम कल्पगत देवों की विक्रिया शक्ति में और अच्युतकल्पगत देवों की विक्रिया शक्ति में अधिकतरता होती है, यह बात ऊपर कही जा चुकी है। इसी तरह उन देवों ने १००८ सिंहासनों की, १००८ छत्रों की १००८ सीहासण छत्त चामर तेल्ल समुग्ग जाव सरिसवसमुग्गा तालिअंटा जाव अट्र सहस्सं कडुच्छुगाणं विउव्वंति' ने प्रमाणे २४प्रश्नीय सूत्रमा छन्द्राभिषे मते सूर्यास हेवना પ્રકરણમાં સમસ્ત ચંગેરીકાઓની સમસ્ત પુષ્પ પટની વિકૃણા કરવામાં આવી હતી, તે પ્રમાણે જ અહીં પણ એ બધી અભિષેક એગ્ય સામગ્રીની અતિ વિશિષ્ટ રૂપમાં વિદુર્વણુ કરવામાં આવી હતી, એવું સમજવું જોઈએ. કેમકે પ્રથમ કલ્પના દેવેની વિકુર્વણાની અપેક્ષાએ અશ્રુત કલ્પગત દેવેની વિમુર્વણા અધિકતર હોય છે. આમ એ વિકવિત થયેલી સમસ્ત વસ્તુઓની સંખ્યા ૧૦૦૮ રૂપની અપેક્ષાએ જ સમાન હતી. ગુણની અપેક્ષાએ નહિ. આમ ન સમજવું જોઈએ. કે સૂર્યાભદેવના પ્રકરણમાં વિકર્ષિત કરવામાં આવેલી અભિષેક ગ્ય વસ્તુઓ અને અહીં વિકૃર્ષિત કરવામાં આવેલી અભિષેક ગ્ય વસ્તુઓ સંખ્યાની દ્રષ્ટિએ પણ સમાન હતી. પરંતુ એ બધી ગુણની અપેક્ષાએ विशिष्टत२ ३ती. मे पात 'विशेषिततराई' मा ५४ पडे हवाम मावी छ. भो પ્રથમ કલ્પગત દેવની વિક્રિયા શક્તિમાં અને અશ્રુત ક૫ગત દેવોની વિક્રિયા શક્તિમાં અધિક તરતા હોય છે. આ વાત ઉપર કહેવામાં આવેલી છેઆ પ્રમાણે તે દેએ ૧૦૦૮ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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