Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 662
________________ प्रकाशिका टीका-पञ्चमवक्षस्कारः सू.६ यानादि निष्पन्नानन्तरीयशककर्तव्यनिरूपणम् ६४९ पुवीए संपडिया' ततः खलु तदनन्तरं किल तस्य शक्रस्य तस्मिन् विमाने आरूढस्य सतः इमानि स्वस्तिक १ श्रीवत्सर २ नन्दिकावर्त ३ वर्द्धमानक ४ भद्रासन ५, मत्स्य ६ कलश ७ दर्पण ८ नामकानि अष्टाष्ट मङ्गलकानि, अष्टाष्टेति वीप्सावचनात प्रत्येकम, अष्टौ इत्यर्थः परतः, अग्रतः यथानुपूर्व्या संप्रस्थितानि, चलितानि तयणंतरं च णं पुण्णकलसभिंगारं दिव्वाय छनपडागा सचामरा य दंसणरइय, आलोअदरिसणिज्जा वाउद्घअविजयवेजयंती समुसिया गगणतलमणु लिहती पुरओ अहाणुपुवीए संपत्थिया' तदनंतरं च खलु पूर्णकलशभृङ्गारम -पूर्ण जलभृतं कलशभृङ्गारम्, तत्र कलशः प्रसिद्धः भृङ्गारः (झारी) ति भाषा प्रसिद्धा अयं च कलशशब्दा, जलपूर्णत्वेन आलेख्यरूपाष्टमङ्गलान्तर्गत कलशाद् भिन्न इति न पुनरुक्ति दोषसम्भवः, दिव्या च छत्रपताका दिव्या प्रधाना छत्रविशिष्टा पताका इत्यर्थः सचामरा चामग्युक्ता 'दसणरइय' दर्शनरचिता-दर्शने प्रस्थातु दृष्टिपथे रचिता मङ्गल्यात् अत एव आलोकदर्शनीया आलोके बहिः प्रस्थानसामयिकशकुनानुकूल्यालोकने दर्शनीया दर्शनयोग्या बातोद्धृतविजयवैजयन्ती च वातेन वायुना उद्धृता कंपिता विजयसूचिका मंगल द्रव्य क्रमशः प्रस्थित हुए उनके नाम इस प्रकार से है-स्वस्तिक श्रीवत्स, नन्दितावत, वर्द्धमानक, भद्रासन, मत्स्य, कलश, और दर्पण 'तयणंतरं च णं पुण्णकलसभिंगारं दिव्वा य छत्तपडागा सचामरा य दंसणरइय आलोयदरीसणिसज्जा याजद्धय विजय वेजयन्ती य समूसिआ, गगणतलमणुलिहंती पुरओ अहाणुपुव्वीए संपत्थिया' इनके बाद पूर्ण कलश, भृङ्गारक झारी, दिव्य छत्र चामर सहित पताकाएं जो कि प्रस्थाता के दृष्टि पथमें मङ्गलकारी होने से रची जाती हैं और प्रस्थान के समय में जिनका देखना शकुन शास्त्र के अनुकूल माना गया है। आगे आगे चली-इनके बाद वायु से कंपित होती हुई विजयवैजयन्तियां चली जो कि बहुत ऊंची थी और जिनका अग्रभाग आकाश तल को स्पशे कर रहा था 'तयणंतरं छतभिंगारं' इनके वाद छत्र, भृङ्गार, 'तयणंतरं च ક્રમશઃ પ્રથિત કરવામાં આવ્યાં. તે દ્રવ્યના નામે આ પ્રમાણે છે- સ્વસ્તિક, શ્રીવત્સ, नन्दित, पद्धभान, मद्रासन, भ.२५ ४१॥ २५ने ४५. 'तवणंतर च णं पुण्णकलसभिंगार दिव्वा य छत्तपडागा सचामराय दसणरइय आलोयदरिणिज्जा वाउधुयविजयवेजयन्ती य समूसिआ, गगणतलमणुलिहंती पुरओ अहाणुपुवीए संपत्थिया' त्यार બાદ પૂર્ણ કળશ, ભંગારક, ઝારી, દિવ્ય છત્ર, ચામર સહિત પતાકાઓ-કે જેઓ પ્રસ્થાતાની દષ્ટિએ મંગળકારી હોવાથી મૂકાય છે, અને પ્રસ્થાન સમયે જેમનું દર્શન શકુન શાસ્ત્ર મુજબ અનુકૂળ માનવામાં આવે છે. આગળ-આગળ ચાલી. ત્યાર બાદ વાયુથી વિકૅપિત થતી વિજય યંતીઓ ચાલી. વિજય વૈજયંતીઓ અતીવ ઊંચી હતી અને तमन २मा २॥31॥ तमन २५शी २wो हत. 'तथणंतर छत्तभिंगार' त्यार माह छत्र, २ 'तयणंतर वइरामयवट्ठलटुसंठियसुसिलिट्ठ परिघटुमट्टसुपइट्ठिए विसिट्ट જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા

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