Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू० २३ सुदर्शनाजम्बूवर्णनम्
२८५ ___ अधुना सुदर्शनाशब्दप्रवृत्तिनिमित्तं प्रष्ठुकाम इदमाह-'जंबृए णं' इत्यादि-'जंबूर णं' अह मंगलगा पण्णत्ता' जम्ब्वाः खलु अष्टाष्ट मंगलकानि 'से' अथ-सुदर्शनास्वरूपवर्णनानन्तरम् 'भंते !' हे भदन्त ! इयं जिज्ञासोदेति यत् 'केणटेणं' केन अर्थेन-कारणेन ‘एवं' एवम्इत्थम् 'वुच्चइ' उच्यते-कथ्यते–'जंबू सुदंसणा २ ?' जम्बूः सुदर्शना २ इति ?, भगवांस्तदुत्तरमाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'जंबूए णं सुदंसणाए अणाढिए' जम्ब्यां खलु सुदर्शनायाम् अनादृतः-नादृताः-न सम्मानिताः स्वातिरिक्ता जम्बूद्वीपनिवासिनो देवा येन सोऽनादृतःउपेक्षितान्यमहर्द्धिकः अनादृतेत्यन्वर्थनामको 'णाम' नाम-प्रसिद्धो 'जंबूद्दीवाहिवई' जम्बूद्वीपाधिपतिः 'परिवसई' परिवसति, स कीदृशः ? इति जिज्ञासायामाह-'महिद्धीए' महद्धिकः-महती भवनपरिवारादि समृद्धिर्यस्य स तथा, इदमुपलक्षणं तेन "महाद्युतिकः, ८। ये आठ मंगलक ही कल्याण करने वाले कहे हैं। यहां मंगल जनकों में मंगलत्व यह औपचारिक है यह उपलक्षण है अतः यहां ध्वज छन्त्रादिका भी वर्णन करलेना चाहिए। ___ अब सुदर्शना शब्द की प्रवृत्ति के निमित्त को लेकर पूछने की इच्छा से इस प्रकार कहते हैं-'जंबू सुदर्शना में आठ आठ मंगल द्रव्य कहे है 'से' सुदर्शना के स्वरूप वर्णन के पीछे 'भंते !' हे भगवन् इस प्रकार की जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि-केणटेणं एवं वुच्चइ' किस कारण से इस प्रकार कहा जाता है कि 'जंबू सुदंसणा जंबू सुदंसणा' यह जंबूसुदर्शना इस प्रकार से कहा जाता है ? इस प्रश्न के उत्तर निमित्त महावीर प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा !' हे गौतम ! 'जंबूएणं सुदंसणाए' जंबूसुदर्शना में 'अणाढिए णाम' अनाहत नामधारी देव 'जंबू दीवाहिवई' 'जंबू द्वीप का अधिपति 'परिवसई' निवास करता है। वह कैसा है इस प्रकार की जिज्ञासा निवृत्यर्थ कहते हैं-'महिड्डीए' भवनपरिवाराઆ આઠ મંગલક જ કલ્યાણ કરનારા કહ્યા છે. અહીં મંગલ જનકમાં મંગલત્વ એ ઔપચારિક છે. એ ઉપલક્ષણ છે. તેથી અહીં ધ્વજ અને છત્રાદિનું વર્ણન પણ કરી લેવું.
હવે સુદર્શન શબ્દની પ્રવૃત્તિના નિમિત્તને લઈને પૂછવાની ઈચ્છાથી આ પ્રમાણે डेस छ.-'जंबूएणं अट्ठ मंगलगा पण्णत्ता' भूसुशानामा 2406 2416 द्रव्य अस छे. 'से' सुश नाना २१३५ १ ननी ५७. 'भंते !' हे लगवन् मापी रीतनी शास पन्न थाय छ ,-'केणट्रेणं एवं वुच्चई' ॥ ॥२४थी मारी ४ामा माछे ठे-जंबसदसणा जंबूसुदंसणा' 24 भूसुदृश ना २ प्रमाणे ४३वाय छ ? । प्रश्न उत्तरमा श्रीमहावीर प्रमुछे-'गोयमा ! हे गीतम ! जंबूएणं सुदंसणाए' भू सुश नामा 'अणाढिए णाम' मनात नामधारी हेव, 'जंयू दीवाहिवई' ही नामाना दीपना मधिपति परिवसई' निवास ४२ छे.
व 3 छ ? ये शतनी ज्ञानी निवृत्ति माटे ४३ छ-'महिड्डीए' भवन परिवाह સમૃદ્ધિથી યુક્ત હોવાથી મહદ્ધિક છે. મહદ્ધિક પદ ઉપલક્ષણ છે, તેથી મહાધુતિવાળા,
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર