Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू०३० सौमनसगजदन्तपर्वतवर्णनम् ३९१ अत्रान्तरे 'ण' खलु निश्चयेन 'जंबुद्दीवे दीवे' जम्बूद्वीपे द्वीपे 'महाविदेहे वासे' महाविदेहे वर्षे 'सोमणसे णाम' सौमनसो नाम 'वक्खारपव्यए' वक्षस्कारपर्वतः ‘पण्णत्ते' प्रज्ञप्तः, स च कीरशः ? इत्यपेक्षायामाह-'उत्तरदाहिणायए' उत्तरदक्षिणायत:-उत्तरदक्षिणदिशोर्दीर्घः, पुमः 'पाईणपडीणवित्थिण्णः' प्राचीनप्रतिचीन विस्तीर्ण:-पूर्वपश्चिमयो दिशो विस्तारयुक्तः, अयं हि 'जहा' यथा 'मालवंते' माल्यवान् नाम 'वक्खारपव्वए' वक्षस्कारपर्वतः प्राग्वर्णितः 'तहा' तथा वर्णनीयः, ततोऽत्र यो विशेषस्तं दर्शयितुमाह-'णवरं' नवरं केवलं 'सवरययामए' सर्वरजतमयः-सर्वात्मना रजतमयः माल्यवांस्तु वैडूर्यमयः तथा 'अच्छे जाव पडिरूवे' अच्छो यावत्प्रतिरूपः अच्छ इत्यारभ्य प्रतिरूप इति पर्यन्तानां तद्विशेषणवाचकानां पदानामत्र सह ग्रहो बोध्यः, स च बहुषु सूत्रेषु प्रसङ्गात्कृतो बोध्यः । अयं च 'णिसह वासहरपव्ययंतेणं' निषधवर्षधरपर्वतान्ते-निषधवर्षधरनामकपर्वतसमीपे खलु माल्यवांस्तु नीलवत्समीपे 'चत्तारि' चलारि 'जोयणसयाई' योजनशतानि 'उद्धं' अर्ध्वम् 'उच्चत्तेणं' उच्चत्वेन 'चत्तारि' चखारि पश्चिम दिशा में-एवं देवकुरु की पूर्वदिशा में जंबूद्वीप नाम के द्वीप के भीतर वर्तमान महाविदेह क्षेत्र में सौमनस नामका वक्षस्कार पर्वत कहा गया है (उत्तरदाहिणायए पाइणपईणवित्थिण्णे) यह वक्षस्कार पर्वत उत्तर से दक्षिण तक दीर्घ है और पूर्व से पश्चिम तक विस्तीर्ण है।
(जहा मालवंते वक्खारपव्वए तहा-णवरं सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिबवे) जिस प्रकार से माल्यवान पर्वत के वर्णन के सम्बन्ध में कथन किया जा चुका है उसी प्रकार का वर्णन इस पर्वत का है, परन्तु यह सौमनस नामका वक्षस्कार पर्वत सर्वात्मना रत्नमय है आकाश और स्फटिक के जैसा निर्मल है यावत प्रतिरूप है यहां पर दर्शनीय आदि शेष पदों का संग्रह यावत् पद से किया गया है इन संग्रहीत पदों की व्याख्या यथास्थान कंइ स्थलों में की जा चुकी है अतः वहीं से इसे समझ लेना चाहिये (णिसहवासहरपव्ययंतेणं चत्तारि जोयण વિજયની પશ્ચિમ દિશામાં તેમજ દેવકુરુ ક્ષેત્રની પૂર્વ દિશામાં જંબૂદ્વપ નામક દ્વીપની અંદર पभान महाविड क्षेत्रमा सौमनस नाम तिरभाय १९२७२ प त मावेश छे. 'उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणवित्थिण्णे' मा १२२५२ उत्तथी हक्षिण सुधीही छे, भने पूरथा पश्चिम सुधा विस्त . 'जहा मालवते वक्खारपव्वए तहा-णवरं सव्वरयणामए अच्छे जाव पडीरूवे' २ प्रभारी भास्यवान पतना वन विषे ४यन २१ामा मासु छे. તેવું જ વર્ણન આ વર્તનું છે, પણ આ સૌમનસ નામક વક્ષસ્કાર પર્વત સર્વાત્મના २४नभय छे. 24131 भने २५४नी भ नि यापत प्रति३५ छे. ही 'दर्शनीय' વગેરે શેષ પદેનું ગ્રહણ યાવત્ પદથી થયેલું છે. એ પદેની વ્યાખ્યા યથાસ્થાન અનેક स्थाने ४२वामा मावेसी छे, मेथी जिज्ञासुसी त्यांधी on an यत्न ४२. 'णिसवासहरपव्वयंतेणं चत्तारि जोयणसयाई उद्धं उच्चत्तेणं चत्तारि गाउयसयाई उच्वेहेणं सेसं तहेव सव्वं
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર