Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
View full book text
________________
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे संठिए दुहा लवणसमुदं पुढे पुरथिमिल्लाए कोडीए जाव पुढे पच्चथिमिल्लाए कोडीए पच्चस्थिमिल्लं लवणसमुदं पुढे' प्राचीनप्रतीचीनाऽऽयतः, उदीचीन दक्षिणविस्तीर्णः पल्यङ्क संस्थानसंस्थितो द्विधा लवणसमुद्रं स्पृष्टः, पौरस्त्यया कोटया यावत् स्पृष्टः पाश्चात्यया कोटया पाश्चात्यं लवणसमुद्रं स्पृष्टः, 'दो जोयण सपाई उद्धं उच्चत्तेणं पण्णासं जोयणाई उव्वेहेणं चत्तारि जोयणसहस्साई दोण्णि य दसुत्तरे जोयणसए दस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं' नरं द्वे योजनशते ऊर्ध्वपुच्चत्वेन पूर्वोक्त क्षुद्रहिमवद्वर्षधराद् द्विगुणो. चत्वात् , पञ्चाशद् योजनानि उद्वेधेन भूगतत्वेन, मेरुवर्डसमयक्षेत्रगिरिणां स्वोच्चत्वचतुथांशेनोद्वेधत्वात् , चत्वारि योजनसहस्राणि द्वे च दशोत्तरे दशाधिके योजनशते दश च योजनैकोनविंशतिभागान् विष्कम्भेण-विस्तारेण, हैमवतक्षेत्राद् द्विगुणत्वात् , प्रथास्य बाहादि. सूत्रमाह-'तस्स बाहे' त्यादि, 'तस्त बाड़ा पुरस्थिमपच्चस्थिमेणं णव जोयणसहस्साई दोण्णि णायए' यह पर्वत पूर्व से पश्चिम तक लम्बा है 'उदीण दाहिणवित्थिन्ने' उत्तर से दक्षिण तक विस्तृत है। (पलियंकसंठाणसंठिए) पल्यङ्क का जैसा आकार होता है ठीक इस का भी वैसा ही आकार है 'दहा लवणसमुदं पुट्टे पुरथिमिल्लाए कोडीए जाव पुढे पच्चथिमिल्लाए कोडीए पच्चथिमिल्लं लवणसमुदं पुढे दो जोयणलयाई उद्धं उच्चत्तणं पण्णासं जोयणाई उव्वेहेणं चत्तारि जोयणसहस्साइं दोणिय दसुत्तरे जोयणसए दस य एगूणवीसइ भाए जोयगस्स विश्वंभेणं' यह अपनी पूर्व और पश्चिम दिग्वर्ती दोनों कोटियों से क्रमशः पूर्व दिग्वर्ती लवण समुद्र को और पश्चिम दिग्वर्ती लवण को सर्श कर रहा है इस की ऊंचाई दो सौ योजन की है तथा इसका उद्वेध गहराई ५० थोजनकी है क्योंकि समय क्षेत्र गत पर्वतों फा उद्वध मेरु को छोडकर अपनी ऊंचाई के चतुर्थाश 'चौथा भाग' प्रमाण होता है इसका विष्कम्भ ४२१०१० योजन का है। कयोंकि हैमवत क्षेत्रकी अपेक्षा यह दूना है 'तस्स वाहा पुरस्थिनपच्चधिमेणं णव जोयणसहस्साइं दोणि य तभर उत्तरथी दक्षि सुधी विस्तृत छे. पलिअंकसंठाणसंठिए' ५ जना २।२।य छ, 818 माना ॥२ ५ त छ. 'दुहा लवणसमुदं पुढे पुरथिमिल्लाए कोडीए जाव पुढे पच्चथिमिल्लाए कोडीए पच्चिस्थिमिल्ल लवणसमुदं पुढे दो जोयणसयाई उद्धं उच्चत्तेणं पण्णासं जोयणाई उव्वेहेणं चत्तारि जोषणसहस्साई दोणिय दसुत्तरे जोरणसए दसय एगूणवीसइभाए जोयणस्स विक्खंभेणं' से पोतानी पूर्व म2. पश्चिम हिवती सन्न टीमाथी मश: ५५ દિગ્વતી લવણું સમુદ્રને પશી રહ્યો છે. એની ઊંચાઈ બસ એજન જેટલી છે. તેમજ એની ઊંડાઈ (ઉધ) ૫૦ એજન જેટલી છે. કેમકે સમય ક્ષેત્રગત પર્વતની ઊંડાઈ મેરુને છેડીને પોતાની ઊંચાઈના ચતુર્ભાશ ( ચતુર્થ ભાગ) પ્રમાણ હોય છે. આને વિષ્ઠભ ૪૨૧૦ ૧૨ જન જેટલું છે. કેમકે હૈમવત ક્ષેત્રની અપેક્ષાએ દ્વિગુણિત છે.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org