Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
View full book text
________________
२८८
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे
'गोयमा !' गौतम ! 'जंबुसुदंसणा' जम्बुसुदर्शना - 'जाव' यावत् - यावत्पदेन - इति शाश्वतं नामधेयं प्रज्ञप्तम् यत् 'भुविं च ३' न कदाचित्नाssसीत् न कदाचिनास्ति, न कदाचिन्न भविष्यति 'धुवाणियया सासया अक्खया जाव' ध्रुवा नियता शावती अक्षया यावद-याव त्पदेन - अव्यया इत्येषां पदानां सङ्ग्रहो बोध्यः, 'अवडिया' अवस्थिता, इत्येवां व्याख्याऽष्टमसूत्राद्बोध्या । अथ प्रसङ्गादनादृतदेवस्य राज शनीं विपक्षुराह- 'कहि ' इत्यादि - 'कहि णं भंते !" कुत्र खलु भदन्त ! 'अणाढियस्स' अनादृतस्य - अनाहतनामकस्य 'देवा' देवस्य 'अणादिया' अनाहता 'णार्म' नाम प्रसिद्धा 'रावहाणी' राजधानी - राजनिवासस्थानविशेषः 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्ता ?, इति प्रश्ने भगवानुत्तरमाह - 'गोवमा !" हे गौतम ! 'जम्बूदीवे' जम्बूद्वीपे - जम्बूद्वीपवर्तिनः 'मंदरस्स' मन्दरस्य - मन्दराभित्रस्य, 'पव्वयस्स' पर्वतस्य 'उत्तरेणं' उत्तरेण-उत्तरस्यां दिशि अत्र सप्तम्यन्तादेनप्प्रत्ययः, 'जं चेव' यदेव 'पुण्ववणियं' पूर्ववर्णितं - पूर्व प्राक् वर्णितम् - उक्तम्, 'जमिगा पमाणं' यमिका प्रमाणं - यमिकायाः - तन्नाग्न्या राजवान्याः जंबुसुदर्शना 'जाव' यावत् शाश्वत नाम कहा है । 'भुविंच ३' कोई समय वह नाम नहीं था ऐसा नहीं है । वर्तमान में नहीं है ऐसा नहीं है । भविष्य में वह नाम नहीं होगा ऐसा भी नहीं है । 'धुवा णियया सासया अक्खया जाव' ध्रुव, नियत शाश्वत, अक्षय यावत्पद से अव्यय पद का ग्रहण समझ लेवे अवडिया' अवस्थित है इन शब्दों की व्याख्या आठवें सूत्र से समझ लेवें ।
अब प्रसंगोपात अनादृत देव की राजधानी का वर्णन करने की इच्छा से कहते हैं- 'कहिणं भंते ! अणाढियस्स देवस्स' हे भगवन् अनाहत देवकी 'अणदिया णामं रायहाणी' अनाहता नामकी राजधानी 'पण्णत्ता' कही गई है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- गोयमा ! है गौतम ! 'जंबूद्दीवे' जंबूद्वीप में 'मंदree Darea' मंदर नामके पर्वत से 'उत्तरेणं' उत्तर दिशा मे 'जमिगा पमाणं' यमिका नाम की राजधानी के समान प्रमाण वाली अर्थात् आयाम विष्कंभ, शाश्वत नाम उडेल छे. 'भुत्रिंच ३' अर्ध पशु समये से नाम न तु तेभ नथी वर्तमानमां नथी खेभ पशु नथी. अने लविष्यभां से नाम नही हुशे खेभ पशु नथी. 'धुवो, णियया, सासया, अक्खया, जाव' ध्रुव, नियत, शाश्वत, यावत्पथी अव्यय, पहनु ग्रहण सम सेवु. 'अवट्टिया' व्यवस्थित छे आ शहानी व्याख्या सभां सूत्रयी समल देवी.
हुवे प्रसंगोपात अनाहत हेवनी राजधानी वर्षान उरवानी रिछार्थी हे छे-'कहि भंते! अणासि देवस्स' हे भगवन् अनाहत हेवनी 'अणाढिया णामं रायहाणी, अना हत नामनी राज्धानी श्यां 'पण्णत्ता' उस छे ?
या प्रश्नना उत्तरमा प्रभुश्री ४ छे- 'गोयमा !' हे गौतम! 'जंबुद्दीवे' मूद्रीयभां 'मंदरस्स व्वयस्स' भंडर नामना पर्वतनी 'उत्तरेणं' उत्तर दिशामा 'जमिगापमाण, यभि નામની રાજધાની સરખા પ્રમાણવાળી અર્થાત્ આયામ,વિષ્કભ, પરિધિના સરખા પ્રમાણુ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org