Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे पुनः सम्पूरिता भवन्ति 'अहे' अधःअधोभागे 'तिमिसगुहाए' तिमिस्रगुहायाः 'वेयद्धपव्वयं' वैताव्यपर्वतं दालयित्ता' दारयित्वा 'दाहिणकच्छविजयं' दक्षिणकच्छविजयम् 'एज्जेमाणी २' इर्यती २ पुनः पुनः, गच्छन्ती 'चोदसहि' चतुर्दशभिः 'सलिलासहस्सेहि' सलिलासहस्त्रैः 'समग्गा समग्रा-सम्पूर्णा 'दाहिणणं' दक्षिणेन-दक्षिणदिशि 'सीयं' सीतां 'महाणइं' महानदी 'समप्पेइ' समाप्नोति सम्-सम्यक्तया आप्नोति गच्छति प्रविशतीतिभावः, 'सिंधुमहाणई' सिन्धुमहानदी 'पवहे' प्रवहे-समुद्रप्रवेशे 'य' च पुनः 'मूले' मूले निर्गमस्थाने 'य' च 'भरहसिंधुसरिसा' भरतसिन्धुसदृशी भरतवर्षवर्ति सिन्धुमहानदीवत् 'पमाणेणं' प्रमाणेन आयामविष्कम्भादिमानेन इत्यारभ्य 'जाव दोहिं वणसंडे हिं संपरिक्खित्ता' यावद् द्वाभ्यां वनषण्डाभ्यां सम्परिक्षिप्ता परिवेष्टिता इति पर्यन्तं वर्णनं बोध्यम् । एतत्सर्वं भरतवर्षवर्ति सिन्धुमहानदी प्रकरणतो ग्राह्यम् ।
अथोत्तरार्द्धकच्छान्तर्वति ऋषभकूट पर्वतं वर्णयितुमाह-'कहि णं भंते !' क्व खलु माणी२' बार बार पूरित होती हुई 'अहो' अधो भागमें 'तिमिसगुहाए' तमिस्रा गुहामें 'वेयद्वपव्वयं' वैताढयपर्वत को 'दालयित्ता' पार कर के 'दाहिणकच्छविजयं' दक्षिणदिशा के कच्छविजय को 'एजमाणी२' बार बार स्पर्शती हुई 'चोदसहि' चतुर्दश चौदह 'सलिलासहस्सेहिं' १४ हजार नदीयों से 'समग्गा' सम्पूर्ण होती हुई 'दाहिणेणं' दक्षिण दिशामें 'सीयं 'महा गई' सीता महानदी को 'समप्येई' प्राप्त करती है अर्थात् सीता महा नदी में मिलती है । 'सिंधुमहाणई' सिंधु महा नदी 'पवहेय' समुद्र प्रवेश में और 'मूले' मूलमें अर्थात् उद्गमस्थान में 'य' और 'भरह सिंधुसरिसा' भरतवर्षेगत सिंधु महानदी के जैसी 'पमाणेणं' आयामविष्कभादि प्रमाण से यहां से आरम्भ कर 'जाव दोहिं वणसंडेहिं संपरिक्वित्ता यावत् दो वनषण्डों से वेष्टित होती हुई इस कथन पर्यन्त का सम्पूर्ण वर्णन समझलेवें । यह सब वर्णन भरत. वर्ष में रही सिंधुमहा नदी के वर्णनावसर से समझलेवें। यही 'अहे' यो भागमा 'तिमिसगुहाए' तिमिसगुलामा 'वेबद्धपव्वयं' वैतादय पतन 'दालयित्ता' पार ४शत 'दाहिणकच्छविजय' शिष् शान ४२७ वियन एज्जमाणी२' २५शती २५ ती 'चोदसहि' यो: 'सलिलासहस्सेहिं' १२ नहीयोथी 'समग्गा भराती मराती 'दाहिणेणं' शिम 'सीयं महाणई' सीता महानहीन 'समप्पेइ' पास ४२ छे. मात् सीता मानहीन भणे छे. 'सिंधु महोणई' सिधुमडानही 'पवहेय' समुद्र प्रवे. शमा अने. 'मूले' भूम ये 3 अत्पत्ति स्थानमा 'य' भने 'भरहसिधु सरिसा' सरत 4.भा मारेर सिधु महानहीना देवी ‘पमाणेणं' आयाम विष्ठा प्रभाथी मही थी मार मीन 'जाव दोहि वणसंडेहि संपरिक्खित्ता' यावत् मे वनपथी वीटातीमा ४थन પર્યન્તનું પુરેપુરું વર્ણન સમજી લેવું. આ બધું વર્ણન ભરતવર્ષમાં આવેલ સિંધુમહા નદીના વર્ણન પ્રસંગથી સમજી લેવું.
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