Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 717
________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञतिसूत्रे घनघनाथितानि त्रीण्यपि कुर्वन्ति 'अप्पेगइया उच्छोलंति' अध्येकका देवा उच्छोलन्ति अग्रतो मुखे चपेटां ददति 'अप्पेगइया पच्छोलंति' अप्येककाः पच्छोलन्ति पृष्ठतो मुखे चपेटां ददति 'अप्पेगइया तिवई छिदंति' अप्येककाः त्रिपदि मल्लइव रङ्गभूमी त्रिपदि कुर्वन्ति 'पायददर करेंति' पाद दर्दरकम् पादेन दर्दरकं भूम्यास्फोटनरूपं कुर्वन्ति 'भूमि' चडे दलयंति' भूमिचपेटां ददति कराभ्यां भूमिमाध्यन्ति 'अप्पेगइया महया महया सद्देणं रावेति' अध्पेकका देवा: महता महता शब्देन रावयन्ति शब्दं कुर्वन्ति ' एवं संजोगा विभासिअव्वा' एवम् उक्तप्रकारेण संयोगाअपि द्वित्रिमेलका अपि विभाषितव्याः भणितव्याः, अयमर्थः उच्छोलनादि द्विकमपि कुर्वन्ति, तथा केचित् त्रिकं चतुष्कं पञ्चकं पट्कं च कुर्वन्ति संघन करना अर्थात् चीत्कार करना शुरु किया 'अप्पेगइया देवा तिष्णि वि' कितनेक देवों ने एक ही साथ घोडों के जैसा हिनहिनाना, हाथी के जैसा चिंघाड़ना और रथों के जैसा परस्पर में टकराना यह तीनों कार्य किये 'अप्पे गइया उच्छोलन्ति' कितनेक देवों ने आगे से ही मुखके ऊपर थप्पड मारनी शुरू की 'अप्पेगइया पच्छोलंति' कितने देवों ने पीछे से मुख पर धप्पक मारनी शुरु की 'अप्पेगइया तिवई छिदंति' कितनेक देवों ने रङ्गभूमि में मल्लकी तरह पैंतरा भरना प्रारम्भ किया 'पाददद्दरयं करेंति' कितनेक देवों ने पैर पटच पटक कर भूमिको ताडित किया 'भूमिचवेडे दलयंति' कितनेक देवों ने पृथिवी पर हाथों को पटका 'अप्पेगइया महया सद्देणं रावेंति' कितनेक देवों ने बड़े जोर जोर से शब्द किया 'एवं संजोगा विभासिअव्वा' इसी प्रकार से संयोग भी - वित्रि पदों की मेलक भी कहलेना चाहिये अर्थात् कितनेक देवों ने उच्छोलनादि कि भी किये कितनेक देवों ने उच्छोलनादि त्रिक चतुष्क एवं कितनेक देवों ने उच्छोलनादि पंचकषक भी किये 'अप्पेगइया हक्कारंति बुक्कारंति ७१८ परस्परमां संगट्टन यु भेटले थी सो पडवानी शरुआत ४२री. 'अप्पेगइया देवा तिणि ત્રિ' કેટલાક દેવાએ એકી સાથે ઘેાડાએ ની જેમ હુડ્ડાટ કરવું, હાથીએની જેમ ચીસા पाडवी अने रथेोनी नेम परस्परमां संघट्टित थवु आर्या 'अप्पेगइया ઉન્નોનન્તિ' કેટલા દેવાએ આગળથી જ પોતાના મુખ ઉપર થપાડ મારવાની શરુઆત કરી. 'अप्पेगइया पच्छोलन्ति' डेटलाई देवासे पछी भुख उपर थप्पड भारवानी शरुआत 'अप्पेगइया तिवई छिति' डेंटला ठेवा रंगभूमिमां भनी प्रेम पैंतरा भवानी शरुआत हरी. 'पाददद्दरयं करें ति' डेटा देवो यत्र-पछाडी पछाडीने लूमिने ताडित ४री. ‘भूमिचवेडे दलयंति' डेटा देव! पृथिवी उपर हाथी पछा. 'अप्पेगइया महया सदेणं रोति' डेंटला देवोये हुलेर-शोरथी वा ये 'एवं संजोगा विश्वासि અવા' આ પ્રમાણે જ સંચાગ પણુ-દ્વિત્રિ પદાની મેલક વિશેષગુ કડી લેવું જોએ. એટલે કે કેટલાક દેવાએ ઉચ્છલનાદિ દ્વિકા પણ કર્યાં. કેટલાક દેવાએ ઉચ્છેાલનાદિત્રિક, ચતુષ્ક Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798