Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 754
________________ ७५५ प्रकाशिका टीका - षष्ठोवक्षस्कार: सू. २ द्वारदशकेन प्रतिपाद्यविषयनिरूपणम् सम्प्रति- पूर्वीकानां जम्बूद्वीपमध्यवर्त्ति पदार्थानां सङ्ग्रहगाथामाह - खंड १ जोयण२' इ० मूलम् - खंडा १, जोषण२ वासा३ पञ्चय ४ कूडा य५ तित्थ६ सेढीओ७ । विजय दह९ सलिलामो १० पिंडए होइ संगहणी ॥१॥ जंबुद्दीवे णं भंते ! दोवे भरहरमाणमेत्तेहिं खंडेहिं केवइयं खंडग णिएणं पण्णत्ते ? गोयमा ! गाउयं खंड सयं खंडगणिरणं पण्णत्ते । जंबुदीवे णं भंते । दीवे के इयं जोयणगगिएणं पण्णत्ते ? गोयमा ! सत्तेar कोडिया उया छप्पण्णसयलहस्साई, चउणवई च सहस्सा सयं दिवद्धं च गणिया ॥ १ ॥ जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे कइ वासा पण्णत्ता ? गोयमा ! सत्तवासा पन्नता, तं जहा - भरहे एरवए हेमवए हिरण्णवए हरिवासे रम्गवासे महाविदेहे७ | जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइया वासहरा पण्णत्ता, केवइया मंद्रा पव्वा पन्नत्ता केवइया चित्तकूडा केवइया विचित्तकूडा केवइया जनगपव्वया केवइया कंचण पव्वया केवइया वक्खारा केवइया दीवेयद्धा केवइया बट्टवेयद्धा पन्नत्ता ? गोयमा ! जंबुही छ वा सहरपन्या एगे मंदरे व एगे वित्तकूडे एगे विचित्तकूडे दो जमग पठनया दो कंचणपव्वयस्या वीसं दक्खारपव्वया चोत्तीसं दीहवेयद्वा चत्तारि वट्टवेयद्वा एवामेव सपुव्वावरेण जंबुद्दीचे दीवे दुण्णिअउपतरा पव्वयसया भवतीति मक्खायंति । जंबुद्दीवेगं भंते ! जैसे 'लवणसमुद्दे णं भंते ! जीवा उद्दात्ता २ जंबुद्दीवे पच्चायंति ? अत्थेगइया पच्चायंति अत्थेमइया णो पच्चायति' इस आलापकका अर्थ स्पष्ट है || १॥ अब पूर्वोक्त जंबूद्वीप मध्यवर्ती पदार्थों की संग्रह गाथा जो कही गई है वह इस प्रकार से है | खंडा १ जोगण २ वाला ३ पव्वय ४ कूडाय ५ तित्थ सेढीओ ७ । विजय ८ दह ९ सलिलाओ १० पिंडए होइ संगहणी ॥ १॥ द्वीप सूत्रो समयको अर्ध से प्रेम - 'लवण मुद्देणं भंते ! जीवा उदाइता २ जंबुद्दीवे पच्चायति ? अत्थे गइया पच्चायंति अत्थे गइया णो पञ्चायति' भी आसान अर्थ સ્પષ્ટ જ સૂ॰ || ૧ || હવે પૂર્વોક્ત જમ્મૂદ્રીપ મધ્યવતી પદાર્થીની સંગ્રહગાથા વિશે કહેવામાં આવ્યુ છે ते या प्रभाशे हे-खंडा १, जोरण २, बासा ३, पञ्चय ४, कूडाय ५, तित्थ सेढीओ ६७, विजय ८, दह ९, सलिलाओ १० पड ए होइ संगहणी ११ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only 1 www.jainelibrary.org

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