Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 772
________________ प्रकाश टोका-षष्ठोवक्षस्कार मू. २ द्वारदशकेन प्रतिपाद्यविषयनिरूपणम् ७७३ 'एरवए वासे' ऐरव ते वर्ष एतनामके क्षेत्रे 'कइ तित्था पन्नत्ता' कति-कियासंख्यकानि तीर्थानि प्रज्ञप्तानि-कथितानि, तत्र तीर्थानि चक्रवर्तिनां स्वस्त्रक्षेत्रसीमासुरसाधनाथ महाजलावतरणस्थानानीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'तओ तित्था पन्नत्ता' त्रीणि-त्रिसंख्यकानि तीर्थानि महाजलावतरण स्थानानि प्रज्ञप्तानि-कथितानि, तान्येवनामग्राहं दर्शयति-तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-'मागहे वरदामे पभासे' मागधं वरदाम प्रभासम्, तत्र-मागधं तीर्थ पूर्वस्यां समुद्रस्य रक्तानदी सङ्गमे, वरदामतीर्थ तत्रत्यदिगपेक्षया दक्षिणे, प्रभासं पश्चिमायां रक्तवतीनद्याः समुद्रसङ्गमे इति । 'एवामेव सपुवावरेण' एवमेव सपूर्वापरेण-सर्व संकलनेन 'जंबुद्दोवे णं भंते ! दीवे जम्बूद्वीपे खलु भदन्त ! द्वीपे 'महाविदेहे वासे' महाविदेहे वर्षे 'चक्कवहि विजए' चक्रवर्ति विजये 'कइतित्या पन्नत्ता' कति-कियत्संख्यकानि तीर्थानि प्रज्ञप्तानि-कथितानीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे पण्णत्ता' हे भदन्त ! जंबूद्वीप नामके द्वीप में वर्तमान ऐरवन क्षेत्र में कितने तीर्थ कहे गये हैं ? चक्रवर्तियों के अपने अपने क्षेत्र की सीमाओं के देवों को वश में करने के लिये जो महान जलावतरण स्थान होते हैं वे तीर्थ है ऐसे तीर्थ ऐरवत क्षेत्र में कितने हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! तओ तित्था पण्णत्ता' हे गौतम ! ऐरवत क्षेत्र में तीन तीर्थ है 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं 'मागहे वरदामे पभासे' मागध, वरदाम और प्रभास इनमें मागध नामका जो तीर्थ है वह समुद्र की पूर्व दिशा में है जहां रक्तानदी का संगम हुआ है वरदामतीर्थ दक्षिणदिशा में है, प्रभास तीर्थ पश्चिमदिशा में है जहां पर रक्तवती नदी का संगम हुआ है। 'एवामेव स पुवावरेण जंबुदोवे णं भंते ! दीवे महाविदेहे वासे चकवहि विजए कइ तित्था पण्णत्ता' इस तरह सब तीर्थो की संख्या जम्बृद्धीप नामके इस द्वीप में १०२ होती है हे भदन्त ! इस जंवृद्धीप प्रभासता पश्चिमहिशामा आव है. सिन्धु नहीना संगम । छ 'जंबुद्दीवेणं भंते ! एरवए वासे कइतित्था पग्णत्ता' मत! दीप दाम दाभां भान भरवत ક્ષેત્રમાં કેટલા તીર્થો કહેવામાં આવેલા છે? ચક્રવતિ ઓના પિત–પિતાના ક્ષેત્રની સીમાઓના દેવોને વશમાં કરવા માટે જે મહદ્ અવાવરણ સ્થાને હોય છે તે તીર્થો છે. એવા તીર્થો भैरवत क्षेत्रमा इटा छ ? सेनाममा प्रभु ४९ छ–'गोयमा ! तओ तिःथा पण्णत्ता' 3 गौतम ! भरवत क्षेत्रमा त्र तीर्थी छे. 'तं जहा' ते २मा प्रभारी छ-'मागहे वरदामे पभासे' માગધ, વરદામ અને પ્રભાસ એમાં જે માગધ નામક તીર્થ છે તે સમુદ્રની પૂર્વ દિશામાં આવેલ છે. કે જ્યાં રક્તા નદીને સંગમ થયેલ છે વરદામતીર્થ દક્ષિણદિશામાં આવેલ छ. प्रभासतीय पश्चिमाशाम छ. न्यो २४तावती नही सम थयेटो छे. 'एवामेव सपुवावरेण जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे महाविदेहे वासे चक्किवट्टि विजये कइतित्था पण्णत्ता' मा પ્રમાણે બધા તીર્થોની સંખ્યા જંબૂઢીપ નામના આ દ્વીપમાં ૧૦૨ થાય છે. હે ભદન્ત! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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