Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 790
________________ ७९२ प्रकाशिका टीका-षष्ठोवक्षस्कारः सू. २ द्वारदशकेन प्रतिपाद्यविषयनिरूपणम् ७-महाविदेहक्षेत्रप्रमाणम् ३३६८४ योजनानि कलाः ४। ८-नीलवत्पर्वतप्रमाणम् १६८४२ योजनानि, कले २। ९-रम्यकक्षेत्रप्रमाणम्-८४२१ योजननानि, कला १। १० रुक्मिपर्वतप्रमाणम्-४२१० योजनानि कलाः १० । ११-हैरण्यवतक्षेत्रमाणम्-२१०५ योजननि कला: ५। १२-शिखरिपर्वतप्रमाणम्-१०५२ योजनानि कलाः १२ । १३-ऐरवतक्षेत्रप्रमाणम्-५२६ योजनानि कलाः ६ । . ९९९९६ योजनानि कलाः ७६ दक्षिणोत्तरतः सर्व संकलने १००००० योजन सर्वाग्रम्, अत्र दक्षिण जगतीमूल विष्कम्भो भरतक्षेत्रप्रमाणे, उत्तर जगती सत्तश्च ऐवतक्षेत्र प्रमाणे अन्तर्भावनीय इति । (७) महाविदेह क्षेत्र का प्रमाण ३३६८४३५ योजन का है। (८) नीलवत पर्वत का प्रमाण १६८४२: योजन का है। (९) रम्यकक्षेत्र का प्रमाण ८४२१. योजन का है। (१०) रुक्मि पर्वत का प्रमाण ४२१०१० योजन का है। (११) हैरण्यवतक्षेत्र का प्रमाण २१०५० योजन का है। (१२)-शिखरिपर्वत का प्रमाण १०५२२ योजन का है। (१३) ऐरवतक्षेत्र का प्रमाण ५२६६. योजन का है। इस तरह यहां पर योजन का जोड ९९९९६ निन्नानवेहजार नौ सौ छन्नु आता है और कलाओं का जोड ७६ आता है इनमें १९ का भाग देने पर ४ योजन बनते हैं अतः उपर्युक्त योजन प्रमाण में ४ को जोडने पर जम्बूद्रीप का पूरा विस्तार १ लाख योजन का आ जाता है यहां दक्षिण जगती का मूल विष्कम्भ (૬) નિષધ પર્વતનું પ્રમાણ ૧૬૮૪ર જન જેટલું છે. (૭) મહાવિદેહ ક્ષેત્રનું પ્રમાણ ૩૩૬૮૪ જન જેટલું છે. (८) नीद पतनु प्रभा १९८४२१ योन २९ छे. (૯) રમ્યક ક્ષેત્રનું પ્રમાણ ૮૪૨ જન જેટલું છે. (१०) अभि ५'तनु प्रमाण ४२१०१४ येन र छे. (૧૧) હૈરણ્યવત ક્ષેત્રનું પ્રમાણ ૨૧૦૫ જન જેટલું છે. (૧૨) શિખરિ પર્વતનું પ્રમાણ ૧૦૫ર જન જેટલું છે. (૧૩) અરવત ક્ષેત્રનું પ્રમાણ પર જન જેટલું છે. આ પ્રમાણે અહીં જનના સરવાળા ૯૯૯૬ નવાણું હજાર નવસે છાનું છે, અને કલાઓને સરવાળે ૫૭૬ થાય છે. એમાં ૧૯ને ભાગાક ૨ કરીએ તે ૪જન થાય છે. એથી ઉપર્યુક્ત જન પ્રમાણમાં ૪ ને જોડવાથી જમ્બુદ્વીપને સંપૂર્ણ વિસ્તાર ૧ લાખ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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