Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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प्रकाशिका टीका-षष्ठोवक्षस्कारः सू. २ द्वारदशकेन प्रतिपाद्यविषयनिरूपणम् ७६३ सहरसा' चतुर्नवतिश्च सहस्राणि चतुरधिकानि नवतिसहस्राणि इत्यर्थः 'सयं दिवद्धं च गणियपयं' शतंच द्वयर्थै पञ्चाशदधिकं योजनाना मित्येतावत्प्रमाणकं जम्बूद्वीपस्य गणितपदं क्षेत्र फलमित्यर्थः सूत्रेऽत्र योजनसंख्यायाः प्रक्रान्तत्वाद् योजनावधिरेव संख्या प्रदर्शिता, योजनातिरिक्त संख्याया विद्यमानत्वेऽपि उपेक्षण परित्यागात् भगवतीसूत्रादौ तु साधिकत्वं दर्शितम्, तद्यथा
'गाउयमेगं पण्गरस धणुस्सया तह धणूणि पण्णरस ।
सहि च अंगुलाई जंबुद्दोवस्त गणियपर्य" ॥ १ ॥ छाया-गव्यूतमेकं पञ्चदशधनुः शतानि तथा पञ्चदश धनुषि ।
पष्टिं चाङ्गुलानि जम्बूद्वीपस्य गणितपदम् ।। १।। इतिच्छाया ॥ सयं दिवद्धं च गणिअपयं ॥१॥ हे गौतम ! ७ अरय ९० करोड ५६ लाख ९४ हजार १५० योजन का जम्बूद्वीप का क्षेत्र फल है 'सत्तेव' में जो एव पद प्रयुक्त हुआ है वह अवधारण अर्थ तथा आगे की संख्या के समुच्चय के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । 'णउया' पद से ९० करोड अधिक ऐसा अर्थ लिया गया है ९ सौ ऐसा अर्थ नहीं लिया गया है क्योंकि ऐसा अर्थ लेने पर आगे के लक्षादि स्थानों में गणित प्रक्रिया के अनुसार विरोध पडता है गणित पद से क्षेत्र फल गृहीत हुआ है इस सूत्र में योजन संख्या का प्रकरण है इससे योजन तक की ही संख्या यहां दिखाई गई है यद्यपि योजन से अतिरिक्त भी संख्या विद्यमान है परन्तु वह यहां गृहीत नहीं हुई है भगवतीसूत्र आदि में इस प्रमाण में साधिकता इस प्रकार से दिखलाई गई है-'गाउयमेगं पण्णरस धणुस्सया तह धणि पण्णरस । सहि च अंगुलाई जंबूद्दोवस्त गणियपधं ॥१॥ कि जम्बूद्वीप का क्षेत्र फल १ गव्यूत १५१५ धनुष ६० अंगुल का है यहां सप्तकोटि शतादि रूप प्रमाण ।।१।। गौतम ! ७ २५२५८० ४, ५६ साथ, ८४ &, १५० (७६०५६८४१५०) योपन सु दापनु । छे. 'सत्तेव' भा २ 'एव' ५६ प्रयुत प्ये छे, ते भधारण २मर्थ शनी साना समुध्ययन। अर्थमा प्रयुत थये छे. 'णउया' પદથી ૯૦ કરોડ કરતાં અધિક, આ જાતને અર્થ ગ્રહણ કરવામાં આવેલ છે. નવસો એ અર્થ ગ્રહણ કરવામાં આવેલ નથી. કેમકે આ જાતનો અર્થ લેવાથી આગળના લક્ષાદિ સ્થાનમાં ગણિત પ્રક્રિયા મુજબ વિરોધ આવે છે. ગણિત પદથી ક્ષેત્રફળ ગૃહીત થયેલું છે. આ સૂત્રમાં જન સંખ્યાનું પ્રકરણ છે. એથી જન સુધીની જ સંખ્યા અત્રે નિર્દિષ્ટ કરવામાં આવેલી છે. જો કે જાતિરિક્ત પણ સંખ્યા વિદ્યમાન છે, પરંતુ તેનું અત્રે ગ્રહણ થયું નથી. ભગવતીસૂત્ર વગેરેમાં આ પ્રમાણમાં સાધિકતા આ પ્રમાણે નિર્દિષ્ટ ४२वाम भावही छ-'गाउयमेगं पण्णरस धणुस्सया तह धणूणि पण्णरस सढेिच अंगुलाई जंबूहोवस्स गणियपयं ॥१॥
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