Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 756
________________ प्रकाशिका टीका-षष्ठोवक्षस्कारः सू. २ द्वारदशकेन प्रतिपाद्यविषयनिरूपणम् ७५७ जंबुद्दीवे दीवे णउति महागाईको भवंतीति मक्खायं । जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु कइ महागई यो पण्णत्ताओ गोवमा ! चत्तारि महाणईभी पन्नत्तानो तं जहा-गंगासिंधू रत्तारत्तबई तत्थ णं एगमेगा महागई चउदसहिं सलिलासहस्तेहिं समग्गा पुरस्थिमपञ्चरिथमेणं लवणसमुदं समप्पेइ, एकामेव सपुल्यावरेणं जंबुद्दीवे दीवे भरहेर. वएसु वासेसु छप्पण्णं सलिलालहस्ला भवतीति मक्खायंति। जंबुदीवेणं भंते ! दीवे हेमवयहेरण्णवएसु वासेसु कइ महाणईओ पण्ण. ताओ ? गोयमा! चत्तारि महागईओ पन्नताओ तं जहा-रोहिया रोहियंसा सुवण्णकूला रूप्पकूला, तत्थ णं एगमेगा महाणई अट्ठावीसाए अट्ठावीसाए सलिलासहस्सेहि समगा पुरथिमपञ्चस्थिमेणं लवणसमुदं समप्पेइ एकामेक सपुवावरेणं बंदीवे दीवे हेमश्यहेरपणाएतु बारसु. त्तरे सलिलासयसहरूले भक्तीति मक्खायं इति । जंबुहोवेणं भंते ! दीवे हरिवारम्भगवासेसु कई महाणईओ पन्नत्ताओ गोयमा ! चत्तारि महाणईओ पन्नताओ, तं जहा-हरीहरिकंता णरकंता णारिकता, तत्थ णं एगमेगा महाणई छपवाए २ सलिला सहस्तेहिं समग्गा पुरथिमपञ्चस्थिमेणं लत्रणसमुई समप्पेइ, एवामेत्र सध्वादरेणं जंबुद्दीवें दीवे हरिवालरम्मग मातेसु दोबउवीसा सलिलासयसहस्सा भवतीति मक्खाय । जंबुद्दीवेणं भंते दीवे महाविदेहेराले कइ महागईओ पन्नत्ताओ गोयमा ! दो महाणई ओ पन्नताओ तं जहा-सीवा य सीओया य तत्य णं एगमेगा महागई पंचहिं पंचहि सलिला सयसहस्सेहिं बत्तीसा एव स. लिलासहस्सेहि समग्गपुरथिमपचरिथमेणं लागलमुदं समप्पेड़ एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवेग दीवे महाविदेहे वासे दस सलिलासयसहस्ला चउसद्धिं च सलिला सहस्सा भवतीति भवता । जंजुद्दीदेणं भंते! दीवे मंदरस्स एअयस्त दक्षिणेणं के बइया सलिला सयसहस्सा पुरथिमपस्थिमाभिमुहा लयणसमुदं समप्येति ति ? गोयमा! एगे छ उणउए सलिलासपसहस्से पुरस्थिमपञ्चथिमाभिमुहे लवणसमुई समतित्ति, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798