Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 733
________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे उपनयन्ति शक्रसमीपे आनयन्ति, अथ शक्रः किं कृतवान् तत्राह 'तएणं इत्यादि' 'तएणं से सक्के देविदे देवराया भगवो तित्थयरस्स चउदिसिं चत्तारि धवलवसभे विउव्वेइ' ततः, अभिषेक सामय्युपनयनानन्तरं खलु स शक्रो देवेन्द्रो देवराजः भगक्तस्तीर्थकरस्य चतुर्दिशिचतुर्भागे चारो धवलवृषभान् विकुर्वति 'सेए' श्वेतान् श्वेतत्वमेव द्रढयति-'संखदलविमलनिम्मलदधिघणगोखीरफेणरयणणिगरप्पगासे' शंखदल विमलनिर्मलदधिधनगोक्षीरफेन. रजतनिकर प्रकाशो न तत्र शङ्खस्यदलं चूर्णम् विमलनिर्मल:-अत्यन्तस्वच्छो यो दधिधनो दधिपिण्डो रद्धं दधीत्यर्थः गोक्षीरफेनः गोदुग्धफेन:, रजतनिकरः रजतसमूहः, एतेषामिवप्रकाशो येषां तथा भूतास्तान 'पासाईए' प्रासादीयोन् मनः प्रसन्नताजनकस्यात् 'दरसणिज्जे' दर्शनीयान् दर्शनयोग्यत्वात् 'अभिरूचे पडिरूवे' अभिरूपान् प्रतिरूपांश्च मनोहारकखात् एवं भूतान् श्वेतान् वृषभान् विकुर्वणाशक्त्या निर्मातीत्यर्थः तदनन्तरं किमित्याह 'तए णं' इत्यादि 'तए णं से सिं चउण्ह धवलयसभाणं अहि सिंगेहितो अट्ठतोअधाराओ णिग्गच्छति' ततः तदनन्तरं खलु तेषां चतुर्णा धवलवृषभानाम् अष्टभ्यः शृङ्गेभ्योऽष्टौ तोय. धाराः, जलधारा निर्गच्छन्ति निःसरन्ति 'तएवं ताश्रो अद्वतोभ धाराओ उद्धं वेहासं उप्पयंति, अच्युतेन्द्र के आभियोगिक देवों की तरह दे शक के आभियोगिक देव समस्त अभिषेक योग्य सामग्री को लेकर आगये 'लए णं से सक्के देवि देवराया भगवओ तित्थयरसप्त चउद्दिसि चत्तारि धवलवसमे विउधइ' इसके बाद देवेन्द्र देवराज शक ने भगवान् तीर्यकर की चारों दिशाओं में चार श्वेत दैलों की विकुणा की 'सेए संखदलविमलदधिधणगोखीरफेगरयणणिगरप्पकासे पासाईए दरसिज्जे अभिस्वे पडिरूवे' ये चारों ही पैल शङ्ख के चूर्ग जैसे अति. निर्मल दधिके फेन जैसे, गोक्षीर जैसे, एवं रजत समूह जैसे श्वेत वर्ण के थे प्रासादीय-मनको प्रसन्न करनेवाले थे दर्शनीय-दर्शन योग्य थे अभिरूप और प्रतिरूप थे 'तएणं तेसिं चउण्हं धवलवसभाणं अट्टहिं सिंगेहितो अतोयधाराओ णिग्गच्छति' इन चारो ही धवल वृषभों के आठ सीगों से आठ जल ગિક દેવેની જેમ તે શકના આભિગિક દેવ સમસ્ત અભિષેક ચોગ્ય સામગ્રી લઈને उपस्थित थ1. 'तरणं से सक्के देवि दे देवराया भगतओ तित्ययरस्स चउदिसि चत्तारि धवलवसभे निउचई' त्या२ मा देवेन्द्र हेवा शर्ड लगवान तय ४२नी यारे ६A. जमा २ सत पसानी विक्षः ४. 'सेए संखलावेमलदधिधणगोखीरफेग, रयणः णिगरप्पकासे पाईप दरसणिज्जे अभिरूवे, पडिरूवे' २ थार १५ले मना यूए २१॥ અતિનિર્મળ દધિના ફીણ જેવા, ગે-ક્ષીર જેવા, તેમજ રજત સમૂહ જેવાં શ્વેતવર્ણ વાળ હતા. પ્રાસાદીય-મનને પ્રસન્ન કરનારા હતા, દર્શનીયદરશન યોગ્ય હતા, અભિરૂ૫ भने प्रति३५ 811. 'तएणं तेसिं चउण्हं धवल-वसभागं अद्वहिं सिंगेहि तो अद्वतोय धाराओ जिग्गच्छंति' मा या कृपलाना म अमेयी us 1 पा२, नीजी की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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