Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 735
________________ जम्बूद्धीपप्राप्ति कियत्पर्यन्तमाह 'जाव णमोऽन्थुते अरहोत्ति कटु वंदइ णमंसद जाव पज्जुगसई' इति यावनमोऽस्तुतेऽर्हते, इति कृत्वा वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्यित्वा यावत्पर्युपास्ते इति सूत्र संख्या-११॥ __ अथ कृतकृत्यः, शक्रो भगवतो जन्मपुरप्रयाणाय, उपक्रमते-तएणं इत्यादि मूलम्-तएणं से सक्के देविंदे देवराया पंच सक्के विउठवइ, विउ. वित्ता एगे सक्के भयवं तित्थयरं करयलपुडेणं गिण्हइ एगे सक्के पिओ आयवत्तं धरेइ दुवे सका उभो पासिं चामरुक्खेवं करेंति एगे सक्के वजपाणी पुरओ पगडुई, तए णं से सक्के चउरासीईए सामाणिअ साहस्सीहिं जाव अण्णेहिअ भवणवइ वाणमंतरजोइसवेमाणिएहिं देवेहिं देवीहिअ सद्धिं संपडिबुडे सव्विद्धीए जाव णाइयरवेणं ताए उकिटाए जेणेव भगवओ तित्थयरस्त जम्नणणयरे जेणेव जम्मणभवणे जेणेव तित्थयरमाया तेणेव उबागच्छइ उवागच्छित्ता भगवं तित्थयरं माऊए पासे ठवेइ ठवित्ता तित्थयरपडिरूवगं पडिसाहरइ पडिसाहरित्ता ओलोपिडिसाहरइ पडि साहरित्ता एग महं खोमजुअलं कुंडलजुअलं च भगवओ तिथपरस्त उस्तीसगमूले ठवेइ ठवित्ता एगं महं सिरिदामगडं तवणिज्जलंबूसगं सुशाणपयरगमंडियं णाणामणिरयणविविहहारद्धहारउवसोहिय समुदयं भगवओ तित्थयरस्स उल्लोअं सि निक्खिवइ तण्णं अगवं तित्थयरे अणिमिलाए दिट्रीए देहमाणे देहमाणे सुहं सुहेणं अभिरममाणे चिट्ठइ तएणं से सक्के देविदे देवराया द्वारा समझाई है । अभिषेक करने के बाद 'जाव णमोत्थु ते अरहओ त्ति कट्ट वंदइ णमंसइ जाव पज्जुवामइ' शक ने भी अच्युतेन्द्र की तरह प्रभुकी पूर्वोक्त सिद्धबुद्ध आदि पदों द्वारा स्तुति करते हुए उनकी वन्दना की और नमस्कार किया बाद में वह उनकी सेवा करने को भावना से अपने यथोचित स्थान पर खडा हो गया ॥११॥ मनिषे४ मा 'जात्र णमोत्थुते अरहओ त्ति कटु वदइ णमंसइ जोव पज्जुवासइ' श પણ અમ્યુકેન્દ્રની જેમ પ્રભુની પૂર્વોક્ત સિદ્ધ-બુદ્ધ આદિ પદે વડે સ્તુતિ કરતાં તેમની વંદના કરી. અને નમસ્કાર કર્યો. ત્યાર બાદ તે તેઓશ્રીની સેવા કરવાની ભાવનાથી પોતાના યાચિત સ્થાને આવીને ઊભે રહ્યો છે ૧૧ | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798