Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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प्रकाशिका टीका-पञ्चमवक्षस्कार: सु. १२ शक्रस्य भगवतो जम्मपुरप्रयाणम्
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वेस मणं देवं सहावे सद्दावित्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! बत्तीसं हिरण्णकोडिओ बत्तीसं सुवण्णकोडिओ बत्तीसं णंदाई बत्तीसं भाई सुभगे सुभगरूवजुवणलावण्णेअ भगवओ तित्थयरस्स जम्मण · भवसि साहराहि साहरिता एयमाणत्तियं पञ्चव्पिणाहि तरणं से वेसमणे देवे सक्केणं जाव विणणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता जंभ देवे सहावे सदावित्ता एवं वयासी- खिप्यामेव भो देवाणुपिया ! बत्तीसं हिरण्णकोडीओ जाव भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणंसि साहरह साहरिता एअमाणत्तिअं पच्चप्पिणह तप णं ते जंभगा देवा वेसमणेणं देवेणं एवं बुता समाणा हट्टतुट्ट जाव खिप्पामेव बत्तीसं हिरण्णकोडीओ जाव च भगवओ तित्थयरस्त जम्मणभवणंसि साहरंति साहरिता जेणेव वेसमणे देवे तेणेव जाव पच्चप्पिणंति तए णं से वेसमणे देवे जेणेव सक्के देविंदे देवराया जाव पञ्चप्पिणइ, तपणं से सक्ने देविंदे देवराया आभिओगे देवे सहावेइ सद्दावित्ता एवं वयासी - खियामेव भो देवाणुपिया ! भगवओ तित्थयरस्त जम्मणणयरंसि सिंघाडग जात्र महापहपहेसु महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्घोसेमाणा एवं बदह हंदि सुणंतु भवंतो बहवे भवणवइ वाणमंतरजोइसवेमाणिया देवा य देवीओ अ जेणं देवाणुप्पिया ! तित्थ
रस्स तित्थयरमाउए वा असुभं मणं पधारेइ तस्स णं अजगमंजरिआइव सयधर मुद्धाणं फुट्ट चिकटु घोसणं घोसेह घोसित्ता एयमाणतिअं पञ्चपिणहत्ति तपणं ते अभिओगा देवा जाव एवं देवो ति अणाए पडिसुति पडिसुणित्ता सक्क्स्स देविंदस्स देवरण्णो अंतिआओ पडिणिक मंति पडिणिक्खमित्ता खिप्पामेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मण नगरंसि सिंघाडग जाव एवं वयासी हंदि सुणंतु भवंतो बहवे भवणवइ जाव जे णं देवाणुप्पिया ! तित्थयरस्स जाव फुट्टिही तिकट्टु घोसणगं घोसंति घोसित्ता एअमाणत्तिअं पञ्चविणंति, तए णं ते बहवे भवणवइ
ॐ० १३
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