Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 747
________________ ७४८ जम्बूद्वीपप्रतिसूत्र रुक्तविषयप्रत्यर्पणानन्तरं खलु ‘ते वहवे भवणवइ वाणमंतर जोइसवेमाणिया देवा भगवो तित्थयरस्स जम्मणमहिमं करोति' ते बहवो भवनपति वानव्यन्तर ज्योतिष्क वैमानिकादेवाः, भगवतस्तीर्थङ्करस्य जन्ममहिमानं कुर्वन्ति 'करित्ता' जेणेव णंदीसर दीवे तेणेव ‘उवागच्छंति' यत्रैव नन्दीश्वरवरद्वीपस्तत्रैवोपागच्छन्ति 'उवागच्छित्ता' उपागत्य 'अट्टाहिया भो महामहिमाओ करेंति' अष्टान्हिका महामहिमाः अष्टदिन निर्वत्तीयोत्सव विशेषान् कुर्वन्ति बहु वचनंचात्र सौधर्मेन्द्रादिभिः प्रत्येक क्रियमाणत्वात् 'करित्ता' कृत्वा जामेव दिसि पाउन्भूआ तामेव दिसि पडिगया' यस्यामेवदिशि प्रादुर्भताः, तस्या मेव प्रतिगताः, ते देवाः॥सू० १२॥ इतिश्री विश्वविख्यात-जगवल्लभ-प्रसिद्धवाचकपञ्चदशभाषाकलित-ललितकलापालापकप्रविशुद्धगद्यपद्यानैकग्रन्थनिर्मापक-वादिमानमर्दक-श्री-शाहू छत्रपतिकोल्हापुरराजप्रदत्त-'जैनशास्त्राचार्य-पदविभूषित-कोल्हापुरराजगुरु-बाल ब्रह्मचारी जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री-घासीलाल-व्रतिविरचितायां श्री जम्बूद्वीपसूत्रस्य प्रकाशिकाख्यायां व्याख्यायां पञ्चमबक्षस्कारः समाप्तम् ।।५॥ भेज दी 'तएणं ते बहवे भवणवइवाणमंतरजोइसवेमाणिया देवा भगवो तित्थयरस्स जम्मणमहिमं करें ति, करित्ता जेणेव णंदीसरे दीवे तेणेव उवागच्छंति' इसके बाद उन सब भवनपति वानव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देवों ने भगवान् तीर्थंकर के जन्मकी महिमा की जन्मकी महिमा करके फिर वे जहां पर नन्दीश्वर द्वीप था वहां पर आये "उवागच्छित्ता अट्ठाहियाओ महामहिमाओ करे ति करित्ता जामेव दिसिं पाउन्भूआ तामेव दिसिं पडिगया, वहां आकरके उन्हों ने अष्टान्हिका महोत्सव किया यहां बहुवचन के प्रयोग से सौधर्मेन्द्रादिकों ने सबने यह महामाहोत्सव किया यह सूचित होता है फिर वे जहां से आये थे वही पर वापिस चले गये ॥१२॥ श्री जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलालबतिविरचित जम्बूद्वीपसूत्र की प्रकाशिका व्याख्या में पंचमवक्षस्कार समाप्त ॥५॥ स्स जम्मणमहिमं करें ति, करित्ता जेणेव गंदीसरे दीवे तेणेव उवागच्छंति' त्या२ मा त બધા ભવનપતિ વાનવંતર જતિષ્ક તેમજ વૈમાનિક દેએ ભગવાન્ તીર્થકરના જન્મને મહિમા કર્યો. જન્મને મહિમા કરીને પછી તેઓ જ્યાં નંદીશ્વર દ્વીપ હતું, ત્યાં આવ્યા. 'उवागच्छित्ता अढाहियाओ महामहिमाओ करेंति, करिना जामेव दिसिं पाउब्भुआ तामेव दिसि पडिगया' त्या वीन तम भटाह्निता भडास स५.न . ही म. વચનના પ્રયોગથી સૌધર્મેન્દ્રાદિક સર્વેએ મળીને આ મહોત્સવ કર્યો, આમ સૂચિત થાય છે. પછી તેઓ જ્યાંથી આવ્યા હતા, ત્યાં જ પાછા જતા રહ્યા. ૧૨ છે શ્રી જૈનાચાર્ય જૈનધર્મદિવાકર પૂજય શ્રી ઘાસીલાલ વતિવિરચિત જરબૂદ્વીપ સૂત્રની પ્રકાશિકા વ્યાખ્યાને પાંચમે વક્ષસ્કાર સમાસ, ૫ છે Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798