Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 731
________________ ७३३ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे स्यावसरः, 'त एणं' इत्यादि 'तएणं से ईसाणे देविंदे देवराया पंचईसाणे विउव्वइ' तत् स्त्रिषष्टीन्द्राभिषेकानन्तरम् खल, ईशानो देवेन्द्रो देवराजः पञ्चशानान् विकुर्वति विकुर्वणाशक्त्या निर्माति एक ईशानः पञ्चधा भवतीत्यर्थः, तदेव विभजते 'विउवित्ता एगे' इत्यादि विउवित्ता' विकुर्वित्वा, एकः पञ्चधाभूत्वा 'एगे ईसाणे भगवं तित्थयरं करयलसंपुडेणं गिण्हइ' आठ पद आगे जाना इन्द्र का कहा गया है वह 'मैं अङ्ग पूजा के निमित्त बैठकर यदि अन्य के प्रभु के दर्शन करने के मार्ग को रोकलेना हूं तो आगत लोकों के दर्शन करने रूप कार्य में मैं विघ्नकारी बन जाउंगा' इसके इस अभिप्राय को लेकर कहा गया है। अब सूत्रकार अन्य इन्द्रों के सम्बन्ध की वक्तव्यता को लाघव से प्रकट करते हुए कहते हैं 'एवंजहा अच्चुअस्स तहा जाव ईसाणस्स भाणियवं, एवं भवणवइवाणमन्तर जोइसिआ य सूरपज्जवसाणा सएणं परिवारेणं पत्तयं २ अभिसिंचंति' जिस प्रकार इस पूर्वोक्त पद्धति के अनुसार अच्युतेन्द्र का अभिषेक कृत्य कहा गया है उसी प्रकार से प्राणतेन्द्र का यावत् ईशानेन्द्र का भी अभिषेक कृत्य कहलेना चाहिये शक के द्वारा किया गया अभिषेक कृत्य सब से अन्त में होता है इसी प्रकार से भवनपति वानव्यन्तर तथा ज्योतिष्क के इन्द्र चन्द्र सूर्य इन सब इन्द्रों ने भी अपने अपने परिवार के साथ प्रभुका अभिषेक किया 'तएणं से ईसाणे देविदें देवराया पंच ईसाणे विउव्वई' इसके बाद इशानेन्द्र ने पांच ईशानेन्द्रों की विकुर्वणा की-अर्थात् ईशानेन्द्र स्वयं पांच ईशानेन्द्र बन गया-'विउव्वित्ता एगे ईसाणे भगवं तित्थयरं करयलसंपुडे णं गिण्हइ' इनमें આગળ જવું-એવું જે ઈન્દ્ર માટે કહેવામાં આવેલું છે તે-હું અંગ પૂજા નિમિત્તે બે કાન જે પ્રભુ-દર્શન કરવા માટે આવેલા અન્ય જનેના માર્ગને અવરોધક બનીશ તો આગત લેકાના દર્શન કરવા રૂપ કાર્યમાં હું વિદનકારી થઈશ. એના એ અભિપ્રાયને લઈને જ કહેવામાં આવેલું છે. હવે સૂત્રકાર અન્ય ઈન્દ્રોના સબંધમાં લાઘવથી વક્તવ્યના પ્રકટ કરતાં કહે છેएवं जहा अच्चुअस्स तहा जोव ईसाणस्स भाणियव्वं, एवं भवणरइवाणमन्तरजोइसिआ य सूरपज्जवसाणा सएवं परिवारेणं पत्तय २ अभिसिंचंति' प्रमाणे । पूर्वात पति मुखर અચ્યતેન્દ્રના અભિષેક કૃત્ય સ્પષ્ટ કરવામાં આવ્યું છે તે પ્રમાણે જ પ્રાણુતેન્દ્ર યાવત્ ઈશાનેન્દ્રનું પણ અભિષેક-કૃત્ય કહી લેવું જોઈએ શકવડે કરવામાં આવેલું અભિષેક કૃત્ય બધાના અંતમાં કહેવું જોઈએ. આ પ્રમાણે ભવનપતિ વાનયંતર તેમજ તિષ્યના ઈન્દ્ર, ચન્દ્ર, સૂર્ય એ બધા ઈન્દ્રએ પણ પોત–પતાના પરિવાર સાથે પ્રભુને અભિષેક ये. 'तएणं से ईसाणे देविंदे देवरायो पंच ईसाणे विउव्वई' त्या२ मा ४ानन्द्र पांय ઇશાનેન્દ્રોની વિફર્વણુ કરી. એટલે કે ઈશાનેન્દ્ર પિતે પાંચ ઈશાનેન્દ્રોના રૂપમાં પરિણત Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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