Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
View full book text
________________
प्रकाशिका टीका - चतुर्थवक्षस्कारः सु. ३९ पण्डकवनवर्णनम्
४५
चत्वारि 'जोयणाई' योजनानि 'विक्खंभेणं' विष्कम्भेण, पुनः 'मूले' मूलावच्छेदेन 'साइरेगाई' सातिरेकाणि किञ्चिदधिकानि 'सत्तत्तीसं' सप्तत्रिंशतं 'जोयणाई' योजनानि 'परिक्खेवेणं' परिक्षेपेण परिधिना तथा 'मज्झे' मध्ये 'साइरेगाई' सातिरेकाणि 'पणवीसं' पञ्चविंशलिं 'जोयणाई' योजनानि 'परिक्खेवेणं' परिक्षेपेण वर्तुलत्वेन 'उप' उपरि 'साइरेगाई' सातिरेकाणि 'बारस' द्वादश 'जोयणाई' योजनानि 'परिक्खेवेणं' परिक्षेपेण 'मूले' मूले 'विच्छिण्णा' विस्तीर्णा मध्योपरिभागापेक्षया विस्तारवती 'मज्झे' मध्ये 'संखित्ता' संक्षिप्ता मूलापेक्षयाऽल्पविस्तारा 'उप' उपरि 'तणुया' तनुका मूलमध्यापेक्षयाऽल्पतरविस्तारा अत एव 'गोपुच्छसंठाणसंठिया' गोपुच्छसंस्थानसंस्थिता - ऊर्ध्वकृतगोपुच्छाकारेण स्थिता, तथा 'सन्ववे रुलियामई' सर्ववैडूर्यमयी सर्वात्मना वैडूर्यमणिमयी तथा 'अच्छा' अच्छा-आकाशस्फटिक निर्मला अथैतां पद्मवरवेदिका वनपण्डाभ्यां परिवेष्टिततया वर्णयति - 'सा ' एगाए' सा मन्दरचूलिका खलु एकया 'पउमवर वेश्याए' पद्मवरवेदिकया 'जाव' यावत् विष्कम्भ - विस्तार -१२ योजन का है मध्यभाग में इसका विस्तार आठ योजन का है शिखरभाग में इसका विस्तार चार योजन का है मूल भाग में इसका परिक्षेप कुछ अधिक ३७ योजन का है तथा 'मज्झे साइरेगाइ पणवीसं जोयणाइं परिक्खेवेणं' मध्यभाग में इसका परिक्षेप कुछ अधिक २५ योजन का है 'उपि साइगाइ बारस जोयणाई परिक्खेवेणं' ऊपर में इसका परिक्षेप कुछ अधिक १२ योजन का है । 'मूले विच्छिण्णा मज्झे संखित्ता उपिं तणुआ गोपुच्छ संठाणसंठिया सव्ववेरुलियामई अच्छा' इस तरह यह मूल में विस्तीर्ण मध्य में संक्षिप्त और ऊपर में पतली हो गई है अतः इसका आकार गायकी उर्ध्वकृत पूंछ के जैसा हो गया है । यह सर्वात्मना वज्रमय है और आकाश एवं स्फटिक - स्फटिक मणि के जैसी निर्मल है । 'सा णं एगाए पउमवर वेश्याए जाव संपरिक्खित्ता इति' यह मन्दर चूलिका एक पद्मवर वेदिका और एक वनषण्ड से चारों ओर से घिरी हुई है यहां यावत्पद से 'एकेन वनषण्डेन च सर्वतः समन्तात्' यह पाठ ग्रहीत જેટલા છે. શિખર ભાગમાં આના વિસ્તાર ચાર કે જન જેટલા છે. મૂલ ભાગમાં આને परिक्षेत्र ४६६ अधिक 39 योजन नेटो छे तथा 'मज्झे स. इरेगाइ पणवीसं जोयणाई परिक्खेवेणं' भव लागमां यानी परिक्षेप ४६४ अघि २५ योजन भेटले छे. 'उप्पि सारे गाई बारस जोयणाई परिक्खेवेणं' उपरिलाभां खाना परिक्षेत्र ४४४ अधि४ १२ योन भेटलो छे. 'मूले विच्छिण्णा मज्झे संखित्ता उप्पि तगुआ गोपुच्छ संठाणसंठिया सव्व वेरुलियामई अच्छा' या प्रमाणे या भूसभां विस्तीर्णा, मध्यमां संक्षिप्त मने उपरि लागभां પાતળી થઈ ગઈ છે. એથી આને આકાર ગાયના ઉધ્વીકૃત પૂછ જેવે થઇ ગયા છે. આ सर्वात्मना वज्रमय भने आश तेभन २३रि४ नेवी निर्माण हो, 'साणं एगाए पउमवरबेइया जाव संपरिक्खिता इति श्री भंडर यूसिड ४ पद्मवर पेडिसने ये वनाउथी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org