Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 705
________________ ७०६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे देवाः, चतुर्विधं नाटयं नृत्यन्ति 'तं जहा' तद्यथा 'अंचियं १ दुअं २, आरभडं ३ भसोलं ४' अञ्चितम् १ द्रुतम् २ आरभटम् ३ भसोलम् ४ तत्र अञ्चितम् एकप्रकारकनृत्य विशेषस्तम् १ द्रुतम् त्वरा हस्तपाददि चेष्टाकरणम् २, आरभटम् नृत्यप्रभेदम् ३, भसोलम् एकप्रकारक नाट्यविधिम् ४ नृत्यन्ति उक्त प्रकारकं नर्तनं कुर्वन्ति इत्यर्थः 'अप्पेगइया चउfor अभिणयं अभिणेंति' अप्येकका देवाश्चतुर्विधमभिनयम् अभिनयन्ति 'तं जहा ' तद्यथा 'दिति १ पाडि सुइयं २ सामण्णोवणिवाइयं ३ लोगमज्झावसाणियं ४' दाष्टन्तिकम् १ प्रतिश्रुतिकम् २ सामान्यतो विनिपातिकम् ३ लोकमध्यावसानिकम् ४ एते नाट्यविधयोऽभिनयविधयश्च भरतादि सङ्गीतशास्त्रज्ञेभ्योऽवसेयाः 'अप्पेग या बत्तीसविहं दिव्वं नट्टविहि उपदंसेंति' अप्येककाः देवा: द्वात्रिंशद्विधम् अष्टमाङ्गलिकचादिकं दिव्यं नाटयविधिम् उपदर्शयन्ति, स च नाट्यविधिः येन क्रमेण भगवतो वर्द्धमानस्वामिनः समीपे पुरतः सूर्याभ भसोल' अंचित १ द्रुत २ आरभट ३ और भसोल ४ अचित यह एक प्रकार का नृत्य विशेष है, हस्तपदादिकों की चेष्टा त्वरा शीघ्रता से करना यह द्रुत है आरभट यह एक प्रकार का नृत्य विशेष है भसोल भी एक प्रकार की नाट्यविधि है 'अप्पेगइया चउत्रिहं अभिणयं अभिनेति' कितनेक देवों ने चार प्रकार का अभिनय किया- 'तं जहा' वह चार प्रकार का अभिनय इस प्रकार से है- 'दि ंतियं पाडिस्सुइअं सामण्णोवणिवाइअं लोगमज्झावसाणिअं' दान्तिक प्रातिश्रुतिक, सामान्यतो विनिपातिक एवं लोकमध्यावसानिक ये नाट्यविधियां एवं अभिनयविधियां भरतादिसंगीत शास्त्रज्ञों से जानलेनी चाहिये 'अप्पेगइया बत्तीसइविहं दिव्वं विहिं उवदंसेति' कितनेक देवों ने बत्तीस प्रकार की दिव्य नाट्यविधि को दिखलाया जिस क्रम से भगवान् वर्द्धमान स्वामी के समक्ष सूर्याभदेव ने नाट्यविधि प्रदर्शित की है जो कि राज કુંત ૨, આરભટ ૩, અને ભ`લ ૪. ચિત આ એક પ્રકારનુ નૃત્ય વિશેષ છે. હસ્ત પાદાદિકાની ચેષ્ટા દ્વરા—શીઘ્રતાથી કરવી આ ક્રુત છે. આરભટ આ એક પ્રકારનું નૃત્ય विशेष छे. लसोय पशु से प्रारनी नाट्यविधि छे. 'अप्पेगइया चउब्विह अभिगयं अभिणें ति' }टसा देवाच्ये यारे प्रहारनो अभिनय ये 'तं जहा ' ते यार प्रहारनो अभिनय मा प्रभाणे छे. ‘दिद्रुतियं पाडिस्सुइअं सामण्णोवणिवाइअं लोगमज्झावसाणिअं' हाष्टन्तिष्ठ, प्रतिશ્રુતિક, સામાન્યતા વિનિપાતિક તેમજ લેાક મધ્યાવસાનિક, આ નાટ્ય વિધિઓ અને અભિનય विधियो। विशे भरताहि संगीत शास्त्रज्ञोना श्रथेोभांथी गोसेवु' ले 'अप्पेगइया बत्तीसइविहं दिव्वं णट्टविहि ं उवदंसेति' डेटला हेवा उ२ प्रहारनी हिग्य नाट्य विधियोनु अदर्शन यु. જે ક્રમથી ભગવાન્ વમાન સ્વામી સમક્ષ સૂયૅલ ધ્રુવે નાટ્ય વિધિ પ્રદર્શિત કરી છે, કે Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798