Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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प्रकाशिका टीका - चतुर्थवक्षस्कारः स. २३ सुदर्शनाजम्बूवर्णनम्
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द्वे योजने ऊर्ध्वमुच्चत्वेन - उच्छ्रयेण, 'अद्धजोयणं बाहल्लेणं' अर्द्धयोजनं बाहल्येन - पिण्डेन प्रज्ञप्त इति सम्बन्धः, 'तीसे णं' तस्याः - पूर्वोक्तायाः मणिपीठिकायाः खलु 'साला' शालाfasमापरपर्यायादि प्रसृता शाखा 'छजोयणाई उद्धं उच्चतेणं' षडू योजनानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन, तथा 'बहुमज्झ देसभा ए' बहुमध्यदेश भागे - अत्यन्त मध्यदेश भागे 'अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं' अष्ट योजनानि आयाम - विष्कम्भेण - दैर्ध्य - विस्ताराभ्याम्, जम्बू: प्रज्ञप्तेति बोध्यम्, तानि चास्याः स्कन्दोपरितनभागाच्चतसृष्वपि दिक्षु प्रत्येक मेकैका शाखा निर्गता, ताथ शाखाः क्रोशोनानि चत्वारि योजनानि तेन पूर्वापरशाखा दैर्घ्य-स्कन्धबाहल्य सम्बन्ध्यर्द्धयोजन मेलनेनानन्तरोक्तसंख्या पूर्तिर्जायते बहुमध्यदेश भागश्चात्र व्यावहारिको ग्राह्यः, वृक्षादीनां शाखोद्भवस्थाने मध्यदेशस्य लोकैर्व्यवहियमाणत्वात्, यथापुरुष कटिभागीमध्यदेशो व्यपदिश्यते, अन्यथा विडिमायाः द्वियोजनातिक्रमणे निश्चितस्य मध्यदेशभागस्य उद्धं उच्चतेणं' दो योजन के ऊंचाई एवं 'अद्ध जोयणाई बाहल्लेणं' आधा योजन का मोटा कहा है 'ती से णं साला' वह पूर्वोक्त मणिपीठिका की शाखाएं 'छ जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं' छ योजन की ऊंची 'अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं' आठ योजन की लंबाई चोडाइ वाली कही है । वे शाखा के 'बहुमज्झदेसभाए ' ठीक मध्य भाग में 'अट्ठ जोयणाई आयामविक्खंभेणं' आठ योजन पर्यन्त की लम्बी चोडी कही है । वे शाखाएं इसके स्कन्द के ऊपर के भाग से चारों दिशा में प्रत्येक दिशा में एक एक के क्रम से चार नीकलती है । वे शाखाएं एक कोस कम चार योजन की कही है । अतः पूर्व पश्चिम की शाखा की लंबाई-स्कन्धकी मोटाई सम्बन्धी आधा योजन मिलाने से पूर्व कथित संख्या की पूर्ति हो जाती है । बहुमध्य देश भाग यहां पर व्यावहारिक लेना चाहिए कारण की वृक्षादि की शाखा के उद्गमन स्थान को लोक में मध्य देश भाग से व्यवहार करते हैं । भेटी उयाधवाणी मने 'अद्धजोयणाई बाहल्लेणं' अर्धा योजन भेटलो लडो उद्यो छे. 'तीसेणं साला' ते पूर्व भणिपंडिजनी शाणाओ। 'छ जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं' छ येोन्न भेटसी उंची हे. 'अट्ठ जोयणाई आयामविसंमेणं' आयोजन नेटली संगा पहला मुडेस छे. ये शामायाना 'बहुमज्झदेसमाए' रोमर मध्यभागमा 'अट्ठ जोयणाई आयामविक्खभेणं' रमाई योवन भेटसी तेनी संग्रामने होणार हे छे. ते शामाया तेना સ્કઃ—થડના ઉપરના ભાગથી ચારે દિશાઓમાં દરેક દિશામાં એક એકના ક્રમથી ચાર નીકળે છે. તે શખાએ એક ગાઉ એછા એવા ચાર ચેાજન જેટલી કહેલ છે. તેથી તેની પૂર્વ પશ્ચિમ દિશાની શાખાની લંબાઈ-થડની જાડાઇમાં અર્ધા ચેાજન જેટલી વધારવાથી પૂકથિત સંખ્યાની પૂર્તિ થઈ જાય છે. અહીંયાં ખડુમશ્ર દેશભાગ વ્યવહારિક લેવા જોઈએ કારણ કે વૃક્ષાદિની શાખાઓના ઉદ્ગમનસ્થાનને મધ્યભાગ તરીકે વ્યવહાર કરે છે. જેમ પુરૂષના કમ્મર ભાગને મધ્યભાગ તરીકે કહે છે. આ રીતે ન કહે તે શાખાના એ
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