Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे जिनभवन भवनप्रासादानां च न चक्रुः, अन्येऽपि विद्वांसो मूलजम्बूवृक्षगततत्प्रथमवनखण्डगतकूटाष्टकजिनभवनैः सह संकलय्य सप्तदशाधिकशतं जिनभवनानां स्वीकुर्वाणा इहाप्येकै सिद्धायतनं प्रागुक्तप्रमाणं स्त्रीचक्रुः, ततोऽत्र तत्वं केवलिनो विदुरिति ।।
अधुनाऽस्याःशेपपरिक्षेपान् वक्तुं सूत्रचतुष्टयमाह- 'जंबूए णं सुदंसणार उदरपुरस्थियेणं' जम्ब्याः सुदर्शनायाः खलु उत्तरपौरस्त्येन-ईशानकोणे 'उत्तरेणं' उत्तरेण-उत्तरस्यां दिशि 'उत्तरपचत्थिमेणं' उत्तरपश्चिमेन-उत्तरपश्चिमायां-वायव्यविदिशि 'एन्थ णं' अत्र-अत्रान्तरे दिक्त्रये खलु 'अणाढियस्स' अनादृतस्य अनादृतनामकस्य 'देवस्स चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं' देवस्य चतसणां सामानिकसाहस्रीणां-चतुःसहस्रसंख्ययामानिकानां वित्तारि जंबुसाहस्सीओ' चतस्रो जम्बूसाहस्यः-चतुःसहस्रसंख्याजम्यः ‘पत्ताओ' प्रज्ञप्ता:-कथिताः, 'तीसे गं' सूत्रकार एवं वृत्तिकारने जिन भवन एवं भवन प्रासादों की चर्चा नहीं की है अन्य विद्वान भी मूल अंबूवृक्षमें कही हुई उस प्रथम वनखण्डमें कही हुई जिन भवन के साथ आठ कूट का संकलन करके एकसो सत्रह जिन भवनों का स्वीकार करके यहाँ पर प्रथम कहे प्रमाण वाला एक एक सिद्धायतन का स्वीकार करते हैं तो इसमें क्या हेतु है सो केवलि भगवान ही जाने। _अब इसके शेष परिक्षेप को कहने के हेतु से चार सूत्र कहते हैं-'जबएणं सदसणाए' इत्यादि "जबूएणं सुदंसणाए उत्तरपुरस्थिमेणं' जंबू सुदर्शना के ईशानकोणमें 'उत्तरेणं' उत्तर दिशा में 'उत्तरपच्चत्थिमेणं' उत्तर पश्चिम अर्थात वायव्यकोण में 'एस्थ णं' ये तीनों दिशा में 'अणाढियस्स देवस्स' अनाहत नामक देवका 'चउण्हं सामाणिय साहस्सीणं' चार हजार सामानिक देवों के 'चत्तारि जंबू साहस्सीओ' पण्णत्ताओ' चार हजार जयूवृक्ष कहे हैं। 'तीसेणं' उस जंतू सुदर्शना के 'पुरत्यिमेणं' पूर्वदिशामें 'चउण्हं अग्गमाहिसीण' चार अग्रપ્રાસાદની ચર્ચા કરેલ નથી. અન્ય વિદ્વાને પણ ભૂલ જંબૂવૃક્ષમાં કહેલ એ પ્રથમ વનખંડમાં કહેલ જીનભવનેની સાથે આઠ ફૂટનું મિલાન કરી એક સે સત્તર જનભવનેનો સ્વીકાર કરીને અહીંયાં પહેલા કહેલ પ્રમાણવાળા એક એક સિદ્ધાયતનને સ્વીકાર કરે છે. તે તેમ કરવામાં તેમને શું હેતુ છે? તે કેવલી ભગવાન જ જાણી શકે.
व तना शेष परिक्षने. ४डवाना हेतुथी या२ सूत्र ४ छ.-'जंबूएणं सुईसणाए' छत्याशिनानी शान शिामा 'उत्तरेणं' उत्तर ६शामा 'उत्तरपच्चत्थिमेणं' उत्तर पश्चिम अर्थात् पायव्य (शमा 'अणाढियस्स देवस्स' मनहत नामना बना 'चउण्हं सामाणियसोहस्सीणं' या२ ॥२ साभानि वाना 'चत्तरि जंबूसाहस्सीओ पण्णत्ताओ' यार
२२ । ४ा छे 'तीसेणं' ये भूसुश नानी 'पुरस्थिमेणं' पूर्व हिशमां 'चउण्हं अगामहिसीण' या२ म अमलिवियाना 'चत्तारि जंबूओ पण्णत्ता' या२०४५ वृक्षो ४ा छ.
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