Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू. १७ महाविदेहवर्षस्वरूपनिरूपणम् अप्येके केचित् 'णिरयगामी जाव अप्पेगइया सिझति जाव अंतं करेंति' निरयगामिनः नरकगतिगामिनः, यावत् यावत्पदेन-अप्येकके तिर्यगू गामिनः अप्येकके मनुजगामिनः अप्येकके देवगामिनः इति संग्राह्यम् अप्येकके सिध्यन्ति यावत यावत्पदेन "बुध्यन्ते मुच्यन्ते परिनिर्वान्ति सर्वदुःखानम्" इति संग्राह्यम् अन्तं नाशं कुर्वन्ति विशेषजिज्ञासुभिरेषां पदानामर्थ एकादशसूत्रटीकातो बोध्यः। अथास्य नामार्थ प्रश्नोत्तराभ्यां निरूपयितुमाह-'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-महाविदेहो वर्षम् २ ? अथ केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते महाविदेहो वर्षम् २ ? उत्तरसूत्रे तु 'गोयमा !' हे गौतम ! 'महाविदेहे णं वासे भरहेरवय हेमवय हेरण्णवयह रिवासरम्मगवासे हितो' महाविदेहः खलु वर्ष भरतैरवतहैमवत हैरण्यवतहरिवर्षरम्यकवर्षेभ्यः भरतादि रम्यकान्तवर्षापेक्षया 'आयाम विक्खंभसंठाणपरिणाहेणं विच्छिण्णतराए चेव महंततराए चेव सुप्पमाणतराए चेव' आयामविष्कम्भसंस्थानपरिणाहेनहोते हैं कितनेक जीव देवगतिगामी होते हैं कितनेक जीव मनुष्यगतिगामी होते है कितनेक जीव तिर्यश्च गतिगामी होते हैं तथा कितनेक जीव मनुष्य-सिद्धगतिगामी भी होते हैं यावत् वे वुद्ध हो जाते हैं मुक्त होते हैं परिनिर्वांत हो जाते हैं एवं समस्त दुःखों का वे अंत कर देते हैं। इन पदों की टीका ११ वे सूत्र की टीका से देख लेना चाहिये (से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ महाविदेहे वासे २) हे भदन्त ! आपने इस क्षेत्र का नाम महाविदेह ऐसा किस कारण से कहा है? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा ! महाविदेहे णं वासे भरहेरवय हेमवय हरिवास रम्मग वासेहितो आयामविक्खंभे संठाणपरिणाहेणं विच्छिण्णतराए चेव विउलतराए चेव महंतराए चेव सुप्पमाणतराए चेव महाविदेहाय इत्थ. मणूसा परिवसति) हे गौतम ! महाविदेह क्षेत्र भरत क्षेत्र ऐरवत क्षेत्र, हैमवत क्षेत्र, हैरण्यवत क्षेत्र, और रम्यक क्षेत्र की अपेक्षा आयाम विष्कम्भ, संस्थान एवं परिक्षेप को लेकर विस्तीर्णतर है, विपुलतर है महत्तर है तथा सुप्रमाणतरक जाव अंतं करेंति मायु मायु ५सार ४शन त्यांना खi तो न२४ भी डाय છે, કેટલાક જ દેવગતિ ગામી હોય છે, કેટલાંક જે મનુષ્ય ગતિ ગામી હોય છે, કેટલાંક જે મનુષ્ય-સિદ્ધ ગતિ ગામી પણ હોય છે. યાવત્ તેઓ બુદ્ધ થઈ જાય છે, મુક્ત થઈ જાય છે. પરિનિર્વાત થઈ જાય છે. તેમજ તેઓ સમસ્ત દુઃખને અંત કરે छ. मे पहानी व्याभ्या ११ मां सूत्रनी Aawi ने सेवनध्ये. 'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ महाविदेहे वासे २१३ मत मा५ श्री मा क्षेत्रनु नाम महविहे थे । ४१२६४थी ४ह्यु छ ? सेना वासभा प्रभु ४३ छ-'गोयमा ! महाविदेहे णं वासे भरहेरवयहेमवय हरिवास रम्मगवासेहितो आयामविक्खंभे संठाणपरिणाहे णं विच्छिण्णतराए चेव विउलतराए चेव महंततराए चेव सुप्पमाणतराए चेव महाविदेहाय इत्थ मणूसा परिवसंति' હે ગૌતમ ! મહાવિદેહ ક્ષેત્ર, ભરત ક્ષેત્ર, એરવત ક્ષેત્ર, હૈમવતક્ષેત્ર અને રમ્યક ક્ષેત્રોની અપેક્ષા આયામ વિધ્વંભ, સંસ્થાન પરિક્ષેપકને લઈને જોઈએ તે વિસ્તીર્ણતર છે, વિપુલ
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