Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
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प्रकाशिका टीका - चतुर्थवक्षस्कारः सू. २१ यमका राजधात्योर्वर्णनम्
२१५
माओ' सुधर्मे - सुष्टु शोभनो धर्मः - सापराधनिरपराधनिग्रहानुग्रहलक्षणो राजधर्मो यत्र ते तथा, एतन्नाम्न्यौ 'सहाओ' सभे प्रत्येकमेकैकेति द्वे 'पण्णत्ताओ' प्रज्ञप्ते, तयोर्मानाद्याह- ' अद्धतेरस' इत्यादि 'अद्धतेरसजोयणाई' अर्द्धत्रयोदशयोजनानि 'आयामेणं छस्सकोसाई' आयामेन षट् सक्रोशानि 'जोयणाई' योजनानि 'विक्खंभेणं' विष्कम्भेण विस्तारेण 'णव जोयणाई' उद्धं उच्चत्तेणं' नव योजनानि ऊर्ध्वमुत्रत्वेन, अनयोर्वर्णकसूत्रमतिदिशति - ग्रन्थलाघवार्थम् 'अणेगखं भसयस ण्णिविट्ठाओ' अनेकस्तम्भशतसन्निविष्टे इत्यादिपदघटितं तद्वर्णनपरं सूत्रं बोध्यम् एतावताऽपरितुष्यन्नाह - 'सभावण्णओ' इति स च जीवाभिगमोतो ग्राह्यः, स चैवम्'अणेगखं भसयस णिविट्ठाओ अब्भुग्गयसुकयवइरवेइया तोरणवररइयसालभंजिया सुसिलिहविसिद्वसंठिपसत्थवे रुलियविमलखंभाओ णाणामणिकणगरयणख इयउज्जल बहुसमविभत्तइशान (कोण) 'दिसीभाए' दिशा की ओर 'एत्थणं' यहा पर 'जमगाणं देवाणं' यमक देव के 'सुहम्माओ' सुधर्मा नाम की 'सहाओ' दो सभा प्रत्येक की एक एक के क्रम से 'पण्णत्ताओ' कही गई है
अब सूत्रकार उसका मानादि प्रमाण कहते हैं- 'अद्धतेरस जोयणाई आयामेणं' इसका आयाम - लंबाई साडे बारह योजन की है । 'छ सकोसाई जोयणाई विक्खंभेणं' इसकी चोडाई एक कोस अधिक छ योजन की है- 'णव जोयणाई उद्धं उच्चत्तें' नव योजन की इनकी ऊंचाई कही है 'अणेग खंभसयसण्णिविट्ठाओ' अनेक स्तंभ शत सन्निविष्ट इत्यादि पद घटित उसका वर्णन समझलेवे ! वह 'सभा वण्णओ' सुधर्मा सभा का वर्णन जीवाभिगम सूत्र में कहे अनुसार ग्रहण कह लेना वहां पर सभा का वर्णन इस प्रकार है 'अणेग खंभसयसन्निविट्ठाओ अन्भुग्गय सुकय वइरवेड्यातोरणवररइयसालभंजिया सुसलिहू विसि संठिय पसत्थ वेरुलियविमलखंभाओ णाणामणिकणगरयण खड्य उज्जल बहुसमसुविभत्तभूमिभायाओ ईहामिग उसभ तुरगणरमगर विहग हिशानी त२३ ' एत्थणं' अड्डी' आगण 'जमगाणं देवाणं' यम देवनी 'सुहम्माओ' सुधर्भा नाभनी 'सहाओ' मे सलामी हरेउनी मे भेठना उभथी 'पण्णत्ताओं' हे छे.
हवे सूत्रार तेनु भानाहि प्रमाणु सतावे छे. - ' अद्धतेरस जोयणाई आयामेणं' ते आयाम-संगाई साडी भार योजननी छे. 'छ सकोसाई जोयणाई विक्खंभेणं' तेनी पडेा थे! गाउ अधिछ योजननी छे. 'णव जोयणाई उद्ध उच्चत्तेणं' नव येोन भेटला ते या छे. 'अणेगखंभसयसण्णिविट्टाओ' मने४ सेडो स्तलोथी वीटजायेस त्यिाहि यह युक्त तेनुं वन समल सेवु' ते 'सभा वण्णओ' सुधर्भासभानु वर्शन वालिगम સૂત્રમાં કહ્યા પ્રમાણે સમજી લેવુ જોઇએ. જીવાભિગમસૂત્રમાં સભાનું વર્ણન આ પ્રમાણે છે.'अणेगखंभसयसन्निविट्ठाओ अब्भुग्गय सुकय वइरवेड्या तोरणवररइयसालभंजिया सुसिलिट्टविसिट्ट संठियपसत्थ वेरुलियविमलखंभाओ णाणामणिकणगर यणखइयउज्जल बहुसम सुविभत्त-भूमिभागाओ
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