Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
View full book text
________________
३३२
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे पुरत्थिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं पच्चत्थिमलवणसमुहस्स पुरथिमेणं एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे णिसहे णामं वासहरपत्रए पण्णत्ते' महाविदेहस्य वर्षस्य दक्षिणेन हरिवर्षस्य उत्तरेण पौरस्त्यलवणसमुद्रस्य पश्चिमेन पश्चिमलवणसमुद्रस्य पौरस्त्येन, अत्र खलु जम्बूद्वीपे द्वीपे निषधो नाम वर्षधरपर्वतः प्रज्ञप्तः, 'पाईणपडीणायए उदीण दाहिण विच्छिण्णे दुहा लवणसमुदं पुढे' प्राचीनप्रतीचीनायतः उदीचीनदक्षिणविस्तीर्णः द्विधा लवणसमुद्रं स्पृष्टः, पुरथिमिल्लाए जाव पुढे पच्चस्थिमिल्लाए जाव पुढे' नवरं पौरस्त्यया यावत् यावत्वदेन 'कोटया पौरस्त्यलवणसमुद्रम्' इति सग्राह्यम् स्पृष्टः स्पृष्टवान् पाश्चात्यया यावत् यावत्पदेन
'कहिणं भंते ! जंबुद्दीवे २ णिसहे णामं वासहरपव्वए' इत्यादि
टीकार्थ-गौतमने प्रभु से पूछा है-(कहिणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे णिसहे णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते) हे भदन्त ! इस जम्बुद्वीप नामके द्वीप में निषध नाम का वर्षधर पर्वत कहाँ पर कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा ! महावि. देहस्स वासस्स दक्खिणेणं हरिवासस्स उत्तरेणं पुरथिमलवणसमुहस्स पच्चत्थि. मेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरथिमेणं एत्थणं जंबुद्दीवे दीवे णिसहे णामं वासहरपञ्बए पाणत्ते) हे गौतम! महाविदेह की दक्षिण दिशा में और हरिवर्ष क्षेत्र की उत्तर दिशा में पूर्वदिग्वर्ती लवणसमुद्र की पश्चिम दिशा में एवं पश्चिम दिग्वर्ती लवण समुद्र की पूर्व दिशा में जम्बूद्वीप के भीतर निषध नामका वर्षधर पर्वत कहा गया है। (पाईणपडीणायए) यह पर्वत पूर्व से पश्चिम तक लंया है (उदीणदाहिणविच्छिपणे) तथा उत्तर से दक्षिण तक विस्तृत है (दुहालवणसमुदं पुढे) यह अपनी दोनों कोटियों से लवणसमुद्र को छू रहा हैं-(पुरस्थि मिल्लाए जाव पुढे पच्चस्थिमिल्लाए जाव पुढे) पूर्वदिग्वर्ती कोटि से पूर्व दिग्वर्ती लवणसमुद्र को और पश्चिमदिरवर्ती कोटि से पश्चिदिग्वर्ती लवणसमुद्र को छूता
'कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे २ णिसहे णाम वासहरपब्बए' इत्यादि ___ -गौतमै प्रभुने प्रश्नध्या-'कहि णं भंते ! जंबुदीवे दीवे णिसहे णाम वासहरपव्वए पण्णत्त' मत ! 20 दीपभा निषध नाम: १२ पर्वत ४या स्थणे आवस छ १ पासमा प्रभु ४९ छ-'गोयमा ! महाविदेहस्स वासस्स दक्खिणेणं हरिवासस्स उत्तरेणं पुरथिम लवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरस्थिमेणं एत्थ ण जंबुहीवे दीवे णिसहे णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते' 3 गौतम! महाविडनी दक्षिण दिशामा અને હરિવર્ષ ક્ષેત્રની ઉત્તર દિશામાં પૂર્વદિશ્વતી લવણ સમુદ્રની પશ્ચિમ દિશામાં તેમજ પશ્ચિમ દિગ્ગત લવણું સમુદ્રની પૂર્વ દિશામાં જંબુદ્વીપની અંદર નિષધ नाम घ२ ५६त मावेश छ. 'पाईणपडीणायए' र ५त पूर्वथी पश्चिम सुधी cin छ. 'उदीण दाहिणविस्थिण्णे' तेभर उत्तरथी दक्षि सुधी विस्तृत छ. 'दुहा लवणसमुदं पुढे' से पातानी भन्ने टिमोथी सपए समुद्रने ५५॥ २९स छे. 'पुरथिमिल्लाए जाव पुढे पच्चत्थिमिल्लाए जाव पुढे' पूर्व हिवती थी पूर्वहिवती Amसमुद्रने भने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org