Book Title: Trigranth Samuchhay Prashnottar Pradip Paryushanashthnika Vyakhyan Panchjin Stuti
Author(s): Lakshmivijay
Publisher: Bhogilal Kalidas Shah
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ses पूज्यपादपन्यासजीदादा श्रीमणिविजयजीगणि महाराजना प्रशिष्य मुनिश्री लक्ष्मीविजयजीना रचेला. ॐ श्रीप्रश्रोत्तर प्रदीप, पर्युषणाष्टान्हिकाव्याख्यान, पंचजिनस्तुति, ए नामना त्रण ग्रंथो. छपावी प्रसिद्ध करनार. श्री अमदावाद निवासी, संघवी. भोगीलाल काळीदास. ठे. हाजापटेलनी पोळमां पाच्छानी पोळ. संवत १९६५. - अमदावाद. धी " सीटी " प्रीन्टींग प्रेस – ठे. ढालगरवाडा. प्रथम आवृत्ति. मत. १०००. सन १९०९. किंमत रु.० -१२-० Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રી શાંતિચન્દ્ર સેવા સમાજ શ્રી પુસ્તકાલય હાજા પટેલની પાળ–અમદાવાદ. પુસ્તકની પુરેપુરી સંભાળ રાખશા, પાનાં વળી ન જાય તેની કાળજી રાખશે। અને પેન્સીલથી, શાહીથી કે બીજા કશાથી એમાં નાંધ કે 'લીટીઓ કરશે નહિ. પુસ્તક બીજા ચૌદ દિવસ માટે રાખવું હાય તા તારીખ કરી નાંધાવી જવાથી તેમ કરી શકાશે. પણ જો કાઈ ખીજા સભ્ય તરથી માંગણી થઇ હશે તેા એ બીજીવાર મળરો નિહ. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. हे सुज्ञजनो आ पृथ्वीतलने पावन करनार भास्वरवरकातस्वरसमान कान्तिमान् चोवीशमा तीर्थंकर श्रीमान् : दीरस्वामिना आ विद्यमान शासनमां श्रीगणधरादिक महान्पूर्वाचार्योए रचेला सूत्रादिकशास्त्रोने अनुसारे आ "श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीप" नामनो ग्रन्थ रचायेलो छे. तेना पांच प्रकाश राखेला छे, तेमा पहेला प्रकाशमा ७३ प्रश्नो छे, बीजा प्रकाशमा ७१ प्रश्नो छे, त्रीजा प्रकाशमा ८२ प्रश्नो छे, चोथा प्रकाशमा ४५ प्रश्नो छे, अने पांचमा प्रकाशमां ६७ प्रश्नो छे, पांचे प्रकाशना मळी कुल ३३८ प्रश्नो छे, अने ते प्रश्नो विविध प्रकारना छे. तेमज परस्पर एकबीजानी साथे पाये संबंध राखे तेवां ते प्रश्नो छे, अने ते प्रश्नोनी अनुक्रमणिका पांचवाथी समजाशे. वळी ते प्रश्नोना प्रत्युत्तरो ते दरेक प्रश्नोनी साथे शास्त्रोना पुरावा सहित आपेला छे. तथा श्रीपर्युषणापर्वमा विशेषे करीने आवक श्राविकाओने करवा योग्य कृत्योने दर्शावनार “पर्युषणाष्टान्हिकाव्याख्यान" नामनो बीजो ग्रन्थ तथा वळी पांचमी गतिना दातार पांचजिनेश्वरोनी स्तुतिवाळो त्रीजो ग्रन्थ, एम ए त्रणे ग्रन्थो संवत १९५९ मां श्रीकपडवणजमां पूज्यपादपन्यासनी श्री मणिविजयजीगणि महाराजना लघुशिष्य पं० श्रीशुभविजयजीना शिष्य मुनिश्री लक्ष्मीविजयजीए भूरिश्रम लेइ रचेला छे, ते त्रणे ग्रन्थो सुश्रावक शा. मगनलाल उमेदचंदना वाचवामां आवेला छे, अने ते ग्रन्थोपर लोकोने रुचि थवाथी संघवी. भोगीलाल कालीदास सांकळचंदे छपावी बहार पाडेला छे. अने तेनी किंमत पण घणी जुज राखेली छे. माटे आ अमूल्य ग्रन्थोनो सुज्ञ भव्यजीवोए Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) लाभ लेवा चुकवुं नही, अने आ ग्रन्यो घणी काळजी राखी छापवामां आवेला छे. छतां कां भूल रही गई होय तो सुज्ञ भव्यजीवो सुधारी वांचj. एज विनंति. संवत १९६५ दीपालिका दिवसे. } ली० संघवी, भोगीलाल काळीदास. अमदावाद. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपग्रन्थानुक्रमणिका. प्रथमःप्रकाशः mar ar ar .... प्रश्नाङ्क. पृष्टाङ्क १ श्रीजैनमतमांजने देव मानेल छे ते श्रीअर्हन्देव केवा छे ? १ २ उक्तश्री अहंन्देवे केटलां कर्मो कहेला छे ? .... १ ३ कोनो नाश थवाथी मोक्ष थाय अने ते केवो थाय ते कहो २ ४ उपरना प्रश्नोत्तरमा प्रदर्शित जे मोक्ष तेनां नाम दर्शावो. ५ मोक्ष पामवानो उपाय कयो ते कहो .... .... ६ सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्रनुं किश्चित्स्वरूप बतावो. ७ भवान्तरमां सद्गति कोनी थायछे ? ८ कया माणसनो जन्म सफळ थायछे ? .... ९ देवांशी माणस कोण जाणवो ? .... ४ १० गृहस्थोने हमेशां छ कार्यो करवानां कयां ...... ११ जैनसाधुओ जे भावरूप आठ उत्तम पुष्पोए करी श्रीदेवा घिदेवनी निरवद्य पूजा करेछे ते आठ पुष्पो कयां ? .... ५ १२ कोइ गुरुमहाराजे दंडप्रहारे मार्यो थको कोइ शिष्य तत्काल केवळज्ञानने पाम्यो छे? .... .... १३ तीर्थयात्रा समये विवेकी पुण्यात्मा माणस केवो होय १४ आ जगतमां कया पांच शकारो दुर्लभ जाणवा .... ६ १५ पूछवा लायक कोण? १६ पण्डित कोने कहीए ? .... १७ श्रीजिनभवन बंधाववा कयो माणस अधिकारी छे ? .... १८ अन्यायथी उपार्जन करेलु द्रव्य क्यांसुधी रहेछे ? .... ९ » » »r sur or 9 v Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "2222222 १९ आ चपळ लक्ष्मीनुं फळ शुं ते कहो. २० तप केवो करवो ते फरमावो. .... .... १० २१ तपथी निकाचित कर्मनो नाश थाय ? २२ परिग्रह कोने कहेलो छ ? २३ लोभनुं दुर्लभपणुं शास्त्रमा शी रीते वर्णवेलुं छे ते कहो. ११ २४ भोगनुं तथा उपभोगनुं स्वरूप समजावो. २५ प्राणिोनुं अंतरंग मन शी रीते जणाय ? २६ कोनो पार पामी शकायछे अने कोनो पार पामी शकातो नथी ते कहो. .... .... .... .... १३ २७ आ संसारमा स्त्रीरूपी पाश कोणे मांडयो छे ? .... १३ २८ कोनी तेजवृद्धि थायछे अने कोना रूपनो नाश थायछे ते ___ दृष्टान्तपूर्वक कही बतावो. .... १३ २९ मावापनी भक्ति करनार माणसनुं वर्णन करो .... १३ ३० पुण्यानुबंधि पुण्यकयु कहेवायके जेथी प्राणीमनुष्यरूपी सारा भवमाथी नीकळीने तेथी वधारेसाराएवा देवभवमा जायछे ? १४ ३१ " संसारदावा "० ए नामनी स्तुति कोणे करी छे ?.... १४ ३२ उद्योतपंचमी स्तुतिमा “देवाधिदेवागम" दशमो सुधा कुंड छे एम जो कहां छे तो बीजा नव सुधाकुंड क्यां छ? १४ ३३ श्रीयशोविजयकृत नवपदनी पूजा वीगेरेमा आजकालना केटलाक लोको " अथ्थमिए जिनसूरज केवळवंदे जे ज गदीवो" आम बोलेछे ते खरुं छे के केम ? .... १५ ३४ जेम मुनिमहाराजो कोइ प्रत्ये कहे छे के अमुक माण सने धर्मलाभ कहेजो तेम तीर्थङ्कर भगवान् कहे ? .... १६ ३५ २४ तीर्थङ्कर क्यां मोक्षे गया अने ते केवा आसने रह्या थका मोक्षे गया ? Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७ ) ३६ केटला तीर्थङ्करने उपसर्ग थया अने केटलाने ते नथी थया ? १७ ३७ २४ तीर्थङ्करने देवदृष्य वस्त्र क्यां सुधी रह्यं ? ३८ केटला तीर्थङ्कर आर्य, अनार्य देशमां अने केला ती० १७ .... आर्य देशमां विचर्या छे ? .... .... B00 ३९ आर्यदेश तथा अनार्य देश क्यां होय ? ४० आ भरत क्षेत्रना २५ ।। आर्य देशनां नाम तथा तेमां श्री **** .... २१ तीर्थङ्कर, चक्रवर्त्त्यादिक महा पुरुषोनो जन्म होय तेम दर्शावो. १९ ४१ ३१९७४ || अनार्य देश छे तेमांथी केटलाएकनां नाम तथा त्यांना अनार्य मनुष्योनी अज्ञता निवेदन करो. ४२ निकाचित जिननाम कर्म कइ गतिमां कोण शुं कृत्य करवा वडे करीने उपार्जन करे ते फरमावो. २२ ४३ रसोदयनी अपेक्षाए जिनाम कर्मनो उदय क्या थाय छे ? २२ ४४ जिननाम कर्मनो अबाधाकाल अन्त मुहूर्त्तनो कह्यो छे ते क अपेक्षा ते कहो. २३ ४५ वैमानिक तथा आय नरक त्रिक सीवाय बीजा स्थानथी आवी कोइ तीर्थङ्कर थाय छे ? .... २३ ४६ जेम आ भरतक्षेत्रमां २० तीर्थङ्कर समेत शिखरने विषे सिद्धि वर्या तेम ऐरवत क्षेत्रमा २० तीर्थङ्कर क्यां सिद्धि वर्या ? २३ ४७ श्री तीर्थङ्कर वीतराग देवोने १८ दोष न होय ते कया ? २४ ४८ श्री सुविधिनाथथी श्री शान्तिनाथ पर्यन्त आठ तीर्थङ्करो - नासात आंतराम तीर्थनो व्यवच्छेद काल केटलो .... २४ ४९ श्री तीर्थङ्कर भगवानने प्रथमनी त्रण समिति होय इत्यादि ? २५ ५० सामान्य केवली तीर्थङ्करने नमस्कार न करे एवो उल्लेख २५ क्यांइ छे ? ५१ तर्थङ्करने अर्थे करेलुं होय ते वीजा साधुओने कल्पे ?.... २७ .... .... .... १८ १८ .... Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८ ) २८ ५२ तीर्थङ्करने अर्थे देवोएकरेलुं समवसरणतीर्थङ्कर केम भोगवेछे ? २८ ५३ कइ जग्यो देवता समवसरणनी रचना करे ? ५४ समवसरणमांबारेपर्षदा बेसीनेप्रभुनी देशनासांभलेके केम. २८ ५५ समवसरणमां प्रभुना विश्रामार्थे देवताओ देवच्छंदानी र २९ चना क्या करे ? ५६ भगवाननी पहेला पहोरनी देशना पूर्ण थया पछी बीजे पहोरे गणधर महाराज क्या बेसी देशना दे ? २९ ५७ श्री ऋषभदेवना प्रथमगणधरनुंनामपुंडरीक छेके ऋषभसेन छे ? ३० ५८ श्रीऋषभदेवस्वामिने प्रथमपारणेकेटला से लडीरसनाघडाक० ३० ५९ जो दीक्षा दिवसथी ( चैत्र वद ८ थी ) पारणाना दिवस सुधी (वैशाख सुदीज सुधी ) गणीए तो, इत्यादि ? ३० ६० श्री नेमिनाथने केटला गणधर कह्या छे ? ३१ ६१ श्री नेमिनाथनी अपराजित विमानमां केटली स्थिति हती ? ३१ ६२ विजयादि चार विमानमां देवोनी जघन्य तथा उत्कृष्ट स्थिति केटली निवेदन करेली छे ? ६३ पंडित श्री वीरविजय गणि वर्यकृत पंचकल्याणक पूजामां " देवदूष्प इन्द्रेदियुंरे रहेशे वर्ष चत्ततीस नमो० " आम कहां छे त्यां "चत्ततीस" शब्दे करी केद्रलां वर्ष जाणवां ? ३२ ६४ श्रीवीरप्रभुना मातापिता कए देवलोके गया ते कहो ६५ जेम पहेला छेला तीर्थङ्करना शरीरमान विषे भेद छे तेम बळ विषे भेद केम नहीं ? ६६ श्रीमहावीरस्वामिना तीर्थमां कया नव जीवोए तीर्थङ्करनाम कर्म उपार्जन कर्य ते कहो ३३ ३३ **** .... .... .... .... .... .... .... 1000 .... **** ६७ पद्मनाभादि २४ तीर्थङ्कर क्यां मोक्षे जशे ..... ६८ केटलाक कहे छे के रावण आवती चोवीसीमां तीर्थङ्कर थवाना छे ते वात खरी छे ? .... .... ३२ ३४ ३५ ३६ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९ उत्तमपिणीकाळमांछेल्ला तीर्थधरनुतीर्थ क्यांसुधी चालशे? ३६ ७० महाविदेहविजयमां एक केवगिजिन अथवा छमस्थ जिन विचरता होय त्यारे अन्य तीर्थडुरोना जन्मादि होय ? ३६ ७१ श्रीकल्पना नव व्याख्यानवडे वंचाय छे ते शुं परंपराथी के कोइ शास्त्राधारथी? .... .... .... ३७ ७२. श्रीकल्पसूत्रमा सर्वे ७२ स्वप्न कह्यां छे तेनां जुदां नामो .. क्याइ हो ? .... .... .... .... ३७ ७३ श्रीतीर्थङ्करभगवान् केवळिसमुदघात करे के कम ? .... ३७ द्वितीयःप्रकाशः १ गृहवासे रहेला तीर्थङ्करदेव कोइनो दीक्षामहोत्सव करे ? ३८ २ श्रीअजितनाथभगवानना पिताश्री दीक्षा पाळी क्यां गया ? ३८ ३ सिद्धशिला तथा सिद्धना जीवो क्या छे ? ४ निर्जरा अने मोक्षमा शो विशेष छे ? .... .... ५ दशमकारना प्राण कयां ? ..... .... .... ६ उक्त द्रव्य १० पाणने मोक्षना जोवो घारण नथी करता छतां तेमने जीव केम कहो छो? ... .... ४० ७ मनुष्यगतिथी आवेल कोइने क्याइ चक्रवर्तिपणुं कडंछे ? ४० ८ सुभूमचक्रवर्त्तिने केवी रीते चक्ररत्न उत्पन्न थएल छे ? ४० ९ वैताढयपर्वतनी तिमिश्रानामनी गुफामां चक्रवर्त्तिना करेला मांडला केटलां कयां छे ? .... ४१ १० गुफामां चक्रवर्तिना करेलां मांडलां क्यांसुधी रहेछे ?.... ४१ ११ चक्रवर्तिषट्खंडनो दिग्विजयकरेछे तेमां अहम केटेलाकरे? ४१ १२ गङ्गादेवी साथे भरतचक्रिनो भोगविलास क्यांमुधी रह्यो? ४२ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १० ) १३ चक्रवर्त्तियोना अस्थिओने देवताओ ग्रहण करेछे के केम १४३ १४ नथी त्याग कर्यो राज्यनो जेओए एवा चक्रवर्त्तिओ म नेक्यां जायछे ? १५ चक्रवत्तिओनी १६००० देवो सेवा करेछे तेम अर्द्धचक्रवर्त्त वासुदेवोनी ८००० देवो सेवा करे के केम ? १६ वासुदेवो क्यांना आव्या थाय छे ? १७ वासुदेवने केटली स्त्रीयो कही छे ? ९८ प्रतिवासुदेवनी माता केटला स्वप्न देखे ? १९ रामस्त्री सीतासती कया महाराजानी पुत्री छे ? २० द्रौपदी महासती कालकरीने क्यां गई ते कहो. २१ युधिष्ठिर विगेरे पांच पांडवोने द्रौपदी पासे जवाना वा .... राहता के केम .... .... ..... .... .... **** .... .... .... ४३ ? २२ नारदमुनि सम्यग्दृष्टि के मिथ्यादृष्टि २३ पद्मोत्तर राजा पोताना मित्र देवता पासे द्रौपदीहरण कराव्यं ते देव कनिकायनो हतो ? २४ भीष्मपिता कए ठेकाणे कोनी पासे चारित्र लेड क्यों गया ! ४७ २५ पांडवोवीशकडीमुनिसाथै श्रीसिद्धाचलपर सिद्धिवर्याछे. ए ४७ ठेकाणे “कोडी” एटले वीशएम केटला एक बोले छेतेनुंकेम ? ४८ २६ देवताओ श्रीजिनेश्वर भगवाननीदाढा विगेरेलेइजइभुंकरे छे ? ४८ २७ सर्वे देवोनो श्री जिनदादादि ग्रहण करवामां अभिप्राय सरखो हशे के केम ? .... ४३ ४४ ४४ ४६ ४६ ४६ ४७ ४७ ४९ २८ जेनुं चित्तधर्मने विषे अस्थिर छे तेनो आत्मा केवो जाणवो ? ४९ २९ कोनो संसारमा प्रचार न होय ? ५२ ३० विद्याग्रहण करवाना केटला उपाय के ? ५२. ३१ जे गुरुर उपकारबुद्धिथी जेने भजावेल होय ते जो ते गुरुने गुरूपणे न माने तो ते केवो जाणत्रो ? ५२ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) ३२ जम्बूद्वीपना महाविदेहमां ९६ मागधादि तीर्थ क्यां छे अने। तेनेसाधतां त्यांना चक्रवर्जिओ क्यांबाण नाखेछेते कहो ? ५३ ३३ केवली भगवान् पडिलेहणा करे के नहीं ?.... .... ५३ ३४ आ अमुक जीव आठकर्मनो अन्त करशे, एम केवली जागे छे. तेम छमस्थ जाणे के नहीं ?... ..... .... ५३ ३५ ज्ञान अने प्रमाणमां शो विशेष छे ? .... .... ५४ ३६ चारप्रमाण छतां पूर्वोक्त प्रश्नोत्तरमा बे प्रमाण केम कह्या ? ५४ ३७ आज काले आ भरतक्षेत्रमा जातिस्मरण अने अवधिज्ञान ___पामीए के नहीं ? .... .... .... ५४ ३८ जातिस्मरण ज्ञानवालो पोताना केटला पाछला भव देखे ? ५४ ३९ " पञ्चाङ्गी" कोने कहीए ? .... ४० ६ छेद सूत्रना नाम कहो. .... .... .... ५५ ४१ " व्याख्याप्रज्ञप्ति " ए कोर्नु नाम छे ? .... ४२ श्री भगबतीमूत्रमा ४१ शत (शतक) छे. त्या शतशब्दे करी शुं कहेवाय ? .... .... .... ५५ ४३ श्री भगवतीसूत्रना ८४००० के २८८००० पद छ ?.... ५५ ४४ सूत्रना एकपद- केटलं प्रमाण होय ते कहो. .... ५६ ४५ दृष्टिवादना केटला भेदछे. अने कया भेदमा १४ पूर्व जाणवां ४६ कालिक, उत्कालिक, सूत्र कोने कहोए ? .... ५७ ४७ बेघडीना परिमाणवाळी अकाल सन्ध्या केटली छे ? .... ५८ ४८ उक्त चार अकाल सन्ध्या समये शामाटे स्वाध्याय न कराय ५९ ४९ टीप्पणामां राहुनी मस्तक मात्र अने केतुनी कबंध (घड) ____ मात्र आकृति छे तेनुं शुं कारण ? .... ५० आयंबीलमां " हिंग" कल्पे के केम ? .... ५१ " पश्चसौगन्धिक " तान्मूल कोने कहीए ? Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) ५२ स्त्रीरत्ननी संखावर्तीयोनिमां जीवो गर्भपणे उपजे छ, ___ पण निष्पन्न थता नथी तेनुं शुं,कारण ? ..... .... ६१ ५३ औदारिक शरीरवाळी स्त्रीने कोइ देवता भोगवे तो ते स्त्री___ गर्भ धरे के केम ? .... .... .... ६२ ५४ स्त्रीने गर्भोत्पत्ति क्यारे थायछे, अने तेनो केटलो काळ कोठे?६२ ५५ पोतानी माताना उदरमा जीव गर्भपणे वधारेमां वधारे क्यांसुधी रहे ते कहो. .... ५६ गर्भमा रहेलो जीव, ओजआहार करे के लोमआहार के । प्रक्षेपआहार करे ? ५७ चउविहार पञ्चख्खाण स्त्री साथे संयोग कस्तां भांगे के केम ? ६३ ५८ मुक्ताफळ (मोती) सचित्त छे के अंचित्त छे ? .... ६४ ५९ मुक्ताफळनी ( मोतीनी) उत्पत्ति क्यों थती हंशे ? .... ६४ ६० उतावळथी चालनार घोडाना पेटमां "खबरक खबरक" · शब्द थायछे. ते शुं पाणीनो शब्द हशे ? .... ६४ ६१ एक समये वायुना वैक्रिय शरीर केटला होय ? .... ६५ ६२ भाषानुं संस्थान केवे आकारे होय ? .... .... ६३ गर्भज तिर्यश्चपञ्चेन्द्रिय जीवोनी तथा मनुष्य पञ्चेन्द्रिय ___जीवोनी मिश्रायोनि केम कही? ... .... ६५ ६४ हंस, उदकंमिश्रितक्षीरने जुदं करीने पीएछे ते शाथी ? ६६ ६५ साधु, असाधुनी, कोइनीपण निंदा न करवी अने में करे । ते भवान्तरमां केवा अवतार पामे ते कहो ? .... ६९ ६६ दुर्जन मूर्खमाणसने पण्डितपुरुषो पोतानी सोबतमा ले धर्मोपदेश देइ सुधारे तो ते शुं न सुधरे ? .... ६७ श्रीजिनप्रतिमाने विष आचार्यवासक्षेप करे ? .... Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३ ) ६८ दीक्षादि अवसरे वासक्षेप नाखवानो रीवाज क्यांथी सरु थयो हशे ! ७१ ७२ .६९ ज्योतिष्क जिनालयोनुं मान केवी रीते समजवुं ? ७० श्रीजिनमन्दिरमां चैत्यवन्दना कयां बेसीने थाय ते कहो ? ७२ ७१ इरियावहिपकिमीने चैत्यवन्दना थाय के केम ? ७२ .... तृतीयः प्रकाशः १ श्रीजैनमार्गमां जीवना केटला भेदछे ? २ संसारी जीव, अने मोक्षना जीव कया समजवा ? ३ संसारीजीवना अने मोक्षजीवना अनन्तज्ञानादिक भाव .... 9400 .... .... .... **** प्राणमां तफावत हशे ? ४ जीवोने कर्मसंयोग क्यारे थयो ते कहो. ५ प्रवाहनी अपेक्षाए करीने पण जीवोने कर्मसंयोगसादि छे एम आपणे मानीए तो केम ? ७४ ६ जीवोने कर्मसंयोग जो अनादिकाळयी छे तो ते कर्मनो बियोग पाछो शाथी थायछे ? ७ सर्व जीव आश्री कर्मसंयोग अनादिसांत छे के केम ? ८ जो भव्यजीव आश्रि कर्मसंयोग अनादिसांतछे तो सर्वभव्यजीवो मोक्षे जवाथी काळे करी भव्यजीवरहित आलोकथशे ? ७६ ९ निगोद कोने कहीए ? ७७ १० आ लोकमां अभव्यजीवो केटला छे ? ७७ ११ अभ्रव्यजीवो कोइ काळे ओछावधता थता हशे ? **** .... .... **** ७४ ७४ **** ७८ ७८ १२ भव्य, अभव्यजीवनुं लक्षण शुं ? १३ अभव्यजीव भावधी " पादपोपगमन " अनशन करे ? ७८ .... ७४ ७४ ७५ ७५ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (१४) १४ अभव्जीव चारित्रग्रहण करे ? ...... .... १५ अभव्य जीवना प्रतिबोधेला भव्यजीवो मोक्षे जाय ? १६ प्रसिद्ध थएला अभव्य जीवो केटला छे ? । १७ कोइ अभव्यजीब वर्गादि सुखनी इच्छावडे द्रव्य चारित्र ने पामीने भणे तो केटलं श्रुत पामे ? .... .... १८ अभव्य जीवो श्री सिद्धाचल तीर्थनी स्पर्शना न करे एवा. ___अक्षरो क्याइ छे ? .... .... .... १९ श्रीजिन भगवाननी देशना अभव्योने तन्व जणावनारी केम नथी थती? .... २० परमाधामि जीवो भव्य छे के अभव्य छे ? . .... २१ परमाधामि जीवो कोण छे ? .... .... २२ परमाधामि जीवोनी करेली वेदनाओ केटली थ्वीओने विषे छे ? २३ मरण अवसरे जीवने शरीरमांथी नीकळवानो कयो मार्ग प्रभुए प्ररूप्यो हशे? ... .... २४ उक्त पांच प्रकारे जीव शरीरमांथी नीकळतो थको कइ गतिने पामे ? .... .... .... .... २५ स्त्रीए प्रार्थना करेलो पुरुष केवो होय ? ........ २६ शुक्लपाक्षिक, अने कृष्णपाक्षिक, जीवोकोने कहीए ?.... २७ कृष्णपाक्षिक जीवो कइ दिशाए उपजे छे ? .... ८४ २८ मुनिमहाराजो कइ दिशा सन्मुख रही आवश्यक क्रिया करे? ८५ २९ मुनिमहाराजोए के. कंदोरोबांधवो कया शास्त्रमा कहेलो छे? ८५ ३० साधुओने भिक्षार्थे शय्यातरने घरे जq कल्पे के केम ? ८५ ३१ केटला कोशथी आणेलो अशनादिक आहार साधुओने कल्पे ? ८५ ३२ पहेले पहोरे लावेलुं अशनादि, ते मुनिओने चोथे पहोरे भोजन करवाने कल्पे? ... .... .... ८६ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५ ) 66 ८७ ३३ संखडी प्रत्ये भिक्षार्थे साधुने जनुं न कल्पे त्यां “ संखडी एटले शुं. अने तेनी केवी रीते व्युत्पत्ति थाय छे ते फरमावो? ८६ ३४ परिहारविशुद्धिकमुनिमहाराजोने निद्रा होय? ३५ अगीतार्थ मुनि एकाकीपणे विचरे ? ३६ स्थविरकल्पिकमुनिमंडलीम " वृषभ " कोने कहेल छे ? ८७ ३७ संवेगी छता पण जो ते अगीतार्थ होय तो तेनी पासे आ लोयणा लेवी के केम ? ८७ ८७ .... .... ८९ ३८ कोइ लज्जादि कारणथी गुरु पासे करेल पापकर्मनी आ लोयणा न लेतो ते आराधक कहेवाय के केम ? ३९ आहारकलब्धिवंत चौद पूर्वधर मुनि भवभ्रमण करे !.... ८९ ४० साध्वीने नव कल्पविहार होय ? ८९ ९० ९० ९१ ४१ साधुओं तथा साध्वीओ रात्रिए वस्तिद्वार बंध करे के नहीं? ९० ४२ मुनिमहाराजो परस्पर केटलं अंतर राखी शयन करे ? ४३ मुनिमहाराजो पात्रांथी केटले दूरशयन करे ? ४४ महाविदेहक्षेत्रमां केलां चारित्र पामीए ? ४५ मुनिओने ब्रीहिपलाल कल्पे ? ४६ मुनिओ चर्मपादुका पहेरे ? ४७ काणा माणसने दीक्षा अपाय के केम ? ४८ केटलाक कछे के साधुना गुणनी परीक्षा करीनेज साधुने वांदवा, अन्यथा न वांदवा तेनुं केम ? ९१ ९१ ९२ ४९ शिष्यकस्थापनाकल्प कोने कहीए ? .... .... ५० दीक्षावसरे नूतननाम स्थापनाना अक्षरो क्यांई हशे ? ५१ खरां क्षमतक्षामणा कोणे कर्या ? ५२ छदमस्थगुरु केवळ ज्ञानवाळीसाध्वीने वांदे के केम ? ५३ नेत्रासन प्रमुख आसनपर मुनिओ बेसे? **** .... .... d... .... ९२ ९२ ९३ ९३ ९३ ९४ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) ५४ स्नातकमुनिना जे पांचभेद कह्या छे ते शुं संभवे ? ९४ ५५ श्रीस्थूलभद्रजीनी पांचमी बेननुं नाम शुं ? .... ९४ ५६ श्रीपन्नवणासूत्रना कर्ता श्रीश्यामाचार्यजी श्रीसुधर्मास्वामि थी केटलामे पाटेछे ? .... .... .... ९५ ५७ श्रीश्यामाचार्यजी कया महाराजाना शिष्य जाणवा ९५ ५८ श्रीदेवगिणि क्षमाश्रमण पूर्वे कोण हता ?.... .... ५९ अजीवसंयम, तथा अजीवअसंयम ते शुं ?.... .... ९६ ६० अजीरूप पुस्तकादिकना ग्रहण परिभोगथी आरंभ सामारं___ भादि दोषो लागता हशे? .... .... .... ९६ ६१ पुस्तकादिक तो धर्मना उपकरण छे, एम कहीने ममत्त्वा दि भावथी जेओ पुस्तकादिकोनो संग्रह परिभोग करेछे, तेओने परिग्रहदोष लागतो हशे के केम ? ६२ मनना दंभनो त्याग कर्यो नथी ने तप, संयम, केश लो चादि धर्मकर्म करे तो ते फळे ? .... .... ९७ ६३ अनुक्रमे शुद्ध एवी अध्यात्मयोग क्रिया केटलेगुणठाणे होय ? ९८ ६४ कया जीवनी क्रिया अध्यात्मगुणवैरिणी जाणवी ? .... ९८ ६५ भवाभिनंदी जीव केवो होय ? :.... .... ६६ कया जीवनी क्रिया अध्यात्मगुणने वृद्धि करनारी जाणवी? ९९ ६७ समूछि मतिर्यश्चपञ्चेन्द्रिय जीवोने छेल्लु एक संहनन अने ____संस्थान होय के केम ? .... ६८ देवताओने दांत तथा केश होय ? ६९ मेरुपर्वतना चोथा पण्डक वनमा व्यन्तरना आवासा होय १०० ७० अनुत्तरविमानना देवो श्रीशत्रुजयतीर्थनी त्रिकरण यो___ गथी सेवाभक्ति करे ? . .... .... १०० ७१ देवताओने पांच पर्याप्ति कही तेनुं शुं कारण ? .... १०१ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) ७२ स्वर्गमा वनखण्डादि जे कहुं छे ते पृथ्वीपरिणामरूपे के वनस्पतिपरिणामरूपे समजवु ? .... .... १०१ ७३ स्वर्गमा पुष्करणी (वाव) वीगेरे स्थले मच्छादिक, जे, कह्या छे, ते जीवपरिणामरूप छे, के ते आकारमात्र धरनाराओ छे. .... .... .... १०१ ७४ देव, देवीसाथे मूलशरीरे करी, के उत्तरवैक्रियशरीरे ___करी भोगकर्म करे. ..... .... ... १०२ ७५ विजयराजधानीनो कील्लो केटलो उंचो कह्यो छे. १०२ ७६ अणपनीय, पणपनीय, आदि आठ व्यन्तरविशेषनिकाय क्यां वसे छे. .... .... १०२ ७७ एकावतारी देवोने छ मास आयुष्य बाकी रहे छते च्यवन चिन्हो उपने? ___..... १०४ ७८ लवसप्तमदेवता कया समजवा ? .... .... १०५ ७९ चोवीशमभुना चोवीश लंछन कहो. ..... .... १०५ ८० श्रीऋषभादि चोवीश जिनना वर्ण कहो. .... १०६ ८१ श्रीऋषभादि चोवीश जिन कया कुळमां उत्पन्न थया ? १०६ ८२ परमार्थ जाण्या विना अर्थ कहे ते केवो जाणवो ? .... १०७ .... चतुर्थःप्रकाशः १ सर्वसंवररूपचारित्र कएगुणठाणे होय ? .... १०९ २ तामलीतापसने क्यारे समकितनी प्राप्ति थइ ? .... १०९ ३ विग्रहगतिने पामेलो कोइ जीव अग्निकाय मध्येथी जतो थको दझाय के केम ? .... .... .... १०९ ४ वैक्रियशरीरवाळो जीव अनिकायमध्येथी जतोयकोदझाय? १०९ ५ पृथ्वी वीगेरे पांच स्थावरकायने स्वामिओ इशे ? .... ११० Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .... १११ (१८) ६ जेम बादरपृथ्व्यादिपांचस्थावरकायनेविषे प्रत्येके एक पर्यातकनीवनिश्राए बीजा असंख्याता अपर्याप्तकजीवो कह्या छे तेम पूक्ष्म पांच स्थावरकायने विषे एज रीते के केम ? ११० विकलेन्द्रियजीवोमनुष्यमांआव्याथकामनपर्यायज्ञाननेपामे? १११ ८ जीवविचार प्रकरणमा जे "ग्राहा" जीवो कह्या छे ते । स्वरूपे केवा होय ? .... . .... १११ . ९ श्री प्रज्ञापनासूत्रमा प्रथमपदविषे " शिशुमारा" जीवो कह्या छे ते कया ? .... .... १११ १० कुकडा, तथा मोरना मस्तकमध्यरेहलीशिखासचित्त छे के। . अचित्त छ, के मिश्र छे ? ... ११ अग्नि विषे उंदरनी उत्पत्ति हशे ? .... .... ११२ १२ उंदरना लोमर्नु रत्नकंबलवस्त्र बनेछे ते वात खरी हशे ? ११२ १३ नपुंसकमासमां जे उत्तमवनस्पतिछे ते फळे के कम ? ११३ १४ चूडेली (जीवविशेषः) द्वीन्द्रिय जीवछे के त्रीन्द्रिय जीवछे ? ११३ १५ अतिस्निग्धपणाने लीधे त्रीने आरेपण बादरअग्निनो अभाव .. कह्यो छे तो ऋषभदेवजीना समयमां तेनी उत्पत्ति शाथी १११३ १६ एम संभळाय छे के कोइना उदरमा "गृहकोकिला" उत्पन्न । _ थाय छे तेनुं शुं कारण ? .... .... .... ११३ १७ मोतीने पृथ्विकायपणुं संभवे ?..... .... .... ११४ १८ सर्प, “पवनभक्षी" नामछे ते अ॒पवनने भक्षण करतो हशे १११४ १९ एक सीघोडामा केटला जीवो कह्याछे ? .... .... ११४ २० "कुदृमित" शब्द स्त्रीओना केवा विलासभेदमां जोडायछे ? ११४ २१ स्त्रीओना मायाकपटथी पुरुष ठगाय के ? .... ११५ २२ लौकिकशास्त्रमा चार आश्रम कह्याछे ते कया अने ते क्यारे . ... कोने होय ? ..... .... . .... ११६ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .... २३ लौकिकमते सीता पोतानुं सत्यपणुंजणावी क्यां गया हशे १११७ २४ सूर्यना किरणोनी वधघट थती हशे? .... .... ११७ २५ बत्रीस लक्षणो पुरुष कयो समजवो ? ........ ११९ २६ लौकिक १८ पुराणना नाम दर्शावो ? .... .... १२० २७ चौद विद्या गुणजाण कोने कहीए ? .... .... १२१ २८ केटलां नक्षत्रो ज्ञानवृद्धि करनारा हशे ?.... .... १२२ २९ चन्द्रादिग्रहो चारविशेषे करी प्राणिओने सुखदुःख विपा कना हेतुओ छे के नहीं? ..... .... .... १२३ ३० विषव्याप्तअन्नने जोइ चकोर वीगेरे जीवोनेकंइथतुंहशे? १२६ ३१ स्वीना अंग विषे कया दिवसे क्या क्या काम रहेछ ?.... १२७ ३२ "कुत्रिकापण" एटले शुं ? ......... .... १२९ ३३ "गोरस" शब्दनी केवी रीते व्युत्पत्ति थायछे ? अने. ...क्यां तेनी प्रवृत्ति होय छे ? .... .... १२९ ३४ अपकगोरसमा कठोल जमवू जेम जैनशास्त्रमा वयु छे तम. . . .. - लौकिकशास्त्रमा वज्यु हशे? .... .... .... १३० ३५ अन्यदर्शनमां रात्रिभोजन नहीं निषेधेलं होय ? . .... १३० ३६ अन्यदर्शनना शास्त्रमा कंदमूल खावानी मना करीछे ? १३५ ३७ ब्राह्मणोने राजप्रतिग्रह ग्राह्य छे ?. ..... .... १३७ ३८ अन्यदर्शनमां देवताओने प्रसन्न करवा आठ पुष्पोथी पूजा - कही छे ते आठ पुष्पो कयां जाणवां ? ......... १३८ ३९ अन्यदर्शनमा कां छे के पण्डितोए छ वस्तुओ न लेवी .. ...तेम कोइने न देवी ते छ वस्तुओ कइ जाणवी ? .... १३९ ४० १८ भार वनस्पति कही २ ते श्रीजनमतअपेक्षाए के अन्य - मतअपेक्षाए अने ते केवीरीने इत्यादि सविस्तर वात कहो ? १३९ ४१ "पाणिनि " नामना आचार्य स्वभावी के कोइनाथी .. मृत्यु पामेला छे ? ................... १४० Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) ४२ ".दिवाकीर्ति" शब्दे शुं समजवु ? .... ... १४० ४३ " यक्षमईम" कोने कहीर ? .... ४४ “कर्णीरथ " एटले शुं ? .... .... .... १४१ ४५ सौचधर्माधिकारिओने अत्यन्तमलिनदेहआत्मानुं निर्मल पणुपोतानीबुद्धिएकल्पेलतीर्थादिजलस्नानकरोनेजथायछे ?१४२ पञ्चमःप्रकाशः १ रात्रिए देवपूजादि शुभकार्य थाय ? .... .... १४७ २ मर्त्यलोकनो दुर्गध उंचो क्यां सुधी जतो हशे? .... १४७ ३ मानुषोत्तरपर्वत अभ्यन्तरपुष्करवरद्वीपना अर्द्धमां छे, के वाह्य पुष्करवर द्वीपना अर्द्धमां छे. के बेनी मध्ये छे ?.... १४८ ४ जम्बूद्वीपपट्टादिकमांमहाहिभवानवर्षधरपर्वतपीतवर्णशाथीछे? १४८ ५ पंचशत योजन पहोळा गजदंत गिरिपर सहस्र योजन पहो लो सहस्रकुट शीरीते रह्यो ? .... .... १४९ ६ पांचमा आराने अंते वैताढयपर्वतपर विद्याधरो अनेतेओना नगरो रहेशे के केम ? .... .... १४९ ७ जम्बूद्वीपनी जगतीनो " गवाक्षवलय " जगतीनी भीत मध्यगत छे के जगतीना उपर छे ? .... .... १५० ८ औषध, अने भेषना कंड तफावत हशे? .... १५० ९ श्रावक कोनीकोनी साथे व्यापार न करे ते कहो ?.... १५१ १० मुनिआश्रि चार प्रकारना श्रावक कह्या छे ते कया?.... १५१ ११ गृहस्थने पांच भूना दोष कह्या छे ते कया ? अने सू. ना शब्दे करी शुं समजQ ? .... .... .... १५३ १२ जेम कोइने गृहस्थवषे केवलज्ञान उपजे छे तेम मनःपर्या यज्ञान उपजे के केम? .... ......... १५१ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१ ) इ १३ बार व्रतनी पूंजामां " चार दिशा विमला तमारे " त्यादिक० त्यां " विमलातमा " एटले शुं ? १५५ १५३ १४ पौषधमध्ये भोजन कराय एवा अक्षरो क्यांइ छे ?.... १५४ १५ आयबीलमां हलदर कल्पे के केम ? १५४ १६ शंबूकावर्त्त फोडवांनहीं त्यां" शंबूकावर्त्त " शब्दे शुंसमजनुं ? १५४ १७ चक्षुहीन माणसने केवलज्ञान उपजे ? १५५ १८ हालमां सुधरेल केटलाक श्रावको श्री देरासरमां पण उतरासंग नथी राखता तेनुं शुं कारण ? १९ त्रण उभरावडे अचित्त थपलं उष्णजल गळ्याविना पीवुं कल्पे के कम ? २० कोइ गृहस्थ एकाशनादि तप कर्या विना उनुं पाणी पीए छे ते पाणसना आगार ले ? ..... १५५ २१ चोमासानी अठ्ठाइओ क्यांथी क्यां सुधी जाणवी ?.... १५५ २२ अचक्षुदर्शनमां स्वप्रदर्शननो अन्तरभाव थाय ? २३ संप्रतिकाले जीव ऊर्ध्वगतिमां तथा अधोगतिमां जाय तो १५५ १५५ 0908 .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... क्यां सुधी जाय ? २४ लेश्या कया कर्म मध्ये गणवी ? २५ कार्मणशरीरनुं स्वरूप केवी रीते समजवुं ? २६ कया आचार्यनी साथै पूर्वनो व्यव छेद थयो ? २७. श्री हेमचन्द्रसूरिजीनो जन्मादिकाल कयो ? २८ संक्षेपसामायिकनुं स्वरूप दृष्टान्त साथ कहो ? २९ प्राणवायु वीगेरे पांच वायु शरीरमां क्यों रहे छे ?.... ३० नव प्रकारे रोगोत्पत्ति थाय छे ते नव प्रकार कया ? ३१ उत्तम वैद्य केवा लक्षणवाळो होय ! ३२ धन्वन्तरिसमान होय तो पण पांच बैयन शोभे ते कया ? १६२ १६० १६१ .... .... .... .... .... .... **** १५६ १५६ १५७ १५७ १५७ १५७ १५९ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३ ) 99 १६३ ३३ अढार द्रव्यदिशा तथा अढारभाव दिशा केवीरीते जाणवी ? १६२ ३४ श्रेणिकराजानुं " भंभासार नाम शाथी ? ३५ अधोलोकमां एक समये केटला सिद्ध थाय ? ३६ १४ पूर्वना प्रमाणमां १६३८३ हाथी कह्याछे ते हाथी १६४ .... **** कया क्षेत्रना लेवा ? १६४ .... ३७ भव्य, अभव्यादि सर्व जीवनी मूळभूमिका कइ समजवी ? १६४ ३८ गोशाळे महावीरस्वामि उपर तेजोलेश्या मेली ते तेजोले .... श्यामी शक्ति केवी हती ? १६५ ३९ साकार तथा निराकार उपयोगनो काळ केटलो ? १६५ ४० वीसातमी नरकपृथ्वी विषे तथा सर्वार्थसिद्ध विषे जाय ? १६६ ४१ दरेक माणसे व्याख्यान केवी रीते सांभळवु ? १६७ ४२ जमा लिना पितानुं नाम कोइपण शास्त्रमां देखातुं नथी एम केटलाक कछे तेनुं केम ? .... 0.00 **** .... .... .... ४३ युद्धमां " महारथ " कोने कहीए ? ४४ श्रेयांसकुमार कया महाराजाना पुत्र जाणवा ? ४५ पंचमीदेववंदनविधियां " निद्रास्वप्न जागरदशा ० इत्यादि आवी एक गाथा छे तेनो शो भावार्थ छे ? .... .... १६९ १६९ ४६ " वरवर्णिनी स्त्री कइ जाणवी ? ४७ “ न्यग्रोधपरिमंडला" शब्द केवालक्षणवाळीनारीविषेजाणवो १६९ ४८ अक्षौहिणी तथा महाक्षौहिणीनुं शुं प्रमाण छे ? ४९ स्त्यानर्द्धिनिद्रावाळाने वामुदेवना बळथी अर्द्ध बळ जे क छे ते बल आजकाले होय के न होय ? १७० ५० नारक जीवोने मेहसत्ता होय के ? .... .... ५१ कः खेभाति ० इत्यादि आ काव्यथी भुं समजाय छे ! ५१ एक समयमां वे क्रिया होय ? १६७ १६८ १६८ .... १७१ १७१ १७२ १७४ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३ ) ५३ रजोहरण शब्दनो शो अर्थ छे .... .... ५४ कोने पामीने सप्पविषरहित थाय छे ? ५५ जे छंदना दरेक चरणमां पेलो, बीजो, चोथो, आठमो, अगीयारमो, तेरमो, अने चौदमो, ए सात अक्षर गुरुहोय. अने ते सीवायना बीजा सात अक्षर ह्रस्व होय. तो ते छंद कयो जाणवो ? ५६ छंदशास्त्रमां केटला गण छे अने ते दरेक गण केटला अक्षवाळो होय छे ? १७५ .... ' .... ...P .... १७६ ५७ “ द्वन्द्वश्वमाणितूर्यसेनाङ्गानां " ए सूत्रवडे करी एक वझामयायछे, तोकल्पकिरणाळीमां तथादीपिकामां “प्रति र्णानां पाणिपादानां" एवो प्रयोग केम राख्यो हशे १.... १७८ ५८ केवला पल्योपमे एक सागरोपम थाय ? ५९ आहारक शरीर कोने कहीए ? १७९ १७९ १७९ ६० द्रव्यश्रुत अने भावश्रुत कोने कहीए ! ६१ गुणहेतु तथा भवहेतु अवधिज्ञान कोने थाय ? ६२ ज्ञान अने दर्शनमां शो भेद छे ! १८० ६३ प्रज्ञापरिषह, अने अज्ञानपरिषहनुं स्वरूप कहो. ६४ मनुष्यलोकमां चन्द्र तथा सूर्य केटला छे ? ... ६५ धातकीखण्ड पुष्करार्द्धना चार मेरु केवडा छे ? ६६ पांच अनुत्तरविमान कइ दिशाए जाणवां १ ६७ श्रीजिनभवन, पौषधशाळा, अने ज्ञानभंडार, बीगेरे कोणे कोणे कराव्यां ते विषे थोडो अधिकार कहो ? .... 0.0 ... ... ... १७४ १७४ "... १८० १८० १८१ १८२ १८२ १८२ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४) श्रीपर्युषणाष्टन्हिकाव्याख्यानग्रन्थ विषयानुक्रमणिका. विषयाङ्क. - पृष्टाङ्क १ आधमां बेश्लोकवडे मङ्गळ विगेरे चार बाबतो जणावेलीछे. १ २ श्रीपर्युषणापर्वने सर्वोत्कृष्टपर्व कहेलछे. .... .... १ ३ पूर्वोक्तपर्वआवेछतेइन्द्रादिकदेवोनुंश्रीनंदीश्वरद्वीपविषेगमनक० १ ४ श्रावकवर्गे मनुष्यभवादिसामग्रीपामी उक्तपर्वमा धर्मविषे : शीघ्रमेव विशेष प्रयत्न करवो क. .... .... २ ५ केमधर्मविषेशीघ्रमेव प्रयत्नकरवो तेवीकरेली शङ्कानुसमाधान.३ ६ प्रमादवशेजेधर्मनथी सेवतातेकेवा जाणवा तेविषेसदृष्टान्तवर्णन.४ ७ हमेशां श्रीजिनमन्दिर जq ए विगेरे वर्णन..... .... ४ ८ श्रीजिनपूजामाहात्म्य. .... .... .... ४ ९ श्रीजिनपूजाफळमाप्तिविषे दृष्टान्त. ... १० नित्यगुरुवन्दननिमित्तेउपाश्रये जवू, तेमना मुखथी भाव - सहित व्याख्यान सांभळg, विगेरे वर्णन..... .... ५ ११ भावविना व्याख्यान सांभळे तेने काइ लाभथाय एवीक- रेली शङ्कानुं समाधान. १२ श्रीकल्पसुत्रघरेपधराववा विगेरे वणन. .... १३ श्रीकल्पसूत्रश्रवणविधि. .... १४ श्रीकल्पसूत्रश्रवणफळ. .... १५ मुनिदान, तथा ग्लानमुनि प्रमुखनी परिचर्या, अने दानफळमाप्तिविषे दृष्टान्तो क०.... १६ साधर्मिकवात्सल्य, तेउपर भरतचक्रवर्त्तिनुंदृष्टान्त. .... r wr १ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५ ) .... १७ सातक्षेत्रे धन वापरवा संबधि अधिकार. १८ श्रीजिनशासनविषे प्रभावना करवी क० १९ श्रीजिनशासननी प्रभावनाथी थता गुणो क० २० कृषणता न करवा विषे सदृष्टान्त वर्णन. २१ शीलवतवर्णन, ते उपर सीता सतीनुं दृष्टान्त. २२ सातव्यसन तजवा संबंधि सविस्तर वर्णन. २३ तपवर्णन. .... .... .... ११ ११ १२. १३ १३ २४ तपमाहात्म्य. २५ तप करवाउपर श्रीमहावीरस्वामीप्रमुखना दृष्टान्तो. १३. २६ मासक्षपणादि तप अवसरेसंघभक्ति, ज्ञानभक्तिपणकरवी क०१४ २७ हमेशां बेबखत प्रतिक्रण करवा संबंधि अधिकार. २८ शुभभावना भाववा संबंधि वर्णन. २९ शुभभावना शा माटे भाववी तेवी करेली शङ्कानुः सदृष्टान्त .... .... .... .... .... .... .... .... .... ok. .... समधान...... ३० भावनाफळप्राप्तिविषे भरतचक्री प्रमुखोनां दृष्टान्तो. ३१ श्रावकवर्गे उक्तपर्वमां सुवस्त्राभरणधरवां तेमज मनवचन .... .... .... .... कायानी शुद्धि करवी क० ३३ श्रीपर्युषणाष्टान्हिका आव्यापहेलां पिष्टादिकृत्यो करवां . विगेरे उत्समापवाद क० ३३ कसाई विगेरे हिंसकप्राणीओना महारंभ बंध तथा तेमनी साथ व्यापार पण नहीं करदो क '३४ क्वीखाना छोडावा. .... ... 0.06 .... कराववा **** ३५ अमारी पडवगडाववो क० ३६ सर्वे आरंभन काम कर्मयां (जिवदया पाळवी ) ३७ जेम श्रीजैनधर्म विषे तेम अन्य धर्मो विषे पण जिबदया कहेली छे ते संबंधि सविस्तर वर्णन. .... .... .... १०+ .... १०. १४. १४: १४ १५. १५. १६. १७. १७ १७. १७. Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६ ) F३८ पाणीहारु, चुलो, घण्टी, खाण्डणी, सावरणी ए पांच - स्थानके सारी जयणा राखवी क० .... .... १८ ३९ श्रीजिनपूजादिअर्थे गृहस्थे केवी रीते स्नान करवू ते . संबंधि सविस्तर वर्णन ....... .... .... ४. केवळ द्रव्य स्नानथी देह शुद्धि नथी थती ते उपर स्वपर - शास्त्रना पुरावा आपेला छे . ..... .... . .... ४१ क्रोधादि चार कषाय न करवा विषे वर्णन.......... २० ४२ श्रीदेवगुर्यादिक कोइनी पग निंदा न करवी क० .... :४३ श्रीदेवगुर्वादिकनी निंदा करनाराओ भवांतरमा महादुःखोने पामे छे. .... . .... .... .... .... २० ४४ दुर्जन माणसोनो संग न करवा विषेनुं वर्णन. .... २० ४५ देवादिद्रव्यने भक्षण, उपेक्षणादि करनाराओ नानाविध अशुभ कर्मना भोगवनारा थाय छे तेवू स्वपरशास्त्रमा कहेलसविस्तरवर्णन .... .... .... २१ ४६ जेसाधुदेवादिकद्रव्यनीरक्षानिमत्ते उपदेशनी उपेक्षणा करे तो ते साधुने पण अनन्त संसारी कह्यो छे. .... २३ ४७ देवादिद्रव्यथीदूषित थयेल गृहस्थना घरनुं अन्नादि साधुने तेमज श्रावकवर्गने न कल्पवा विषेनुं वर्णन. .... २४ ४८ देवादि द्रव्यनी रक्षा करनाराओने उभय लोकमां सत्फल प्राप्ति विषय वर्णन. .... ......... .... २४ ४९ आत्महितार्थिओए सात विकथा न करवी क० .... २५ ५. सात विकया करनार रागद्वेषवाळो होवाथी हिताहितने । .. नहीजाणतो भवरूपअटवीमा पुनःपुनपरिभ्रमणकरे एवं क०.२५ ५१ उक्तरिते श्रीपर्युषणापर्व- आराधन करवावडे भव्यजिवो... ‘ने मोक्षप्राप्ति थाय छे एवं छेवटमा दर्शावेल छे....... २५ ५२ ग्रन्थकांनी प्रशस्ति .. .... .......... २५ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) श्री पञ्चजिन स्तुति. अनुक्रमणिका. पृष्टाक. .... विषयाङ्क. १ श्रीआदिजिनस्तुति. २ श्रीशान्तिजिनस्तुति. ३ श्रीनेमिजिनस्तुति. ४ श्रीपार्थजिनस्तुति. ५ श्रीवीरजिनस्तुति. Page #28 --------------------------------------------------------------------------  Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ॐ नमःसिद्धं ) ॥श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपग्रन्थप्रारंभः॥ प्रथमःप्रकाशः श्रीमत्पार्श्वजिनंनत्वास्वपखोधसिद्धये॥प्रश्नोत्तरणदीपोयंक्रियतेंतस्तमोपहः॥१॥ सजनाःसन्तुसपिप्रसन्नमनसःसदा ॥ ममोपरियतस्तेह्यमत्सरिणः स्वभावतः॥२॥ १ प्रश्न-श्रीजैनमतमा जेने देव मानेल छे. ते श्रीअईन्देव केवा छे ? उत्तर-सर्वज्ञ एवा, अने वळी जित्याछे रागादिक दोषो जेणे एवा, तथा त्रणेलोकथी पूजाएला, तेमज यथास्थित अर्थने कहेनारा एवा, परमईश्वर श्रीअर्हन्देव छे. यदुक्तं श्रीहेमचंद्राचार्यकृतश्रीयोगशास्त्रे. "सर्वज्ञोजितरागादिदोषस्त्रैलोक्यपूजितः ॥ यथास्थितार्थवादीच देवोर्हन् परमेश्वरः ॥१॥" २ प्रश्न-उक्तश्रीअर्हनदेवे केटलां कर्मो कहेलां छे ? उत्तर-झानावरणादिक आठ कर्मो कहेलां छे, तेनो विस्तार श्री देवेन्द्रसरिकृतकर्मग्रन्थथी जाणवो. Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. ३ प्रश्न-कोनो नाश थवाथी मोक्ष थाय अने ते केवो थाय ते कहो? उत्तर-पूर्वोक्त आठे कर्मनो नाश थवाथी, जन्ममरणादिकथी रहि। त, तथा सर्व आपदाओ विनानो, अने एकान्त सुख सङ्गमवालोएवो मोक्ष थाय छे. इत्यादि. यदुक्तम्. श्रीहरिभद्राचार्यकृतसिद्धस्वरूपाष्टके. " कृत्स्नकर्मक्षयान्मोक्षोजन्ममृत्यादिवर्जितः ॥ सर्वबाधाविनिर्मुक्तएकान्तसुखसङ्गतः ॥ १॥” ४ प्रश्न-उपरना प्रश्नोत्तरमा प्रदर्शित जे मोक्ष तेनां नामो दर्शावो. उत्तर-महानन्द, अमृत, सिद्धि, कैवल्य, अपुनर्भव, शिव, निःश्रे यस, श्रेयश, निर्वाण, ब्रह्म, निर्दृति, महोदय, सर्वदुःख क्षय, निर्याण, अक्षर, मुक्ति, मोक्ष अने, अपवर्ग, ए उक्तनामो सर्वे मोक्षनां जाणवां. यदुक्तम्. श्रीहेमचंद्राचार्यकृताभिधानचिन्तामणौ. "महानन्दोमृतसिद्धिः कैवल्यमपुनर्भवः ॥ शिवंनिःश्रेयसंश्रेयोनिर्वाणब्रह्मनिवृतिः ॥ १॥ महोदयः सर्वदुःखक्षयोनिर्याणमक्षरम् ।। मुक्तिर्मोक्षोपवर्गोथ " ५ प्रश्न-मोक्ष पामवानो उपाय कयो ते कहो. उत्तर-सम्यग्ज्ञान,दर्शन,चारित्रात्मक जे योग, ते मोक्ष पामवानो उपाय जाणवो. Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम प्रकाशः यदुक्तम्. .. श्रीहेमचंद्रविरचिताभिधानचिन्तामणौ. " मोक्षोपायोयोगोज्ञानश्रद्धानचरणात्मकः” ६ प्रश्न-सम्यग् ज्ञान, दर्शन, चारित्रनु किश्चित्स्वरूप बतावो. ? उत्तर-यथावस्थितजीवादिकनवतखोनो संक्षेपथी, अथवा तो वि स्तारथी जे अवबोध (ज्ञान) तेने पण्डित पुरुषो सम्यम् ज्ञान कहे छे, तथा श्रीजिनेश्वरकथितजीवादिकनवतत्त्वोने विषे जे रुचि थवी ते सम्यग् दर्शन कहेवाय, अने ते स्वाभाविक रीते अथवा गुरूपदेशथी उत्पन्न थाय छे, तेमा जे स्वाभाविक रीते थाय छे, ते निसर्ग सम्यग् दर्शन कहेवाय छे. अने जे गुरूपदेशथी थाय छे, ते अधिगम सम्यग् दर्शन कहेवाय छे. तथा सर्वसावधयोगोनो ज्ञानदर्शनपूर्वक त्याग करवो, ते सम्यग् चारित्र कहेवाय अने ते चारित्र अहिंसादिव्रतभेदोवडे करीने पांच प्रकारनुं छे. . यदुक्तंश्रीयोगशास्त्रे. "यथास्थिततत्त्वानांसंक्षेपाविस्तरेणवा ॥ योवबोधस्तमत्राहुःसम्यग् ज्ञानमनाषिणः ॥१॥ रुचिर्जिनोक्ततत्त्वेषुसम्यश्रद्धानमुच्यते ॥ जायतेतन्निसर्गेणगुरोरधिगमेनवा ॥२॥ सर्वसावद्ययोगानांत्यागश्चारित्रमिष्यते ॥ कीर्तितंतदहिंसादिवतभेदेनपञ्चधा ॥ ३ ॥" आ सम्यग्ज्ञान, दर्शन चारित्ररूप रत्नत्रयी,विशेष स्वरूप श्रीयोगशास्त्रादिकथी जाणवू. Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीप्रश्नोत्तरपदीपे. ७ प्रश्न-भवान्तरमा सद्गतिकोनी थायछे ? उत्तर-जे माणस मरण समये पञ्चपरमेष्टि नमस्काररूप पांचरनोने पोताना मुखमां धारण करेछे, ते माणसनी भवान्तरमा सद्गति थायछे. यतः प्रोक्तम् , “पञ्चतायाःक्षणेपञ्च रत्नानिपरमेष्टिनाम् ॥ आस्येदधातियस्तस्यसद्गतिःस्याद्भवान्तरे ॥१॥" ८ प्रश्न-कया माणसनो जन्म सफल थायछे ? उत्तर-जे माणस भावथी, भोजन, वस्त्रादिकोवडे करीने साधर्मिक __ भाइओनुं वात्सल्यकरेछे, ते माणसनो जन्म सफल थायछे, ___ यतः प्रोक्तम् , “साधर्मिकाणांवात्सल्यंभोजनाच्छादनादिभिः॥ यस्तनोतिनरोभावात्तज्जन्मसफलंभवेत् ॥ १॥" ९ प्रश्न-देवांशी माणस कोण जाणवो ? उत्तर-जेनीपासे छ “दकारो" छे ते देवांशी माणस जाणवो अने ते “दकारो" नीचे मुजब जाणवा-देवपूजा, दया, दान, दाक्षिणता, दम, अने दक्षता. " देवपूजादयादानंदाक्षिण्यंदमदक्षते ॥ यस्यैतेषडदकाराःस्युःमदेवांशीनरःस्मृतः ॥१॥” Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५ ) प्रथमः प्रकाशः १० प्रश्न - गृहस्थोने हमशां छ कार्योकरवानां कयां ? उत्तर - देवपूजा, गुरुसेवा, स्वाध्याय, संयम, तप, अने दान, ए छ कार्यो गृहस्थोने हमेशां करवानां. यदुक्तम्. “ देवपूजागुरूपास्तिःस्वाध्यायः संयमस्तपः ॥ दानञ्चेतिगृहस्थानांषद कार्याणिदिनेदिने ॥ १ ॥ " ११ प्रश्न - जैनसाधुओ जे भावरूप आठ उत्तम पुष्पोए करी श्रीदेवाधिदेवनी निरवद्यपूजा करे छे, ते आठ पुष्पो कयां ? उत्तर-- पहेलुं अहिंसारूपभावपुष्प. बीजुं सत्यरूपभाव पुष्प. त्रीजुं अस्तेय (चोरीनो अभाव ) ते रूपभाव पुष्प. चोथुं ब्रह्मचर्य - रूपभावपुष्प. पांचमुं असङ्गता (परिग्रहनो त्याग ) ते रूपभाव पुष्प. छटुं गुरुभक्तिरूपभावपुष्प. सातमुं तपरूपभावपुष्प. अने आठमुं ज्ञानरूपभावपुष्प ए भावरूप आठ उत्तम पुष्पो जाणवां. यदुक्तंपूजाष्टके अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्यमसङ्गता ॥ गुरुभक्तिस्तपोज्ञानंसत्पुष्पाणिचचक्षते ॥ १ ॥ " १२ प्रश्न - कोई गुरुमहाराजे दण्डमहारे मार्यो थको कोई शिष्य तत्काळ केवळंज्ञान पाम्यो छे ? उत्तर - हा, चण्डरुद्राचार्य नामना गुरुए दण्डप्रहारे ताड़ना कर्यो Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. थको नवदीक्षित तेमनो शिष्य शुभलेश्याए केवळज्ञान पाम्यो छे. यदुक्तंश्रीदेवेन्द्रसूरिकृतभावकुलके " सिरिचंडरुद्दगुरुणाताडिज्जं तोविदंडघाएहिं || तक्कालंतस्सीसोसुहलेसो केवल जाओ ॥ १ ॥ " तेनी विस्तारवात श्रीउत्तराध्ययन सूत्रनी टीकाथी जाणवी. १३ प्रश्न - तीर्थ यात्रा समये विवेकी पुण्यात्मा माणस केवो होय ? उत्तर - एक बखत भोजन करनारो होय, पृथ्वीपर संथारो करना से होय, पगेचालनारोहोय, शुद्धसम्यक्त्वने धरनारो होय सर्वसचित्तनो परिहरनारो होय, तथा ब्रह्मचारी होय. तदुक्तम् 'एकाहारी भूमिसंस्तारकारी पद्भ्यांचा रीशुद्धसम्यक्त्वधारी ॥ यात्राकालेसर्वसचिऩहारीपुण्यात्मास्यादत्रह्मचारीविवेकी ॥ १ ॥ ” १४ प्रश्न - आ जगतमां कया पांच शकारो दुर्लभ जाणवा ? उत्तर - शत्रुञ्जयतीर्थ, शिवपुर, शत्रुञ्जयनामा नदी, शान्तिनाथ - स्वामी, शमिओ ( मुनिओ) ने दान, ए पांच शकारो दुर्लभ जाणवा. यतः प्रोक्तम् “शत्रुञ्जयः शिवपुरंनदीशत्रुञ्जयाभिधा || श्रीशान्तिःशमिनांदानंशकाराः पञ्चदुर्लभाः || १||” Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमः प्रकाशः १५ प्रश्न पूछवा लायक कोण, १ उत्तर - जे पण्डितोछे, तेज पूछवा लायकछे, ( ७ ) यतः । "जेपंडियाते खलुपूच्छियव्वा" इतिश्री गौतम कुलक वचनात् ॥ अत्र दृष्टान्त तरीके श्रीपार्श्वनाथ स्वामिना संतानीया - स्थविरभगवान, जेके जातिकुलादिसम्पन्न अनेक गुणगणालङ्कृत एवा, ते ग्रामानुग्राम विचरता पृथ्वीने पावन करता ज्यां धनधान्यादिक ऋद्धिवृद्धि सहित अति रमणिक तुंगीया नामे नगरीछे, ते नगरीनी बहार ईशान खुणे सुशोभित पुष्पवती नामे उद्यानछे, त्यां पधारताहवा यथा प्रतिरुप अवग्रह ग्रहीने संयम तपस्याने विषे आत्माने भावताथका विचरेछे ते वखते तुंगोया नगरीमा एकदिशाए arrots वन्दनार्थे जतांदेखी तुंगीया नगरीना श्रमणोपासकोने ( श्रावकोने ) जाण थवाथी परस्पर एकबीजाने डावी भेगाथइ मांहोमांही एमकहेताहवा हे देवानुप्रियो श्री पार्श्वनाथ स्वामिना अपत्यस्थविरभगवान सर्ववाते योग्यताने पामेला अत्रे पुष्पवती उद्यानमां पधार्या छे. हे देवानुप्रियो तथा रूपस्थविरभगवानना जो नाम गोत्रसांभलीएतो महाफलथाय, तो वली सामाजइए, वंदनाकरीए नमस्कार करी, प्रश्नपूछिए, अर्थग्रहीए, सेवाकरीए, तेनाफलनुं तो कहेज. माटे हे देवानुमियो आपणे जइए बन्दनाक रीए, नमस्कार करीए, यावत् सेवाकरीए, ते आपणने Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) श्रीमश्रोत्तरमदीपे. आ भवने विषे परभवने विषे कल्याणकारी, यावत् साथे आवनार थशे. एम परस्पर वात कबुल करी पोतपोताने घेरगया. पछी घेर जइ न्हाइ, धोइ, पोताना घर देरासर देवपूजा प्रमुखकरी गुरुवन्दनाए पहेरवा योग्य एवां मंगलकारी सुवस्वाभरण पहेरी पोतपोताना घरमांथी नीकली एकठा मळी पगे चालता थका अनुक्रमे पुष्पवती उद्यानने विषे आवी सचित्तवस्तुनो त्याग करे, अचित्तवस्तु पासे राखे, एकसाडी उत्तरासंग करे, स्थविरभगवानने नजरे दीठां हाथ वे जोडी अंजलि ग्रहण करे, मननी एकाग्रता करे, एम पांच अभिगम साचवता स्थविर भगवंतपासे आवे. त्रण प्रदक्षिणा देइ वांदी पूजी यथायोग्य स्थाने बेसता हवा. त्यार पछी स्थविरभगवाने ते तुंगी. यानगरीना श्रमणोपासकोने (श्रावकोने) चार महाव्रतरूपधर्मदेशनादीधी त्यारे ते श्रमणोपासको (श्रावको) ते धर्मदेशना सांभळी हर्ष पाम्या. पुनः त्रण प्रदक्षिणा देइने विनयपूर्वक प्रश्न पूछता हवा. तेना यथार्थ उत्तर स्थविरभगवान पण देता हवा. ते सांभळी घणो हर्ष संतोष पाम्याथका स्थविरभगवानने वंदना नमस्कार करी प्रश्न पूछी अर्थग्रही सेवा करी पोतपोताने घेर जता हवा. स्थविरभगवान पण बीजा देशने विषे विहार करता हवा. अत्रविस्तारवात श्रीभगवतीसूत्रथी जाणवी माटे जे पण्डितो छे तेज पूछवा लायक छे. इत्यलम्. १६ प्रश्न-पण्डित कोने कहीए ? उत्तर-जे विरोधी निवृत्त थया, ते पण्डितो जाणवा. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमःप्रकाश यतः "तेपंडियाजेविरयाविरोहे” इतिश्रीगौतमकुलकवचनात् ॥ आ वचनपरथी एम पण सिद्धता थाय छे के जे परस्पर विरोध करनारा छे, ते तत्त्वथी पण्डितो न जाणवा. १७ प्रश्न-श्री जिनभवन बंधाववा कयो माणस अधिकारी छे ? उत्तर--जे माणसे न्यायथी धन उपार्जन करेलुं छे, तेम जे बुद्धिमान छे, मनोहर आशयवालो छे, सदाचारी छ, तथा जे गुर्वादिकथी अनुमत थएलो छे, तेज माणस श्रीजिनभवन - धारवाने अधिकारी छे. "न्यायोपार्जितवित्तोमतिमान् स्फीताशयः सदाचारः॥ गुर्वादिमतोजिनभवनकारकः सोधिकारीस्यात् ॥१॥" १८ प्रभ-अन्यायथी उपार्जन करेलु द्रव्य क्या सुधी रहे छे ? उत्तर--तेवु द्रव्य फक्त दश वर्षो सुधीज रहे छे. पण शोलमुं वर्ष आवते छते ते मूल सहित नाश पामे छे.. __ तथाचोक्तम्. “ अन्यायोपार्जितंवित्तं दशवर्षाणितिष्ठति ॥ षोडशमेवर्षेप्राप्ते समूलञ्चविनश्यति ॥१॥" १९ प्रश्न-आ चपळ लक्ष्मीनुं फळ शुं ते कहो. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) श्रीप्रश्नोत्तर प्रदीपे. उत्तर -- श्री जिनमन्दिरो जीर्ण थयां होय तेमनो उद्धार करवो, श्री जिन सिद्धान्तोना परिमलयी सुगंधी आत्मावाला एवा सुपात्र विषे हमेशां दान देवं श्रीजिनेश्वर भगवाननी हमेशां भावभक्ति करवी, अने दीन, अनाथ, एवा माणसोनो उद्धार करवो. समस्त जगतनिवासि प्राणि उपर उपकार करवो, तथा एकेन्द्रियादि जीवोनुं रक्षण करयुं, एज आ चपल लक्ष्मीनुं फल छे. उक्तञ्च. "जीर्णोद्धारः श्रुतपरिमलामोदितात्मन्यजस्रं ॥ पात्रेदानं भगवतिजिनाधीश्वरे नित्यभक्तिः ॥ दीनानाथोद्धरणमनिशं विश्वविश्वोपकारः || प्राणित्राणं फलमिदमहोचञ्चलायाः श्रियोस्याः || १ || ” २० प्रश्न - तप केवो करवो ते फरमावो. उत्तर -- जे तपथी मनने असमाधि न थाय, जे तपथी इन्द्रियोनी, तथा मन, वचन, अने कायाना योगोनी हाणी न थाय, वो तप करवो. यदुक्तं श्रीमदुत्तराध्ययन सूत्रटीकायाम् ॥ सोतोकाय वजेणमणीमंगुलंनचिंतेइ ॥ जेणनइंदियहाणीजेणयजोगानहार्यंति ॥ १ ॥ " 66 २१ प्रश्न - तपथी निकाचित कर्मनो नाश थाय ? - उत्तर - हा, निकाचितकर्मनो पण नाश थाय. Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमः प्रकाशः यदुक्तंश्रीदेवेन्द्रसूरिकृततपकुलके अनिआणस्सविही एतवस्सतवियस्सकिंपसंसामो || किज्जइजेणविणासोनिकाइयाणंपिकम्माणं ॥ १ ॥ " २२ प्रश्न - परिग्रह कोने कहेलो छे ? उत्तर - मूर्छाने परिग्रह कहेलो छे, कारण के मूर्छा छे तेज परिग्रह छे. मूर्च्छा विनानो परिग्रह नथी. "" ( ११ ) तथाचोक्तंश्रीदशवैकालिकसूत्रे नसोपरिग्गहोवुत्तोनायपुत्त्रेणताइणा || मुच्छापरिग्गहोवुत्तोइइवुत्तंमहेसिणा ॥ १ ॥ 55 २३ प्रश्न -लोभनुं दुर्जयपणुं शास्त्रमां शी रीते वर्णवेलुं छे ते कहो. उत्तर- धनहीन माणस एकसोने इच्छे छे, अने सो मले त्यारे सो वालो हजारने इच्छे छे, तथा हजार मले त्यारे हजारवा - लो लाखने इच्छे छे, तथा लाख मले त्यारे लक्षाधिपति क्रोडने इच्छे छे, क्रोड मले त्यारे क्रोडपति राजापणाने इच्छे छे, तथा राजा थाय त्यारे राजा चक्रवर्तिपणाने इच्छे छे, तथा चक्रवर्ति थाय त्यारे ते देवपणाने इच्छे छे, तथा देवपणुं मळे त्यारे ते इन्द्रपणाने इच्छे छे, बळी इन्द्रपशुं मळे छते पण इच्छा ज्यारे निवृत्त थती नथी त्यारे ते लोभ कुंभारना चाकडापर रहेल शरावलानी पेठे मूलमां नानो पछी वृद्धि पामतो जाय छे. एवो दुर्जय लोभ छे, यदुक्तंश्रीयोगशास्त्रे . धनहीनशतमेकं सहस्रंशतवानपि ॥ 66 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. सहस्राधिपतिर्लक्षं कोटिलक्षेश्वरोपिच ॥१॥ कोटीश्वरोनरेन्द्रत्वंनरेन्द्रश्चक्रवर्तिताम् ॥ चक्रवर्तीदेवत्वंदेवोपीन्द्रत्वमिच्छति ॥२॥ इन्द्रत्वेपिहिसम्प्राप्तेयदीच्छाननिवर्त्तते ॥ मूलेलघीयांस्तल्लोभः शरावइववर्द्धते ॥३॥" एवा दुर्जय लोभने वश थएला घणा जीवो नाना प्रकारना पापकर्म करी दुर्गतिने पाम्या छे. माटे धिक्कारहो तेवा लोभने. २४ प्रश्न-भोगनुं तथा उपभोगनुं स्वरूप समजावो. उत्तर-अन, तथा पुष्पमाळा वीगेरे जे एकजवार भोगवाय छे, ते भोग कहेवाय. अने स्त्रीआदिक जे वारंवार भोगवाय छ, ते उपभोग कहेवाय. तथाचप्रोक्तंश्रीयोगशास्त्रे. . " सकृदेवभुज्यतेयःसभोगोन्नत्रगादिकः ॥ पुनः पुनः पुनर्नोग्यउपभोगोंगनादिकः ॥१॥" २५ प्रश्न-प्राणिओ अन्तरङ्ग मन शी रीते जणाय ? उत्तर-आकार, इगित, गति, चेष्टा, वचन, अने नेत्र तथा मुखना विकारयी माणिोनुं अन्तरङ्ग मन जणाय छे, तदुक्तम्. "आकरिङ्गितैर्गत्याचेष्टयाभाषणेनच ॥ नेत्रवऋविकारैश्च लक्षतेंतर्गतमनः ॥ १॥" Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम:प्रकाशः (१३ ) २६प्रश्न-कोनोपारपामी शकायछे अने कोनोपामी शंकातोनयी तेकहो. उत्तर-अपार एवा समुद्रनो पारतो पामी शकायछे पण स्वभावथीज वक्र एवीस्त्रीओना दुराचरणनो पारपामी शकातोनथी. तदुक्तञ्चश्रीयोगशास्त्रे । "प्राप्तुंपारमपारस्य पारावारस्यपार्यते ॥ स्त्रीणांप्रकृतिवक्राणां दुश्चरित्रस्यनोपुनः॥१॥" २७ प्रश्न-आ संसारमा स्त्रीरूपीपाश कोणे मांडयोछे.. उत्तर-हत ब्रह्माए मांडयोछ, के जे पाशमां ज्ञानिओ अने अज्ञानिओ पण फसाइ जायछे. तदुक्तम् । "हयविहिणासंसारे महिलारूवेणमंडिअंपासं ॥ बझ्झंतिजाणमाणा अयाणमाणाविवझ्झंति ॥१॥" २८ प्रश्न-कोनी तेज वृद्धिथायछे अने कोना रूपनो नाश थायछे ते दृष्टान्त पूर्वक कही बतावो. उत्तर- उत्तम माणसना मार्गे चालनार माणसनी सूर्यनी पेठे तेजनी वृद्धिथायछे. अने स्वेच्छाचारे प्रवर्तनार माणसना रूपनोनाश वायुनी पेठे थायछे. तथाहि। "सतापथाप्रवृत्तस्य तेजोवृद्धीदेखि ॥ यदृच्छयाप्रवृत्तस्य रूपनाशोस्तिवायुवत् ॥ १ ॥" २९ प्रश्न-मा बापनी भक्तिकरनार माणसनुं वर्णनकरो. Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. उत्तर-जे माणस मा बापनी भक्तिकरेछे, ते माणस आलोकमां कृतज्ञछे, तथा ते माणस पोताना धर्मगुरुने पूजनारोछे, तथा ते शुद्ध धर्मने भजनारोछे. यदाहुःपितृभक्त्यष्टकेपूज्यपादश्रीहरिभद्रसूरयः । "सकृतज्ञःपुमान्लोके सधर्मगुरुपूजकः ॥ सशुद्धधर्मभानचैव यएतौप्रतिपद्यते ॥१॥" ३० प्रश्न-पुण्यानुवन्धिपुण्यकयुं कहेवाय के जेथी प्राणी मनुष्यरूपी . सारा भवमांथी नीकलीने तेथी वधारे साराएवा देवभवमां जायछे ते कहो. उत्तर- एकेन्द्रियादि जीवोनेविषे दया, वैराग्य, तथा श्रद्धासत्का रादिकविधिपूर्वकभक्तपानादिकथी गुरुपूजन, तथा हिंसादिपञ्चाश्रवत्यागरूपशुद्धत्ति, ते पुण्यानुवन्धि पुण्य कहेवाय. यदुक्तं श्रीहरिभद्राचार्यकृतचतुर्विंशतितमाष्टके । “दयाभूतेषुवैराग्यं विधिवद्गुरुपूजनम् ॥ विशुद्धाशिलवृत्तिश्च पुण्यंपुण्यानुबन्ध्यदः ॥१॥" ३१ प्रश्न-"संसारदावा" ए नामनी स्तुति कोणेकरीछे. उत्तर-"संसारदावा" स्तुतिना अन्तमां विरहशब्दछे, तेथी ए स्तु ति श्रीहरिभद्रसूरिए करीछे एम समजायछे, शार्थाके ते महाराजाना करेला पञ्चाशकादि जे ग्रन्थोछे, ते सर्वेमाये विरहशब्दलांछितवालाछे, जोवाथी पक्की खातरी थशे. ३२ प्रश्न-उद्योतपश्चमीस्तुतिमां " देवाधिदेवागम" दशमो सुधाकुण्ड ___ छे, एमजो कहूंछे, तो बीजा नवसुधाकुण्ड क्यांछे ? Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम:प्रकाशः (१५ ) उत्तर-नागलोकाधिष्टितनवसुधाकुण्डपातालमांछे. तथाहितट्टीकायाम् । “पातालेनवामृतकुण्डानिसन्तिनागकुलैरधिष्टितानीतिश्रुतिः ॥ इदन्तुभगवदागमरूपंदशमामृतकुण्डम् ” तथा श्रीहेमचन्द्राचार्यकृतश्रीऋषभचरित्रथी पण समजायछे के नवसुधाकुण्ड पातालमांछे. तत्पाठोयथा । “वापिकूपसरोलक्षैः सुधासोदरवारिभिः॥ नागलोकंनवसुधा कुण्डंपविभूवसा ॥ १ ॥” उक्त बन्ने पाठ अन्य दर्शननी अपेक्षा राखनारा छे. ३३ प्रश्न-श्रीयशोविजयकृतनवपदपूजावीगेरेमां आजकालना केट लाएक लोको "अथ्थमिये जिनसूरज केवलवंदे जे जगदीवो" आम बोलेछे ते खरुंछे के केम ? उत्तर-ना, ते खरं नथी. "अथ्यमिये जिनसूरज केवलिचंदे जे ज गदीवो" आम जो बोले तो ते खरं कहेवाय. शाथी के तेनो खरो अर्थ नीचे प्रमाणे थायछे. श्रीतीर्थडुरदेवरूपसूर्य, अने सामान्यकेवलीरूपचन्द्रपण अस्तपामेछते जे आचार्य छे ते. आजगतमा दीपक समानछे वीगेरे. यदुक्तंश्रीपालचरित्रे. "अध्यमिएजिणसुरेकेवलिचंदेविजेपईव ॥ पयडंतिइहपयथ्थेतेआयरिएनमंसामि ॥ १॥" Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमश्नोत्तरप्रदीपे. एतद् गाथायाव्याख्या. जिनोर्हन्नेवसूरःसूर्यस्तस्मिन्नस्तमितेस्तंगते सति पुनः केवलीसामान्यकेवलीसएवचन्द्रस्तस्मिन्नप्यस्तमितेसतिप्रदीपइवचयइहलोके पदार्थान्प्रकटयन्तिप्रकटीकुर्वन्ति तानाचार्यान्नमस्यामि . "" ३४ प्रश्न - जेम मुनिमहाराजो कोइ प्रत्ये कहे छे के अमुक माणसने धर्मलाभ कहेजो तेम तीर्थकर भगवान कहे ? ( १६ ) 66 उत्तर - हा तेम कहे, दृष्टान्त तरीके श्रीमहावीरस्वामिए अंबड ते कहां छे, के सुलसाने धर्मलाभ कहेजो अने ते वातने सिद्ध करनार एवो पाठ पण श्रीदेवेन्द्रसूरिकृतशीलकुलकमांछे. तद्यथा. “सिखिद्धमाणपहुणासुधम्मलाभुत्तिजीइपठविओ || साजयउजएसुलसासारयससिविमलसीलगुणा ॥ १ ॥ ” अंबड साथै धर्मलाभ कहेवराव्यो तेवो पाठ लोकप्रकाशमां छे. ३५ प्रश्न - २४ तीर्थङ्कर क्यां मोक्षे गया ? अने ते केवा आसने रह्या थका मोक्षे गया ? उत्तर - श्री ऋषभदेव अष्टापदने विषे, श्रीमहावीर अपापापुरीने विषे, श्री वासुपूज्य चंपानगरीने विषे, श्रीनेमिनाथ रैवताळने विषे, अने बाकीना २० तीर्थङ्कर समेतशिखरने विषे मोक्षे गया. तेमां श्री नेमिनाथ, महावीरस्वामी, अने ऋषभदेव, एत्रण तीर्थङ्कर पद्मासने रह्याथका अने शेष Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेथमः प्रकाशः ( १७ ) बीजा २१ तीर्थङ्कर कायोत्सर्गासने ( काउसग्ग आसने ) रह्याथका मोक्षे गया. यदुक्तंश्री लोकप्रकाशे “नाभेयोष्टापदेवीरो पापायांपुरिनिर्वृतः ॥ वासुपूज्यश्चचम्पायां नेमी रैवतकाचले ॥ १ ॥ अन्येसमेतशिखरे पर्यङ्कासनसंस्थिताः श्रीनेमिवीरवृषभाः कायोत्सर्गासनाः परे ।। २ ।। ” " ३६ प्रश्न - केटला तीर्थङ्करने उपसर्ग थया अने केटलाने ते नथी. थया ? उत्तर—२४ मा तथा २३ मा ए वे तीर्थङ्करने उपसर्ग थया. तेमां पण २४ मा तीर्थङ्करने घणा थया अने २३ मा तीर्थङ्करने थोडा था शेष २२ तीर्थङ्करने नथी थया. तदुक्तंश्रीलोकप्रकाशे 46 श्रीनेतुर्भूयांसः श्रीपार्श्वस्यचतेल्पकाः द्वाविंशतेश्वशेषाणामुपसर्गानजज्ञिरे ॥ १ ॥ " ३७ प्रश्न - २४ तीर्थंकरने देवदूष्य वस्त्र क्यां सुधीर ? उत्तर - श्रीजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रमां श्रीऋषभदेवने, अने श्रीकल्पसूत्रम श्रीमहावीरस्वामिने, साधिकमास अधिक एक वर्ष रधुं एम कहुं छे. तथा सप्ततिशत स्थानमांतो श्रीवीरने साधिकमास अधिक एक वर्ष रहुं अने ते सीवायना शेष २.३ ३ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीप्रश्नोत्तर प्रदीपे. तीर्थङ्करने ते देवदूष्य वस्त्र सदैव ( यावज्जीव सुधी ) रतुं एम कनुं छे. ( १८ ) तदुक्तंश्री लोकप्रकाशे. श्रीजम्बूद्दीपप्रज्ञप्तिसूत्रे श्रीवृषभदेवस्य श्री कल्पसूत्रेच श्री महावीरस्य साधिकं वर्षदेवदृष्य स्थितिरुक्ता श्री सप्ततिशतस्थानग्रन्थे ।।सकोयलरकमूलंसुरद संवईस व जिणखंधे वीरस्सव रिसम हिंअंसया विसेसाणतस्स ठिई ।। इत्युक्तमितिज्ञेयम्. " "" ३८ प्रश्न - केटला तीर्थङ्कर आर्य, अनार्य देशमां अने केटला तीर्थंकर आर्यदेशमां विचर्या छे ? उत्तर - श्रीमहावीरस्वामी, ऋषभदेव, नेमिनाथ, अने पार्श्वनाथ, ए चार तीर्थङ्कर छद्मस्थ अवस्थामां आर्य, अनार्यदेशमां विचर्या छे. अने ते सीवायना वीश तीर्थङ्कर तो सदाय आर्यदेशमांज विचर्या छे. तथाचोक्तंश्री लोकप्रकाशे. अभिग्नहानिमान्पश्चाभिगृह्यपरमेश्वरः ॥ आर्यानार्येषु देशेषु विजहारक्षमा निधिः ॥ १ ॥ एवंविजहर्वृषभ नेमिपार्श्वजिनेश्वराः || आर्यानार्येषु शेषास्तुस दार्येष्वेवविंशतिः ॥ २ ॥ ” (6 ३९ प्रश्र - आर्यदेश तथा अनार्य देश क्यां होय ? उत्तर - पंदर कर्मभूमिमां होय. Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम:प्रकाशः (१९) ४० प्रश्न-आ भरतक्षेत्रना २५॥ आर्य देशनां नाम तथा तेमां श्री तीर्थङ्कर चक्रवर्त्यादि महापुरुषोनो जन्म होय तेम दर्शाचो. उत्तर-जे प्रख्यात मुख्य नगरोवडे करी उपलक्षित. २५॥ आर्य देश छे ते नगरोनां नाम तथा २५॥ आर्यदेशनां नाम आ प्रमाणे छे. १ राजग्रह नगर ने मगधदेश. २ चम्पापुरी ने अङ्गदेश. ३ ताम्रलिप्ती नगरी ने वङ्गदेश. ४ वाणारसी नगरी ने काशिदेश. ५ काञ्चनपुरी ने कलिङ्गदेश. ६ साकेत (अयोध्या) न० ने कोशलदेश. ७ गजपुर नगर ने कुरू देश. ८ सौर्यपुर ने कुशार्तकदेश. ९ काम्पील्य नगर ने पञ्चालदेश. १० अहिच्छत्र नगर ने जङ्गल देश. ११ मिथिलापुरी ने विदेह देश. १२ द्वारका नगरी ने सौराष्ट्र (सोरठ) देश. १३ कौशाम्बीपुरी ने वत्स देश. १४ भदीलपुर ने मलय देश. १५ नान्दिपुरने सन्दर्भ देश. १६ उच्छापुरी ने वरुणदेश. १७ वैराट नगर ने मत्सदेश. १८ शुक्तिमतिपुरी ने चेदि देश. .. - १९ मृत्तिकावतीपुरी ने दशार्ण देश. Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमश्नोत्तरप्रदीपे. २० वीतभयपुर ने सिन्धुदेश. २१ मथुरापुरी ने सौवीर देश. २२ अपापापुरी ने शूरसेन देश. २३ भङ्गीपुरी ने मासपुरीवर्त्त देश. २४ श्रावस्तीनगरी ने कुणाल देश. २५ कोटीवर्ष नगर ने लाटदेश. २५|| स्वेतम्बी नगरी ने केतक ( केकय ) अर्द्धदेश. उक्त २५ ॥ आर्यदेशमां श्री तीर्थङ्कर चक्रवर्त्यादि महापुरुषोनो जन्म होय. ( २० ) यदुक्तंश्रीत्रिषष्टिशला कापुरुषचरित्रे. 66 ' ते चार्यदेशानागैरैरुपलक्ष्याइ मेयथा ॥ राजगृहेण मगधा अङ्गदेशस्तुचम्पया || ६६६ ।। वङ्गाः पुनस्ताम्रलिप्त्या वाणारस्याचकाशयः । काञ्चनपुर्याकलिङ्गाः साकेतेनचकौसलाः ।। ६६७ ।। कुरखोगजपुरेणसौर्येणचकुशार्तकाः । काम्पील्येनचपञ्चालाअहिच्छत्रेणजाङ्गलाः ॥ ६६८ ॥ विदेहास्तुमिथिलयाद्दारावत्यासुराष्ट्रकाः ॥ वत्साश्च कौशाम्बी पुर्यामलया भद्रिलेन ।। ६६९ ।। नान्दिपुरेणसन्दर्भावरुणाः पुनरुच्छया || वैराटेनपुनर्मत्साः शुक्तिमत्याचचेदयः ।। ६७० ॥ दशार्णामृत्तिकावत्या - वीतभयेनसिन्धवः ॥ सौवीरास्तुमधुरयाशूरसेनास्वपापया ॥ ६७९ ॥ भंग्यामासपुरीवर्ताः श्रावस्त्याच कुणा Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमः प्रकाशः ( . २१ ) लकाः ॥ कोटी वर्षेणलाटाश्च श्वेतम्या केतकार्द्धकाः ६७२ आर्यदेशाअमी एभिर्नगरैरुपलक्षिताः । तीर्थकृच्चक्रभृत्कृष्णाबलानांजन्मयेषुहि ॥ ६७३ ॥ " ४१ प्रश्न- ३१९७४॥ अनार्य देश छे. तेमांथी केटलाएकना नाम तथा त्यांना अनार्य मनुष्योनी अज्ञाता निवेदन करो. उत्तर—शकदेश, यवनदेश, शवरदेश, बर्बरदेश, कायदेश, मुरुडदेश, उड्रदेश, गोड्रदेश, पत्कणदेश, अरपाकदेश, हूणदेश, रोमकदेश, पारसदेश, खसदेश, खासिकदेश, डौम्बिलिकदेश, लकुसदेश, भिल्लदेश, अन्ध्रदेश बुक्कसदेश, पुलिन्द देश, क्रौञ्चकदेश, भमरुतदेश, कुञ्चदेश, चीनदेश, वशुकदेश, मालवदेश द्रविडदेश, कुलक्षदेश, किरातदेश, केकयदेश, हयमुखदेश, गजमुखदेश, तुरगाजमुख देश, हयकर्णदेश, गजकर्णदेश, ए सीवाय बीजा पण अनार्य देशो छे. उक्त अनार्य देशोमाना अनार्यमनुष्यो धर्म एवा अक्षरोने पण जाणता नथी. यदुक्तंश्रीत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रे. “म्लेच्छास्तुशाकायवनाःशवरावर्वराअपि ॥ कायामुरुंडाउड्राश्चगोद्राः पत्कणकाअपि ॥ ६७९ || अरपाकाश्चहूणाश्वरोमकाः पारसाअपि ॥ खसाश्चखासिकाडौ म्बिलिकाश्चलकुसाअपि ॥ ६८० ॥ भिल्लाअन्धाबुक्कसाश्चपुलिन्दाः क्रौञ्चकाअपि ॥ भमररुता कुश्चाश्चची नवकमालवाः ६८१ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२.) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. द्रविडाश्चकुलक्षाश्चकिराता कैकयाअपि ॥ हयमुखागजमुखास्तुरगाजमुखाअपि ॥ ६८२ ॥ हयकर्णागजकर्णाअनार्याअपरेपिहि ॥ मल्येषुनजानन्तिधर्मइत्यक्षराण्यपि ॥ ६८४” ४२ प्रश्न-निकाचित जिननामकर्मने कइगतिमां कोण शुं कृत्य करवा - वडेकरीने उपार्जन करे ते फरमावो. उत्तर-मनुष्यगतिमा पुरुष, स्त्री, अथवा नपुंसक, जेश्रीअरिहंता दिक वीशपदछे तेमांथीएक, बे, त्रणइत्यादि यावत् वीशे पदनीशास्त्रोक्त विधिपूर्वक आराधना करवावडेकरी निकाचित जिननामकर्मने उपार्जन करेछे इत्यादि लोकप्रकाश ग्रन्थमा कपुंछे. तथाचतद्ग्रन्थः " एकदित्रादिभिःस्थानःसर्वैर्वासेवितैर्भृशम् ॥ जिननामार्जयेन्मर्त्यःपुमानस्त्रीवानपुंसकः ॥१॥ इत्यादि" ४३ प्रश्न-रसोदयनी अपेक्षाये जिननाम कर्मनो उदय क्या थायछे ? उत्तर-केवलि अवस्थामां थायछे, एq नवतत्त्वनी अवचूरीमा क..थनछे. तद्यथा. “केवल्यवस्थायांतस्योदयःस्यात् ” तथैवकर्मवृत्ती अत्र प्रसङ्गोपात लखीए छीएके जे वखते श्रीतीर्थकर भगवानने १ जिननामकर्मणः Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमःप्रकाशः (२३.) केवलज्ञान उत्पन्नथाय छे तेवखते चार निकायना देवताओ समवसरणनी रचना करेछे त्यां प्रभुजी पूर्वदिशा सन्मुख रत्नमय सिंहासनपर बेसी धर्मदेशना दइ घणा भव्यजीवोने प्रतिबोधी चतुर्विध संघनी स्थापना करेछे ए वीगेरे घणो आधिकार छे, ते श्रीआवश्यकसूत्रादिथी जाणवो. ४४ प्रश्न-जिननामकर्मनो अबाधाकाल अन्तर्मुहूर्त्तनो कह्योछेते कइ अपेक्षाये ते कहो. उत्तर-प्रदेशोदयनी अपेक्षाये कह्योछे. इतिकर्मग्रन्थवृत्ती, ४५ प्रश्न-वैमानिक तथा आद्य नरक त्रिक सीवाय बीजास्थानीआ वी कोइ तीर्थकर थयाछे ! उत्तर-वसुदेव चरित्रमा पुनः नाग कुमारना पण उधर्या आंतरा रहित आ अवसर्पिणी कालने विषे ऐरवतक्षेत्रमा चोवी शमा तीर्थङ्कर थया दर्शावेल छे. पण ते अर्थमां तत्त्वशुंछे ते केवलिमहाराजो जाणे एम श्रीमज्ञापना सूत्रनी टीकामां कहेल छे. तथाचतट्टीका. " वसुदेवचरित्रेपुनःनागकुमारेभ्योप्युट्टतोनन्तरमैखतक्षेत्रेस्यामेवावसर्पिण्यांचतुर्विंशतितमस्तीर्थङ्करउपद-- र्शितस्तदर्थतत्त्वंकेवलिनोविदन्ति" ४६ प्रश्न-जेम आ भरतक्षेत्रमा २० तीर्थकर समेतशिखरने विषे सि ' द्विवर्या तेम ऐरवतक्षेत्रमा २० तीर्थकर क्यां सिद्धि वर्या ? उत्तर-सुपतिष्टगिरिने विषे सिद्धि वर्या. Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. यदुक्तंश्रीतीर्थोद्गारप्रकीर्णके. “समेयंमिजिणंदावीसंपरिनिव्वुयाभरहवासे॥ एरखएसुपइठेवीसंमुणिपुंगवासिद्धा ॥१॥" ४७ प्रश्न-श्री तीर्थकर वीतरागदेवोने १८ दोष न होय ते कया ? उत्तर-१ दानान्तराय. ७ रति. १३ मिथ्यात्व. २ लाभानाराय. ८ अरति. १४ अज्ञान. ३ वीर्यान्तराय. ९ भय, १५ निद्रा. ४ भोगान्तराय. १० 'जुगुप्सा. १६ अविरति. ५ उपभोगान्तराय. ११ शोक. १७ राग. ६ हास. १२ काम. १८ द्वेष. र उक्त १८ दोष जाणवा. ते श्री तीर्थकरदेवोने न होय. ____उक्तञ्चाभिधानचिन्तामणौ. “अन्तरायादानलाभवीर्यभोगोपभोगगाः ॥ हासोरत्यरतीभीतिर्जुगुप्साशोकएवच ॥१॥ कामोमिथ्यात्वमज्ञानंनिद्राचाविरतिस्तथा॥ रागोद्देषश्वनोदोषास्तेषामष्टादशाप्यमी ॥ २॥" ४८ प्रश्न-श्री सुविधिनाथथी श्री शान्तिनाथ पर्यन्त आठ तीर्थकरोमा __ सात आंतरामां तीर्थनो व्यवच्छेद काल केटलो ? उत्तर-सातेनो भेलो थई पोणात्रण पल्योपम जाणवो. १ खराब वस्तु देखी नाक मचकोडवू ते जुगुप्सा कहेवाय. २ तीर्थकराणाम् Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46 'प्रथमः प्रकाशः यतः चउभागो १ चउभागो २ तिणियचउभागा ३ पलियच भागो ४ तिणेवयचउभागा ५ चउथ्थभागोय ६ चउभागो ७ ॥ १ ॥ " इतिवचनात् ( २५ ) ४९ प्रश्न - श्री तीर्थंकर भगवानने प्रथमनी त्रण समिति होय पण छल्ली वे समिति न होय कारण के तेमने भांडोपकरण नाशिकामल वीगेरेनो अभाव छे छतां श्री कल्पसूत्रमां पञ्चसमिति केम कही छे ? उत्तर - श्री तीर्थकर भगवानने भांडोपकरण नाशिकामल वीगेरेनो असंभव छतां पञ्चसमिति नाम खण्डित नही थवा माटे छेली बे समिति कही छे एम श्री कल्पदीपिकामां निवेदन करेल छे अने तेज कारणथी श्री कल्पसूत्रमां पञ्चसमितिनो पाठ छे. 66 तथाचतद्दीपिका. 'एतच्चान्त्यसमितिद्वयं भगवतो भाण्डसिङ्घानाद्यसंभवेपिनामाखण्डनार्थमिथ्थमुक्तम् " ५० प्रश्न - सामान्य केवली तीर्थंकरने नमस्कार न करे एवो उल्लेख क्यांइ छे ? उत्तर - सामान्य केवल महाराजो तीर्थकर महाराजोने नमस्कार न करे इत्यादि वातनो उल्लेख लोकप्रकाशमां छे. Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६ ) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. तद्यथा. " मुनयः केवलज्ञानशालिनोथजिनेश्वरान् ॥ त्रिश्चप्रदक्षिणीकृत्यकृत्वातीर्थनमस्कृतिम् ॥१॥ यथाक्रमनिविष्टानांपृष्टतोगणधारिणाम् ॥ निषीदन्तिपदस्थानांरक्षन्तोगौवंस्थितेः ॥ २ ॥ कृत्यकृत्यतयातादृक्कल्पत्वाच्चजिनेश्वराननमस्यन्तितीर्थन्तुनमन्त्यहन्नमस्कृतम् ॥३॥" ___ तथा सामान्य केवली तीर्थकरने न वांदे एवा भावने सूचवनारी एक गाथा श्रीधनपालकविकृतश्रीऋषभपश्चाशिकामांछे. . तद्यथा. "होहीमोहच्छेओतुहसेवाएधुवत्तिनिंदामि ॥ जंपुणनवंदिअबोतथ्थतुमंतेणझिझामि ॥१॥" ___ तथात्र श्री बाहुबळ केवलिनुं दृष्टान्त पण छे जेमके श्री बाहुबळ केवली श्री ऋषभदेव भगवानने फक्त प्रदक्षिणा करीनेज केवलिनी पर्षदामा वेठा छे पण भगवानने वांद्या नथीं आ वात, श्री शत्रुञ्जय माहात्म्ययां छे.. । तद्यथा. “ सम्प्राप्यवेषंतिनामुनीशोदिव्यावरज्ञानविशुद्ध तत्त्वः ॥ प्रदक्षिणीकृत्यजिनंसंदक्षःसंज्ञानिनांपर्षदमाससाद ॥१॥" १ धनपाल, शोभनाचार्यना संसारी भाइजाणवा. २ बाहुबलकेवली. Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम प्रकाशः (२७) तथा बीजं दृष्टान्त १५०० तापस केवलि महाराजोनुं छे. जे. मके तेपण श्रीवीरभगवानने वांद्या विना फक्त तीर्थनेज प्रणाम करी केवलिनी पर्षदामां बेठा छे इत्यादि वातनो उल्लेख श्रीभगवतीमूवनी टीकामां पण छे. तथाचतट्टीका. “किलभगवतागौतमेनचैत्यवन्दनायाष्टापदंगत्वाप्रत्यागच्छतापञ्चदशतापसशतानिप्रवाजितानिसमुत्पन्नकेवलानिचश्रीमन्महावीरसमवसरणमानीतानितीर्थप्रणामकरणसमनन्तरञ्चकेवलिपर्षदिसमुपविष्टानि गौतमेनचाविदिततत्केवलोत्पादव्यतिकरेणाभिहितानियथाभोसाधवोभगवन्तंवंदध्वमितिजिननायकेनचगौतमोभिहितोय-- थागौतममाकेवलिनामाशातनाकार्षीस्ततोगौतमोमिथ्यादुष्कृतमदादित्यादि” किम्बहुनेत्यलंविस्तरेण. ५१ प्रश्न-तीर्थकरने अर्थे करेलं होय ते बीजा साधुओने कल्पे ? उत्तर-जेम तीर्थकरने अर्थे देवोए करेलुं समवसरण बीजा साधु ओने कल्पे छे तेम शास्त्रोक्तयुक्तिवडे युक्त एवं बीजं जे कंइ होय तो तेपण कल्पे. ए, पिण्डविशुद्धिनी अवचूरिमां कर्तुं छे. तथाचतदवचूरिः " तीर्थकरार्थदेवैःसमवसरणंकृतंयतीनांयथाकल्पतेतथापरमपि " Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८) श्रीमश्नोत्तरभदीपे. ५२ प्रश्न-तीर्थङ्करने अर्थे देवोए करेलुं समवसरण तीर्थङ्कर कम भो गवे छे ? उत्तर-तीर्थङ्करनामकर्मना विपाकोदयने ए प्रकारे वेदवामा आ वेछे. माटे एमां दोष नथी. एम पिण्डविशुद्धिनी अवचूरिमां कयुं छे. ___तथाचतदवचूरिः "यध्येसर्वज्ञार्थदेवैःसमवसरणंकृतंकथममावुपभुङ्क्तेउच्यतेतीर्थकरनामविपाकस्येयंवेद्यमानत्वान्नदोषः" ५३ प्रश्न-कइ जग्योए देवता समवसरणनी रचना करे. ? उत्तर-जे जग्योए पूर्वे कोइ वखत समवसरण नथीथयु, त्यां अने __ जे जग्योए कोइ इन्द्रादिक महर्द्धिक देवता भगवानने बांदवा आवे, त्यां अवश्य देवता समवसरणनी रचना करे. ___ यदुक्तंश्रीसमवसरणस्तवे. "पुवमजायजथ्थउजथ्थेइसुरोमहिद्विमघवाइ । तथ्योसरणंनियमासेययंपुणपाडिहेराइं ॥१॥" ५४ प्रश्न-समवसरणमा बारेपर्षदा बेसीने प्रभुनी देशना सांभले के केम. ? उत्तर-ना, बारपर्षदा बेसीने सांभलती नथी, किन्तु चारप्रकारनी देवीओ अने साध्वीओ ए पांचपर्षदाओ उभी रहीयकी सांभले तथा चार प्रकारना देवता, नर, नारी अने साधु ओ ए सातपर्षदाओ बेसीने सांभले, एवो श्रीआवश्यकसुत्र१ यत्रैवि २ सततं पुनः प्रातिहार्याणि , Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमः प्रकाशः ( २९ ) तिनो अभिप्राय छे अने श्री आवश्यकचूर्णिनो अभिप्राय तो, एवो छे के साधुओ उत्कटिकासने ( उकडु आसने ) सांभले. वैमानिक देवीओ, अने साध्वीओ, उभीरहीने सांभले. शेष नव पर्षदा, बेसीने प्रभुनी देशना सांभले. तथाचोक्तंश्रीसमवसरणस्तवे चउदे विसमणिउद्धठिया निविद्वान रिथ्थिसुरसमणा || इयपण सगपरिससुणं तिदेसणंपढमवंतो ॥१॥ इयआवस्सय वित्तीवृत्तंचुन्नी इपुणमुणिनिविठ्ठा ॥ वेमाणणिसमणी दोउढासेसठियाउनव ॥ २ ॥ " << ५५ प्रश्न - समवसरणमां प्रभुना विश्रामार्थे देवताओ देवच्छन्दानी रचना क्या करे ? उत्तर—- मध्यगढमां ईशान खुणे करे . यदुक्तंश्रीत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रे. प्राकारेमध्यमेपूर्वोदीच्यां दिशिदिवौकसः ॥ देवैच्छन्दंविदधिरेस्वामिविश्रामहेतवे ॥ १ ॥ ” ५६ प्रश्न - भगवाननी पहेला पहोरनी देशना पूर्ण थया पछी बीजे पहोरे गणधर महाराजा क्यां बेसी देशना दे ? "" उत्तर - राजाना लावेल सिंहासनने विषे बेसी, अथवा भगवानना पादपीठने विषे बेसी देशना दे. १ ऐशान्याम् २ देवाः ३ मधुविश्रामस्थानम्. Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीप्रश्नोत्तरमदीपे. यदुक्तंश्रीलोकप्रकाशे “ततोद्वितीयपौरुष्यामाद्योन्योवागणाधिपः ॥ सिंहासनेनुपानीतेपादपीठेथवार्हताम् ॥१॥” ५७ प्रश्न-श्री ऋषभदेवना प्रथम गणधरनुं नाम पुण्डरीक छे के ऋ षभसेन छे ? उत्तर-पुण्डरीक कहो, अथवा ऋषभसेन कहो ए एकज छे. का. .. रण के ऋषभसेन ए पुण्डरीकनुं नामान्तर छ. . ... तथाहिश्रीलोकप्रकाशे. “कल्पसूत्रेचप्रथमगणधरऋषभसेनइत्यभिधीयतेपुण्डरीकस्यैवनामान्तरमिदमित्यन्ये" ५८ प्रश्न-श्री ऋषभदेवस्वामिने प्रथम पारणे केटला सेलडीरसना घडा कह्या छ ? उत्तर-श्री आवश्यकचूर्णिमां एक सेलडीरसनो घडो कयो छे अने श्रीपनानन्दकाव्य, हैमऋषभचरित्रमां तो सेलडीरसना घडा घणा कह्या छे. ... तथाचोक्तंलोकप्रकाशे. “अत्रचावश्यकचूर्णावेकइक्षुरसघटउक्तःपद्मानन्दकाव्यहैमऋषभचरित्रयोस्तुबहवउक्तासन्तीतिज्ञेयम् ” ५९ प्रश्न-जो दीक्षा दिवसथी ( चैतरवद ८ थी ) पारणाना दिवस सुधी (वैशाख सुद बीज सुधी) गणीए तो वर्ष उपरांत Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमः प्रकाशः ( ३१ ) साधिक मास थाय छे. तेम छतां श्री ऋषभदेव भगवाने वर्षांपारणं कर्यु एम केम कहेवाय छे ? उत्तर - कंक अधिकनी विवक्षा करी नथी एम संभावना थाय छे एम श्रीलोकप्रकाशमां खुलासा करेलो छे. ६० प्रश्न - श्री नेमिनाथने केटला गणधर कह्या छे ? उत्तर - श्रीकल्पसूत्रमा १८ अने श्रीप्रवचनसारोद्धारमां ११ का छे, ते मतान्तर छे माटे बहुश्रुत कहे ते खरं. ६१ प्रश्न - श्री नेमिनाथनी अपराजितविमानमा केटली स्थिति हती ? उत्तर - श्री कल्पसूत्रने अनुसारे बत्रीस सागरोपमनी स्थिति हती. तथाचतत्सूत्रम्. 66 अपराजिआओ महाविमाणाओवत्तीससागरोव मठिआओइत्यादि " ८८ अने श्री कल्पकरणावली तथा कल्पदीपिकामां तो ए ठेकाणे एवो पाठ छे के क्यांक तेत्रीस सागरोपम पण देखाय छे माटे ए पाठने अनुसारे करी तेत्रीस सागरोपमनी स्थिति हती एम पण समजाय छे. तथाचतत्पाठः बत्तीसत्तीक्वचित्त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाण्यपिदृश्यन्ते " बळी श्री शीलोपदेशमाळामां तथा श्री नेमिनाथना रासमां, तेत्रीस सागरोपमनी स्थिति कही छे। अने श्री कल्पसूत्रमां कहेली aare सागरोपमनी स्थितिने मतान्तरपणे प्रतिपादन करेली छे. वास्ते आ ठेकाणे बहुश्रुतमहाराजाओ कहे ते प्रमाण. Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२ ) श्रीमश्नोत्तरमदीपे. ६२ प्रश्न - विजयादि चार विमानमां देवोनी जघन्य तथा उत्कृष्ट स्थिति केली निवेदन करेली छे ? उत्तर - श्री प्रज्ञापनासूत्रमां जघन्य ३१ सागरोपमनी अने उत्कृष्ट ३३ सागरोपमनी स्थिति निवेदन करेली छे. तथा श्री समवायाङ्गसूत्रमां तो जघन्य ३२ सागरोपमनी अने उत्कृष्ट ३३ सागरोपमनी स्थिति निवेदन करेली छे. तथाचोक्तंश्रीलोकप्रकाशे. एकत्रिंशद्दारिधयश्चतुर्षुविजयादिषु । स्थितिर्जघन्योत्कृष्टशतुत्रयस्त्रिंशत्पयोधयः ॥ १ ॥ इतिप्रज्ञापनाभिप्रायःसमवायाङ्गेतुविजयवेजयंतजयंतअपराजियाणंभंतेदेवाणं केवइयंकालंटिईपं॰ गोयमाजहन्नेणंबत्तीसंसागरोवमाइंउक्कोसेणंतेत्ती संसागरोवमाई " ६३ प्रश्न - पण्डितश्रीवीरविजयगणिवर्यकृतपञ्चकल्याणकपूजामां "देवदूष्य इन्द्रेदियुंरे रहेशे वर्षचत्ततीस नमो० " आम कां छे. त्यां " चत्ततीस " शब्दे करी कैटलां वर्ष जाणवां ? "" उत्तर - चत्त एटले ४० अने तीस एटले ३० बन्ने मळी ७० वर्ष जाणवां कारण के श्रीपार्श्वनाथ भगवाननुं १०० वर्षनुं आयुष छे, माथी ३० वर्ष घरमा वस्या ते बाद करतां बाकी ७० वर्ष रह्यां ते अहीं दीक्षा अवसरे इन्द्रे दीघेल देवदृष्य वखनी स्थितिआश्रि जाणवां अत्र देवदृष्य वस्त्रनी स्थिति पण श्री कल्पसुबोधिकामां दर्शावेल सदाय सचेलकपणानी अपेक्षाए तेटलीज छे, आवी प्रगट बात Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम:प्रकाशः (३३ ) छतां " चत्ततीस " एटले ३४ वर्ष जाणवां आम बोलनाराओने तो साक्षात् अंधारे कुटावा जेवू थाय छे ते मोटी खेद भरेली वात छे. हा, जो, इहां " चउतीस" शब्द होय अने तेम बोलता होय, तो ते ठीक छे, पण इहां तो ते शब्दनो बीलकुल संभवज नथी, किन्तु "चत्ततीस" ए शब्दनोज संभव छे. अने ते शब्दे करी उपर लख्या मुजब ७० वर्षज जाणवां. अर्थात् इन्द्रे दीधेलं देवदूष्य वस्त्र श्रीपार्श्वनाथस्वामि पासे ७० वर्ष रहेशे. कहेवानो ए तात्पर्यार्थ छे. ६४ प्रश्न-श्री वीरप्रभुना मातापिता कए देवलोके गयां ते कहो. उत्तर-श्री आचारागसूत्रमां, बारमे देवलोके गयां अने श्री प्रवचन सारोद्धारमां, चोथे देवलोके गयां प्रतिपादन करेलां छे. पण तेनो निर्णय केवलिगम्य छे. यदुक्तंश्रीहीरप्रश्ने. " श्रीमहावीरस्यमातापितरावाचाराङ्गमध्येद्वादशेदेवलोकेप्रवनसारोदारेचतुर्थेगतोप्रतिपादितौस्तस्तन्निर्णयस्तुकेवलिगम्यः " ६५ प्रश्न-जेम पहेला छेल्ला तीर्थकरना शरीरमान विषे भेद छे, तेम बळ विषे भेद केम नहीं ? उत्तर-शरीरमान विषे भेद छतां पण बळ विषे भेद न होय शाथी के अपरिमित बळवाळा (अविशेष अनंतबळवाला) सर्व तीर्थकर कह्या छे. “अपरिमियबलाजिणवरिंदा” इत्यागमप्रामाएयात् Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४ ) श्रीप्रश्नोत्तर प्रदीपे. ६६ प्रश्न - श्रीमहावीरस्वामिना तीर्थमां कया नव जीवोए तीर्थङ्करनाम कर्म उपार्जन कर्यं ते कहो. उत्तर- १ श्रेणिक ४ पोट्टिलअणगार. ७ शतक. ८ मुलसा. २ सुपार्श्व ५ दृढायु. ३ उदायी. ६ शंख. ९ रेवती. आ उपर लख्यामुजब नवजीव समजवा. तदुक्तं श्रीस्थानांगसूत्रे. "समणस्स भगवओमहावीरस्सतिथ्यंमिनवहिंजी वेहिंतिथ्ययरन । मगोय कम्मे निवित्तिएतं जहासे णिएणसुपासेणउदाइणापुट्ट लेणं अणगारेण दढाउणासंखेर्णसयएणंसुलसाएसाविया रेवईए' "" पूर्वोक्त नवजीव जे नामे जेटलामा तीर्थकर थशेतेक ०श्रेणिकते महापद्मनामे पहेला तीर्थकर थशे. सुपार्श्व ते सुरदेव नामे बीजा तीर्थकर थशे. उदायी ते सुपार्श्वक नामे त्रीजा तीर्थंकर थशे. पोट्टि - ल अणगार - ते स्वयंप्रभनामे चोथा तीर्थकर थशे. दृढायु-ते सर्वानु भूतिनामे पांचमा तीर्थकर थशे, शङ्ख-ते उदय नामे सातमा तीर्थकर थशे. शतक - ते शतकीर्त्ति नामे दशमा तीर्थकर थशे, सुलसा - तेचित्र गुप्तनामे १६ मा तीर्थकर थशे. रेवती - ते समाधि नामे १७ मा तीर्थंकर थशे आ प्रासंगिक हकीकत श्रीसमवायांगसूत्र ने अनुसारे लखी छे. तथाचतत्सूत्रम्. 'महापउमे १, सुरादेवे २, सुपासेय ३ सयंप १ " पद्मनाम " एवुंपण नाम छे. 66 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम:प्रकाशः (३५) ४ सवाणुभूई ५ अरहादेवस्सुएय ६ होरकई ॥१॥ उदए ७ पेढालपुत्तेय ८ पोट्टिले ९ सयएइय १० मुणिसुवएय ११ अरहासवभावविऊजिणे ॥२॥ अममे १२ णिकसाएय १३ निप्पुलाएय १४ निम्ममे १५ चित्तगुत्ते १६ समाहीय १७ आगमिस्सेणहोरकई ॥३॥ संवरे १८ अणिअट्ठीय १९ विजये २० विमलेइय २१ देवोववाए २२ अरहाअणंतविरिए २३ भदेविय २४ ॥४॥" इति महापद्मादीनांनामक्रमः ॥ तत्पूर्वभवनामक्रमस्त्वेवम् ॥ "सेणिय १ सुपास २ उदए ३ पोट्टिलअणगार४ तहदढाउय ५ कत्तिअ ६ संखेय ७ तहानंद ८ सुनंदेय ९ सयएय १० ॥१॥ बोधवादेवइ ११ चेवसच्चइ १२ सहवासुदेव १३ बलदेवे १४ रोहिणी १५ सुलसा १६ चेवततोखलुरेवती १७ चेव ॥२॥ ततोहवइसयाली १८ बोधवेखलुतहाभयालीय १९ दीवायणेय २० कण्णे २१ ततोखलुनारए २२ चेव ॥३॥ अंबडेअ २३ तहासाइबु. द्धेय २४ होइबोधवेउस्सप्पिणीआगमेस्साएतिथ्थयराणंतुपूर्वभवा ॥ ५॥" अत्र वासुदेव जीव १३ मा तीर्थकर कहा. परन्तु श्रीअंतगडदशासूत्रमा तो १२ मा तीर्थकर कया छे. तत्त्वनी वात ज्ञानी जाणे. ६५ प्रश्न-पद्मनाभाद २४ तीर्थङ्कर क्या मोक्षे जशे ? - A .. Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीप्रश्नोत्तरपदीपे. उत्तर-श्रीरवतगिरिने विषे मोक्षे जशे. एम पं० श्रीवीरविजयगणि कृतदेववंदनमां क० ६८ प्रश्न-केटलाक कहे छे के रावण आवती चोवीशीमां तीर्थङ्कर थवाना छे ते वात खरी छे ? उत्तर-श्रीसमवायाङ्गसूत्रादिकमां ज्यां श्री पद्मनाभादिक २४ तीर्थकरना पूर्व भव संबंधी नामो दर्शावेल छे, त्यां "रावण" ए, नाम बीलकुल आवतुं नथी माटे पूर्वोक्त वात खरी नथी. खरी वात तो ए छे के रावण अने लक्ष्मण बन्ने चौदमे भवे तीर्थकर थइ मोक्षे जशे. आ ठेकाणे घणी विस्तार वात छे, ते श्रीहेमचन्द्राचार्यकृतश्रीजैनरामायणथी जाणवी. ६९ प्रश्न-उत्सर्पिणी कालमां छेल्ला तीर्थकरनुं तीर्थ क्यां सुधी चालशे ? उत्तर-श्री ऋषभदेव भगवाननो एक हजार वर्षे न्युन एक लाख पूर्वनो केवलज्ञानपर्याय कह्यो छे तेवा संख्याता ज्ञानपर्याय सुधी चालशे. एम श्री प्रवचनसारोद्धारमा कयुं छे श्रीभगवतीसूत्रवृत्तिमां पण तेमज कहुं छे. ___ यदुक्तंश्रीप्रवचनसारोद्धारे. "उस्सप्पिणीअंतिमजिणतिथ्यंसिरिरिसहनाणपज्जायासंखिज्जाजावईयातावयमाणंधुवंभविही ॥१॥” श्रीभगवतीसूत्रवृत्तावपितथैवप्रोक्तम् ७० प्रश्न-महाविदेहविजयमां एक केवलिजिन, अथवा छद्मस्थजिन .. विचरता होय त्यारे अन्य तीर्थकरोनो जन्मादि होय ? Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमः प्रकाशः उत्तर -- ना, अन्य तीर्थकरोनो जन्मादि न होय. यदुक्तं श्रीहीरप्रभे. महाविदेह विजयेषु विहरत्सुकेवलिजिने पुछद्मस्थेषुवान्येषांजिनानांजन्मादिनस्यादिति " ७१ प्रश्न - श्री कल्पसूत्र नव व्याख्यानवडे पंचाय छे ते शुं परम्पराथी hats शास्त्राधारथी ? उत्तर -- परम्पराथी, तेमज अन्तर्वाच्यशास्त्राधारथी पण श्री कल्पसूत्र नव व्याख्यानवडे पंचाय छे. यदुक्तंश्रीहीरप्रश्रे. 'नवक्षणैःश्री कल्पसूत्रंवाच्यते परम्परा तोंतर्वाच्यम ध्ये नवक्षणविधानाक्षरसद्भावाच्च " ७२ प्रश्न - श्री कल्पसूत्रमां सर्वे ७२ स्वप्न कहां छे तेनां जुदा नामो क्या हशे ? उत्तर - हा, श्रीप्रश्नचिन्तामणिग्रन्थमां छे अने ते ग्रन्थ पण्डित श्री वीरविजयजी महाराजनो करेलो छे. << ( ३७ ) ፡፡ ७३ प्रश्न - श्री तीर्थंकर भगवान् केवलि समुद्घात करे के केम ? उत्तर - कर्मग्रन्थवृत्तिमां तथा पण्डित श्री रूपविजयजी महाराजनी करेली पञ्चकल्याणकनी पजामां श्रीतीर्थकरकेवलिभगवान् केवलसमुद्घात करे एवो लेख छे. इति श्रीमतपागच्छेनेकगुरुगुणगणालङ्कृतपण्डित श्रीमद्रूपविजयगणिवर्य्यशिष्यपण्डितश्रीकीर्त्तिविजयगणिशिष्यपण्डितश्रीकस्तूरविजयगणिशिष्यपण्डितश्रीमणिविजयगणि शिष्य पं० श्री शुभविजयगणिशिष्यमु० श्रीलक्ष्मीविजयेनविरचितेश्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे प्रथमः प्रकाशः Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीप्रश्नोत्तर प्रदीपे. अथ द्वितीयः प्रकाशः प्रणम्य श्री महावीरं सिद्धार्थनृपनन्दनम् ॥ ग्रन्थस्यास्य प्रकाशोयं द्वितीयोथवितन्यते ॥ १ ॥ ( ३८ ) १ प्रश्न - गृहवासे रहेला तीर्थङ्कर देव कोइनो दीक्षा महोत्सव करे ? उत्तर - हा, करे दृष्टान्त तरीके श्री अजितनाथ भगवाने पोताना पिताश्रीनो करेलो छे. यदुक्तंश्रीत्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्रे. 'श्रीमानजितनाथोपिजितशत्रोस्तदैवहि || ऋध्यामहत्या विधिवच्चक्रे निष्क्रमणोत्सवम् ॥ १ ॥” २ प्रश्न - श्री अजितनाथ भगवानना पिताश्री दीक्षापाली क्यांगया ? उत्तर - मोक्षेगया. एमश्रीत्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्रमांकसुंछे, तथाचतच्च स्त्रिम्. "" 1 66 उत्पन्न केवलज्ञानः शैलेशी ध्यानमास्थितः || क्षीणाष्टकमसंप्रापक्रमेणपरमं पदम् ॥ १ ॥ " अने श्रीप्रवचनसारोद्वारना वारमा द्वारमांतो बीजे देवलोके गया एम कलु तत्त्वनी वात श्रीसीमंधरस्वामी जाणे. ३ प्रश्न - सिद्धशिला तथा सिद्धना जोवो क्यांछे ? उत्तर - सर्वार्थसिद्धविमानथी बार योजन उपर पीस्तालीस लाख योजन लांबी पहोली सिद्धशिला छे अने ते सिद्धशिला १ जितशत्रुराजर्षिः Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयःप्रकाशः (३९) उपर त्रणकोस पछी चोथाकोसना छेला छठा भागमा लोकान्तपर्यन्त सिद्धना जीवो रहे छे. यदुक्तंश्रीत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रे. "ततोद्दादशयोजन्याऊर्ध्वसिद्दशिलास्तितु ॥ पज्वचत्वारिंशल्लक्षयोजनायामविस्तृता ॥१॥ ततोप्युपरिंगव्यूतत्रितयात्समनन्तरम् ॥ तुर्यगव्यूतषष्ठांशेसिद्धालोकाग्रतावधि ॥२॥" ४ प्रश्न निर्जरा अने मोक्षमां शोविशेषछे ! उत्तर-देशथी कर्मनो क्षयथायते निर्जरा, अने सर्वथी कर्मनो क्षय थायते मोक्ष, ए विशेषछे. यदुक्तंश्रीस्थानाङ्गसूत्रवृत्तौ. " ननुनिर्जरामोक्षयोःकःप्रतिविशेषःउच्यतेदेशतः कर्मक्षयोनिर्जरासर्वतस्तुमोक्षइति " ५ प्रश्न-दश प्रकारना प्राण कयां ? उत्तर-पांचइन्द्रिय ( स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरि न्द्रिय, कर्णेन्द्रिय, ) त्रण प्रकारचें बल ( मनोबल, वचनबल, कायबल,) श्वासोच्छवास, अने आयुष, ए दश प्राण भगवंते कहेलांछे. ते प्राणोनो विजोग करवो (ते प्राणोथी जीवनेरहित करवो ) ते हिंसा कहेवाय छे. यदाहनवतत्त्वावचूरिः " पञ्चेन्द्रियाणित्रिविधंबलञ्चउच्छ्वासनिःश्वासम Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) श्रीप्रश्नोत्तरपदीपे. थान्यदायुः ॥ प्राणादशैतेभगवद्भिरुक्तास्तेषावियोजीकरणन्तुहिंसा ॥१॥" ६ प्रश्न-उक्त द्रव्य १० प्राणने मोक्षना जीवो धारण नथी करता छतां तेमने जीव केम कहोछो ? उत्तर-मोक्षना जीवो अनन्त ज्ञानादिक भावप्राणने धारण करेछे ते अपेक्षाए तेमने पण जीव कहेवाय. एम श्रीपज्ञापना सूत्र वृत्तिमां क० ७ प्रश्न-मनुष्यगतिथी आवेल कोइने क्यांइ चक्रवर्तिपणुं का छे. उत्तर-श्रीआवश्यकनियुक्तिमां मनुष्यगतिथी आवेलने पण श्रीवीरने पाछले भवे चक्रवर्तिपणुं कर्तुंछे. यदुक्तंश्रीलोकप्रकाशे. "श्रीआवश्यकनियुक्तौतुमनुष्यगतेरागतस्यापिनी वीरस्यप्राग्भवेचक्रित्वमुक्तमित्यादि " ८ प्रश्न-सुभूम चक्रवर्तिने केवी रीते चक्ररत्न उत्पन्न थएल छे ? उत्तर-पशुरामेहणेलक्षत्रियोनी दाढाओथी भरेल स्थाल हतो तेज स्थाल सुभूमचक्रवर्तिने चक्ररत्नपणे परिणम्यो छे. एम श्रीजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रवृत्तिमां कहेल छे. विस्तारवात तेनी कथाथी जाणवी. यदुक्तंश्रीजम्बूद्दीपप्रज्ञप्तिसूत्रवृत्ती. "सुभूमचक्रवर्तिनःपशुरामहतक्षत्रियदाढाभृतस्थालमेवचक्ररत्नतयापरिणतम् ” विस्तवा तत्कथानकादवसेया Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयःप्रकाशः (४१ ) ९ प्रश्न-बैताहयपर्वतनी तिमिश्रा नामनी गुफामां चक्रवर्तिना क रेलां मांडला केटलां कह्यां छे ? उत्तर-आचार्यश्रीमलयगिरिमहाराजकृतक्षेत्रविचारहवृत्तिप्रमुख शास्त्रोना अभिप्राय प्रमाणे ९८ मांडलां कह्यां छे. अने श्रीआवशकसूत्रहवृत्ति, श्रीप्रवचनसारोद्धारहवृत्ति वीगेरे शास्त्रोना अभिप्राय प्रमाणे तो ४९ मांडलां कह्यां छे. ते संबंधी विस्तार श्रीलोकप्रकाशथी जाणवो. १० प्रश्न-गुफामां चक्रवर्तिना करेलां मांडलां क्यांसुधी रहेछ ? उत्तर-ज्यांसुधी चक्रवर्त्तिनुं राज्य होय त्यांमुधी मांडला वीगेरे रहेछे. आ श्रीप्रवचनसारोद्धारत्तिनो अभिप्राय छे. अने श्रीत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रमा तो ज्यांसुधी चक्रवर्तिजीवे त्यांसुधी मांडला वीगेरे रहेछे, एम कर्तुं छे एम जाणवू. यदुक्तंश्रीलोकप्रकाशे"स्याद्यावचक्रिणोराज्यंतावत्तिष्टन्तिसन्ततम् ॥मण्डलानिचपद्येचगुहामार्गगतागते॥१॥अयंश्रीप्रवचनसारोद्धारवृत्त्यभिप्रायस्त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रेतु-उद्घाटितंगुहादारंगुहान्तमण्डलानिच ॥ तावत्तान्यपितिष्टन्तियावज्जीवतिचक्रभृत् ॥१॥ इत्युक्तमितिज्ञेयम् ” ११ प्रश्न-चक्रवर्ती पखंडनो दिग्विजय करेछे तेमां अहम केटलाकरे ? उत्तर-तेर अट्ठम करे ते नीचे लख्या प्रमाणे जाणवा. ___३ मागध, बरदाम, अने प्रभास, ए त्रण तीर्थदेवना त्रण अ० २ सिन्धु, अने गङ्गा, ए बे देवीना बे अ.. ६ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमश्नोत्तरप्रदीपे. १. वैताढ्य पर्वतना देवनो एक अ० २ तिमिश्रा, अने खण्डप्रपाता, ए वे गुफाना अधिपति कृतमाल, अने नाट्यमाल, ए वे देवना वे अ० १ लहिमवान पर्वतना देवनो एक अ० १ वैताढ्य पर्वतना विद्याधर महाराजानो एक अ० १ नवनिधानना देवनो एक अ० १ राजधानी देवीनो एक अ० १ राज्याभिषेक अवसरे एक अ० ( ४२ ) यदुक्तंश्री लोकप्रकाशे. (6 'तीर्थत्रयेसिन्धु गङ्गादेव्योर्वैतादयनाकिनः ॥ गुहेशयोः कृतमालनाट्यमालकसंज्ञयोः ||१|| हिमवद्भिरिदेवस्यविद्याधरमहीभृताम् ॥ निधीनांराजधान्याश्चाभिषेकावसरेपिच ॥ २ ॥ त्रयोदशाष्टमा एवं निर्दिष्टाश्चक्रवर्त्तिनाम् ॥ ” १२ प्रश्न - गङ्गादेवीसाथे भरतचक्रिनो भोगविलास क्यां सुधीरह्यो ? उत्तर - एक हजारवर्ष सुधी रह्यो. यदुक्तंपूज्यपाद श्री भद्रबाहु स्वामिकृतश्री आवश्यक निर्युक्तौ भरहोगंगा एसद्धिंवा ससहस्संभोगंभुंजतित्ति 66 "" तथा श्रीधनेश्वरसूरिकृत श्रीशत्रुञ्जयमाहात्म्यमां कछुछे के गंगादेवीसाथे विविध प्रकारना भोगोने भोगवतांथकां भरतचक्रवर्त्तिए एकदीवसनी पेठे एक हजारवर्षो निर्गमन कर्या अनेवळी तेमज श्रीमऋषभचरित्रमां पण कछे. Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयः प्रकाशः यदुक्तं श्रीशत्रुञ्जयमाहात्म्ये. 'भुञ्जानोविविधान्भोगाँस्तत्रचकीर्तयासह ॥ एकाहमिववर्षाणांसहस्रंसोत्यवाहयत् ॥ १ ॥ " तथैव श्री है - मऋषभचरित्रेपि १३ प्रश्न - चक्रवर्त्तियोना अस्थिओने देवताओ ग्रहण करेछेके केम ? उत्तर - हा, योगधारण करनार चक्रवर्त्तिओना अस्थिओने पण देवताओ ग्रहण करेछे. (i (83) तथाहिश्रीलोकप्रकाशे. सुराआददतेस्थीनियोगभृच्चक्रिणामपि ॥ " तथा श्रीशान्तिचन्द्रगणिमहोपाध्यायनी करेली श्रीजम्बूद्वीप प्रज्ञप्तिसूत्रनी टीका छे. तेमां चारित्रयुक्तश्रीभरतचक्रवर्त्तिना अथिओने देवोए ग्रहण कर्यानो अधिकार छे ते त्यांथी जोइलेवो. १४ प्रश्न - नथी त्यागकर्यो राज्यनो जेओए एवा चक्रवर्त्तिओ मरीने क्यां जायछे ? (( उत्तर - श्रीभगवतीसूत्रनी टीकाने अनुसारे साते नरकपृथ्वीओविषे उत्कृष्टस्थितपणे उपजे छे. अने श्रीहरिभद्रसूरिकृतश्रीदशवेकालिकटीका, श्रीहैमवीरचरित्रममुखशास्त्रोने अनुसारे तो सातमीनरकमथ्वीएज जाय छे, एम पण जाणवुं. १५ प्रश्न - जेम चक्रवर्त्तिओनी सोळहजारदेवो सेवा करेछे, तेम अर्द्ध चक्रवर्त्तिवासुदेवोनी आठहजार देवो सेवा करे के केम ? १. गङ्गया. Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४४ ) श्रीपश्रोत्तरपदीपे. उत्तर-श्रीप्रज्ञापनासूत्रवृत्तिमां चक्रवर्ती, वासुदेव प्रमुख मनुष्योने पण केटलाक व्यन्तर देवो नोकरनी माफक सेवे छे एम कयुं छे. ___ तथाचतत्पाठः “ मनुष्पानपिचक्रवर्तिवासुदेवप्रभृतिन्भृत्यवंदुपचरन्तिकेचिद्व्यन्तराः" तथा श्रीतीर्थोद्गारप्रकीर्णकमां वासुदेवना सघळा काममा आठहजार अभियोगदेवो (सेवकदेवो) कह्याछे. तथाचतत्पाठः " अठ्ठयदेवसहस्साअभियोगासबकज्जेसुइत्यादि " ___ उक्त बन्ने पाठपरथी सिद्ध थायछे के वासुदेवोनी आठहजार देवो सेवा करेछे. १६ प्रश्न-वासुदेवो क्यांना आव्या थाय छे. उत्तर-पहेली, अने बीजी नरक पृथ्वीना आव्या तथा वारदेव लोक, नवग्रैवेयकना आव्या वासुदेवो थायछे. एवो संग्रहणीममुखशास्त्रनो अभिप्रायछे. अने श्रीमहानिशीथसूत्रना पांचमा अध्ययनमा कुवलयप्रभाचार्यना व्यन्तरादिकभव गणाव्या छे तेमां छठो भव मनुष्यनो अने सातमोभव वा- सुदेवनों गणाव्यो छे, ते मतान्तर छे. ...... १७ प्रश्न-वासुदेवने केटली स्वीओ कही छे. उत्तर-श्रीअन्तकृतदशा तथा प्रश्नव्याकरणसूत्रमा श्रीकृष्णमहाराजने रुक्मिणीप्रमुख १६००० स्त्रीओ कहेलीछे, तेमज श्रीअ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयःप्रकाशः (४५) जितप्रभाचार्यकृतश्रीशांतिनाथचरित्रमा त्रिपृष्टवासुदेवने पण खयंप्रभाप्रमुख १६००० स्वीओ कहेली छे. . तथाहि. " रूप्पिणीपामोरकाणंसोलसण्हंदेवीसहस्साणं " इतिश्रीअन्तकृतदशासूत्रे " सोलसदेवीसहस्सवरनयणहिययदईया " इतिश्रीपश्नव्याकरणसूत्रे. " ययौनिजपुरंसोथतस्यचात्यन्तवल्लभा ॥ षोडशस्त्रीसहस्राणांमुख्यासाभूत्स्वयंप्रभा ॥१॥" इतिश्रीअजितप्रभाचार्यकृतश्रीशान्तिचरित्रे. अने श्रीज्ञाताधर्मकथासूत्र तथा श्रीकल्पकिरणावली वीगेरे मां श्रीकृष्णवासुदेवने रुक्मिणी आदि ३२००० स्त्रीओ कही छे, पण ते अर्द्धचक्रवर्तिपणानी अपेक्षाए कही हशे अत्रतत्त्वनी वात बहु श्रुतमहाराजो जाणे. तथाहि. "रूप्पिणीपामोरकाणबत्तीसाएमहिलासाहसीणं" इतिश्रीज्ञाताधर्मकथासूत्रे.. "तथायतोभ्रातातेसमर्थोयथास्माकंदात्रिंशत्सहस्रसंख्याकानांनिर्वाहंकुरुतेतथेत्यादि” इतिश्रीकल्पकिरणावल्याम्. अत्रतत्त्वन्तु बहुश्रुता जानन्ति Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४६ ) श्रीमश्नोत्तरप्रदीपे. १५ प्रश्न - मतिवासुदेवनी माता केटलां स्वप्न देखे. उत्तर - श्रीसोमतिलकसूरिकृतसप्ततिशतस्थानग्रन्थमां त्रण स्वप्न देखे एम कं छे. तथाचतदुग्रन्थः जिणचक्कीणयजणणी नियंतिचउदशगयाईवरसुविणे । सगचउति णिइगाईहरिखलप डिहरिमंडलियमाया ?" तथा श्री अजितप्रभसूरिकृतश्रीशान्तिनाथचरित्रमां महाविदेहमां थल दमितारिमतिवासुदेवनी माताए त्रण स्वप्न दीठां एम कहेलुं छे. 64 अने श्रीहेमाचार्यकृत श्रीजैनरामायणमां रावणनी माता “ कैकसी ” सिंहने देखती हवी एम एकज स्वप्न कहुं छे. तद्यथा. अन्यदाकैकसीस्वनेविशन्तंस्वमुखेनिशि ॥ कुंभिकुंभस्थली भेदप्रशक्तसिंहमैक्षत ॥ १ ॥ " १९ प्रश्न - रामस्त्रीसीता सती कया महाराजानी पुत्रीछे ? उत्तर - पद्मचरित्रने अनुसारे मिथिलापति जनकराजानी पुत्रीछे. अने वसुदेवहिंडीने अनुसारे लङ्कापतिरावणमहाराजानी पुत्रीछे. एवी रीते विचाररत्नाकरग्रन्थमां कहुछे. 66 २० प्रश्न- द्रौपदी महासती काळकरीने क्यां गई ते कहो. उत्तर - अनल्प पुण्यने धारण करनारी द्रौपदी ब्रह्मदेवलोकने पामतीहवी. एवं श्रीशत्रुञ्जयमाहात्म्यमां तथा श्रीज्ञाताध Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयः प्रकाशः ( ४७ ) र्मकथासूत्रादिकमां कहेलुंछे. अने श्रीउत्तराध्ययन सूत्रवृतिमां अच्युतदेवलोके गई एमकहेलुंछे. ते मतान्तरछे. • २१ प्रश्न - युधिष्टिर विगेरे 'पांचपांडवाने द्रौपदी पासे जवाना वारा हता के कम ? उत्तर - हा, वाराहता अनेते मर्यादा नारदमुनिए बतावीहती अत्र विशेषाधिकार पाण्डवचरित्रादिकथी जाणवो. २२ प्रश्न - नारदमुनि सम्यग्दृष्टिछे, के मिध्यादृष्टिछे ? उत्तर - श्रीपद्मचरित्रादिशास्त्रोने अनुसारे सम्यग्दृष्टि अणुव्रतधारीछे, एम समजायछे अने श्रीज्ञातधर्मकथासूत्र, प्रश्नव्याकरणसूत्रवृत्ति वीगेरे शास्त्राने अनुसारे ते मिथ्यादृष्टि छे एम समजाय छे. २३ प्रश्न - पद्मोत्तर राजाए पोताना मित्र देवपासे द्रौपदीतुं हरण कराव्य ते देव कइ निकायनो हतो ? उत्तर--भुवनपतिनिकायनो हतो एम श्रीपांडवचरित्रथी समजायछे २४ प्रश्न - भीष्म पिता कएठेकाणे कोनीपासे चारित्र लेइ क्यां गया ? उत्तर — ब्रह्मचर्यव्रतधारक, गङ्गापुत्र, भीष्मपितामह, कुरुक्षेत्रनी नजीकम रहेल कोइ पर्वतनी गुफामां श्रीमुनिचन्द्रसूरिना ' १ युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन, सहदेव, अने नकुल, ए पांचपांडुराजानापुत्र तेथी पांडव जाणवा. तेमां प्रथमना मुख्य त्रण पुत्र कुंतीराणीथी अने ते सीवायना वे पुत्र माद्री राणीथी उत्पन्न थला छे. एम जाणवुं. २ कुरुक्षेत्र, एटले जे ठेकाणे कौरव अने पांडवोनु युद्धथयु ते एक मोडुं रणमेदान के जेने हाल पाणिपत कछे. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४८) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. शिष्यश्रीभद्रगुप्ताचार्यनी पासे चारित्र लेइ अनशनकरी • अच्युतदेवलोके गया. आ वात पण पांडवचरित्रमा छे. २५ प्रश्न-पांडवो वीशकोडी मुनिसाथे श्रीसिद्धाचलपर सिद्धिवर्याछे. ए ठेकाणे “ कोडि" एटले वीश एम केटलाएक बोलेछ तेनुं केम ? उत्तर-श्रीहीरप्रश्नमा ए संबंधी एक प्रश्नछे तेना प्रत्युत्तरवचना ®सारे करी एठेकाणे " कोडि " एटले " कोटि " अने ते सोलाखरूप जाणवी पण वीशरूप न जाणवी आम प्रगट समजाय छे. तथाचतत्पाठः "तथाश्रीशत्रुञ्जयस्योपरिपञ्चपाण्डवैःसमंसाधूनांविशतिकोट्यःसिद्धाइतिश्रीशत्रुञ्जयमाहात्म्यादौप्रोक्तमस्तिसाकोटिविंशतिरूपाशतलक्षरूपावेति । अत्रशतलक्षरूपाकोटिरवसीयतेनतुविंशतिरूपेतिबोध्यम्. __ पूर्वोक्तश्रीहीरप्रश्ननुं प्रमाण छतां ए ठेकाणे " कोडि" एटले वीश एम वोलनाराओने नवमा सामायिक व्रतनी पूजामां " लाख ओगणसाठ बाणु कोडि पचवीश सहस नवसें जोडी पचवीस पल्योपम झाझेरो ते बांधे आयुसुरकेरो हे० ॥ ५॥" आवी रीते कांछे त्यां तथा जगचिंतामणिनी गाथाओमा तेमज बीजेठेकाणे पण वांधो आवशे विचारीजोजो. किम्बहुनेत्यलम्. २६ प्रश्न-देवताओ श्रीजिनेश्वर भगवाननी दाढावीगेरे लेइजइ शुंक रेछे ? Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयःप्रकाशः ( ४९ ) उत्तर-पोतपोतावी सुधर्म सभामां माणवक नामा चैत्यस्तंभने विषे वज्ररत्नमय गोलकृत डाबडाछे तेमां स्थापेछे. भावभक्तिथी पूजा वन्दनादिक करेछे तेमनी आशातना न थवामाटे मुधर्म सभामां पोतानी इन्द्राणीयो साथे हास्यविनोद विषयादि सुखने सेवता नथी, अने ज्यारे विमानादिक कारणे देवताओने परस्पर मोटा युद्ध थायछे त्यारे महत्तर देवताओ तेमनुं नमणजल छांटी तेने उपशमावेछे. इत्यादि घणो अधिकारछे परन्तु ते अत्रेनहिं लखतां शास्त्रान्तरोथी जाणवो. २७ प्रश्न-सर्वेदेवोनो श्रीजिनदाढादि ग्रहण करवामां अभिप्राय सर खो हशे के केम ? उत्तर-ना, केटलाक देवो श्रीजिनभक्तिथी, केटलाक देवोजित ( आचार )थी, अने केटलाक देवो धर्मबुद्धिथी, एम जुदा जुदा अभिप्रायथी श्रीजिनदाढादिक ग्रहण करेछे. अधिक विषय श्रीजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रनी टीकाथी जाणवो. २८ प्रश्न-जेनुं चित्त धर्मने विषे अस्थिर छे तेनो आत्मा केवो जाणवो. · उत्तर-वस्तुतत्त्वने नही समजनारो तेमज वस्तुतत्त्वने नहीं मान नारो गङ्गापाठकनी पेठे दुष्टात्मा जाणवो गङ्गापाठकनी कथा आ प्रमाणे लाटदेशने विषे भरुअञ्चनगरमां गंगानामना पाठके घगाबाळकनिशाळियाओने भणावी गणावीने घणुं धन एकहुँ कर्यु. पछी वृद्धावस्थाए परण्यो ते स्त्री तरुण होवाथी तेने विषय समाववो विषम थइ पडयो. तेथी नर्मदानदीने सामेकांठे कोइक पुरुष साथे रंगाणी छे तेथी निरन्तर रात्रिए घडाए करी नर्मदानदी उतरीने पार Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५० )... श्रीप्रश्नोत्तरपदीपे. जाय त्यां मनगमतो विषय सेवीने पाछी आवे. घणी माया केळवीने बूढा भर्तार- मन रीझवे. दिवसे कागडाने बळि नाखवा जाय त्यारे बूढा भर्तारने कहे के, हुं कागडाथी बीहुंछं. हृदयफुट बूढो भर्त्तार पण सत्य मानतो तेनी रक्षा करवा पोताना छात्रोने मोकले. कोइक अवसरे तेने तेना बूढा भर्तारे कयु के अमुक मनुष्यने अमुक कार्य माटे हमेशां तेडी आवजे, स्त्रीए कह्यु के हुं पुरुष साथे बोली जाणुं नहीं. त्यारे बापडो पाठक पोते बोलावी लावे. ते देखी एक छात्रे विचार्यु, के ए सरळना लक्षण नहीं किन्तु कूटकपटना लक्षण छे. यतः "अत्याचारमनाचारमत्यार्जवमनार्जवम् ॥ अतिशौचमशौचञ्चषइविधंकूटलक्षणम् ॥१॥" एम विचारीने एनां स्त्रीचरित्रो जोवा लाग्यो, ते जोतां जोतां रात्रियें नर्मदानदी उतरती दीठी. एवामा सामो आवतो चोर कुतीर्थे ( उन्मार्गे ) उतर्यो, ते चोरने मगरे पकड्यो ते देखी स्त्री बोली कुतीर्थे (उन्मार्गे) शुं करवा उतर्यो ? तोपण भलुथयु. हजु कइ गयुं नवी. तुं ए मगरमच्छनी आंखो ढांक एटले ते छोडीदेशे एम कर्दा ते चरित्र जोनार छात्रे सांभलीने विचायु के, अहो जुओ स्त्री- साहसपणुं केQ छे. यत. “अनृतंसाहसंमायामूर्खत्वमतिलोभता ॥ अशौचंनिर्दयत्वञ्च स्त्रीणांदोषाःस्वभावजाः॥१॥" Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयःप्रकाशः ( ५१ ) वळी एकदिवसे बलिनाखवाअवसरे कागडाथी रक्षा करवामाटे पाठकना आदेशथी तेन छात्र स्त्रीनीसाथे आव्यो छे. बलिनाखताते छात्र बोल्यो. यतः "दियाकागाणवीहेसिरतितरिसिनम्मयं ॥ कुतिथ्थाणियजागासिअच्छीणंढंकणाणिय ॥१॥" ते सांभलीने स्त्रीए विचार्युके, महारी वात ए जाणतो देखायछे तेवारे बोलीके लोकस्वभाव एवोज देखाय छे. माटे मौनकरो. आजथी नर्मदा उत्तर, मूक्युं. त्यारपछी चंचलपणे करी तेज छात्र साथे संयोगथयो. एकदिवसे देशान्तर जवामाटे तेज छात्रने घरमलावी पाठक देशान्तर गया पाछळथी घरमां एकमृतकलेवरलावी राते अग्निलगाडीने ते छात्रसाथे स्त्री नीकलीगइ. प्रातःकाले पाठक घेर आव्यो घरबल्युं ते संबंधी सर्व स्वरूप जाण्यु. त्यारे हा प्रिये मरी गइ, एम घणो खेद करतो मृतकार्य करी ते स्वीना हाडकां लेइने गङ्गाभणी मार्गे चाल्यो जाय छे. ते स्त्रीने पण छ मास पर्यन्त छात्र साथे रम्या पछी कोइक वातने लीधे रुसणुं थयुं छे. त्यारे ते स्त्रीने पश्चात्ताप उपन्यो के भार मूकीने हुं इहां क्या आवी ? एवं पोतानुं सर्व स्वरूप भार त्यां आवी पहोंच्यो, तेने को, त्यारे पाठक बोल्यो. तुं महारी स्त्रीसरखी देखाय छे खरी, पण तेतो तु नथी तेना अस्थितो आ महारी गांठे बांध्यां छे. त्यारे स्त्रीय तेने पूर्वनी अनेक प्रकारनो निशानीयो बतावी, तोपण ते हाडका बतावे पण माने नहीं. त्यारे स्त्रीय छात्र Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. देखाइयो, तेने जोइ पाठके कयु के, ए महारा छात्रसरखो देखाय छे. पण ते स्त्रीना हाडका तो महारी पासे छे. त्यारे ते स्त्री खेद पामीने भर्तारने तजती हवी. एवा पाठकसरखा पुरुष कोइनें कडं सांभले नहीं धर्मने विषे उजमाल थाय नहीं तेनो आत्मा दुरात्मा जाणवो. ए कथा श्रीआवश्यकनियु त्यादिग्रन्थोमां छे. २९ प्रश्न-कोनो संसारमा प्रचार न होय ? उत्तर-पूजा, पच्चखाण, पडिकमण, पौषध, अने परोपकार ए उक्त पांच पकार जेने छे, तेनो संसारमा प्रचार न होय. यतःप्रोक्तम्. " पूआपञ्चखाणंपडिकमणंपोसहोपरोवयारोअपंचपयाराजस्सउनपयारोतस्ससंसारे ॥१॥" ३० प्रश्न-विद्या ग्रहण करवाना केटला उपाय छे ? उत्तर-विनयवडे करीने विद्याग्रहण कराय छे, घणुं द्रव्य आप वावडे करीने विद्याग्रहण कराय छे, अने विद्यावडे करीने पण विद्याग्रहण कराय छे. ए त्रण उपाय छे. पण चोथो उपाय नथी. कयुं छे के यतः "विनयेनविद्याग्राह्यापुष्कलेनधनेनवा ॥ अथवाविद्ययाविद्यानान्योपायश्चतुर्थकः ॥१॥" ३१ प्रश्न-जे गुरुए उपकारबुद्धिथी जेने भणावेल. होय ते जो ते गुरुने गुरुपणे न माने तो ते केवो जाणवो ? उत्तर-पक्को कृतघ्न जाणवो. तेमज ते एक जातनो निन्हव जा Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयः प्रकाशः ( ५३ . ) णवो. शुं घणुं कहीए एकअक्षरना पण दातारगुरुने जो न माने तो ते सोवार कुतरानी योनिमां उत्पन्न थइने एटले कुतराना १०० भव करीने पछी चाण्डालोना कुळोमां पण ते उत्पन्न थाय छे. कहां छे के. यतः एकाक्षरप्रदातारंयोगुरुंनाभिमन्यते ॥ श्वानयोर्निशतं गत्वा चाण्डालेष्वपिजायते ॥ १ ॥ " 66 ३२ प्रश्न - जम्बूद्वीपना महाविदेहमां ९६ मागधादि तीर्थ क्यां छे, अने तेने साधतां त्यांना चक्रवर्त्तिओ क्यां बाण नाखे छे ते कहो. उत्तर - पूर्वमहाविदेहमां १६ विजयना ४८ तीर्थ सीतानदीमां छे. तेमज पश्चिममहाविदेहमां १६ विजयना ४८ तीर्थ सीतोदानदीमां छे माटे तेने साधतां त्यांना चक्रवर्त्तिओ त्यां बाण नाखे छे. ए अधिकार श्रीजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रवृत्तिमां तथा क्षेत्रसमासवृत्तिमां छे, ३३ प्रश्न - केवली भगवान् पडिलेहणा करे के नहीं ? उत्तर - जो जीव संसक्तवस्त्रादि होय, तो पडिलेहणा करे अन्यथा न करे एम श्रीभद्रबाहु स्वामिए श्री ओघनिर्युक्तिमा कशुं छे. ३४ प्रश्न - आ अमुक जीव आठ कर्मनो अन्त करशे, एम केवली जाणे छे तेम छद्मस्थ जाणे के नहीं ? उत्तर— जेम केवली जाणे तेम छद्मस्थ न जाणे परन्तु केवलमखना वचन सांभळीने अथवा प्रमाणथी जाणे. विशेष वात श्रीभगवतीसूत्री जाणवी. Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. ३५ प्रश्न-ज्ञान अने प्रमाणमां शो विशेष छे ? उत्तर-कंइ विशेष नथी शाथी के जे स्वपरवस्तुने निश्चय कर नारं ज्ञान तेज प्रमाण. यदुक्तंश्रीवादिदेवमूरिकृतप्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कारे " स्वपरव्यवसायिज्ञानंप्रमाणम्” इति अने ते प्रमाण प्रत्यक्ष, अने परोक्ष, एवा बे भेदवाळं छे. तेमां जे प्रत्यक्ष, ते अनिन्द्रियजन्य एवा अवधि, मनःपर्याय, अने केवल, ए त्रण ज्ञानरूप छे. तेमां पण अवधि, अने मनःपर्याय, ए बे ज्ञान देशप्रत्यक्ष छे. अने केवलज्ञान ते सकलप्रत्यक्ष छे. हवे बीजो भेद जे परोक्ष, ते इन्द्रियजन्य एवां मति, अने श्रुत, ए वे ज्ञानरूप छे. वळी कोइ ठेकाणे मति, अने श्रुत, ए बे ज्ञानने व्यवहारथी प्रत्यक्ष व्यपदेश पण मानेलो छे. आ ठेकाणे भारे विस्तार छे, ते श्रीनन्दीसूत्र,तत्त्वार्थवृत्ति,रत्नाकरावतारिकादिग्रन्थोथी समजवो. ३६ प्रश्न-चार प्रमाण छतां पूर्वोक्त प्रश्नोत्तरमां बे प्रमाण केम कयां ? उत्तर-अनुमान, उपमान, अने आगम, ए त्रण प्रमाणनो परोक्ष . प्रमाणमा अन्तर्भाव करीने बे प्रमाण कह्यां छे. ३७ प्रश्न-आजकाले आ भरतक्षेत्रमा जातिस्मरण, अने अवधिज्ञान __ पामीए के नहीं ? उत्तर-तेवा गुण नहिं व्यवच्छेद थवाथी कोइ वखते पामीर पण खरा एम श्रीलोकप्रकाशप्रमुखशास्त्रोथी समजाय छे. ३८ प्रश्न-जातिस्मरणज्ञानवालो पोताना केटला पाछला भवदेखे ? Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयःप्रकाशः उत्तर-संख्याताभवने देखे एम श्रीआचारागसूत्रनीबृहदृत्तिथी समजाय छे. अने श्रीचन्द्राचार्यकृतयोगविधिथी एक, बे, त्रण, यावत् नवभव देखे एम समजाय छे. तथाहि. "जातिस्मरणन्तुनियमतःसंख्येयानभवानपश्यति” ३९ प्रश्न-" पञ्चाङ्गी" कोनेकहएि ? उत्तर-सूत्र, नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, अने टीका, उक्तसूत्रादिक पां __ चने " पञ्चाङ्गी" कहीए. अनेतेभवभीरुजीवोनेप्रमाणछे. ४० प्रश्न-६ छेदसूत्रनां नामकहो.. उत्तर-निशीथ, महानिशीथ, दशाश्रुतस्कन्ध, वृहत्कल्प, व्यवहार, अने पञ्चकल्प, ए ६ छेदसूत्रनां नामजाणवा. ४१ प्रश्न-" व्याख्याप्रज्ञप्ति " एकोनामछे ? उत्तर-श्रीभगवतीसूत्रनामछे. "ग्रन्थान्तरपरिभाषयाध्ययनमुच्यते " ४३ प्रश्न-श्रीभगवतीसूत्रनामान्तभागमां तथा श्रीसमवायाङ्गसूत्रमा श्रीभगवतीसूत्रना ८४००० पद कयां छे. अने श्रीनन्दीमूत्रमा श्रीभगवतीमूत्रना २८८००० पद कयां छे तेनु केम ? उत्तर-तेजठेकाणे श्रीसमवायाङ्गसूत्रनी टीकामां कां छे के श्री आचाराङ्गसूत्रना १८००० पद छे त्यांथी ठाणबमणागणतां श्रीभगवतीसूत्रना २८८००० पद थाय छे ते मतान्तर छे. Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) श्रीपश्नोत्तरपदीपे. तथाचतत्पाठः “ मतान्तरेणत्वष्टादशपदसहस्रपरिमाणत्वादाचारस्यएतद्दिगुणद्विगुणत्वाचशेषाङ्गानांव्याख्याप्रज्ञप्तेःलशे अष्टाशीतिसहस्राणिपदानांभवन्ति ” । ४४ प्रश्न-सूत्रना एकपदनु केटलुं प्रमाण होय ते कहो. . उत्तर–पद छे ते विशिष्टसम्पदायगम्य छे. एम श्रीभगवतीसूत्रनी टीकामां कर्तुं छे. तथाचतत्पाठः “ पदानिचविशिष्टसम्प्रदायगम्यानि " तथा श्रीसमवायानसूत्र, अने नन्दीसूत्रनी टीकामां कयुं छे के ज्यां अर्थनी प्राप्ति, (समाप्ति) थाय ते पद कहेवाय. तथाचतत्पाठः " यत्रार्थोपलब्धिस्तत्पदम् ” . तथा कर्मग्रन्थनी टीकामा कयुं छे के हालमां तथाविधाम्नाय (सम्प्रदाय )ना अभावयी पदनुं प्रमाण जाणवामां नथी. तथाचतत्पाठः " पदस्यतथाविधाम्नायाभावात्प्रमाणनज्ञायते " अने श्रीविचाररत्नसारग्रन्थमां तो एक पदना "५१०८८४६२१॥" आटला श्लोक थाय छे एम कहेलुं छे. Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय प्रकाशः (५७) तथाचतत्पाठः “एकावन्नकोडिओलस्काअठेवसहस्सचुलसिहिंसयछकसाढाएकवीसपयगंथा ॥१॥" .. तत्त्वन्तुकेवलिनोजानन्ति. ४५ प्रश्न-दृष्टिवादना केटला भेदछे. अने का भेदमा १४ पूर्वजाणवा ? उत्तर-परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग, अने चूलिका, ए पांच भेद दृष्टिवादना कह्याछे. तेमां " पूर्वगत " नामना त्रीजा भेदमा १४ पूर्व जाणवां. यदुक्तंश्रीसमवायाङ्गसूत्रेनन्दीसूत्रेच. “सेकिंतंदिठिवाएदिठिवाएणंसवभावपरूवणयाआघविज्जतिसेसमासओपंचविहेपतंपरिकम्मंसुत्ताइंपुत्वगयंअणुओगोचूलियाइत्यादियावत्सेत्तंसुताई । सेकिंतंपुवगयंपुवगयंचउद्दसविहेपतं उप्पायपुवंइत्यादि " ४६ प्रश्न-कालिक, उत्कालिक, सूत्र कोने कहीए ? उत्तर-दिवसना अने रात्रिना पहेलाछेल्लाबेपहोरमांज जे भणाय ते श्रीउत्तराध्ययन वीगेरे कालिकसूत्रो जाणवां. अने कालवेला वर्जीने जे भणाय ते श्री दैशवकालिक वीगेरे उत्कालिकसूत्रो जाणवां. यदुक्तंश्रीनन्दीमूत्रवृत्तौ. " यदिवसनिशाप्रथमपश्चिमपौरुषीदयएवपठ्यतेतत्कालिककालेननिर्वृत्तंकालिकमितिव्युप्तत्तेःयत्पुनःका Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. लवेलावर्ज्जपठ्यतेतदूर्ध्वकालिकादित्युत्कालिकं ॥ आहचचूर्णिकृत्-तथ्थकालियंजंदिणराइणपढमपोरिसी सुपदि - ज्जइजंपुणकालवेलावज्जंपढिज्जइतं उक्कालियं ” इति अथवा आगाढायोगसाध्यजे छे, ते कालिकसूत्रो जाrai. अने अनागाढायोग साध्यजे छे, ते उत्कालिकसूत्रो जाणव (५८) ८८ यदाहश्रीसिद्धान्तागमस्तवावचूरिः कालिक मागाढायोगसाध्यमुत्कालिक मनागाढा योगसाध्यमिति ४७ प्रश्न - बे घडीना परिमाणवाली अकालसन्ध्या केटली छे ? उत्तर- दिनरातनी बे घडीना परिमाणवाली अकालसन्ध्या चार छे, ते नीचे प्रमाणे— "" प्रथमासन्ध्या - के जे सूर्योदय पहेलानी, पश्चिमासन्ध्या - के जे सूर्यास्तसमयनी, श्रीजी मध्यान्हसन्ध्या, चोथी अर्द्धरात्रसन्ध्या, एदिवसरातनीचा रसन्ध्याए साधु साध्वीए स्वाध्याय ( सज्झायध्यान ) करवो न कल्पे. तदुक्तंश्रीस्थानाङ्गसूत्रे. (" 'नोक पइणिग्गंथाणवाणिग्गंथीणवाचउहिंसंज्झाहिंसज्झायंकरेत्तएतं ० पढमाए १ पेच्छिमाए २ मज्झन्हे ३ अद्धरते ४ " * आगाढायोग, अनाढायोगनुं स्वरूप गुरुगमथी जाणं. १ प्रथमासंध्यानुदिते सूर्ये २ पश्चिमा संध्या सूर्यास्तमय समये इतित टीकायाम्. Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयःप्रकाशः (५९) अने वळी एजपूर्वोक्तचार सन्ध्याए स्वाध्याय न कराय एम खरतरगच्छीयश्रीजिनदत्तमरिकृतसन्देहदोलावलीसूत्रमा पण कयुं छे. तथाचतत्पाठः " चउपोरसिओदिवसोदिणमझतेअदुन्निघडिआओ । एवंरयणीमज्झेअंतंमिअताओचत्तारि ॥१॥" (ताश्चतस्रः) प्रस्तावादेतासुचतस्रष्वपिसन्ध्यासुस्वाध्यायोनक्रियतइत्यत्रतात्पर्यार्थः १८ प्रश्न-उक्तचारअकालसन्ध्यासमये शामाटे स्वाध्याय न कराय? उचर-" सुयनाणमिअभत्ति" ए गाथाए करी श्रीआवश्यक सूत्रनी श्रीतिलकाचार्यकृतटीकामां अकाले भणतां घणा दोषो बतावेलाछे. वळी अन्यदर्शनमां पण अकालसन्ध्याए - भणवू निषेधेलं छे. यतः " सन्ध्याकालेचसम्प्राप्तेकर्मचत्वाविर्जयेत् ॥आहारंमैथुननिद्रांस्वाध्यायञ्चचतुर्थकम् ॥१॥ आहाराज्जायतेव्याधिमैथुनाचकुलक्षयः ॥ दरिद्रताचनिद्रायांस्वाध्यायान्मरणंभवेत् ॥ २॥” यद्दा “भूतपीडानिद्रयास्यास्वाध्यायाबुद्धिहीनता" इत्यपिक्वचिद्वितीयश्लोकपश्वा पाठः Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६० ) श्रीप्रश्नोत्तरपदीपे. ४९ प्रश्न-टीप्पणामां राहुनी मस्तकमात्र अने केतुनीकबंध (धड) मात्र आकृतिछे तेनुं शुं कारण ? उत्तर-अमृततुं पानकरवा वखते देवपक्तिमा देवरूपे बेसीने अमृतनुं पान करतो एवो जे राहु तेने देखीने विष्णु तेना मस्तकने छेदता हवा. त्यारथी मस्तकभागमाराहु, अने कबंध (धड ) भागमां केतु एम बेरूप तेना जाणवां अने तेथीज टीप्पणामां पण राहुनी मस्तकमात्र अने केतुनी कबंध (घड) मात्र आकृतिछे. आ वात लौकिकपूराणनी अपेक्षाए जाणवी. नहिंतो राहु सम्पूर्णसकलशरीरना अवयवादिविशेषशोभासहित एवो एक महर्द्धिक ग्रहछे. तदुक्तंश्रीलोकप्रकाशे. “ सम्पूर्णसर्वावयवीविशिष्टालङ्कारमोल्याम्बररम्यरूपः॥ महर्द्धिकोराजतिराहुरेषलोकप्रसिद्धोननुमौलिमात्रम् ॥१॥" ते राहुनो विशेष अधिकार श्रीभगवतीमूत्रथी जाणवो. ५० प्रश्न-आयंबीलमां " हिंग " कल्पे के केम ? उत्तर-श्रीचन्द्रमरिकृतश्रीलघुमवचनसारोद्धारमां कपुछे के आय बीलमा "हिंग" पाए न कल्पे शाथी के तेमां कृतदोषप्रसङ्ग रयोछे, तेनो पाठ नीचेमुजब.. तथाहि. _ "पायंहिंगुनकप्पइकयदोसप्पसंगओजम्हा " ५१ मन-" पञ्चसौगन्धिक " ताम्बूल कोने कहीए ? Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयःप्रकाशः (६१ ) उत्तर--जेमां एलायची, लवंग, कपूर, कंकोल, अने जायफळ, ए पांच सुगंधी वस्तुओ आवे ते पंचसौगंधिक तांबूल कहेवाय. अने तेवो तांबूल आनंदश्रावके मुखवासमा मोकळो राख्यो हतो ते वात श्रीउपासकदशाङ्गसूत्रवृत्तिमां छे. तथाचतत्सूत्रम्. " तयाणंतरंचगंमुहवासविहिपरिमाणकरेइणण्णथ्थपंचसोगंधिएणतंबोलेणंअवशेषमुहवासविहिंपञ्चखामि" तत्सूत्रवृत्तिर्यथा. “ पंचसौगंधिएणंतिपंचभिरेलालवंगकर्पूरकंकोलजातिफललक्षणैःसुगंधिभिर्द्रव्यैरभिसंस्कृतपंचसौगंधिकम्” ५२ प्रश्न-स्त्रीरत्ननीसंखावर्तायोनिमां जीवो गर्भपणे उपजेछे, पण निष्पन्नथतानथी तेनुं शुं कारण ? उत्तर-अतिप्रबलकामाग्निना परितापथी विध्वंशपणाने पामे छे. एम श्रीपन्नवणासूत्रनी वृत्तिमां कयुं छे. तथाचतत्सूत्रवृत्तिः "अतिप्रवलकामामिपरितापतोध्वंसगमनादितिवृद्धवादः” तथा श्रीहीरमश्नोत्तरमा पण कह्यु ले के स्त्रीरत्नना स्पर्शथी लोहपुरुषतुं पण गलन थइ जाय इत्यादि. तत्पाठोयथा. "स्त्रीरत्नस्पर्शाल्लोहपुरुषगलनमुत्कृष्टातिशयितकामविकारजनितप्रबलोष्णताविशेषात " Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६२ ) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. ५३ प्रश्न-औदारिकशरीरवाळी स्त्रीने कोइ देवता भोगवे तो ते स्त्री गर्भ धरे के केम ? उत्तर-ना, ते स्वीगर्भ न धरे देवतानुं वैक्रियशरीरछे माटे अनै जे चक्रवर्तिना वैक्रियशरीरथी बीजी स्त्रीओ गर्भ धरे छ तेतो चक्रवर्त्तिने सत्ताए औदारिकशरीरना पुद्गल छे. माटे गर्भ धरे छे. आ अधिकार पं० श्रीदेवविजयगणिकृतप्राकृतभाषारूपश्रीप्रश्नोत्तरसमुच्चयग्रन्थमांछे. तेमज आ वात श्रीसंग्रहणीसूत्रना बालाववोधमां कांइक जुदा रूपमा छे.. ५४ प्रश्न-स्त्रीने गर्भोत्पत्ति क्यारे थाय छे, अने तेनो केटलो काळ कह्यो छे ? उत्तर-ऋतुसमयस्नान कर्यापछी पुरुषना संयोगे स्त्रीने गर्भोत्प त्ति थाय छे. अने तेनो काळ बार मुहूर्त सुधीनो कह्यो छे. शाथी के त्यांसुधी शुक्रशोणित अविध्वस्तपणे रहे छे पछी बिध्वस्तपणाने पामे छे. यदुक्तंश्रीप्रवचनसारोदारे. “ रिउसमयण्हायनारीनरोवभोगेणगप्भसंभूई ॥ बारसमुहुत्तमज्झेजायइउवरिपुणोनेय ॥१॥" ५५ प्रश्न-पोतानी माताना उदरमा जीव गर्भपणे वधारेमांवधारे क्या सुधी रहे ते कहो. - उत्तर-तीर्यचआश्रि कोइ जीव आठवर्ष सुधी रहे त्यारपछी म. सव थाय. अथवा खरी पडे. मनुष्यआश्रि कोइ महापापी १ स्त्रीने मासमासने आंतरे योनिद्वारथी प्रणदिवससुधी निरन्तरपणे लोही श्रोछे त्यारपछी ते शुद्धिने अर्थे स्नान करेछे तेने ऋतुसमयस्नान कहीए. Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय:प्रकाशः जीव वातपित्तादिकरोगना कारणथी, अथवा मंत्रादिक प्रयोगथी थंभाणो थको सिद्धराजजयसिंहनीपेठे १२ वर्ष सुधी रहे. वळी कोइ जीव १२ वर्ष सुधी रही काल करी फेर कर्मवशे त्यांज आवीने उपजे बीजां १२ वर्ष रहे. एम २४ वर्ष सुधी पण रहे. यतःप्रोक्तंश्रीप्रवचनसारोद्धारे. "उकिठागभठिईतिरियाणंहोइअठवरिसाइं॥ गभठिईमणुस्सीणुक्किठाहोइवरिसबारसगं ॥१॥ गप्भस्सकायठिईनराणचउवीसवरिसाइं ॥" ५६ प्रश्न-गर्भमा रहेलो जीव ओजआहार करे के लोमआहार करे के प्रक्षेपआहार करे ? उत्तर-पहेले समये जीव ओजआहार करे कारण के अपर्याप्तो छ पर्याप्तो थयापछी लोमआहार करे अने प्रक्षेपआहारनी भजना ( करे अथवा न करे.) तदुक्तंश्रीप्रवचनसारोद्धारे. "ओयाहाराजीवासवेअपज्जत्तगामुणेयवा ॥ पज्जताउणलोमेपरकेवेहुँतिभईयवा ॥१॥" ५७ प्रश्न-चउविहारपञ्चखाण; स्त्रीसाथे संयोग करतां भांगे के केम ? १सिद्धराजजयसिंहने शोक्यमाताए मंत्रे करी १२ वर्ष सुधी थंभी राख्यो पछी एक सिद्धयोगिए उपाय करी छुटकबारो कर्यो अने तेथी तेनुं " सिद्धराजजयसिंह " एq नाम राख्यु. Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६४ ) श्रीपश्नोत्तरमदीपे. उत्तर--नभांगे, पण मुखचुंबनकरतां भांगे. माटे चतुर्विधाहार प्रत्याख्यानकरनार पुरुषे उपयोग राखवो, आ अधिकार श्राद्धविधिग्रन्थनी विधिकौमुदीनामनी टीकामां छे. ५८ प्रश्न-मुक्ताफल सचित्तछे के अचित्तछे ? उत्तर--उत्पत्तिस्थानमा सचित्तछे अने त्यांथी नीकल्यापछी विधे लां अथवा न विधेलां मुक्ताफल अचित्तछे. शाथीके श्रीअनुयोगद्वारसूत्रमा अचित्तपरिग्रहमां गणावेलछे. यदुक्तंश्रीहीरप्रश्ने. “तथामौक्तानिसचित्तान्यचित्तानिवाकुत्रकथितानिसन्तीति । अत्रमौक्तिकानिविद्धान्यविद्धानिवाचित्तानिज्ञेयानियतःश्रीअनुयोगद्दारसूत्रेमौक्तिकरत्नादीन्यचित्तपरिग्रहमध्येकथितानिसन्तीति" ५९ प्रश्न-मुक्ताफलनी उत्पत्ति क्यां थती हशे ? उत्तर--समुद्रनी छीपमा, हस्तिनामस्तकदन्तमां इत्यादि घणेठेकाणे मोतिनी उत्पत्ति कही छे. यतः " हस्तिमस्तकदन्तौतुदंष्ट्राशुनवराहयोः॥ मेघोभुजङ्गमोवेणुमत्स्योमौक्तिकयोनयः॥१॥" - इति वचनात् ॥ ६० प्रश्न-उतावळथी चालनार घोडाना पेटमा “खबरक खबरक" शब्द थायछे. तेशुं पाणीनो शब्द हशे ? Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय प्रकाश उत्तर-घोडानी दक्षिणकुक्षिमां “ककड" नामनो वायु होयछे. ते उतावळथी चालतां अथवा दोडतां एवो शब्दथायछे. ए वात श्रीभगवतीमूत्रना दशमाशतकना त्रीजा उद्देशामांछे ६१ प्रश्न-एकसमयेवायुना वैक्रियशरीर केटला होय ? उत्तर-पल्योपमने असंख्यातमभागे जेटला समय तेटलां वायुका यना वैक्रियशरीर होय एम श्रीप्रज्ञापनासूत्रवृत्तिमां कहेलुंछे ६२ प्रश्न-भाषानुं संस्थान केवे आकारे होय ? । उसर--वज्राकारे होय. शाथीके भाषाना पुद्गल लोकान्तमुधी जाय __ छे. आ वात श्रीप्रज्ञापनासूत्रमा तथा नयचक्रमांछे. ६३ प्रश्न-गर्भजतिर्यञ्चपञ्चेन्द्रियजीवोनी तथामनुष्यपश्चन्द्रियजीवोनी मिश्रायोनि केमकही हशे? उत्तर-जे शुक्रशोणितपुद्गलोने योनिए ग्रहणको छे, ते सचित्त . जाणवां अने जे ग्रहण नथीको ते अचित्त जाणवा. एम सचित्त अचित्तना योगेकरी तेमनी मिश्रायोनिकहीं छे. आठेकाणे केटलाक आचार्योनो एवोपण मतछे, के शोणित छे ते सचित्तछे अने शुक्रछे ते अचित्तछे तेथी मिश्रायोनि कहीए. त्यारेवळी बीजा आचार्यो एमकहेछ, के शुक्र, शोणित, बे अचित्तछे अने योनिप्रदेश सचित्तछे तेथी लेमनी मिश्रायोनि कहीए. तथाहिश्रीलोकप्रकाशे. " सचित्ताचित्तरूपातुमिश्रायोनिःप्रकीर्तिता॥ नृतिरश्चायथायोनौशुक्रशोणितपुद्गलाः॥१॥आत्मसाहिहितायेस्युस्तेसचित्तापरेन्यथा॥सचित्ताचित्तयोगेनयोनेर्मि Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६६ ) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. श्रत्वमाहितम् ॥ २॥ युग्मम् योषितांकिलनाभेरधस्ताच्छिरादयंपुष्पमालावेक्षकाकारमस्तितस्याधस्तादधोमुखसंस्थितकोशाकारायोनिस्तस्याश्चबहिश्शूतकलिकाकृतयोमांसमञ्जर्योजायन्तेताः किलासृक्स्पन्दित्वाहतौस्रवन्तितत्रकेचिदसृजोलवाः कोशाकारकांयोनिमनुप्रविश्यसन्तिष्टन्तेपश्चाच्छुक्रसंमिश्रास्तानाहारयजीवस्तत्रोत्पद्य - तेतत्रयेयोन्यात्मसात्कृतास्तेसचित्तायेतुनस्वरूपतामापादितास्तेचित्ताः ॥ अपरेवर्णयन्त्यसृक्सचेत्तनंशुक्रमचेत्तनमिति ॥ अन्येब्रुवतेशुक्रशोणितमचित्तंयोनिप्रदेशाः सचित्ताइत्यतोमिश्रेतितुतत्त्वार्थवृत्तौद्वितीयाध्याये" ६४ प्रश्न-हंस, उदकमिश्रितक्षीरने जुदूं करीने पीए छे, ते शाथी ? उत्तर-हंसनी जीभमां एक जातनो खटाश गुण रह्यो छे, के नेथी __ दुध कूचारूप थइ जुटूं थाय छे एटले पाणीने वर्जीने केवल दुधनेज ते पीए छे. तदुक्तंश्रीनन्दीसूत्रवृत्ती. "अम्लत्तणेणजीहाएकूचियाहोइखीरमुदयंमिहंसो-. मोत्तृणजलंआवियइपयं” अत्र प्रसङ्गोपातलखीएछीए के जेमहंसो, क्षीरनीर एकठांछते नीरने तजीने निर्मलक्षीरने ग्रहण करे छे. तेम सत्पुरुषो पण परना गुणदोष एकठाछते दोषने तजीने गुणोने-: ज ग्रहण करे छे. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयः प्रकाशः यतः प्रोक्तम् गुणदोषसमाहारेगुणानुगृन्हन्तिसाधवः क्षीरनीरसमाहारेहंसाः क्षीरमिवामलम् ॥ १ ॥ " अने तेथी ते सत्पुरुषो आ जगतमां श्लाघा करवालायक छे. माटे हे उत्तमजीवो. हे भव्यो तमे तेवा सत्पुरुषोनी सोबत करशो. सत्पुरुषोनी सोबत कल्पवल्लीनी पेठे हमेशां शुं शुं उत्तमकार्य नथी करती अर्थात् सर्व उत्तमकार्यो करे छे. जुओ के ते कीर्त्तिनुं मूल नाखे छे, पापने दली नाखे छे, आनंदने उपजावे छे, परिश्रमने रोके छे, बुद्धिना विभवने उत्पन्न करे छे, शत्रुओने नाश करे छे, कल्याणने एकहुं करे छे, मनोहर बुद्धिने आपे छे तेमज बली भयने आच्छादित करे छे, एम पूर्वोक्त सर्व कार्य करे छे. यतः कीर्त्तिकन्दलयत्यघंदलयतिप्राल्हाद मुल्लासय त्यायासंनिरुणद्धिबुद्धिविभवंसूतेनिशितरिपून् ।। श्रेयःसञ्चिनुतेचबन्धुरधियंधत्तेपिधत्तेभयं किंकिंकल्पलतेवनैवतनुतेसद्यः सतांसङ्गतिः ॥ १ ॥” परन्तु हे सज्जनो हे सभ्योपरना गुणोने तजीने छता अछता दोषोनेज ग्रहण करनारा एवा जे दुर्जनमाणसो होय तेनी सोबत नहीं करशो. दुर्जनमाणसो कागडाना जेवा स्वभावत्राळा होय छे. जेमके कागडो सर्व वस्तुनुं भक्षण करे, पण विष्टानुं भक्षण कर्याविना तृप्ति न पाये तेम दुर्जन 64 ( ६७ ) " Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. माणसे पण परना अवर्णवाद बोल्या विना हर्ष न पामे. अर्थात्परना अवर्णवाद बोले त्यारेज हर्ष पामे. अहो शुं घणुं कही कrasो दुधेधोयोथको पण धोलो न थाय राजहंसपणाने न पाये तेम दुर्जनमाणस सत्कारकर्योथको पण सज्जनपणाने न पामे. उलटो सज्जनमाणसोना प्रते अनेकप्रकारे क्लेशने देवावाळो थाय छे. ( ६८ ) यतः प्रोक्तम् “नविनापरिखादेनहृष्टोभवतिदुर्जनः ॥ काकःसर्वरसान्पीत्वाविनामेध्यंनतृप्यति ॥ १ ॥ खलःसत्क्रियमाणोपिददातिर्कलहंसताम् ॥ दुग्धधौतोपिकिंयातिवायसोकलहंसताम् ॥ २ ॥” किम्बहुना अर्थात् तेवा दुर्जननीचमाणसोनी सोबत न करवी एज उत्तम भव्य जीवोने श्रेयकारी छे. जुओके हंसे नीचकागडानी सोबतकरी तो अन्ते मृत्युने पाम्यो तेनी कथा नीचे मुजब . एक दिवसे कोइ एकराजाए झाडनी हेठे पोतानो घोडो उभोराख्यो, अनेपोतेपण उभोरह्यो रवामां तेज झाडनी उपर एकराजहंस तथा एक कागडो ए बन्ने पक्षिओ बेठा - हता तेमां कागडाए राजाना उज्वलवस्त्र देखीने तेनीउपर विष्टानाखी, तेनाथी वस्त्र खराब थयां, ते जोइ राजाने रीसचडी ते वारे धनुषपर वाण चडावी फेंक्युं, तेवखते कागडो उडीगयो अने ते बांण हंसने वाग्युं, तेथी ते हंस तर - १ क्लेशम् २ काकः ३ राजहंसत्वम् . Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयः प्रकाशः ( ६९ ) फडतो नीचे राजानी आगळ आवी पड्यो. तेना सामुं जो इने राजा बोल्यो के आवो उज्ज्वलकागडो में कोइदिवस जोयोनथी. ए अपूर्वआश्चर्यकारीवात देखाय छे. त्यारे जमीन उपर पडेलो हंस कहेछे, के हुं कागडो नथी, हुंतो उज्ज्वलहंसकुं. पण आ नीचकागडाना सङ्गथी मृत्युने पाम्योछं. कांछे के. नाहंका को महाराज हंसो हंविमलेजले || नीच संगप्रसंगेनमृत्युरेवन संशयः ॥ १ ॥” इति ६५ प्रश्न - साधु, असाधुनी, कोइनी पण निंदा न करवी, अने जे करे ते भवान्तरमां केवा अवतार पामे ते कहो. उत्तर- '' टुंटामुंगा अंधादारिद्दाघोरदुरकबाहुल्ला सूलाभिन्नसरीरासाहुअसाहुणनिंदा ॥ १ ॥ " ए गाथामा प्रदर्शित टुंटा, मुंगा, आंधळा, वीगरे अवतारने पामे छे. वळी जे बाह्यक्रिया बतावी भोळा जीवोने ठगे छे. परना अवर्णवाद बोले छे. पोताना आत्मानी प्रशंसा करे छे. तेवा जीवोने क्यांथी बोधि ( धर्मनी प्राप्ति ) होय. पण तेवा जीवोतो उलटा पोताना आत्माने आ संसाररूप समुद्रमां बोळे छे. " यतः “परवंचणेणरत्तापरापवाएणअप्पसंसणय | ताणंं कत्तोबोहिपरमप्पाणयाचबोलेइ ॥ १ ॥ " आ ठेकाणे पूज्यपादमहोपाध्यायश्रीयशोविजयजी म Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७० ) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. हाराजनी करेली परपरिवादनामना १६ मां पापस्थानकी सज्झाय वांचवाथी वधारे समजवामां आवशे के परनिंदा करनारने केवो कह्यो छे. अने तेनां करेलां तप, जप, क्रिया केवां कह्यां छे इत्यादि, माटे भवभीरूपाणिये कोइ पण जीवनी निंदा न करवी. अने करवी तो पोताना आत्मानी करवी. ६६ प्रश्न-दुर्जनमूर्खमाणसने पण्डितपुरुषो पोतानी सोबतमा लेइ __धर्मोपदेश देइ सुधारे तो ते शुं न सुधरे ? उत्तर-ना, ते न सुधरे. कयुं छे के चन्दनना वृक्ष विषे झेरी सर्प हमेशां विंटायो रहे छ तथापि पोतानामा रहेल झेरने छोडतो नथी. तथा सेलडीनो गांठो सदाय सेलडीसाथे वळग्यो रहे छे पण पोतानी खारास मेलतो नथी. अने वळी कस्तूरीथी अर्चेल लसण ते पण पोताना दुष्टगंधने तजतुं नथी इत्यादि घणा दृष्टान्तोछे. तेम पण्डितपुरुषोनी सोबतथी पण दुर्जनमूर्खमाणस पोतानामां स्वाभाविक रहेल दुर्जनपणाने तजतो नथी. अने तेथीन ते सुधरतो नथी. वळी एवा दुर्जनमाणसने पण्डितपुरुषोनो जे उपदेश ते पण शांतिने मादे नथी थतो पण क्रोधने माटे थाय छे. सर्पने पायेलं दुध अमृतने मादे न थाय किन्तुकेवलविषनेज वधारनारु थाय छे. यतः " उपदेशोहिमूर्खाणांप्रकोपायनशान्तये ॥ पयःपानंभुजङ्गानांकेवलंविषवर्द्धनम् ॥१॥" वळी जले करी अग्निने, छत्रे करी सूर्यना आतापने, तिक्षणअंकुशे करी मदोन्मत्तहाथीने, दंडे करी बळद तथा गर्द - Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय प्रकाशः भने, औषधना संग्रहे करी व्याधिने, अने नानाप्रकारना मं. अप्रयोगे करी विषनेवारी शकायछे. इत्यादि शास्त्रकथितसयतुं औषध छे. पण एक दुर्जनमूर्खमाणसनु औषध नथी. . अर्थात् पूर्वोक्तअग्निप्रमुखनिवारवाने यथायोग्यसर्वउपायछे. पण दुर्जनमूर्खमाणसनी मूर्खताने दूरकरवाने पाये कोइ तेवो उपाय नथी. यदाहश्रीराजर्षिभर्तृहरिः "शक्योवारयितुंजलेनहुतभुकछत्रेणसूर्यातपोनागेन्दोनिशिताङ्कुशेनसमदोदण्डेनगोगर्द्धभौ ॥ व्याधिर्मेषजसंग्रहैश्वविविधैर्मत्रप्रयोगैर्विषंसर्वस्यौषधमस्तिशास्त्रविहितमूर्खस्यनास्त्यौषधम् ॥ १॥” इत्यलम्. ६७ प्रश्न-श्रीजिनप्रतिमाने विषे आचार्य वासक्षेपकरे ? उत्तर-हा, प्रतिष्टासमये करे. "गन्धाँश्चचूर्णवासाँश्चचक्रेचिक्षेपचक्रभृत् ॥ प्रतिमायामिवाचार्य प्रतिष्टासमयेस्वयम्॥१॥" इतिश्रीहेमचन्द्राचार्यकृतश्रीत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रोक्त त्वात्तथैवप्रतिष्टाकल्पादावुक्तत्वाच्चेति. ६८ प्रश्न-दीक्षादिअवसरे वासक्षेपनाखवानो रीवाज क्याथी सरु थयो हशे ? . Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७२) श्रीप्रश्नोत्तरपदीपे. उत्तर--श्रीऋषभदेवस्वामीथी मांडी आजसुधी तेवखते वासक्षेप नखायछे अने तेवात श्रीजैनशास्त्रमा घणे ठेकाणे छे. ६९ प्रश्न-ज्योतिष्क जिनालयोनुं मान केवीरीते समजवु ? उत्तर--श्रीलोकप्रकाशमां श्रीविनयविजयोपाध्यायजी कहे छे के ज्योतिष्कजिनालयोनुं मान प्राये कोइपण जिनागममां उपलब्ध थतुंनथी तेथी अमोएपण कधुनथी. तेपाठ नीचेपमाणे छे. . तथाचतत्पाठः "ज्योतिष्कगतचैत्यानांनमानमुपलभ्यते ॥ प्रायःक्वाप्यागमेतस्मादस्माभिरपिनोदितम्॥१॥" ७० प्रश्न-श्रीजिनमन्दिरमा चैत्यवन्दना क्यांबेसीने थाय ते कहो. उत्तर--जेपुरुषवर्गछे, ते श्रीजिनप्रतिमानी जमणीबाजु उत्कृष्टथी ६० हाथ, जघन्यथी ९ हाथ वेगळो बेसी चैत्यवन्दना करे. शाथीके श्वासोच्छ्वासादिकना कारणथी उत्पन्न थती आशातनाने दुरकरवा माटे एवीरीते स्त्रीवर्ग आश्रि वातजाणवी. फक्तविशेष एटलोके स्त्रीवर्गछे ते श्रीजिनमतिमानी डाबीवाचें बेसे. इत्यादि वात श्रीप्रवचनसारोद्धारवृत्तिमां छे. तेनी मूलगाथा आ प्रमाणेछे. तथाचतद्गाथा "दाहिणवामंगठिओनरनारिंगणाभिवंदएदेवे उक्किठसठिहथ्थुग्गहेजहन्नेणंकरनवगे ॥ १॥" Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयः प्रकाशः ( ७३ ) ७१ प्रश्न+इरियावहिपडिकमीने चैत्यवन्दना थाय के केम ? उत्तर——-जे उत्कृष्टचैत्यवन्दनाछे, ते इरियावहिपडिकमीने थाय अने जे जघन्य, मध्यम चैत्यवन्दना छे, ते इरियावहिपडिकम्या विनापण थाय. यदुक्तंश्रीप्रवचनसारोद्धावृत्तौ . “उत्कृष्टाचैत्यवन्दनैर्यापथिकीप्रतिक्रमणपूर्विकैवभवतिजघन्यमध्यमेतुचैत्यवन्दनेऐर्यापथिकीप्रतिक्रमणमन्त रेणापिभवतः इति श्रीमतपागच्छेनेक गुरुगुणगणालङ्कृतपण्डितश्रीमद्रूपविजयगणिवर्य्यशिष्यपण्डितश्रीकीर्त्तिविजयगणिशिष्यपण्डितश्रीकस्तूरविजयगणिशिष्यपण्डितश्रीमणिविजयगणिशिष्यपं० श्री शुभ विजयगणिशिष्यमु० श्रीलक्ष्मीविजयेनविर चितेश्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपेद्वितीयः प्रकाशः "" Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७४ ) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. ॥ अथ तृत्रीयः प्रकाशः ॥ नमस्कृत्य जगन्नाथं जगत्पूज्यं जिनेश्वरम् ॥ ग्रन्थस्यास्वप्रकाश तृतीयञ्चतनोम्यहम् ॥ १ ॥ १ प्रश्न - श्रीजैनमार्गमां जीवना केटला भेद छे ? . उत्तर - बे. संसारी जीव, अने मोक्षना जीव. १२ प्रश्न - संसारी जीव, अने मोक्षना जीव, कया समजवा ? उत्तर - चार गतिरूप संसारमां जे रह्या छे, ते संसारी जीव जाणवा, अने ते अनन्तानन्त छे. अने चारगतिरूप संसारमांथी नीकळी पांचमी मोक्षगतिने जे पाम्या छे, ते मोक्षना जीव जाणवा. ते एक निगोदने अनन्तमे भागे अनन्ता छे. ३ - संसारीजीवना अने मोक्षजीवना अनन्तज्ञानादिक भावप्राणमां तफावत हशे ? उत्तर - हा, संसारी जीव कर्षसहित छे, तेथी सेना भावमाणमलिनछे निर्मल नथी, अने मोक्षजीव कर्मरहित छे. तेथी तेना भावप्राण अत्यन्त निर्मल छे. ४ प्रश्न - जीवोने कर्मसंयोग क्यारे थयो ते कहो ? उत्तर - प्रवाहनी अपेक्षाए करी जीवोने कर्मसंजोग अनादिकाळनो छे. " अणाइयंतंपवाहेण " इति व० नवो संयोग नथी के dit आदि कहीए. ५ प्रश्न - प्रवाहनी अपेक्षाए करीने पण जीवोने कर्मसंयोगसादि छे एम आपणे मानीए तो केम ? Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयःप्रकाशः ( ७५ ) उत्तर-ना, एम न मान. एम मानीए तो पूर्वे जीवो कर्मरहित निर्म ल हता पाछळथी कर्मकर्याथी कर्मसंयोगने पाम्या छे, एम आपणे मानवु जोइशे. अने एम मानवाथी कर्मरहितनिर्मलमुक्तजीवोने पण कर्मसंयोगनो संभव थशे. अने तेम थवा. थी मुक्त जीवोने अमुक्तता प्राप्त थशे. माटे एवी रीते मानवू ते योग्य न गणाय, किन्तु प्रवाहनी अपेक्षाए करी जीवोने कर्मसंयोग अनादिकाळनो छे, नवो संयोग नथी एम मा नवू एज योग्य गणाय. ६ प्रश्न-जीवोने कर्मसंयोग जो अनादिकाळथी छे, तो ते कर्मनो वियोग पाछो शाथी थाय छे ? उत्तर-जेम कांचन अने उपलनो संयोग अनादिकाळथी छे तोपण अग्नि प्रमुख सामग्रीवडे करी उपलनो वियोग थाय छे. तेम जीवोने पण सम्यग् ज्ञानदर्शनचारित्रनी प्रबळतारूप अ. ग्निए करीकर्मरूप मलनो वियोग थाय छे. यदाहमहाभाष्यकारश्रीजिनभद्रगणिक्षमाश्रमणः " जहइहयकंचणोवलसंजोगोणाइसंतइगओवि ॥ वुच्छिज्जइसोवायंतहजोगोजीवकम्माणं ॥१॥" ७ प्रश्न-सर्व जीव आश्रि कर्मसंयोग अनादिसान्त छे के केम ? उत्तर-ना, भव्यजीव आश्रि अनादिसान्त छे. अभव्य जीव आश्रि " आत्माकाशयोगवत् " अनाद्यनन्त छे. १ पाषाण ( पृथ्वीकायनो एक भेद.) Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) श्रीमश्रोत्तरपदोपे. ८ प्रश्न-जो भव्यजीव आश्रिकर्मसंयोग अनादिसान्त छे तो सर्व भव्यजीवो मोक्षे जवाथी काले करी भव्यजीव रहित आ लोक थशे? उत्तर-ना, शाथी के अनन्त एवा अतीतकाळे अनन्ता भव्यजीवो सिद्धिवर्या छे तोपण ते सर्वे एक निगोदने अनन्तमे भागे जाणवा तेमज अनन्त एवा अनागतकाले पण अनन्ता वीजा भव्यजीवो सिद्धि घरसे ते पण समुदित सर्वे एक निगोदने अनन्तमे भागेज जाणवा. अने तेथी हवे एवो कोइ काल नथी के जे काले सिद्धना जीवो वृद्धि पाम्या थका एक निगोदना अनन्तमा भागथी अधिका थाय. ज्यारे श्री जिन भगवान् पासे कोइ ते संबधि प्रश्न करे त्यारे श्रीजीनभगवान् उसर एवोज आपे के एक निगोदनो अनन्तमोभाग सिद्धि वर्यो छे. माटे कोइ काळे भन्यजीव रहित आ लोक नहिं थाय. ___ तथाहिश्रीलोकप्रकाशे. “अनन्तेनापिकालेनयावन्तःस्युःशिवंगताः॥सर्वेप्येकनिगोदैकानन्तभागमिताहिते॥१॥ कालेनभाविनाप्येवमनन्तामुक्तिगामिनः॥ चिन्त्यन्तेतैःसमुदितास्तथापिनाधिकास्ततः॥२॥ एवञ्च ॥ नतादृग्भविताकालः सिद्धाःसोपचयाअपि ॥ यत्राधिकाभवन्त्येकनिगोदानन्तभागतः ॥ ३ ॥ तथाहुःजइयाहोईपूच्छाजिणाणमग्गंमिउत्तरंतइया ॥ इक्कस्सनिगोअस्सयअणंतभागोसिद्धिगओ॥ ४॥" Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयःप्रकाशः (७७) तथाध्यात्मसारेपि. " भव्योच्छेदोनचैवंस्याद्गुर्वानन्त्यानभोंशवत् ।। प्रतिमादलवत्वापिफलभावेपियोगतः ॥ १॥ नैतवयंवदामोयद्भव्यःसर्वोपिसिध्यति ॥ यस्तुसिध्यतिसोवश्यंभव्यएवेतिनोमतम् ॥ २॥" विस्तारवात श्रीभगवतीसूत्रमा ज्यां जयंतीश्राविकानो अ धिकार छे त्यांथी जाणवी. ९ प्रश्न-निगोदकोने कहीए ? उत्तर--अनन्ता जीवोना एक साधारण शरीरने निगोद कहीए. तेवा असंख्याता निगोदना समुदायने एक गोलोकहीए, अने तेवागोळा आलोकमां लोकाकाशप्रदेश प्रमाणे असंख्याता छे. - यदुक्तंश्रीसंग्रहणीसूत्रे. "गोलायअसंखिज्जाअसंखनिग्गोयओहवइगोलोइकिकंमिनिगोएअणंतजीवामुणेयवा ॥१॥" .... अत्र विशेष विषय श्रीप्रज्ञापना, लोकप्रकाशादियी जाणवो. १० प्रश्न-आलोकमां अभव्य जीवो केटलाछे ? १ निगोदना बे भेदछे सूक्ष्म अने बादर, तेमां चर्मचक्षुए करीजे अदृश्य छे ते सूक्ष्म अने जे दृश्यछे ते बादर के, जे कंद वीगेरे अनंत काय वनस्पतिछे ते, ... Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७८ ) श्रीमश्नोत्तरमदीपे. उत्तर -- जघन्ययुक्तचोथे अनन्ते कह्या छे. तेथीते अभव्य जीवो अनन्ता छे. अने जघन्ययुक्तानन्तनु स्वरूप चोथा कर्मग्रन्थबी अथवा लोकप्रकाशथी जाणवुं. ११ प्रश्न - अभव्यजीवो कोइकाले ओछावधता थता हशे ? उत्तर -- ना, कारणके जे अभव्यजीवोछे ते भव्य न थाय, अने जे भव्य जीवोछे ते अभव्य न थाय तोपछी अभव्य जीवोने ओछा बघतानी क्यां वातरही. १२ प्रश्न- भव्य, अभव्य जीवनुं लक्षणशुं ? उत्तर -- हुं भव्यछं अथवा अभव्यर्छ. एम पोताना अन्तःकरणमां जे जाणे ते नियमाभव्य जीवजाणवो कारणके अभव्यजीबने एवी शङ्काहोतीनथी वश एजभव्य अभव्यजीवनुं लक्षण जाणवुं. यदुक्तंश्रीआचाराङ्गसूत्रबृहद्वृत्तौ . अभव्यस्यहिभव्या भव्यत्वशङ्कायाअभावात् १३ प्रश्न - अभव्यजीव भावथी " पादपोपगमन " अनशन करे ? उत्तर - द्रव्यथी करे भावथी न करे. १४ प्रश्न - अभव्यजीव चारित्र ग्रहण करे ? उत्तर -- हा, द्रव्यथी अनंती वार ग्रहण करे. परन्तु मोक्षे न जाय फक्त क्रियाबले करी नवमायैवेयक सुधीजाय. १५ प्रश्न - अभव्यजीवना प्रतिबोधेला भव्यजीवो मोक्षे जाय ? 66 "" १ पृथ्वीउपर छेदाइपडेलवृक्षनी माफक अत्यन्त स्थिरपणे जेमां रहेवायछे ते " पादपोपगमन " अनशन जाणवुं. Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय प्रकाशः ( ७९ ) उत्तर--हा, भव्यजीवना प्रतिबोधेलामोक्षजाय तेनाथी अभव्यजीवना । प्रतिबोधेला अनन्तगुणा मोक्षे जाय. ए अधिकार नयचक्रमांछे. १६ प्रश्न-प्रसिद्धथएला अभव्यजीवो केटलाछे ? . उत्तर--" संगम १ कालयसूरि २ कपिला ३ अंगार ४ पालयादोवि ६ ए सत्त अभव्वा उदायी निवमारओ ७ चेव ॥१॥ एउक्तगाथामां कहेला एवा आ चोवीशीमां प्रसिद्धथएला अभव्यजीवो सात छे, ते नीचेप्रमाणे, १ लो-संगमोदेवके जेणे एक रात्रिमा श्रीमहावीरस्वामिने वीश __ उपसर्गकर्या ते. २ जो-कालकसूरीओ कसाई के जे राजगृही नगरीमा रही दररोज ५०० पाडानो वधकरतो हतो ते, ३ जी-कपिलादासी के जे श्रेणिक महाराजाना कहेवाथी पण पो ताने हाथे मुनिदान देवानुं नस्वीकारतीहवी ते. ४ थो-अङ्गारमर्दकाचार्य के जेने ५०० शिष्योहता ते. ५ मो-पालकपापीके जेणे श्रीमुनिसुव्रतस्वामिना शिष्य श्रीस्कन्द काचार्यना ४९९ शिष्योने तेमज स्कन्दकाचार्यने घाणीमा घाली पीलीनाख्या ते. ६ ठो-पालककुमार श्रीकृष्णमहाराजानो पुत्र के जेणे घोडानी लालचे प्रद्युम्नकुमार पहेलां श्रीनेमिनाथ भगवानने द्रव्य वन्दन कयु ते. ७ मो-उदायीराजाने मारनार “ विनयरत्नसाधु " आ उक्त सात प्रसिद्धअभव्यजीवोनी विस्तार वात शास्त्रान्तरोथी जाणवी... Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८०) श्रीप्रश्नोत्तरपदीपे. १७ प्रश्न-कोइ अभव्यजीव स्वर्गादि सुखनी इच्छावडे द्रव्यचारित्रने __.. पामीने भणेतो केटलं श्रुतपामे ? उत्तर--श्रीविशेषावश्यकसूत्रवृत्तिमां अज्ञानरूपे अगीयार अंग कह्यां... छे वळी खरतरगच्छीयश्रीक्षमाकल्याणकृतप्रश्नोत्तरसार्द्धश तकमां अङ्गारमर्दकाचार्यादिने पूर्वधरलब्धिविना सूत्रपाठ मात्र नवपूर्वान्तश्रुतकहेलुंछे. वळी कोइ ग्रन्थमां अभव्यजीवो पूर्वधरलब्धिविना पण भिन्नदशपुर्वान्तश्रुतने पामेछे. एमपण कहेलुछे. तत्त्वनीवात केवळी जाणे. १८ प्रश्न-अभव्यजीवो श्रीसिद्धाचलतीर्थनी स्पर्शना न करे एवा अक्षरो क्यांइछे ? उत्तर--हा, श्रीधनेश्वरसूरिविरचितश्रीशत्रुञ्जयमाहात्म्यमां छे. तद्यथा. “ अभव्या पापिनोजीवानामुंपश्यन्तिपर्वतम् ॥ लभ्यतेचापिराज्यादिनेदंतीर्थहिलभ्यते ॥१॥" परन्तु द्रव्यथी के भावथी स्पर्शना न करे. ए वात जे स मजवानीछे, ते बहुश्रुतने हाथ छे. १९ प्रश्न-श्रीजिनभगवाननी देशना अभव्योने तत्त्व जणावनारी केम नथी थती ? उत्तर--अभव्योने विषे श्रीजिनभगवाननी ते देशना जीवादिक नव तत्त्वोने जणावनारी जे नथीथती, तेमांते अभव्योज दुर्गुणपणुं छे, पण तेमां भगवाननो कंइ दोषनथी दृष्टान्ततरीके सूर्यनो उदयथए छते प्रकृतिथीज दुष्टकर्मोवाला Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयः प्रकाशः ( ८१ ) घुवडोने प्रकाश नहीं थतो, जमाएलो छे, तेनी पेठे अहीं पण जाणीलेवु. यदुक्तंदेशनाष्टके. अभव्येषुच भूतार्थायदसौ नोपपद्यते ॥ तत्तेषामेव दौर्गुण्यं ज्ञेयं भगवतोनतु ॥ १ ॥ दृष्टश्वाभ्युदयेभानोः प्रकृत्याक्लीष्टकर्मणाम् ॥ अप्रकाशोह्युलूकानांतद्ददत्रापिभाव्यताम् ॥ २ ॥ ” 66 वळी अभव्यजीवोने वन्ध्यास्त्री समान कह्याछे जेमके वन्ध्या स्त्रीने पुरुषनोयोग ने छते पण पुत्रोत्पत्ति न थाय. तेम अभव्यजीबोने श्रीजिनभगवाननी देशनानो योगबने छते पण तत्त्व बोध न थाय. २० प्रश्न - परमाधामि जीवो भव्यछे के अभव्य छे ? उत्तर -- श्रीहीर प्रश्नमां परमाधामि जीवोबन्ने प्रकारना कह्या छे. वळी ( ६२ ) मार्गणायंत्रमांपण अभव्यमार्गणामां परमाधामि जीवना भेद विकल्पे गणावेलाछे. अने अभभ्यकुलकम अभव्य जीवो परमाधामिपणे न उपजे एम कहुं छे. माटे तवनीवात बहुश्रुत जाणे. २१ प्रश्न - परमाधामि जीवो कोणछे ? उत्तर- भवनपतिविशेषअसुरकुमारमां रहेवा वाळा एक जातना देवो छे. अने ते नारकी जीवोने विविधप्रकारनी महा महा तीव्रवेदनाओ उपजावे छे. ११ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८२ ) श्रीमश्नोत्तर प्रदीपे. २२ प्रश्न - परमाधामि जीवोनी करेली वेदनाओ केटलीनरक पृथ्वीओ ने विषे छे ! उत्तर-- पहेली त्रण नरकपृथ्वीओने विषेछे, एम संग्रहणीसूत्रप्रमु खग्रन्थोमां निवेदन करेलुं छे. अने श्रीहेमचन्द्रसूरिविरचितत्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्रमां चोथी नरकपृथ्वीने विषेपण परमाधामिकृतवेदना कहीछे एम जाणवुं. २३ प्रश्न - मरण अवसरे जीवने शरीरमांथी नीकळवानो कयो सार्ग प्रभु भयो ? उत्तर - ते वखते कायामांथी नीकळवानो पांच प्रकारे मार्ग प्ररूप्यो छे. ते आ प्रमाणे - पगथी नीकले, साथलथी नीकले, हृदart नीकले, मस्तकथी नीकले, अने सर्वाङ्गथी नीकले. तथोक्तंश्रीस्थानाङ्गसूत्रे 'पंचविहेजी वस्सणिज्जाणमग्गेपण्णत्तेतंजहापाएहिं १ उरूहिं २ उरे ३ सिरेणं ४ सवंगेहिं ५ ॥ ” २४ प्रश्न - उक्त पांच प्रकारे जीव शरीरमांथी नीकलतो थको कइ गतिने पामे ? 66 उत्तर - पगथी नीकलतो थको जीव नरकगतिने पामे, साथलथी fined as fra faर्यग्गतिने पामे, हृदयथी नीकलतो थको जीव मनुष्यगतिने पामे, मस्तकथी नीकलतो थको जीव देवगतिने पामे, अने सर्वाङ्गथी नीकलतो थको जीव सिद्धिगतिने पामे. तथोक्तं पूर्वोक्तसूत्रे 66 “ पाएहिं णिज्जागमा गेनिरयगामी भवइ १ उरूहिंणि Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वतीय:प्रकाशः (८३) ज्जाणमाणे तिरियगामी भवइ २ उरेणंणिज्जाण माणेमणुयगामी भवइ ३ सिरेणंणिज्जाणमाणे देव गामी भवइ ४ सवंगेहिणिजाणमाणेसिद्धिगतिपज्ज वसाणे ५ पण्णत्ते" २५ प्रश्न-स्त्रीए प्रार्थना करेलो पुरुष केवो जाणवो ? उत्तर-न करवानुं पण करे तेवो जाणवो. अत्र राजा भोज तथा कालिदासकवितुं दृष्टान्त जाणवू अने ते दृष्टान्त नीचे मुजब-धारा नगरीने विषे एक अतिरूपवती वेश्या रहेती हती तेमां ते नगरीनो राजा भोज तथा कालिदासकवि ए बे घणा आसक्त थया हता. एक समये कालिदासना कहेवाथी ते वेश्या, एवी हठमां आवी के भोजराजाने कयु के, आजतो मारूं कहां करवू पडशे के तमो गधेडानीपेठे चारे पगे थइने तमारा उपर हुं बेसुं त्यारे तमारे आ घरना चोकमां भ्रमण करतां जq ने घोडानीपेठे खुंखारा करवा. तेम करशो तोज मारा अंगनो संग थशे. पछी राजाए पण आ कालिदासनुं काम छ एम स्वीहठ जाणी तेम कबूल थइ ते वात करी. पछी राजाए वेश्याने शीखव्यु के ज्यारे कालिदासकवि तारी पासे आवे त्यारे डाढी मुछो मुंडावी तारो संग करे ते वात कबूल थाय तोतो मारे कोइ प्रकारनो शोक न रहे. पछी ते वात तेणीए कबूल करी. पछी ज्यारे कालिदास आव्या त्यारे वेश्याए ते वात कबूल करावी, कालिदासे डाढी मुछो मुंडावी वेश्याने प्रसन्न करी. पछी कालिदास ज्यारे राजसभामां आव्या त्यारे भोजराजाए कविनी मस्करी करी के, हे Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८४) श्रीपश्नोत्तरप्रदीपे. कविश्रेष्ठ कालिदास तमोए कया पर्वमां मुंडन कराव्युं त्यारे कालिदासे कयुं के जे तीर्थक्षेत्रमा जे पर्वमां गधेडा, घोडानीपेठे खुंखारता हता ते तीर्थक्षेत्रमा तेज पर्वमां अमारु मुंडन थयुं छे. एवो उत्तर श्लोकमा आप्यो. ते श्लोक आ प्रमाणे"कालिदास कविश्रेष्ट कुत्र पर्वणि मुंडनम् ।। अनश्वा यत्र हेषन्ते तत्र पर्वणि मुंडनम् ॥ १॥" माटे स्त्रीनी प्रार्थनाथी न करवानुं पण पुरुषो करे छे. विस्तारवात भोजप्रबंधमां छे. २६ प्रश्न-शुक्लपाक्षिक, अने कृष्णपाक्षिक जीवोकोने कहीए ? उत्तर-कंइ न्यूनअर्द्धपुद्गलपरावर्त्तसंसार छे बाकी जे जीवाने ते शुक्लपाक्षिक जाणवा अने तेनाथी अधिकसंसारवाला जे जीवो छे, ते कृष्णपाक्षिक जाणवा. उक्तञ्चतदेवश्रीप्रज्ञापनावृत्तौ. " जेसिमवट्ठोपुग्गलपरियट्टोसेसओयसंसारो ॥ तेसुक्परिकयाखलुअहिएपुणकण्हपरिकओ॥१॥" __ आ ठेकाणे पाठान्तरवात घणी छे, ते पण्डितश्रीवीर विजयगणिकृतश्रीपश्नचिन्तामणिग्रन्थथी जाणवी. २७ प्रभ-कृष्णपाक्षिक जीवो कइ दिशाए उपजे छे ? . उत्तर-घणुकरीने दक्षिण दिशाए उपजे छे.... तथाहिश्रीप्रज्ञापनासूत्रवृत्तौ. "कृष्णपाक्षिकाश्चप्राचुर्येणदक्षिणस्यादिशिसमुत्पद्य१ पुलपरावर्त्तस्वरूप कर्मग्रन्थादिकथी जाणवू. Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सृतीयःप्रकाशः (८५) न्तेनशेषासुदिक्षुतथास्वाभाव्यात्तचतथास्वाभाव्यंपूर्वाचापैरेवंयुक्तिभिरुपातेतद्यथाकृष्णपाक्षिकादीर्घतरसंसार-- भाजिनउच्यन्तेदीर्घतरसंसारभाजिनश्चबहुपापोदयाद्भव-- न्तिबहुपापोदयाश्चक्रूरकर्माणःक्रूरकर्माणश्चप्रायस्तथास्वा. भावात्तद्भवसिद्धिकाअपिदक्षिणस्यांदिशिसमुत्पद्यन्तेनशेषासुदिक्षुयतःउक्तंपायमिहकूरकम्माभवसिद्धियाविदाहिण ल्लेसुनेरइयतिरियमणुयासुराइठाणेमुगच्छंति ॥१॥" २८ प्रश्न-मुनिमहाराजो कइ दिशा सन्मुख रही आवश्यक क्रिया करे? उत्तर-पूर्वदिशा अथवा उत्तरदिशा सन्मुख रही प्रतिक्रमण करे. यतःप्रोक्तम्. “पुवाभिमुहाउत्तराभिमुहाआवस्सयंपकुवंति" इति साधुदिनकृत्येतथैवश्रीस्थानाङ्गदितीयस्थानेपि २९ प्रश्न-मुनिमहाराजोए केडे कंदोरोबांधवो कया शास्त्रमा कहेलो छ ? उत्तर-श्रीआवश्यकवृत्ति, धर्मरत्नप्रकरणत्ति, श्रीउत्तराध्यय नवृत्ति, वीगेरेमां कहूंछे के श्रीआर्यरक्षितमूरिए, साधु थएला एवा पोताना पिताश्रीने कंदोरो बांध्यो छे ते आचरणाए करी हालमां पण मुनिमहाराजो केडे कंदोरो बांधे छे एवो वृद्धवाद छे. ३० प्रश्न-साधुओने भिक्षार्थे शय्यातरने घरे जवू कल्पे के केम ? उत्तर-उत्सर्गमार्गआश्रि न कल्पे परन्तु “दुविहे गेलन्नंमी०" ए गाथामां कहेल तथाविध कारणोनो सद्भाव छतां कल्पे ? ३१ प्रश्न-केटला कोशथी आणेलो अशनादिक आहार साधुओने कल्पे ? उत्तर-बे कोशमध्येथी आणेलो अशनादिक आहार साधुओने क ल्पे, पण बे कोशउपरांतथी आणेलो न कल्पे. कारण के ते मार्गातीत थवाथी अकल्पनीय छे, Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८६) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. यदुक्तंश्रीप्रवचनसारोद्धारे. “ असणाइयंकप्पइकोसदुगभंतराओआणेउं ।। परओआणिज्जतंमग्गाईयंतमकप्पं ॥१॥” ३२ प्रश्न-पहेले पहोरे लावेलं जे अशनादि, ते मुनिओने चोथे पहोरे - भोजन करवाने कल्पे ? उत्तर-त्रण पहोर सुधी भोजन करवाने कल्पे पछी कालातिक्रान्त थवाथी चोथे पहोरे भोजन करवाने न कल्पे. ___यदुक्तंश्रीप्रवचनसारोद्धारे. - “पढमप्पहराणीयंअसणाइजईकप्पएभोत्तुं॥ ... जावतिजामेतिजामेउटुंतमकप्पंकालइकत्तं ॥१॥" तथैव श्री भगवतीसूत्रेपि. ३३ प्रश्न-संखडि प्रत्ये भिक्षार्थे साधुने जq न कल्पे त्यां "संखडी" . एटले शुं. अने तेनी केवी रीते व्युत्पत्ति थाय छे ते फरमावो. उत्तर-ओदनपाकरूप, अथवा जेमां घणा माणस जमनार होय एवा जमणवाररूप "संखडि" जाणवी. इतिश्री कल्पवृत्यादौ. .. . तद्यथा. .. "ओदनपाकरूपाजनसंकुलजेमनवारादिरूपावा-- संखडिः ” विशेषोत्रश्रीकल्पवृत्त्यादिभ्योवसेयः “संखंडथतेविराध्यतेप्राणिनोयत्रसासंखडिः” इतिश्रीआचाराङ्ग सूत्रहवृत्तौ. ... जेमा घणा प्राणिओनो नाश थाय ते " संखडि" आर्वीतेनी य्युत्पत्ति श्रीआचारङ्गसूत्रनी टीकामां करीछे. माटे हेभव्यो माता, Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयःप्रकाशः (८७). पितादि पुढे संखडि ( जमणवार) न कराय तोज श्रेष्ट कहेवाय किम्बहुनेत्यलम्. ३४ प्रश्न-परिहारविशुद्धिकमुनिमहाराजोने निद्राहोय ? उत्तर-ते मुनिमहाराजो प्राये अल्पनिद्रावाला होय यतः "पाय अप्पानिदा" इति वचनात्. ३५ प्रश्न-अगीतार्थमुनि एकाकीपणे विचरे ? उत्तर-श्रीजैनशास्त्रमा गीतार्थमुनिनो तथा गीतार्थमुनिनिश्राए अगीतार्थमुनिनो विहार कह्योछे पण केवलअगीतार्थमुनिनो बिहारकह्यो नथी शाथीके केवलअगीतार्थमुनिविहारमा श्रीतीर्थडूर गणधर भगवाने अनेक दोष कह्याछे. माटे बे प्रकारना विहार सिवाय त्रीजो वि० नथी क० यतः प्रोक्तम् “गीयथ्योयविहारोबीओगीयथ्थमीसिओचेव ॥ इत्तोतझ्यविहारोणागुन्नाओजिणवरेहिं ॥ १॥" पाठान्तरे “गीयथ्थनीसिओभणिओ” इति ३६ प्रश्न-स्थविरकल्पिकमुनिमण्डलीमां " वृषभ " कोने कहेलछे ? उत्तर-श्रीमवचनसारोद्धारवृत्तिमां गीतार्थने " वृषभ " कहेलछे. ३३७ प्रश्न-संवेगी छतापण जोते अगीतार्थ होयतो तेनीपासे आलोयणा लेबीके केम ? उत्तर–ना, नलेवी. कारणके ते स्याद्वादमार्गनो अजाण होवाथी यथार्थ चारित्रनी शुद्धिने जाणे नहीं, तेथी न्यूनाधिक आलोयणा आपे, जेथी ते पोताने तथा आलोयणा लेनारने उलटा संसारमा पाडे. Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४८) श्रीपश्रौत्तरप्रदीपे. यतः प्रोक्तम् "अगीयथ्योनविजाणइसोहिंचरणस्सदेइऊणाहि ॥ तो अप्पाणं आलोयगंचपाडेइसंसारे ॥१॥" शि०--त्यारे कोनीपासे आलोयगा लेवी ? गु०-पोताना गच्छना आचार्यादिक पासे लेवी. तेमने अभावे एक सामाचारीवाला बीजा गच्छना आचार्यादिक पासेले वी. तेमना अभावे अन्य सामाचारीवाला संवेगीगच्छना आचार्यादिक पासेलेवी. तेमने अभावे गीतार्थपार्थस्थनी पासेलेवी. तेनो अभाव होयतो गीतार्थ सारूपिक ( स्वेत वस्त्र धारण करनार, मस्तके केशनहीं राखनार, काछडी न हिं वालनार, रजोहरण तथा ब्रह्मचर्य विनानो, तेमज स्त्री वगरनो, अने भिक्षाग्राही ) तेनी आगल लेवी. तेनोपण अभावहोय तो पश्चात्कृतपासे (गीतार्थचारीत्रतजीने थएला गृहस्थनी पासे ) आलोयणा लेवी. तेने अभावे राजगृही वीगेरे नगरीओनी बहार गुणशिलादिस्थानमा ज्यां अर्हन्त, गणधरादिकोए घणीवार प्रायश्चित्त आपलं जे देवताए जाणेलंहोय, ते ठेकाणे जइ, ते सम्यग् दृष्टि देवताने, अमादि तप आराधन वडे प्रत्यक्ष करी तेनी आगळ आलोयणा लेवी. कदी जो ते देवता चवी जइने बीजो उत्पन्न थयो हशे, तो ते महाविदेह वीगेरे क्षेत्रमा अर्हन्तभगवानने पूछी आवीने प्रायश्चित आपशे. जो तेनो पण अभाव होय तो अहंत्यतिमानी आगळ आलोयणा करीने पोतानी मेळे प्रायश्चित अङ्गीकार कर. हवे जो तेनो पण अभाव होयतो पूर्व, अथवा उत्तरदिशा तरफ मुख राखी अर्हन्तसिद्धोनी समक्ष पण आलोयणा लेवी. Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयप्रकाशः (८९) यतःप्रोक्तम् "आयरिआइसगच्छेसंभोइअइअरगीयथ्थपासथ्यो। साख्वीपछाकडदेवयपडिमाअरिहसिद्धो ॥१॥" अत्र विशेषविस्तरार्थिओने श्रीश्राद्धजीतकल्पवृत्तिवीगेरे ग्रन्थो जोवाथी घणीज वधारे वात समजवामां आवशे. ३८ प्रश्न-कोइ लज्जादि कारणथी गुरु पासे करेल पापकर्मनी आ लोयणा न ले तो ते आराधक कहेवाय के कम ? उत्तर-ना, ते आराधक न कहेवाय. सल्यसहितने आराधकपणुं नथी कां. यतः "लज्जाइगारवेणंबहुस्सुअमएणवादुचरियं ॥ जोनकहेइगुरुगंन सोआराहगोभणिओ॥१॥” इतिशास्त्रवचनात् ३९ प्रश्न-आहारकलब्धिवंत चौद पूर्वधर मुनि भवभ्रमण करे ? उत्तर-हा, प्रमादपरवशथया थका भवभ्रमण करे. यतः "चउदसओहीआहारगाविमणनाणवीयरागावि॥ हुंलिपमायपरवसातयणंतरमेवचउगइया ॥ १॥" इतिवचनात्. ४० प्रश्न-साध्वीने नवकल्पविहार होय? . उत्तर-पञ्चकल्पविहार होय शाथी के चार मास प्रमाणवाळो एक Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीम श्रोत्तरप्रदीपे. वर्षाकल्प, अने बीजा चारकल्प, साध्वीने बेमासवडे एक कल्प गणाय. एम श्रीवृहत्कल्प, पञ्चकल्पचूर्णिमां क० तथाचतत्पाठः अज्जाणंपुणपंचवसहीओघेतवाओकम्हाजम्हा ( ९० ) "" तासिंदुमासंकप्पोइत्यादि ” ४१ प्रश्न - साधुओं तथा साध्वीओ रात्रिए वसतिद्वार बंध करे के नही ? उत्तर - साध्वी ओए रात्रिए अवश्य कमाड प्रमुखवडे करी वसतिद्वार बंध कर अने जो बस्तिद्वार बंध न करे तो प्रत्वनीक, चौर, श्वापद, पारदारिक, इत्यादि दुष्ट जीवोनो प्रवेश थवाथी प्रायश्चित आवे, एम कहेलुं छे. हवे जे जिनकल्पिक साधुओ छे, ते सर्वथा वसतिद्वार बंध न करे, शाथी के ते निरपवादानुष्टान विषे तत्पर छे. वळी श्रीजिनभगवाननी तेमने विषे तेवी आज्ञा छे. अने जे स्थविरकल्पिक साधुओ छे, ते तो कारण छते यतनावडे करी वसतिद्वार बंध करे. इत्याद्यधिकं श्रीवृहत्कल्पभाष्यवृत्योर्द्वितीयखण्डेकथितमस्ती - तिज्ञेयम्. ४२ प्रश्न - मुनिमहाराजो परस्पर केटलुं अन्तर राखी शयन करे ? उत्तर - उत्कृष्टथी वे हाथनुं परस्पर अन्तर राखी शयन करे, एम जो न करे तो अनेक प्रकारना दोषनी संभव थाय छे इत्यादि. ४३ प्रश्न - मुनिमहाराजो पात्रांथी केटले दूर शयन करे ? उत्तर - उंदर वीगेरे जीवोने निवारण करवा वीश अंगुल दूर शयन करे तेथी अधिक दूर शयन न करे आ ठेकाणे घणो विस्तार छे ते श्रीभद्रबाहुस्वामिकृत ओधनियुक्तीथी जाणवो. Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयः प्रकाशः ४४ प्रश्न + महाविदेहक्षेत्रमां केदलां चारित्र पामीए ? उत्तर—ण चारित्र ( सामायिक, सूक्ष्म सम्पराय, अने यथाख्यात) पामीए, परन्तु बीजुं छेदो पस्थापनीय, अने त्रीजुं परिहार विशुद्धिक, ए वे चारित्र न पामीए. यतः “तिन्नियचारिताइंबावीसजिणाणएख एभर हे ॥ तहपंचविदे सुबीयं तईयंन विहोइ ॥ १ ॥ " इतिवचनात्. ( ९१ ) ४५ प्रश्न - मुनिओने व्रीहिपलाल कल्पे ? उत्तर - हा, कारणे यतनापूर्वक सालिप्रमुखधान्यपलाल ( तृण विशेष ) कल्पे. यतः “ तणपणगंपुणभणियंजिणेहिंजियरागदोषमोहेहिं साली वीहियकोद्दवरालयरण्णेतणाईच ॥ १ ॥ " इतिवचनात्. दृष्टान्त तरीके श्रीकेसीगणधरे श्रीगौतमगणधरने पलाल आसनपर बेसार्या छे एम श्रीउत्तराध्ययनसूत्रनी टीकामां शुं छे. ४६ प्रश्न – मुनिओ धर्म पादुका पहेरे ? उत्तर - ना, न पहेरे " श्रमणाअनुपानञ्चरणाः " इतिवचनात्. पण तथाविधकारणे लुगडाना मोजां पहेरे छे. अने श्रीमवच Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमश्नोत्तरमदीपे. नसारोद्धारपरथी तो एम पण समजाय छे के धर्मपादुका पण पहेरे. ४७ प्रश्न - काणा माणसने दीक्षा अपाय के केम ? उत्तर- " क्वचित्काणोभवेत्साधुः क्वचित्खल्वाटनिर्धनः ॥ दीर्घदन्तःक्वचिन्मूर्खःक्वचिद्गानवती सती ॥१॥ पुनः षष्टिर्वामन के दोषाअशी तिर्मधुपिङ्गले ॥ शतञ्च टुंटमुंटेषुकाणेसंख्यानविद्यते ॥ १ ॥ " एम शास्त्रोक्तवचनप्रमाणथी काणों माणस दोषनिधान, तेमज शासननिंदा करावनार लज्जामणो गणाय छे. तेथी तेने व छे. वास्ते दीक्षा न अपाय. ए विना बीजा पण दीक्षाने अयोग्य घणा छे. ते वात श्रीप्रवचनसारोदारनी टीकाथी जाणवी. ( ९२ ) "" ४८ प्रश्न - केटलाक कहे छे के साधुना गुणनी परीक्षा करीनेज साधुने वांदवा, अन्यथा न वांदवा तेनुं केम ? उत्तर - श्री जैनशास्त्रमां एवो एकान्त नियम नथी. वास्ते जे एवी ते बोलनारा छे ते विविध श्री जैनशाखना अनभिज्ञ जाणवा. अर्थात् श्रीजैनस्याद्वादमतना जे जाणकार पुरुषो छे ते एम नथी बोलता परन्तु जे अज्ञानि जीवो छे तेज एम बोले छे, इति रहस्यार्थः ४९ प्रश्न - " शिष्यक स्थापना कल्प " कोने कहीए ? उत्तर - जेणे पिण्डनिर्युक्तिप्रमुख शास्त्राभ्यास कर्यो नथी, ते आहारना दोषने (४२ दोषने ) न जाणे, तेवा नवा शिष्ये १ जेने माथे टाल होय ते खल्वाट कहेवाय. Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयः प्रकाशः ( ९३ ) लावेलो आहार बीजा साधुओने न कल्पे ते " शिष्यक स्थापना कल्प " कहेवाय. 66 यदुक्तंश्रीदशवैकालिकदीपिकायाम्. ये नवीन शिष्पेण पिण्डनिर्युच्या दिपठितं नास्तिसआहारदोषान्नजानातितेनानीत आहार पिण्डोग्रहीतुंसा-धूनाम कल्पः सशिष्प कस्थापना कल्पइति ५० प्रश्न - दिक्षावसरे नूतन नाम स्थापवाना अक्षरो क्यांई हशे ? उत्तर — हा, श्रीविचाररत्नाकरग्रंथमां, तेमज श्रीहरिभदसूरिकृत पंचवस्तुग्रंथमां छे जोवाथी समजाशे. ५१ प्रश्न - खरां क्षमतक्षामणा कोणे कर्या ? "" उत्तर - मृगावतीजीए कर्या के जेत्रिकरणशुद्धे इरियावहि पडिकमतां इरियावहिना १८२४१२० मिच्छामिदुक्कड देतां केवलज्ञानने पाम्यां. ते इरियावहिना १८२४१२० मिच्छामिदुकडना भेद केवी रीते थाय ते नीचे प्रमाणे -- सर्वे जीवना ५६३ भेद जाणवा. तेने “ अभिहया " सन्मुख आवतां हण्या, इत्यादि दशपदसाथे गुणतां ५६३० भेद थाय, तेने रागद्वेष साथै गुणतां ११२६० भेद थाय तेने मन, वचन, काया, साथे गुणतां ३३७८० भेद थाय, तेने पुनः करण, करावण, अनुमोदन साथे गुणतां १०१३४० भेद थाय, तेने अतीत, अनागत, वर्त्तमानकाल साये: गुणतां ३०४०२० भेद थाय, तेने अरिहंत, सिद्ध, साधु, देव, गुरु, अने आत्मा, ए छनी साथे गुणतां १८२४१२० मिच्छामिदुक्कडना भेद थाय. एम बीजाए पण ए रीते सर्व जीवनी साथे क्षमतक्षामणा करवां इतिरहस्यम् ५२ प्रश्न - छद्मस्थगुरु, केवल ज्ञानवाळी साध्वीने वांदे के केम ? Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९४ ) श्रीप्रश्नोत्तरपदीपे. उत्तर-श्रीअन्यकासुताचार्य, पोतानी पासे वैयावच्च निमिते रहे नारी पुष्पचूला महासतीसाध्वीने केवलज्ञाननी उत्पत्ति जाणे छते पण वंदना करी नथी एम श्रीआवश्यकसूत्रह त्तिपरथी समजाय छे. माटे छद्मस्थगुरु केवलज्ञानवाळी साध्वीने न वांदे. ५३ प्रश्न-नेत्रासनप्रमुखआसनपर मुनिओ बेसे? उत्तर-धर्मकथादिनिमित्ते राजकुळादिस्थाने प्रतिलेखनादिपूर्वक बेशे. ___एम श्रीदशवैकालिकटीकापरथी समजी शकाय छे. इत्यादि. ५४ प्रश्न-स्नातकमुनिना जे पांच भेद कह्या छे ते शुं संभवे ? उत्तर-श्रीभगवतीसूत्रमा स्नातकमुनिना जे पांच भेद कह्या छे ते शब्दनयनी अपेक्षाए कह्या छे. दृष्टान्ततरीके शक्र, पुरंदर, शब्दनी पेठे, माटे ए ठेकाणे संदेह करवा जेवू नथी. हा, जो अवस्थाभेदभेदपाडयाहोयतो संदेह करवा जेई रहे. पण तेम तो भेद पाडेला छेज नहीं अने ते संबंधी खुलासो स्यांज तेनी दीकामां करेलो छे. ते नीचे प्रमाणे. तद्यथा. "इहचावस्थाभेदेनभेदोनकेनचिवृत्तिकृतेहान्यत्रचन्थेव्याख्यातस्ततश्चेवंसंभावयामःशब्दनयापेक्षयैवलेषां भेदोभावनीयःशक्रपुरंदरखदिति” ५५ प्रश्न-श्रीस्थूलभद्रजीनी पांचमी बेननुं नाम शुं ? उत्तर-सेणा, अथवा एणा, एवं नाम छे.. यदुक्तंश्रीकल्पकिरणावल्याम. "सेणावेणेत्यादौकचित्सेणास्थानएणेत्यपि" Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय:प्रकाश ( ९५ ) ५६ प्रश्न-श्रीपन्नवणासूत्रना कर्ता श्रीश्यामाचार्यजी श्रीसुधर्मास्वामि थी केटलामे पाटे छे ? | उत्तर-२३ मे पाटे छे. एम श्रीपन्नवणास्त्रमा कहेलं छे. _____ तथाचतत्सूत्रम्. “वायगवखंसाओतेवीसइमेणधीरपुरिसेण॥ दुद्धरधरेणमुणिणापुवमुयसमिद्धबुद्धीणं ॥ १ ॥" एतत्सूत्रवृत्त्येकदेशोयथा. "त्रयोविंशतितमेनतथाचसुधर्मस्वामिनआरभ्य भगवानार्यश्यामस्त्रयोविंशतितमएव " ५७ प्रश्न-श्रीश्यामाचार्यजी कया महाराजाना शिष्य जाणवा ? उत्तर-श्रीनन्दीसूत्र तथा तपगच्छपट्टावलीवृत्तिना अनुसारे तत्वा र्थादिग्रन्थोना कर्ता श्रीउमास्वातिवाचकमहाराजनाशिष्य जाणवा अनेते श्रीवीरभगवानथी ३७६ वर्षे स्वर्गे गयाछे. यदुक्तं श्रीनन्दीसूत्रे " एलावच्चसगोत्तवंदामिमहागिरिमुहत्थिंच ॥ तत्तोकोसियगोत्तंबहुलस्सबलिस्सहं वंदे ॥ १॥" हारियगोत्तंसाइंचवंदिमोहारियंचसामज्जं ॥ वंदेकोसियगोत्तसंडिल्लंअज्जज्जीयधरं ॥ २ ॥" विस्तरस्तुतट्टीकायाम्. यदुक्तंश्रीतपगच्छपट्टावलीवृत्तौ. "श्रीआर्यमहागिरिशिष्यौबहुलबलिस्सहोयमलभ्रातरौ . Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीप्रश्नोत्तरपदीपे. तत्रबलिस्सहस्यशिष्यस्तत्त्वार्थादिग्रन्थकृत्स्वातिस्तस्या पिशिष्यः श्यामार्यःप्रज्ञापनाकृत्सचवीराच्छतत्रयाधिक षट्सप्ततिवर्षेःस्वर्गभाक्तच्छिष्योपिजीतमर्यादाकत्साण्डिल्पः ” इति. ५८ प्रश्न-श्रीदेवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणपूर्वे कोणहता ? उत्तर–श्रीमन्महावीरस्वामिनुं संहरण करनार. सौधर्मेन्द्रना पदातिकटकना अधिपति, “ हरिणैगमेषी " एवेनामे देव हता, ते त्यांथीचवी श्रीवीरशासनमां श्रीदेवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणथया, के जेमणे श्रीमहावीरनिर्वाणथी ९८० वर्षे पाठान्तरे ९९३ वर्षे पुस्वकारूढ को. ते संबंधी विस्तार वात श्रीकल्पकिरणावली, श्रीकल्पसुबोद्धिका, वीगेरे टीका ओमां छे. ५९ प्रश्न-अजीवसंयम तथा अजीवअसंयम तेशुं ! उत्तर-अजीवकाय एवां जेपुस्तकादिकोना ग्रहणपरिभोगनी निव तितेअजीवसंयम अने तेनाथीविपरित ते अजीवअसंयम एम श्रीठाणांगसूत्रनी टीकामां कहेल्छे. अने श्रीप्रवचनसारोद्धारनी टीकामां तो अजीवरूपपुस्तकादिकोने पण दुःषमाकालदोषथी तथाविधप्रज्ञा, आयु, श्रद्धा, संवेग, उद्यम, अनेबल, इत्यादि वडे हीन आजकालना शिष्यजनोना अनुग्रहार्थे प्रतिलेखनाप्रमार्जनपूर्वकयतनावडे धारण करवाथी अजीव संयम कह्योछे. ६० प्रश्न-अजीवरूपपुस्तकादिकना ग्रहण परिभोगथी आरंभ, समा रंभादिदोषो लागता हशे ? Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयःप्रकाशः (९७ ) उत्तर-हा, कारणके अजीवरूपपुस्तकादिकने विषे जे आश्रित जीवो होय, ते जीवो आश्रि आरंभसमारंभादिदोषो लागे छे. विशेषार्थिओए श्रीठाणांग सूत्रनी टीका जोवी. ६१ प्रश्न-पुस्तकादिक तो धर्मना उपकरण छे, एम कहीने ममत्वादि भावथी जेओ पुस्तकादिकोनो संग्रह परिभोग करे छे, ते ओने परिग्रहदोष लागतो हशे के कम ? । उत्तर-हा, धर्मोपकरणना छलथी ममत्वादि भावे पुस्तकादिकोने जेओ ग्रहण करनारा छे, तेवाओने उद्देसी परिग्रह वीगेरे घणा दोषो श्रीमुनिसुंदरमरिकृतश्रीअध्यात्मकल्पद्रुमग्रन्थमा कहेला छे. ते वांचवाथी बरोबर समजवामां आवशे. ६२ प्रश्न-मनना दंभनो त्याग कर्यो नथी ने तप, संयम, केशलोचा दिधर्मकर्मकरे तो ते फले ? उत्तर-मा, ते न फले. एवं महोपाध्यायश्रीयशोविजयगणिकृत श्रीअध्यात्मसारग्रन्थमा कथन छे. तथाचतद्ग्रन्थः " किंवतेनतपोभिर्वादंभश्चेन्ननिराकृतः ॥ किमादर्शनकिंदीपैर्यद्यान्ध्यंनदृशोर्गतम् ॥१॥" केशलोचधराशय्याभिक्षाब्रह्मवतादिकम् ॥ . दंभेनदुष्यतेसर्वत्रासेनेवमहामणिः ॥२॥ सुत्यजरसलांपट्यंसुत्यजंदेहभूषणम् ॥ सुत्यजाःकामभोगाद्यादुस्त्यजंदंभसेवनम् ॥३॥ इत्यादि” Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीम श्रोचरप्रदीपे. अत्र दृष्टान्त तरीके लक्ष्मणा साध्वीए घणो तप कर्यो. पण ते तप फळीभूत न थयो शाथी के तेना मननो दंभ गयो नहतो, वळी दंभी माणसं पोताना. आत्मानी प्रशंसा करतो थको परनी निंदामां तत्पर थइ महा कठिन कर्मने बांधे छे. अने बीजा भोळा लोकोने पोताने विषे ममत्वबुद्धि ( ९८ ) धावी मतांधकरी अनेक दुःखमयभवरूपसमुद्रमां गोथां खवरावे छे. माटे आत्मार्थिजीवोए अनर्थनिबंधनदभनो तेज बाह्यत्यागी भीमाणसनो पण त्याग करवो. अत्र कवानो एज तात्पर्यार्थ छे. ६३ प्रश्न - अनुक्रमे शुद्ध एवी अध्यात्मयोगक्रिया केटले गुणठाणे होय ? उत्तर - चोथा गुणठाणाथी मांडी यावत् चौदमा गुणठाणा सुधी होय. तथोक्तंश्रीअध्यात्मसारग्रन्थे.. अपुनर्बंधकाद्यावद्गुणस्थानंचतुर्द्दशम् ॥ क्रमशुद्धिमती तावत्क्रियाध्यात्ममयीमता ॥ १ ॥ " "" ६४ प्रश्न - कया जीवनी क्रिया अध्यात्मगुणवैरिणी जाणवी ? उत्तर - भवाभिनंदी जीवनी .. यदुक्तंश्रीअध्यात्मसारग्रन्थे. आहारोपधिपूजर्द्धिगौरवप्रतिबंधतः ॥ भवाभिनंदीयांकुर्यातक्रियांसाध्यात्मवैरिणी || १ || " (6 ६५ प्रश्न - भवाभिनंदीजीव केवो होय ? Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयप्रकाशः (९९) उत्तर-“क्षुद्रोलोभरतिर्दीनोमत्सरीभयवाशठः ॥ अ ज्ञोभवाभिनन्दीस्यानिष्फलारंभसंगतः॥१॥" इतिश्रीअध्यात्मसार श्लोकोक्तलक्षणवालो भवामिनदीजीव . जाणवो. ६६ प्रश्न-कया जीवनी क्रिया अध्यात्मगुणने वृद्धिकरनारी जाणवी ? उत्तर-" शान्तोदान्तःसदागुप्तोमोक्षार्थीविश्ववत्सलः॥ निर्दभायांक्रियांकुर्यात्साध्यात्मगुणवृद्धये ॥१॥' इतिश्रीअध्यात्मसारश्लोकोक्तलक्षणवाळाजीवनी क्रिया अध्यात्मगुणने वधारनारी छे इत्यादि. ६८ प्रश्न-समूर्छिमतिर्यश्चपञ्चेन्द्रियजीवोने छेल्लु एक संहनन अने संस्थान होय के केम? उत्तर-श्रीजीवाभिगमसूत्रना अभिप्राये करीने एक छेल्लु संहनन अने संस्थान जाणवू अने छठा कर्मग्रन्थना अभिप्राये . . . करीने तो छए संहनन अने संस्थान जाणवां. ६८ प्रश्न-देवताओने दांत तथा केश होय ? उत्तर-श्रीउववाइयसूत्रमा देवताओने दान्त तथा केश कहेला छे. तथाचतत्त्पाठः " पंडुरससिसकलविमलणिम्मलसंखगोखीरफेणदगरयमुणालियाधवलदंतसेढी ॥ तथाअंजणघणकसिणरुयगरमणीयणिद्धकेसा ” इति. अने श्री संग्रहणी सूत्रमा नथी कह्या. Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) श्रीप्रश्नोत्तरप्रीपे. तथाचतत्पाठः “ केसठिमंसनहरोमरहिया ” इति. अने वली श्रीजीवाभिगममूत्रनी वृत्तिमां तो देवताओने दांत तथा केश होय, पण ते वैक्रिय रूपे होय. स्वाभाविक रूपे न होय. शाथी के तेमनु शरीर वैक्रिय छे. एम कहेलुछे. तथाचतत्सूत्रवृत्तिपाठः "दन्ताःकेशाश्वामीषां वैक्रियादृष्टव्यानस्वाभाविकावैक्रियशरीरत्वादिति” ६९ प्रश्न-मेरू पर्वतना चोथा पण्डकवनमा व्यन्तरना आवासो हशे ? उत्तर-हा, त्यां पण तेमना आवासो छे.. यदुक्तंश्रीप्रज्ञापनावृत्तौप्रथमपदेव्यन्तरशब्दव्युत्पत्त्यवसरे. " आवासाःत्रिष्वपिलोकेषुततऊर्ध्वलोकेपण्डकवनादौ " ७० प्रश्न-अनुत्तरविमानना देवो श्रीशत्रुञ्जयतीर्थनी त्रिकरणयोगयी सेवाभक्तिकरे ? उत्तर-पोताना विमानमा रह्या थका मनेकरी भावभक्तिकरे. यदुक्तं श्रीशत्रुञ्जयमाहात्म्ये. “ अवेयकानुत्तरस्थामनसात्रिदिवौकसः ॥ । सेवन्तेयंसदातीर्थराजंतस्मैनमोनमः ॥१॥” . वळी ते देवो श्रीतीर्थडुरदेवना पांच कल्याणक अवसरे पण अत्रेनआने त्यां रह्या भावभक्ति करे इत्यादि. Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयःभकाशः (१०१) ७१ प्रश्न-देवताओने पांच पर्याप्ति कही तेनुंशुं कारण ? उत्तर-भाषापर्याप्ति अने मनःपर्याप्तिना समाप्तिकालान्तरने पाये शेषपर्याप्तिना समाप्तिकालान्तरनी अपेक्षाये अल्पपणुं छे तेथी ए बे पर्याप्तिने एकपणे गणी छे ते कारणयी देवताओने पांच पर्याप्ति कहीछे. एम श्रीराजमश्नीय (रायप्पसेणीय ) मूत्रत्तिमा आचार्यश्रीमलयगिरिजी महाराज फरमावेछे. तद्यथा. " इहभाषामनःपर्याप्तयोःसमाप्तिकालान्तरस्यप्रायः शेषपर्याप्तिकालान्तरापेक्षयास्तोकत्वादेकत्वेनविवक्षणमितिपंचविहाएपज्जत्तिएपज्जत्तिभावंगच्छइइत्युक्तमिति " ७२ प्रश्न-स्वर्गमा वनखण्ड वृक्ष पुष्प फलादिक जे कडुंछे ते पृथ्वी परिणामरूपे के वनस्पतिपरिणामरूपे समजबुं ? उत्तर-बन्ने परिणामरूपे समजवु. ७३ प्रश्न-स्वर्गमा पुष्करणी (वाव) वीगेरे स्थलेमच्छादिक, जे, कवाळे, ते जीवपरिणामरूपे छे, के ते आकारमात्रघरनाराओ छे ? उत्तर-पृथ्वीपरिणामरूपे आकारमात्रघरनाराओछे एम समजा. यछे शामाटे के देवलोकनी वावडीओमां मच्छादि जल चरजीवो कह्या नथी. यतः " सुरलोअवाविमझ्झेमच्छाइनथिजलयराजीवा " इतिवचनात्. Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०२ ) श्रीप्रश्नोत्तरपदीपे. ७४ प्रश्न-देव, देवीसाथे मूलशरीरे करी, के उत्तर वैक्रियशरीरेकरी भोगकर्म करे? .. उत्तर-जेवी पोतानी इच्छा ते प्रमाणे करे अर्थात् मूलशरीरे पण भोगकर्मकरे अने उत्तरवैक्रियशरीरे पण भोगकर्म करे एम श्रीभगवत्यादिजैनशास्त्रोमां काछे. तद्यथा. " यथेच्छयोभयथापिभोगोभवति ” इतिश्रीभगवत्यादिजैनशास्त्रेषु. ७५ प्रश्न-विजयराजधानीनो कील्लो केटलो उंचो कह्यो छे ? - उत्तर-श्रीजीवाभिगमसूत्रमा ३७॥ योजन उंचो कह्यो छे. अने श्री-समवायांगसूत्रमा ३७ योजन उंचो कह्यो छे. यदुक्तंश्रीजीवाभिगमसूत्रे. "सेपागारेसत्ततीसंजोयणाइंअद्धजोयणंचउहुँउ-- बत्तेणंप०” इति यदुक्तंश्रीसमवायाङ्गसूत्रे. “सवासुणविजयवेजयंतजयंतअपराजियासुराय-- हाणीसुपागारासत्ततीसंसत्ततीसंजोयणाइंउटुंउच्चतेणेप०" अल्पपणानी विवक्षा नही करी ३७ योजन कहां हशे एम संभवे छे तत्त्वन्तुतत्त्वविदोजानन्ति... ७६ प्रश्न-अणपन्नीय, पणपन्नीय, आदि आठ व्यन्तरविशेषनिकाय क्यां वसे छे ? Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीय:प्रकाशः (१०३ ) उत्तरः रत्नप्रभापृथ्वीउपरना जे एकहजार योजन छे सेना उप- . रथी तेमज नीचेथी सो सो योजन दूर करीने मध्ये आठसो योजनमा जेम पिसाचादि आठ नि० वसे छे तेम ते पण अणपनीय, पणपनीय, आदि आठ निकाय वसे छे एम श्रीपनवणासूत्रमा कहेलुं छे. तथाचतत्सूत्रम्. " कहिणंभंतेवागमंतराणंदेवाणंपज्जत्तापज्जत्ताणंठाणापण्णत्ताकहिणंभंतेवागमंतरादेवापखिसंतिगोयमाइमीसेरयणप्पभाएपुढवीएरयणमयस्सकंडस्सजोयणसहस्स बाहल्लस्सउवरिएगंजोयणसयंउग्गाहित्ताहियविएगंजोय-- णसयंवज्जित्तामझेअठ्ठसुजोयणपएसुएथ्थणवाणमंतराणंदेवागंतिरियमसंखेज्जाओभोमेज्जाओणगवाससयसहस्साहवंतीतिमरकायंतेगंइत्यादि । तथ्थगंबहवेवाणमंतरादेवापखिसंतितंजहापिसायभूयाजरकायावत्अणपनीयपत्रीयइत्यादि” अने श्रीसंग्रहणीमूत्रमां तो रत्नममा पृथ्वी उपरना प्रथम शतयोजन मध्ये अण० पण. आदि आठनि० वसेछे एम कहेलुं छे. तथाचतत्पाठः " इयपढमजोयणसयेरयणाएअठ्ठवंतराअवरे ॥ तेसुइहसोलसिंदारुयगअहोदाहिणुत्तरओ ॥१॥" Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०४ ) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. वली श्रीयोगशास्त्रवृत्तिमा तेमज श्रीअजितनाथचरित्रमांतो रत्नप्रभा पृथ्वी उपरना जे सोयोजनछे तेना उपरथी तेमज नीचेथी दशदश योजन मुकीने एशी योजन मध्ये अण० पण० आदि आठनि० वसेछे एम कांछे. ... यदुक्तंश्रीयोगशास्त्रवृत्तौ. " रत्नप्रभायामेवप्रथमशतकस्याधउपरिचदशदशयोजनानिमुक्त्वामध्येशीतीयोजनेषुअणपन्नीयपणपनीय० इति यदुक्तंश्रीअजितनाथचरित्रे " रत्नप्रभायाःप्रथमेयोजनानांशतेतथा ॥ योजनानिपरित्यज्यदशाधोदशचोपरि ॥ १॥ संत्यशीतौयोजनेषुव्यन्तराष्टनिकायकाः॥ तत्राप्रज्ञप्तिकःपञ्चप्रज्ञप्तिर्रुषिवादितः॥२॥इत्यादि" अत्रापितत्त्वंतत्त्वविदोजानन्ति ७७ प्रश्न-एकावतारी देवोने छ मास आयुष्य वाकी रहे छते च्यवन चिन्हो उपजे? उत्तर-ना, न उपजे. किन्तु उलटो सातोदय जाणवो. जूओ श्रीपरिशिष्टपर्वणिग्रन्थमां तथा श्रीसूयगडांगसूत्रवृत्तिमा | लख्युं छे. तथाहिश्रीहेमचन्द्राचार्यविरचितश्रीपरिशिष्टपर्वणिग्रन्थे. “ रोजनेकावताराणामन्तकालेपिनाकिनाम् ॥ १ श्रेणिकनृपंप्रति श्रीवीरवाक्यमिति. Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयः प्रकाशः ( १०५ ) तेजःक्षयादिच्यवनलिङ्गान्याविर्भवन्तिन ॥ १ ॥ " तथाश्रीसूत्रकृताङ्गसूत्रवृत्तावपि. “विपच्यमान तीर्थकरनाम्नोदेवस्यच्यवन कालेषएमा सयावदत्यन्तंसा तोदय एवेत्यादि 27 विशेषाधिकार श्रीलोकप्रकाश कल्पदीपिकादिथीजाणवतो. ७८ प्रश्न - लवसप्तमदेवता कया समजवा ? उत्तर - सर्वार्थसिद्धविमानना देवता समजवा, तेओ सात लवप्रमाण मनुष्यायुष्क ओछुहोवाथी शीवमार्गना विसामा तरीके त्यांउत्पन्न थाय छे. जो सातलवप्रमाणमनुष्यायुष्क वधारे होत तो छठतपकर्मथी जेटलं कर्म क्षयथाय तेटलं शेषरहेलुं कर्म तेटली वखतमा क्षयकरी मोक्षे जात इतितात्पर्यार्थः विशेष बात श्रीभगवतीसूत्रथी समजवी. ७९ प्रश्न - चोवीश प्रभुना चोवीश लंछन कहो ? उत्तर - श्री ऋषभादि चोवीशजिनना नीचे लख्या मुजब अनुक्रमे चोवीश लंछन जाणवतं. १ वृषभ. ९ मगरमच्छ, २ हस्ती. १० श्रीवत्स. ३. घोडो. ११ गैंडो. १२ महिष. ४ वानर. ५ क्रौंचपक्षी १३ वराह. ६ पद्मकमल १४ सीचाणो. ७ स्वस्तिक. १५ वज्र. १६. हरिण. ८ चन्द्र. १४ १७ बकरो. १८ नंद्यावर्त्त. १९ कलश. २० कूर्म. २१ नीलोत्पलकमल. २२ शंख. २३ सर्प. २४ सिंह. Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०६ ) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. : यदुक्तंश्रीअभिधानचिन्तामणौ. " वृषोगजोश्वःप्लवगःक्रौञ्चोब्जंस्वस्तिकःशशी ॥ मकरःश्रीवत्सःखङ्गीमहिषःशूकरस्तथा ॥१॥ श्येनोवज्रमृग छागोनंद्यावतॊघटोपिच ॥ कूर्मोनीलोत्पलंशंखःफणीसिंहोर्हताध्वजाः ॥२॥" उक्त चोविश लंछन जाणवाथी चोवीश प्रभुजीनी प्रतिमा ओने ओलखी शकायछे अत्र ए रहस्यार्थ छे. ८० प्रश्न-श्रीऋषभादि चोवीश जिनना वर्ण कहो ? उत्तर-श्रीपद्मप्रभ, वासुपूज्य, ए वे तीर्थङ्कर रक्तवर्णा. श्रीचन्द्रप्रभ, सुविधिनाथ, ए बे तीर्थङ्कर उज्वलवर्णा. श्रीमुनिसुव्रत, नेमिनाथ, ए वे तीर्थङ्कर कृष्णवर्णा. श्रीमल्लिनाथ, पार्थनाथ, ए वे तीर्थङ्कर नीलवर्णा. अने ते सीवायना १६ तीर्थङ्कर काञ्चनवर्णा (पीतवर्णा) जाणवा. ___ यदुक्तंश्रीअभिधानचिन्तामणौ. “रक्तौचपद्मप्रभवासुपूज्यौशुक्लौचचन्द्रप्रभपुष्पदन्तौ ॥ कृष्णौपुनर्नेमिमुनीविनीलौश्रीमल्लिपाश्चीकनकत्विषोन्य।१।" ८१ प्रश्न-श्रीऋषभादि चोवीश जिन कया कुळमां उत्पन्न थया ? उत्तर-बावीश तीर्थङ्कर श्रीइक्ष्वाकु कुळमां उत्पन्न थया. अने श्री मुनिसुव्रत, नेमिनाथ, ए बे तीर्थङ्कर हरिवंशकुळमां उ त्पन्न थया. १ नेमिमुनिसुव्रतौ. Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयः प्रकाशः यदुक्तंश्रीअभिधानचिन्तामणैौ. इक्ष्वाकुकुलसंभूतास्याद्वाविंशतिरर्हताम् ॥ मुनिसुव्रतनेमीतुहरिवंशसमुद्भवैौ ॥ १ ॥ " 66 ( १०७ ) ८२ प्रश्न - परमार्थ जाण्या विना अर्थ कहे ते केवो जाणवो ? उत्तर - एक गामडीया मूर्ख पुरुषनी पेठे हसवा योग्य जाणवो तेनी कथा नीचे लख्या प्रमाणे जाणवी. कोइक गामने विषे कोइक मूर्खहतो ते दैवयोगे समस्त रागरागिणीनी जाण एवी कन्यापरण्यो. पछी ते स्त्रीने आणु करवागयो. त्यांसासरे ते मूर्खना साळा हता, तेमणे विचारकर्यो के. आपणे प्रभाते पंचम राग करीभुं ने तेने पूछीभुं. ते विचार तेनी बहेने सांभल्यो. तेणीएं भत्तरिने कछुके, तमने माराभाइओ रागनी बात पूछे त्यारे कहेजोके ए पंचम रागथयो पछी प्रभाते साळाए तेमज पूछयुं, त्यारे मूर्खे के ए पंचम राग छे. ते सांभळी साळाए मनमां - विचार्थी के, एतो शृङ्ग पूछ विनानो पशु छे, पण कांइक घरनो भेद मळ्यो जणाय छे एम चिंतवी नगर बहार जइने चारे काने विचार कर्यो के, आपणे प्रातःकाळे धन्याश्री राग करवो. यतः 'षट्कर्णोभिद्यतेमंत्रश्चतुष्कर्णोन भिद्यते ॥ द्विकर्णस्यतुमंत्रस्यब्रह्माप्यन्तंनगच्छति ॥ १ ॥ " 66 Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. एम करी प्रातःकाळे धन्याश्री राग करीने पूछयुं के, ए कयो राग ? ते वारे मूर्ख बोल्यो ए छठो राग. ते सांभळी साळा ताळी देइने मांहोमांही हसवा लाग्या. मूर्ख बोल्यो. रे मूर्खो हसोछो शुं ? काले तमे पंचमराग कर्यो हतो. माटे आज छठोज राग युक्त छे. जे कारणे पांच पछी छ एम तो बालगोपाळ पण जाणे छे ते सांभळी वळी साळा घणुंज हसवा लाग्या त्यारे तेनी स्त्रीप जणाववा माटे धान्यनी तोलडी देखाडी. ते देखी मूर्ख बोल्यो. जाण्युं जाण्यं ए तो लड राग छे. त्यारे वळी अत्यन्त हांसी योग्य थयो माटे परमार्थ जाण्या विना अर्थ करे ते तेना जेवो जाणवो इति रहस्यम्. ( १०८ ) इतिश्रीमत्तपागच्छेनेकगुरुगुणगणालङ्कत पण्डितश्री मद्रूपविजयगणिवशिष्यपण्डितश्रीकीर्त्तिविजयगणिशिष्यपण्डितश्री कस्तूरविजय गणिशिष्यपण्डितश्रीमणिविजयगणिशिष्यपं० श्रीभुभवि - जयगणिशिष्यमु० श्रीलक्ष्मी विजयेन विरचितेश्रीप्रश्नो तरप्रदीपे तृतीयः प्रकाशः Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थः प्रकाशः अथ चतुर्थःप्रकाशः ॐ नमः श्री सर्वज्ञ जिनंनम्यगुरुञ्चगणधारिणम् ॥ ग्रन्थस्यास्यचतुर्थञ्चप्रकाशंप्रकरोम्यहम् ॥ १ ॥ १ प्रश्न - सर्व संवररूप चरित्रक गुणठाणे होय ? उत्तर - १४ मे अयोगि केवल गुणठाणे होय. २ प्रश्न - तामलि तापसने क्यारे समकितनी प्राप्ति थइ ? ( १०९ ) उत्तर - तामलि तापस, अन्तकाळ वखते साधुओना दर्शनथी समकित पाम्यो छे. एवो प्रघोष श्रीजिनेश्वरसूरिकृत कथा रत्नकोशमां छे. अने श्रीभगवतीसूत्रमां तो इशानेंद्र थइ पछीथी समकित पाम्यो एम कहां छे. ३ प्रश्न - विग्रहगतिने पामेलो कोइ जीव अग्निकाय मध्येथी जतो थको दशाय के केम ? 66 उत्तर—न दझाय. शाथी के ते कार्मण शरीरवाळो छे, अने तेथी ते सूक्ष्म छे, माटे त्यां अग्नि वीगेरे शस्त्र न संक्रमे. यदुक्तंश्रीभगवतीवृत्तौ. नध्मायतेय तोविग्रहगतिसमापन्नोहिकार्मणशरीरत्वेनसूक्ष्मःसूक्ष्मत्वाच्चतत्रागन्यादिकंशस्त्रंनक्रामति ४ प्रश्न - वैक्रिय शरीरवाळो जीव अग्नि मध्येथी जतो थको दझाय ? उत्तर - वैक्रिय शरीरना सूक्ष्मपणाथी तेमज तेनी गतिना शीघ्रपणाथी ते न दझाय, "" Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११० ) श्रीपश्रोत्तरप्रदीपे. यदुक्तंश्रीभगवतीवृत्तौ. "नमायतेसूक्ष्मत्वादै क्रियशरीरस्यशीनत्वाचतद्गतेः " ५ प्रश्न-पृथ्वी वीगेरे पांच स्थावरकायने स्वामीओ हशे ? उत्तर-जेम दिशाओने इन्द्र, अग्नि, आदिक नक्षत्रोने अश्वि, यम, दहन, आदिक दक्षिण तथा उत्तर लोकार्द्धने शक्र, इशान, स्वामिओ कह्या छे. तेम पांच स्थावरकायने पण नीचे लख्या मुजब अनुक्रमे पांच स्वामिओ श्रीठांणांगजीमां कह्या छे. इन्द्र, ब्रह्म, शिल्प, संमति, अने प्राजापत्य, तत्सूत्रपाठोयथा. “पंचथावरकायाहिवईपतं इंदेथावरकायाहिवई--- जावपयावएथावरकायाहिवई ” विस्तरस्तट्टिकायाम्. ६ प्रश्न-जेम वादरपृथ्व्यादि पांच स्थावरकायने विषे प्रत्येके एकपर्याप्तकजीवनिश्राए बीजा असंख्याता अपर्याप्तकजीवो कह्याछे तेम सूक्ष्म पांच स्थावरकायने विषे एज रीते के केम ? उत्तर-सूक्ष्म पांच स्थावरकायने विषे तो प्रत्येके एकअपर्याप्तक निश्राए पर्याप्तक जीवो कह्या छे. अने ते पण श्रीपनवणासूत्र वीगेरेना अनुसारे संख्याता जाणवा अने श्रीआचाराङ्गसूत्र वृहदृत्तिने अनुसारे तो असंख्याता जाणवा. तथाचतत्पाठः “ अपर्याप्तकनिश्रयापर्याप्तकाःसमुत्पद्यन्तेतत्र-- कोपर्याप्तकस्तत्रनियमादसंख्येयाःपर्याप्तकाःस्युः” इत्याचाराङ्गहवृत्तौ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थभकाशः (१११ ) ७ प्रश्न-विकलेन्द्रिय जीवो मनुष्यमा आव्या थका मनःपर्याय ज्ञा नने पामे ? उत्तर-केटलाक पामे. पण अन्तक्रिया प्रत्ये न करे आवी रीते श्रीजैनागममां कयुं छे. आ ठेकाणे तात्पर्यार्थ ए छे के ऋजुमतिमनःपर्यायज्ञानने पामे पण विपुलमतिमनःपर्यायज्ञानने न पामे शाथी के विपुलमतिमनःपर्यायज्ञानवाळाने तद्भव-. सिद्धि कही छे. ८ प्रश्न-जीवविचार प्रकरणमा जे "ग्राहा" जीवो कह्या छे ते स्वरूपे केवा होय ? उत्तर-सोयना दोरा जेवा पातळा तेमज लांबा होय छे के जो ते जीवो पाणी मध्ये हाथीना पगे वळगे तो हाथीने पण पाणीथी बहार नीकळg मुस्कल थइ पडे. लोकमां ते जीवो ने “ तांतूआ" कहे छे. ९ प्रश्न श्रीप्रज्ञापनासूत्रमा प्रथमपदविषे "शिशुमारा" जीवो कह्या छे ते कया ? उत्तर-ते जीवो जळना काचबा जाणवा. अथवा पाडा जेवा मोटा जाणवा. यदुक्तंजीवविचारवृत्तौ. " शिशुमाराजलकूर्मायदाहुःश्राहेमचन्द्रपादाःशिशुमारस्त्वम्बुकूर्मः॥ यहापानीयमध्येमहिषसदृशाभवन्तितेशिशुमारामहाकायाः " १० प्रश्न-कुकडा तथा मोरना मस्तक मध्ये रहेली शिखा सचित्त छे, अचित्त छ, के मिश्र छे ? Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११२ ) श्रीपश्नोत्तरमदीपे. उत्तर-कुकडानी चूडा सचित्त छे. मोरनी चूडा मिश्र छे. एम श्री . आचाराङ्गसूत्रवृत्ति मध्ये कहेलुं छे. । तथाचतत्सूत्रवृत्तिः “ सचित्ताचूडाकुक्कुटस्यमिश्राचूडामयूरस्य " .११ प्रश्न-अग्नि विषे उंदरनी उत्पत्ति हो ? उत्तर-हा, इटना नींभाडा वीगेरे अग्निमां उंदरो उत्पन्न थाय छे एम श्रीअनुयोगद्वारवृत्तिमां कयुं छे. वळी केटलाक जीवो सचित्त अग्नि प्रमुखमा उंदर प्रमुखपणे उपजे छे एम श्रीस्यगडांगसूत्रना बीजा श्रुतस्कंधना त्रीजा अध्ययननी वृत्तिमां कां छे. ___ यदुक्तंश्रीअनुयोगद्दारवृत्ती. “इष्टकापाकाद्यमिदृषिकावासइत्युच्यतेतब्रह्ममौकिलमूषिकाःसमूर्च्छन्तीति" ___यदुक्तंश्रीसूत्रकृताङ्गमूत्रवृत्तौ. " अपरेतुजीवाःसचित्तेतेजःकायादौमूषिकादित्वे-- नोत्पद्यन्ते ” इति १२ उंदरना लोमर्नु रत्नकंबलवस्त्र बने छे ते वात खरी हशे ? उत्तर-हा, ते वात खरी छे. यतः " मूषकरोमजवस्त्रम्" इतिश्रीस्था नाङ्गसूत्रपञ्चमस्थानत्तिवचनात्. अने वळी ए रत्नकंबल वस्त्र ज्यारे मेलुं थाय छे त्यारे अग्निमां नाखवाथी ते शुद्ध थाय छे कारण के अग्निमां उत्पन्न थएल उंदरोना लोमर्नु ते वस्त्र बनेलं छे इत्यादि एक शास्त्रलेख छे. Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थः प्रकाशः ( ११३ ) १३ प्रश्न - नपुंसकमासमां जे उत्तम वनस्पति छे ते फळे के केम ? उत्तर--ना, नफले. किन्तु नपुंसक मासने तजीने बीजे मासेज फले एम श्री आवश्यक निर्युक्तिमां श्रीभद्रबाहुस्वामीजी कहे छे. यतः “ जइफुल्लाकणिआरडा० " इत्यादि गाथा वचनात् अत्ररहस्यार्थ एछेके, अचेतना एवी वनस्पति ते पण जो नपुंसक मासने तजी बीजा मासने गणतीमां लेछे, तो पछी पण्डितो ते प्रमाणे वरतनुं तेमां शी नवाई छे. ए विषय, वधारे विवादभर व्याख्यान वालोछे. अने ते श्रीकल्प किरणावल्पादिश्री जैन ग्रन्थोमांछे. ते जोवाथी बरोबर समजाशे. १४ प्रश्न - चूडेली (जीवविशेषः ) द्वीन्द्रियजीवछे के त्रीन्द्रियजीवछे ? उत्तर - श्री आराधनपताकामां त्रीन्द्रियजीवगणेलो छे. अने जीवविचार मां द्वीन्द्रियजीवगणेलो छे. तस्वनीवात केवली जाणे. १५ प्रश्न - अतिस्निग्धपणाने लीधे त्रीजेआरे पण बादरअग्निनो अभाव कह्योछे तो श्रीऋषभदेवजीना समयमां तेनी उत्पत्ति शाथी कही ? उत्तर—त्रीजा आराना प्रान्तभागमां श्रीऋषभदेवजीना समयमां अग्निनी उत्पत्ति कहीछे ते ठेकाणे कई बाधा आवती नथी शाथी के त्यां अल्पकालनी विबक्षा करीनथी इति तत्त्वम्. १६ प्रश्न - एम संभलायछे के कोइकना उदरमां " गृहेकोकिला " उत्पन्न थाय छे तेनुं थुंकारण ? १ अधिकमासमां. २ भुजपरिसर्पविशेषः लोकेतु " गरोली " इतिनाम्नाप्रसिद्धा. १५ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. उत्तर-उदरमा गृहगोधिका उत्पत्तिनुं कारण श्रीनिशीथचूर्णिमा ___कहेल्छे. ते नीचे प्रमाणे ___ यदुक्तंश्रीनिशीथचूर्णी. "गिहकोइलअवयवसंमिस्सेणभुत्तेणपोटेकिलगिहकोइलासमुच्छंतित्ति" सुलभार्थ १७ प्रश्न-मोतीने पृथ्वीकायपणुं संभवे ? उत्तर-हा, नानाविधत्रसस्थावरना शरीरोमां उत्पत्तिनो संभव छतां पण मोतीने पृथ्वीकायपणुंज संभवछे. एम श्रीसूत्रकताङ्गसूत्रनी टीका परथी सिद्धथायछे अने ते जोवाथी के टलीक वधारे वात समजाय तेमछे. १८ प्रश्न-सपर्नु "पवनभक्षी" नामछे ते शुं पवनने भक्षण करतो हशे ? उत्तर-हा, पवनने पण भक्षण करेछ. शाथीके तेनो जातिप्रत्यय ते आहारछे. यतः "सप्पाः पिबन्ति पवनं नच दुर्बलास्ते" इतिवचनात् वली श्रीसूत्रकृताङ्गमूत्रना वीजा श्रुतस्कन्धना त्रीजा अध्ययननी टीकामां पण कपुछे के सर्पोवायुनो पण अहार करेछे अने तेओनी तेज जातिप्रत्यय आहार वडे करीने वृद्धि थायछे जेमके दुध प्रमुख वडे करीने इति १९ प्रश्न-एक श्रृंगाटक फलमां ( सीघोडामां ) केटलाजीवो कह्याछे ? उत्तर-बेजीवो कह्याछे. यतः " दोणियजीवाफलेभणिया" इति श्रीप्रज्ञापनावचनात् २० प्रश्न-" कुदृमित " शब्दस्त्रीओना केवा विलास भेदमा जोडायछे? उत्तर-पुरुष ज्यारे व्यामोहथी स्त्रीओना केशने तथा स्तनने अने वळी अधर बीगेरे अंगोने यथोचित ग्रहण करेछे. त्यारे स्त्रीओने Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थः प्रकाशः ( ११५ ) घणो हर्षथायछे छतां पण संभ्रम पूर्वक मस्तक चेष्टाथी तेमज हस्तचेष्टाथी तेम नहीं करवा पुरुषने जणावेछे अर्थात् घणा हर्षी उत्पन्न थल सुखने ठेकाणे पण दुःखनो उपचार करेछे. तेवा एक स्त्रीओना विलास भेदने पण्डितो "कुदृमित" कछे माटे " कुहमित " शब्द स्त्रीओना तेवाएक विलास भेदमां जोडायछे इति रहस्यार्थः यतः 44 ' केशस्तनाधरादीनां ग्रहेहर्षेपिसंभ्रमात् ॥ प्राहुःकुट्टमितंनाम शिरः करविधुननम् ॥ १ ॥ " इतिशब्दस्तोममहा निधिगतश्लोकवचनात्. श्री अभिधानचिन्तामणिकोषमां स्त्रीओना स्वाभाविक एवा लीला वीगेरे दश अलङ्कार कथाले तेमां आ " कुदृमित " सातमो अलङ्कारले तेनुं लक्षण तेना टीप्पनमां अर्द्धश्लोकवडे करीने बतावेल ते नीचे प्रमाणे. दुःखोपचारःसौख्येपिहर्षात्कुदृमितंमतम् ॥ " अर्थ उपर प्रमाणेज जाणवो. २१ प्रश्न - स्त्रीओनामायाकपटथी पुरुष उगाय के ? उत्तर - हा, शंकर जेवा उगायाले शंकरनी कथा आ प्रमाणे एक दिवस महादेवजी पोतानी स्त्रीगङ्गा अने पार्वती पासे कहेवा लाग्या के हुं संसारमार्गथी उद्विग्न थइ गयेलोछु माटे हवेथी महारे तमारी बेहुनी साथे कांड़ कामनथी हुंतो हवे तपज करशि. एम कहीने शंकर कैलासपर्वतमत्ये गया, त्यां ते पर्वतनी गुफामां पद्मासन वाळीने ध्यानमां "" Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीप्रश्नोत्तरपदीपे. बेठा, पार्वतीए जाण्यु जेशिवजी तपस्यामां बेठाछे. पण ते संसारथी उद्विग्नहुंछं एम कहीगयाछे, माटे तेना तपनो हुँ भंगकरूं, एम धारीने पोते भिल्लडीनो वेष धरीने त्यांजइ शंकर पासे रहीने नाना प्रकारना हाव भाव कटाक्ष वीगेरे विलास करवा मांडया, तेवारे ध्यान मूकीने शिवजी ते भिलुडीनी प्रार्थना करवा लाग्या. के हे भद्रे तुं महारी स्त्रीया त्यारे भिल्लडी बोलीके महारो स्वामीतो भिल्लछे. ते पछवाडे चाल्यो आवेछे. माटे जो तेम हुं करूं तो ते भिल्ल मने अने तमने बेहुने शिक्षा आपे त्यारे शिवजी कहेवा लाग्या के हे सुंदरी में त्रिपुरासुर जेवा लक्ष दैत्योने मारीनाख्या तो तहारो स्वामी बीचारो शी गणतीमांछे त्यारे भिल्लडी कहेछ. के जो एमहोयतो तमो महारी पासे नागा थइ नाचो तो हुँ तमारी स्त्रीथाउं त्यारे ते भिल्लडीने वश पडेला महादेवे नग्न थइ नाचवा मांडयुं ते जोइ पार्वतीने हास्य आव्युं त्यारे शिवजी समजी गया के आतो पार्वतीछे एमजाणीने लज्जित थइ मनमा खेदपाम्याजे अरे आ शुं थयुं हुं कहेतो हतो के हुं संसारथी विरक्त छं अने मने माया कपटे करी एणीए छल्यो तेथी हुं परवश थइ गयो एम समजी लज्जा पाम्या. जुओ एम शंकर पण ठगाया माटे स्त्रीओना माया कपटमां न फसातां तेणीओनो त्याग करवो एज श्रेष्ट छे. २२ प्रश्न-लौकिकशास्त्रमा चार आश्रम कह्या छे ते कया अने ते क्यारे कोने होय ? उत्तर-१ पहेलो ब्रह्मचर्याश्रम-ते वाल्यावस्थामां वेदवेदाङ्गादिरूप विद्याभ्यासिओने जाणवो. Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थःप्रकाशः (११७ ) २ बीजो गृहस्थाश्रम-ते यौवनावस्थामा भोगाभिलाषिओने जाणवो. ३ त्रीजो वानप्रस्थाश्रम-ते वृद्धावस्थामां मुनिवृत्तिवालाओने जाणवो. ४ चोथो भिक्ष्वाश्रम-ते अन्तावस्थामां परमात्मध्यानवडेदे हत्यागिओने जाणवो. एम रघुवंशनी टीकाथी जाणीए छीए. २३प्रश्न-लौकिकमते सीता पोतानुं सत्यपणुं जणावी क्यां गयां हशे ? उत्तर–पाताळमां गयां छे अर्थात्पृथ्वीदेवी प्रगट थइ सीताने पाताळमां लेइ गयां छे. एवी लौकिकमते वात छे. यदुक्तं कालिदासकविकृतरघुवंशे. “अथवाल्मीकिशिष्येणपुण्यमावर्जितंपयः॥ आचम्योदीरयामाससीतासत्यांसरस्वतीम॥८॥ वाङ्मनःकर्मभिःपत्यौव्यभिचारोयथानमे ॥ तथाविश्वभरेदेविमामान्तर्धातुमर्हसि ॥१॥ एवमुक्तेतथासाच्यारंध्रात्सद्योभवाद्भुवः ॥ शातहृदमिवज्योतिःप्रभामण्डलमुद्ययौ ॥ ८२॥ तत्रनागफणोतक्षिप्तसिंहासननिषेदुषी ॥ समुद्ररसनासाक्षात्प्रादुरासीदसुंधरा ॥ ८३॥ सासीतामङ्कमारोप्यभर्तृप्रणिहितैक्षणम् ॥ मामेतिव्याहरत्येवतस्मिन्पातालमभ्यगात् ॥८॥" २४ प्रश्न-सूर्यना किरणोनी वधघट थती हशे ? Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११८ ) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. उत्तर-श्रीकल्पसूत्रनी दीपिकामां लौकिकशास्त्रनी अपेक्षाए वधघट कही छे. ते नीचे लख्या प्रमाणे. चैत्रमासमां सूर्यना किरणो १२०० वैशाखमासमां मूर्यना कि० १३०० ज्येष्टमासमां सूर्यना कि० १४०० श्रावणमासमां सूर्यना १४०० भाद्रपदमासमां मूर्यना कि० १४०० आषाढमासमां मूर्यना कि० १५०० आश्विनमासमां मूर्यना कि० १६०० कार्तिकमासमां मूर्यना कि० - ११०० माघमासमां सूर्यना कि० ११०० मार्गशीर्षमासमां सूर्यना कि० १०५० फाल्गुनमासमां सूर्यना कि० १०५० पौषमासमां सूर्यना किरणो १००० उक्त रीते वधघट जाणवी. यद्व्याडिः " शतानिहादशमंधौत्रयोदशैवांधवे ॥ चतुर्दशपुनर्येष्टेनभोनभस्ययोस्तथा ॥१॥ पञ्चदशैवत्वाषाढेषोडशैवंतथाश्विने ॥ कार्तिकत्वेकादशचशतान्येवंतपस्यपि ॥२॥ मार्गेतुदशसा निशतान्येवंचफाल्गुने ॥ पौषएवपरंमासिसंहनंकिरणारखेः ॥३॥” इति १ चैत्रे २ वैशाखे. ३ श्रावणभाद्रपदयोः ४ माघेपि Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थः प्रकाशः २५ प्रश्न - बत्रीस लक्षणो पुरुष कयो समजवो ? उत्तर --- शास्त्रोक्तवत्रीस लक्षण जेने विषे पामीर ते बत्रीस लक्षणो पुरुष जाणवो. ते ३२ लक्षण आ प्रमाणे छे. ( ११९ ) छत्र, कमल, धनुष, रथ, वज्र, काचो, अंकुश, वाव, स्वस्तिक, तोरण, सरोवर, सिंह, वृक्ष, चक्र, शंख, हस्ती, समुद्र, कलश, प्रासाद, मत्स्य, जव, ( धान्य विशेष ). यज्ञस्तंभ, स्तूप, (स्थुभ) कमण्डलु, (संन्यासीनुं जळपात्र) पर्वत, चामर, दर्पण, वृषभ, ध्वजा, श्री, माला, अने म यूर, ए वत्रीस लक्षण पूर्वकृतपुण्योए करीने मोटा पुण्यवंत प्राणिओना हाथ पगने तळीए होय, एम पण्डित पुरुषो कहे छे. यदुक्तं श्रीकल्पदीपिकायाम्. छत्रंतामरसंघ नूरथवरोदंभोलिकूर्मा कुशावापीस्वस्तिकतोरणानिचसरः पंचाननः पादपः ॥ चक्रेशंखगजौसमुद्रकलशौप्रासादमत्स्यौयवाग्रूपस्तूपकमंडलून्यवनिभृसञ्चामरौदर्पणः ॥ १ ॥ 66 उक्षापताका कमलाभिषेका सुदाम के की घनपुण्यभाजाम् | पुराकृतैः पुण्यगणैरमूनिस लक्षणानीतिवदन्तिधीराः ॥२॥” वली बीजी रीते पण वत्रीस लक्षणो पुरुष कह्यो छे.नख, पग, हाथ, जीभ, होठ, तालबुं, अने आंखना खुणा, ए सात जेना रातां होय. तथा काख, हृदय, कोट, नाक, नख, अने मुख, ए छ जेना ऊंचा होय. तथा दांत, चामडी, केश, आंगलीना पर्व, अने नख, ए पांच जेना सूक्ष्म 19 Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२० ) श्रीप्रश्नोत्तरपदीपे. होय. तथा नेत्र, हृदय, नाक हडपची, अने भुजा, ए पांच जेना लांबा होय. तथा ललाट, हृदय, अने मुख, ए त्रण जेना पहोलां होय, तथा ग्रीवा, जंधा, अने लिंग, ए त्रण जेना टुंका होय. तथा स्वर, नाभि, अने सत्व, ए त्रण जेना गंभीर होय. ते बत्रीस लक्षणो पुरुष जाणवो. यदुक्तंश्रीकल्पदीपिकायाम्. " इहभवतिसप्तरक्तःषडुन्नतःपञ्चसूक्ष्मदीर्घश्च॥ त्रिविपुललघुगंभीरोदात्रिंशल्लक्षणःसपुमान् ॥१॥" अत्र दृष्टान्त तरीके श्रीश्रीपालनरेन्द्र, श्रीविक्रमनरेन्द्र, इत्यादि घणा बत्रीस लक्षणा पुरुषो थइ गया छे. २६ प्रश्न-लौकिक १८ पुराणना नाम दर्शावो ? उत्तर-ब्रह्मपुराण १ पद्मपुराण २ विष्णुपुराण ३ वायुपुराण ४ भागवतपुराण ५ नारदपुराण ६ मार्कडेयपुराण ७ आग्नेयपुराण ८ भविष्यपुराण ९ ब्रह्मविवर्तपुराण १० लिंगपुराण ११ वराहपुराण १२ स्कन्दपुराण १३ वामनपुराण १४ मत्स्यपुराण १५ कूर्मपुराण १६ गरुडपुराण १७ ब्रह्मांडपुराण १८ एवी रीते शास्त्रोक्त १८ पुराणना नाम जाणवां. यदुक्तंश्रीकल्पदीपिकायाम्. " ब्रह्मांभोरुहविष्णुवायुभगवत्संज्ञततोनारदमाकैडेयमथामिदैवतमितिप्रोक्तंभविष्यंतथा ॥ तस्माद्ब्रह्मविवतसंज्ञमुदितंलिंगंवराहस्मृतंस्कांदवामनमत्स्यकूर्मगरुडंबपांडमष्टादश ॥१॥" Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ:प्रकाशः (१२१ ). २७ प्रश्न-चौद विद्या गुण जाण कोने कहीए ? उत्तर-जे चौद विद्या जाणे ते चौद विद्या गुण जाण समजवो. अने ते चौद विद्या नीचे लख्या मुजब जाणवी ऋग्वेद १ ययुर्वेद २ सामवेद ३ अथर्ववेद ४ शिक्षा ५ कल्प ६ व्याकरण ७ छंद ८ ज्योतिष ९ निरुक्ति १० मीमांसा ११ आन्वीक्षिकी १२ धर्मशास्त्र १३ पुराण १४ तथाचोक्तंश्रीअभिधानचिन्तामणौ. “ पंडगीवेदाश्चत्वारोमीमांसान्वीक्षिकीतथाधर्मशासंपुराणञ्चविद्याएताश्चतुर्दश ॥१॥" वली विष्णुपुराणमां तो आयुर्वेद १ धनुर्वेद २ गांधर्व ३ अने अर्थशास्त्र ४ ए चार उपवेद सहित १८ विद्या कही छे. तद्यथा. . "अङ्गानिवेदाश्चत्वारोमीमांसान्यायविस्तरः ॥ धर्मशास्त्रं पुराणञ्चविद्याह्येताश्चतुर्दश ॥ १॥ आयुर्वेदोधनुर्वेदोगान्धर्वञ्चार्थशास्त्रकम् ॥ चतुर्मिरेतैःसंयुक्ताःस्युरष्टादशताःपुनः॥२॥" अत्र दृष्टान्त तरीके इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति, वीगेरे चौद विद्यागुण जाण हता एम श्रीकल्पसुबोधिकामां गणधरवादव्याख्यावसरे कहेल छे. १ पूर्वोक्त शिक्षा वीगरे ६ अंग. २ तर्कविद्या. ३ सर्गश्चपतिसर्गश्च वंशोमन्वन्तराणिच ॥ वंशानुवंशचरितंपुराणपश्चलक्षणम् ॥ १ ॥ ४ वैद्यकशास्त्रम् ५ संगीतशास्त्रम् ६ नीतिशास्त्रम्. Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२२) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. २८ प्रश्न-केटलां नक्षत्रो ज्ञानवृद्धि करनारां हशे? . उत्तर-दश, ते नीचे प्रमाणे-मृगशिर १ आर्द्रा २ पुष्य ३ पूर्वाका ल्गुनी ४ पूर्वाषाढा ६ पूर्वाभाद्रपद ६ मूळ ७ अश्लेशा ८ हस्त ९ अने चित्रा १० ए उक्त दश नक्षत्रांनी साथे चन्द्रमानो योग आवे छते जो श्रुतज्ञानना उद्देशादि कराय छे तो ज्ञानदिने पामे छे, तथा निर्विघ्नपणे भणाय छे, संभळाय छे, व्याख्यान कराय छे, धराय छे, शाथी के जे काळ विशेष छे ते पण तथाविधकार्यविषे क्षयोपशमादिभावनो हेतुभूत छे. यदुक्तंश्रीस्थानाङ्गसूत्रे.. " दसनखत्ताणाणस्सविद्धिकरापण्णनातंजहा. मिगसिरअदापूसोतिनियपुवाइमूलमस्सेसा ॥ हथोचित्तायतहादसविदिकराइंगाणस्स ॥१॥" तट्टीका. _ “ विद्धिकराइंति॥ एतन्नक्षत्रयुक्तचन्द्रमसिसतिज्ञानस्यश्रुतज्ञानस्योद्देशादिर्यदाक्रियतेतदाज्ञानंसमृद्धिमुपपयात्यविघ्नेनाधीयतेश्रूयतेव्याख्यायतेधार्यतेचेतिभवतिचकालविशेषस्तथाविधकार्येषुकारणंक्षयोपशमादिहेतुत्वातस्ययदाहउदयरकयखओवसमोवसमाजंचकम्मणोभणि यादवखेत्तकालंभावंचभवंचसंपप्पत्ति॥१॥" तथैवसंस्कृतार्यापिभवति Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थःप्रकाशः . ( १२३ ) तथाहिश्रीअजितनाथचरित्रे. “ उदयक्षयक्षयोपशमोपशमाःकर्मणांभवन्त्यत्र ।। द्रव्यं क्षेत्रकालंभावञ्चभवञ्चसम्प्राप्य ॥१॥” इति २९ प्रश्न-ननुचन्द्रादयोग्रहाचारविशेषेण प्राणिनां सुखःदुखविपाक हेतवो भवन्तिकिंवानेतिप्रश्नः उत्तर-उच्यते प्रायस्ते प्राणिनां सुखदुःखविपाकहेतवो भवन्तिपरं विशेषविस्तरार्थिनात्वत्र श्रीलोकप्रकाशग्रन्थोविलोकनीयः सचग्रन्थोयम्. " एतेचन्द्रादयःप्रायःप्राणिनांप्रसवक्षणे ॥ तत्तत्कार्योपक्रमेवावर्षमासाद्युपक्रमे ॥ ८४ ॥ अनुकूलाःसुखंकुर्युस्तत्तद्राशिमुपागताः ॥ प्रतिकूलाःपुनःपीडांप्रथयन्तिप्रथीयसीम् ॥ ८५॥ ननुदुःखसुखानिस्युःकर्मायत्तानिदेहिनाम् ॥ ततःकिमेभिश्चन्द्राद्यैरनुकूलैरुतेतरैः ॥८६॥ आनुकूल्यंप्रातिकूल्यमागताअप्यमीकिमु ॥ शुभाशुभानिकर्माणिव्यतीत्यकर्तुमीशते ॥८७॥ ततोमुधास्तामपरेनिम्रन्थानिःस्पृहाअपि ॥ ज्योतिःशास्त्रानुसारेणमुहूर्तेक्षणतत्पराः ॥८॥ प्रवाजनादिकृत्येषुप्रवर्तन्तेशुभाशयाः ॥ खामीमेघकुमारादिदीक्षणेतत्किमैक्षत ॥ ८९॥ चतुर्भिःकलापकम् Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२४ ) श्रीप्रश्नोत्तरमदीपे. अत्रोच्यतेपरिचितश्रुतोपनिषदामयम् ॥ अनाघ्नातगुरुपरम्पराणांवाक्यविप्लवः ॥ ९०॥ श्रूयतामत्रसिद्धान्तरहस्यामृशोतलम् ॥ अनुत्तरमुराराध्यंपारंपर्याप्तमुत्तरम् ॥ ९१ ॥ विपाकहेतवःपञ्चस्युःशुभाशुभकर्मणाम् ॥ द्रव्यक्षेत्रञ्चकालश्वभावोभवश्वपञ्चमः ॥९२ ॥ तथाचोक्तम्-उदयरकयखओवसमोवसमाजंच ।। कम्मणोभणियादवखेत्तंकालंभावंचमवंचसंपप्प॥१३॥ यथाविपच्यतेसातंद्रव्यंस्रक्चन्दनादिकम् ॥ गृहारामादिकंक्षेत्रमनुकूलग्रहादिकम् ॥ ९४ ॥ वर्षावसन्तादिकंवाकालंभावं मुखावहम् ॥ वर्णगन्धादिकंप्राप्यभवेदेवनरादिकम् ॥ ९५॥ युग्मम. विपच्यतेसातमपिद्रव्यंखङ्गविषादिकम् ॥ क्षेत्रकारादिकंकालंप्रतिकूलंग्रहादिकम् ॥९६॥ भावमप्रशस्तवर्णगन्धस्पर्शरसादिकम् ।। भवञ्चतिर्यगनरकादिकंप्राप्येतिदृश्यते॥९७॥ युग्मम्. शुभानांकर्मणांतत्रद्रव्यक्षेत्रादयशुभाः विपाकहेतवःप्रायोशुभानाञ्चततोन्यथा ॥ ९८ ॥ १ गुप्तिगृहादिकम्. -- Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२५ ) चतुर्थः प्रकाशः ततोयेषांयदाजन्मनक्षत्रादिविरोधमा || चारश्चन्द्रार्यमादीनांज्योतिःशास्त्रोदितोभवेत् ॥ ९९ ॥ प्रायस्तेषां तदा कम्र्माण्यशुभानितथाविधाम् ।। लब्ध्वा विपाकसामग्री विपच्यन्ते तथातथा ॥ २०० ॥ युग्मम् विपक्का निचतान्येवं दुःखंदद्युर्महीस्पृशाम् ॥ आधिव्याधिद्रव्यहानि कलहोत्पादनादिभिः ॥ १ ॥ यदातुयेषांजन्मर्क्षाद्यनुकूलो भवेदयम् ॥ ग्रहचारस्तदातेषांशुभंकर्म्मविपच्यते ॥ २ ॥ तथाविपकंतद्दत्तेङ्गिनांधनाङ्गनादिजम् ॥ आरोग्यतुष्टिपुष्टीष्टसमागमादिजंसुखम् ॥ ३ ॥ एवंकार्यादिलमेपितत्तद्भावगताग्रहाः ॥ सुखदुःखपरिपाकेप्राणिनांयान्तिहेतुताम् ॥ ४ ॥ तथाहभगवाञ्जीवाभिगमः स्यणियर दिणयराणंनखत्ताणंमहग्गहाणंच ॥ चारविसेसेणभवे सुहदुहविमणुस्साणं ॥ ५ ॥ अतएवमहीयांसोविवेको ज्वलचेतसः ॥ प्रयोजनंस्वलम पिरचयन्ति शुभेक्षणे ॥ ६ ॥ ज्योतिःशास्त्रानुसारेणकार्यप्रवाजनादिकम् ॥ शुभमुहूर्त्तेकुर्वन्तिततएवर्षयोपिहि ॥ ७ ॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२६ ) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. इथ्थमेवावर्तताज्ञास्वामिनामर्हतामपि॥ अधिकृत्यशुभंकृत्यंपाठप्रव्राजनादिकम् ॥८॥ सुक्षेत्रेशुभतिथ्यादौपूर्वोत्तरादिसंमुखम् ।। प्रव्राजनवतारोपादिकंकार्यविचक्षणैः ॥ ९ ॥ तथोक्तंपञ्चवस्तुके-एसाजिणाणमाणाखेत्ताइयायकम्मणोमणिया ॥ उदयाइकारणंजंतम्हासवथ्थजइयत्वं १० अहंदाद्याःसातिशयज्ञानायेतुमहाशयाः ॥ तेतुज्ञानवले नैवज्ञात्वाकार्यगतागतिम् ॥ ११ ॥ अविघ्नांवासविघ्नांवाप्रवर्तन्तेयथाशुभम् ॥ नापेक्षन्तेन्यजनवन्मुहूर्त्तादिनिरीक्षणम् ॥ १२ ॥ . युग्मम् तद्दिचिन्त्यापरेषान्तुतथानौचित्यमञ्चति ॥ मत्तेभस्पर्द्धयांवीनामिवाघातोमहाद्रुषु ॥ १३॥ ; . इदमर्थतोजीवाभिगमवृत्ताविति." ३० प्रश्न-विषव्याप्तअन्नने जोइ चकोर वीगेरे जीवोने कंइ थतुहशे ? उत्तर-हा, विविध विलक्षण स्वभाव समुत्पनथायछे. ते आ प्रमा णे विषसहित एवा अन्नने देखीने चकोर पक्षी चक्षुविषे विरागने धरेछे. अर्थात् झेरवालुं अन्न देखीने चकोर पक्षी आंखो मींचेछे, हंस शब्द करेछे, मेना वमन करेछे, पोपट सतत पोकार करेछे, वानर विष्टाने करेछे, कोकिल क्षण १ पक्षिणाम्. Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - चतुर्थःप्रकाशः (१२७ ) वारमा मरण प्रत्ये पामेछे, क्रौश्वपक्षी नाचे माचे छे, नोलीओ राजी थायछे, अने कागडो हर्षने धरेछे, यदुक्तम्. " दृष्ट्वानसविपंचकोरविहगोधत्तेविरागंदृशोर्हसःकुअतिसारिकाचवमतिकोशत्यजस्रंशुकःविष्टांमुञ्चतिमर्कटः परभृतःप्राप्नोतिमृत्युक्षणातक्रौञ्चोमाद्यतिहर्षवाँश्वनकुलःप्रीतिञ्चधत्तेदिकः ॥ १॥" अत्र दृष्टान्त तरीके एक दिवस श्रीशोभनाचार्यजी श्रीउज्जयिनीपुरीमां पोताना संसारो भाइ धनपाल पंण्डितने घरेवहोरवा निमित्ते गयाछे. तेज दिवसे धनपालना घरमां तेना वैरिए मोदकमां झेरनखावेलुछे. ते झेरवाला मोदक लेइ आपवामांडया त्यारे आचार्यजीए कह्युके अमने ए मोदक नहींकल्पे. धनपाले कांके मोदकमां शुं झेरवालेलंछे ? आचार्यजीए कयुके हा, एमोदकमां झेरजछे. पछी परम्पराए पूछवाथी एमां झेरछे एवो निर्णय थयो त्यार पछी जीवितदान आपनार श्रीशोभनाचार्यजीने पूछयुके आपे शाथी जाण्युंके आमां झेरछे. उत्तर आपतां जणाव्युंके, आ पांजरामा रहेला चकोरपक्षीए आ मोदकोने देखीने आंखोमीचीदीधी तेथी अमे विचायुके आमोदकमा खरेखर झेरछे. वळीशास्त्रप्रमाण आपवा पूर्वोक्तकाव्य कही बताव्यो ते सांभली धनपाल अजाएब थयो इत्यादि. ३१ प्रश्न-स्वीना अंग विषे कया कथा दिवसे क्या क्या काम रहेछ ? उत्तर-शुक्लपक्षमां पडवे पगना अंगुठे, वीजें पंजाए, त्रीजें पगनी Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२८) श्रीपश्नोत्तरमदीपे. घुटीए, चोथें ढींचणे, पांचमे जघने ( केडना आगला भागे ) छठे नाभीए, सातमें स्तने, आठमें बगलमां, नोमें गले, दशमें गालोए, अगीयारसे दांते, बारसे मुखे, तेरसें नेत्रोए, चौदशें केशपासे, अने पुनमें मस्तके, कृष्णपक्षमा पडवे माथे, बीजेंकेशे, एम अनुक्रमें वदमा उतरवू अने शुदमां चढवु एवीरीते स्त्रीओना एकेक अंगे एकेक दिवस कामनो वासो जाणवो. यतः “ अंगुष्टेपदगुल्फजानुजघनेनाभौचवक्षस्थलेकक्षा-- कंठकपोलदंतवदनेनेत्रेलकेमूर्द्धनि॥शुक्लाशुक्लविभागतोमृगदृशामंगेष्वनंगस्थितिमा॑धोगमनेनवामपदगापक्ष-- द्वयेलक्षयेत् ॥१॥” इतिवचनात्. अत्र रहस्यार्थ एछेके, जे दिवसे जे अंगे अनंगनो वासो होयते दिवसे ते अंगने यथोचित मर्दन करवाथी स्त्री वश थायछे इति. उक्तरीते श्रीपुरनगरमां श्रीपति नामना परम श्रावक शेठने कमल नामनो पुत्रहतो अने ते सर्वे कळाओमां निपुण हतो तेनी पासे श्रीसर्वज्ञमूरिजीए कहेलुछे. अने ते वात श्रीविजयलक्ष्मीरिजीए उपदेशमासादग्रन्थमा दाखल करीछे, वळी पंडितश्रीवीरविजयजी महाराजे पण पूर्वोक्तवात श्रीस्थूलभद्रशीलवेलमां गोठवेलीछे. शास्त्र व्याख्या नैवरसमय होयछे. माटे श्रृंगाररसयुक्तव्याख्या १ श्रृंगाररस, वीररस, करुणारस, हास्यरस, रौद्ररस, बीभत्सरस, भयरस, अद्भूतरस, अने शांतरस, एनवरस जाणवा. Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थः:प्रकाशः . . . . ( १२९ ) वांची वैराग्यवान पंडित पुरुषे व्यामोह न करवो. ३२ प्रश्न-" कुत्रिकापण" एटलेशुं ? उत्तर-पूर्वे मोटीमोटीनगरीओमां एवा नामनी देवाधिष्टित दुकानहती के, ज्यांथी त्रणभुवनमाहेनी जे वस्तु मागो ते मलीशके ते विष श्रीउत्तराध्ययनटीकार्नु प्रमाण नीचेमुजब. तथाचोक्तंश्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रटीकायाम्. “ हट्टोहिदेवसंबंधीकुत्रिकापणउच्यते ॥ सद्भावानखिलाँस्तत्रप्रदत्तेप्रार्थितःसुरः ॥ १॥" वळी श्रीभगवतीसूत्रवृत्तिमा “कुत्रिकापण" शब्दनी व्युत्पत्ति करीछे. तेपण पुर्वोक्तवातने मळतीछे. अने ते नीचे प्रमाणे. तथाचतवृत्तिः " कुत्तियावणत्तिकुत्रिकंस्वर्गमर्त्यपाताललक्षणंभूत्रयंतत्संभविवस्त्वपिकुत्रिकंतत्संपादकोयआपगोहडोदेवा धिष्टितत्वेनासौकुत्रिकापणः ” इति ३३ प्रश्न-"गोरस" शब्दनी केवी रीते व्युत्पत्ति थाय छे ? अने क्यां तेनी प्रवृत्ति होय छे ? उत्तर-" गवारसोगोरसः" गायोनो रस ते गोरस, ए तेनी व्यु त्पत्ति जाणवी, अने गोरसशब्दनी प्रवृत्तितो “ महिष्यादी नामपिदुग्धादिरूपेरसे" असवीगेरेना पण दुध, दही, घी, अने छास, रूपरसने विषे जाणवी एम श्रीगणांगसूउनी टी० क० Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३० ) श्रीमश्नोत्तरप्रदीपे. तथाचतट्टीका “गवारसोगोरसोव्युत्पत्तिरेवेयंप्रवृत्तिस्तुमहिण्यादीनामपिदुग्धादिरूपेरसे ” इति ३४ प्रश्न-अपकगोरसमां कठोल जम, जेम जैनशास्त्रमा वयु छे तेम लौकिकशास्त्रमा वज्र्यु हशे ? - उत्तर-हा, लौकिकशास्त्रमा पण वजेलं छे तेनो दाखलो नीचे प्र० श्रीविष्णुभगवान् कहे छे के, हे युधिष्ठिर अडद, मग, वीगेरे कठोल अन्नमां गोरस (काचं दुध, दही, अने छास) एकळु मेलवी जमवू ते नीचे करी मांस समान छे. यदुक्तंमहाभारते “गोरसंमाषमध्येतुमुद्गादिषुतथैवच ॥ भुञ्चमानंभवेन्नूनमांसतुल्यंयुधिष्ठिर ॥१॥” इति. प्रस्तावने लीधे आ ठेकाणे अमारे कहे, पडे छे के, स्वशास्त्रपरशास्रना अजाण बापडा ढुंढीया लोको काचां दुध, दही, छासमां कठोल खाय छे ते घणी सखेदाश्चर्यवातछे. ३५ प्रश्न-अन्यदर्शनमा रात्रीभोजन नहीं निषेधेलं होय ? उत्तर-पत्नपुराणमां रात्रिभोजननो निषेध करेलो छे ते नीचे प्रमाणे जे माणसो मद्य, मांस, अनेकन्दमूलनुं भक्षण करे छे, तथा रात्रिभोजन करे छे. ते माणसोनी तीर्थयात्रा, जप, तप, एकादशीव्रत, विष्णुजागरण, वोगेरे धर्मक्रिया वृथा जाणवी. आम कहेवाथी मद्य, मांस, रात्रिभोजन, अने कन्द. मूलनो निषेध कर्यो समजवो. Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थःप्रकाशः (१३१ ) यदुक्तम्. “ मद्यमासाशनंरात्रीभोजनकन्दभक्षणम् ॥ येकुर्वन्तिवृथातेषांतीर्थयात्राजपस्तपः ॥१॥ वृथाचैकादशीप्रोक्तावृथाजागरणंहरेः॥ वृथाचपौष्करीयात्रावृथाचान्द्रायणंतपः ॥२॥" वली पुराणोमां कहुं छे के, हे युधिष्टिर दया, सत्य, अस्तेय, (चोरी नहीं करवीते) ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, मद्य, मांस, अने मधनो त्याग, तथा रात्रिभोजननो त्याग ए सर्वे धर्मना अंगो छे, जे उत्तमबुद्धिवाला माणसो रात्रिने विषे हमेशा आहारनो त्याग करेछे. तेओने एक मासमां पंदर दिवसना उपवासनुं फल थायछे. जे धन्यमाणस हमेशां रात्रिभोजनमते विरतिने करेछे. ते नीचे करी पुरुषना अर्धा आयुष्यना उपवासवाळो होय एटले के, पुरुषने पोताना अर्ध आयुष्य जेटला उपवास, फल मले छे. हेयुधिष्टिरस्वजनमात्रपण मरण पामे छते ज्यारे नीचे करी सूतक थाय छे त्यारे सूर्य अस्त पामे छते भोजन कम कराय. हे युधिष्टिर आ दुनीयामां रात्रिने विषे तो पाणी पण नहीं पीवु अने तेमां पण तपस्विए अने विवेकी एवा गृहस्थे तो विशेषे करी नहीं पी. वलीऋग, ययुः, साम, लक्षण त्रण वेद तेओर्नु जे तेज ते सूर्य छ " आदित्यः त्रयीतनुः" एवं सूर्यनुं नाम छे. ए प्रमाणे वेदोने जाणनारा, जाणे छे, ते सूर्यना किरणोए करी पवित्र थएल सर्व शुभकर्मोने करे अर्थात् ज्यारे सूर्य न होय त्यारे शुभकर्मों करे नहीं. ते शुभकर्मों नीचेलख्यामुजबजाणवा. आहुति, (अग्निमांघृतादिकहुतद्रव्यप्रक्षेप Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३२ ) श्रीप्रश्नोत्तरमदीपे. करते ) स्नान, श्राद्ध, (पितृकर्म ) देवपूजा, दान, अने भोजनतो विशेषे करी नज करवू. आटलां शुभकर्मो रात्रिए नज करवां. प्रभातमां देवताओ भोजन करे छे. मध्यान्हे ऋषिओ भोजन करे छे. दिवसना पाछला भागमा पितृओ भोजन करे छे सायान्हे अर्थात् विकालवेलाए दैत्य, दानवो, भोजन करे छे अने संध्यावेलाए यक्ष, राक्षसो, भोजन करे छे. एम सर्वदेवताओना भोजनवखतने उल्लंघीने हे कुलोदह (युधिष्ठिर ) रात्रिए जे खावु ते अभक्ष्य छे इत्यादिकथनवडे अन्यदर्शनमा रात्रिभोजननो प्रगट निषेध करेलो छे तोपण जेओ रात्रिभोजन करे छे तेओ एक घणाकालथी पडेल खोटा प्रवाहनी अपेक्षाथी करे छे. एम समजाय छे. यदुक्तम्. "अहिंसासत्यमस्तेयंब्रह्मचर्यमसञ्चयः ॥ मद्यमांसमधुत्यागोरात्रिभोजनवर्जनम् ॥१॥ येरात्रौसर्वदाहारंवर्जयन्तिसुमेधसः॥ तेषांपक्षोपवासस्यफलंमासेनजायते ॥ २ ॥ करोतिविरतिधन्योयःसदानिशिभोजनम् ॥ सोर्द्धपुरुषायुषस्यस्यादवस्यमुपोषितः ॥ ३॥ मृतेस्वजनमात्रेपिसूतकंजायतेध्रुवम् ॥ अस्तंगतेदिवानाभोजनंक्रियतेकथम् ॥ ४॥ नोदकमपिपातव्यंरात्रावत्रयुधिष्ठिर ॥ तपस्विनाविशेषेणगृहस्थेनविवेकिना ॥ ५॥ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थःप्रकाशः (१३३ ) त्रयीतेजोमयोभानुरितिवेदविदोविदुः॥ तत्करैःपूतमखिलंशुभकर्मसमाचरत् ॥ ६॥ नैवाहुतिर्नचनाननश्राद्धंदेवतार्चनम् ॥ दानवाविहितंरात्रीभोजनश्चविशेषतः ॥७॥ देवैस्तुभुक्तंपूर्वान्हेमध्यान्हेऋषिभिस्तथा ॥ अपरान्हेतुपितृभिःसायान्हेदैत्यदानवैः ॥ ८॥ सन्ध्यायांयक्षरक्षोभिःसदाभुक्तंकुलोदह ॥ सर्ववेलांव्यतिक्रम्यरात्रीभुक्तमभोजनम् ॥ ९॥ युग्मम्. इत्यादि” वळी आयुर्वेद जे वैद्यकशास्त्रछे तेमां पण रात्रिभोजननो निषेध करेलोछे. ते आ प्रमाणे-आ शरीरमां वे कमलछे. एक हृदयपद्म ते अधोमुखछे. बीजुं नाभिपन ते ऊर्ध्वमुख छे आ बन्ने कमलो सूर्य अस्त थवाथी रात्रिए संकोचाइ जायछे. ते कारणथी रात्रिए न खावू जोइए वळी रात्रिए सूक्ष्मजीवो खावामां आववाथी अनेकप्रकारना रोग उत्पन्न थायछे. यदुक्तम् " हन्नाभिपद्मसङ्कोचश्चण्डरोचिरपायतः॥ अतोनक्तंनभोक्तव्यंसूक्ष्मजीवादनादपि ॥ १॥” इति हवे सर्वलोकोने देखवामां आवता रात्रिभोजनना दोषो बतावीए छीए-अन्नादिकमां कीडी खावामां आवे तो बुद्धि नांश थायछे, जु, खावामां आवी जायतो जलोदर थायछे, Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११४) श्रीपश्नोत्तरपदीपे. माखी वमन करावे छे, अने करोलीयो कुष्टरोग उत्पन्न करे छे. कांटो अथवा लाकडानो नानो खंड खावामां आवी जायतो गलामा व्याधिने उत्पन्न करे छे, शाकनी अंदर पडेलो विंछी ताळ, विंधी नाखे छे, अने गळामां वलगेलो वालस्वरभंगने माटे थाय छे, इत्यादि दृष्टदोषो रात्रिभोजन करवामां सर्वे लोकोने देखवामां आवे छे, माटे रात्रिभोजननो त्याग करवो एज श्रेष्टमार्ग छे. यदुक्तम्“मेधांपिपीलिकाहन्तियूकाकुर्याज्जलोदरम् ॥ कुरुतेमक्षिकावान्तिकुष्टरोगञ्चकोलिकः ॥१॥ कण्टकोदारुखण्डञ्चवितनोतिगलव्यथाम् ॥ व्यञ्जनान्तर्निपतितस्तालुविध्यतिवृश्चिकः ॥२॥ विलग्नश्चगलेवालःस्वरभङ्गायजायते ॥ इत्यादयोदृष्टदोषाःसर्वेषांनिशिभोजने ॥३॥" वळी रात्रि भोजन करवाथी घुवड वीगेरे तिर्यंचोना भव करवापडेछ. तेपण आ प्रमाणे-घुवड, काग, मार्जार, गीधपक्षी, शंबर, (मृगविशेष) सूअर, सर्प, विंछी, अनेघो, इत्यादि तिर्यंचयोनिमां रात्रिभोजनकरनाराओ मरीने जायछे. यदुक्तम् “ उलूककाकमार्जारगृध्रशम्बरशूकराः॥ अहिवृश्चिकगोधाश्वजायन्तेरात्रिभोजनात् ॥१॥" विस्तारवातपूज्यपादश्रीहेमचंद्राचार्यकृतश्रीयोगशास्त्रथी जाणवी. Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वतुर्थ: प्रकाशः ( २३५ ) ३६ प्रश्न - अन्य दर्शनना शास्त्रमां कंदमूल खावानी मना करीछे ? उत्तर - हा, पद्मपुराणमां मनाकरीछे अने ते वात उपरना प्रश्नोत्तरमां लखाइ गइछे अहींतो फक्त तेनो मूलपाठ लखीए छीए ते नीचे म० 66 मद्यमांसाशनंरात्रौभोजनंकन्दभक्षणम् ॥ येकुर्वन्तिवृथातेषांतीर्थयात्राजपस्तपः ॥ १ ॥ वृथाचैकादशीप्रोक्तावृथाजागरणंहरेः ॥ वृथाचपौष्करीयात्रावृथाचान्द्रायणंतपः ।। २ ।।” तथा शिवपुराणमां पण कंदमूल खावानी मनाकरीछे ते हकीकत आ प्रमाणे - जे घरमां माणसोए हमेशां अन्नार्थे कंदमूल पकावायछे ते घर श्मशान तुल्य जाणबुं. अने ते घर पिओए पण वर्जेलुंछे. वळी जे अधम माणस कंदमूल साथै अन्ननुं भोजन करेछे तेनी शुद्धि सेंकडो चांद्रायण तपे करीने पण न थाय. वळी शिव पार्वतीमत्ये कछे के. हे प्रिये जे माणस ताक, कालिंगडां, कंदमूल, अने अलाबु ( तुंबडी) ने भक्षण करनारोछे ते मूढमाणस अन्तकाले माराप्रत्ये स्मरण नहींकरे अर्थात् मने नहीं संभारे. बळी जेणे कंदमूलनुं भक्षण कर्तुं तेणे हालाहल ( एकविष) खाधुं. तेमज तेणे अभक्ष्यवस्तुनुं तथा मांसनुं भक्षण कीधुं मजावं. वळी जे माणस गळीना क्षेत्रने वावेछे तथा कंदमूलनं भक्षण करेछे ते माणस चंद्रसूर्यनी स्थिति सुधी नरकथी नीकली शकतो नथी इत्यादि कंदमूलभक्षणना दुषणो दाखल करवाथी सिद्ध थायछे के कंदमूल खावानी उक्त पुराणमां मनाक० Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीप्रश्नोत्तर प्रदीपे. यदुक्तम् “यस्मिन्गृहेसदान्नार्थमूलकः पच्यतेजनैः ॥ श्मशानतुल्यंतद्देश्मपितृभिःपरिवर्जितम् ॥ १ ॥ मूलकेनसमंचान्नंयस्तुभुंक्तेनराधमः ॥ तस्यशुद्धिर्नविद्येतचान्द्रायणशतैरपि ॥ २ ॥ ( ११६ ) यस्तुवृन्ताककालिङ्गमूलकालाबुभक्षकः ॥ अन्तकालेसमूढात्मानस्मरिष्यतिमांप्रिये ॥ ३ ॥ भुक्तंहालाहलंतेनकृतञ्चाभक्ष्यभक्षणम् ॥ तेनक्रव्यादनंयेनकृतंमूलकभक्षणम् ॥ ४ ॥ नीली क्षेत्रंवपेद्यस्तुमूलकंयस्तुभक्षयेत् ॥ नतस्यनरकोत्तारोयावच्चन्द्रदिवाकरौ ॥ ५ ॥ " तथा प्रभासपुराणमां पण उक्तवस्तुखावानी नीचे लख्या मुजब मना करीछे श्रीविष्णु भगवान् युधिष्ठिरना प्रत्ये कहेछे के हेयुधिष्ठिर पुत्रनुं मांस खावुं सारं, पण कंदमूलनुं भक्षण करवुं ते सारूं नहीं शाथी के कंदमूलना भक्षणथी माणसो नरक प्रत्ये जायछे अने तेने वर्जवाथी स्वर्गने पामेछे, हेदेव में अजाणपणे कंदमूळनुं भक्षणकर्यु पण हवे ते संबंधी जे पाप मने लाग्यं ते हेगोविंद हेगोविंद एम तमारा कीर्त्तनथी जाओ इत्यादि कहेवाथी प्रभासपुराणमां पण कंदमूळ खावानी मनाकरीछे एम अत्रे प्रगट समजायछे. १ मांसभक्षणम्. २ गळीनुं क्षेत्र. Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थः प्रकाशः यदुक्तम्. ( १३७ ) " 'वरं भुक्तंपुत्रमासंनतु मूलकभक्षणम् ॥ भक्षणान्नरकंयान्तिवर्जनात्स्वर्गमाप्नुयात् ॥ १ ॥ अज्ञानेनकृतंदेवमयामूलकभक्षणम् ॥ तत्पापंयातुगोविंदगोविंदइतिकीर्त्तनात् ॥ २ ॥ " वळी गौडीयस्मृतिमां हमेशां माघमासमां कंदमूल खानुं ते मदिरासमान कहेलुंछे. ते नीचे प्रमाणे तथाचतत्पाठः “ सदामाघे मूलकंमदिरासमम् ” इति एम सर्वत्र निषेध करेलछे छतां कंदमूळ खावुं ते अन्यमतावलंबिओने शरमावा जेवुंछे इत्यलम्. ३७ प्रश्न - ब्राह्मणोने राजप्रतिग्रह ग्राह्य छे ? उत्तर – महाभारतना शांतिपर्वमां ग्राह्य कह्यो नथी किन्तु अग्राह्य कह्यो छे. ते आप्रमाणे - दश कसाइखाना सरखो एक चक्री छे, अने दश चक्री सरखो एक कलालछे, अने दश कलाल सरखी एक वेश्या छे, अने दश वेश्या सरखो एक राजा छे, राजानो प्रतिग्रह ( दान लेवुं ते) प्रथमतो मधना स्वाद सरखो छे पण अंते विषसमान भयंकर छे, माटे पुत्रतुं मांस खावुं सारुं पण ब्राह्मणे राजानुं दान लेवुं नहीं सारूं, वली हे युधिष्टिर राजाना प्रतिग्रहथी दग्धथएला एवा जे ब्राह्मणो तेओनो दग्धथएला बीजोनीपेठे पुनर्जन्म पण होतो नथी इत्यादि. १८ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ( १३८) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. यदुक्तम्. " दशसूनासमश्चक्रीदशचक्रिसमोध्वजः ॥ दशध्वजसमावेश्यादशवेश्यासमोनृपः ॥१॥ राजप्रतिग्रहोघोरोमधुस्वादोविषोपमः॥ पुत्रमांसंवरंभुक्तंनतुराजप्रतिग्रहः ॥ २॥ राजसतिग्रहदग्धानांबाझगानायुधिष्ठिर ॥ दग्धाना मवबीजानांपुनर्जन्मनविद्यते ॥३॥” इति ३८ प्रश्न-अन्यदर्शनमां देवताओने प्रसन्न करवा आठ पुष्पोथी पूजा कही छे ते आठ पुष्पो कयां जाणवां ? उत्तर-पहेलं पुष्प अहिंसा, बीजुं पुष्प पंचइन्द्रियनो निग्रह, त्रीजें पुष्प सर्व प्राणिओपर दया, चोथं पुष्प विशेषे करीने क्षमा, पांचमु पुष्प ध्यान, छठं पुष्प तप, सातमुं पुष्पज्ञान, अने आठमुं पुष्प सत्य छे, एवी रीतना उक्त आठ पुष्पोवडे पू. जन करवाथी देवताओ प्रसन्न थाय छे. यदुक्तम्. "अहिंसाप्रथमंपुष्पंपुष्पमिन्द्रियनिग्रहः॥ सर्वभूतदयापुष्पंक्षमापुष्पंविशेषतः॥१॥ ध्यानपुष्पंतपःपुष्पंज्ञानपुष्पंचसप्तमम् ॥ सत्यंचैवाष्टमंपुष्पंतेनतुष्पन्तिदेवताः ॥ २॥" Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थःमकाशः अत्र तात्पर्यार्थ ए छे के, जे अज्ञलोको बीजी मद्यमांसादिखराबचीजोवडेपूजनकरी देवताओने प्रसत्र करवा इच्छा । राखे छे ते धुंआडाना बाचका भरवा जे छे किम्बहुनेत्यलम् ३९ प्रश्न-अन्यदर्शनमां कर्तुं छे के पंडितोए छ वस्तुओ न लेवी तेम कोइने न देवी ते छ वस्तुओ कइ जाणवी ? उत्तर-“ नग्राह्याणिनदेयानिषवस्तूनिवपण्डितैः॥ अमिर्मधुविषंशस्त्रंमद्यमांसंतथैवच ॥१॥" सुगमार्थः अत्र श्लोकना पश्चार्द्धभागमां कहेली छ वस्तुओ न लेवी तेम कोइने न देवी एम कहेवानुं तात्पर्यार्थ सर्वना समज वामां आवे तेम छे माटे लखवानी जरुर नथी इत्यलम्. ४० प्रभ-१८ भार वनस्पति कही छे ते श्रीजैनमतअपेक्षाए के अन्यमतअपेक्षाए अने ते केवीरीते इत्यादि सविस्तर वात कहो. उत्तर- -लौकिकशास्त्रनी अपक्षाए १८ भार वनस्पति कहीछे अने ते केवीरीते कहीछे. इत्यादि सविस्तर वात नीचे प्रमाणे३८११७२९७० मगनो एक भार कयो छे. पाठान्तरे३८११११७० मगनो भारपण कह्यो . आ ठेकाणे एम समजवानुंछे के वनस्पतिनी एकक जातिनं एकेक पत्र लयागी एटलेमणे एक भार थायछे, अने नेवा भार बनस्पातना १८ जाणवा. हवेते अठार भार वनस्पतिनो वैचग नोचेप्रमाणे फुलजातिनी वनस्पतिना चार भार, फलफुलजातिनी: वनस्पतिना आठभार, अने वेलजातिनी वनस्पतिना छ भार एवीरीते १८ भार वनस्पति कही.छे. Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४० ) श्रीमश्नात्तरप्रदीपे. यदुक्तम्. शून्यसप्ताङ्कहस्ताश्वसूर्येन्दुवसुवन्हयः ॥ एतत्संख्याङ्कनिर्द्दिष्टोवनभारः प्रकी र्त्तितः । १। पाठान्तरे रामाश्चवसवश्चन्द्रःसूर्योभूमिस्तथैवच ॥ मुनिःशून्यंसमादिष्टाभारसंख्या निगद्यते ॥ २ ॥ एकैकजा तिरेकैकपत्रप्रचयतोभवेत् ॥ प्रोक्तसंख्यैर्मणैर्भारस्तेत्वष्टादशभूरुहाम् ॥ ३ ॥ चत्वारः पुष्पकाभाराः अष्टौचफलपुष्पिताः ॥ स्युर्वल्ली नाचषड्भाराः शेषनागेनभाषितम् ||४|| ” इति << ४१ प्रश्न - " पाणिनि ” नामना आचार्य स्वभावथी के कोइनाथी मृत्यु पामेलाछे ? 66 उत्तर - शालातुरग्रामनीवासी, दाक्षीपुत्र, अष्टाध्यायीव्याकरणादिग्रन्थकर्त्ता, “ पाणिनि ” नामना आचार्य सिंहथी मृत्यु पामेलाछे, " यदुक्तंपञ्चतन्त्रे. सिंहोव्याकरणस्य कर्त्तुरहरत्प्राणान्प्रियान्पाणिनेः ४२ प्रश्न - " दिवाकीर्त्ति " शब्देभुं समजवुं ? उत्तर - नापित, समजवो. "" Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थ-मकाशः . (१४१ ) यतः " दिवैवकीर्तिःकृत्यंयस्यसत्रौक्षुरकर्मनिषेधात्सदिवाकीर्तिः(नापितः) इतिवचनात्.” । प्रस्तावने लिधे कहेवू पडेछेके केटलाक अज्ञानीलोको रात्रिए मुंडन करावेछे पण ते न करावQ जोइए. ४३ प्रश्न-" यक्षकर्दम " कोने कहीए ? उत्तर-समभागमिश्रित केसर, अगरु, कस्तूरी कर्पूर, अने चंदन, एपांच सुगंधिद्रव्यवडे यक्षकर्दम निष्पन्न थायछे. तथाचाहधन्वन्तरिः “कुश्मागरुकस्तूरीकर्पूरंचन्दनंतथामहासुगन्धिरित्युक्तंनामतोयक्षकर्दमः ॥१॥” व्याडिरपितथैव. ४४. प्रभ-“कर्णीरथ " एटलेशुं ? उत्तर-पुरुषवाह्य एवं स्त्रीयोग्य एकयान (पालखी) दृष्टान्ततरीके जे वखते सीताने अयोध्यामां लान्या तेवखते सीताकीरथमां ( पालखीमां ) बेठांहतां यदाहकालिदासकविःश्रीरघुवंशे. " श्वश्रूजनानुष्टितचारुवेषां । कीरथस्थारघुनाथ१ अभ्यक्तस्नानाशितभूषितयात्रारणोन्मुखैःक्षौरम् ॥ विद्यादिनिशासन्ध्यापसुनवमेन्हिनकार्यञ्च ॥१॥ इत्युक्तत्वाद. २ सीताम्. Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४२ ) श्रीमश्नोत्तरप्रदीपे. पलीम् ॥ प्रासादवातायनदृश्यबन्धैः । साकेतनार्योञ्जलिमिःप्रणेमुः ॥१॥” इति ४५ प्रश्न-शौचधर्माधिकारिओने अत्यन्तमलिनदेह आत्मानुं निर्मलपणुं पोतानी बुद्धिए कल्पेल तीर्थादिजळस्नानेकरीनेजथायछे शुं? उत्तर-ना, तेम नथी थतुं केमके पुराणादिकशास्त्रमा ना पाडी छे ते नीचे लख्या प्रमाणे स्कंदपुराणमां काशीखंडषष्टाध्यायविषे कडुंछ के, दुराचारी माणसो हजारो भार माटीथी तथा सेंकडो गमे पाणीना धडाओथी अने सेंकडो तीर्थना स्नानोथी पण शुद्ध थता नथी, जळचरजीवो जळमांज उत्पन्न थाय छे अने जळमाज मरे छे पण मनना मळ नहीं धोवा याथी तेओ स्वर्गे पण जता नथी, जेनुं चित्त रागादिकोथी क्लिष्ट थएलं छे, तथा जेनुं मुख जुठां वचनोथी अपवित्र थएलं छे, तथा जेनी काया जीवहिंसादिकथी अशुचि थएली छे, तेनाथी गंगानदी उलटा मुखवाळी रहेछे अर्थात् घणी दूर रहेछ, जेनुं चित्त शमतादिकथी शुद्ध थएलुं छे तथा जेनुं मुख सत्य वचनोथी शुद्ध थएलुं छे तथा जेनुं शरीर ब्रह्मचर्यादिकथी पवित्र थएलं छे ते माणस गंगानदी विना पण शुद्ध छे, अर्थात् तेने गङ्गाजीए जवानी जरुर नथी. वळी गंगा पण कहेछे के जे माणस परस्त्री, परद्रव्य, अने परद्रोहथी उलटा मुखवाळो छ अर्थात् दूरछे, ते माणस क्यारे आवीने मने पवित्र करशे. इत्यादि यदुक्तम्. “ मृदोभारसहस्रेणजलकुंभशतेनच ॥ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४३ ) चतुर्थः प्रकाशः नशुध्ध्यन्तिदुराचाराः स्नानतीर्थशतैरपि ॥ १ ॥ जायन्तेचम्रियन्तेचजलेष्वेवर्जलौकसः ॥ नचगच्छन्तितेस्वर्गमविशुद्धमनोमलाः ॥ २ ॥ चित्तंरागादिभिःकिष्टमलिकवचनैर्मुखम् ॥ जीवघातादिभिःकायोगङ्गा तस्यपराङ्मुखी ॥ ३ ॥ चित्तंशमादिभिःशुद्धं वचनंसत्यभाषणैः ॥ ब्रह्मचर्यादिभिः कायः शुद्धोगङ्गांविनाप्यसौ ||४|| परदारापरद्रव्यपरद्रोहपराङ्मुखः ॥ गङ्गाप्याहकदागत्यमामयंपावयिष्पति ॥ ५ ॥ ” तथा शिवपुराणमां कां छे के पापकर्म करनारो अपवित्र थायछे, अने शुद्धकर्म करनारो पवित्र थाय छे. माटे शुद्ध कर्मरूप शुचिपणुं स्वीकारखं, ते सीवायनुं बीजुं जलथी जे शुचिपणुं छे ते निरर्थक छे अर्थात् तेनी जरुरात नथी, अन्तर्गतदुष्टथरलं एवं जे चित्त, ते तीर्थना स्नानोथी is शुद्ध थतुं नथी, जेमके, सेंकडो वखत पाणीथी धोएलो एवो मन घडो अपवित्रज रहेछे, माटी, पाणी, तथा अग्नि पण कर्मरूपी मेलने घोवाने समर्थ नथी, तेथी पंडित पुरुषोतो ज्ञान, ध्यान, अने तपरूपी पाणीथी कर्मरूपी मेलने धुवे छे भावदुष्टप्राणी जीवितपर्यन्त सर्वगंगाना Geet अने पर्वत जेवडा माटीना पिंडोथी स्नान करे तो पण शुद्ध तो नथी. जळचरजीवाः Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपभोत्तस्मदीपे. यदुक्तम्. "अशुचिःपापकर्मास्याच्छुद्धकर्माशुचिर्भवेत् ॥ तस्मात्कर्मात्मकंशौचमद्भिःशौचंनिरर्थकम् ॥१॥ चित्तमन्तर्गतंदुष्टतीर्थस्नानै शुद्धयति ॥ शतशोपिजलैधौतंसुराभाण्डमिवाशुचि ॥ २॥ नमृत्तिकानैवजलंनाप्यमिःकर्मशोधनः ॥ शोधयन्तिबुधाःकर्मज्ञानध्यानतपोजलैः ॥३॥ गङ्गातोयेनसर्वेणमृत्पिण्डैश्चनगोपमैः ॥ आमृत्योराचरत्स्नानंभावदुष्टोनशुद्धयति ॥ ४॥" वळी कपुछे के पाणी मात्रथी भीजाएला शरीरवालो माणस कंइ स्नान करेलो कहेवातोनथी, पण जेणे इन्द्रियोने दमीछे तेज स्नानकरेलो, तथा तेज बाह्य अने अन्तरथी पवित्र थएलो कहेवायछे, श्रीकृष्ण कहेछेके, संयमरूपजलथी भरेली, सत्यरूपप्रवाहवाली, शीलरूपकांठोछेजेने तेवी तथा दयारूपकल्लोलवाली, एवी आत्मारूपीनदीमां हे पांडुपुत्र तुं अभिषेक कर केमके केवल पाणीथी कंइ अन्तरात्मा शुद्ध थतोनथी. तेमजवली आचाररूपवस्त्रांचलथीगळेल, तथा सत्य, प्रसन्न, अने क्षमारूपशीतलताछेजेमां एवाज्ञानरूपजलवडे जे पुरुष निरन्तर स्नानकरे छे, तेने फरी आ बाह्य जल वडे करी शुं प्रयोजन छ ? अर्थात् कंइ प्रयोजन नथी. Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थःप्रकाशः यदुक्तम्. “नोदकक्लिन्नमात्रोपिस्नातइत्यभिधीयते ॥ सस्नातोयोदमस्नातःसबाह्याभ्यन्तरःशुचिः॥१॥ आत्मानदीसंयमतोयपूर्णा। सत्यावहाशीलतटादयोर्मिः॥ तत्राभिषेकंकुरुपाण्डुपुत्र । नवारिणाशुद्धयतिचान्तरात्मा ॥ २ ॥ आचारवस्त्राञ्चलगालितेन । सत्यप्रसन्नक्षमशीतलेन ॥ ज्ञानाम्बुनानातिनरोनिशंयः। किन्तस्यभूयःसलिलेनकृत्यम् ॥ ३॥" इत्यादिपुराणोक्तपाठथी सिद्ध थायछे के केवलजलस्नान करवाथी महामलिनदेहात्मानिर्मलथतोनथी इति. हवे जलथी द्रव्यस्नानकर जे कर्तुं छे, ते फक्त देवपूजादिका भावशुद्धिना कारणे गृहस्थनेकरवू कांछे. अने ते पण शास्त्रोक्तविधिप्रमाणे जयणाथी करवू कां छे, माटे देहशुद्धिनी भ्रांतीए वारंवार स्नान करवू नहीं शाथी के जलस्नान करवाथी असंख्यजीवोनी विराधना थाय छे. जल जे छे ते जीवमय छे एम लौकिकशास्त्रथी पण सिद्ध थाय छे. उत्तरमीमांसामां का छे के करोळीयाना मुखमाथी नीकळेला तंतु उपरथी गळीने पडेला पाणीना एक बिंदुमां जे सूक्ष्मजीवोछे, ते जो भ्रमर जेटला थाय तो त्रण जगतमां समाय नहीं. Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४६) श्रीमश्रोत्तरप्रदीपे. यदुक्तम. "लूतास्यतन्तुगलितयेक्षुद्राःसन्तिजन्तवः। सूक्ष्माभ्रमरमाणास्तेनैवमान्तित्रिविष्टपे ॥१॥" इत्यादि, अत्रस्नानसंबंधीविशेषाधिकारश्रीहरिभद्रसूरिकृत स्नानाष्टकनी टीकाथी समजी लेवो. इतिश्रीमत्तपागच्छेनेकगुरुगुणगणालङ्कतपण्डितश्रीमद्रूपविजयगणिवयंशिष्यपण्डितश्रीकीर्तिविजयगणिशिष्यपण्डितश्रीकस्तूरविजयगणिशिष्यपण्डितश्रीमणिविजयगणि शिष्यपं०श्रीशुभविजयगणिशिष्यमुं०श्री लक्ष्मीविजयेनविरचितेश्रीप्रश्नोत्तर प्रदीपेचतुर्थःप्रकाशः Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमःप्रकाश ( १४७ ) अथपञ्चमःप्रकाशः प्रणिपत्यप्रभुंपार्श्वपार्श्वयक्षसुसेवितम् ॥ ग्रन्थस्यास्यप्रकाशञ्चकुर्वेहननुपञ्चमम् ॥ १॥ १. प्रश्न-रात्रिए देवपूजादिशुभकार्य थाय ? उत्तर-न थाय एम शास्त्रमा कहेलं छे, वळी श्रीभगवतीसूत्रमा रा त्रिए अशुभपुद्गलपरिणाम कह्यो छे, शुभपुद्गलपरिणाम कह्यो नथी. शुभपुद्गलपरिणामतो पुद्गलद्रव्यशुभतानिमित्तभूतसूर्यना किरणोना स्पर्शथी दिवसेज कह्यो छे. ते परथी पण अत्र सिद्ध थाय छे के रात्रिए देवपूजादि शुभ कार्य न थाय. वळी अन्यशास्त्रोमां पण रात्रिए शुभकार्यकरवा वर्जेला छे अने ते वात अमे चोथा प्रकाशमां रात्रि. भोजनसंबंधीप्रश्नोत्तरविषे कहेली छे ते त्यांथी जोइ लेवी इत्यादिः २ प्रश्न-मर्त्यलोकनो दुर्गध उंचो क्यां मुधी जतो हशे ? उत्तर-मनुष्यलोकनो दुर्गध चारसे पांचसे योजन सुधी उंचो जाय छे अने तेथी करीने पण देवता अत्रे आवता नथी, एम संग्रहणीसूत्रमा कर्जा छे अने ते नीचे मुजब. यदुक्तम्. "चत्तारिपंचजोयणसयाइंगंधोमणुअलोअस्स ॥ उईवञ्चइजेणंनहुदेवातेणआवंति ॥१॥” इति Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४८) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. अने उपदेशमाळानी कर्णिका नामनी टीकामां तो वळी आठसो योजन सुधी अथवा तो एक हजार योजन सुधी पण उंचो जाय छे एम कहेलुं छे ते नीचे प्रमाणे यदुक्तम्. "ऊर्ध्वगत्याशतान्यष्टौसहस्रमपिकहिचित् ॥ मानांयातिदुर्गन्धस्तेनेहायान्तिनामराः॥१॥” इति विस्तारवातलोकप्रकाशथी जाणशो. ३ प्रश्न-मानुषोतरपर्वत, अभ्यन्तरपुष्करवरद्वीपना अर्द्धमा छ, के बाह्यपुष्करवरद्वीपना अर्द्धमा छे, के बेनी मध्ये छे ? उत्तर-बृहत्क्षेत्रसमासवृत्तिमा तथा जीवाभिगमसूत्रवृत्तिमां बाह्यपुकरवरार्द्धभूमिमां कहेलो छे. तथाचाहुर्मलयगिरयः “अयञ्चमानुषोत्तरपर्वतोबाह्यपुष्करवरार्द्धभूमौप्रतिपत्तव्य ” इतिबृहत्क्षेत्रसमासवृत्तौजीवाभिगमवृत्तावप्येवमेवेति । ४ प्रश्न-जंबूद्वीपपट्टादिकमां महाहिमवान् वर्षधरपर्वत पीतवर्ण शाथी उत्तर-श्रीजंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रमा महाहिमवान् वर्षधरपर्वत सर्वरत्न मय कहेलो छे अने बृहत्क्षेत्रविचारादिकमां तो पीतस्वर्णमय कहेलो छे ते मतान्तर छे अने तेज मतान्तरने आश्रि जंबूद्वीपपट्टादिकमां पीतवर्ण देखाय छे. इति तात्पर्यार्थः Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४९ ) पञ्चमः प्रकाशः तथाचाही लोकप्रकाशे “ अस्योत्तरान्तेचमहाहिमवान्नामपर्वतः ॥ सर्वरत्नमयोभातिद्दियोजनशतोन्नतः ॥ १ ॥ अयं जम्बूद्दीपप्रज्ञप्त्यभिप्रायः । बृहत्क्षेत्रविचारादौ - त्वस्यपीतस्वर्णमयत्वमुक्तमितिमतान्तरमव सेयमनेनैवच-मतान्तराभिप्रायेणजम्बूद्दीपपट्टादावस्यपीतवर्णत्वंदृश्यत इति " ५ प्रश्न - पंचशतयोजनपहोळा गजदंत गिरिपर सहस्त्रयोजनपहोळोसहस्रकूट शीरीते रह्यो ? उत्तर --- सहस्रकूटनो अर्द्धभाग गजदंत गिरिपरछे अने शेष अर्द्ध भाग गजदंतगिरिना वे बाजुए आकाशविषेप्रतिष्ठितछे एम समजवुं. यदुक्तलोकप्रकाशे “ शतानिपञ्चविस्तीर्णेगजदन्तगिराविदम् ॥ सहस्रयोजनपृथुकूटंमातिकथंननु || १ || अत्रोच्यते गजदन्तगिरिंप्राप्यनिजार्द्धेन स्थितंततः ॥ गिरेरुभयतोव्योम्निशेषार्द्धेनप्रतिष्ठितम् ॥ २ ॥ इत्यादि "" ६ प्रश्न - पांचमा आराने अन्ते वैताठयपर्वत पर विद्याधरो अने तेओ ना नगरो रहेशे के केम ? Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५०) श्रीप्रश्नोत्तरपदीपे. उत्तर-पांचा आराने अन्ते वैताठयपर्वत उपर पण घणा मेघ वर्षशे तेथी त्यां रहेला विद्याधरो तथा तेमना नगरो नहीं रहे, नाशपामशे. तथाचोक्तलोकप्रकाशे “वर्षन्तिवैताब्यादीनामुपय॑पिघनाअमी॥ तत्रस्थाअपिनश्यन्तिखेचरास्तत्पुराणिच ॥१॥" ७ प्रश्न-जंबुद्वीपनी जगतीनो “गवाक्षवलय" जगतीनी भीत मध्य गतले के जगतीना उपरछे ? उत्तर–श्रीजंबुद्वीपप्रज्ञाप्तिसूत्रवृत्तिमां लवणसमुद्रतरफजगतीनी भीतना मध्यगत कह्योछे अने श्रीजंबुद्वीपसंग्रहणीवृत्तिमांतो लवणसमुद्रतरफजगतीना उपरकह्योछे आठेकाणे थोडो विस्तारछे पण ते श्रीलोकप्रकाशथी जाणवो. ८ प्रश्न-औषध, अने भेषजमां कंड तफावत हशे? उत्तर-एकजातीयशुंठवीगेरे ते औषध, अने अनेकजातीयगोळी, चूर्णवीगेरे ते भेषज, एम श्रीपंचसूत्रीहत्तिना वचना नुसारे करी भेद समजायछे. ... यदुक्तंसेनप्रश्ने " तथोषधभेषजयोःकश्चिद्भेदोभवतिकिंवानेतिप्र० उ०एकजातीय°व्याद्यौषधमनेकजातीयगुटिकाचूर्णादिभेषजमितिश्रीपञ्चसूत्रीवृहद्वृत्तिवचनानुसारेणभेदोज्ञायते" अने श्रीगच्छाचारवृत्तिमांतो केवलद्रव्यरूप अथवा शरीरना बाह्य उपयोगमाआवे ते औषध, अने अनेकद्रव्यसं Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमःमकाशः (१५१) योगरूप अथवा शरीरना अभ्यन्तरउपयोगमां आवे ते भेषज, एम दर्शावेलछे. तथाचतवृत्तिः “औषधानिकेवलद्रव्यरूपाणिबहिरुपयोगीनिवामेपजानिसांयोगिकान्यान्तर्भोग्यानिवेति" ९ प्रश्न-श्रावक कोनी कोनी साथे व्यापार न करे ते कहो ? उत्तर-लुहार, चमार, कलाल, घांची, तस्कर, धुर्त, मलिन, पतित, चंडाल, कसाइ, वाघरी, पारधी, भाडभुंज, इत्यादि साथे घणोलाभछतांपण व्यापार न करे. तेम बीजानी पासेपण न करावे. शाथीके ते महारंभादिककर्मना करनाराछे. एम श्रीजैनशास्त्रमा कहेलुंछे. वळी पंदर कर्मादान तेपण श्रावकने करवां कराववां श्रीउपासकदशांगप्रमुखमा वज्योछे इत्यादि घणीवातछे. १० प्रश्न-मुनिआश्रिचारप्रकारना श्रावक कह्याछे ते कया ? उत्तर-मातापिता जेम बालक उपर भावराखी बालकनी सारसं भाळ करेछे, तेम जे श्रावक साधुउपर भाव राखी साधुनी सारसंभाळ करे पण साधुना प्रमादादिदोषदेखायी साधुउपर कंइपण भक्तिराग ओछो न करे ते श्रावक मातापितासमान पहेलो जाणवो. १ जे श्रावक, साधुउपर मननी अंदरतो घणो राग राखे छे परन्तु बहारथी विनयसाचववामां मंद आदरवाळो छ पण जो कोइ दुष्टजीव साधुने पराभव करे तो तरत त्यां जइ साधुने सहाय्य करे ते श्रावक बंधुसमान बीजो जाणवो. २ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५२) श्रीप्रश्नोत्तरमदीपे. जे श्रावक, पोताना सगावहालां करतां पण साधुने अधिक गणे अने तथाविधकोइकाममां साधु तेनी सलाह न ले तो अहंकारथी साधुउपर रोष करे ते श्रावक मित्रसमान त्रीजो जाणवो. ३ जे श्रावक साधुना दूषण देखवामां तत्पर होय, अने साधुनी प्रमादथी कोइ थएली भूल हमेशां कह्या करे अने वळी साधुने तृणसमान गणे ते श्रावक शोक्यसमान चोथो जाणवो. ४ वळी बीजी रीते पण चार प्रकारना श्रावक कया छे. जेमके आरिसासमान, द्वजासमान, स्तंभसमान, अने खरकंटक (झांखरा) समान, अथवा खरंटक (विष्टादिअशुचिद्रव्य ) समान, तेमां जे श्रावक, साधुए यथार्थ कहेला उत्सर्ग, अपवाद वीगेरे आगमभावोने पोताना मनमां बरोबर उतारे ते श्रावक आरीसासमानपहेलो जाणवो. १ जे श्रावक पोताना अनवस्थितबोधने लीधे ज्यां त्यां विचित्रदेशनारूपवायुएकरी द्वजानी माफक भम्या करे ते श्रावक द्वजासमान बीजो जाणवो. २ जे श्रावक गीतार्थमुनिमहाराजनी देशनाए करीने पण पकडेल कदाग्रहने न छोडे पण गीतार्थमुनिराजउपर द्वेष भाव न राखे ते श्रावक स्तंभसमान त्रीजो जाणवो. ३ अने जे श्रावक, सद्धर्मनो बोध करनार मुनिमहाराजने दुर्वचनरूप कांटाए करी वींधे ते श्रावक खरकंटकसमान चोथो जाणवो. अथवा तो तुं उत्सूत्रप्ररूपणाकरनारो, Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमःप्रकाशः (१५३) निन्हव, मूढ, अने मंदधर्मी छे. एवा निंदारूपअशुचि छांटाने उडाडे ते श्रावक खरंटक (विष्टादिअशुचिद्रव्य) समान चोथो जाणवो. ४ आठेकाणे शोक्यसमान, अने खरकंटक, अथवा खरंटक, समान बन्ने श्रावकने श्रीतीर्थङ्कर, गणधर भगवाने निश्चय नयमते मिथ्यादृष्टि कह्याछे. अने व्यवहारनयमते श्रावक कह्याछे. विस्तार श्रीस्थानांगसूत्रवृत्तिथी जाणवो. ११ प्रश्न-गृहस्थने पांच सूनादोष कह्याछे ते कया ? अने सूना शन्दे करी शुं समजवू ? सत्तर-सूना शब्देकरी छकायजीवोना वधनुं स्थान जाणवू अने तेवां स्थान पांचछे. ते आ प्रमाणे.. चूलो, घंटी, खांडणी, पाणीहारु, अने सावरणी, माटे ए उक्त पांचस्थानके श्रावकश्राविकाओए घणीज यतना पूर्वक वर्तवू. बळी मुनिमहाराजो गृहस्थना घरने नथी वखाणता ते आ पांच जीववधस्थानादिककारणने लीधे. १२ प्रश्न-जेम कोइने गृहस्थवेषे पण केवळज्ञान उपजेछे तेम मन: पर्यायज्ञान उपजे के केम ? उत्तर-मुनिवेषविना चोधुं मनःपर्यायज्ञान न उपजे कयुंछे के " मुनिवेषजविनारे नविउपजे चोथुनाण" अने तेपण अप्रमत्तगुणठाणेज उपजे. इति तात्पर्यार्थः । १३ प्रश्न-बारव्रतनी पूजामा "चारदिशा विमलातमारे" इत्यादिक० त्यां " विमलातमा " एटलेशुं ? उत्तर-निर्मलपणाना कारणथी " विमला " एवंऊर्ध्वदिशा, नाम २० Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीम श्रोत्तरपदीपे. छे, अने अंधकारयुक्तवडे करी रात्रिसमानपणाना कारणथी " तमा" एवं अधोदिशानुं नामछे, यदुक्तंश्रीभगवतीटीकायांस्थानाङ्गटीकायाञ्च “विमलेतिवितिभिरत्वादूर्ध्वदिशोनामधेयस्तमेत्यंधकारयुक्तत्वेनरात्रितुल्यत्वादधोदिशश्चेति अर्थात् " चारदिशाविमळातमारे " एटले छ दिशा, एम जाणबुं. १४ प्रश्न - पौषघमध्ये भोजनकराय एवा अक्षरो क्यांइछे ? उत्तर-हा, श्रीजिनवल्लभसूरिकृतपौषधप्रकरणमां, श्राद्धप्रतिक्रमणनी चूर्णिमां अने श्रीपंचाशकनी चूर्णिमांछे. वळीवारव्रतनी पुजामां- पण " एकासणकांरे श्रीसिद्धांतमे " इत्यादि एम घणेठेकाणे तेवा अक्षरो छे. १५ प्रश्न - आयंवीलमां हलदर कल्पे के केम ? उत्तर - नकल्पे, एम श्रीलघुप्रवचनसारोद्धारमां कहुं छे. तत्पाठोयथा 'हलिद्दप्पभइअकप्पं " इति १६ प्रश्न - शंबुकावर्त्तफोड़वां नहीं त्यां " शंबूकावर्त्त " शब्दे भुं समजवूं ? ( १५४ ) 66 "" " उत्तर-भ्रमरगृह समजनुं कारणके श्रीकल्पसामाचारीवृत्तिमां “शंबुकावर्त्त " शब्दे भ्रमरगृह कबुंछे. १ आजिनवल्लभसूरि खरतरगच्छना न समजवा. Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पश्चम:प्रकाशः (१५६) १७ प्रश्न-चक्षुहीनमाणसने केवलज्ञान उपजे ? उत्तर-हा, केवलज्ञान उपजे अने तेजवखते ते देखतो थाय इत्यादि १८ प्रश्न-हालमां सुधरेल केटलाक श्रावको श्रीदेरासरमा पण उत्त रासंग नथी राखता तेनुं शुं कारण ? उत्तर-निजअज्ञानप्रमादादिदोषना सद्भावथी ते नथी राखता एम समजायछे. अथवा जे नथी राखता तेने पूछवाथी नहीं राखवानुं कारण समजाशे. वश एज. १९ प्रश्न-त्रण उभरावडे अचित्त थएलु उष्णजळ गळ्या विना पीयूँ कल्पे के केम ? उत्तर-गालन करेलु उष्णजळ पी कल्पे, पण नहींगालनकरेलु उष्णजळ पीवं न कल्पे एम श्रीहीरप्रश्नोत्तरमां कहेलुछे. वळी नहींगालनकरेला. उष्णजळमां तृणादिकनो संभव होयछे अने तेथी ते तृणादिक गळामा लागवाथी दुःख उत्पन्न थायछे माटे गळीने पीयूँ तेज सर्वोत्तममार्गछे इति रहस्यार्थः २० प्रश्न-कोइ गृहस्थ एकाशनादितपकर्याविना उनुपागिपीएछ ते पाणस्सना आगारले ? उत्तर-हा, ते पाणस्सना आगारले पण तेने सांजे चगविहार थाय पाणहारपच्चरकाण न थाय एवं श्रीसेनमश्नमां कथनछे. २१ प्रश्न-चोमासानी अहाईओ क्याथी क्या मुधी जाणवी.. उत्तर–सातमथी मांडी चौदश सुधी जाणवी भने पूर्णिमा तो पर्व तिथिपणे करी आराध्य छे. एम सेनप्रश्नमा कहेलुं छे. २२ प्रश्न-अचक्षुदर्शनमा स्वमदर्शननो अन्तर्भाव थाय ? उत्तर-हा, अन्तरभाव थाय एवं श्रीठाणागसूत्रनी टीकामा कयनले. Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५६ ) श्रीप्रश्नोत्तरमदीपे. २३ प्रश्न-संपतिकालेजीव ऊर्ध्वगतिमां तथा अधोगतिमांजाय तो क्यांसुधीजाय ? उत्तर-हालमा छेलासंहननवालोजीवजधन्यबलयुक्त कह्योछे अने तेथी तेनो शुभाशुभपरिणाम पण मंद होयछे तीव्र होतो नथी ते कारणथी तेने शुभाशुभकर्मनो बंध पण स्वल्पतर होयछे एटलामाटे जोते ऊर्ध्वगतीमां जायतो चोथा देवलोक सुधी जाय. पण आगल न जाय. अने जो ते अधोगतिमां जाय तो बीजी नरक पृथ्वी सुधीजाय. पण आगल न जाय एम श्रीहत्कल्पवृत्तिना बीजा खंडविषे क० तथाचतत्पाठः - " यःसेवार्तसंहननीजघन्यबलोजीवस्तस्यपरिणामोपिशुभोशुभोवामन्दएवभवतिनतीव्रस्ततःशुभाशुभकर्मबन्धोपितस्यस्वल्पतरएवातएवास्योर्ध्वगतौकल्पचतुष्टया दूर्वमधोगतौनरकपृथ्वीद्दयादधउपपातोनभवतीतिप्रवचनेप्रतिपाद्यते " तथा संग्रहणीसूत्रमा पण कांछे ते आ प्रमाणे तद्यथा "छेक्छेणउगम्मइचउरोजाकप्प०दोपढमपुढवीगमगंछेवढे० इत्यादि” २४ प्रभ-लेश्या कयाकर्म मध्ये गणवी ? उत्तर-" योगप्रभवालेश्या" इतिवचनात् योगप्रत्ययलेश्या जाणवी अने योगजनक ते नामकर्मछे माटे नामकर्मना मध्ये Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमः प्रकाशः ( १५७ ) लेश्यागणवी. आ ठेकाणे घणीमतान्तरवातछे ते श्रीलोक प्रकाशप्रमुख शास्त्रान्तरथी जाणवी. २५ प्रश्न - कार्मणशरीरनुं स्वरूप केवी रीते समजवुं ? उत्तर - कार्मणशरीरते नामकर्मनी एकमकृतिछे तेथी नाम कर्मनी वर्गणारूप कार्मणशरीरछे अने ते औदारिकादिशरीरनुं बीजछे वळी जेनेविषे आधाराध्येयभावे कणनीगांठडी - माफक बीजी सात कर्मनी वर्गणा रहीछे. इत्यादि कार्मण शरीरनुं स्वरूप जाणवुं पछी जेम बहुश्रुत कहे ते खरं. २६ प्रश्न- कया आचार्यनी साधे पूर्वनो व्यवछेद थयो ? उत्तर—- श्रीमहावीरस्वामिथीएकहजारवर्षगएछते श्री सत्यमित्राचार्यनी साथै पूर्वनो व्यवछेद थयो एम श्रीतपगछपट्टावलीनी वृत्तिमां दर्शावेळछे. २७ प्रश्न - श्रीहेमचन्द्रसूरिजीनो जन्मादिकाळ कयो ? उत्तर - विक्रमसंवत् १९१४५ मां जन्म, १९५० मां दीक्षा, ११६६ म सूरिषद, १२२९ मा स्वर्गवास, कुल ८४ वर्षनुं आयुष जाणवुं तेमहाराजानो विशेष अधिकार श्रीप्रबंधचिन्तामणि कुमारपाल भूपालचरित्रादिकथी जाणवो. २८ प्रश्न - संक्षेप सामायिकनुं स्वरूप दृष्टान्तसाथै कहो. उत्तर - थोडा अक्षरोएकरी घणा अर्थतुं कहेतुं एवं जे द्वादशांगी रूप ते संक्षेपसामायिक जाणवुं. ते उपर लौकिकचार पंडितनुं दृष्टान्त नीचे मुजब - श्रीवसंत पुरनाजितशत्रु नामनां राजाने एकदिवस शास सांभलवानी इच्छाथ त्यारे चारपंडितोए लाख लोकना Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५८ ) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. परिमाण वालो एकेक ग्रन्थकरी राजाने जणाव्यु. राजाए कधुके ए चार मोटाग्रन्थो थोडाकाळमां न सांभळी शकाय, माटे ए चार मोटाग्रन्थनो जे सारहोय ते तमे थोडा अक्षरोए करीने कहो. त्यारे ते चारपंडितोए सारभूत एवा एकश्लोकने रचीने राजाने संभळाव्यो ते आप्रमाणे-"जीर्णे भोजनमात्रेयः कपिलः प्राणिनांदया । वृहस्पतिरविश्वासः पञ्चालः स्त्रीषुमाईवम् ॥ १॥"" आत्रेय" नामा पंडित कहेछेके, प्रथम जमेलं जीर्णथए फेरजमवू, ए वैयग्रन्थनो परमार्थ छे. “ कपिल " नामा पंडित कहे छेके, सर्वपाणिओ नी दयाकरवी. ए धर्मशास्त्रनो परमार्थछे. “वृहस्पति" नामा पंडित कहेछेके, कोइनोपण विश्वास न करवो. ए नीतिशास्त्रनो सारछे, अने चोथो “पंचाल" नामा पंडित कहेछेके, स्त्रीयोनेविषे मृदुत्वभावधरवो पण तेनो अन्त न लेवो. ए कामशास्त्रनो रहस्यार्थछे. इति यदुक्तंचातुर्मासिकव्याख्याने “अथस्तोकाक्षरैर्बद्र्र्थकथनंदादशाङ्गीरूपंसंक्षेपसामायिकंबोध्यमत्रलौकिक पण्डितचतुष्टयदृष्टान्तोयथावसन्तपुरेजितशत्रुराजातस्यैकदाशास्त्रश्रवणेच्छासीत्तदाचतुभिःपण्डितैःश्लोकलक्षामितमेकैकंग्रन्थंविधायनृपायनिवेदितम्नृपेणाक्तमेतेग्रन्थाअपिमहान्तानहिस्तोककालेनश्रो तुंशक्यन्तेतस्मात्स्वल्पाक्षरैरेवैतेषांसारंवदततदाचतुर्भिःप-- ण्डितैःसारभूतमेकंश्लोकनिष्पाद्यनृपाप्रोक्तंतथाहि-जीर्णेभोजनमात्रेयःकपिलःप्राणिनांदया ॥ वृहस्पतिरविश्वासः Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमःमकाशः (१५९ ) पञ्चालःस्त्रीषुमाईवम् ॥१॥ व्याख्या-आत्रेयनामाविहान्वक्तिप्रथमभुक्ताहारेजीणेसतिपुनर्भोजनंकार्यमितिवैद्यग्रन्थपरमार्थः । कपिलपण्डितःप्राहसर्वेषांप्राणिनांदया-- कार्येतिधर्मशास्त्रपरमार्थः । वृहस्पतिनामाविदानवदतिकस्यापिविश्वासोनकार्यइदंनीतिशास्त्रसारम्। पञ्चालोविदानब्रूतेस्त्रीषुमृदुताधार्यापरंतासामन्तानग्राह्यइतिकामशास्त्र रहस्यमिति” आ उपरथी समजवानुं एटलं छे के दरेक माणसे लंबाण वात होय ते युक्तिथी थोडाकमां कहेवी. २९ प्रश्न-प्राणवायु विगेरे पांच वायु शरीरमा क्यां रहेछे ? उत्तर-हृदयमा प्राणवायु छे, गुदाभागमा अपानवायु छे, नाभिमं डळमां समान वायु छे, कंठदेशमा उदानवायु छे, सर्व- . शरीरव्यापी व्यानवायु छे, .. यदाहसुश्रुतेधन्वन्तरिः " हृदिप्राणोगुदेपानःसमानोनाभिमण्डले ॥ उदानःकण्ठदेशेस्याव्यानःसर्वशरीरगः॥१॥" उक्त पांच वायुना अनुक्रमे पांच व्यापार छे ते नीचेना श्लोकथी समजवा. यदाहसुश्रुतेधन्वन्तरिः “अन्नप्रवेशनमूत्राद्युत्सर्गोन्नादिपाचनम् ॥ भाषणादिनिमेषाश्वतद्व्यापाराःक्रमादमी ॥१॥" Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६०) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. ३. प्रश्न-नवप्रकारे रोगोत्पत्ति थाय छे ते नव प्रकार कया ? उत्तर-घणुं एक आसने बेसवाथी अथवा घणुं भोजन करवायी १ अहितविषमासने बेसवाथी अथवा अहितभोजन करवायी वा अजीर्णे भोजन करवाथी २ दिवसे घणुं उंघवाथी' रात्रिए घणुं जागवाथी ४ झाडो रोकवाथी ५ पेसाब रोकवाथी ६ मार्गे घणुं चालवाथी ७ प्रतिकूळभोजनकरवाथी एटले प्रकृतिने अनुचित भोजन करवायी ८ अने कामविकारथी एटले विषयनी अमाप्तिछतां रोगोत्पत्ति थाय अथवा विषयमा घणी आशक्ति राखेछते राजयक्ष्मवीगेरे रोगोनी उत्पत्ति थाय एम श्रीगणंगसूत्रना नवमा ठाणामां कडं छे. तथाचतत्सूत्रम् __“ नवहिठाणेहिंरोगुप्पत्तीसियातंजहाअञ्चासणयाए १ अहियासणयाए २ अइनिदाए ३ अइजागरिएणं ४ उच्चारनिरोहेणं ५ पासवणनिरोहेणं ६ अद्धाणगमणेणं७ भोयणपडिकूलयाए ८ इंदियथ्थकोवणयाए” विस्तरस्तट्टीकायाम् । तथा श्रीओधनियुक्तिमां श्रीभद्रबाहुस्वामी फरमावेछे के मूत्रानरोधथी चक्षुनी हाणी थायछे. झाडाना निरोपथी जीवितनो नाश थायछे. तद्यथा "मुत्तनिरोहेचरकुवञ्चनिरोहेयजीवियंचयइ” Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमःप्रकाश (११) वळी कोइ ठेकाणे छ प्रकारे रोग थायछे एम पण लखेलुं छे. यतः “ अत्यम्बुपानादिषमासनाचदिवाशयाज्जागरणावरात्रौ ॥ संधारणान्मूत्रपुरीषयोश्वषभिःप्रकारैःप्रभवन्तिरोगाः॥१॥" आ काव्यनो भाव उक्तश्रीठाणंगसूत्रना पाठसाथे पाए मळतो छ फक्त विशेष एटलो छे के घ[पाणोपीवाथी पण रोग उत्पन्न थायछे. वळी श्रीराजर्षिभर्तृहरीजीपणकहेछे के " भोगेरोगभयं" इत्यादि एमजाणी पञ्चइद्रियोना कामभोगमां भव्यजीवो जो नहीं लपटाय तो घणुं करी रोगना अभावे आ शरीरवडे श्रीजैनधर्मने सुखे साधी शकशे कांछे के सघळाधर्मसाधनमा मुख्यसाधन आशरीर छे. इत्यादि. ३१ प्रश्न-उत्तमवैद्य केवा लक्षणवाळो होय ? उत्तर-“कालज्ञानविदांवरोमधुरखाक्शान्तःशुचिःशास्त्रवित्। धीरोधर्मपरोनिदानचतुरोरोगप्रयोगेपटुः॥ सन्तुष्टःसदयोपमृत्युभयहृन्मृत्युक्षणज्ञोगुणी । संमूढःप्रतिकारकर्मणिनयोवन्द्यःसवैद्योत्तमः॥१॥ आयुर्वेदकृताभ्यासःसर्वज्ञःप्रियदर्शनः॥ • आयशील प्रसन्नात्मावैद्यएषोभिधीयते ॥२॥" २१ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६२ ) श्रीप्रश्नोत्तरपदीपे. ए उक्तकाव्य तथा श्लोकमां कहेलां लक्षणोवडे लक्षित होय ते उत्तमवैद्य जाणवो. विशेषाधिकारकाळज्ञानप्रमुखथी जाणवो. १२ प्रश्न-धन्वन्तरिसमान होय तोपण पांच वैद्य न शोभे ते कया ? उत्तर-(१) नठारापोशाकवाळो, (२) कठोरप्रकृतिवाळो, (३) अभिमाननो भरेलो, (४) पोताने आधिन थएलो, (५) बोलाव्या विना पोतानी मेळे आवेलो, उक्त आ पांच वैद्य धन्वन्तरिसमानहोय तोपण शोभाने न पामे. यतः “ पञ्चवैद्यानशोभन्तेधन्वन्तरिसमायदि ॥ कुचल कर्वशःस्तब्धःस्वाधीनःस्वयमागतः ॥१॥” इति वचनात्. । आठेकाणे सारलेवानो एटलोछेके, वैद्यलोकोए तेम यतुं न जोइए. ३. प्रश्न-अढारद्रव्यदिशा तथा अढारभावदिशा केवी रीतेजाणवी ? उत्तर-६ पूर्वादिछदिशा, ४ अग्निआदिचारविदिशा, ८ वळी चार दिशाविदिशाना आठ आंतरानी आठ वीजीविदिशा, एवी रीते कुल १८ द्रव्यदिशा जाणवी. हवे १८ भावदिशा ते नीचे लख्या मुजब जाणवी. १ समूछिममनुष्य. २ कर्मभूमिनामनुष्य. ३ अकर्मभूमिनामनुष्य. ४ अन्तरद्वीपनामनुष्य. ५ द्वीन्द्रिय. ६ त्रीन्द्रिय. ७ चतुरिन्द्रिय. ८ पञ्चेन्द्रिय. Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमःप्रकाश ९ पृथ्वीकाय. १० अप्कायाः ११ तेउकाय. १२ वायुकाय. १६ वनस्पतिकायतेमूलबीज? १७ देवता. स्कंघबीज२ पैर्वबीज १८ नारकी. अंग्रबीज४एचार. तथाचाहनियुक्तिकृत् "मणुयातिरियाकायातहग्गबीयाचउक्वगाचउरो॥ देवानेरइयावाअठ्ठारसहुंतिभावदिसा ॥ १॥" एवी रीते १८. भावदिशा.कही छे तेनुं कारण एज के जीव एटले ठेकाणे संसारमा रोळाय छे माटे विचार करे के हुं कइ दिशाएथी (एटले कइ गतिथी) आव्यो इत्यादि विचार करे ने संसारथी विमुख थाय. विशेषाधिकार श्री आचारागसूत्रनी टीकामां कह्यो छे ते त्यांथी जोवो. ३४ प्रश्न-श्रेणीकराजानुं " भंभासार" नाम शाथी ? उत्तर-राजगृहमां अग्निलागवाथी तेणे कुमारअवस्थामा भंभाने (जयढकाने ) सारभूत जाणी बळताघरथी बहारकाढी ते जोइ तेमना पीताश्रीए “ भंभासार" एवं नामपाडयुंएम १ कमळ वीगेरे २ सल्लकी वीगेरे ३ सेलडी वीमेरे ४.कुरंटवृक्ष वीगेरे यतः “कुरंटाद्याअग्रवीजा मूलजास्तूत्पलादयः ॥ पर्चयोनयइक्ष्वाद्याः स्कंधजाःसल्लकीमुखाः ॥१॥" इत्यभिधानचिन्तामणिवचनात. Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीप्रश्नोत्तर प्रदीपे. श्री ठाणांगजीनी टीकामां कहां छे तेमज श्रीहेमचन्द्राचार्यकृत नाममाळानी अवचूरिमां पण कां छे. ( १६४ ) ३५ प्रश्न - अधोलोकमां एक समये केटला सिद्ध थाय ? उत्तर- ( २० ) सिद्ध थाय, एम श्रीउत्तराध्ययनसूत्रना " जीवाजीवविभक्ति " नामना अध्ययनमां कहुं छे. (२२) सिद्ध थाय एम संग्रहणीसूत्रमां कां छे. (४०) सिद्ध था, एम सिद्धप्राभृतमां कां छे. यदुक्तं श्रीलोकप्रकाशे “ विंशतिर्द्वाविंशतिश्चचत्वारिंशदितिस्फुटम् ॥ उत्तराध्ययनेसंग्रहण्याञ्चसिद्धप्राभृते ॥ १ ॥ वीस अहेतहेवेतिश्री उत्तराध्ययनेजीवाजीव विभक्त्यध्ययने । उढहोतिरियलोएच उबावीसठ्ठसयइतिसंग्रहण्याम् । वीसपुहुत्तंअहोलोए इतिसद्धप्राभृतेतट्टीकायांविंश-तिपृथत्कंदेविंशतिरिति "" ३६ प्रश्न - १४ पूर्वना प्रमाणमां १६३८३ हाथी कह्याछे ते हाथी कया क्षेत्रना लेवा ? उत्तर - महाविदेहक्षेत्रनालेवा. कारणके त्याना हाथीओने सदा एक अवस्थितपणुंछे एम श्रीप्रश्नचिन्तामणिमां पंडित श्रीवीरविजयजी महाराजे कहेलुं छे. ३७ प्रश्न-भव्य, अभव्यादिसर्वजीवनी मूलभूमिका कइ समजवी ? उत्तर - जे सूक्ष्मनिगोदछे ते सर्वजीवनी मूलभूमिका जाणवी. साथीके कालस्वभावे अकामनिर्जरा करी सर्वे जीवो प्रथम त्यांची Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमः:प्रकाशः ( १६५) नीकलेछे अने ते सूक्ष्मनिगोदनुं अल्पस्वरूप पूर्वे लखे लुंछे. इति, ३८ प्रश्न-गोशाले महावीरस्वामिउपर तेजोलेश्या मेली तेतेजोलेश्यानी शक्ति केवीहती ? उत्तर-हे आर्य हे गौतम मारा वधनिमित्ते गोशाले जे तेजोलेश्या मेली ते अंगदेश, वंगदेश, मगधदेश, मलयदेश, इत्यादि मोटा १६ देशने नाश करवाने अत्यन्तशक्तिवाली हती इत्यादि श्रीमहावीरस्वामिजीए श्रीभगवतीसूत्रमा गौतमना प्रत्ये कलंछे. तथाचतत्सूत्रम् "जावइएणंअज्जोगोसालेणंमंखलिपुत्तेणंममवहाएसरीरगंसितेयंणिसठेसेणंअलाहिपज्जतेसोलसन्हंजणवयाणंतंजहाअंगाणंवंगाणंमगहाणंमलयाणंमालवगाणंअच्छाणंवच्छाणंकोच्छाणंपाढाणंलाढाणंवज्जीणंमालीणंकासीणंकोसलगाणंअवाहाणंसभुत्तराणंघाताएवहाएउच्छादणठाएभासीकरगाए ” इति. विस्तरस्तट्टीकायाम्. ३९ प्रश्न-साकार तथा निराकार उपयोगनो काळ केटलो ? उत्तर-छमस्थजीवोने प्रथम निराकार उपयोग होय, पछी साकार उपयोग होय, अने ते दरेक उपयोगनो अन्तर्मुहूर्त्तकाळ कह्यो छे परन्तु अनाकारउपयोगथी साकारउपयोग सं१ साकारोपयोग ते विशेषात्मकज्ञानोपयोगजाणवो. अनेनि राकारोपयोग ते सामान्यात्मकदर्शनोपयोगजाणवो, Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीम श्रोत्तर प्रदीपे. ख्यातगुणो जाणवो. कारण के सचेतन, अचेतनवस्तुपर्ष्याय परिच्छेदकपणेकरी तेमां बधारे वखत लागेछे तेमज छद्मस्थ जीवोनो तथाप्रकारनो तेवो स्वभाव छे. अने केवळभागवाने ते दरेक उपयोग एकसमयनोज छे. शाथी के ते भगवान् समयवेदीछे. तेमने प्रथमसमये साकार उपयोगहोय छे अने बीजेसमये निराकार उपयोग होयछे एम समयान्तरवात जाणवी. अत्रबहुमत छे ते श्रीनंदीमुत्रनी टीका बीगेरे जोवाथीसमजाशे. ( १६६ ) ४० प्रश्न - स्त्री सातमीनरक पृथ्वीविष तथा सर्वार्थसिद्धविषे जाय ? उत्तर – सातमीनरकपृथ्वीविषे न जाय पण सर्वार्थसिद्धविषेतो जाय. एम श्रीपन्नवणासूत्राना कर्मप्रकृतिनामा त्रेविशमापदनी daarurat कही शकायछे. तथाचतट्टीका "" मानुषी तुसप्तमनारकपृथ्वीयोग्यमायुर्नबध्नाति । अनुत्तरसुरायुस्तुबध्नातीति 66 aat अत्र दृष्टान्ततरीके पृथ्वीचन्द्रराजानी पूर्वभवनी ओ सर्वार्थसिद्धे मनुष्यपणानेपामी सिद्ध एली ओछे. एमपृथ्वीचन्द्रचरित्रमां कहेल े. तेमज अप्रकारिपूजा चरित्रमां " कनकमाला " सर्वार्थसिद्धेगइ एमकडेलंछे. वळी श्रीविजयचन्द्रचरित्रमां पण नीचेलख्या मुजबकहेलुंछे. " तद्यथा सासग्गाओचविउंएथ्थविजम्मं मितुहसहीहोइत - तोमरिउंतुभ्पेसवठ्ठेदो विदेवत्ति "" Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पश्चमः प्रकाशः ( १६७ ) सर्वार्थसिद्धेजवासंबंधीमां इत्यादिघणादृष्टान्तोछे. ४१ प्रश्न - दरेकमाणसे व्याख्यान केवीरीते सांभळवं ? उत्तर - निद्रा, विकथानो त्यागकरीने, गुप्तिसहित, हाथजोडीने, भक्ति बहुमानपूर्वक, उपयोगराखीने सांभळं. यदुक्तंपञ्चवस्तुके " णिद्दाविगहापरिवज्जिएहिंगुत्तेहिंपंजलिउडेहिं || भत्तिवहुमाणपूर्वउवउत्तेहिंसुणेयवं ॥ १ ॥ " इत्युक्तप्रमाणे सांभळवाथी अनन्तरप्रयोजन जे ग्रन्थसंबंधीहेयोपादेयज्ञान, ते सिद्धथायछे अने तेथी परम्परप्रयोजन जे मोक्ष तेपण सिद्धयायछे, वळी ज्ञानवंत श्रोतापासे वक्ता पुरुषनी व्याख्यानकला माणगणायछे इत्यादिपरस्पर घणागुण उत्पन्नथाय छे. नहींतो मेंस आगळभागवत बांचवा जेतुं थाय छे. अथवा " अंधाआगळ आरसी, बहेरा आगळ गीत, मूर्खआगळ रसकथा, एत्रण एकजरीत ॥ १ ॥ " इत्यादिन्यायसंपादन थाय छे. किंबहुनेत्यलम्. ४२ प्रश्न - जमालिनापितानुंनाम कोइपण शास्त्रमा देखातुंनथी एमकेटला कछे केम ? उत्तर—“ साचप्रवरनरपतिसुतस्य स्वभागिनेयस्य जमालेः परिगायिता " आवा श्रीकल्पकिरणावलीना तथा कल्पसूत्रो १ सातविकथा आप्रमाणे - स्त्रीकथा, भक्तकथा, राजकथा, देशकथा, मृदुकारुणीकथा, दर्शनभेदिनीकथा, चारित्रभेदिनी कथा, आसांस्वरूपन्तु श्रीस्थाङ्गसूत्रटीका तोवधार्यम्. २ भगवत्पुत्री. Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६८) श्रीपश्नोत्तरप्रदीपे. धिकाना स्पष्टपाठपरथी सिद्धथायछेके, जमालिनापीताश्री नुनाम " प्रवरनरपति " हतुं. वळीश्रीकल्पसूत्रनी टीकाओ तो वर्षमाएकवार वचायजछे. सांभळनारपण सांभळेजछे तेम छतां कोइ शास्त्रमाजमालिना पितानाम देखातुनथी, एम जे कहेनाराओछे तेओ अहा. हस्तमध्यगतछतीवस्तुने नहींजाणनाराओछे. एमसंभवनाथायछे. वळी केटलाक "अमुक वातमां" विचारकर्याविना एकदमबोलीउठेछेके, ते वात कोइशास्त्रमांनथी इत्यादि, पणतेम न बोलचुंजोइए. शाथीके पूज्यपादमहामहोपाध्यायश्रीयशोविजयजीजेवान्यायविशारदमहापंडितषड्दर्शनशास्त्रवेत्ता ते पण एमकहेछेके, " शास्त्रघणामतिथोडलीशिष्टकहेतेप्रमाण" इत्यादि ४३ प्रश्न-युद्धमा " महारथ" कोनेकहीए ? उत्तर-शस्त्रविषे तथा शास्त्रविषे प्रविणथयोथको अगीयारहजारधनुर्धरप्रत्ये युद्धकरते " महारथ" जाणवो. यतः "एकादशसहस्राणियोधयेद्यस्तधन्विनाम ॥ शस्त्रशास्त्रप्रविणश्वविज्ञेयःसमहारथः ॥ १॥" इतिवचनात्. ४४ प्रश्न-श्रेयांसकुमार कयामहाराजाना पुत्रजागवा ? उत्तर-भरतमहाराजानापुत्र जाणवा. अहीं बीजाएम कहेछेके बाहुबलिराजानापुत्रसोमप्रभ तेमनापुत्र श्रेयांसजाणवा. ___ यदुक्तंश्रीआवश्यकचूर्णी ... “ भरहस्सपुत्तोसेज्जंसोअणेभणंतिबाहुबलिस्ससुतोसोमप्पभोतस्सपुत्तोसेयंसोयत्ति" Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चम:प्रकाश ( १६९) ४५ प्रम-पंचमीदेववंदनविधिमां " निद्रास्वप्नजागरदशा तेस विदूरेहोवे ॥ चोयीउजागरदशातेहनो अनुभव जोवे ॥१॥" आवी एकगाथाछे तेनो शोभावार्थ छे. ? उसर-चेतनानी चारदशा ( अवस्था ) कहीछे, तेमांपहेली निद्रा अवस्था, प्रथमनात्रण गुगठागे जाणवी, बीनी स्वमअवस्था, चोथे, पांचमे, अनेछठे एमत्रणगुणठाणे छे. त्रीजी जागरदशा, सातमागुगठाणाथी मांडी यावत् बारमागुणठाणा सुधीरहीछे. अने चोथी उजागरदशा, तेतोसयोगि अनेअयोगि एवे गुणठाणेजाणवी. उक्तरीते चेतनानी चारअवस्था कहेवाथी अत्रेएमसमजवानुछेके श्रीजिनभगवान् केवलज्ञाननेपामी चोथीउजागरदशाने अनु. भवेछे, पणप्रथमनी त्रणदशाने अनुभवतानथी एत्रणदशातो प्रथमथीजदूरथइजाय छे. उक्तगाथानो भावार्थ अमने आम माणेजाणवामांछे विशेषपछीगीतार्थ कहेते खरं. ४६ प्रश्न-" वरवर्णिनी" स्त्रीकइजाणवी ? ' उत्तर-“शीतेसुखोष्णसर्वाङ्गीग्रीष्मेयासुखशीतला । भर्तृभक्ताचयानारीवीज्ञेयावर्गिनी ॥१॥" इतिरुद्र श्लोकोक्तलक्षणवाली "वरवर्णिनी" स्त्रीजाणवी. ४७ प्रश्न-"न्यग्रोधपरिमंडला" शब्द, केवालक्षणवाळो नारीविषेजाणवो! उत्तर-“स्तनौसुकठिनौयस्यानितम्बेचविशालता ॥ मध्येक्षीणाभवेद्यासान्यग्रोधपरिमंडला ॥१॥" __इतिशब्दस्तोममहानिधिगतश्लोकोक्तलक्षणवालीनारीविषे जाणवो अर्थात् शब्दसोममहानिधिकोशगत श्लोकोक्तलक्षणवालीजेस्त्रीते " न्यग्रोधपरिमंडला" कहेवाय. १ शीतकाले. २ उष्णकाले. ३ पश्चात्कटयधोभागे. - - - - - - - - २२ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७०. ) श्रीमश्नोत्तर प्रदोपे. ४८ प्रश्न - अक्षौहिणी तथामहाक्षौहिणीनुं शुंप्रमाणछे ? उत्तर - २१८७० हाथी, २१८७० रथ, ६५६१० घोडा, १०९३५० पदाति, सर्वसंख्या २१८७०० आटलं प्रमाणएकअक्षौहिणीनुं जाणं. यदुक्तंवाचस्पत्ये अक्षौहिण्यामित्यधिकैःसप्तत्याह्यष्टभिःशतैः ॥ संयुक्तानि सहस्राणिगजानामेकविंशतिः ॥ १ ॥ एवमेवरथानान्तुसंख्यानंकीर्त्तितंबुधैः ॥ पञ्चषष्टिःसहस्राणिपट्शतानिदशैवतु ॥ २ ॥ संख्यातास्तुरगास्तज्ज्ञैर्विनारथतुरङ्गमैः ॥ नृणाशतसहस्राणिसहस्राणितथानव ॥ ३ ॥ शतानित्रीणिचान्यानिपञ्चाशच्चपदातयः || ” तथाभारतेपि 'अक्षौहिण्याप्रमाणन्तुखाँगाष्टैर्कद्विकैर्गजैः ॥ स्थैरतैर्हयैस्त्रिघ्नैःपञ्चध्नैश्वपदातिभिः ||१|| " इति अने १३२१२४९०० आटलं प्रमाण एक महाक्षौहिणीतं जाणवुं. 66 यदुक्तम्. 66 'खद्ययं ०० निधि९ वेदा४ क्षिरचन्द्रा१क्ष्य २ ग्नि३ हिमांशुभिः १ ॥ महाक्षौहिणिकाप्रोक्तासंख्यागणितकोविदैः ॥ १ ॥ इति Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमः प्रकाशः ( १७१ ) ४९ प्रश्न - स्त्यानर्द्धिनिद्रावालाने वासुदेवेना बलथी अर्द्धवल जे क छे ते बलआजकाले होयके न होय ? उत्तर - हालभरतक्षेत्रमां तेनेतेटलं बलनहोय प्रथमसंहननवालानेज तेलुंबलतो कछे, हालतो सामान्यलोकनावलथी वमकुंवा त्रगणुंवा चोगणुंबल होय अधिक न होयएम श्रीनिशीथचूर्णिनी पीठिकानावचनथी तेमज श्री बृहत्कल्पनात्रीजाखंडना वचनथी जाणवुं अने श्रीजित्कल्पवृत्तिमांतो प्रथमसंहननवालानेज स्त्यानर्द्धिनिद्राहोय एमनिर्णयकरेलोछे इत्यादि यदुक्तंप्रश्नोत्तरसार्द्धशतके 'ननुस्त्यानर्द्धिनिद्रावतोजीवस्य यद्वासुदेववलादर्द्धवलं शास्त्रउक्तमस्ति तदस्मिन्काले विद्यतेनवा । उच्यतेनास्तीह क्षेत्रेसांप्रतंतस्यतद्बलंप्रथमसंहननिन एवतदुक्तत्वात् ॥ सांप्रतन्तुसामान्यलाकबलाद्विगुणं त्रिगुणंचतुर्गुणंवा तस्यबलंभवतिनाधिकमितिनिशीथचूर्णिपीठिकावचनाज्ज्ञेयमे वंबृहत्कल्पतृतीयखंडेपिबोध्यम् ॥ जीतकल्पवृत्तौ यदुदयेतिसंक्लिष्टपरिणामाद्दिनदृष्टमर्थमुथ्थायरात्रौ प्रसाध्यतिकेशवार्द्धवलश्वजायते । तदनुदयेपिचसशेषपुरुषेभ्यस्त्रिचतुर्गुणबलोभवति । इयञ्चनिद्राप्रथम संहन निनएवभवतीत्युकमस्तीतिस्त्यानर्द्धिनिद्रावतोबलभेदादिविचारः ५० मन - नारकजीवोने मेहू सत्ता होय के ? "" Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७२) श्रीप्रश्नोत्तरमदीपे. उत्तर-छिनपादभुजस्कंधाः छिन्नकर्णोष्टनाशिकाः॥ छिन्नतालुशिरोमेदाभिन्नाक्षिहृदयोदराः॥१॥" इतिश्रीसूत्रकृताङ्गसूत्रटीकान्तर्गतश्लोकपरथी साबीत याप छे के, नारकजीवोने मेदूसत्ता होय. शा-नारकजीवोने तो नपुंसकपणुं छे. समाधान-नपुंसकपणुंछतेपण मेदूसत्ताविषे कोइ जातनो विरोध आवतो नथी. यतः "महिलासहावोसखन्नमेओ॥ . मेझूमहंतंमउआयवाणी॥ ससद्दयंमुत्तमफेणयंच ॥ एयाणिछपंडगलरकणाणि ॥१॥” इत्युक्तत्वात् ५१प्रश्न-"कःखेभातिहतोनिशाचरपतिः केनाम्बुधौमज्जितः। कः कीदृक्तरुणीविलासगमनंकिंकुर्वतेसज्जनाः॥ किंपनृपतेः किमर्जुनधनुः कोरामरामापहन् । मत्प्रश्नोत्तरमध्यमाक्षरपदंभूयात्तवाशीर्वचः ॥१॥" आ काव्यथी शुं समजाय छे ? उत्तर-आ काव्यमां आठ प्रश्नो छे, ते आठ प्रश्नपत्युत्तरोना मध्यअक्षरपदवडेकरी "हेमेनाथचिरंजीव" एवास्वरूपवाळो कोइए कोइना प्रत्ये आपेलो आशीर्वाद समजाय छे, तेनी वीगत नीचे प्रमाणे१ मेहः पुंश्चिन्हम्. Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमःप्रकाशः (१७३) शम० १-खेभाति? उ.-ग्रहेशः मध्यअक्षर हे-लेवो. | में ण प्र. २-केनैनिशाचरपतिहतः? उ०-रामेण, मध्य अक्षर मे-लेवो. मैं ना क:/म० ३-अबुधौकोमजितः ? उ० मैनाकः, मध्य अक्षर ना-लेवो. मंथम० ४-कीक्तरुणीविला- उ०-मंथरं, मध्यअक्षर-- सगमनम् ? थ-लेवो. रु | चिरं प्र० ५-संजनाः किंकुर्वते ? उ०-रुचिरं, मध्य अक्षर चि-लेवो. तु रंगाप्र० ६-नृपतेः किंपत्रम् ? उ०-तुरंगः, मध्य अक्षर रं-लेवो. गां जीवंम० ७-किमर्जुनधनुः । उ०-गोंजीवं, मध्यअक्षर जी-लेवो. राव णप० ८-कोसमरामापहृत् ? उ०-रावणः, मध्य अक्षर व-लेवो एवी रीते आठ प्रश्नोत्तरोना मध्य अक्षरो लेवाथी "हेमेनीथचिरंजीव" एवं आठ अक्षरात्मक पदवाळु आशीर्वचन प्रगट समनवामां आवे छे अत्र . सुखावबोधार्थेयंत्र लखीए छीए, १ आकाशमां कोण शोभेछे २ चंद्र ३ कोणे रावण मार्यो ४ रामे ५ समुद्रमा कोण डुबाएलो छे ६ मैनाकनामा पर्वत ७ केवा प्रकारनुं यौवनवती स्त्रीओनुं बिलासगमन ८ मंद ९ सज्जन माणसो शुं करे १० सारं करे ११ राजानुं वाहन शुं१२ घोडो १३ अर्जुननुं घनुष कयुं १४ गांजीव १५ रामस्त्रीसीतार्नु हरण करनार कोण १६ रावग १७ हे मारानाथ चिरंजीव. Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७४ ) ५२ प्रश्न - एकसमयमों वे क्रियाडोय ? उत्तर - एकसमयमां वे उपयोगनहोय, क्रियातोघणीपणहोय दृष्टान्ततरीके कोइनकी भ्रमणादिनृत्यने करतीथकी एकसमयम पणहस्तपादादिगतविचित्रक्रियाकरतीदेखायछे, वळी सर्वे वस्तुओनो पण प्रत्येके एक समयमां उत्पादव्यय थायछे मजवळीक समयमां संघातपरिसाटपणथाय छे, "" श्रीप्रश्नोत्तर प्रदीपे. यदाहभाष्यकृत् समएदोउवयोगानहोज्जकिरियाणकोदोसो' "" इत्यलविस्तरेण ५३ प्रश्न - रजोहरणशब्दनोशो अर्थछे ? उत्तर - जीवोनीबाह्यरज अने अभ्यन्तररजनेहरेछे तेकारणेकारीने रजोहरण कहेवायछे. 09 यदुक्तंपञ्चवस्तुके हर जीवाणंबइझं अभ्यंतरंचजंतेणरयहरणंति पवुचइ "5 तट्टीका बध्यमानकर्म्मरूपंहरत्यपनयतियस्मात्तेनकारणेनरनोहरण मितिप्रोच्यते " ५४ प्रश्न -कोने मीने सप्प विषरहित थाय छे ? "रजोजीवानांबाह्यं पृथिवीरजःप्रभृतिकमभ्यन्तरथ उत्तर- एमसंभळाय छे के वेतसने पामीने सप्प विषविनाना वइजायले. Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमःमकाराः ( १७५ ) यदुक्तंश्रीदशवैकालिकवृहवृत्तौ "एवंहिश्रूयतेकिलवेतसमवाप्यनिर्विषाभवन्तिसाः ” ५५ मा जे छंदना दरेक चरणमां पेलो, बीजो, चोथो, आठमो, अगीयारमो, तेरमो, अने चौदमो, ए सात अक्षर गुरु होय. अने ते सीबायना बीजा सात अक्षर ह्रस्व होय दो ते छंद कयो जाणवो! उत्तर-ते छंद " वसन्ततिलका" जाणवो. यदाहकालिदासकविःश्रुतबोधे "आयहितीयमपिचेद्गुरुतच्चतुर्थम् यत्राष्टमञ्चदशमान्त्यमुपान्त्यमन्त्यम् ॥ कामाङ्कुशाङ्कुशितकामिमतंगजेन्द्र कान्तेवसन्ततिलकांकिलतांवदन्ति ॥१॥" वळी वसन्ततिलकाछंदने काश्यपनामनामुनि “सिंहो दता" कहेछे, शैतवनामनामुनि “ उद्धर्षिणी" कहेछे. अने पिङ्गळनामनामुनि “ मधुमाधवी" कहेछे. एम तेना नामान्तर पण छे. ___ तथाचाहवृत्तरत्नाकरेकेदारभट्टः "उक्तावसन्ततिलकातंभजाजगौगः सिंहोदतेयमुदितामुनिकाश्यपेन ॥ १ वानीरम् वृक्षविशेषम्. २ त-भ-ज-जागणागुरूचेति वसन्ततिलका. Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७६ ) श्रीप्रश्नोत्तरपदीपे. उद्धर्षिणीतिगदितामुनिशैतवेन श्रीपिङ्गलेनकथितामधुमाधवीति ॥ १॥ श्रीभक्तामर, कल्याणमन्दिर वसन्ततिलकांछदमां रचेला छे, अने ते महा चमत्कारी छे अत्र प्रस्तावने लीधे आटली अधिक वात आत्महितार्थिजैनबंधुओने लखी जणावी छे. ५६ प्रश्न-छंदशास्त्रमा केटलागण छे अने ते दरेकगण केटला अक्षर वाळो होयछे ? उत्तर-मगण-यगण-रगण--सगण-तगण-जगण-भगण-नगण आवा आठ गण छे अने तेमां दरेक गण त्रण अक्षरवाळो होयछे तेनी वीगत नीचे प्रमाणे१ जे 'मगण' छे ते त्रणे गुरु अक्षरवाळो छे. २ जे 'यगण' छे ते आघमां एक लघु बीजा बे गुरु एवा त्रण अक्षरवाळो छे. ३ जे 'रगण' छे ते आदिअन्तमां गुरु अने मध्ये लघु एवा त्रण अक्षरवाळो छे. ४ जे 'सगण' छे ते आदि मध्यमां लघु अने अन्तमां गुरु एवा त्रण अ० ५ जे 'तगण' छे ते आदि मध्यमां गुरु अने अन्तमा लघु एवा त्रण अ० ६ जे 'जगण' छे ते आदि अन्तमां लघु अने मध्यमां गुरु एवा त्रण अ० ७ जे 'भगण' छे ते आघमां गुरु अने बीजा बे लघु एवा त्रण अ० ८ जे 'नगण' छे ते त्रणे लघु अक्षरवाळो छे. Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमःप्रकाशः यदुक्तंवृत्तरत्नाकरे “ सर्वगुर्मोमुखान्तलौयरावन्तगलौसतौ ॥ ग्मध्याद्यैौज्भौत्रिलोनोष्टौभवन्त्यत्रगणास्त्रिकाः॥१॥” म० य० इति स्थापना चेयम् -' धीश्रीश्री ' ' वरासा ' ' ( १७७ ) स० त० ज० भ० न 'वसुधा' ' सातेक ' ' कदाच '' किंवद ' ' नहस ' अने वृत्तरत्नाकरनी टीकामां तो अन्यकर्त्तृकएककाव्यवढे करी आठगणनाम तथा तेना देवता, फळ, अने स्वरूप मतावेलां छे. तद्यथा २३ र० कागुहा “मोभूमिस्त्रिगुरुः श्रियंदिशतियोवृद्धिंजलंचादिलो । रोभिर्मध्यलघुर्विनाशम निलोदेशाटनं सोन्त्यगः ॥ तोव्योमान्तलघुर्धनापहरणंजोर्कोरुजंमध्यगो । भश्चन्द्रोयशउज्ज्वलंमुख गुरुर्नोनाकआयु स्त्रिलः।।१।।” इति . Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७८) श्रीपश्नोत्तरपदीपे. स्वरूपपूर्वोक्तप्रमाणेछे. अत्र फक्त गणनाम देवता तथा फळ जणाववा नीचे मुजब यंत्र करी बतावीए छीए. गणनाम. | देवता. । फळ. मगण. भूमि. लक्ष्मी. । भमि । यगण. जळ. वृद्धि. रगण. | अग्नि. विनाश. सगण. वायु. देशाटन. तगण. आकाश. धनापहरण. जगण. | सूर्य. रोग. भगण. | चन्द्रमा. उज्ज्वलया. - - emama नगण. । नाक. आयु. अत्र तात्पर्यार्थ ए छे के कविता करनार पुरुषे शुभाशुभ गणनी बरोबर खबर राखवी. आ संबंधी विस्तार वात वृत्तरत्नाकरनी टीकामां छे ते त्यांथी जोइ लेवी शाथी के वधारे समजवामां आवे तेम छे. ५७ प्रश्न-" द्वन्द्वश्वप्राणितूर्यसेनाङ्गानां " ए सूत्रवडे करी एकवद्भाव थायछे, तो कल्पकिरणावळीमां तथा दीपिकामां “मतिपू र्णानांपाणिपादानां" एवो प्रयोग केम राख्यो हशे ? -एकवद्भाव नित्य नहीं थतो होय तेथी तेवो प्रयोग राख्यो हशे,जुओ के श्रीधनेश्वरसूरिकृतश्रीशत्रुञ्जयमाहात्म्यमां “गजवाजिरथैर्धनैः" इत्यादि प्रयोगो छ, वळी श्रीहैमऋपभचरित्रमां पण “अङ्गष्टांङ्गलय शोणाः" आवो प्रयोगछे. तेमज सारस्वतप्रसादटीकामां पण नीचे लख्या मुजब लेखछे. उत्तर Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमःभकाशः (१७९ ) __ "लक्षणहेत्वोरितिसूत्रेमुखनाशिकाभ्यामितिभाष्येचप्रयोगाज्ज्ञापकादेकवद्भावानित्यत्वमतएव 'मीवाकुक्षिललाटेषुनित्यंस्वेदःप्रशस्यते’ ‘पातितैरथनागाश्वैः इत्यादिप्रयोगाः"-किम्बहुनेत्यलम्. ____ अत्र बहुश्रुत कहे ते खरं. ५८ प्रश्न-केटलापल्योपमे एकसागरोपमथाय ? उत्तर-दशकोडाकोडी पल्योपमे एकसागरोपम थायछे. तथाचाहनवतत्त्वावचूरिः "सागरोपमंदशकोटाकोटीपल्योपमप्रमाणम् " ५९ प्रश्न-आहारकशरीर कोने कहीए ? । उत्तर-जेमांचौद पूर्वधारी पोतानोसंदेह छेदवाने अथवातीर्थकरनी ऋदिजोवाने अर्थे महाविदेहक्षेत्रमा जवाने एकहाथप्रमाणअतिविशिष्टरूपवालं शरीरकरे ते आहारकशरीर कहेवायछे. यदाहनवतत्त्वावचूरिः "आहारकशरीरंयत्रचतुर्दशपूर्वधेरैःसन्देहोच्छेदायतार्थकरऋद्धिदर्शनायवामहाविदेहगमनार्थमेकहस्तप्रमाणात्यन्तविशिष्टरूपसम्पन्नविधीयतेशरीरंतदाहारकशरीरम्। ६० प्रश्न-द्रव्यश्रुत अने भावश्रुत कोनेकहीए ? उत्तर-द्वादशांगीजेनुं लक्षणछे ते द्रव्यश्रुत, अने जेद्वादशांगीथी उत्पन्नथएल उपयोगरूपते भावश्चत कहेवायछे, एमनवत.:. वनो अवचूरिमां कपुंछ... Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८० ) श्रीमश्नोत्तरपदीपे. तद्यथा "द्रव्यश्रुतंडादशांगीलक्षणंभावश्रुतंडादशांगीसमुत्पन्नोपयोगरूपम् ” ६१ प्रश्न-गुणहेतु तथा भवहेतु अवधिज्ञान कोनेथाय ? । उत्तर-देवताअने नारकीने भवहेतु अवधिज्ञान थायछे. अनेश्रावक तथासाधुने गुणहेतु अवधिज्ञान थायछे. यदुक्तम्. “अवधिज्ञानदिप्रकारंगुणहेतुकंभवहेतुकंचदेवनारकाणां भवहेतुकंश्राद्धसाधूनांगुणहेतुकंस्यात् " ६२ प्रश्न-ज्ञानअने दर्शनमां शो भेदछे ? उत्तर-घटपटादिसमूहना सामान्य आकारनुं जेथी ज्ञानथाय से दर्शनजाणवू अने पदार्थना विशेषआकारस्वरूप, जेथी परिज्ञानथायते ज्ञानजाणवू. आप्रमाणे ज्ञानअने दर्शननालक्षणमांभेदछे. एवूनवतत्त्वावचूरिमां कथनछे. तद्यथा “घटपटादिसार्थसामान्याकारपरिज्ञानदर्शनंज्ञातव्यम. पदार्थविशेषाकारपरिज्ञानंपुनर्ज्ञानज्ञातव्यमयमेवञ्चज्ञान दर्शनयोर्भेदः , ६३ प्रश्न-प्रज्ञापरीषह, अने अज्ञानपरीषह, खरूपकहो ? उत्तर-बहुज्ञानहोयतोपण पोतानामनमा गर्व न करवो ते प्रज्ञापरी पहकहेवायछे, अने ज्ञानावरणीयकर्मनाउदयथी कदिभणे Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पश्चमप्रकाशः (१८१ ) तोफ्णपाठ आवडेनहीं, तथापिमनमा दुःख लाव_नहींपण पोतानाकर्मनोवो विपाकज चिंतववो ते अज्ञानपरीषह, कहेवायछे. यदुक्तंनवतत्त्वावचूरिकायाम् . “प्रज्ञापरिषहः। बहुज्ञानसंभवेप्यात्मीयचित्तेगर्वोनकार्यः॥ अज्ञानपरिषहः । ज्ञानावरणीयकर्मोदयात्पठतापिपाठोनागच्छतितथापिदुःखमनसिनकार्य किन्तुकर्मविपाकएवचिन्त्यः ” ६४ प्रश्न-मनुष्यलोकमां चन्द्र तथा सूर्य केटलाछे ? । उत्तर-१३२ चन्द्रछे तेमज १३२ सूर्यछे तेनीवीगत नीचे प्र० जम्बूद्वीपमा २ चन्द्र २ सूर्य. लवणसमुद्रमा ४ चन्द्र ४ सूर्य. धातकीखंडमां १२ चन्द्र १२ सूर्य. कालोदधिमा ४२ चन्द्र ४२ सूर्य. पुष्करार्द्धमा ७२ चन्द्र ७२ सूर्य. एवीरीतेसर्वे मली १३२ चंद्र अने१३२सूर्य मनुष्यलोकमाछे, यदुक्तंश्रीत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रे "तत्रजम्बूदीपेमुष्मिन्बौवन्द्रौदौवभास्करौ ॥ लवणोदेचचत्वारश्चन्द्रादिनकरास्तथा ॥१॥ द्वादशधातकीखण्डेचन्द्रादादशभास्कराः ॥ कालोदेविचत्वारिंशचन्द्रादिनकरास्तथा ॥२॥ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८२) श्रीप्रश्नोत्तरमदीपे. हासप्ततिपुष्कराःचन्द्राश्चखयोपिच ॥ एवंडात्रिंशमिन्दूनांशतंदिनकृतांतथा ॥ ३॥" ६५ प्रश्न-धातकीखण्डना तथा पुष्कराद्धना चारमेरु केवडाछे. उत्तर-जम्बूद्वीपना मेरुथी पंदरहजार योजननानाछे अर्थात् तेनाना चारमेरु ८५००० योजनना छे. यदुक्तंश्रीत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रे "चत्वारोमेखःक्षुद्राधातकीपुष्करार्द्धयोः ॥ योजनानांपञ्चदशसहस्त्र्यामेरुतोणवः ॥१॥" ६६ प्रश्न-पांच अनुत्तर विमान कइदिशाए जाणवां ? उत्तर-पूर्वदिशाए विजयविमान छे. दक्षिणदिशाए वैजयंतविमान छे. पश्चिमदिशाए जयंतविमानछे. उत्तरदिशाए अपराजितविमान छे. अने ए चार विमाननी मध्ये सर्वार्थसिद्ध विमान छे. तथाहिश्रीत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रे “विजयंवैजयन्तञ्चजयन्तञ्चापराजितम् ॥ प्राकक्रमेणविमानानिमध्येसर्वार्थसिद्धकम् ॥१॥" ६७ प्रश्न-श्रीजिनभवन, पौषधशाला, अने ज्ञानभंडार, वीगेरे कोणे कोणे कराव्यां ते विषे थोडो अधिकार कहो. उत्तर-१-पूर्वे श्रीभरतचक्रवर्ति वीगेरे महापुरुषोए श्रीसिद्धाचळ वीगेरे उत्तम तीर्थोपर घणा भव्य जिनमंदिरो कराव्यां छे. तेवो अधिकार श्रीशQजयमाहात्म्य वीगेरे जैनशास्त्रोमांछे. १.लघवः Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमःप्रकाशः (१८३ ) २-तथा मगधदेशनाराजा श्रीश्रेणिकमहाराजाए श्रीजिनमंदिरो कराव्यां छे. ते अधिकार श्रीआवश्यकसूत्रमा तथा श्रीहेमचंद्राचार्यकृतश्रीयोगशास्त्रमा छे. ३-तथा श्रीराजगृहीनगरीना शेठ श्रीशालिभद्रना पिताश्रीए पोताना घरमां सुशोभित श्रीजिनमंदिर कराव्युं छे, ते वात श्रीशालिभद्रचरित्रमा छे. ४-तथा प्रभावतीराणीए पोताना अंतःपुरमा श्रीजिनमदिर बंधाव्युं छे. ते वीगेरे अधिकार श्रीआवश्यकसूत्रमांछे. ५-तथा वागुरश्रावके श्रीपुरिमतालनगरमा श्रीमल्लिनाथमहाराजनुं मंदिर कराव्युं छे ते अधिकार श्रीआवश्यक- . सूत्रमा छे. ६-तथा देशपूर्वधरश्रीआर्यसुहस्तिसूरिजीना प्रतिबोधयी संपतिराजाए सवालाख नवीनजिन प्रासाद, छत्रीसहजार जीर्णपासादोद्धार, सवाक्रोड जिनबिंब, पंचाणुहजार पीतळमयजिनप्रतिमा, अने अनेकसहस्रदानशाळाआदिकेकरी त्रिखंडपृथ्वीने घणीज शोभावी छे, इत्यादि अधिकार श्रीकल्पसूत्रनी टीकाओमां छे. हाल पण श्रीसंपतिराजाना करावेलां जिनमंदिरो घणे ठेकाणे विद्यमान छे. ७-तथा वि० सं० १०८ मां जावडसाए श्रीशत्रुजयपर भोगणीसलाख सोनामोहोरो खरची उद्धार को प्रतिष्टा दर्शपूर्वघरश्रीवज्रस्वामिजीए करी इत्यादि अधिकार श्री १-२ "महागिरिमुहस्त्याद्या धजान्तादशपूर्वणिः" इत्यभिधानचिन्तामणिवचनात्. Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८४ ) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. शत्रुजयमाहात्म्यमां छे. वळी समराशाए वि० सं १३७१ मां, तथा करमाशाए पण वि० सं० १५८७ मां श्रीशजयपर उद्धार कर्या छे. ८-तथा श्रीसिद्धसेनदिवाकरमहाराजजीना सद्बोधथी श्रीविक्रमराजाए श्रीसिद्धाचळजीनो संघ घणा ठाठमाठथी काढयो हतो के, जेनी साथे चौद तो मुकुटबंधराजाओ हता, सीतेरलाख श्रावको हता श्रीसिद्धसेनदिवाकर प्रमुख पांचहजार आचार्यो हता. एकसोनेओगणोत्तर सुवर्णना जिनमंदिरो साथे हतां, एकक्रोड दशलाख पांचहजार गाडाओ हतां, अढारलाख घोडा हता, छत्रीससो हापीओ हता, इत्यादि बीजी पण घणी सारी सामग्री साथे हती, वळी प्रथम एकलाख सोनामोहोरोथी श्रीसिद्धसेनदिवाकरमहाराजने गुरुपूजन कर्यु हतुं अने ते द्रव्यवडे गुरुमहाराजना उपदेशथी जीर्णोद्धार को हतो, वीगेरे बीजां पण घणा सारां सारां कार्य तेमणे श्रीगुरुमहाराजना उपदेशथी की छे ते संबंधी विशेष वृत्तांत श्रीविक्रमचरित्रथी जाणवो. विक्रमचरित्र श्रीअमदावादमा पं० श्रीवीरविजयजीमहाराजना ज्ञानभंडारमा छे. . ९-तथा आचार्य श्री वप्पभट्टिमहाराजजीना सदुपदेशथी गोपगढना (ग्वालियरगढना) आमनामना राजाए गोपगढमां श्रीमहावीरस्वामिन १०१ हाथ उंचुं भव्यजिनालय बंधावी तेमां अढारभार प्रमाण सुवर्णमय प्रतिमा स्थापन करी १ पितानुं नाम " बप्प " मातानुं नाम "भट्टि" हतुं ते उपरथी तेमनुं नाम " बप्पष्टि" राखवामां आव्युं छे. आ आचार्य आकाशगामीनी विद्याबळथी नित्य पंचतीर्थीनी यात्रा करता हता. Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८५ ) चळी ते श्रीजिनालयना मुख्यमंडप, अने रंगमंडप कराववामां बावीशलाख पचीशहजार सोनामोहोरो खरची वळी वि० सं० ८११ मां एकक्रोड सोनामोहोरोनुं श्रीबप्पभट्टि - जीमहाराजना आचार्यपदमहोत्सवमां खरच कर्यु, वळी पोताना नवलक्षसिंहासनपर बेसाडी सवाक्रोड सोनामोहोरोथी गुरुपूजन कर्तुं ते गुरुपूजन द्रव्ये करी गुरुमहाराजना उपदेशथी एकसो जीर्ण थयेलां देरासरोनो उद्धार कर्यो, बळी ते आमराजाए श्रीगोपगढ उपर मनोहर विशाळ एवी एक पौषधशाळा बंधावी के जेमां एकहजार तो स्तंभो हता, तेमां चतुर्विध श्रीसंघने सुखे आववा माटे त्रण मोटा विशाळ द्वारो मुकवामां आव्यां हतां, वळी तेमां दूर दूर बेठेला साधुओने पडिलेहणस्वाध्यायादिकवेळा ओनी चेतवणी आपवा माटे मध्यस्तंभमां मोटा नादवाळो एक घंट बांधवामां आव्यो हतो, वळी ते पौषधशाळामां एक व्याख्यानमंडप त्रणलाख सोनामोहोरो खरचीने बांध्यो हतो, अने तेमां एवां तो चंद्रकांत्यादिक तेजस्वी रत्नो जडयां हतां के जेथी रात्रिए पण साधुओ त्रसकायादिकनी विराधना विना पुस्तको वीगेरे वांची शकता हता, वळी बप्पभट्टिसूरिजीना उपदेशथी आमराजाए मोटा आडंबरपूर्वक संघ लइ श्रीसिद्धाचळजी, गिरनारजीनी यात्रा करी त्यांपण जीर्णोद्धार कर्यो, इत्यादि विशेषाधिकार चतुर्विंशतिप्रबंधग्रन्थादिकथी जाणवो. पञ्चमःप्रकाशः १०- तथा गुजरातनाराजा भीमदेवना प्रधानश्री विमळशाडे वि० सं० १०८८ मां श्री अर्बुदगिरिपर बारक्रोड त्रेपनलाख रुपैयानुं खरच करी घणाज भव्यजिनमंदिरो बंधाव्यां छे, जेने जोड़ने लोकोना मन घणा हर्षित थाय छे. ', २४ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८६ ) श्रीप्रश्नोत्तरपदीपे. ११-तथा श्रीमंडपाचळनाराजाना प्रधान शा.श्रीपृथ्वीवरे (पेथडे ) तपगच्छनायकश्रीधर्मघोषमूरिजीना उपदेशयी सिद्धाचळ, देवगिरि, अने मंडपाचळ, वीगेरे परमोत्तम स्थळे चोरासी श्रीजिनमंदिरो बंधाव्यां ते संबंधी विस्तार वात पूज्यश्रीसोमतिलकसरिकृतपृथ्वीधरसाधुकारितचैत्यस्तोत्रथी जाणवी, अने ते स्तोत्र अमारी पासे छे. वळी तेमणे सात मोटा ज्ञानभंडारो कराव्या, छत्रीशहजार जीर्णटंक खरची श्रीधर्मघोषसरिजीनो श्रीमंडपाचळमां प्रवेशमहोत्सव को, इत्यादि घणा उत्तमकार्य करी जेमणे मनुष्यजन्म पाम्यानुं फळ हस्तमध्यगत कयु छे. वळी तेमना " झांझण" नामना पुत्ररत्ने पण घणा उत्तमकार्य करेलां छे, ते श्रीरत्नमंदिरगणिकृतउपदेशतरंगणीप्रमुखग्रन्यो जोवाथी समजाशे. १२-तथा श्रीसिद्धराजजयसिंहराजाए श्रीपाटणमां संवत् ११८३ मां श्रीऋषभदेवजीनुं मंदिर बंधाव्युं तेमा ८५ आंगुलप्रमाणवाळी प्रभुजीनी प्रतिमा स्थापी मंदिर नाम " राजविहार " राखवामां आव्युं हतुं वीगेरे घणा उत्तम कार्यो को छे. १३-तथा सिद्धराजजयसिंहराजानो “ शांतु " ए नामनो पांचहजार घोडेस्वारोनो अधिपती हतो अने ते वळी श्रीदेवमूरिजीमहाराजनो परमभक्त हतो. तेणे चोराशीहजार सोनामोहोरो खरची एक राजमहेलसमान पोताने माटे मेहेल बनाव्यो, एक दिवस तेणे आचार्यश्रीदेवसरिजीमहाराजने ते मेहेल बताव्यो पण आचार्यजीए तेनी प्रशंसा न करी. त्यारे सेनापतिए पूछयुं के हे भगवन् सर्व Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमः प्रकाशः ( १८७ ) लोको आ मेहेलनी प्रशंसा करेछे, तो आप केम प्रशंसा करता नथी ते सांभळी श्रीदेवसूरिजीमहाराजना शिष्य श्री माणक्यचंद्रसूरिजी कनुं के, जो आ पौषधशाळा होत तो गुरुमहाराज प्रशंसा करत. गृहस्थना घरनी प्रशंसा करता पाप लागे, ते सांभळी शांत कहां के हवेथी आ पौषधशाळा हो. त्यारथी ते पौषधशाळा थे. अहो . धन्य छे तेवा जीवोने. १४ - तथा श्रीदेवसूरिजी महाराजना सदुपदेशथी कोरंटकनगरना नाहडमंत्रिए श्रीकोरंटकादिकमां " नाहडवसाहे " आदिक बहोतेर श्रीजिनालयो बंधावी आचार्यजीने हाथे प्रतिष्ठा करावी छे इत्यादि. - १५ - तथा श्रीहेमचन्द्रसूरिजीना उपदेशथी प्रतिबोध पामेला श्रीकुमारपाळमहाराजाए श्रीतारंगाजी, सिद्धाचळजी, अने खंभात, वगेरे उत्तम स्थळे १४४४ नुतन जिनमंदिरो तथा १६०० जीर्णोद्धारो कराव्या के जेमांथी आज पण घणाक जिनमंदिरो विद्यमान छे. वळी श्रीपाटणमां पोताना पिताश्री त्रिभुवनपाळना नामनी यादगीरी माटे " त्रिहुअणविहार ” नामनुं ७२ देवकुलिकासहितजिनमंदिर बंधाव्यं तेमां १२५ आंगुलनी उंची अरिष्टरत्ननी मूळनायक श्रीनेमिनाथप्रभुनी प्रतिमा स्थापी अने फरती ७२ देरीओमां तेणे चौदभारप्रमाण २४ रत्ननी २४ सोनानी २४ रुपानी इत्यादि जिनप्रतीमा स्थापी सर्वमळी तेमां ९६ क्रोडसोनामोहोरोखरची ते जिनालयमा उदयन, आम्रदेव, कुबेरदत्त, वीगेरे अढार हजार श्रावको नित्यनृत्यगायनसहितस्नात्रमहोत्सव करता हता. वळी. सातसोलैयाओ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८८ ) श्रीप्रश्नोत्तरमदीपे. राखीने त्रणलाखछत्रीसहजार आगमपुस्तको लखाव्यांतेमां दरेक आगमनीछछप्रतो सोनानाअक्षरोथी लखावी तथा श्रीहेमाचार्यकृतव्याकरण तथा चरित्रादिकग्रन्थोनी एकवीश एकवीश प्रतोलखावी लाभलीधो, वळी परमगुरु श्री हेमाचार्यजीना उपदेशथी कुमारपालराजाए ७२ राणा, १८००० कोटिध्वजसाहुकारो अने लाखोगमे बीजाश्रावकोना संघसहित श्रीसिद्धाचल, गिरिनार, आदितीर्थोनी मोटाआडंबरथी यात्राकरीतेमांदरेकस्थानके स्नात्रमहोत्सव ध्वजारोपण, श्रीसंघवात्सल्य आदिकार्योतेमणेकयी. ते संबंधीविशेषवृत्तांत श्रीप्रबंधचिंतामणिथी तथा वाचकश्रीजिनमंडनकृतकुमारपालप्रबंधथी जाणवो. १६-तथा श्रीअणहिलपुरपाटणना कुमारपालराजाना बाहडमंत्रिए वि० सं० १२१३ मां श्रीशत्रुजयोद्धारकर्यो, ते प्रसंग त्रणकोडत्रणलाख सोनामोहोरो खरची. वळी तेमणे श्रीगिरिनारपरपगथीयां बंधावी सुलभमार्गको तेमा ६३ लाखसोनामोहोरोनुं खरचकर्यु यतः "त्रिषष्टिलक्षद्रमाणां गिरिनारगिरौव्ययात् ॥ भव्याबाहडदेवेनपद्या हर्षेणकारिता ॥१॥” इतिवचनात्. इत्यादि घणा उत्तमकाम कोंछे. १७-तथा श्रीपाटणना आभड नामनाश्रावके २४ तीर्थकरना २४ जिनमंदिरो बंधाव्यां तथा चोराशीपौषधशालाओ बंधावी एवीगेरे सातेक्षेत्रोमां ९० लाखसोनामोहोरो खरचीने लाभलीघोछे. १८-तथा श्रीधवलकपुरना (धोलकाना) वीरधवलराजाना श्रीवस्तुपाल, तेजपाल, मंत्रिए तेरसोनवांजिनम Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पसमाप्रकाशः (१८९ ) दिसो भने बावीसोजीर्णोद्धारकराव्या, सवालाख जिनबिंबभराव्या श्रीअर्बुदाचल उपरक्रोडोरुपैयाखरची जिनमंदिरो बंधाव्यां, वळी वस्तुपालनी स्त्रीअनुपदेवीए अने तेजपालनी स्त्रीललितादेवीए श्रीअर्बुदाचलपर श्रीनेमीनाथना मंदिरमां पेसलांबाजु अढारलाख रुपैयाखरची बे गोखलाकराव्या के, जेदेराणीजेठाणीना नामथीप्रसिद्धछे. वळी नवसेंचोरा सी पौषधशालाओ बंधावी, वळी सातक्रोडसोनामोहोरो खरचीने सुवर्णनी साहीथी तथा मसीनीसाहीथी ताडपत्रोपर तेमज उतमकागळोपर पुस्तकोलखावीने सातसरस्वती भंडारकराव्याछे. वळी वि० सं० १२८५ मां पहेली श्री शत्रुनय तथा गिरिनारतीर्थनी यात्राकरीहती तेवखते तेमनीसाथे चोवीशहाथीदांतना जिनमंदिरो, एकसोनेवीशकाटना जिनमंदिरो, पीसतालीससोगाडा, सातसोपालखीओ, पांचसोकारीगरो, सातसो आचार्यो, बेहजारश्वेतांबरमुनिओ, आगयारसोदिगंबरो, ओगणीससोसाध्वीओ, चारहजार घोडाओ, बेहजारउंटो, अने सातलाखमाणसोहतां, एवीरीते पहेलीयात्राकर्यावाद तेथीपण अधिक अधिकआडंबरथीबीजीयानाओ एल्लेसाडीवारयात्राओकरीहती. इत्यादिघणा उत्तमकाम तेमणेकर्याछे. ते श्राधाविधिग्रन्थटीका, तथा वस्तुपाल,तेजपालरासवीगेरे जोवाथी समजाशे. इत्यादि घणाभव्यजीवोए श्रीजिनमंदिरादिकोने करावी अपूर्व लाभ लीपाछे. तेमांना केटलाक जिनमंदिरादिको अजेपाळ, तथा मुसलमानराजाओए जमीनदोस्त की छे ते सीवायना बाकी जे रहेलां ते छे. वळी हालमां पण ठामठाम घणा भव्यजीवो श्रीजिनमंदिरादिकोने करावी मनुष्यजन्मने सफळ करेछे. Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९० ) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. अथप्रशस्तिलिख्यते ॥ वरेश्रीमततपागच्छेस्वच्छेज्ञानगुणाङ्किताः ॥ बभूवु(धनारूपविजयामुनिपुङ्गवाः ॥ १॥ तच्छिष्यः कीर्निमान्कीर्तिविजयोविजितेन्द्रियः ॥ शिष्यसमूहयुक्तोभूनिर्ग्रन्थोमुनिसत्तमः॥२॥ विनयस्तस्यकस्तूरविजयोभून्महामुनिः ॥ तपःप्रभृतिभिर्युक्तो गुणौघेविगतस्पृहः ॥ ३ ॥ तस्याप्यासीद्विनेयोहिमण्यादिविजयः सुधीः ॥ तपश्चयादिसम्पन्नोभूरिशिष्यप्रशिष्यकः॥ ४॥श्रीशुभविजयस्तस्यविनेयोविद्यतेधुना संयमीसावधानस्तुधर्मकर्मणिनित्यशः ॥ ५॥ तस्यशिघ्याणुनालक्ष्मीविजयेनकृतोमया ॥ नन्दे नँन्दचन्द्रेब्देग्रन्थोयंशुभदः सताम् ॥ ६॥ ग्रन्थेस्मिनवितथंप्रोक्तंयन्मयात्यल्पबुद्धिना ॥ विद्दद्भिस्तत्कृपाकृत्वाविशोध्यंगतमत्स रेः॥७॥ पुरेकप्पेटवाणिज्याजनांकःकुलमण्डिते ॥धनिकैः सर्वतःपूर्णेग्रन्थोयंनिर्मितोमया ॥८॥ श्रीमद्दीरजिनेशस्यतीर्थविश्वप्रकाशकम् ॥ यावत्प्रवर्ततेतावद्ग्रन्योयनन्दताचिरम् ॥ ९॥ इतिश्रीमत्तपागच्छेनेकगुरुगुणगणालङ्कतपण्डितश्रीमद्रूपविजयगणिवर्यशिष्यपण्डितश्रीकीर्तिविजयगणिशिष्यपण्डितश्रीकस्तूरविजयगणिशिष्यपण्डितश्रीमणिविजयगणि शिष्यपं०श्रीशुभविजयगणिशिष्यमुं०श्री लक्ष्मीविजयेनविरचितेश्रीप्रश्नोत्तर प्रदीपेपश्चमः प्रकाशः Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १० व्या० ......... प.च्या - नमासिडम् श्रीपर्युषणाष्टान्हिकाव्याख्यानग्रन्थप्रारंभः ॥१॥ - :GP प्रणम्यश्रीमहावीरंधीरकौशिकसेवितम् ॥ वाचंयमैर्मुदामान्यंवदान्यंजितमन्मथम् ॥ १॥ भव्यसत्वसमूहस्यसत्यसबोधसिद्धये॥ पर्युषणाख्यपष्टिान्हिकाख्यानंकरोम्यहम् ॥ २ ॥ युग्मम् अत्रश्रीमज्जैनमतेयद्यपिभूयांसिपर्वाणिभवन्तितदपिसकलदुःखददुष्टाष्टकर्मक्षयकृन्नापरंश्रीपर्युषणाख्यपर्वसमानंपर्वयतः “ पर्वाणिबहूनिसन्तिप्राक्तानिश्रीजिनागमे ॥ पर्युषणासमंनान्यत्कर्मणांमर्मभेदकृत् ॥ १ ॥” ततोस्मिन्महापुण्यपर्वणिसमागतेसतियथाप्रमोदभरनिर्भरभूचॅनानिखिलनिर्जरास्तन्नायकाश्चैकीभूयाष्टमेश्रीनन्दीश्वरद्दीपेधर्मम १ इन्द्रसेवितम् २ भूरिदानप्रदम् ३ भूधनोदेहः - Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २॥ प० व्या. हिमार्थगत्वाधिकभावभक्तितोञ्जनादिशैलस्थेषुश्रीशाश्वतार्हचैत्येषुशाश्वताहत्य- • प० व्या० तिमानामष्टान्हिकामहोत्सवंकुर्वन्तिततःकृतकृत्याः सन्तस्तेसर्वस्वंस्वस्थानंगच्छन्तितथाशारदसुधांशूज्वलशुद्धश्रद्धालुभिःश्रावकैरपिविविधजन्मजरामृत्युप्रमु - ॥२॥ खदुःखप्रबन्धेनदुष्पापांनुभवादिसकलसामग्रीमवाप्यविशेषतोत्रपर्वणिश्रीजिनप्रणीतधर्मकर्मणिशीघमेवयत्नःकार्यः, यतः “ दुर्लभांसर्वसामग्रींप्राप्यमहँभवादिकाम् ॥ धर्मेयत्नःसदाकार्यःपर्वणितुविशेषतः ॥ १॥” ननुकथंधर्मकमणिशीघमेवयत्नःकार्यइत्युक्तमितिचेदुच्यतेनुभवादिसकलसामग्रीहिस्वभाव-- तएवचपलतराक्षणभंगुराचभवतीतिहेतोरित्युक्तम् यतः "आयुर्वारितरङ्गभंगुरतरंश्रीस्तूलतुल्यस्थितिस्तारुण्यंकरिकर्णचञ्चलतरंस्वप्नोपमाःसङ्गमाः ॥ यच्चान्यद्रमणीमणिप्रभृतिकंवस्त्वस्तितच्चास्थिरंविज्ञायेतिविधेयतामसुमताधर्मःसदाशी १ तूलमर्कतूलम् २ प्राणिना Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० व्या० ॥३॥ ॥ ३ ॥ व्रतः ॥ १ ॥ " तथात्र श्रीराजर्षैिभर्तृहरिणाप्युक्तम् " यावत्स्व स्थमिदंकलेवर - १० व्या• गृहयाच वदूरे जरा याच वेन्द्रियशकिरमतिहता यावत्क्षयोनायुषः ॥ आत्मश्रेयसि - तावदेव विदुषा कार्यः प्रयत्नोम हार्न्सन्दीप्ते भवने चकूपखननंप्रत्युद्यमः कीदृशः ॥ ||3||" इत्येवमुक्तेपि ये केचित्प्रमादव शगानराः करकोडगतम पिसदानश्वरंश्रीजिनोकधर्मेन साधयन्ति किन्तु तंत्य कानश्वरधनादिभोगवाञ्छार्थमितस्ततोवातू - लान्तर्गत लघुवृगगगवद्भ्रमन्तिते धर्मवनविहीन अधन्यानराजन्ते, अत्रविविघदृष्टान्तवृतयुग्मम्तथाहि “निर्दन्तः करैटीहयोगर्तेजवश्चन्द्रविनाशैर्वरी निर्गन्धं कुसुमंस रोगतजलंछा या विहीन स्तरुः ॥ भोज्यं निर्लवर्णसुतोगतगुणश्चारित्रहीनोपतिर्निर्देवं भवनं नराजतितथा धर्मविनामानवः ॥ १ ॥ राज्यंर्निः सचिव १ सम्यक्मज्वलिते २ वातूलोबान्तोलिकः ३ हस्ती ४ गतोयातोजवोवेगोयस्यसः ५ रात्री ६ मन्त्रि शून्य मित्यर्थः. Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० व्या० गतप्रहरणं सैन्यंविनेत्रंमुखं निर्जला नीचप गोभोज्यं याचिता । दुःशीलादयिता हृनि कृतिमान्ाजाना पारितः शिष्यो भक्ति, वे वर्जिोन विनामैनरः शस्यते ॥ २ ॥ ” ततोभोभोभव्याभवदुःखप्रदं । मादं मुक्त्वा धर्मकृत्वा नृभ ॥ ४ ॥ वादिसकलसामग्री सफला कार्या, अथचानुत्रमेणधर्मकृत्यविवरणमाहनिःश्रेयसपदाभिलाषुकभविकजनैरंजस्त्रं श्री जैना गारेगन्तव्यं गत्वाच तत्रोग्रभक्त्या विशेषतः पङ्कयां वदिकंदूरीनृत्यद्रव्य तोतिप्रशस्तव गन्धादिगुणयुः पुष्पादिभिर्भावतचै-त्यवन्दनादिभिःश्रीजिनप्रतिमा याः पूजाविधेया पूजा तो हिभूयिष्टभव्यप्राणिनामै हिकामुष्मिक सुख सम्पत्तिर्भवति यतः “वस्त्रैर्वस्त्र विभूतयः शुचितरालङ्कारतोलड् कृतिःपुष्पैः पूज्यपदंसुँगन्धितनुतागन्धैर्जिनेपूजिते ॥ दीपैर्ज्ञानमर्नावृतं निरुपमा ॥ ४ ॥ १ घृतंविना २ मायोपेतः ३ निरन्तरम् ४ पांशुलि: ५ सुगन्धयुक्तशरीरत्वम् ६ अनानृतंज्ञानम् केवलज्ञानमित्यर्थः Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० व्या० ५० व्या०, भोगर्दिरत्नादिभिःसन्येतानिकिमद्भुतंशिवपदमाप्तिस्ततोदेहिनाम् ॥ १॥" अत्रपूजाफलप्राप्तिविषयेबहवोदृष्टान्ताःसन्तितन्मध्यादेकंश्रीश्येनकमालिकदृष्टा ॥५॥ न्तमाह॥ “पूर्वनवाङ्गंनवभिःप्रेसूनैःपूजाकृताश्येनकमालिकेन ॥ ततोनवस्वेवभवेषुलक्ष्मीनवांनवांपापशिवर्द्धिमन्ते ॥ १॥” तदनन्तरंजङ्गमतीर्थनमस्यादिहेतवेप्रतिश्रयेसततंगन्तव्यंगुरुभक्त्यागुरूणांवंदनंदातव्यंततस्तबदनारविन्दात्सदुपदेशश्रवणकर्त्तव्यंसदुपदेशश्रवणात्प्राणीयथार्थशुभाशुभस्वरूपंजानातियदुक्तंश्रीदशवैकालिकसूत्रे “मुच्चाजाणईकल्लागंमुच्चाजाणईपावगं ॥ उभयंपिजाणईमुच्चाजसेयंतंसमायरे ॥१॥” ननुभावंविनायत्सदुपदेशश्रवणंक्रियतेतत्किंलाभायभवत्यपितुनेतिचेदुच्यतेतदपिलाभायभवतियदाहश्रीवज्रसेन-- सूरिशिष्यश्रीहरिमुनिः “ द्वेषेपिबोधकवचःश्रवणंविधायस्याद्रौहिणेयइवजन्तु१ पुष्पैः २ तत्वोपदेशकानाम्शुद्धमरूप कानामित्यर्थः ३ पुण्यम् ४ रौहिणेयइतिनाम्नाचौरः. me - Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० व्या. प० व्या० - रुदारलाभः ॥ काथोपियोपिसरुजांमुखदोरविर्वासन्तापकोपिजगदंगभृतांहिताय ॥ १॥” तथासुकृतिमत्सुश्रावकेणश्रीकल्पवाचनामुख्यदिवसात्प्रादिवसेप्रतिश्रयं प्रत्यागत्यसाक्षात्सदभिलषितार्थप्रदैककल्पद्रमकल्पश्रीकल्पसंज्ञकमहागमस्यपुस्तकंगृहीत्वानिजगृहेगत्वारात्रिजागरणंकृत्वाश्रीकल्पवाचनामुख्यदिवसेमहमिहेनतमस्तसङ्घसमन्वितेनसुवस्त्राभरणभूषित सधवाननसमुद्भूतातिललिनधवलमङ्गलगीतकलितेनविविधवादित्रनिनादप्रतिशब्दवधिरिताम्बरभूत-- लेनचारुमतगजतुरगादिवाहनारूढसुनेपेथ्यकमनीयनिजकुमारादिहस्तस्थकल्पा गमपुस्तकेनसाधुवसतिसमागस्यनिर्दोषासनासीनश्रीमद्गुरुकोमलकरकमले-- दीयतेततःस्वधर्मैकनिष्टाप्रगल्भसकलसङ्घसावधानीभूयसंयोजितविमलकरकम १ कटुकोपि २ रोगिणाम् ३ भूलोकपाणिनाम् ४ महोत्स वेन ५ सुनेपथ्यम् सुवेषम्. ६ साधूपाश्रयम् ७ प्रगल्भश्चतुरः. Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० व्या० लः श्री गुरुवदन स्थापितनिर्मलनयनयुगलः, उझ्झितसकलदुस्तिप्रमादः प्रवर्द्ध- १० व्या० मानप्रहर्षितचित्तप्रसादःक्रन्दनकुत्सितकथाविकथनकलकलादिखरहितोयथास्वशक्तयावासक्षेप नाणकधूपदीपादिनाकृतकल्पपुस्तकपूजनः श्रीगुरूणां कृतवि-लेपननाणकादिनाङ्गपूजनःसम्पूर्णविहित सुविहित गुरुगोधूलिका दिकृत्यो विस्तरतः श्री कल्पसूत्राख्यानंमहार्थेम हामङ्गलमयं श्री गुरुमुखपद्माच्छृणोतिततस्तव-।। णफलमाह || " श्री कल्पंशुद्ध भावेनसावधानः शृणोतियः || अन्तर्भवाष्टकंधन्यः सलभेत्परमंपदम् ॥ १ ॥ ” तथा एगग्गचित्ता जिणसासणंमिपभावणापूअपरायणाजे || तिसत्तवारंनिसुणंतिकप्पंभ वाणवंगोयमतेतरंति ॥ १ ॥ " पुनर्भोभव्याविशेषेणात्रपर्वणिनिरवद्यान्नादिदानार्थंमुनयोनिमन्त्रणीयाअतःसु- ॥७॥ १ नाणको मुद्रा चिन्हित निष्कादिवाचकोज्ञेयः २ गोधूलिका "गौंहली" तिभाषायां प्रसिद्धा. ३ निरवद्यम्निर्दोषम् 11911 Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० व्या० श्रावको भोजनवेलायांजातार्यांांसद्भक्तयासाधून्निमन्त्र्यतैः सार्द्धस्वगृहमायातिस्वयमागच्छतोवामुनीन्दृष्ट्वाप्रमोदपुर्लकपल्लविताङ्गवल्लिस्तत्सम्मुखंगमनादिकंक- रोतिततः संविज्ञभावितात्मासन्सविनयं सहर्षमेकान्तात्मानुग्रहबुद्ध्यादानंदत्तेतदाह “ धन्योहंमांम कंपुण्यंधनंवरतरंगृहम् ॥ अहोममालयंप्रत्यागता अद्यसुसाधवः || १ || इत्येवंभावितात्मासु श्रावको मुदितोवरम् ॥ शुद्धमन्नादिकंदत्तेस्वात्मानुग्रहबुद्धितः ॥ २ ॥ " युग्मम् ततोनिजनिकेतननिर्गमनद्वारादियावदनुव्रज्यभक्त्यातान् वन्दित्वा निवर्त्तते स । ध्वभावेत्वन वृष्टिवद्यादिसाध्वागमनंस्यात्त-दातद्योग्यंदानंद त्वापूर्णकृतार्थस्यामितिभावना युतोतिसंमोदकलितो भोजनसमयेगृहद्वारद्गिालोकनंकुर्यात्तथाचाहुः “ जंसाहूणंन दिन्नंकहिं पितंसावयानभुं - जंति || पत्तेभोयणसमयेदारस्सलोयणंकुज्जा ॥ १ ॥ " पुनर्लानसाध्वादीनां - १ ममोदपुलकोहर्षरोमोद्गमः २ ममेदम् ३ पवित्रम् ४ निकेतनम्गृहम् १ अमेघदृष्टिवत्. 112 11 ॥ ८ ॥ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "" ५० व्या० शरीरमुखवार्त्तादिपृच्छापूर्वयोग्यभक्तपानौषधादिभिः सद्भक्तिर्विधेयासाधुसद्भ- ५० व्या० क्त्याहिभव्यप्राणिनोभवाब्धिपारंप्राप्नुवन्ति, अत्रमुनिदानविषये श्रीनाभिराजसूनु श्रीवृषभदेवजगदीश्वरादीनांदृष्टान्तास्तद्यथा “ श्रीनाभेय जिनेश्वरोधनभवेश्रेयैः श्रियामाश्रयःश्रेयांसः सचमूलदेवनृपतिः सानन्दनाचन्दना ॥ धन्योयंकृतपुण्यकःशुभमनाःश्रीशालिभद्रादयः सर्वेप्युत्तमदानदानविधिनाजाताजगि श्रुताः ॥ १ ॥ ” इतिपुनः " साहमीआणवच्छल ” मितिवचनाद्यथाध्यादि नाथपुत्रोभरतभूमीन्द्रोभरतभूपतिः समग्रसाधर्मिकाणांवात्सल्यंकृतवान्तथानिज ॥ ९ ॥ अकृत शक्यनुसारेणसुश्रावकैरपितेषांवात्सल्यंकर्त्तव्यम्यदाहश्रीहरिमुनिः भरतचक्रीविश्वसाधर्मिकाचकुरुततर्दनुमानाच्छ्रेयसेत्रोद्यमंतत् ॥ यदिक "" १ धनसार्थवाहभवे २ मोक्षश्रीणामाश्रयः ३ इतिचन्दनाविशेषणम् ४ कयवन्नः ५ उत्कृष्टशुद्धदानविधिनेत्यर्थ ६ श्रीभरतानुमानात् ७ साधर्मिकवात्सल्ये. ॥९॥ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पं० व्या० प० व्या | लधरित्रींप्रीयत्यम्बुवाहाकिमुनतदरघदृःक्षेत्रमात्रंणातु ॥ १ ॥” पुनः साधुश्रावकप्रभृतिषुयोग्यसर्वस्मिन्कालेदत्तंदानधर्मधनादिकारणायभवतिविशेषतस्तुपारणकोत्तरपारणकयोर्दिवसेचयदाहश्रीहरिमुनिः “ प्रतिदिनमपिदानंपुण्यसम्यन्निदानंपुनरधिकफलंस्यात्पारणाहोत्तराहे ॥ दिर्शतिजलभृदन्नंकृतिकादौसुवृष्टःपुनरमलमॅनय॑मौक्तिकस्वातियोगे ॥ १॥” पुनःश्रीचैत्यप्रतिमापुस्तकसङ्घरूपेषुसप्तस्वपिपुण्यक्षेत्रेषुसन्न्यायोपार्जितंनिजवित्तबीजंभूरिसस्फलाप्तयेसम्प्रतिनरेन्द्रवद्धनाढ्यःपुण्यवान्सुश्रावकोवपेत्पुनःकृतपापपङ्कविनाशनेश्रीजिनशासनेयथाशक्त्याप्रभावनाकार्यायतःप्रभावनातोहिपरमोत्कृष्टागुणाःसमुत्पद्यन्तेयदुक्तम् “ मिथ्यात्वनाशोज/जन्तुबोधिस्तीर्थोन्नतिस्तीर्थकृतां १ तोषयति २ मेघः ३ तर्पयतु ४ ददानि ५ मेघः ६ तदाख्यनक्षत्रादौ ७ अमूल्यम् ८ तदाख्यनक्षत्रयोगे ९ अज्ञप्राणिनांधर्मावाप्तिः. Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० व्या पदामि ॥ आत्मान्यलाभोजिनशासनेश्रीप्रभावनातोहिगुणा स्युरेते ॥१॥” प० व्यां० | पुनःकृपणतानकार्या यतः “ कीटिकासञ्चितधान्यमक्षिकासञ्चितंमधु ॥... "| कृपणोपार्जितालक्ष्मीरन्यैरेवोपभुज्यते ॥ १॥” इतिश्राद्धविधिवृत्तिव- ॥ ११ ॥ चनात्पुनरत्रस्मितमुखपद्माभिरामरामारमणरसिकत्वंपरिहृत्यमैथुनत्यागरूपंनिमलतरंगुणवरंब्रह्मवैतंधार्यम् यतः “जोदेईणयकोडिंअहवाकोरेइकणयजिणभवणं ॥ तस्सनतँत्तिअपुनंजतिअबंभवएधरिए ॥१॥” इतिसम्बोधसप्ततिग्रन्थवचनात् ॥ अत्रजलानलादिमहाभयहरविशदशीलमाहात्म्येचन्द्रचारचरित्रसुप्रसिद्धश्रीरघुनाथपत्नीमहासतीसीतादृष्टान्तस्तद्यथा “ शीतयादुर १ स्वपरलाभः २ मिथुनस्त्रिपुंसयुग्ममतत्कर्ममैथुनम् ३ शीलव्रतम् ४ ददाति ५ कनककोटिंमुवर्णकोटिंदशमाषसत्कःसुवर्णःकथ्यतेतस्यकोटिस्तांयाचकेभ्यइतिशेषः ६ कारयति ७ तावत्पुण्यम् ८ यावद्ब्रह्मव्रतेधृते. Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ।। १२ ।। प० व्यापवादभीतयापावकेस्वतनुराहुतिः कृता ॥ पावकस्तुजलतांजगामय तत्रशीलमहिमा विजृम्भितम् ॥ १ ॥ " पुनर्धूतादिसप्तव्यसनानि पापात्मकानि - इहामुत्र बहुदुःखदानिततोदूरतस्त्याज्यानियदाहहरिमुनिः “ निःसत्वंनिंर्देयत्वं- ॥ १२ ॥ विविध विनटनाशौर्चेनाशात्मैहानी अस्वास्थ्यं वैर वृद्धिर्व्यसन फल मिहा मुत्र दुर्गत्यवाप्तिः ॥ चौलुक्यक्ष्मापवत्तद्व्यसन विरमणेकिंनदक्षाय तध्वं जानन्तोमान्धकूपेप तचलतमादृग्विषाहेः पर्यो हे ॥ १ ॥ " अत्रप्रख्यातनलनृपादीनांदृष्टान्तास्तद्यथा " द्यूतद्राज्य विनाशनं नलनृपः प्राप्तोथवा पाण्डवामद्यात् कृष्णह तिश्वराधव पि १ द्यूतरमणव्यसनाद्दारिद्र्यम् २ मांसभक्षणान्निः करुणत्वम् ३ मद्यपानाद्विविधविवटम्बना ४ वेश्याभोगात्पवित्रतायानाशः ५ आखेटकादात्महानिः ६. चौर्याद्व्याकुलत्व विश्वास रहितत्वञ्च ७ परदारसेवातोवैरदृद्धिः ८ इहलोके ९ परलोकेनरकप्राप्तिः १० कुमारपाल भूपालवत् ११ दृष्टिविषसर्पस्य १२ मार्गेण १३ द्यूतांल्लोके " जुगार " इतिप्रसिद्धात् १४ दशरथः . Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० व्या० ० व्या० तापाप॑र्द्धितोदूषितः ॥ मांसाच्छ्रेणिकभूपतिश्चनरकेचौर्याद्दिनष्टानकेवेश्यातः कृतपुण्य कोगतधनोन्यस्त्रीरतोरावणः ||१||” पुनरत्रपर्वणियथाशक्तितपश्चरणेपियत्नोविधेयोयत्ःप्रोक्तम् श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रवृत्तौ “सोहुतवोकायन्वोजेण- ॥ १२ ॥ मणोमंगुलंनचिंतेइ ॥ जेणनई दियहाणीजेणयजोगानहायंति ||१||” इति परन्तुपूजालाभाद्यर्थेनतपोविधेयम् यतः “पूजालाभप्रसिध्ध्यर्थेतपस्तप्येतयोल्पधीः ॥ शोषएवशरीरस्यनतस्य तपसः फलम् ॥ १ ॥ " इतिवचनादथतपोमाहात्म्यमाह ॥ “ तपः सकललक्ष्मीणांनियन्त्रणमशृङ्खलम् ।। दुरितप्रेत भूतानांरक्षामन्त्रोनिरक्षरः।।१।।” अत्रश्रीसिद्धारथराजपुत्र श्रीचरम जिनपतिप्रभृतीनांदृष्टान्ताभवन्तितद्यथा “ श्रीमद्दीरजिनोटप्रहरणः स्वीयप्रतिज्ञादृढः श्लाघ्योबाहुबलीबलोप्यविचलः सन्नन्दिषेणैव्रती ॥ आनन्दः सदुपासकोव्रतरुचिःसामुन्दरीत्यादयःक १ मृगयातः २ राजगृहनगरनिवासी धनावहश्रेष्टिपुत्रः ३ प्रेतः पिशाचभेदः ४ दृदमहारी ५ अयंनन्दिषेणः श्रीमहावीरजीवोज्ञातव्यः. Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १४ ॥ 66 प० व्या० र्मोन्मूलन को विदेन तपसादेवासुरैर्वन्दिताः ॥ १ ॥ " पुनर्भासक्षपणादितपश्चरणावसरेसङ्घभक्तिर्ज्ञानभक्तिश्वनियमेन कार्यापुनः “ छविहेआवस्सयंमिउज्जुतोहोईपइदिवस " मितिवचनात्प्रतिदिनंसन्ध्याद्दयेपिप्रतिक्रमणं कर्त्तव्यस्तत्फलञ्चेदम् “ आवस्सयमुभयकालंओसहमिवजे करंतिउज्जुता || जिंगविज्जकहिय विहिणाअ कम्मरोगाय ते हु॑ति ॥ १ ॥ ” प्रतिक्रमणफलसत्कविशेषोत्र श्रीमदुत्तराध्ययन सूत्रादिकेभ्योवसेयः पुनस्त्रभोभव्याः शुभगतिदाशुभभावनाभाव्याकथमितिचेदुच्यतेशुभभावनांविनाविहितदानादिकंसर्व स फैलन स्यात्किन्तुवि-फलंस्याद्यदाहुःश्रीसोमप्रभाचार्याः "नीरागे तरुणीकटाक्षितमिव त्यागव्यपेतप्र १ उयुक्तः २ उपयोगयुक्ताः सन्तः ३ जिनवैद्यकथितविधिना ४ कर्मरोगरहिताः ५ अत्रविशेषफलापेक्षयासफलंनस्यादितिज्ञेयम्न तु सामान्य फलापेक्षया ६ दानरहितेकृपणेस्वामिनि . ॥ १४ ॥ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ |प० व्या० ॥१५॥ प० व्या || भौसेवाकष्टमिवोपरोपणमिवाम्भोजन्मनामश्मनि ॥ विष्वग्वर्षमिवोरक्षितितले दानाईदर्चातपःस्वाध्यायाध्ययनादिनिष्फलमनुष्टानं विनाभावनाम् ॥१॥” इति. अत्रापिजगत्प्रख्यातश्रीभरतचक्रवर्त्यादीनांदृष्टान्ताज्ञेयास्तद्यथा “चक्रीश्रीभरतोबलानुगमृगःश्रेयानिलापुत्रकोजीर्णश्रेष्टिमृगावतीगृहपतिर्योभावदेवाभिधः ॥ साश्लाघ्यामरुदेवतानवमुनिःश्रीचन्द्ररुद्रस्यचेत्याद्याःकस्यनचित्रकारिचरिताभावेनसम्भूषिताः ॥१॥” इति पुनरष्टदिनानियावनिर्मलंनिजधर्मयोग्यसुवस्त्रविभूषणादिधार्यम्धर्महितकृन्मितशुद्धाहारेणदेहशुद्धिर्धार्यासत्यभूषितप्रियभाषयावान् शुद्धिःकार्यातिस्वच्छशुभाशयेनमनःशुद्धिरपिपुन श्राद्धाःसर्वेपिपर्ववासराविशेषतःपालनीयाभवन्तिततःप्रथमतएवसमीपगमष्टाहिकागमनंज्ञात्वा कृपायुक्तकोमलपरिणामैभव्यप्राणिभित्रसादिजन्तून्सम्यक्संसोध्यपिष्टादिकृ १ कमलानाम् २ मेघवर्षणमिव ३ क्षारभूमौ ४ बलभद्रानुगोमृगः ५ धनदत्तश्रेष्टिपुत्रः ६ गोधूमादीनांचूर्णादिकृत्यम्लोप्रमुखकृत्यमित्यर्थः Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० व्या० ।। १६ ।। त्यंकरणीयम्तदपिनभूयिष्टंनाल्पतरांकन्त्वष्टदिन निर्वाहकारकमेव करणीयमकुत-- ५० व्या० इत्येवमितिचेदुच्यतेभूयिष्टकरणेग्रेजीवोत्पत्तिहेतुत्वादल्पतरकरणेत्वन्तरालेवश्यंनवीनारम्भकरणीयत्वात्तत्रापिशीत्रविनाशिद्रव्यं न कर्त्तव्यम्यत्क्षतं तत्सम्यग्विधि-नारक्षणीयम्य दावहुवर्षाजीवोत्पत्तिः शीघ्रं भवतितदासदयंनिखद्यनवी नं कृत्वाभो क्तव्यम्नपुनः सावद्यंसमाचरणीयम् पुष्टधर्मालम्वनंविनानवी नारम्भोनकर्त्तव्योमां सिकतै लिककैवर्त्तभ्राष्ट्रकर्मकारकादिमहारम्भप्राणिषुयथाशक्त्यारम्भः प्रतिषेधनीयस्तथाचतैः सहव्यापारोपिनैवकर्त्तव्यः, यतः " मांसिकाद्यैः समंसर्वव्यापारं - वर्जयेच्छुधीः || महारम्भरताएतेयतोहिपापिनस्ततः ॥ १ ॥ मांसिकाद्यैः समयस्तुव्यापारंनैववर्जयेत् || धर्मही नोहितैज्ञैश्वज्ञेयोहिसजडात्मकः ॥ २ ॥ ” तथा १ यद्द्रव्यंकालादिदोषेणनष्टम् २ मांसिकोमांसविक्रयोपजीवीलोके "कसाइ" इतिप्रसिद्धः ३ कैवधीवर : ४ भ्राष्ट्रकर्मकारको “भाडभुंजो " इतिप्रसिद्धः ५ स्वपर हितज्ञैरितिवाच्यम्. ॥ १६ ॥ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 - प० व्या० ॥ १७॥ - स्वसामर्थ्यसतिमहाघोरदुःखागारकारागारबद्धानांमोचनंविधेयम्पुनर्नकेनापि- प० व्या० हिंसाकार्याकिन्तुपर्युषणापालनीयेतिग्राममध्येमायुद्घोषणाकारापणीयातथाशी |॥ १७॥ र्षादिशोधनग्रथन, वस्त्रादिधावनरंजन, शकटहलादिखेटन, यन्त्रादिवाहनकण्डनपेषण, पत्रपुष्पफलादित्रोटन, सचित्तखटिकवेर्णिकादिमृदन, धान्यादिलवनलिम्पन, मृदादिखनन, गृहादिनिष्पादनाद्यारम्भःसर्वोपिपरिहार्यः,यतः “सणंचीवरधोवणंमथ्थयगुंथणमबंभचेरंच ॥ खंडणपीसणलिंपणवज्जेइचाइपवदिणे ॥१॥” तथाश्रीपूज्यश्रीरत्नशेखरसूरीश्वरशिष्यश्रीचारित्रसुन्दरगणिरप्याह “अष्टा हिकामुसर्वासुविशेषात्पर्ववासरे॥आरम्भान्वर्जयेद्गहेखण्डनोत्पेषणादिकान्॥१॥" ननुश्रीजैनधर्मएवजीवदयानान्यधर्मेष्वितिचेदुच्यतेन्येषांवैष्णवादीनांधर्मेष्वपि- . जीवदयाप्रणीताभवतियदुक्तम् श्रीमद्भागवतेप्रथमस्कन्धेष्टमाध्यायेर्जुनप्रति १ प्राणिप्राणव्यपरोपणहिंसा २ वर्णिका "रमजी" इतिलोके प्रसिद्धारक्तमृत्तिका. Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० व्या० ॥१८॥ -- - - ५० व्या० श्रीकृष्णवाक्यम् “ यथापकेनपङ्काइंसुरयावामुराकृतम् ॥ तथैकजीवहिं साञ्चनयज्ञैर्माष्टुमर्हसि ॥१॥” तथाशिवशासनेमार्कण्डपुराणे “ कैपिलाना॥१८॥ सहस्राणियोदिजेभ्यःप्रयच्छति ॥ एकस्यजीवितंदद्यानचतुल्यंयुधिष्ठिर ॥१॥" तथामहाभारतेशान्तिपर्वण्यप्युक्तम् “ सर्वेवेदानतत्कुर्युःसर्वेयज्ञोश्वभारत ॥ सर्वेतीर्थाभिषेकाश्चयत्कुर्यात्प्राणिनांदया ॥ १ ॥” इत्येवंसर्वत्रजीवदयामाहात्म्यंकथितमस्तिपुनर्यज्जलादिस्थानंतत्सुरक्षणीयम्स्नानमप्युत्तिपनककुन्थ्वाद्यसंसंक्तवैषम्यशुषिराद्यदूषितेभूमिभागेपरिमितवस्त्रपूतजलसम्पीतिमसत्वरक्षणादि - १ मदिरया २ शोधयितुम्परिहर्तुमित्यर्थः ३ स्वर्णवर्णानांधेनूनाम् ४ ऋग्वेदादयः ५ अश्वमेधादयः ६ अटषष्टिषुतीर्थेषुस्नानानीत्यर्थः ७ उत्तिनाभूमौत्तविवरकारिणोगईभाकारजीवाःकीटिकानगराणिवा ८ पनकउल्लिसचपायमाषिभूकाष्टादिषुजायतेयत्रोत्पद्यतेतत्रतद्व्यसमवर्णश्च ९ कुन्थवाकुर्भूमिस्तस्यांतिष्टन्तीतिकुन्धवस्तेहित्रीन्द्रियाः १० सम्पातिमसत्वानि, आकाशचारिणोमक्षिकादयोजीवाः. Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० व्या० |॥१९॥ प० व्या | यतनयाकुर्याद्यतःप्रोक्तम्श्राद्धदिनकृत्ये “तसाइजीवरहिएभूमीभागेविसुद्ध || ए॥ फासुरगतुनीरेणइयरेणगलिएगउ ॥१॥ काउणंविहिणाणाणमित्यादिगाथा ॥ २ ॥” तदपिश्रीजिनपूजाद्यर्थनतुदेहशुद्धिभ्रान्त्यापुनःपुनःकर्तव्यम्देहशुद्धिर्हिन केनापिजलस्नानादिप्रकारेणस्याद्यदाहुःश्रीहेमचन्द्राचार्यपा दाः॥“अभ्यक्तोपिविलिप्तोपिधौतोपिघटकोटिभिः॥ नयातिशुचितांकायःशुण्डाघटइवाशुचिः ॥१॥ यकृच्छकेन्मूत्रमलवेदामयमयस्ययत् ।। प्रसाधनंवपुषस्तद्गृहस्रोतोधिवासनम् ॥२॥” तथास्कन्दपुराणेकाशीखण्डेषष्टाध्यायेप्युक्तम् “ मृदोभारसहस्रेणजलकुम्भशतेनच ॥ नशुध्यन्तिदुराचारास्तीर्थस्नामशतैरपि ॥ १॥ जायन्तेचम्रियन्तेचजलेष्वेवजलौकसः ॥ नचगच्छन्तितेस्व १ प्रामुकेनतुनीरेणतदभावइतरेणसचित्तेनापि २ मदिराघट: ३ यकृतकुक्षौदक्षिणभागस्थोमांसपिण्डः ४ शकदिष्टश ५ मंण्डनम् ६ अधिवासनम्नामगन्धमाल्यायःसंस्कारकरणम्. Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २० ॥ ॥ २०॥ १० व्या० | र्गमविशुद्धमनोमलाः ॥ २ ॥” इत्यादिस्नानसत्कविस्तरोमत्कृतप्रश्नोत्तरप्रदी-५० व्या० पादवसेयःपुनःक्रोधादयश्चत्वारोपिकषायाःपरिहरगीयायतस्तेशीघ्रमेवस्नेहादिनाशकारिणोभवन्तियदुक्तम्श्रीदशवकालिकसूत्रे “कोहोपीइंपणासेइमाणोविणयनासगो ॥ मायामित्ताणिनासेइलोभोसबविगासणो ॥१॥” अथात्रपर्वणिभोभव्यानकस्यापिनिन्दाकार्याश्रीदेवगुर्वादीनान्तुसर्वथैवचयतोयेनिकृष्टश्रावका क्लिष्टकर्मागःकर्मवण्डालाः क्रूरप्रकृतयोनिन्दकस्वभावामायाविनः श्रीदे वगुर्वादीनामवर्गवादिनोयद्यपिकना यहङ्कारादिप्रकारेगदानादिधर्मकृत्यं कुर्व-- न्तितर्थापितेप्रेत्यबहुविधांदुर्गतिप्राप्यमहादुःखिनोभवेयुरिति यतः "ढूंटागाअं. धौदरिदाघोरदुखबाहुल्ला ॥ सूलाभिन्नसरिरासाहुअसाहुणनिंदाए ॥१॥” पुनः खलजनानांसङ्गोमनीषिणानकदापिकार्योयतस्तेखलजनाः खलुसस्क्रियमाणा १ प्रणाशयति २ नाशयति ३ पण्डितेन. man Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ २१॥ - ९० व्या० अपिसाक्षात्क्लेशप्रदायिनोभवन्तितथाचतेदुर्मुखरोखराःकाकतुल्यस्वभावाअपि स्युःयतः “खलःसक्रियमागोपिददातिकलहंसताम्॥ दुग्धधौतोपिकिंयातिवा| यस कलहंसताम् ॥ १॥ नविनापरिवादेनहृष्टोभवतिदुर्जनः॥ काकःसर्वरसा पीत्वाविनामध्यंनतृप्यति ॥२॥” पुनर्येश्रावकादेवादिद्रव्यंभक्ष गोपेक्षणादिनाविनाशयन्तितेपिस्वोपार्जितदुष्टकर्मानुभावादनेकदुःखभागिनोभवन्तियदाहश्री मदुपाध्यायलावण्यविजयः, द्र० “भरकेइजाउविरकेइजिगदवंतुसावओ।। पन्नाहीणोभवेजोउलिप्पइपावकम्मुणा ॥१॥ चेइयदव्वंसाहारणंचजोदूंहइमोहियमइओ ॥ धम्मंचसोनयाणइअहवाबद्धाउनरए ॥ २॥ ऑयाणंजोभंजइपडि १ साधूनाम् २ काकः ३ राजहंसत्वम् ४ अपवित्रविष्टामित्यर्थः ५ उपेक्षतेजिनद्रव्यस्यभक्षणंकुर्वतःपरस्यशक्तितोननिवारयति ६ योदोग्धिव्याजव्यवहारादिनातदुपयोगिद्रव्य मुपभुक्ते, उपलक्षणतस्तन्मुष्णाति ७ आदानंतृष्णाग्रहग्रस्तत्वाद्देवादिसत्कंभाटकंयोभनक्ति. - Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्याक प० व्या० ॥ २२॥ ॥ २२॥ - वैनंधणंनदेइदेवस्स ॥ गरेहंतंचोविरकेइसोविएपरिभमइसंसारे ॥३॥ जिणपवयणवुढिकरंपभावगंनाणदंसणगुणाणं ॥ भरकतोजिणदवंगतसंसारिओ होइ ॥ ४॥ जिणवरआणारहियंवद्धारताविकेविजिणदवं ॥ बुडंतिभवसमुद्देमूढामोहेणअन्नाणी ॥५॥” तथादेवव्यादिविनाशदोषसंभवंश्रीधनेश्वरसूरयोप्याहुः “देवद्रव्यंगुरुद्रव्यंदहेदासप्तमंकुलम्।।अङ्गालमिवतस्पृष्टंयुज्यतेनहिधीमताम् ॥१॥” तथापुराणोक्तिरप्येवम्तथाहि “देवद्रव्येणयावृद्धिर्गुरुद्रव्येणयद्धनमातद्धनंकुलनाशायमृतोपिनरकंव्रजेत्॥१॥प्रभास्वेमामतिंकुर्यात्प्राणैःकंठगतै १ तथायःपर्युषणादौचैत्यादिस्थानेदेयतयाप्रतिज्ञातंधनंनदत्ते २ तथागर्हन्तमीpदिवशादुर्वाक्येनदूषयन्तमविनीतंयोवोपक्षतेतथासतिकदाचित्तद्वाक्यश्रवणान्महेन्द्रपुरीयश्राद्धवन्मानीभूयदेवादिद्रव्यरक्षादौशक्तिमानप्युदासीनोभवतीत्यर्थः, यतः "एतदेवमहत्पापंधर्मस्थानेप्युदासिता " इतितट्टीकायाम् ३ अनन्तसंसारिकोभवतिसंसारेबहुपर्यटतीत्यर्थः Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० व्या० रपि।।अमिदग्धाःप्ररोहन्तिप्रभादग्धोनरोहयेत॥२॥प्रभावंब्रह्महत्याचदरिद्रस्यच | प० व्या. यद्धनम् ॥ गुरुपत्नीदेवद्रव्यस्वर्गस्थमपिपातयेत् ॥ ३॥” तथादिक्पटग्रन्थेपि ॥२३॥ " वरंहालाहलादीनांभक्षणक्षणदुःखदम् ॥ निर्माल्यभक्षणंनैवदुःखदंजन्मजन्मनि ॥ १॥ वरंदावानलेपातःक्षुधयावामृतिवरम् ॥ मूर्निवापतितंवनंनतुदेवस्वभक्षणम् ॥२॥ ज्ञात्वेतिजिननिर्ग्रन्थशास्रादीनांधनंनहिगृहीतव्यंमहापापकारणदुर्गतिप्रदम्॥३॥” अधुनासंयतापेक्षयापियत्किञ्चित्प्रदर्श्यतेतद्यथादेवादिद्रव्यसम्यगरक्षाद्यर्थदेशनादानोपेक्षणादौसंयतस्यापिभवदुःखंशास्त्रेदर्शितमस्ति १ प्रभाखदेवद्रव्यमथवालोकमतीतजनसमुदायमेलितंसाधारणद्रव्यंज्ञातिद्रव्यमित्यर्थः रनिमाल्यनामभोगविनष्टंद्रव्यंज्ञेयम् " भोगविणहंदव्बंनिम्मलंबितिगीयथ्या" इत्युक्तत्वात्तस्यभक्षणम् ३ देवद्रव्यभक्षणम् ४ देवगुरुज्ञानादीनांद्रव्यम्. - Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० व्या.. २४॥ ५० व्या० ॥ यदुक्तम् “साहुउविख्खमाणोअणंतसंसारीओहोइ” इतिद्रव्यसप्ततिकादिशास्त्र वचनात्किंबहुनादेवादिद्रव्यदूषितगृहस्याहारादिकंनिरीहावतंससुसाधुनापिनया ह्यम्पापप्रलिप्तत्वायदुक्तम् “जिणदवऋणंजोधरइतस्सगेहंमिजोजिमइसहो॥ पावणंपरिलिंपइगिन्हतोविजइभिख्खं ॥१॥” इत्यत्रविशेषार्थिनाप्रश्नोत्तरसमुच्चयादिजैनग्रन्थाःसङ्काशादिश्रावकदृष्टान्ताश्चविलोक्याः, अथचयेप्रशस्तश्रावकादेवगुरुभक्तिकारकास्तेषांयशोवादिनःश्रीजिनाज्ञायुतदेवाद्र्व्यिवृद्धिकारका स्तेतुभाग्यसौभाग्यादिगुणोपेताःपरिमितभवस्थितिकाःसन्तोलौकिकलोकोत्तरयोःसत्कंसत्फलंप्राप्नुवन्तितथाचोक्तंद्रव्यसप्ततिकादिशास्त्रे “एवंनाउणजेदवंबुडिनिंतिसुसावया ॥ ताणंरिद्धीपवढेइकित्तीमुखंबलंतहा ॥ १ ॥ पुत्तायहुंतिसे___ १ अत्रापिशवस्याध्याहारादास्तांश्रावकःसर्वसावधविरतःसाधुरपितत्रौदासीन्यकुर्वाणोदेशनादिभिरनिवारयन्ननन्तसंसारिकोभणितइथ्यविनश्यच्चैत्यद्रव्याधुपेक्षासंयतेनापिसर्वयानकार्ये-- त्पर्यइतितट्टीकायाम. । नाम Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० व्या. |॥ २५॥ प० व्या० भत्तासौंडीराबुद्धिसंजुआ ॥ सवलख्खणसंपुन्नासुसीलाजणसंमया ॥ २ ॥ | युग्मम् जिणपवयणवुढिकरंपभावगंनाणदंसणगुणाणं ॥ वुढतोजिणदवंतिथ्य॥ २५॥ यरत्तलहइजीवो ॥ ३ ॥ जिणप०पभा० ॥ रख्खंतोजिणदवंपरित्तसंसारिओ होइ ॥ ४ ॥” युग्मम् पुनरत्रस्वात्महितार्थिभिःसप्तविकथानकर्त्तव्यायतःसप्तविकथावान्प्राणीप्रायोरागद्वेषवान्भवतितहशाचहिताहितस्वार्थहानिमपिचनजानातियतःप्रोक्रम “रागदेषाङ्कितोजीवोनजानातिहिताहितम्॥स्वार्थहानिमपिभ्राम्यन्भवारण्येपुनःपुनः ॥ १॥” इत्येवमखिलंपूर्वोक्तंयत्कृत्यंतत्कृत्वायदकत्यंतत्त्यक्त्वाभोभव्याःशाश्वतसुखदानदक्षश्रीजिनशासनप्रभावात्सम्यक्श्रीपर्यु-- षणापर्वागधनेनपरमपदसुखंस्वाधीनंकुरुत, अथप्रशस्तिलिख्यते, श्रीमत्तपगणाकाशेभवन्सूर्यसमाःक्षमाः॥श्रीरूपविजयाविज्ञाविज्ञवृन्दसमन्विताः॥१॥ त १ स्त्रीकथा, भक्तकथा, देशकथा, राजकथा, मृदुकारुणिकीकथा, दर्शनभेदिनीकथा, चारित्रमेदिनीकथा, विशेषोत्रस्थानागटीकायाम् Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० व्या० ।। २६ ।। च्छिष्योनामतः कीर्त्तिविजयोभूद्विचक्षणः ॥ वैराग्यरङ्गसंयुक्त वियुक्तोनङ्गर-- प० न्या० ङ्गत्तः ॥ २ ॥ कस्तूरविजयस्तस्यविनेयोविनय नयी | विज्ञानगुणगम्भीरोधीरोहिव्रतवानभूत् ॥ ३ ॥ श्रीमणिविजयोप्पाऽसीत्तस्यशिष्योगुणाग्रणीः महाव्रतधरोधीरोधीवरोभूप्रसिद्धिभाक् ॥ ४ ॥ श्रीशुभविजयस्तस्यशिष्योभवतिसाम्प्रतम् || तस्यशिष्याणुनालक्ष्मीविजयेनमयापुरे ॥ ५ ॥ रम्येकपटवा - णिज्येजै नचैत्यादिसंयुते ।। ग्रन्थोयंनिर्मितः श्रीमद्दीरतीर्थेहिनन्दतात् | ६| युग्मम् ! इतिश्रीमन्तपागच्छेनेकगुरुगुणगणालङ्कृतपण्डित श्रीमद्म विजयगणिवशिष्पपण्डितश्रीकीर्त्तिविजयगणिशिष्पपण्डितश्रीकस्तूरविजयगणिशिष्पपण्डितश्रीमणिविजयगणिशिष्पपं० श्रीशुभ विजयगणिशिष्पमु० श्रीलक्ष्मीविजयेनविरचितः श्रीपर्युषणाष्टान्हिकाव्याख्यानग्रन्थः समाप्तः शुभं भवतु. कल्याणमस्तुः ॥ ॥ २६ ॥ Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥श्रीपञ्चजिनस्तुतिग्रन्थः॥ ॥ श्रीआदिजिनस्तुतिः ॥ ॥ द्रुतविलम्बितवृत्तम् ॥ विदितकेवललोकहिताहितं नरसुरासुरवृन्दनिषेवितम् ॥ भविकजीवसमूहशुभावहं प्रथममादिजिनंप्रणमाम्यहम् ॥ १॥ जिनवराभवभीतिहरावरा निखिलनिर्मलसाधुगुणाकराः॥ कठिनकर्मविपाकविनाशना भुविभवायभवन्तुजितासनाः॥२॥ जिनमुखोद्गतमन्वयकन्दलं सुजनसेवितमाहितमङ्गलम् हतकुतर्कमहंविधुताधमं गतमलंननुनौमिजिनागमम् ॥ ३॥ नृसमुदायनतक्रमपङ्कजः शमितसङ्घसमस्तविपद्वजः॥ दिशतुसर्वसुखममगोमुखः सहिरमाविजयस्यसुसम्मुखः ॥ ४ ॥ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) श्रीपञ्चजिनस्तुति. ॥ श्रीशान्तिजिनस्तुतिः॥ ॥ वसन्ततिलकावृत्तम् ॥ भक्तामरेन्द्रनतपत्कजमुदिहारं श्रीवीतरागमजमाप्तमुदारतारम् ॥ तीर्थेश्वरस्ववलनिर्जितकर्मसारं शान्तिस्तुवेस्मरवितानविनाशवारम् ॥ १॥ शास्त्रोक्तसुन्दरशिवस्यवशैकमन्त्रान कन्दर्पवारणवधेवरपञ्चवकान् ॥ तीर्थङ्कराञ्जिनवरान्मुविशुद्धगोत्रान वन्देमुदाहमधिपानहिसदापवित्रान् ॥ २॥ विद्यान्वितंवृजिनवृक्षलतालवित्रं संसारसागरतरण्डमकाण्डमित्रम् ॥ दुष्टाष्टकर्मनिधनविपुलंविचित्रं सेवेसदाजिनवरेन्द्रमतंपवित्रम् ॥ ३ ॥ श्रीशान्तिनाथजिनशासनभक्तिदक्षः प्रत्यूहभित्प्रतिहताधमदुष्टपक्षः॥ शीघंसरित्पतिसुताविजयस्ययक्षः सिद्धिंदधातुगरुड कृतसङ्घरक्षः ॥ ४ ॥ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपश्चजिनस्तुति. ॥ श्रीने मिजिनस्तुतिः ॥ ( ३ ) ॥ नगस्वरूपिणी (प्रमाणिका) वृत्तम् ॥ प्रचण्डमारखारकंकुदपवारदारकम् ॥ सुरेन्द्रसेवितंसदा शिवासुतं भजेमुदा ॥ १ ॥ अनन्तशर्म्मदायकाः प्रशस्तधर्मनायकाः ॥ अवद्यभेद काइनाजयन्तितेसमेजिनाः ॥ २ ॥ अनेकतापनाशनं कुवासनाविनाशनम् ॥ सुपर्व्वराजसंश्रुतंस्तुवेजिनोदितंश्रुतम् ॥ ३ ॥ विशाललोचनाम्बिकाकजाननावराङ्गिका ॥ नताप्तपत्कजाचलांश्रियंदधातुवोमलाम् ॥ ४ ॥ ॥ श्रीपार्श्वजिनस्तुतिः ॥ ॥ शार्दूलविक्रीडितवृत्तम् ॥ भव्याम्भोजनभोमणिर्गजगतिर्ज्ञानादिरत्नाकरः सेव्योशर्म्मसमूहसंक्षयकरोवामाङ्गजोवामदः ॥ सुश्लाघ्योभयदोमदोविभवदोवन्द्योहिपार्श्वेश्वरः श्रीमत्पार्श्वपतिर्दधातुभविनांशम्पूजितः स्वर्गिभिः ॥१॥ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) श्रीपञ्चजिनस्तुति. ये भव्यैर्वरनाकनायकगणैस्तारस्वरैः संस्तुता भक्त्या कोविदवन्दिताः सुमतिदाः सदुबोध विद्याप्रदाः ॥ सर्वज्ञाः पुरुषोत्तमाः पुरुपसिंहाः स्वामिनस्तारका स्तेवःसन्तु शिवायवै जिनवरा देवाः सदाशङ्कराः ॥ २ ॥ स्याद्वादात्मकमस्तपापपटलं प्राज्यप्रशस्तामलं श्रीमन्तंमुगुणान्वितं सुखकरंसूत्रार्थरत्नाकरम् चित्रहेतुनयाङ्कितं गमयुतंसन्देहसम्भेदकं वन्देहंविबुधार्चितंजनहितंश्री तीर्थपत्यागमम् ॥ ३ ॥ || श्रीसङ्घप्रहतप्रचण्ड विपदः सम्पत्करः कामदः सम्यग्दृष्टयवनेविचक्षणवरःसंध्वस्तविघ्नोत्करः ॥ श्रीपार्श्वेश्वरभक्तिनिर्मलतरो यः पार्श्वयक्षोवरो लक्ष्म्यादेर्विजयस्य सोभयसुखंशीघंकरोतु ध्रुवम् ॥४॥ ॥ श्रीवीरजिनस्तुतिः ॥ ॥ इन्द्रावंशवृत्तम् ॥ सिद्धार्थजंकाञ्चनवर्णभूघनं सम्पूर्णविज्ञानवरंवराननम् ॥ वृन्दारकैर्वन्दितपादपङ्कजं बीरं भजेहंहतका सामजम् ॥ १ ॥ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपञ्चजिनस्तुति. येनन्तसंसारसमुद्रतारकाः॥ कन्दर्पदोनलभीबलाहकाः॥ कल्याणवल्लीमुदिरानतामरा स्तीर्थङ्करास्तेविजयन्तुशङ्कराः ॥ २ ॥ हिंसाविमुक्तविजयान्वितंहितं निर्मायिकंश्रीमुनिराजसेवितम् ॥ नानाकुवाद्यावलिदर्पनाशनं वन्देवरंश्रीजिनराजशासनम् ॥ ३॥ मातङ्गदेवोतिवरःशिवंकरः श्रीमन्महावीरमतेविपद्धरः॥ सिद्धायिकापिप्रबलातनोत्वलं ज्ञानहिलक्ष्मीविजयस्यनिर्मलम् ॥ ४॥ इतिश्रीमत्तपागच्छेनेकगुरुगुणगणालङ्कन्तपण्डितश्रीमद्रूपविजयगणिवयंशिष्यपण्डितश्रीकीर्तिविजयगणिशिष्यपण्डितश्रीकस्तूरविजयगणिशिष्यपण्डितश्रीमन्मणिविजयगणिशिष्यपं० श्रीशुभविजयगणिशिष्यश्रीमुनिलक्ष्मीविजयविरचितःश्रीपञ्चजिन स्तुतिग्रन्थः समाप्तः Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमग्रन्थशुद्धिपत्रिका. पुट पक्कि भएड. श्रेयश यथास्थित षड श्रेयस यथावस्थित 4 20 23 19 14 15 सताम् शील सता शिल कृष्णा अज्ञाता कृत्यकृत्य पध्ये सुरा तेषा सर्वावयवी मोल्या मौकानि कृष्ण अज्ञता कृतकृत्य यद्येवं 24 22 ބޯބޯޓް ޓް ބޯޓް ބޯބުން ބޮސް : ބޯ ** 0 0 ބޯ ބޯ ބް ބް ބް तेषां सर्वांवयवो माल्या मौक्तिकानि वैकक्षा वैक्षका घार घोर 95 18 श्रेवं तत्राग्न्यादिकं 124 14 तत्रागन्यादिकं खङ्ग भुञ्चमानं खड्ग तुष्पन्ति भुञ्जमानं तुष्यन्ति आधेय 157 19 150 आध्येय महान्ता नृणा महान्तो 170 नृणां 15 धातकीखण्डमा तथा पुष्कराईना घातकीखण्ड; पुष्कराना पूर्वणिः पूर्षिणः