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________________ (१४८) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. अने उपदेशमाळानी कर्णिका नामनी टीकामां तो वळी आठसो योजन सुधी अथवा तो एक हजार योजन सुधी पण उंचो जाय छे एम कहेलुं छे ते नीचे प्रमाणे यदुक्तम्. "ऊर्ध्वगत्याशतान्यष्टौसहस्रमपिकहिचित् ॥ मानांयातिदुर्गन्धस्तेनेहायान्तिनामराः॥१॥” इति विस्तारवातलोकप्रकाशथी जाणशो. ३ प्रश्न-मानुषोतरपर्वत, अभ्यन्तरपुष्करवरद्वीपना अर्द्धमा छ, के बाह्यपुष्करवरद्वीपना अर्द्धमा छे, के बेनी मध्ये छे ? उत्तर-बृहत्क्षेत्रसमासवृत्तिमा तथा जीवाभिगमसूत्रवृत्तिमां बाह्यपुकरवरार्द्धभूमिमां कहेलो छे. तथाचाहुर्मलयगिरयः “अयञ्चमानुषोत्तरपर्वतोबाह्यपुष्करवरार्द्धभूमौप्रतिपत्तव्य ” इतिबृहत्क्षेत्रसमासवृत्तौजीवाभिगमवृत्तावप्येवमेवेति । ४ प्रश्न-जंबूद्वीपपट्टादिकमां महाहिमवान् वर्षधरपर्वत पीतवर्ण शाथी उत्तर-श्रीजंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रमा महाहिमवान् वर्षधरपर्वत सर्वरत्न मय कहेलो छे अने बृहत्क्षेत्रविचारादिकमां तो पीतस्वर्णमय कहेलो छे ते मतान्तर छे अने तेज मतान्तरने आश्रि जंबूद्वीपपट्टादिकमां पीतवर्ण देखाय छे. इति तात्पर्यार्थः
SR No.023171
Book TitleTrigranth Samuchhay Prashnottar Pradip Paryushanashthnika Vyakhyan Panchjin Stuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmivijay
PublisherBhogilal Kalidas Shah
Publication Year1909
Total Pages250
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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