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________________ ( ६ ) श्रीप्रश्नोत्तरप्रदीपे. थको नवदीक्षित तेमनो शिष्य शुभलेश्याए केवळज्ञान पाम्यो छे. यदुक्तंश्रीदेवेन्द्रसूरिकृतभावकुलके " सिरिचंडरुद्दगुरुणाताडिज्जं तोविदंडघाएहिं || तक्कालंतस्सीसोसुहलेसो केवल जाओ ॥ १ ॥ " तेनी विस्तारवात श्रीउत्तराध्ययन सूत्रनी टीकाथी जाणवी. १३ प्रश्न - तीर्थ यात्रा समये विवेकी पुण्यात्मा माणस केवो होय ? उत्तर - एक बखत भोजन करनारो होय, पृथ्वीपर संथारो करना से होय, पगेचालनारोहोय, शुद्धसम्यक्त्वने धरनारो होय सर्वसचित्तनो परिहरनारो होय, तथा ब्रह्मचारी होय. तदुक्तम् 'एकाहारी भूमिसंस्तारकारी पद्भ्यांचा रीशुद्धसम्यक्त्वधारी ॥ यात्राकालेसर्वसचिऩहारीपुण्यात्मास्यादत्रह्मचारीविवेकी ॥ १ ॥ ” १४ प्रश्न - आ जगतमां कया पांच शकारो दुर्लभ जाणवा ? उत्तर - शत्रुञ्जयतीर्थ, शिवपुर, शत्रुञ्जयनामा नदी, शान्तिनाथ - स्वामी, शमिओ ( मुनिओ) ने दान, ए पांच शकारो दुर्लभ जाणवा. यतः प्रोक्तम् “शत्रुञ्जयः शिवपुरंनदीशत्रुञ्जयाभिधा || श्रीशान्तिःशमिनांदानंशकाराः पञ्चदुर्लभाः || १||”
SR No.023171
Book TitleTrigranth Samuchhay Prashnottar Pradip Paryushanashthnika Vyakhyan Panchjin Stuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmivijay
PublisherBhogilal Kalidas Shah
Publication Year1909
Total Pages250
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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