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________________ (१०) श्रीप्रश्नोत्तर प्रदीपे. उत्तर -- श्री जिनमन्दिरो जीर्ण थयां होय तेमनो उद्धार करवो, श्री जिन सिद्धान्तोना परिमलयी सुगंधी आत्मावाला एवा सुपात्र विषे हमेशां दान देवं श्रीजिनेश्वर भगवाननी हमेशां भावभक्ति करवी, अने दीन, अनाथ, एवा माणसोनो उद्धार करवो. समस्त जगतनिवासि प्राणि उपर उपकार करवो, तथा एकेन्द्रियादि जीवोनुं रक्षण करयुं, एज आ चपल लक्ष्मीनुं फल छे. उक्तञ्च. "जीर्णोद्धारः श्रुतपरिमलामोदितात्मन्यजस्रं ॥ पात्रेदानं भगवतिजिनाधीश्वरे नित्यभक्तिः ॥ दीनानाथोद्धरणमनिशं विश्वविश्वोपकारः || प्राणित्राणं फलमिदमहोचञ्चलायाः श्रियोस्याः || १ || ” २० प्रश्न - तप केवो करवो ते फरमावो. उत्तर -- जे तपथी मनने असमाधि न थाय, जे तपथी इन्द्रियोनी, तथा मन, वचन, अने कायाना योगोनी हाणी न थाय, वो तप करवो. यदुक्तं श्रीमदुत्तराध्ययन सूत्रटीकायाम् ॥ सोतोकाय वजेणमणीमंगुलंनचिंतेइ ॥ जेणनइंदियहाणीजेणयजोगानहार्यंति ॥ १ ॥ " 66 २१ प्रश्न - तपथी निकाचित कर्मनो नाश थाय ? - उत्तर - हा, निकाचितकर्मनो पण नाश थाय.
SR No.023171
Book TitleTrigranth Samuchhay Prashnottar Pradip Paryushanashthnika Vyakhyan Panchjin Stuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmivijay
PublisherBhogilal Kalidas Shah
Publication Year1909
Total Pages250
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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