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प्रथमः प्रकाशः
यदुक्तंश्रीदेवेन्द्रसूरिकृततपकुलके अनिआणस्सविही एतवस्सतवियस्सकिंपसंसामो || किज्जइजेणविणासोनिकाइयाणंपिकम्माणं ॥ १ ॥ "
२२ प्रश्न - परिग्रह कोने कहेलो छे ?
उत्तर - मूर्छाने परिग्रह कहेलो छे, कारण के मूर्छा छे तेज परिग्रह छे. मूर्च्छा विनानो परिग्रह नथी.
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( ११ )
तथाचोक्तंश्रीदशवैकालिकसूत्रे नसोपरिग्गहोवुत्तोनायपुत्त्रेणताइणा || मुच्छापरिग्गहोवुत्तोइइवुत्तंमहेसिणा ॥ १ ॥
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२३ प्रश्न -लोभनुं दुर्जयपणुं शास्त्रमां शी रीते वर्णवेलुं छे ते कहो. उत्तर- धनहीन माणस एकसोने इच्छे छे, अने सो मले त्यारे सो वालो हजारने इच्छे छे, तथा हजार मले त्यारे हजारवा - लो लाखने इच्छे छे, तथा लाख मले त्यारे लक्षाधिपति क्रोडने इच्छे छे, क्रोड मले त्यारे क्रोडपति राजापणाने इच्छे छे, तथा राजा थाय त्यारे राजा चक्रवर्तिपणाने इच्छे छे, तथा चक्रवर्ति थाय त्यारे ते देवपणाने इच्छे छे, तथा देवपणुं मळे त्यारे ते इन्द्रपणाने इच्छे छे, बळी इन्द्रपशुं मळे छते पण इच्छा ज्यारे निवृत्त थती नथी त्यारे ते लोभ कुंभारना चाकडापर रहेल शरावलानी पेठे मूलमां नानो पछी वृद्धि पामतो जाय छे. एवो दुर्जय लोभ छे,
यदुक्तंश्रीयोगशास्त्रे .
धनहीनशतमेकं सहस्रंशतवानपि ॥
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