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________________ प्रथमःप्रकाशः (२३.) केवलज्ञान उत्पन्नथाय छे तेवखते चार निकायना देवताओ समवसरणनी रचना करेछे त्यां प्रभुजी पूर्वदिशा सन्मुख रत्नमय सिंहासनपर बेसी धर्मदेशना दइ घणा भव्यजीवोने प्रतिबोधी चतुर्विध संघनी स्थापना करेछे ए वीगेरे घणो आधिकार छे, ते श्रीआवश्यकसूत्रादिथी जाणवो. ४४ प्रश्न-जिननामकर्मनो अबाधाकाल अन्तर्मुहूर्त्तनो कह्योछेते कइ अपेक्षाये ते कहो. उत्तर-प्रदेशोदयनी अपेक्षाये कह्योछे. इतिकर्मग्रन्थवृत्ती, ४५ प्रश्न-वैमानिक तथा आद्य नरक त्रिक सीवाय बीजास्थानीआ वी कोइ तीर्थकर थयाछे ! उत्तर-वसुदेव चरित्रमा पुनः नाग कुमारना पण उधर्या आंतरा रहित आ अवसर्पिणी कालने विषे ऐरवतक्षेत्रमा चोवी शमा तीर्थङ्कर थया दर्शावेल छे. पण ते अर्थमां तत्त्वशुंछे ते केवलिमहाराजो जाणे एम श्रीमज्ञापना सूत्रनी टीकामां कहेल छे. तथाचतट्टीका. " वसुदेवचरित्रेपुनःनागकुमारेभ्योप्युट्टतोनन्तरमैखतक्षेत्रेस्यामेवावसर्पिण्यांचतुर्विंशतितमस्तीर्थङ्करउपद-- र्शितस्तदर्थतत्त्वंकेवलिनोविदन्ति" ४६ प्रश्न-जेम आ भरतक्षेत्रमा २० तीर्थकर समेतशिखरने विषे सि ' द्विवर्या तेम ऐरवतक्षेत्रमा २० तीर्थकर क्यां सिद्धि वर्या ? उत्तर-सुपतिष्टगिरिने विषे सिद्धि वर्या.
SR No.023171
Book TitleTrigranth Samuchhay Prashnottar Pradip Paryushanashthnika Vyakhyan Panchjin Stuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmivijay
PublisherBhogilal Kalidas Shah
Publication Year1909
Total Pages250
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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