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________________ द्वितीयः प्रकाशः यदुक्तं श्रीशत्रुञ्जयमाहात्म्ये. 'भुञ्जानोविविधान्भोगाँस्तत्रचकीर्तयासह ॥ एकाहमिववर्षाणांसहस्रंसोत्यवाहयत् ॥ १ ॥ " तथैव श्री है - मऋषभचरित्रेपि १३ प्रश्न - चक्रवर्त्तियोना अस्थिओने देवताओ ग्रहण करेछेके केम ? उत्तर - हा, योगधारण करनार चक्रवर्त्तिओना अस्थिओने पण देवताओ ग्रहण करेछे. (i (83) तथाहिश्रीलोकप्रकाशे. सुराआददतेस्थीनियोगभृच्चक्रिणामपि ॥ " तथा श्रीशान्तिचन्द्रगणिमहोपाध्यायनी करेली श्रीजम्बूद्वीप प्रज्ञप्तिसूत्रनी टीका छे. तेमां चारित्रयुक्तश्रीभरतचक्रवर्त्तिना अथिओने देवोए ग्रहण कर्यानो अधिकार छे ते त्यांथी जोइलेवो. १४ प्रश्न - नथी त्यागकर्यो राज्यनो जेओए एवा चक्रवर्त्तिओ मरीने क्यां जायछे ? (( उत्तर - श्रीभगवतीसूत्रनी टीकाने अनुसारे साते नरकपृथ्वीओविषे उत्कृष्टस्थितपणे उपजे छे. अने श्रीहरिभद्रसूरिकृतश्रीदशवेकालिकटीका, श्रीहैमवीरचरित्रममुखशास्त्रोने अनुसारे तो सातमीनरकमथ्वीएज जाय छे, एम पण जाणवुं. १५ प्रश्न - जेम चक्रवर्त्तिओनी सोळहजारदेवो सेवा करेछे, तेम अर्द्ध चक्रवर्त्तिवासुदेवोनी आठहजार देवो सेवा करे के केम ? १. गङ्गया.
SR No.023171
Book TitleTrigranth Samuchhay Prashnottar Pradip Paryushanashthnika Vyakhyan Panchjin Stuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmivijay
PublisherBhogilal Kalidas Shah
Publication Year1909
Total Pages250
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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