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________________ तृतीयःप्रकाशः (८७). पितादि पुढे संखडि ( जमणवार) न कराय तोज श्रेष्ट कहेवाय किम्बहुनेत्यलम्. ३४ प्रश्न-परिहारविशुद्धिकमुनिमहाराजोने निद्राहोय ? उत्तर-ते मुनिमहाराजो प्राये अल्पनिद्रावाला होय यतः "पाय अप्पानिदा" इति वचनात्. ३५ प्रश्न-अगीतार्थमुनि एकाकीपणे विचरे ? उत्तर-श्रीजैनशास्त्रमा गीतार्थमुनिनो तथा गीतार्थमुनिनिश्राए अगीतार्थमुनिनो विहार कह्योछे पण केवलअगीतार्थमुनिनो बिहारकह्यो नथी शाथीके केवलअगीतार्थमुनिविहारमा श्रीतीर्थडूर गणधर भगवाने अनेक दोष कह्याछे. माटे बे प्रकारना विहार सिवाय त्रीजो वि० नथी क० यतः प्रोक्तम् “गीयथ्योयविहारोबीओगीयथ्थमीसिओचेव ॥ इत्तोतझ्यविहारोणागुन्नाओजिणवरेहिं ॥ १॥" पाठान्तरे “गीयथ्थनीसिओभणिओ” इति ३६ प्रश्न-स्थविरकल्पिकमुनिमण्डलीमां " वृषभ " कोने कहेलछे ? उत्तर-श्रीमवचनसारोद्धारवृत्तिमां गीतार्थने " वृषभ " कहेलछे. ३३७ प्रश्न-संवेगी छतापण जोते अगीतार्थ होयतो तेनीपासे आलोयणा लेबीके केम ? उत्तर–ना, नलेवी. कारणके ते स्याद्वादमार्गनो अजाण होवाथी यथार्थ चारित्रनी शुद्धिने जाणे नहीं, तेथी न्यूनाधिक आलोयणा आपे, जेथी ते पोताने तथा आलोयणा लेनारने उलटा संसारमा पाडे.
SR No.023171
Book TitleTrigranth Samuchhay Prashnottar Pradip Paryushanashthnika Vyakhyan Panchjin Stuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmivijay
PublisherBhogilal Kalidas Shah
Publication Year1909
Total Pages250
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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