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________________ प्रथमः प्रकाशः ( ३१ ) साधिक मास थाय छे. तेम छतां श्री ऋषभदेव भगवाने वर्षांपारणं कर्यु एम केम कहेवाय छे ? उत्तर - कंक अधिकनी विवक्षा करी नथी एम संभावना थाय छे एम श्रीलोकप्रकाशमां खुलासा करेलो छे. ६० प्रश्न - श्री नेमिनाथने केटला गणधर कह्या छे ? उत्तर - श्रीकल्पसूत्रमा १८ अने श्रीप्रवचनसारोद्धारमां ११ का छे, ते मतान्तर छे माटे बहुश्रुत कहे ते खरं. ६१ प्रश्न - श्री नेमिनाथनी अपराजितविमानमा केटली स्थिति हती ? उत्तर - श्री कल्पसूत्रने अनुसारे बत्रीस सागरोपमनी स्थिति हती. तथाचतत्सूत्रम्. 66 अपराजिआओ महाविमाणाओवत्तीससागरोव मठिआओइत्यादि " ८८ अने श्री कल्पकरणावली तथा कल्पदीपिकामां तो ए ठेकाणे एवो पाठ छे के क्यांक तेत्रीस सागरोपम पण देखाय छे माटे ए पाठने अनुसारे करी तेत्रीस सागरोपमनी स्थिति हती एम पण समजाय छे. तथाचतत्पाठः बत्तीसत्तीक्वचित्त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाण्यपिदृश्यन्ते " बळी श्री शीलोपदेशमाळामां तथा श्री नेमिनाथना रासमां, तेत्रीस सागरोपमनी स्थिति कही छे। अने श्री कल्पसूत्रमां कहेली aare सागरोपमनी स्थितिने मतान्तरपणे प्रतिपादन करेली छे. वास्ते आ ठेकाणे बहुश्रुतमहाराजाओ कहे ते प्रमाण.
SR No.023171
Book TitleTrigranth Samuchhay Prashnottar Pradip Paryushanashthnika Vyakhyan Panchjin Stuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmivijay
PublisherBhogilal Kalidas Shah
Publication Year1909
Total Pages250
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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