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तृतीयःप्रकाशः ( ७५ ) उत्तर-ना, एम न मान. एम मानीए तो पूर्वे जीवो कर्मरहित निर्म
ल हता पाछळथी कर्मकर्याथी कर्मसंयोगने पाम्या छे, एम आपणे मानवु जोइशे. अने एम मानवाथी कर्मरहितनिर्मलमुक्तजीवोने पण कर्मसंयोगनो संभव थशे. अने तेम थवा. थी मुक्त जीवोने अमुक्तता प्राप्त थशे. माटे एवी रीते मानवू ते योग्य न गणाय, किन्तु प्रवाहनी अपेक्षाए करी जीवोने कर्मसंयोग अनादिकाळनो छे, नवो संयोग नथी एम मा
नवू एज योग्य गणाय. ६ प्रश्न-जीवोने कर्मसंयोग जो अनादिकाळथी छे, तो ते कर्मनो
वियोग पाछो शाथी थाय छे ? उत्तर-जेम कांचन अने उपलनो संयोग अनादिकाळथी छे तोपण
अग्नि प्रमुख सामग्रीवडे करी उपलनो वियोग थाय छे. तेम जीवोने पण सम्यग् ज्ञानदर्शनचारित्रनी प्रबळतारूप अ. ग्निए करीकर्मरूप मलनो वियोग थाय छे. यदाहमहाभाष्यकारश्रीजिनभद्रगणिक्षमाश्रमणः " जहइहयकंचणोवलसंजोगोणाइसंतइगओवि ॥ वुच्छिज्जइसोवायंतहजोगोजीवकम्माणं ॥१॥" ७ प्रश्न-सर्व जीव आश्रि कर्मसंयोग अनादिसान्त छे के केम ? उत्तर-ना, भव्यजीव आश्रि अनादिसान्त छे. अभव्य जीव आश्रि
" आत्माकाशयोगवत् " अनाद्यनन्त छे. १ पाषाण ( पृथ्वीकायनो एक भेद.)