Book Title: Bambai Chintamani Parshwanathadi Stavan Pad Sangraha
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Chintamani Parshwanath Mandir
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि स्तवन-पद-संग्रह प्रकाशक:ट्रस्टीगण श्री चिन्तामणि पाश्वनाथ मन्दिर, बम्बई S Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभय जैन ग्रन्थालय ग्रन्थाङ्क १८ 1 खरतर गच्छीय वाचक श्रीअमरसिन्धुर जी । रचित बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि। स्तवन-पद-संग्रह सम्पादकः PRASASAnswarananawwarnance KASAACHCredicASAMRACASS अगरचन्द नाहटा भंवरलाल नाहटा प्रकाशक:ट्रस्टीगण श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, बंबई, सं० २०१४.] [ मूल्य प्रभुभक्ति. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ से ६ २५ १. प्रस्तावना २. प्रतिमालेख ७ से १० १. आदिजिन स्तवन २. नेमिजिन पदानि पृ. १ से २५ तक ३. गौड़ी पार्श्वनाथ होरी ४. चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्तवनानि २६-६२ ५. जिन स्तवनानि (जयमाला, जिन वाणी) ६३-८७ ६. सिद्धाचल स्तवन (सं. १८६० बम्बई) ७. ज्ञान पंचमी स्तवन ८६-६१ ८. दादा गुरु गीतानि (जिनदत्तसूरि,जिनकुशलसूरि, जिन महेन्द्रसूरि) ६२-१०५ है. भैरव गीतानि १०६-१०६ १०. पद, होरी संग्रह ११०-१४८ ११. पटवा संघ तीर्थमाला (मध्य त्रुटित) सं. १८६३ १२. शान्ति-पार्श्व स्तवन (त्रुटित) १३. जिन कुशलसूरि छंद (सं. १८८२) १४. घनश्वरी और अंबिका गीत १६१ जैन प्रिन्टिंग, प्रेस कोटा (राजस्थान) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . जैन धर्म में ज्ञान, दर्शन और चारित्र को मोक्ष का मार्ग बतलाया है। जैनेतर दर्शनों में उनकी संज्ञा, भक्ति, ज्ञान और योग या कर्म मार्ग है। वैष्णव धर्म में भक्ति को प्रधानता दी गई है, वेदान्त में ज्ञान को और मीमांसक आदि में क्रिया काण्ड को तथा योग दर्शन एवं गीता में जो कर्म एवं योग मार्ग की प्रधानता हैं इन सब का समन्वय जैन मनीषियों ने 'ज्ञान, दर्शन और चरित्र' इस त्रिपुटी रुप मोक्ष मार्ग में कर लिया है। गुणी जनों के प्रति आदर भाव, मानव में गुणों के विकास करने का सरल मार्ग है। किसी आप्त पुरुष के प्रति श्रद्धा होने पर उनके बतलाए तत्व ज्ञान व धर्म मार्ग के प्रति श्रद्धा होती है और उन विशिष्ट ज्ञानियों के प्रति श्रद्धा व आदर का भाव ही भक्ति की मूल चेतना है। भक्ति की अन्तिम परिणति भक्त का भगवान् के साथ अभेद या तादात्म्य संबंध स्थापित होना है। गुणी पुरुष का गुणगान करके मनुष्य उन गुणों के प्रति आकर्षित होता है और अपने में उन गुणों का विकास करने की भावना व प्रयत्न, उसे आगे बढ़ा कर परमात्म स्वरूप बना देता है। इसीलिए सभी धर्मों में अपने उपकारी व गुणी महापुरुषों, भगवान व परमात्मा के गुणगान की प्रवृत्ति नजर आती है। जैन धर्म में भी तीर्थकरों और गुरुओं के स्तुति व गुणानुवाद रुप भक्ति पदों का प्राचुर्य मिलता "है। आत्मोन्नति के लिए समय २ पर आत्मा को प्रबोध देने वालो वैराग्य और आध्यात्मिक भावनाओं का विकास आवश्यक होने से प्रेरणा 'दायक वैराग्योत्पादक और आध्यात्मिक पद भी जैन कवियों ने प्रभूत मात्रा में रचे हैं। वैसे ही भक्ति और प्रबोधक पदों का यह संग्रह ग्रंथ "पाठकों के समक्ष उपस्थित है। खरतर गच्छीय वाचक अमरसिंधुर के समय-समय पर निकले हुए भावोद्गार प्रस्तुत संग्रह में संकलित किये गये Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) हैं। आशा है पाठकों को भक्तिविभोर करने और आध्यात्मिक प्रेरणा देने में ये स्तवन - पद सहायक सिद्ध होंगे। प्रस्तावना इस ग्रंथ में जिन वाचक अमृत सिंधुर की पदावली का संग्रह है। उनका संक्षिप्त परिचय यहाँ दे देना आवश्यक हो जाता है। 'बृहत् खरतर - गच्छ' के सुप्रसिद्ध छोटे दादा साहब गुरुदेव - श्री जिन कुशल सूरि जी की शिष्य परंपरा में ही वाचक अमर-सिंधुर हुए हैं। इनका मूल नाम अमरचन्द था । सं० १८४० की चैत्र बदी ४ को जैसलमेर में जिन लाभ सूरि के पट्टधर जिनचन्द्र सूरि जी ने इनको दीक्षा दी। दीक्षानंदी की सूचि में इनका मूल नाम अमरा, दीक्षा नाम अमर सिंधुर और इन्हें युक्ति सेन गरि का पौत्र (पोता-चेला ) लिखा है। अमर सिंधुर जी ने अपने रचित 'निनां प्रकार की पूजा' की प्रशस्ति में उस पूजा की रचना का समय स्थान और अपनी गुरु परंपरा निम्नांकित पद्यों द्वारा बतलाई है: अढा यासी वरसे, सुदि तेरस सलहीजे ॥ भ० जा० ॥ वैशाख मास मंबई बिंदर, बिंदर मेरु वदीजे ॥ भ० जा ० ||१२|| तेवीसम जिनवर त्रिभुवन पति, सकलाई सलहीजे ॥ भ० जा० ॥ श्री चिंतामणि पास पसाये, गुणमणि नित गाईजे ॥ भ० जा०|| १३ || सदगुरु कुशल सुरीसर साहिब, गछ खरतर गाईजे ॥ भ० जा०|| सकल संघ सुख संपत्ति दायक, पद युग नित प्रणमीजे ॥ भ० ज० ॥ १४ ॥ सूरि सिरोमणि आण अखंडित, हरप सूरीसर राजे ॥ भ० ज० ॥ as खरतर चौशाख विराजे, क्षेम शाख चढत दिवाजे ॥ भ० ज० ||१५|| वाचक युक्तिशेन जस धारी, तेहनो सीस तवीजे ॥ भ० ज० ॥ जैसार सीस वाचक पदधारी, अमरसिंधुर सलहीजे ॥ भ० ज० ॥ १६ ॥ पूज निनां प्रकारनी कीधी, भविजन मिल गाईजे ॥ भ० जा ० ॥ मंगल माल बधे तिहां दिनदिन, वंछित फल पाईजे ॥ भ० ज० ॥ १७ ॥ इति श्री सिद्धाचल जी निनांगुळे प्रकारनी पूजा संपूर्ण ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना यह पूजा 'श्री जिन पूजा महोदधि' नामक ग्रंथ में प्रकाशित हो चुकी है । इसकी रचना सं० १८८८ वैशाख सुदि १३ को बंबई में श्री चिंतामणि पार्श्व नाथ के प्रसाद में हुई। श्री जिन कुशल सूरि जी के शिष्य महोपाध्याय विनय प्रेभ उनके शिष्य उपाध्याय विजयतिलक और उनके शिष्य बाचक क्षेम कीर्ति हुए। जिनकी शिष्य संतति क्षेम शाखा के नाम से प्रसिद्ध हुई है । उसी शाखा में वाचक युक्तिसेन के शिष्य वाचक जयसार के शिष्य वाचक अमर सिंधुर हुए। आपके गुरु जयसार जी के रचित दो ग्रंथ उपलब्ध है जिनमें से कार्तिक पूर्णिमा व्याख्यान, संस्कृत गद्य में सं० १८७३ जैसलमेर में रचा गया और दूसरा ग्रंथ 'श्रोणिक चौपाई' राजस्थानी पद्य में है जिसकी सं० १८७६ की लिखी हुई प्रति श्री बद्रीदास जी के संग्रह (कलकत्ता) में है। उसमें दी हुई गुरु परंपरा के अनुसार आप महोपाध्याय सहज कीर्ति जैसे विद्वान की परंपरा में हुए हैं । महो. सहजकीर्ति के शिष्य पुण्यसार उनके शिष्य कनकमाणिक्य के शिष्य रत्नशेखर के शिष्य दीपकुंजर के शिष्य हर्षरत्न के शिष्य युक्तिसेन के शिष्य जयसार हुए। उपाध्याय सहजकीर्ति का विशेष परिचय जैन सिद्धांत भास्कर वर्ष १६ अंक २ में हम प्रकाशित कर चुके हैं। अतः उनकी पूर्व परंपरा और उनकी रचनाओं आदि का परिचय उस लेख में देखा जा सकता है। अमर सिंधुर के निनांणु प्रकार की पूजा के अतिरिक्त प्रदेशी चौपाई (सं० १८६२ काती वदी ६ बंबई), और १६ स्वप्न चौढालिया प्राप्त है , इनके अतिरिक्त प्राप्त छोटी समस्त रचनाओं का संग्रह इस ग्रंथ में किया जा चुका है। पर इनमें कई रचनाएँ त्रुटित रुप में प्राप्त हुई हैं। जिस प्रति से इनका संकलन किया गया है वह गुटका कवि के स्वयं लिखित हमारे संग्रह में है। इसमें करीब २५० पदादि रचनाएं हैं, जिनमें से कुछ ही दूसरे कवियों की हैं बाकी अधिकांश अमर सिंधुर जी के ही रचित हैं । इस गुटके के प्रारंभिक २६ पत्र जिनमें ३६ स्तवन-पद थे, प्राप्त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) प्रस्तावना नहीं हुए और इसी तरह पत्र ४२ से ६२ तक के २१ पत्र भी इसमें नहीं हैं जिनमें नं० ५१ से ७७ तक के २२ पद थे। फिर नं०६४ और ७०-७१ वाले ३ पत्र भी इस प्रति में नहीं हैं। जिनमें नं० ७६-८० वाले पद्यों का अंत व आदि का कुछ भाग और नं० ६१ से ६४ तक के पद्य थे। अन्य प्रति के नहीं मिलने से हम अमर सिंधुर जी के इस प्रति में अप्राप्त करीब ६५ स्तवन-पदों को इस ग्रंथ में सम्मिलित नहीं कर सके । इस गुटके के अंतिम पत्रों में जैसलमेर के बाफणा-पटवा-सेठ बहादुरमल आदि ने जो शत्र जय आदि तीर्थों की यात्रा के लिए विशाल संघ निकाला था, उसका विवरण देने वाली तीर्थमाला है जिसके १५. पद्य लिखने के बाद रिक्त स्थान छूटा हुआ है आगे के पद्य नहीं लिखे गए। उस रचना के अंतिम कुछ पद्य एक अन्य पत्र में प्राप्त हुए जो इस प्रति का अंतिम पत्र था । उसमें जितने पद्य मिले वे भी इस ग्रंथ में दिये गए हैं फिर भी बीच के ८ पद्य अभी तक त्रुटित ही रहे हैं। इसी प्रकार श्री जिन कुशल सूरि जी के छंद की प्रति का भी अंतिम तीसरा पत्र ही मिला, जिससे इस छंद के भी करीब ४६ पद्य दिये नहीं जा सके। इसी तरह प्राप्त गुटके में भी बीच २ के जो पत्र कम हैं, उसके कारण आदि जिन स्तवन, पार्श्व स्तवन और शांति स्तवन भी त्रुटित रुप में ही दिये जा सके हैं। किसी सजन को इन त्रुटित रचनाओं की पूरी प्रति और अप्राप्त करीब ६५ पद जो इस संग्रह में नहीं दिये जा सके; प्राप्त हों तो हमें सूचित करने की कृपा करें। 'चक्र श्वरी' और 'अंबिका' के दो गीत जो अंत में दिये गए हैं वे एक अन्य प्रति में थे। इनके रचयिता अमर व अमरेस, वाचक अमर सिंधुर ही हैं, यह निश्चय-पूर्वक तो नहीं कहा जा सकता पर संभावना के रूप में ही उनको यहाँ संग्रहीत किया गया है। अमरसिन्धुर के उपलब्ध पद बिना किसी क्रम के लिखे हुए मिले थे और उनका उनके अंत में रचनाओं का नाम भी नहीं दिया गया है। इसलिए हमने अपने विचारों के अनुसार रचनाओं का नाम करण और अनुक्रम ठीक करके इस ग्रंथ को संकलित किया है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना वाचक अमरसिंधुर जी ने यह गुटका सं० १८८८ बंबई में अपने शिष्य पं० रुपचन्द और आनन्दा के वाचनार्थ लिखा है। पदांक १२५ के बाद लेखन प्रशस्ति इस प्रकार दी गई है :-॥ सं० १८८८ वर्षे मिती फागुन सुदी १ रवौ श्री मंबुई विंदरे एकादसवीं चतुर्मासी कृता । लिखतम् वाचक अमर सिंधुर गणि पं० रुपचंद पं० अणन्दा वाचनार्थम् श्री बृहत खरतर भट्टारक गच्छे श्री जिन कुशल सूरिशाखायाम् ॥ ___वैसे यह गुटका सं० १८६१-६३ तक लिखा जाता रहा है पदांक १ से ६२ के बाद फिर नई संख्या १ से प्रारंभ होती है और नं०१७ तक संख्या देकर पिछले पदों के संख्यांक नहीं दिये गये। सं० १८६२ में जिन हर्ष सूरि जी के स्वर्गवास के बाद उनके २ शिष्य जिन सौभाग्य सूरि जी और जिन महेन्द्र सूरि जी से दो अलग शाखाएँ हुई । वाचक अमर सिंधुर इनमें से जिन महेन्द्र सूरि जी के अनुयायी रहे। __वा. अमर सिधुर जी ने उपरोक्त लेखन प्रशस्ति में सं० १८८८ में बंबई का ११ वां चौमासा लिखा है। इससे सं० १८७७ से सं० १८६१ तक तो वह बंबई में रहे, निश्चित है । फिर सं० १८६२ में पटवा के संघ में सम्मिलित हुए होंगे। उन्होंने बंबई में रहते हुए ही अधिकांश रचनाए की हैं और एक विशिष्ट और चिर स्मरणीय कार्य यह किया कि श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ का मंदिर, धर्मशाला व उपाश्रय श्रावकों को उपदेश देकर प्रतिष्ठित किया। इनके लिए ८ वर्ष तक उन्हें प्रयत्न करना पड़ा। चिंतामणि जी का मन्दिर कोठारी अमरचंद, भाई वृद्धिचन्द के पुत्र हीराचंद ने बनाया जिनका उल्लेख उन्होंने "चिंतामणि-पार्श्वनाथ स्तवन" में किया है जो इस ग्रंथ के पृष्ठ २६ में मुद्रित हुआ है। पृष्ठ ३० में प्रकाशित स्तवनों में मूल नायक प्रतिमा के सूरत से आने का उल्लेख है। सबसे अधिक स्तवन बंबई के चिंतामणि पार्श्वनाथ की स्तुति के रूप में . ही बनाए गए हैं इसलिए उसी की प्रधानता को प्रकट करने के लिए इस मंथ का नाम 'बंबई चिंतामणि पार्श्वनाथादि स्तवन संग्रह' रखा गया है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना इस चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर के प्रतिमा लेख जो भंवरलाल ने बम्बई जाने पर नकल किये थे, उन्हें भी यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है। कुछ प्रतिमा लेख पच्ची में दब जाने आदि के कारण नहीं लिए जा सके । उन्हें संभव हुआ तो अगले संस्करण में दिये जायेंगे। बम्बई के चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर के ट्रस्टी महोदयों को, इस मंदिर के बनाने की प्रेरणा और प्रतिष्ठा करने वाले वाचक अमर सिंधुर जी की प्राप्त रचनाओं को प्रकाशित करने के लिए कहा गया तो उन्होंने भी इसे आवश्यक कर्त्तव्य समझ कर मंदिर जी के फण्ड से ही प्रकाशित करने की स्वीकृति दे दी इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। आशा है भविष्य में भी वे जैन साहित्य के प्रकाशन में इसी प्रकार सहयोग देते रहेंगे। महोपाध्याय श्री विनयसागर जी ने प्रफ्र संशोधन कर इसे शीघ्र प्रकाशित करने में सहयोग दिया इसके लिए हम उनके आभारी हैं। अगरचन्द नाहटा भँवरलाल नाहटा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर, बम्बई के प्रतिमा लेख ( नं० १,२,५ व नं० २४ बाली मूर्तियां सूरत से आई हुई हैं । अन्य मूर्तियों में से कुछ आनन्दपुर लक्ष्मणपुर ( लखनऊ ) एवं कॉपिल्यपुर में * प्रतिष्ठित हैं, बाकी बम्बई में ।) १. मूलनायकजी सं. १८२८ शा. १६६४ व. । वैः सुः १३ गुरु श्रोः । वृ.शा. । भाईदासेन श्री गौड़ीपार्श्वनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं । श्री खरतर गच्छे भ. । श्री जिनलाभसूरिभिः ॥ २. मूलनायकजी से बांये ओर - सं० १८२८ शा. १६६४ वै. सु. १३ गुरौ से. | भाईदासेन अनन्तनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतरगच्छे भ। श्री जिनलाभसूरिभिः सूरत बिंदरे || ३. मूलनायकजी से बांये - सं. १८६३ व । माघ सुदी १० बुध...... श्राविका बाई श्री चन्द्रप्रभबिवं कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे भ। श्री जिनहर्षसूरि पट्टदिवाकर जं. । यु । भट्टारक | श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः ॥ ४. पिचल मय यंत्र - सं. १९१० वर्षे शाके १७७५ प्रवर्त्तमाने माघ शुक्ल २ तिथौ श्री सिद्धचक्र जंत्र प्रभ। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभि का । गो । छाजेड़ ओसवाल हरप्रसाद तत् भारज्या सोनाबोबी श्र ेयोर्थमानंदपुरे । ५. मूलनायक जी से दाहिनी ओर - स १८२८ । वै । शु.। १२ गुरौ । । सेठ भाईदासेन श्री धर्मनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छे भ. श्रीजिनलाभ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिन्तामणिपार्श्वनाथ मंदिर के प्रतिमा लेख ६. दाहिनी ओर श्याम पाषाण प्र. - सं. १५ (?) १६ मि । वैशाख सुद ३ दिने श्री जिनस्यबिंबं प्रतिष्ठितं वृहत्खरतरगच्छे...." ७. मुलनायकजी सं. दाहिने- " ..... कारापिता कोठारी सा. हीराचन्द तत्पुत्रः भमती में दाहिनी ओर देहरियों में. ८. सं. १८८८ माघ सुदि ५ सोमे श्री पद्मप्रभजिनबिंब कारितं श्रीमालान्वये भांडिया गो.। मूलचंद्र पुत्र जात्री मल्लेन प्र. व. । भ.। खरतर (?) श्री जिनचन्द्रसूरिभिः श्री..... ६. संवत् १९२० फाल्गु सिति बुधे श्री शांतिनाथ पंचाल देशे कांपिल्यपुरे प्रतिष्ठितं श्रीमद् बृहद्भट्टारक खरतरगच्छाधिराज श्रीजिनअक्षयसूरिपद....''भ श्रीजिन ..... १०. सं. १८८८ माघ सुदि ५ सोमे श्रीयुगमंधर जिनबिंब कारितं " श्रीमालान्वये फोफलिया गो.।" · राय पुत्र सुखरायेण प्र. व.." ११. सं. १८८८ माघ सुदि ५ सोमे श्री सुविधिनाथ जिनबिंब कारितं ओसवंशे चोरड़िया गौत्रे चैन सुख पुत्र रत्नचन्द्रण। प्र । वृ । भ । खर• तरगच्छाधिराज श्री जिनचंद्रसूरिभिः श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थित १२. श्री चक्र श्वरीजी १९७१ . १३......०६ पो। ३ भ । श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठिता १४. सं० १८८८ माघ सुदि ५ श्री महावीरबिंबं कारितं श्री मालान्वये फोफलिया गोत्रे बखतावरसिंहस्य भार्या ज्ञाना १५. संवत् १६१० फाल्गु सिति बुधे श्रीमा० महमवाल गो.। ला. । रजमल तत्पुत्र शिवपरसादेन श्री सुमतनाथ जिन बिंबं । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिन्तामणि पार्श्वनाथमंदिर के प्रतिमा लेख १६. सं० १८८८ माघ सुदि ५ सोमे श्री सुविधिनाथबिंब कारितं श्री मालान्वय महिमवाल गोत्रीय जोतमल्लस्य भार्या रुपाख्यया पुत्र धूमीमल्लेन । प्र. । वृ.।"""" १७. सं. १८८८ माघ सुदि ५ सोमे श्रीचंद्रप्रभ जिनवि कारितं । प्र.। वृ । भ । खरतरगच्छाधिराज श्रीजिनचंद्रसूरिभिः श्रीजिनालयसूरिपदस्थैः । - दोतल्ले स्थित लेख :१८. संवत् १९२४ माघ शुक्ल १३ गुरौ सुमति जिनबिंबं कारितं श्रीमाल छम...''जी भावसिंघ... १६. सं. १६०४ । माघ शुक्ल १२ बुधे श्री शीतलनाथबिंब पचालदेशे कांपिल्यपुरे प्रतिष्ठितं च श्रीमबृहत्भट्टारक खरतरगच्छीय श्रीजिन.. २०. सं० १८७७ माघ सु० १३ बु । उसवा. छजलानी गो २१. सं. १९०४ वर्षे शाके १७६६ प्र । माघ मासे... २२, सं. १८८८ माघ शुक्ल ५ सोमे श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं ओसवंशो.. २३. संवत् ११३ शाके तिथौ माघ शुक्ल पंचम्यां ५ भृगुवासरे श्रीमत्शांतिनाथ जिनदीदा कल्याणक पादुका ओसवंशे वैद महता गोत्रीय 'प्रसाद कालिकादास तत्पुत्र अबुजि तत्पुत्र शिखरचंद्रादि सपरिवारेण बृहत्खरतरगच्छीय भ. जिनजयशेखरसूरिभिः श्रेयः २४. सं. १८२८ शा. १६६४ प्र. वै. सु. १२ गुरौ सा.। भाईदासेन श्री पद्मावतीमूर्ति कारिता प्र। श्रीखरतर ग.. __२५ सं. १८८८ वर्षे मिती वैशाख सुदि खेमचंद गोरा भैरव मूर्ति कारापिता प्र । वाणारस अमरसिंधुरगणिः खरतरगच्छे । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ चिन्तामणि पानाथ मंदिर के प्रतिमा लेख __२६. सं. १८४२ चैत्र शुक्ल राकायां चन्द्रवासरे लक्ष्मणपुरस्थ श्रीमालान्वये भांडियागोत्रे हिरदेसिंघ भार्या चुनियाख्या आचाम्ल तपोधापने श्रीसिद्धचक्रयंत्र कारापितं श्रीमबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जं.। युः। भा। श्री जिनचंद्रसूरि पदस्थ भ० श्री जिननंदीवद्ध नसूरिभिः प्रतिष्ठितं । २७. सं. १८६२ चैत्र शुक्ल राकायां चंद्रवासरे लक्ष्मणपुरस्थ श्री. माल दुसाज उमदामल पुत्र । उमरामल तत्पुत्र बहादरसिंह माय मुनी.. याख्या सिद्धचक्र कारापितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छाधिराज श्री जिनचंद्रसूरि पदस्थ नंदिवर्धनसूरिभिः॥ २८. संवत् १९१० फाल्गुन सिति २ बुधौ श्री धर्मनाथ जिनबिंब पांचालदेशे कोपिल्यपुरे प्रति .. २६. सं. १८८८ माघ शुक्ल ५ भौमे श्री अभिनंदन जिनबिबं का. । ओसवंसे बहोरागोंने हर्षचंद्र पुत्र कीर्तिसिंहेन भार्या दुनिख्या ३० सं. १९२४ माघ शुक्ल ५ गुरौ नमीनाथ " नीचें गुरु मन्दिर में ३१. संवत् १९४२ शाके १८०७ माघ मासे भेशु शुक्ल पक्षे दशम्या तिथौ रविवासरे दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिनियर कमलन्यास उद्धार कारपितं श्रीसंघेन श्री बृहत्खरतर गच्छीय जं। प्रभा श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥श्री।। कल्याणनिधानगणिः उपदेशात् शुभं ।। ३२. संवत् १८८८ वष मिती वैशाख सुदि ३ सेठजी श्री मोतीचंदजी खेमचंद श्री काल भैरव मूर्ति कारापितं प्रतिष्ठितं वाणारस अमसिधुर गणि श्री खरतरगच्छे । (प्र.जैन सत्य प्रकाश वर्ष २१ अंक ८) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खरतरगच्छीय वाचकोत्तंस श्री अमरसिंधुरगणि रचित बम्बई चिन्तामणि-पार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह श्री आदि जिनस्तवन जै बोलौ आदि जिनेसर की जै बोलो। ................... श.। ........'छवि छाजत है कंचन की राजै.। आदि राय नै आदि जिणेसर, आदि केवल महिमा इनकी ।।जै.। तरत आप भविजन कँ तारे, वाणि गरज है जिमघन की ४ाजै.। दीन दयाल कृपाल कही जै, पार न पा को गुण की शनै.। पूज रचावौ जिन गुण गावौ, अंगिया रचौ भल फूलन की।६.। आदीसर अलबेला साहिब, 'अमर' करै जै जै जिन की। जै.। श्री नेमनाथ बोली सुख संपत दायिक, जगत्रय नायक, लायक नेम जिणंद । जादव कुल मंडण, दुःख विहंडण, प्रगट्यो पूँनिमचंद ॥ शिवा देवी जायो, कुमरी गायो, सूतक क्रम मिल कीध । सुरागर न्हवराव्या, सुरपत आया, सकल मनोरथ साध ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २ ) वम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह क्रम महोच्छव कीधो, जग जस लोधो, समुद्र विजै सुपहांन । अपचर मिल आवै, हरष वधावै, गोरंगी करि गांन ।। भोजन भल भगतै, कीधो जुगते, पोषी सब परवार । बोलावै वाणी, चित हित आंणी, नवलो नेमकुमार ॥२॥ ब्रह्म व्रतधारी, जग हितकारी, सयल जीव सुखकार । जे अनंग में खंडी, रह्यो पग मंडी, छंडी राजुल नार ।। गिरवर गिरनारै, चढीय तिवार, दीख ग्रही गुण धाम । पंच महबय पालै, दोषण टाले, केवल वरीयो ताम ॥३॥ त(त्रि)पदि मनरंग, अधिक उमंगै, जंपै जगदाधार । गणधर गुणधारी, परउपगारी, सूत्र रचै सुखकार ॥ निज क्रम मल सोधे, भवि प्रतिबोध, पवित्र करै पृथमाद । क्रोधोदिक वारी, समताधारी, निज तीरथ कर आद ॥४॥ गए मुगत गिरंदै, सुरनर वंदै, ल है जिण सुक्ख अनंत । अवन्यासी वासो, जोतप्रकाशी, भांगै साद अनंत ॥ भवि भावन भावो, जिनगुण गावो, अधिक धरी आणंद । नेमीसर नमिय, पातक गमीय, 'अमर' लहो सुख कंद ॥शा इति श्री नेमिनाथजीरी पूजारी बोली। नेमि-राजमती-स्तवन (राग-खम्भायती) दीजीय वधाई श्री महाराज. आवै छै जी आवै छै जी राज. दीजियै० जादव जांनी आवै छै जी राज । दीजीयाए आंकणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह ( ३ ) दसे दसार में राम कन्हईयो,सकल रायां (राजन) सिरताज।दी.१। कुंवर साढा तीन कोड हैं संगी, देव कुवर समराज । दी०२। जादव जांनी खूब विराजै, सबल वण्यो छै जी साज । दी०३। शिवदेवी रुकमण सत्यभामा, सोल सहस गोपी गाज । दी०४। ताल कंसाल मृदङ्ग वजत है, नौबत गहिरी गाज । दी०५। केसरियो वर वींद विराजै, नेम कुमर महाराज । दी०६। जांन बधाई बात श्रवण सुणी, खुसी भए महाराज । दी०७। दीध बधाई हरष सवाई, उग्रसेन महारोज । दी०८। राजुल पिण भई है बहुराजी 'अमर' बधाई आज ।दी०६। नेमि-राजुल-स्तवन ( राग-जंगलो भडाणो) [अम्बिले की डारी डारी कोइल बोलै कारी कारी । पापी पपईये मोहि आन सताई विरह की मारी॥ कोइल बोलै कारी कारी, अम्बिले की० । ए चाल ।] सांवरे से हारी हारी, तज गयो प्यारी प्यारी ।सां.त.१। नाह विहुणी मैं भई निरधारण, विरह ने मारंमारी।सां.त.२। प्रिय संग जब रस रंग रमँगी, हस देंगें तारी तारी। सां. त.३। अब हुं भी मेरो प्रीत मनायो, जाउँगी मै लारी । सां.त. ४ । सहसा वन जाय संयम ल्युगी, ममताकुँ मारी मारी । सां. त. ५। नेमि राजुल मिल मुगत सिधाए, 'अमरेस' वारी वारी । सां.त.६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह नेमि-राजुल-स्तवन ( राग-जंगलै मैं ठुमरी) (मन मैं पड्या अव प्रेम फंदा, छुड़दा नाहीं मेरे राम । ए चाल मैं ) विण अवगुण मोहि नाह विसारी,गयो गिरंद मेरो आतम रांम । वि. मैं याको कछु गुनह न कीनौ, सांवरो भज गयो मेरो साम । वि.१॥ पहिली प्रीतरीत दरसाई, कैसो अब नीपायो काम । वि.२॥ द्रोही नर इण सम नव दीठो, धीठो नर नहीं एहो गाम । वि.३। बहियां देकै वैर विसायो, सासूत्रै स्यं जायो जाम । वि.४। नव भव संगी ओतम रंगी, नेम को रहिज्यो जुगजुग नाम । वि.। राजुल नवली प्रीत रची है, 'अमर' तणौ ए साचौ सांम । वि.६। नेमि-राजुल-स्तवन (राग-जंगलो) कैसे समझाउँ सहीयां जदुपति मान नहीं रे । कैसे. पहिली प्रीत बनाय कै, झटक दिखायो छेह । राख्योही पिण नां रह्यो, निगुण तजी गयो नेह । कैसे० १ । सणौ सही प्राणेस विन, जमवारो किम जाय । विरहानल तन पीडियो, किसकुं कहीयै जाय । कैसे० २। निरधारी तज नाहलो, चढियो गढ गिरनार । प्रोतरीत तज बावरे, विरवो कीध विचार । कैसे०३। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह ( ५ I सास | कैसे ० ५ । रात । 1 वालमीयै विन सेजडी, रंग विरंगी जोय | वहिली जाय ने बहिनडी, कंत मनावो कोय । कैसे ० ४ । भुरभुर पिंजर मैं भई, राजिंद विन दिनरात | जमवारो किम जावसी, समरूँ सासो एक अंधारी औरडी, बीजी वैरण काम कटक केडै लग्यौ, सबल लग्यो संताप | कैसे ० ६ । इम किम रहीयै एकला, मैं जाऊँ नवलो नेह लगायके, वसियै एक राजुल इम आलोच ने, गढ पहुंती गिरनार । सहिसा वन संयम लीयो, लहि केवल सुखकार । कैसे ० ८ । सिव मंदर सुख सेजडी, रमै सदा मन रंग । 'अमर' वसे आणंद सुं, अवचल प्रीति अभंग | कैसे ० ६ | वास | कैसे ० ७ । 1 | पिउ पास । Jain Educationa International नेमि - राजुल - स्तवन ( राग - अडाणौ चाल कैरवैरी ) जादव वस करली तावे मेरी ज्यॉन । जादव ० सदरंग रसिया मनडै बसीया, जुगत भुगत के जाए | जा० १ | तोरण आय के पीछे सिधाए, हेतकी करकै हांन । जा०२ | जाय गिरनार भये हैं जोगी, मेरो न रह्यौ मांन । जा०३ | मैं भी पिया संग संयम ल्युंगी, शील धरम सुप्रमांण । जा०४ | नेम राजुल नवलौ नेह बाधौ, बसियै 'अमर' विमान । जा०५ | For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह नेमि-राजीमति-स्तवन (मत वाहि छढीयां लग जायगी, ए जाति वसंत ) गिरनार पिउ कै संग जाउँगी, संग जाउंगी फिर घर नहीं पाउँगी! भोग तजी ने जोग धरयो है, गुण वाही के नित गाउँगी। गि.१॥ जोवन मेरो अंग झित है, ताहि बात दरसाउँगी। गि.२॥ कह्यो मानै जो कंत हमारो, तो पीछो घर लाउँगी । गि.३। जिम तिम प्रीत रीत कर कोरण, रुठडो नाह मनाउँगी। गि.४। जो जग जीवन गेह न आवै, पतियां फेर पठाउँगी । गि.॥ 'अमर' वधै जिम प्रीत अमारी, सोई सुजस बढाउँगी। गि.६। नेमि-राजीमति-स्तवन ( राग-बसन्त ) कीनी मै सुखकारी, सखी मेरी इण भव ए इकतारी । नेम नगीनो है मेरो बालम, मैं हुँ उनकी नारी । भज तज मत जा प्रेम पियारे, मैं तेरी बलिहारी । सखी. १। मैं तो तेरो अंग न वजहुँ, जो मोहि दैगौ गारी। जो गिरनार गिरंद चढेगो, तो मैं आउँगी लारी । सखी. २ । सहसावन जाय संयम लीना, दोनॅ भए ब्रह्मचारी। 'अमरसिंधुर' बाकंनमन करत है, धन वह नर वा नारी।स.३। इति श्री पदम् । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि स्तवन- संग्रह ( ७ ) नेमि - राजुल - स्तवन ( राग - बसन्त ) विभचारी भयो मेरो बालमीयो, आज भेद मै पायो । वारी. आज . । सिव गणिका से संकेत करीनैं, गढ गिरनारै छायो । वारी गढ० विभ० आज० ॥ १ ॥ कुलवंती याकुं काहि कुं चहियै, वाहिसै चित ललचायो मैं हि निगोरी भोरी भई हुं, यातै प्रेम लगायो । वारी यातै ० विभ० ज० ॥ २ ॥ कपट की से कारो भयो है, देव प्रगट दरसायो ; नव भव की इस प्रीत न जांगी, छिन मैं छेह दिरायो । वारी० छिन० विभ० श्राज० ॥३॥ हम भी शिवत्रिय संग रहैगे, सुख हुय जेम सवायो; नेम राजुल मिल चल बसे है, 'अमर' आणंद वधायो । वारी अम० विभ० ज० ॥४॥ 1:0 Jain Educationa International नेमि - राजीमति - स्तवन ( राग - फाग ) भोरी में सहियर बहुत भई, भोरी में । पहिली इनकुं नहीं रे पिछाएयौ, विरह वियापित तेण भई | भो. १ । For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 5 ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह कालो नर सो कपटी होयै, ए अोखांणी जगत सही भो.२॥ मुखड़े रे मीठो चितई रे झूठौ,उर की बात सो आज लही।भो.३॥ पहिलो मोसै प्रीत वणाई, त्रिटक झटक छटकाय दई भो.४। निसनेही मेरो नवल सनेही, इण की बात न जाय कहो ।भो.॥ नव भव की इण प्रोत न जाणी, मेरी सार न एण लही भो.६। एण तजी पिण हुँ नवि तज हुँ, ए मैं हिव इकतार गही मो.७/ सहिसा वन जाय संयम लीनो, तप जप केवल तबहि लही भो. शिव मंदिर हिल मिल के खेलें, 'अमर' प्रिया प्रिय मीत भई ।। नेमि-राजिमती-स्तवन मनी मेरौ बोवरो रे, रोख्यो ही न रहोय । सहीयां.। पहिली प्रीत पिछाण के रे, जादव पासे जाय । सहीयां मनु.। पहिली प्रीत लगाय के रे, इण चितड़ो लियो जी चोराय। स.१॥ नव भव नो ए नाइलो रे, इण लालच रही ललचोय । स.मे.। मैं गोरी भोरी थई रे, कोई अंतरगत न लखाय । सहियां मे.।२। धीठा मुह मीठा हुवै रे, भोला तिण भरमाय । सहियां मेरो.। शिव रमणी संकेत सँरे, मोकुं छटक दई छिटकाय । सहियां ॥३॥ संग करी सुगुणा तणो रे, लै संयम सुखदाय । सहियां मे.। नेम राजुल मुगते गया रे, प्रीत 'अमर' जिहां थाय । सहियां।४। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह ( ) नेमि राजिमती स्तवन [ दुनवा कर कर सांवरै मेरो मन हर लीनो जाय सहियां । मेरे आंगण बोरड़ी बे मेरा पियाविण बोर कुण खाय सहियां ए चाल में वसन्त छै] जदवा कर कर सांवरै रे, मेरो मन हर लीनों जाय, सहीयों जदवा० मेरै जोवन मिल रह्यो रे, मेरे पिया विन किम रहवाय सहीयाँ।ज.११ जान करी में जुगत हुँ रे, अंग घरी उच्छाह सहीयां । ज. २॥ गोखे ऊभी मैं गोरड़ी रे, निरखं नवलो नाह सहीयां । ज. ३॥ अण परण्यां पाछा वल्या रे, दिलड़े क्या बाई दाय सहीयां । न.४॥ पशुध पुकार को मिस करी रे, जादव पालो जाय सहीयां । ज. ५॥ पाछो रथडो फेरतां रे, कांड मुखड़ी नहीं लजाय सहीयां । ज. ६। मैं तो माहरैशील छुरे,नहीं तो अवर लगन ले जाय सहीयां । ज.) लोक कहा सो सहु को करै, काइ मुखड़ो किम देखाय सहीयां। ज. तरणी परणी जे तजै रे, कल औखाणो थाय सहीयां। ज. हा मैं इक तारी मन धरी रे, इण भव ए वर थाय सहीयाँ । ज.१०॥ पहिली प्रीत दिखाय कैरे, छटिक दई छिटकाय सहीयां । ज. ११॥ विन अवगुण वनितातजी रे, निस वासर किम जाय सहीयां ज.१२॥ कालो नर कपटी हुवै रे, सगुण वयण कहिवाय सहीयाँ । ज. १३॥ ए ओखाणे ओलख्यो रे, जादव गिरवर जाय सहीयां । ज. १४॥ पिउ पासे संयम लीयो रे, केवल पद दरसाय सहीयां । ज. १५॥ नेम राजुल मुगते गया रे, 'अमर आणंद पधाय सहीयाँ ।ज. ९६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १० ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह नेमि-राजिमती-स्तवन (गल-हंतो नर हुँ तुहारा नगर में, धोले द्याह हारे धोले चाहई मोहन लूट लई हुं तो० । ए चाल में छै-वसन्त ) हुँ तो न रहुँ तुहारा मंदिर में, मैं जाऊँगी होरे मैं तो जाऊँगी पिया के संग सखी, हुँ । तोरण आए पशु छुराए, काइ हम पर रीस करी रे (२) मैं तो० ॥ हुँ तो। कंत हमारा दयाल कहावी, तो मो पर महिर करो रे (२) मैं तो०।२।हु तो। रथड़ो फेरी शिव त्रिय हेरी, जीवन जोग वरो रे (२) मैं तो०३। तो। विन अपराध तजत हौ वनता, का ही विचार करो रे (२) मैं तो०१४। हुँ तो। तरण पणे तरुणी नै तजता, नहीं सोभाग वरो रे (२) मैं तो० ॥ तो। राजुल जायके संयम लीनो, केवल लोछ वरो रे (२) मैं तो०।६। हुँ तो। नेम रोजुल परमानंद पायो, "अमर" सुजस उचरो रे (२) मैं तो १७॥ हुँ तो। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह ( ११ ) नेमि-राजीमति-स्तवन राग-काफी वसन्त [ए री मेरो अंचरा पकर कै गयो, चल्यो जा ऐसो खिलारू भयो न भयो, मेरो०, ए चाल] ऐरी मेरो पिउ गिरिंद है गयो, सखीरी ऐसो नेह कियो न कियो। ऐसो नेहरौ नोज भयो, मेरो पिउ गिरिंद गयो, सखि मेरो० ॥१॥ आं० अरज करी बहु एक न मानी, कहो सखि कपट कियौ न कियो ।२।स.ऐ.। पहिली प्रीत लगाय प्रिया से, कहो सखि छेह दियौ न दियौ ।३।स.ऐ.। अब इनको वेसास न आवै, कहो सखि मरम लयौ न लयौ ।४।स.ऐ.॥ तरणी मन हरणी नवि परणी, कहो सखि जोगी भयौ न भयौ।शस.ऐ.। द्वारिकावासी मुगत अभ्यासी, कहो सखि पातिक दह्यो न दह्यो।६।स.ऐ.। मैं भी पिया द संयम ल्पंगी, . कहो सखि नेहरो रह्यौ न रह्यौ।७।स.ऐ.। पिउ प्यारी अमरापुर वसियै, सुगुणां सुक्ख भयो री भयो।स.ऐ.। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह नेमि-राजुल-स्तवन राग-सोरठ वसन्त (इस वांभण के छोकरे, मेरे खेलत ककर मारयो लला, इस० कंकर मारयो ने चुरीयां फोरी, बांहीयां पकर झकझोरी लला, इस चाल में छै) इस जादव जादू (जुल्हम ) किया, मेरो चित चोरी कै गयो री लला । इस० । चितरो चोरी ने स्थरो फेरी, गिरवर जोगी भयो री ललो । इस० ॥१॥ नगिनी जोरी भयो ध्रम धोरी, प्रीत रीत नहीं गिनी री लला । इस०१२। नेह की दोरी निगुणै तोरी, नीत रीत इण छिनी रे लला । इस०३। ममता मोरी काम कुं छोरी, मै मन भोरी सुणि री लला। इस०।४। तज गयो गोरी नायो होरी, इसरी सीख किरण दई रे लला । इस श दिल जाय दोरी न रहै ठौरी, नेह कुं खोरी लगाई लला । इस०।६। मैं जाऊँ घोरी प्रीत न तोरी, राजुल नेम सं. मिली री लला । इस०७। न लगी खोरी जुगति जोरी, 'अमर' प्राणंद से मिली री लला । इस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह ( १३ ) नेमि-राजुल-स्तवन ( क्या बांन परी पिया तोरी रे, म्हांसु खेलण आया होरी ए चाल मैं-वसन्त) मैं चतुर न कोनी चोरी रे, किम नाह तजी गयो होरी। मैं चतुर । तिण तज० । प्रांकणी विण अपराध तजी क्यं वनता, मोहन गयो मुख मोरी रे । किम मैं च. १॥ पशुवन की ते पीर पिछाणी, ___ गुनह विनां तजी गोरी रे । किम० मैं च०२। मात तात जादवपत वरजत, गयो गिरनारै दोरी रे । किम० मैं च० ३॥ विरह विथा के दर विडारी, रमियै रस रंग सोरी रे । किम० मैं च०४॥ प्रीत पुरांणी कबहुँ न तजीये, किम रहीयै इक कोरी रे । किम मैं च०॥ 'अमर' कहै आनंद वधावो, नेम राजुल मिली जोरी रे । किम० मैं च०६। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह नेमि-राजीमति-स्तवन राग-गहिर मल्हार सहेली म्हारी आयो श्रावण मास । प्रीतमनी गिरनार पधारे, मो तजीय निरास । सहेली०१। भोग तजी इण जोग भज्यो है, वेरी दे ये सास । सहेली. तोरण आए मो मन भाए, आणी अधिक उल्हास । सहेली०२। पशुभ्र पुकार की पीर पिछानी, वसे सहसा बन वास । सहेली अलवेसर मो तजीय इकेली, वालम देवे सास ।सहेली०३। राज पधारो रंग महिल मै, वसीयै जिम घर वास । सहेली. पिन अवगुण तजीयै किम वनिता, वालम हियडै विमास । स०४। मोपर मोहन महिर घरीजै, सेज रमो सुखवास । सहेली. 'अमर' प्रीत बाधी अलवेसर, वरतै लील विलास । सहेली०५। नेमि-स्तवन श्रावण तीज राग-मल्हार सहेली म्हारी आई श्रावण तीज । सब सखियन सिणगार सजत है, मोहि बढत है खीज । स०१। झूलरीयै मिल चलत हैरमझम, दुखरो गयो तिहां छोज ।स०२। मुगुणा नाह निज निज सुंदरी कुं, चोही देत सब चीज । स०३। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तपन-संग्रह ( १५ ) गज गमनी शशिवदनी सबही, ज्यं बादल की बीज ।स.४। मैं मंद भागन सब बनिता मझ, विरहन मैं रही भोज । स०५। नेम नाह जो अब घर आवै, 'अमर' सफल हुय तीज । स०६। नेमि-राजुल-स्तवन-वर्षा राग--गहिर मल्हार सहियां सांवण आयो, सखी मोरी, भोरी भाद्रव आयो। मेहरो री वरसै री जीवरी तरस, नेम नगीनो न आयो। सखी मोरी भोरी भाद्रव आयो । किणी।। चमकै दामनि चिहुँ दिस चपला, घोर घटो धन छायो। घन गरजत विरहन री तरजित, मोर झिंगोर मचायो। सखी मोरी भोरी भाद्रव० ।। पिउ पिउ करत पुकार पपियडो, मैं जाण्यौ पिउ आयो। चमकि उठीने चिहुं दिस निरखत, पिउ को दर्स न पायो। सखी मोरी भोरी भाद्रव० ३। गयो गिरनारी भोग विडारी, मैरै वस में नायो। जाय सखी समझाय सयांनी, गढ गिरनारै छायो। सखी मोरी भोरी भाद्रव०।४। सहिसा बन जाय संयम लीनो, मुगति महल सुख पायो। अवचल प्रीत वधी अलवेसर, गुण अमरेसर गायो। सखी मोरी भोरी भाद्रव ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ )बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह नेमि-स्तवन-वर्षा __राग-वलित मल्हार बरसण लागी काली बदरीया, झिरमिर झिरमिर लागी झरईया। वर० ।। घोर घटा कर घन गरजत है, चिहुं दिसि दांमनि चपल चरईया । वर० ॥२॥ मोर झिंगोर करत गिर शिखरन, .... पर नाली बहु नीर परईया । वर०।३। सूती सुन्दर सेज इकेली, काम संतावत ताप करईया । वर०।४। विरहानल पिउ आय बुझावत, __ भामणतो. आणंद भरईया । वर० १५॥ जाय सखी समझाय सयांनी, भोग तजी किम जोग धरईया । वर०।६। सहसा वन जाय संयम लीनों, 'अमर' प्रीति आणंद वरइया । वर०१७) नेमि-राजल-स्तवन-वर्षा राग-अहाणो मल्हार हां हो लाल परनाली से परै नीर नीर । हो हो.। वरषा बुंदन मैं वाई सक भीजत है चीर चीर ।हां हो.।१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तधन-संग्रह ( १७ ) तीखी लागत है या तन पर, जाणि बृही तीर तीर।हां हो.।२। वैरण रैण वीजरियां चमकत, घन गरजत धीर धीर।हां हो.।३। बालम विन कहो कोन बुझावत, विरहानल पीर पीर।हां हो.।४। सुसनेही सहसा वन छाए, तासै मेरो सोर सीर । होहो.।। तरुणी अणपरणी तज चाल्यो, बाई नणंद वीर वीर।हां हो.।६। नेम नाह को संग राजुलकु,जाण मोठा खोर खीर । हां हो.७/ नेमि-राजुल-स्तवन-श्रावण वर्षा राग--अडाणो मल्हार श्रावण बँद सुहाई, संयोगणि. श्रावण । प्रिउ की महिर सुपवन मुहावत, लहिर वादरिया लाई । संयोगणि श्रा०१॥ वचन सुधारस सोई घन बरसत, ग दांमनीय चलाई । संयोगणि श्रा० हास विलास सों घन गरजत है, प्रेम सुनीर चढाई । संयोगणि भा०२॥ मेरो पिउ मो छांड चल्यो है, छयल रहै वन छाई । संयोगणि श्रा०। राजिंद जो रंग सेज पधारत, वरत रंग बधाई । संयोगणि श्रा०३। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह बालम सै तब प्रीत वधावण, ___ संयम लै सुखदाई । संयोगणि श्रा०। 'अमर' प्रीत बाधी अलवेसर, . ऐसी झरीयां लाई । संयोगणि श्रा०।४। -xx-- राजुल-स्तवन-भादवा राग-मल्हार भाद्रव इम मन भावे, सखी मेरी भाद्रव० । इन्द्र पाए हैं कर असवारी, बादल तंबू बनावै । सखी. भा.१। बदरी स्याम सोगज संचारत, लस सोतेजी लावै । सखी.मा. वाय सु वाय सुतोप बनी है, मधुर मधुर गरजावै । सखी. मा.२। प्रथवी नार मिले व सुरपति, नेह सुजल बरसावै । सखी. भा.३॥ काल चाल भाजेवा कारण, दांमनीया दरसावै । सखी. भा. नेह निजर निरखी निज पतकी, एम दरस दिखलावै। सखी.भा.४। रंग सुरंग सुदोब बनी है, सोवर वेस बनावै । सखी. भा. ताकी खूबी देख त्रिया सब, सोल शृङ्गार सझावै । सखी. भा.५॥ गीत गाक्त है सब मिल गौरी, राजुल मन नही भावै। सखी.भो. जादव जो अपने घर आवै, 'अमर' आनंद वधावै। सखी.भा.६। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह ( १६ ) नेमि-राजिमती-स्तवन-भाद्रव राग-मल्हार भाद्रवडो मन भावे, सखी मेरी भाद्रव० । प्रथवी नार हरित तन खूवां, वस्त्र सवेस बनाने । स. भा. १॥ सोल शृङ्गार सझै सब वनिता, रंग सुरंग सुहावै ।। गीत गावत है सब मिल गौरी, भोरी रंग वधावै । स. भा. २॥ राजुल ने चित कांइ नराचे, विरह बहुलता जावै । नेम नाह जो नयण निहाल. 'अमर पाणंद बधावै। स. भा. ३॥ नेमि-राजिमती-स्तवन-भाद्रव राग--मल्हार भाद्रवडौ मन भावे, सखी मेरी भाद्रव० । नेम नाह जो अब घर आवै, हीय. हुंस वधावै । स. भा. १॥ सोल शृङ्गार सजी सखीयन मिल, गीत मल्हार गवावै । काजल तिलक तंबोल सहावै, विरहानलकुं बुझावै । स. भा. २॥ राजिंद विण किम रात रहीजे, सेजडली संतावै। काम अरि मो केडै लागो, निस सम नींद न आवै । स. भा. ३। जाय सखी समझाय सनेही, इहां अलवेलो आवै। 'अमर' प्रीत वाधै अति अनुपम, दिन २ चढते दावै । स. मा. ४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २० ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह नेमि-स्तवन-होरी राग--जंगलौ [या वृजराज कु लाज नहीं मोकु गारी देत लाख सामें, ऐरी सखी ऐरी गारी० या बुज०। सब सखियन प्रिया संग खेले, मैं झूमती मेरे मन में, ऐरी २ मैं झू० या बृजराज. मोकु, ए चान में वसन्त] मेरो पिया मेरे संग नहीं, मैं तो कैसे खेल होरी मैं एरी एरी सखि । कै० मेरो० मैं तो। गोपियन संग गोवरधन खेलत, ___ मैं झूरत गोखन में एरो सखि मैं० ११ मे । अलवेसर मोकू छोड चल्यो है, सगुणा सहसावन में एरी एरी स०।२। मे० । दिल दरियाव विरह जल उलटे, नीर भरत आंखन में एरी एरी नौ०।३। मे० । भाद्रव की सी झरी री लगी है, बुंद परत छिनछिन में एरी एरी बुं०।४। मे० । शिव गणिका याके कान लगी है, भरमायो तिण भरमें एरी एरी भ० मे० । खून बिना चित खार धरी ने, घर तज भज गए वन में एरी घ०।६। मे। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि स्तवन- संग्रह ( २१ ) पिउ की कुटिलता आज पिछानी, यह विभचारी जन में एरी य० |७| मे० | दीख लेड केवल पद पायो, जाय बसे शिवघर में एरी जा० |८| मे० । नेमीसर निज नेह निवाह्यो, 'अमर' प्रीत शिवपुर में एरी [अ०] || मे० | mat ---/ नेमि - राजिमतो - होरी राग-वसन्त कहो री सखि कैसे खेले होरी, मेरो तो नाह गयौ घर छोरी |१| क० । विन अवगुण मोहि विरह जगायौ, नेह की दोरी ए ततखिण तोरी |२| क० । शिव रामा उनकुँ भरमायौ, faa मेरो ति लीधो चोरी | ३| क० । सहसावन जाय संयम लीनौ, नेमजी नाह भये भ्रम धोरी |४| क० ! Jain Educationa International सहथ से जाय संयम ल्युंगी, काम क्रोध मद मोह ॐ मोरी | ५| क० । For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह सौकड़ली हम संग रमेंगे, गुणवंती वा भी है गोरी।६।क० । नेम राजुल मिल मुगत सिधाए, 'अमर' रमे हैं सिवसुख होरी ।७। क० । नेमिनाथ होरी राग-फाग सहसावन सरस मची होरी । सहसावन० समुद्र विजै सुत जग स लहीजै, नेम नगीनो ध्रम धोरी । सहसा०।११ दसे दसार ख. श्राय दह दिस, - राम किसन बंधव जोरी । सहसा०।२। कंवर कोडि मिल मिल के संगी, - आवत है टोरी टोरी । सहसा ॥३॥ शशि वदनी मृग नयणी सुन्दर, हस श्रावै रमवा होरी । सहसा०।४। छयल छबीली है अलवेली, . गोपी सोल सहस गोरी । सहसा वसंत वेष सब खूब वण्यो है, रंग सुरंगी है चौंरी । सहसा०।६। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह ( २३ ) प्रेम पिचरका नीर सुधार, वाहत है तक तकि गोरी । सहसा०१७) लाल गुलाल मुट्ठी भर डारत, अबीर उडावत भर झोरो । सहसा चंग बजावत गारी गावत, हस हस बोलत है होरी । सहसा०६। बाल गोपाल सबे मिल खेलत, नवली नेह लगी दोरी । सहसा०।१०। जोरे व्याह मनायो जदुपति, 'अमर' दंपत अवचल जोरी । सहसा० ॥११॥ नेमि-राजिमती-होरी हसि हसि खेलूँ होरी री, सखि हसि हसि खेलूँ होरी । प्राणनाथ जो गेह पधारे, जुगत वनें तो जोरो री । सखि इसि०१॥ जदुपत ने जायकै समझावो, घर आवो हठ छोरी री । सखि हसिका। विन अवगुण क्यु विरह सतावै, गुणवंती तज गोरी री । सखि हसि०१३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि स्तवन -संग्रह भोगी भमर भामण कुं भजणां, । नेह न तोरो दोरी री । सखि हसि ० |४| पशु पूकार सुणि प्राणेसर, 1 मोसैं चितरो लीधो चोरी री । सखि हसि० | ५ | गिरवर तजीयै घरकुं भजिये, अरज सुणी जै गोरी री । सखि हसि०|६| गिरवाह गुणवंत धरावो, 'अमर' करो ए जोरी री । सखि हसि ०/७/ 1 नेमि - राजिमती - होरो [होरी खेलूंगी संग लीयां सजनां, संग लीयां सजनां वालम लीयां अपनां. होरी खेलूँ । आओ मेरे बंभना, बैठो मेरे अंगना, थाल भर मोतियां को युङ्गी मैं दखणां, होरी खेलूँ गी० । ए चाल में बसन्त है ] होरी खेलुंगी संग मिल्यां सजना, संग मिल्यां सजना वालम मिल्या अपना । हो. । वो मेरे सजना, घर नाहिं तजना, भोरी से राग भली पर भजनां । हो. |१| चित हित धरणां विलंब न करणा, पशुअ पुकारन क्या चित धरणा । हो |२| Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह ( २५ ) भामण वरणां, जोग न धरणा, जोवन वय सखि सफला करणां । हो.।। जोग के तजणा, भोग कुं भजणा, नीत रीत भल चित हित धरणा । हो.।४। नेह जो करणा तो प्रीत न तजणा, ए उत्तम कुल की है आचरणा । हो.।। वयातीत संयम त्रिय वरणा, पीछे भव सायर कं तरणां । हो ।६। राजुल नेम वियोग है हरणां, 'अमर' प्रीत भई शिव सुख वरणां । हो । गौडी-पार्श्वनाथ-होरी राग-फाग गवड़ी प्रभु जिनवर गुण गावो । गौड़ी। अंगी चंगी पहुप बनावो, टोडर कंठ बले ठावौ । गौ.११॥ मणि माणिक मोतीयड़े वधावो, तन मन इक ताने लावो । गौ.।२। क्रोध मान दोय ताल वजावो, सुमता केसर छिड़कावो ।गौ.।३। शान गुलाल अबीर उडावो, सुच संतोष भल जल ल्यावो।गौ.।४। दरस सरस करकै सुख पावो, ल्यो नर भवनो इम लाहो। गौ.।। "अमरसिंधुर' भवि मिल गुणगावो,परम संपदाजिम पावो।गौ.६। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्तवनानि बम्बई-चिन्तामणि-प्रासाद-स्तवन (देशी--मोरा साहिन हो श्री शीतलनाथ के-एहनी ) सुखदायक हो चिंतामणि साम कि, "मुंबईपुर" मन रंग नमो। दरसण करहो लहो नयणानंद कि, दुख दोहग दूरे गमो। पावडिया हो तिहा 'सात प्रसिद्ध कि, देवल चढतां दीपां। दोय पास हो प्रतिहार प्रधान कि,जुगतै अरिगण जीपत। सु.१॥ "उपासरै" हो अति सोभउदार कि "खरतरगछ" चढती कला। सदगुरु जी हो "श्रीकुशलसुरिंद" कि, पूजीजै पगला भला। पटधारी हो प्रणमी गुण पायक, लायक गुरुगुण दीपा । भविबोध कहो सौधिक जाण कि, पंचेन्द्रिय विषय जीपतां । स.२। दिस दोए हो पावडीय प्रधान कि, सुन्दर अति सोहामणी। चढि चौं हो लहो परमानंद कि, देवल छवि सोहांवणी। जक्ष राजा हो चिन्तामणि जाणिक, चित नी चिंता ते हरै । गुणवंतो हो गोरल वडवीर कि, भोग सुजस लखमी भरै। सु.३। मन गमती हो भमतीय भमंतक, मंदिर शिखर सोहांवणो। धजदंडै हो सोहै श्रीकारक, कलश कंचन रलियामणो। बिहुं पास हो अति उन्नति जाणिक, ध्रमशाला दोपै भली। भ्रम कारण हो करवाने काजक, देख्यां पूर्ण मन रली । सु.४। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिप्रासाद-स्तवन ( २७ ) "मूलनायक " हो राजे महाराज कि, श्री "चिंतामणि" सुखकरू । उपगारी हो त्रिभुवन श्राधारक, दरसण दुख दोहग हरू । तेवीसम हो जगतारक जा कि, दोहन दुरति निकंदणो । पुन्ययोगे हो लायक सुविलासक, दरसण लक्ष्य राजिंदनो । सु. श सुविवेकै हो मिलि चौविह संघकि, विनय सहित वंदन करै । | पूजा विध हो ग्रह समय उदारकि, करतां पुण्य दसा भरै । पदमावति हो पूरै मन आसकि, "स्याम भैरव" सुप्रसन्न सदा । श्राराध्य हो या अधिक आनंदकि, प्रघल दीयै सुख संपदा । सु. ६ । चढि चौमुख हो "चंद्राप्रभु" चंगकि, “अजित-सुमति-संभव" सही । भल दरसण हो करतां भलभावकि, जात्रा पुन्य पांमै सही। "कोठारी" हो कुल मंडण जांकि, "अमरचंद " चढती कला । भाई भलहो "वृधी चंद" सुजां कि, “हीराचंद " सुत तसु भला । सु. ७| देवल भल हो दीपायो जेणकि, देव भुवन सम दीपतो । अति ऊँचो हो सो है श्रीकारक, मोह मिथ्यामत जीपतो । भल लीधो हो लखमीनों लाहकि, पुन्य भंडार भरावीयो । धमधोरी हो गावै गुणवंतकि, जग जस पडह वजावीयो । सु. ८। गछ " खरतर " हो गणधर गुणवंत कि, "हरषसूरीसर" हित धरू । श्रीणाधर हो वाचक पद धारक, 'अमरसिंधुर' महिमा वरू । ए उद्यम हो करता मन रंगकि, वच्छर "आठ" बोलावीया । प्रतिष्ठा हो कीधी सुप्रधानकि, गुणीयण मिल गुण गावीया । सु. ६ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह ए मिंदर हो रहो अचल आणंदकि, थिर जिम सुर गिर सासता । चिंतामणि हो पूजे ज्यों जामकि, अधिक वधे ज्यों अासता । सुप्रसन मन हो सेवो प्रभु पायक, त्या सुप्रसन्न जदा तदा। हुवो या घरहो सुख संपत धामक, वधज्यो मंगल मालिका ।सु.१०। चिन्तामणि-प्रासाद-निर्माण-स्तवन राग-फाग निरुपम मिंदर भल निपजायो । निरुपम । दंड कलश वर धजा विराजै, सिंघ सकल कै मन भायो ।। निरुपम जिहां "चिंतामणि" जिनवर राजै, दरस सरस कर सुखपायो ।२। निरुपमः। तीन लोक तारक भय वारक, . धणी एक चित में ध्यायो ।३। निरुपम नायक लायक है वर दायक, ___ फणिपति लंछण कहिवायो।४। निरुपम "कोठारी" कुल मंडण कहिये, "अमरचंद" ध्रम बुध लायो । निरुपम लखमी लाह लियो भल लायक, सुजस सहु जन मिल गायो।६। निरुपम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुंबई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन ( २६ ) "हीराचंद" हीयै बहू धरकै, देवल भल ए दीपायो ।७। निरुपम सुख संपत नित वधो सवाई, 'अमर' आनंद मन उपजायो ।८। निरुपम चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन (पुनः तेहिज चाल वसन्त) मुख पेखी महाराज को रे, मैं वारी जाऊँ वार हजार सहीयों । मुख०।१। सोना रूपा ना फूलड़े रे, मोतीयन थाल विशाल सहीयां । मुख०।२। बधाऊँ मैं विनय हुँ रे, मन धर हरख विशाल सहीयां । मुख०।३। नयणे निछरावल करूँ रे, घोल करु घन रंग सहीयां । मुख०।४। भामणा ल्यु भल भाव सुं रे, नमन करु धर नेह सहीयां । मुख०।५। चैत्यवंदन कर चौप सं रे, मो मन भक्ति अछेह सहीयां । मुख०।६। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह "सूरत" थी भल साहिबा हो, ___ "मुंबई" विंदर महाज सहीयां । मुख० । ७। आया इहां आणंद हुँ रे, सहुना सीधा काज सहीयां । मुख०।८। महिर लहिर लटकै करी रे, लीला लहिर रसोल सहीयां । मुख०।।। 'अमर' श्रोणंद वधावणा रे, घर घर मंगल माल सहीयां । मुख०।१०। चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन सकल सिंघ सुखदाई, सदाई वाजत रंग बधाई । "सूरत" सै प्रभु सुनिजर धरकै, "ममुई" प्रगट पुन्याई । सदाई. सकल ।। श्री "चिन्तामणि" पास पधारे, घर घर रंग वधाई । सदाई० सकल०१२। आराधिक नी आशा पूरै, ए प्रभु नी अधिकाई । सदाई. सकल०।३। माहाराज मिंदर मझ बैठे, भवि मिल पूज रचाई । सदाई. सकल०।४। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तषन ( ३१ ) भावन भावो जिन गुण गावो, संपद सनमुख भाई । सदाई० सकल ।। महानंद दायिक महाराजा, 'अमर' सेवो सुखदाई । सदाई. सकल०।६। चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन राग-गरबो आज सु दीह सुहोयो, सिंघ सकल केरै मन भायो। "मंबुई" विंदर मैरे रंगै, पधराव्या प्रभु चित हित चंगै । आ.।१। तेवीसम जग त्राता, जस जाको त्रिभुवन जन गाता। आ.।२। जनम धरयो जिण कासी,अविकारी अविचल अविनासी।आ.।३। सुंदर सूरत रे सोहै, मुखडानै मटकै मन मोहै। आ.।४। धवल कमल दल काया, प्रभु चिंतामणि पुन्यै आया। आ.॥ हस्त वदन हित धारी वारी, जाउँ वार हजारी। था.।६। भल भल गुण मणि भरियो, सुमता रसनौ जाणै दरीयो। पा.७। आनंद घन उपगारी, सहिजानंद सुगुण चित धारी। आ.।। केवल लील विलासी, अनुभव रसना जे अभ्यासी।प्रा.ह। मूलातम मन रंगै, धरता साहिब अति उछरंग। पा.१०॥ साचो साहिबजी हियो पायो, 'अमरसिंधुर' चरणै चित लायो।११। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन राग-मधुर बसन्त मेरे चिंतामणिजी के चरणकमल युग, नमतां नवनिध पावै । नमतो नवनिध पावै,, चरणयुग नमतां नवनिध पावै । श्री चिंता। अष्ट सिद्धि अणचिंती आवै, लीला लाछ सुहावै । श्री चिंता०।१। सोम निजर सहुनें संपेले, महिरवांन सम भावै। श्री चिंता। सरस सरस दौलत दरसोवै तो, पातिक दूर पुलावै । श्री चिंता०।२। सुख सागर नागर नित बाथै, भारत निकट न आवै । श्री चिंता। अतिसयवंत महंत है साहिब, लायक विरुद लहावै । श्री चिंता०३। जग नायक जयवंत जगतपति, सिंघ सकल मन भावे । श्री चिंता। "ममुईपुर" वसीयो प्रभु मेरो, 'अमर' आणंद बधावै । श्री चिंतो०१४। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन चिन्तामणि-पाच-स्तवन राग-परमाती जय चिंतामणि जगपति, कीरति छती रे। त्रिभुवन में सिरताज, प्रहसम प्रणमीय रे ।। तेवीसम जिन जग तिलो, महिमा निलो रे, दीनानाथ दयाल । प्रह० २। सोम निजर सहु पर करै, आरती हरै रे, करुणावंत कृपाल । प्रह।३। पूर्जता पातिक पुलै, वंचित मिलै रे, पतित जनां प्रतिपाल । प्रह०।४। जग बंधव जग तारणो, दुख वारणो रे, सहजानंद सरूप । प्रह० ।। "मुंबई" बिंदर मै मुदो, सोभै सदा रे, महिरवान महाराज । प्रह०।६। भव भव सेवा दीजीग, बस लीजिगरे, 'अमर' लहै आनंद। प्रह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन संग्रह चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन राग-फाग चिंतामणि सुप्रसन आज भयो, चिंतामणि । अपणौ जांणी चित हित प्रांणी, दयावंत भल दरस दीयो । चिंता०।१। भविजन तारे विधन निवारे, लायक बहु विध सुजस लीयो । चिंता०२। कासीपुर वाको जनम कल्याणक, साहिब शिवपुर को वासी । चिंता०३। निराकार निकलंकित साहिब, ___ करम अरी जिण दूर कीयो । चिंता०।४। ठवणा जिण "ममुईपुर" ठवीयो, देखत ही दुख दूर गयो । चिंता० ।। भविजन मिलकै पूज रचत है, सफलो जिन अवतार कीयो । चिंता०१६। दरस सरस देखत दिल हुलसै,, "अमरसिंधुर" आणंद भयो । चिंता । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्व स्तवन ( ३५ ) चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन . राग-मल्हार मलो देव मन भायो चिंतामणि, धणीय चिंतामणि ध्यायो । चिंतामणि चित ध्यायो, मेरे मन चिंतामणि चित ध्यायो। संदर सूरत मूरत निरखत, परमानंद मै पायो ।मेरे.चिंता.१॥ धणीय प्रण सिर ऊपर धरतां, दोहग दूर गमायो। संदर पारस दरस परसते, लोह कुंकनक करायो। मेरै.चिंता.॥२॥ ऐ साहिब है अलवेसर, पूरव पुन्यै पायो। उपसमरस अनुभव अभ्यासी, परम कृपाल कहोयो। मे.चि.३। काम क्रोध जाकै निकट न आयो, मोह मिथ्यात हटायो। परहर पाप अढारह थानक, दरस केवल दीपायो । मेरै चिंता.४। कासी अविनासी शिववासी, ठवण जिणां ठहरायो। "मंबुई" बिंदर मै मन रंगै, देवल(सरस) दोपायो । मेरै.चिंता.श तूं जग तारक भव भय वारक, सेवक सरणे आयो। महिर करो साहिब तुम मेरा,'अमर' दे सुक्ख सवायो। मेरै.चिं.६। चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन राग-करतो अधिक आणंद लह्यौ, आज मैं, सुणि प्यारे जिनजी, अधिक आणंद लह्यौ। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह श्री "चिंतामणि" सुखकर साहिब, ____ अचल रहै शिवराज मैं । सुणि। "मंबुई" बिंदर ठवणा मूरत, दरस ताको लयो आज मैं । सुणि०।१। सुगुण साहिब को संग गहंता, कोहि सुधारै काज मैं । सुणि।२। भव जल निध भय दूर मग्यो है, जाणै बैठे जंगी जिहाज मैं । सुवि०॥३॥ पूरब पुन्य उदै मैं पायो, महिर वान महाराज मैं। सुणि०।४। दास खास भव भव हुँ तेरो, राज गरीव निवाज मैं । सुणि दरस सरस ए अविचल दौलत, 'अमर' कहै लही आज मैं । सुणि०६॥ - - - - चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन (पुनः चाल पूरवली वसन्त) तु तो चिन्तामणि चित घर रे, हुँ तो कहुँ रे (२) सुगुरु ने सीख दई। तुं तो.। प्रभुजी को समरण है सुखदाई, अहि निशि यह ऊचर रे(२) हुँ तो। तु तो.।१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन ( ३७ ) पाप संताप निवारक तारक, ता तै तुं समरण कर रे (२) हुँ तो.। तुं तो.।२। तरण तारण त्रिभुवन पति साहिब, भव जल नी ए तर रे (२) हुँ तो. । तुं तो. ॥३॥ परम दयाल कृपाल कहीजै, एतो संत सुधारस घर रे (२) हुँ तो. । तुं तो.।४। परमानंद परम पद दायक, लोयक नायक वर रे (२) हुँ तो. । तु तो. सुन्दर सूरत मूरत सोहै, एतो "मंबुई" बिंदर पुर वर रे (२) हुँ तो. । तुं तो.।६। सकल सिंघ कु वंछित दायक, सुख संपत घर घर रे (२) हुँ तो.। तुं तो. ७) "अमर" समर चिंतामणि चित घर, पुण्य भंडार कुं भर रे (२) हुँ तो. । तुं तो.।८। Gale चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन (पुनः तेहिज चाल में वसन्त ) दरसण देखी सांम नो रे, अधिक लह्यो आणंद सहियां द.। श्री चिंतामणि भेटतां रे, दूर गया दुख दंद सहियां । द.।१। फलिया मनोरथ मन तणारे, अधिक लह्यो आणंद सहियां। द.॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३८ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन- संग्रह मेरो सुकयथ साहिबो रे, निरख्यां नयणाणंद सहियाँ | द. | ३ | चिंतामणि मुझ चित वसै रे, जेम चकोरा चंद सहियां । द. | ४ | दास खास जाणी करी रे, विबुध दिये सुख वृन्द सहियां । द. | ५| सुनिजर जोवौ साहिबा रे, जगनायक जिणचंद सहियां । ६. ६ | महिर लहिर लटकै करी रे, 'अमर' लहै श्राणंद सहियां । द. | ७ | चिन्तामणि पार्श्व - स्तवन राग-- अलहीयो वेलावल मैं चरणन को चेरो, प्रभु चरण० । चरण कमल को चेरो, प्रभु तेरो चोगत चौरासी मैं भटकत, फिरो अनंतो फेरो । प्रभु० | १ | गति चौरिंदी चौवट मैं, घन करमै मो घेरचो । संचित प्रेरयो । प्रभु ० | २ | Jain Educationa International तेरो । दुरगत केरे बहु दुख देखे, पूर मैं हुँ पतित श्रनाथ प्रभूजी, तारक विरुद है तेरो । “चिंतामणि” हिव चित हित धरीयो, चरण शरण ग्रह्मो तेरी | ३ | समरथ साहिब शिव सुख दीजै, क्या कहीयै अधिकेरो। 'अमरसिंधुर' नी आशा पूरो, दास खास हुँ तेरो । प्रभु ० | ४ | -:०: For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई शिन्तामणिपार्श्व-स्तवन ( ३६ ) चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन (पुनः वसन्त पूर्वली चाल ) या जिनराज सो देव नहीं, तूं तो चिन्तामणि धर चित में । एरी सखि.। पर उपगारी जग परमेसर, वसीए मोख नगर में ए.या. व.११॥ जग में देव बहुत फिर जोए, घेर जोयो तन घर में ।ए. या. घे.।२। सकलंकित सुर सेव करत ही, भूलत है क्यु भर में ।ए. या.भू.३। दीन दयाल जगतपति जिनवर, तारत है भव जर में ए. या. ता.।४। साचे मन से सेव करत नित, सुख संपत ता घर में ए. या. सु.।। "अमर" पाणंद ल है निस वासर, प्रभु जी की महिर लहर में। ए. या.प्र.।६। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४० ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह चिन्तामणि-अंगी-वर्णन-स्तवन राग-जंगलौ अंगीया सुरंगीया सोहै, मेर मन मांनी सही है। अंगी। अंगी चंगी अति भली, देख्यां दिल हुलसंत । हीयडौ विकसै पुहप ज्यु, दोहग दह दिस जंत । अं०।१। जरकस को जामौ वन्यो, कंठी कसवादार । आगल बंधी अजब गत, छवि अति कंत उदार । अं०।२। कोरदार है केवड़ा, मोपै कहे न जाय । धुंडी कर की सुधरता, दीठां आवै दाय । अं०।३। ग्रह बंधी भल गात है, विच बँटी नवरंग । चाल चलत है चुपकी, सोभा वणी सुचंग । अं०१४। कोर कनारी फाबती, सोभै भली संजाफ।। महाराज की अंगीया, ऐसी है असराफ । अं०।। मणि जडिया सोभै मुकट, कानै कुन्डल सार । बाजु बंधनै बहु रखा, हीय. नव सर हार । अं०।६। फूल बाग विच फबत है, राजत है महाराज । भामंडल आभा भली, तीन छत्र सिरताज । ०।७। वींम चामर दोय दिस, देवल देव विमांन । वाजिये वाजै विवध पर, गुणी करत है गान । अं०1८। नरनारी वन्दन करै, भाव भलै ससनूर । मन मयूर नाटक करत, दुःख दोहग जाय दूर । अं०18 | Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तषन (४१ ) अंगी देख अनूपता, सहु को करै सराह । धन "चिंतामणि" जग धणी, वाह प्रभू त वाह । अं०१०॥ पूरव पुन्यै मैं लह्यो, साचो समरथ साम । भवजन बंदौ भावसं, 'अमर' आसा विसराम । अं०११॥ चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन राग-वसन्त अडाणी धणिय एक चिन्तामणि ध्यावो, भर भर मोतियन थाल वधावो । पय प्रणमी नै पूजा कीजै, गुण याकै मधुरे सुर गावो । ध शम०। जुगत भगत भल जाप जपीजै, तो दुरगति दुख कुंकबहु न पायो । ध०१२।भ०। दीन दयाल कपोल कहीजै, प्रीतम इण सम अवर न पावो ।ध०३।०। छति अधिकी अोपम प्रभु छोजै, जात्री जन मिल मिल के आवो ।ध०४।। सुजस बाल जगत में गाजे, 'अमर' संपद सुख वेग वधावो । ध शमः। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४२ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन राग-वसन्त मेरे मन मिंदरियै प्रभुजी पधारे, तो आज भयौ आनंद । मेरे। मिथ्या ताप गयौ अब मेरो, समकत उदय अमंद । मेरे सम्यक ज्ञान चरण दरसणतो, दोपत जाण जिवंद। अब अनुभवता उदयो मेरे, फट गये भ्रम के फंद । मेरे०।२। तीन तत्व की सरधा पाई, उल्हस्यौ मन मकरंद। करण अपूरवता गुण प्रगट्यो, पाम्यौ परमानंद । मेरे॥३॥ चौधन घाती तप घण ताड़े, क्रोधादिक निकंद । राग द्वष दो दूर विडारे, झीले सुमत समंद । मेरे०।४। चिन्तामणि सुनिजर सीतलता, ज्ञान सु सुरतरु कंद । सोसफलौ फल्यो अम्ह घर आंगण, 'अमर' भयौ आणंद।मे। चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन राग-सोरठी ( करवो ) बसन्त ( पिचकारण रंगवरसै गोकल में पि०, ए चाल ) चिन्तामणि मेरे चित में वसे हैं, निस वासर नित मन में। एरी सखि निसः। पलक एक विसरूँ नहिं प्रीतम, बाप जपत छिन छिन में । एरी० ११॥ चि०। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन ( ४३ ) तेवीसम जिन जग जन तारक, न रहे भव जल निध में । एरी० न चिका मुमता सागर गुण मणि आगर, न परे क्रम वागुर में । एरी० न०।३।चि०। उपशम दरियो ज्ञान सु भरियो, भूले नहीं भव भर में। एरी० भू०१४। चि० अनुभव अभ्यासी है अनुपम, सीए मोख नगर में। एरी०व०॥चिः। ए प्रभु ध्यावो नवै निध पावो, 'अमर' सुजस लहौ जग में। एरी० अ०।६।चि०। चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन (सखी मेरो अंचरो पकर कै गयो, ऐसो नेह भयो न भयो, मेरो०, ए चाल) मेरो पास जिणंद जयो, __ और न ऐसो देव भयो, मेरो पास० | प्रांकणी। श्री चिन्तामणि जिनवर जपतां, पातिक गयो री गयो । सखी रीपा.और.१ मे. पा.। पूरव पुण्य तणै सुपसाये, दरसण लह्योरी लह्यो।सखीरी द.और.।२१ मे.पा.। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४४ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह सकलाई जग साची निरखी, "मंबुई"ठयोरी ठयो। सखी री मं. और.।३। मे. पा.। सकल संघ कुसुख को दायक, सुप्रसन्न भयोरी भयो। सखी रीसु.और.४ मे.पा.। जाप जपंता पूज करता, पातिक गयो री गयो । सखी रोपा.और.श.पा.। तेवीसम जिन जग जन तारक, जग त्रय जयोरी जयो। सखी रीज. और.।६। मे.पा.! "अमरसिंधुर" प्रभु ने सुपसाय, आणंद लह्योरी लह्यो।सखी रोप्रा.और.७। मे.पा.! चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन राग-वसन्त धमाल चरण कमल जिनराज नो हो, नमा नव निध होय हो, मेरे ललना न० । अष्ट करम उपसम थकी हो, अड सिध नी प्रापत जोय ॥१॥ रंगीली बातम रंग भरी हो । पूज्यां पुण्य वधै घणौ हो, प्रणम्यां जाय पाप, मेरे ललना प्रण। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन ( ४५ ) एक मनां आराधता हो, दुरगत नां टलय संताप ।२। रंगी०। ध्येय सरूपै ध्यावतां हो, करम नी तूटै कोड़ि हो, मेरे ललना कर० । चिंतामणि चित में धरो हो, मिथ्यातम नांखसे तोड़ ।३। रंगी। एहवो साहिब आपणो हो, सकल देव सिरताज, हो मेरे ललना स० । "अमर" दियै सुख संपदा हो, महाज गरीब निवाज ।४। रंगी० । चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन राग वसन्त [ ऐसे कन्हईए लाल गोपिन में डारे गुलाल मुठी भरके, ए चाल ] बाबो चिन्तामणि पास विराजै, महिर निजर सब पर निरखै । मन हरखै चित हरखे, बाबो चि०, सुनिजर महिर से सब निरखै ।बा०। ०। सकल संघ कँ सुख को दोयक, नेह निजर से सब परखै । वा०म०। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४६ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह त्रिभुवन साहिब तखत विराजे, अभवी जन हियरा धरकै । बा०म० विवुध नयन की बंद झरत है, वाणि सुधारस घन वरसै । बा०३०म०) पाप ताप सब दूर विडारे, हित धर के दिल में हरखै । बा०म० सुमता सागर गुण के आगर, अनुभव रस गुण आकरले बा०म० दीन दयोल सुध्रम धन दाता, दुरित दोष कु ए घरषै । बा०।६।म० 'अमर' मुगट मणि सब ए राज, सुर बीजे नहि या लिखवै । बा०।७।म। चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन राग---सोरठी वसन्त श्री चिन्तामणि पास की मै पूज रचाउँ री। अरी अरी मै पूज रचाउँ री, भला मलां पूज रचाउँ री ।श्री चि.। तन मन वचन करी इक तानें, गुण मणि गाउँ री । अरी २ गुण. श्री चि..। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन ( ४७ ) ऐसो सांम जगत में जोता, अवर न पोउँ री । अरी २ अव. श्री चि.।२। रात दिवस इक रंगै रातो, ध्यान सु ध्याउँ री ।अरी २ ध्या। श्री चि.३। सुन्दर सूरत मृरत निरखी, हष भराउँ री ।अरी २ हर.। श्री चि.।४। महिर लहिर नो लटको लहिने, आनंद भराउँ रीअरी २ आ. श्री चि.श मोह निद्रा गई मुद्रा निरखत, भव्य कहाउँ री।अरी २ भ. श्री चि.६। दास खास हुं "अमर" तुहारो, विरुद धराउँ री।अरी २ वि.। श्री चि.७। चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन राग-फाग चिन्तामणि दरसण भल पायो, चिन्तामणि । दुख दोहग सब दूर गये हैं, सोहग सुख संपत पायो। चिं.१॥ प्रभनी महिर लहिर ने लटकै, हरष हीयें बहु हुलसायो। चिं.२॥ तेवीसम जिन जग जन तारक, लायक विरुद्ध मै ललचायोचिं.३॥ सुंदर सूरत मूरत निरखी, देव अवर नहीं दिल भायो। चि.४। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४८ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह रात दिवस इक रंगै रातो, चरण कमल मै चित लायो।चिं.॥ सफल भयो मानव भव मेरो,गुण मणि बहु विधमै गायो। चिं.६। श्रीचिंतामणि दरस परसते, 'अमर' आतमगुण दरसायो।चिं.७। चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन राग-सोरठ मल्हार होजी चिंतामणि लागै प्यारो प्यारोरे, वामादेवी नो नंदन प्यारो।होजी चि०० धवल कमल दल धन ए मूरत, सूरत ए सुख सारो रे। होजी चिं० ॥१॥ हस्त वदन निरखंता हित घर, म्हांनं लागै अति घणु प्यारो रे। होजी चिं० २। सुनिजर जलधर धन प्रभु वरषित, गयो जो मिथ्या तप म्हारो । होजी चिं०३। दोष अढार दुकाल गमाए, समकित अन भयो सारो रे। होजी चिं०१४। "अमरसिंधुर" सुख संपत बाधी, अपनो काज सुधारो रे। होजी चिं०॥ प्यारो रे वामा०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन ( ४६ ) चिन्तामणि-पाच-स्तवन राग-चलित मधुर वसन्त चिन्तामणि मुझ चित वस, मन रंगै बाधै उछरंग। रात दिवस लीणौ रहै, पोयण से जिम रातौ भृग । चिं.१॥ देव न दूजो दिल धरूँ, प्रभुजी से बांध्यौ बहु प्रेम । इक तारी मुझ ए सही, देव दूजौ नमिवा नौ नेम । चिं.।। सुरतरु तजि नै साहिबा, बांवल नै कुण घाले वाथ । रतन तजी मन रंग सुं, पाहण नै किम लीजै हाथ । चिं.।३। पूरब पुण्य संयोग सुं, साहिब नी पामी चरण नी सेव । तरण तारण त्रिभुवन जयो, दुनिया में तू साचौ देव । चिं.।४। चरण शरण भव भय हरू, सुखदाई मुझ साचौ साम । 'अमरसिंधुर' नै भव भवै, आणंदी थे प्रातमराम । चिं.। चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन ____राग-वसन्तेपि पूरबी जय जय चिन्तामणि जगदीसर, त्रिभुवन तेज सवायो, वारी त्रि० । दरस सरस लहि देव तुहारो, परमानंद सुख पायो, वारी पर० १जै। मूलातम गुण हुँ उलसायो, अध्यातम उलसायो वारी अ०। संत सनेही साजन मिलतां, हिव हुऔ हरख सवायो वारी हि०२। जै०। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५० ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह लघु संसार तणौ गुण लायौ, सो मेरे मन भायो वारी सो। अनुपम अनुभव अमृत पाने, मिथ्या विष मिटायौ वारी मि०३। ०। रोचक समकित गुण रो चायौ, देव निरंजन ध्यायो वारी देव० । अब तो महिर लहिर नौ लटकी, करतां सुजस सवायो वारी कर०1।। जै० । अपणी जाणी नै अलवेसर, देव रूप दरसायो वारी देव० । 'अमरसिंधुर' आतम गुण लायो, चरण सेव चित धायो वारी ।। ०। चिन्तामणि-पार्श्व स्तवन राग-वसन्त फाग जै बोलो जै बोलो पास चिंतामणि की, जै बोलो। कुमति कुनारी कझो री न मांनो, सुमति सुनार मैं इस बोलो । जै बोलो.।। सुमता प्रभुता अतिह सुचंगी, तास सुभाव अछे भोलो। जै बोलो.।२। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन निज सुभाव रस रंगै रमता, राग दोस गंठी खोलो। जै बोलो.।३। दिल साचै रस रंग राची, पाप पंक न रहै तोलो। जै बोलो.।४। महिमा तीन भुवन में मोटी, .. सुरगुरु पिण न लहै तोलो। जै बोलो.।। सकल देव सिरताज सु सोहै, दरस सरस लहि गुण बोलो। जै बोलो.।६। सुद्ध देव की सेव न जाणी, "अमरसिंधुर" आतम भोलो। जै बोलो.।७। चिन्तामणि-पाव-वीनती राग-काफी बसन्त दरसण यो महाराज, मो. पर महिर करीजै । दर० । दास खास जांणी नै जगगुरु, सफल करो शुभ काज । दर० । मो पर० ॥१॥ अपणो जांणो चित हित प्राणो, लाख वधारो लाजः । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५२ ) पम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह पतित उधारो पार उतारो, राज गरीब निवाज । दर० । मो पर० ।। दया करी 6 वंछित दीजै, तारण तरण जिहाज । दर० । मो पर०३। एसो साहिब अवर न पाउँ, परतिख शिवपुर पाज । अपणायत जांणी अलवेसर, वगसो चढत दिवाज । दर० । मो पर०१४॥ चिन्ता चूरो परता पूरो, दूर हरो दुख दाझ । 'अमरसिंधुर' अपांयत जाणी, सुख संपति द्यौ साज । दर० । मो परश -xx-- चिन्तामणि-पाव-स्तवन राग--धमाल जग नायक चिंतामणि जिणंद, - सेवा जसु सारै मिल सरिंद । जग० ॥१॥ कामित दायक सुरतरु सुकन्द, नृप आससेन वामाजु कै नंद । जग० ॥२॥ महिमा जस मोटी जिम समंद, दुरगत दुख मेटै दूर दंद । जग० ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन ( ५३ ) उपकारी जांणी में अमंद, फणि मिस सेवा सारै फुणिंद । जग० ॥४॥ सीतल सुखदाई सरद चंद, वंद मुनिजन जाकै चरण वृन्द । जग०॥शा फैडीनै साहिब दुरत फंद, "अमरेस" भणी दीजै पाणंद । जग० ॥६॥ चिन्तामणि-पाच-स्तवन राग-सोरठ वण्यो री म्हार या प्रभू सै रंग, वण्यो री । अभिनव नेह लग्यो जिनजी सै, पलक न छोड़े संग। वण्यो री॥१॥ प्रीत रीत निरविष बहु बाधी, जिम पोयण में भृङ्ग। वण्योरी०॥२॥ "श्री चिंतामणि" दरस परसते, भयोरी पातिक को भंग । वण्यो री०॥३॥ सुंदर सूरत मूरत निरखी, बाधी रंग तरंग । वण्यो री०॥४॥ आलसूत्रांने सनमुख पाई, जाणै बहिनें गंग । वण्यो रो॥॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५४ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह 'अमरसिंधुर' चित हित धर रोची, अविचल प्रीत अभंग । वण्यो री०॥६॥ चिन्तामणि पाश्वनाथ-स्तवन रोग-कैरवो आनंद धन उपगारी निरंतर, आनंद० । सहिजानंद सकल को ज्ञायक, ___अविनासी अविकारी । निरंतर आनंद०॥१॥ जगदानंदी जग परमेसर, चिदानंद चित धारी । जिणेसर प्रा० ॥२॥ ज्ञानानंदी गुणमणि आगर, लोकोत्तर आचारी । निरंतर प्रानंद०॥३॥ उपसम भरीयो जालै दरीयो, ___ सदानंद सुखकारी । निरंतर आनंद०॥४॥ श्री चिंतामणि नित चित हित धर, दुरगत दूर विडारी । निरंतर प्रानंद०॥५॥ ए प्रभु ध्यायों नव निध पावो, 'अमर' संपद अधिकारी। निरंतर आनंद०॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन (५५ ) चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन राग---जंगलो घणं समझायो घर मैं, मेरो मनुप्रो मान नहीं रे। घणं. मे.। सकलंकित सुर सेवतां, करता हरै न कर्म । सविषी विष कुंना हरै, भूला म पडौ भने । घणं. मे. ११ देव बहुल देखै दुनी, कैसे कही: ब्रह्मा विसन महेस वर, सरै न त्यां मैं काम । घf. मे.स राग द्वष या नहीं, मरम नहीं मन मांहि । वाजि तजै विषया रसै, विविध सेवीयै ताहि । वणं. मे ॥३॥ उपसम रस भरिया अमल, कमल धवल सम काय । सो "चिन्तामणि" चितधरो, कमणा न रहे काय । घf. मे.४। तरण तारण त्रिभुवन जयो, तेवीसम जग तात। "आससेन" कुल अवतरयो, “वामादे" जसु मात । घणं. मे. ज्ञानानंदी गुण भरयो, सहिजानंद सरूप। केवल कमला जिण लही, भल आतम गुण भूय । घj. मे.।६। परम दयाल कृपाल भल, सकल देव सिरताज ! पर उपगारी परम गुरु, महिर वान महाराज । घj. मे.१७) दरसण करतां दुख टलै, प्रणयां जाये पाप। जाप जपंता इक मनां, न रहै निकट संताप । घण. मे. समरथ मेरो साहियो, दयावंत दातार । "अमर" समर हित चित धरी, जपतां जै जै कार । घj. मे.।8। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५६ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन राग-खम्भायती राज रै वधाई वाजे आज । "श्रीचिंतामणि" जिनवर भेटे, सफल जनम भयो आज । राज.।१। प्रभुनी महिर लहिर में लटकै, सफल फले सब काज । राज रै.।२। सकलाई जग मै स लहीजै, सकल देव सिरताज । राज.३ सेवक जाणी सुखीया कीजै, सुख संपत्ति यो साज। राज रै.४, अपणौ जाणी चित हित प्राणी, राज बधारो लाज। राज रै। अवधारो ए अरज "अमर" पति, राज गरीब निवाज । राज रै।६। चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन जय जय जिणवर भव भय दुखहर, सुखकर साहिब बेग सवायो । जय००। साचो तारक विरुद श्रवण सुणि, चरण कमल तोरै चित लायो । जय०॥१॥ पूरव पुन्य उदै जब प्रगट्यो, दरस सरस देखी सुख पायो । सोहनी सूरत मोहनी मूरती, छवि मुख देखत चंद छिपायो । जय०॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन (५७ ) श्री चिंतामणि चित मै वसीयो, रसीयो चरण कमल चित लायो। 'अमरसिंधुर' पर सोम निजर कर, सुख संपद द्यो वेग सवायो । जय०॥३॥ चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन राग-जंगलो ध्याया ध्याया ध्याया वे, "चिंतामणि" चित मै ध्याया वे । चिं०। सुध समकित गुण के सुख दायिक, लालच तिण चित लाया वे । चिं०॥१॥ सुद्धातम गुण की संभरणा, चरण कमल चित लाया बे। चिं०॥२॥ सहिजानंद संपद सुविलासी, प्रभुता प्रभु कहिवाया वे। चिं॥३॥ "अमर" समर ऐसे अलवेसर, परब पुन्य पाया वे चि०॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५८ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन- संग्रह चिन्तामणि पार्श्व स्तवन राग - सारंग मल्हार मैं 1 प्रभु चिंतामणि जस जग जयो, प्रभु० । दरस सरस लहि पुन्य पसायै, आज कृतारथ भयो । प्रभु. १ । वामा नंदन जगदा वंदन, साचो साहिब मै लौ । प्रभु. २ | तरण तोरण को विरुद श्रवण सुणि, हरष भरांणो मुझ हीयो । प्र. ३ । परमानंदी जग परमेसर, भेटत दुख दोहग गयो । प्रभु. ४। परमानंदी जग परमेसर, "अमर" समर आणंद भयो । प्रभु. ५ -X-X---- Jain Educationa International चिन्तामणि पार्श्व स्तवन राग - मल्हार सहेली म्हारा पूजो चिंतामणि पास, पूरै मन नी आस । सहेली. । ससेन कुल दिन मणि उदयो, राजिंद दै सुख रास । सहेली. १ । तन मन वचन करी इक तानें, समरो सासो सास । सहेली. । सुख संपद वंछित वर लदीयै, हुय रहीये जो दास । सहेली . २ | रे भवि प्राणि चित हित आणी, मन मै एम विमास । सहेली. । रतन लही कुण काचै राचै, ए “श्रोखायौ" खास । सहेली . ३ | प्रभु ए तारक दुरगत वारक, खिजमत करीयै खास । सहेली । प्रीत रीत से पद युग प्रथमो, 'अमर' घरी उन्हास | सहेली ४ | 44 10:1 For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणि पार्श्व स्तवन चिन्तामणि पार्श्व - स्तवन राग---मल्हार आज सु जलधर आयो, सखी मेरी प्राज० । प्रभु के चरण पखालण, कारण, इंद जलधि वणि श्रयो । सखी मेरी आज ० | १ | । "श्री चिंतामणि" दरस सरस कर, हरष हीयै नहि मायो । वाय सु वाय सु भावन भावै, । गरज मिसै गुण गायो । सखी मेरी आज ० | २ | सूरत देख घनी प्रति सुन्दर, दांमनि दुति 'अमरसिंधुर' ए दरसण कारण, दीपायो । ईद जल मिस आयो । सखी मेरी आज ०|३| --- चिन्तामणि पार्श्व स्तवन राग - मल्हार ( ५६ ) धणीय "चिंतामणि" ध्यावो, सुगुण नर. धणी ० देव न इण सम जग मैं देख्यो, Jain Educationa International अवर जंजाल म लावो । सुगुण ० | १| ध० । For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०. ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-सग्रह तेवीसम जिनवर त्रिभुवन पति, प्रह सम पूज रचावो । भविजन मिल भावन भल भावो, गुण जणि गुण मणि गावो । सुगुणराया शिव सुख दायिक नायक लायक, दिन दिन चढतो दायो। साचै दिल साहिब सेवंता, "अमर" आणंद बधावो । सुगुण०३।१०। चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन राग-अडाणो मल्हार लटकालै जिनजी से लय लागी। "श्री चिंतामणि" है सोभागी, __लायक जिनजी से० । श्रीचिं० लट०१। भावठ भय तब सब ही भागो, राजंद चरण को मैं भयो रागी। लायक०।। पथ शिवपुर को है प्रभु पागी, नीच निठुर गत नाठी नागी । लटका०३। जालम सुमत त्रिया जब जागी, कुमतः कुनार गई तब आगी। लायक०।४। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपाव-स्तवन (६१ ) - - मिथ्या मोह को भयो जब त्यागी, सदगुण संभारे जब सागी । लटका० ।। थिर जिन घरे भए जब थागी, लहिर 'अमर' तब जिनजी से लागी। लायक०।६। इति मल्हाररागे स्तवना, अष्टादशस्तुतिस्तोज्येरिदम् । चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन जय जय श्री जगनाथ, "चिंतामणि" चिरजयो । प्रगटयो पुन्य पंडूर, दोहग दूरै गयो। दरस सरस लहि देव, हुलसीयो मुझ हीयो । भल ऊगो ए माण, लाह अधिको लीयो॥१॥ जग त्रय नायक लायक, दायक सुख सदा । तूं पूछो जग नाथ, दीयै संपत सदा॥ परम दयाल कृपाल, किती कीरत' कहुँ । लख जीहे गुण ग्राम, कहो किण विध लहुँ ॥२॥ सेवित सुर नर इंद, चंद चरणेः रहै। देखी तुम्ह दीदार, सीतलता गुण लहै। जागै पाप संताप, ध्यान तोरो घरै। दुरगत जाणैः दर, सुगत. संपदः वरै॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६२ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह भव भव चरण नी सेव, देव मो दीजीयै । विरुद गरीब निवाज, लाइक जस लीजीयै॥ दास खास नी प्रास, पास जी पूरीमै । हीयडै प्राणी हेज, दोहग दुख चूरोयै ॥४॥ अवगुण माहरा देख, रीस नहि आण स्यो । मोटा छो मावीत, छोरू कर जाण स्यो। पतित जणां प्रतिपाल, चाल जो इण चलो । भविक जीवना नाथ, करै स्यो तो भलो॥५॥ आपणां जाणी हेज, हीयौ नही आण स्यो । तो पहुवी मैं परसिद्ध, सुजस किम पाम स्यो। तिण सै त्रिभुवन नाथ, जगत जस लीजीयै । "अमरचंद" आणंद सदा सुख दीजीयै ॥६॥ इति भी चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवनम् । -xचिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन वाधै रंग वधाई सवाई वोधत रंग.। "श्री चिंतामणि" प्रभु नै पूजित, ... पातिक दूर पुलाई । सवाई० वाधै० ॥१॥ भावन भावो जिनगुण गावो, ___ आज घडी भल आई । सवाई० बाधता। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन ( ६३ ) सुन्दर सूरत मूरत निरखी, अंग मै आणंद न माई । सवाई० बाधत०३। सकलाई साची जग निरखो, नमन करै नर राई । सवाई० वाधत०४॥ साचो समरथ साहिब पायो, कुमणा हिव नही काई । सवाई० वाधत०५॥ "अमर" आनंदै ए प्रभु सेवत, संपद सनमुख आई। सवाई० वाधत०६। चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन चित हित धर "चिन्तामणि" भज रे। काम क्रोध है दुरगत दायक, तिसनां कुं अब तज रे । चित.।१। तन मन वचन करी इक ताने, सेवो भल पद कजरे। चित.।२। जायै करम अरी जिन सेवन, सिंह दरस जिम गजरे। चित.।३। भाव वरख वरखत जब जोरै, रहै कहो किम रज रे। चित.।४। जाको जस परमल जग जाचो, ज्यं देवल पर धज रे। चित.। 'अमर' लहो साहब आनंदे, जनम सफल कर निजरे। चित.।६। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६४ ) वम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन- संग्रह चिन्तामरिण पार्श्वनाथ - स्तवन राग - ख्याल को श्री चिन्तामणि साम है साचौ, सुख संपति कौ मैं वारी जाउँ सुख संपत को दाता, चिंतामणि साहिब है साचौ । सुख० |१| प्र० । सांचे मन जे सेव करत नित, सोई लहत है साता | मैं वा० | सो० |२| श्रीचिं.। अपणायत जां अलवेसर, पालै जिम सुत माता। मैं वा०| पा० | ३| श्रीचि । या प्रभु की सुनिजर सुपायै, दोहग दूर पुलाता। मैं वा ० | दो ० |४ | श्री चिं । रात दीह प्रभु रंगे राचौ, दायिक व छत दाता । मैं वा० | दा० | ५| श्रीचिं. | त्रिभुवन तारक भव भय वारक, गुणियण मिल गुण गाता । मैं वा०| गु० | ६ | श्रीचिं.। भविजन भल प्रभु भावन भावो, 'अमर' सुजसखियाता। मैं वा०|०१७। श्रीचिं । Jain Educationa International 00 दाता | For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणि पार्श्व- स्तवन चिन्तामणि- पार्श्वनाथ - स्तवन राग- कैरवो मनवा कर कर मौज सुं रे, मेरे साहिब की भल सेव । तारक है त्रिहुं लोक मै रे ( एतो), दुतीय न या सम देव । मनवा० मेरै ० |१| प्रीत रीत चित हित धरी रे वाल्हा, करतां कोउ कल्यांण | मनवा० । हृदय कमल उलसित थीयै रे वान्हा, भोर उदय जिम भांग | मनवा० मेरै ० |२| चंद चकोरा प्रीतडी रे वाल्हा, मेंह अनें जिम मोर । मनवा० । sars प्रीत श्रनादनी रे वान्हा, मधुप कमल ने जोर | मनवा० मेर०|३| स विष प्रीत अधिक नहीं रे वाल्हा, ( ६५ ) निर विष प्रीत नो लाग । मनवा० । तो ज्ञानानंदी गुण वरचो रे वान्हा, ए तो वान्हमीयो वीतराग | मनवा० मेरै ० |४| एतो कासी वासी जय जयो रे वाल्हा, एतो शिव रमणी सिणगार | मनवा ० । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६६ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह सहिनानंदी साहबो रे वाल्हा, हीयडलानो हार । मनवा० मेरे।। एतो अजरामर पद दायिक सही रे वाल्हा, चिंतामणि चित धार । मनवा० । समरथ साहिब ए लह्यौ रे वाल्हा, सुख संपत दातार । मनवा० मेरै०।६। चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन राग-छन्द बन्ध जय जय चिंतामणि जन नायक, पायक पद क जभृङ्गरे। सुर असुरादिक जासु फुणिंद, सेव करै घर रंग रे । जैजै.१॥ जगत्रय नायक शिव सुख दायिक, लायक जगदाधारंरे। अनुपम तनु छवि कंत उदारं, सोम निजर सुखकार रे।जैजै.२। पर उपगार प्रसिध जस धारं, नमत सुर नर नारं रे। अद्भुत गुण मणि महिर अपारं, कहीयै किम विस्तारं रे।जै जै.३॥ सुमता सारं दुक्ख निवारं, केवल कमला धारं रे। जोति रूप लोकोत्तम सारं, शिवा रामा शृङ्गार रे।जैजै.४। सकल देव मझ सोहै इन्दं, तारागण जिम चंदं रे। 'अमरसिंधुर' सेवे आनंदं, त्रिकरण सुध सुखकंदै रे।जै जै. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन ( ६७ ) चिन्तामणि-पार्श्वनाथ स्तवन राग-प्रभाती नित लीजै प्रभु नाम तुहारो। नित० । चिंतामणि चिंतामणि जपतां, सफल होत है मुझ जमवारो। नित० ॥१॥ नाम नांव चढीयो हुँ निरुपम, भवसायर से पार उतारो। नित० ॥२॥ वड वखती निज विरुद विचारो, सेवक नां सुभ काज सुधारो। नित० ॥३॥ मैं हुँ दीन दयानिध तुम्ह हो, सुगुणा तारक सुगुण संभारो। नित०॥४॥ दास खास जांणी ने दाता, वाल्हेसर मो वान वधारो। नित०॥॥ "अमरसिंधुर" आणंद वधारो, तौ ततखिण मन वंछित सारो । नित० ॥६॥ देशी चौपीनी स्वस्ति श्री सुख दायिक सदा, दरि गमाडै दुरितोपदा। तेवीसम जग तारक जांण, बहु विध करीगै तासु वखांण ।१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६८ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन महिर करो महाराज चिंतामणि, सेवक पर सु निजर कीजै। ओद जुगादि तणौ अलवेसर, दोस खास कर जांणिजै ।महिर०॥१॥ मैं इक तारी ए मन धारी, थिर ए साहिब थापीजै । अपणायत आणी नैं साहिब, सुख संपत नित बगसीजै । महिर० ॥२॥ तारै ते त्रिभुवन जन केते, गिणतां ज्ञान सो न गिणीजै। तुरीझवार दातार दया निधी, ___ हेत हीयै बहु आणीजै । महिर०॥३॥ पर उपगारी होय रमेसर, कीरत केती तुझ कीजै। "अमरसिंधुर" ने अपणौ जाणी, मन वंछित ततखिण दीजै ।महिर०॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्व स्तवन चिन्तामणि पार्श्व - स्तवन राग --- देशी चौपीनी "श्री चिंतामणि" जिण जगचंद, कामित दायिक सुरतरु कंद । आससेन कुल उदयो भांग, अवनी मांझ अखंडित ॥ १ ॥ लोपै नहि को सुर नर लीह, वड वखती साहिब निर बीह । कर केहर भय दूरै हरें, निज सेवक ने निरभय करें ॥ २ ॥ सिंह सरप जल बंधन टलें, रोग शत्रु भय परदा पुलै | राजो रूठो सुप्रसन जोई, झगडो झूठो कबहु न होइ || ३ || सकजो सुत नें सुन्दर नार, दिन दिन लीला लहै अपार । सुख संपद वाधै त्यां सदा, ( ६६ ) महिरवान ज्यां होवें मुदा ॥ ४ ॥ कांमण टुमण न लागै कदा, अधिक आनंद लहे ते सदा । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७० ) वम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह छल छिद्र डाक श्राकण टलें, मन वंछित सुख यावी मिलें ॥ ५ ॥ सुपनें ही संकट नव होय, दिन दिन चढती दोलत होय । चिन्तामणि चिन्तामणि कहो, लीला लाछ घणी जिम लहो ॥ ६ ॥ चिंतामणि जो होय सहाय, दुख दोहरा तिहां निकट न आय । चिंतामणि नों जपतां जाप, परहो जाये पाप संताप ॥ ७ ॥ चित्त, घर नित्त । चिंतामणि सेवें इक रली रंग वा श्री चिन्तामणि हीयडै में घरो, जग जय कमला नित प्रत वरो ॥ ८ ॥ यह निसि पामैं अधिक आणंद, जय जय रव करें जाचक वृन्द | ते पसाय चिंतामणि तणो, भविजन गुण माला नित गुणो ॥ ६ ॥ उभय लोक साधन ए भलो, daraम जिन जग सिर तिलौ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन ( ७१ ) प्रणवक्षर पहिलो पभणीयौ, माया बीजह मन आणीयै ॥१०॥ श्री अहं चिन्तामणि नमो, दुरत आपदा दुरै गमौ। चिन्तामणि नो धरायै ध्यान, तो पामी जै कोड कल्याण ॥११॥ कल मझ साचौ सुरतरु कंद, जयवंतौ सिरि पोस जिणंद । भोलो परदेसे किम भमौ, गिरवाई किम पालै गमो ॥१२॥ घर बैठांही करो घमंड, मांडो चिंतामणि सुं मंड। सेवो साहिब साचो सदा, "अमर" चिन्तामण दै संपदा ॥१३॥ इति श्री चिंतामणि स्तवनम् । चिन्तामणि पार्श्वनाथ-स्तवन राग-घाटौ कैरवो चलित यो रे चिंतामणि जपले, फेडै भव भय फंद । जीया०।१। सुख संपति को दाता, साचौ सुरतरु कंद । जीया०।२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७२ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह सांभल श्रवण सु सोभा, सेवै मुनिजन वृन्द । जीया०३। सुर असुरादिक कोटी, आणी अधिक आनंद । जीया०।४। प्रह सम पूज रचावै, मिलि इन्द ने चंद । जीया०।। अपछर गुण मणि गावे, प्राणी भाव अमंद । जीया०।६। तता थेई तान मचावै, वाजिन वाजै छंद । जीया०७। ध्येय स्वरूपै ध्याता, पामै परमानंद । जीया०८। 'अमर' समर दिल सूध, रूडो लह्यो रे राजिंद । जीया०।। चिन्तामणि-पाव-स्तवन राग-कल्याण श्री चिन्तामणि साचौ सांम, श्री चिं०। सुख संपत दायिक जग नायक, नित लीजैयाको नाम । श्रीचिं.१॥ पाय प्रणमीजै पूज रचीजै, कीजै उत्तम काम। श्रीचिं.२। भावन भावो जिन गुण गावो, पुन्य संयोगै पामि । श्रीचिं.३। तेवोसम त्रय जग जन तारक, अपणौ आतम राम । श्रीचिं.४। घर इकतारी जे नर ध्यावे, कोड सुधार काम । श्रीचिं.॥ चरण सरण गहि 'अमर' समर नित, हितधर पूरै हाम। श्रीचिं.६) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणि पार्श्व - स्तवन चिन्तामणि पार्श्वनाथ - स्तवन । चिन्तामणि चित धार, ए श्रतम आधार । श्राज हो यारो रे, त्रिभुवन तारक ए जगपति जी ॥१॥ सुमता सागर सार, उपसम रस भंडार । आज हो पायो रे, प्रभु पूरव पुन्य पसाय थी जी ॥२॥ पर उपगारी पास, ईहक पूरे श्रास | आज हो पायो रे, मत सागर नागर मनहरूजी ॥ ३ ॥ जुगी जांग जिहाज, परतिख शिवपुर पास। आज हो पायो रे, साचो साहिब हित सुखकरूजी ॥४॥ दीजै भव भव देव, चरण कमल नी सेव । आज हो धारो रे, ए अरज 'अमरसिंधुर' तणीजी ॥५॥ चिन्तामणि सम्यक्त्व - प्रार्थना राग -- कच्छी परभाती तुम्ह दरसण विण मो मन नावा, दह दिस डोलै । दह दिस डोलें रे वाल्हा, दह दिस डोलै । तुम्ह दरसण ०१ रात दिवस न रहै इक रंगै, हींडै हिल्लोलै । तुम्ह० |१| जनम जरा जल लहिर गहिर है, तास न को तोलै । पामै पार न भवदधि भमतां विबुध सु इम बोलै । तुम्ह०१२ | Jain Educationa International ( ७३ ) For Personal and Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७४ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह काम क्रोध बहु मगर मच्छ है, छकीया मद छोले। सनमुख भारत देखि भविकजन, भय लहै मन भोले। तुम्ह०।३। चरण शरण हिव तो चिंतामणि, आयो तुम्ह खोले। सुध समकित दरसण गुण दीजै, 'अमरसिंधुर' बोलै । तुम्ह०।४। इति सम्यक्त्वपदमिदम्। -x+x-- चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन राग-परभाती जय जय जय जय पास जिणंद । जय० । जनम नगर वणारसी योको, कुल इक्खागै कमल दिनंद । जय० ॥१॥ वामादेवी है जसु माता, नायक आससेन नृपनंद । जय० ॥२॥ नील कमल दल काया निरमल, चावो लंछन याकै चरण फुणिंद । जय० ॥३॥ तारक तीन भुवन को जगपति, चरण कमल नमै चौसठ इंद। जय० ॥४॥ भव भव देव सेव मो दीजै, 'अमर' चिंतामणि अधिक आणंद। जय० ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणि पार्श्व -स्तवन चिन्तामणि- पार्श्वनाथ - स्तवन ढाल-सूरती महिना नीं दूर | सूर ||२|| जय जय "चिंतामणि" जग नायक, शिव सुखदाय | धवल कमल - दल सोभा धारी, कोमल काय ॥ सुंदर सूरत मूरत सोहै, अतिस कलाप । प्रणमंता पातिक पुलै, सकल मिटै संताप ॥ १ ॥ त्रिभुवन जग जन तारक, वारक क्रम अरि कंद । रणतिंमर कहौ किम रहे, उदयै पूँनिम चंद ॥ दीठी मुद्रा निद्रा जायै दुख नी अंधकार अलगौ पुलै, जिम उगते सुमता सागर यागर, सुभ गुणमणिनां धम | अलवेसर साहिब छो, अम्हचा श्रतमराम ॥ सहजानंद सरूपी ज्ञानानंदी गेह | सकल भविक जन उपर घरीयै विहड नेह ॥ ३ ॥ हितकारी उपकारी साचा श्री जिनराज । भव जल भविजन तारे, जांगे जँगी जिहाज || महिर घरी मणिधारी, पतित जनां प्रतिपाल । सकल देव सिर सोहै, साचो दीन दयाल ||४|| दास खास छु साचो, राज्यो तुझ गुण रंग | प्रीत रीत बहु बाधी, जिम पोयण ने भृङ्ग ॥ Jain Educationa International ( ७५ ) For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७६ ) बम्बई चिन्तामणिपाश्वनाथादि स्तवन-संग्रह महिर तणो मटको लटको, कर श्री जिन देव । भव भव "अमरसिंधुर" में, दीजै चरण नी सेव ॥५॥ चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन राग-ख्याल श्री चिंतामणि पोस प्रभु जी, सरण तुहारै आयो, मैं वारी जाउँ । सरण.। श्री.। भव अटवी चौगत में भमतां, पुन्यै दरसण पायो । मैं वा.। श्रीचिं.।१। पर उपगारी साचो परखी, चरण कमल चित लायो । मैं वा.। गुणमणि भरियो जाणै दरियो, सगुण साहिब मैं पायो । मैं वा.। श्रीचिं.।। अतुलबली साहिब लहि एहवो, __ मौ मन बहु ललचायो । मैं वा.। महिर लहिर सुनिजर सुपसाय, 'अमर' अधिक सुख पायो । मैं वा.। श्रीचिं.।३। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन । ७७ ) चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन राग--गरबो चिंतामणि चित मैं वसै सहेलडोयां, रात दिवस इक रंग। रेगुण वेलडीयां । प्रीत लगी प्राणेस सँ सहेलडीयां, पलक न छोड संग । रे गुण ॥१॥ साँचो साहिब मांहरो सहेलडीयां, सुखदायक श्रीकार । रेगुण । पर उपगारी परगडो सहेलडीयां, _भव भय भंजण हार । रेगुण ॥२॥ सुमता सागर सलहीयै सहेलडीयां, दयावन्त दातार ।रे गुण । सहिजानंदी साहिबो सहेलडीयां, ___अनुपम एह उदार । रेगुण ॥३॥ ज्ञानानंदी गुण भस्यो सहेलडीयां, आनंद घन अवतार । रेगुण । आप तस्या पर तार वै सहेलडीयां, . शिव सुख दायक सार । रेगुण ॥४॥ चित हित नित जो सेवीयै सहेलड़ीयां, कापै क्रमना कंद । रेगुण । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 5 ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह ए प्रभु ने सुपसायथी सहेलडीयां, "अमर" लहै पाणंद । रेगुण ॥॥ इति श्री चिंतामणि स्तवनम् । चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन सुध समकित सहिनाणी श्रापौ, भव भय मोरा कापो जी। सुध०। श्री चिंतामणि चित हित धरकै, शिव सुख मोहि समापो जी। सुध०१॥ करम अरी मुझ केड लगे है, ता कुँ दुरै तापो जी । सुध० । खास दास मेरो है खासौ, छापो एहरो छापो जी । सुध०।२। कोमल हग से देख कृपा निध, महा भव्य गुण मापोजी । सुधः । "अमरसिंधुर" याचक है अपनो, शिव सुख वेग समापो जी । सुध०३। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन ( ६ ) चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन राग-मल्हार जगदानंद जयोरी "चिंतामणि" | जगदा०। प्रभु की महिर लहिर वरपारित,श्रामम जलध भयो री। चिं.ज.१॥ पाप ताप सब दूर पुलाए, परम सिसरता भयो री। दुर्भिक्ष दुर्गत दूर गमाए, घरम सु धान निपायो री। चिं.ज.२। सुंदर सूरत सूरत निरखी, भाव सु बाव सुहायो री। ऐसी वरषा भई रीअनोपम, 'अमर' आनंद बधायोरी।चिं.ज.३। चिन्तामणि-होरी राग-वसन्त फाग मिंदर में खूब मची होरो, मिन्दर में । राजेसर चिंतामणि राजै, सुर नर नमै ताक कर जोरी। देवल में, देवल में धूम मची होरी । आंकणी ।। सु विवेकी श्रावक मिल आये, दरस करत है कर जोरी।२। मि.। ताल कसाल मृदंग बजावत, फाग राग गावत होरी।३। मि.। शुद्ध श्रद्धा सोई गहिरकशुंभा, पोवत कुमत दिसा तोरी।४। मि.। अनुभव लहरी सुरखी आई, प्रीत प्रमुजी सें तब जोरी शमि.। सुमला केसर रंगे रसिया, खेलत अनुभव से टोरी।६ मि.। भाव समीर नीर निर्मलता, ज्ञान गुलाल भरी होरी ७ मि.। खेल मच्यो देखत है मुनिजन, कोटत है क्रम की डोरी। मि.। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८० ) बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि स्तवन- संग्रह भातम अनुभव सूरज उदयो, मिथ्या मोह गयो दोरी |8| मि.| परम धरम को गुन प्रगटायो, 'अमर' संपद सुख पायोरी । १० मि. । 1. - चिन्तामणि- होरी राग - वसन्त होरी आई रे, अधिक नरनारी सब रंग Jain Educationa International होरी आई रे, चित हित दाई रे । होरी ० | १| रंग सुरंगे, पेखत प्रीत अधिक पाई रे । होरी० |२| घर घर होरी खेल मचत है, सिंघ सकल कै मन भाई रे । होरी ० |३| "चिंतामणि" जी के चरण नमन कुँ, I भाव अधिक हित चित लाई रे । होरी ० |४| मंदिर श्रावै फागण गावै, सुतां श्रवण कुं सुखदाई रे । होरी० |५| चंग वजावै गुण मणि गावे, I तालोटा दै मन भाई रे । होरी० | ६ | दरस सरस करकै सुखदाई, परम प्रीत भविजन पाई रे । होरी० |७| भक्ति भाव केसर में भीना, "अमर" संपदा जिन पाई रे । होरी ० |८| For Personal and Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणि-फाग ८१ ) चिन्तामणि-पाच-फाग राग-वसन्त जिनजी के गुण गावोहारेलाला जिन०, मिंदर मिल आवो । जिन० मि०॥१॥ "चिंतामणि" जी कै चरण कमल सें, नित चित हित सैं लावो रे । मि० जिन॥२॥ सुंदर सूरत मूरत निरखी, परमानन्द सुख पावो रे। मि० जिन०३। तारक है त्रिभुवन पति जिनजी, फाग राग गुण गावो रे । मि० जिन०१४॥ केसर कुकम कुँ छिडकावो, लाल गुलाल उडावो रे । मिं० जिन।। चंग मृदंग ने ताल बजावो, लहिरी पाणंद लावोरे । मि० जिन०।६। भगत जुगत में भावन भावो, पुन्य भंडार भरावो रे। मि० जिन०१७ इण विध होरी ख्याल बनावो, 'अमर' सदा सुख पावो रे। मि० जिन०८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह चिन्तामणि-पाव-स्तवन राग-फाग ए होरी भाव भने प्रायो, ए होरी, ए होरी भाव० । प्रांकणी। सुविवेकी जिन मंदर आये, राग फाग मिल मिल गायो । एहोरी. १॥ ताल कंसाल मृदंग वजत है, श्रवण सुणत अति सुख पायो। एहोरी, त्रिभुवन साहिब तखत विराजे, दरस सरस कर सुख पायो ।एहोरी. । सुन्दर सूरत मूरत निरखी, जिन चरणन मैं चित लायो ।एहोरी. ४॥ "चिंतामण" चित नित मन धरतां, पुन्य प्रघल सनमुख आयो । एहोरी. ॥ सुत संपत ने सुक्ख सवायो, पूजक मल श्रीवक पायो । ए होरी. ।। "अमरसिंधुर" प्रासंद वधायो, होरी अनुभव भल आयो । ए होरी. ७ (लेखन प्रशस्ति-संवत् १८१८ रा मिति चैत्र वदि १ रजोत्सव दिने प्रथम प्रहरे लिखितं वा. अमरसिन्धुर गणि शिष्य पं० रूपचंद वाचनार्थ । श्री मंबुई विंदरे एकादशमी चतुर्मासी कृता, श्री चिंतामणिजी प्रसादात् श्रेयो सदैव भव । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन मंदिर-स्तवन (८३ ) जिन-मंदिर-स्तवन राग-परज खम्भायती [पिचकारण रंग वरसै गोकल में पिच०, मैं जमना में जल भर जात ही ज्यु ज्यु जोषा तरसै गोकल में पिच. ] ए चाल । - आज आनंद धन वरसै मिंदर में, आज श्रानंद० । प्रभुजी की महिर महाधन वरसत, पाप तोप गए तरसै । मिंदर०११। आग सकल संघ को साथ मिल्यो है, भाव मल मन हरसैं । मिंदर०१२। श्रा० त्रिभुवन साहिब तखत विराजे, मुखरो जाको दरसै । मिंदर०।३। आ०। महिरवान महाराज बड़े हैं, पुण्य योग से परसै । मिंदर०।४।प्रा० महानंद सुख दायक लायक, दुख दोहग . हरस्यै । मिंदरशश्रा०) "अमर" सुसंपद सुख को दायक, अहनिश नाम उचरस्यै । मिंदर०६॥ प्रा० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८४ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह जिनराज-स्तवन राग-कल्याण ऐसै जिनराज आज नैन सै निहारे, ऐस० । नहीं या कै कोह लोह मोह मान मारे, वेद के अवेद जाण विषया रस वारे । ऐसै०१॥ करी अरी दूर हरी आठ ही अढारे, जैत लही ते जिनंद उपसम असधारै । ऐसै ०।२। संपदा सुचंग गहि ज्ञान गुण धारै, दीन कै दयाल प्रभु आतम उजवारे । ऐस०३। आस रास पूरो पास केले जन तारे, "अमर" समर एक रंग आतम प्राधारे । ऐसे०१४। _ इति श्री चिंतामणिजी स्तवनम् । . जिन-स्तवन राग-सोरठी रेखतो ( हजार बार सलम चाह से बुलाते थे, ए चाल में) जब हु ते जिणंद चंद इंद मिल पाते थे। इन्द्र मिल आते थे, सहिज सुख पाते थे। जब०।। भक्ति से भरे भराव सीस, भी नमाते थे। जब०।२। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन-स्तवन ( ५ ) देव कोहि हाथ जोडि, हाजरी रहाते थे। समोसरण अति सचंग, रंग से रचाते थे।जव०॥३॥ छत्र तीन शीश छाजै, चामर भी बींझाते थे। तखत वेसै वखतवार, दरस चौ दिखाते थे। जब०१४। चौविह स सिंघ पास, सेव भी कराते थे। देशना सुधा समान, सबन कुं सुनाते थे । जब० ॥ भक्ति भ्रमर अमर संग, गंद्रव गुण गाते थे। तांन सेती तान लाय, वाजा भी बजाते थे। जब०१६। अप्सरा मिलि आणंद, नाच भी नचाते थे। तता थेई थेई थेई, बीछीया बजाते थे। जब०७/ दीन के दयाल नाथ, धरम कुँ दिपाते थे। 'अमर' समर अति आणंद, ज्ञान गुण धरातेथे। जब जिन-स्तवन राग-अडाणी मल्हार नवल लग्यो है अब जिनजी सै नेहरा, तोन लोक के है सिर सेहरा।नवला ॥१॥ विनय विवेक वणे भल सेहरा, महा गुण ज्ञान सो वृंदावनी मेहरा । नवल०॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८६ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह - - निज जांणग सो अनुभव लहिरा, मूलांतम गुण सोभाव देहरा। नवल०॥३॥ विवहार नय सों गरज भई गहिरा, आया है कुगति कुमति का छेहरा । नवल०॥४॥ मिथ्या मत मिट गए तन वहरी, 'अमर' लग्यो तब प्रभु जी से नेहरा । नवल०॥शा जप-माला-गीत राग-बसन्त जीया रे तजीय जंजाला, जपियै जिन गुण जप मालारी।त.। सुरत समाध सो दोरि वनी है, गुण मोतिन सुविशाला। धीरजता कौ मेर धरचो है, असी है अनुभव माला री।।त. तन मन वचन करी इक तान, थिर ओसन दृढ ताला । जाप जपंता इण विधि जीयरी, कटत दुकृत क्रम जालारी।।त.। अनुभव चिदानंद चित हित घर, ग्यान ध्यान गुण माला। 'चिन्तामणि' सुख संपत दायक, जपीयै 'अमर' जप मालारी।३।त.। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनवाणी-गीतम् (८७) । जिनवाणी-गीतम् (पिचकारण रंग वरसै गोकुल में पिचकारण०, ए चाल ) वाणी सुधारस वरसै, प्रभू तेरी वाणी सुधा० । अमृत सम जिन वाणी अनोपम, सुणवै के जीय तरसै । प्रभु तेरी वाणी।। श्रवण सुणत जब सुख बहु उपजत, हेत हीयै बहु हुलसै । प्रभु तेरी वाणी०।२। ए जिन वाणी चित हित धरस्य, ते ते भविजन तरसै । प्रभु तेरी वाणी०३। रोहणीयै पर मत रोचवस्यै, निज आतम गुण गहिस्यै । प्रभु तेरो वाणी०।४। 'अमरसिंधुर' सोलहै अवचल पद, शिव सुंदर सुख वरस्यै। प्रभु तेरी वाणी।। सिद्धाचल-स्तवन (सं० १८६० दिशि यात्रा बम्बई में) धन धन जंबूद्वीप दक्षिण धरारे, दीपै सोरठ देश । सकल सैल गिरराज ने ए सेहरो रे, सेवित सरव सुरेस । __ श्री सिधगिरि ए भावै भेटियै रे।। चित हित अधिक पाणंद: विमलाचल ए विमलातम करे। फेडै दुरमति फंद, श्री सिद्धाचल भावै भेटियै रे।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह सासय तीरथ जग मैं सलही रे, त्रिभवन तिलक समान । पाप संताप तिमिर गण मेटवारे, भल हल उदयो भाण। श्री शत्रुजयगिरि भावै भेटिग रे ।। पूरब निवाणुं वार पधारीया रे, श्रादै श्राद जिणंद । पांच कोटि मुनि सँ पुंडरीक जी, शिव पद लहोजी आणंद। श्री उजलगिरि भावै भेटिौरे।४। नमि विनमि विद्याधर मुनिवरा रे, श्राव्या इण गिरराज । फागुण सुदि दसमी शिवपद लही रे, सारचा आतम काज । श्री कंचन गिरि भावै भेटियै रे।। दस कोडि मुनि से भल दीपता रे, द्रावड में वारखिल्ल । शिव रमणी सासय सुखनी वरी रे, जीतो मोह महल्ल । श्री सुरगिर में भावै भेटिौ रे ।। नमि विनमी राजानी नंदनी रे, चौसठे चित चंग। सिव गिरि ऊपर शिव कमला बरी रे, राची अविहड रंग। श्री सासयगिरि भावै भेटियो रे।। दसरथ सुत दस कोडि से परक्यो रे, रामचंद्र रिखराज । पांडव वीश कोड परगडा रे, पामी शिवपुर पाज । श्री अवचलगिरि भावै भेटिौरे ।। थापचासुख शैलक गणि वरू रे, नव नारद बहु नेह । संब प्रजून करम कोडी हणी रे, गहि शिव सुंदर गेह । __ श्री पुष्पदंत गिरि भावै भेटियै रे।।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सिद्धाचल-स्तवन ( १) इण परि काल अनंतानंत मै रे, साधु अनंती कोडि । श्रीसिधगिरि परि शिव कमला वरी रे, वंदू बेकर जोडि । श्री पुष्पदंतगिरि भावै भेटियै रे॥१०॥ भी सिधगिरि ए परवत सासतो रे, जप जगदाधार । तिलक समो ए सहु तीरथ सिरै रे, सकल गिरा सिणगार। ___ महातीरथ ए मावै भेटिौ रे ।११॥ इण गिरि सनमुख जात्रा आवतां रे, पग पग पंथ प्रमाण । कोड कोड भव नां पातिक पुलै रे, वीर वदै इम वाण । श्री गिरिराज ए भाव भेटिौ रे|१२॥ छहरी पालै जात्रा चे करै रे, भाव सहित भरपूर । जोनी संकट नां जोखम टलै रे, दुःख दोहग जाय दर। श्री सेलगिरिवर भावै भेटिगरे।१३॥ "दिस" जात्राए कीधी दीपती जी, "मंबुईपुर" मन रंग। "अढारनेऊ" आणंद सँ जी, "अमरसिंधुर" चित चंग । ___ महागिरि ए नमीयै नेह सँ रे॥१४॥ इति श्री सिद्धाचल स्तवनम् । ज्ञान-पंचमी-स्तवन श्री जिन शासन नंदन वन समोरे, श्रुत सागर सख कंद । एक मना नित प्रति अाराधता रे, अधिक लह्यौ आनंद । भविजन भावे ज्ञान प्राराधीयैरे।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१० ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह त्रिकरण शुद्ध त्रिकाल श्रवणे, सांभलतां जिण सुख लहै रे। फलय मनोरथ माल, भविजन भावै ज्ञान आराधीयै रे ।। मूल सूत्र ते थुड में साख छै रे, निक्षेपा प्रतिशाख । नय भृङ्गी रंगीली लुयरे , सूत्रारथ पत्र दाख । भवि.।३। जिण सांभलतां सुरनां सुख लहै रे, पुहप तेहिज सु प्रमाण । अनुभव लहिरी ऊन्हस रे, अक्षय सुख फल जाण । भवि.।४। नंदन वन सम पुस्तक परगडारे, श्री जिन शासन सार । पूर्जतां पातिक दृरै पुलै रे, एहिज सबल अाधार । भवि.।। जग जन तारक वारक क्रम तणो रे, भव नो भंजण हार । मोक्ष नगर में मार्ग मलपतारे, एहिज सबल आधार । भवि.।६। कमल सेठ जिम शिव कमला वरी रे, सुणतां श्रवण सिद्धांत । तिम जिनवाणी आणि ने हीयेरे,सुणजोधरिय निभ्रांत । भवि.७। शुभ घृत दीप धूप अक्षत भला रे, फल ने फूल में प्रधान । केसर सें पूजीजें हित धरी रे, 'अमरसिंधुर' सु प्रधान । भवि.८। इति ज्ञान पञ्चमी स्तवनम् । ----xox- - ज्ञान-पंचमी-स्तवन (वाटली निहालु रे बीजा जिन तणी रे, ए ढाल ) आराधो भवि भावै अहनिसै रे, अधिक धरी आणंद । निस वासर ए ज्ञान सु सेवना रे, कलि मैं सुरतरु कंद ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञान-पञ्चमी-स्तवन ( ६१ ) भवियण भाचे ज्ञान आराधीयै रे, त्रिकरण शुद्ध त्रिकाल । ए पुस्तक उपगारी आपणां रे, भांजै भ्रम जंजाल । भवि.।२। गणधर भाष्या सूत्र सिद्धांत ए रे, सुणतां श्रवण सदीव । अरथ एहनां अरिहंत उपदिस्यारे, बोध ल है जिण जीव । भवि.३। नयसाते निक्षेपो च्यार छ रे, नवतत्व जीवाजीव । करम अोठ नां कारण पिण कह्या रे, उत्तर भेद अतीव । भवि.।४। ए श्रत सागर नागर नित नमो रे, पूजी जै घर प्रेम । केशर पुष्प दीप धूपै करी रै, नैवेद्य फल धर नेम । भविश गुरु मुख थी ज्ञानामृत पीवतां रे, भाजै कोड कलेस । रोहणीयै जिम गाथा इक सुणोरे,शिवपद लह्यो सुविशेष । भवि.६। अाज अछ श्रत ज्ञान सिरोमणि रे, सकल जीव सुखकार । ज्ञान पंचमी ज्ञान आराधवा रे, 'अमरसिधुर' आधार। भवि. ७) इति श्री ज्ञानपञ्चमी स्वाध्याय । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह दादा-गुरु-गीतानि जिनदत्तसूरि-गीत राग-बसन्त "श्रीजिनदत्तमरि" सुख दायक, लायक दीजै साता ।श्री.। रात दीह अहिनिश इक रंग, गुण मणि तोरा गाता श्री.।१। अरियण कंद उदालीयै साहिब, अलगी हरो जी असाता । "वल्लभ" ना पटधार वडालो, पालौ पुत्र ज्यं माता । श्री.।२। महिरवान हिव महिर निजर कर, तुम्ह हिज मात नै त्राता। 'अमरसिंधुर' वीनति अवधारी, दीजै वंछित दाता । श्री.३। दादा श्री जिनकुशलसूरिजी रो छंद (र० सं० १८६१ बम्बई ) (दूहा) विमल वाहिनी वर दीय, महिर लहिर कर मात । गच्छनायक श्री "कुशलगुरु", आंखु जस अवदात ॥१॥ "चंद" पटोधर चंदकुल, प्रगव्यो निमचंद । साचा गुरु देखी सकज, सेवै मुनिजन घुम्द ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दादा श्रीजिनकुशलसूरि छन्द ( ३ ) "तेरे सैंतीसै" समै, अवतरीया गुरु आप। सैंतालै संयम ग्रयो, पहुवी वध्यौ प्रताप ।३। स्वर मंत्र "सचितरे", पाम्यौ पुन्य पसाय । तखत वखत दीपावियो, राजे "खरतरराय" ।४। सकल सरि सिर सेहरो, मणधारी मछराल । मविजन प्रतिबोधी भला, दातो दीन दयाल ।। सुर सुख लह्या "नयासीयो", "देरावर" पुर देव । साची सकलाई निरख, सुरनर सारै सेव ।६। कलियुग मैं चढती कला, निरखी ने नरनार । थान थांन थिर थापना, पूजै विविध प्रकार ७ (छन्द-मोती दाम ) पूजो गुरु पाय सदा घर प्रेम, नमौ पट मास धरी – नेम । आराध्यां आवै श्री गुरुराज, कृपानिध कोड सुधारै काज।। लहै सुकुलीणी सदर नार, भली सुत जोड लहै श्रीकार। लाखीणी लच्छ वधै भंडार, कृपानिधन से जौ करतार ।। श्राधा ने आंख दीयै पंगु पाय, सूधै मन सेयै जो गुरु पाय । तृषातुर देखी पावै तोय, हठीलो साहिब हाजर होय ।१०। तरी बुडती आणै तोर, न होय कदापि त्यां जोखम नीर । दोषी नर देखी टाल दूर, चिता नैं भांज करै चकचूर ।११। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६४ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह टालै वध बंधन कष्ट करूर, निरमल तास वधै मुख नूर । साचोगुरु धींगड मल्ल सधीर, चोखो जस वास वधारै चीर।१२। गमाडै रोग महागुरु राय, पूजे जे पनिम पूनिम पाय । करि अरि केहर दुठ कुद्धाल, महाभय दूर हरै अोल माल ।१३। खलां दल हुंत उधारयो आय, राठोड सुजाण बीकाण' नाराय। 'सांगा' में पुत्र दीयो श्रीकार, कथं 'क्रमचंद' कुलै आधार ।१४। मलेच्छे द्वेषकीयो 'मुलताण', मोटौ 'जिनचंद' नोराख्योमांन । 'मोदी ने पूत दीयो मन रंग,चोखी चित चाह पूरै गुरु चंग।१। अनम्मी माने आण अखंड, पुलायी जायै पाप प्रचंड । महारीमवार दातार मुणिंद, चावो चिहुँ खंड पटोधर चंद।१६। कहुँ इक जीह कितो अवदात, इला मझ तुम्ह तणी अखीयात । साचो गुरु राय सादुलोसींह,अहो अतुलीबल राज अबीह ।१७। छोरू निज जाणी ने छत्राल, तुम्हें महाराज करो प्रतपाल । अम्हीणें तुझ तणों ओधार, जपंता जाप करो जै कार ।१८। अम्हीणां कोड सुधारो काज, नेहे धर नेह गरीब निवाज । साची इक तार तुम्हारो सांम, अम्हीणों त हिज प्रातम राम ।१६। साचो हुँ दास तुम्हारो खास, सदा सुख संपद दीजै रोस । करूँ अरदास कहुँ कर जोडि, कृपानिध परो वंछित कोडि।२०। ॥ कलश ॥ परो वंछित कोड सुगुरु श्री "कुशलसुरिंदा"। महिर करो महाराज अधिक मुज देह आणंदा ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MA दादा श्रीजिनकुशलसूरि गीत ( ५ ) दायक वंछित दांन दुति नहिं अवरन देवा । अलवेसर आधार सारीमै निस दिन सेवा ।। "अढार इकाणु" पासू, "मंबुई" विंदर मनरली। कुसलेस सुगुरु सुपसायथी, 'अमरसिंधुर' आशा फली।२१। इति श्री दादा जिन कुशलसूरिजी रो छन्द । जिनकुशलसूरि गीत राग-जयत श्री जुगवर जग जयो, सेवे श्री कुशल सुरिंद । जु० ॥१॥ श्रतसागर महिमा तिलो, एतो सुमतो रस नो कंद । पर उपगारी परगड़ौ, एतो खरतरगच्छ नो इंद । जु०।२। ठाम ठाम थिर थापना, वारी नमय सदा नर वृन्द । पद युग में प्रेम सुं, गावै भल गुण छंद । जु० ॥३॥ आराध्यां आवै मुदा वारी, फेड़े दोहग फंद । सुख संपद दै सेवकां वारी, अधिक धरी आणंद । जु०१४ देव न दूजो गुरु समो, वारी तेजे जांणि दिणंद । 'अमरसिंधुर' श्रोलग करै, वारी चंद्रोपम कुलचंद । जु०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह जिनकुशलसूरि गीत राग-काग जय बोलो कुशल सुरीसर की, जय बोलो। नरनारी मिल फाग राग में, गुण गावो निस दिन हरखी। जय० ॥१॥ जैतसिरी माता भल जायो, सूरत देव कँवर सरखी । जय० ॥२॥ मंत्री जेल्हागर कुल मंडण, गुण मणि ग्रह्या जिण आकरषी । जय० ॥३॥ वरस अढार में जिण व्रत लीनौ, हित धर के मन में हरखी । जय० ॥४॥ चंद पटोधर ए चिरजीवो, बलिहारी राजेसर की। जय० ॥ भृमंडल भविजन प्रतिबोधे, वाणि सुधारस धन वरषी । जय० ॥६॥ तेर नयासी वरषे ततखिण, सुरपति मघवा दुति सहरषी । जय०७। 'अमरसिंधुर' ए अनुपम साहिब, नमो सदा पद युग निरखी । जय० ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनकुशलसूरि-गीत सरत मंडप जिनकुशलसूरि गीत माज आनंद भयो, सुगुरु मेरे आज आनंद भयो। मणधारी गुरु महिर पसाग, दोहग दूर गयो। सु. आज.१॥ "सूरत" विंदर सोहै मिंदर, प्रादू एह जयो।सु.आज.। सहु नर नारी चित हित धारी, दरस सरस उमह्यो।सु. आज.२॥ पद युग पूजे तसु अघ धूज, लायक दरस लह्यो । सु. प्राज.। विरुद वडालो सुगुरु छत्रालो, जग त्रय सुजस जयो। सु. भाज.३। सुप्रसन होवै सुनिजर जोवे, तसु दुख दूर गयो। सु. आज.। होलत दाता तिम सुख साता, 'अमर' आनंद भयो।सु. श्राज.४। 'कुशल' कुशल गुरु महिर पसाग, दोहग दुक्ख दह्यो।स.आज.! जे गुरु ध्यावै वंछित पावै, ए जस आद जयो । सु.पाज.श जिनकुशलसूरि गीत सुगुरु कुशलसुरिंद सेवो, सुगुरु०।। अधिक धर उछरंग अहि निस, नमै जास नरिंद । सेवो.।। सकल सरिसर मुकुट सम, देव मझ जिम इंद । चंद नों पटधार चावो, दीपै तेज दिणंद । सेवो.।२। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 45 ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह अाराधीया गुरु तुरत आवै, वरदीयै सुखवृन्द । कष्ट चूरै विधन दुरै, कलै सुरतरु कंद । सेवो.॥३ वर पुत्र संपद कलत्र दायिक, गच्छ खरतर इंद । सभसी संपद दीयै मुनिजन, प्रसिद्ध परमाणंद । सेवो.।४। भूत प्रेत पिचाश नां भय, वले तसकर वृन्द । नाम मंत्र निकट नावै, दफय हुए सड दंद । सेवो.।। सेवक भणो दै सुख संपद, महिर धरीय मुणिंद । सकल सुख दायिक सुगुरु, ए चवै मुनि इम चंद । सेवो.।६। जिनकुशलसूरि गीत राग-रेखता सगुरु ते देव साचा है, रिदै तुझ ध्यान राता है। दुनी मैं देव बहु देखे, गिणंता ज्ञान नहि लेखे ॥१॥ चावो पटधार तु चंदा, इलायै अवतस्यो इंदा । नमै तो घरण नर नारी, "छाजेडा" वंश छत्र धारी ॥२॥ मोटो गुरुदेव मणधारी, वारी जाउँ तोहि बलिहारी । 'कुशल' गुरु सकल सुख कीजै, संपदा 'अमर' मोहि दीजै ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनकुशल सूरि-गीत ( ६ ) जिनकुशलसूरि गीत राग-परमाती महिरवान महाराज बडे हैं, "श्रीजिकुशल सरिंदा" । मौजी साहिव है मणिधारी, परतिख पूनिम चंदा ।महिर.११ सकलाई साची जग निरखी, नमण करै नर वृन्दा। पूजक जननां वंछित पूरै, कल मझ सुरतरु कंदा । महिर.।२। अपणां जांणी ने अलवेसर, समपीजै सुख वृन्दा। सुनिजर छत्र छांह कर सदगुरु, 'अमर' वधैं श्रानंद। । महिर.३। जिनकुशलसूरि गीत राग बसन्त मेरे सदगुरु कुशल सुरीसर जूक तो, चरण कमल चित लावो। चरण कमल चित लावो, सुगुरुजी के चरण कमल चित लावो। सदगुरु कुशल सूरोसर जूकै, मैं चरण कमल चित लावो । प्रहसम मिल में पूज रचायौ तो, भावन मन शुध भावो। मेरे सद.३१॥ परसिध अष्ट सम्पदा पावो, नव निध गेह बधावो । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०० ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह सकजा सुत सुन्दर वर नारी, लीला लच्छ लहानो । मेरे सद.।२। आराध्यां गुरु ततखिण आवो तो, दरस सरस दरसावो। महिर करो साहिब अब मेरा तो, आणंद अधिक बधाो । मेरे सद.१३॥ साता दाता हो सदगुरुजी, दिन दिन चढतो दावो। "अमरसिंधुर" की पासा पूरो, तो परम सुजस जग पावो । मेरे सद.४१ -x+x जिनकुशलसूरि गीत राग-बसन्त श्री जिनकुशल सुरिंदा रे, पूजौ परमाणंदा । श्रीजिन.। श्री खरतरगच्छ नायक लायक, चंद पटोधर चंदा रे। पू०११। श्री। आराध्या गुरु ततखिण आवै, सनिजर धरिय सुरिदा रे । पू०।२। श्री। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनकुशलसूरि-गीत ( १०१ ) संकट तिमिर हरेवा साहिब, दीपत तेज दिणंदा रे । पू०।३। श्री। चिंता चूरै परता पूरै, वर दै वंछित वृन्दा रे। पू०।४। श्री। सुत संपत सुंदर सुख दायक, ___ कल मझ सुरतरु कंदा रे । पू०।। श्री। अपणा दास जौणी अलवेसर, दूर हरौ दुख दंदा रे । पू०।६। श्री। 'अमर' समर श्री सदगुरु साचौ, अहनिशि होय आणंदा रे। पू०७। श्री०। - - - - जिनकुशलसूरि गीत राग-बसन्त श्री जिनकुशल सरीसर साहिब, चंद सुरिंद पटधारी।। विरुद बडाला श्रवण सुणी नै, वारि जाऊँ वोर हजारी ११३ श्री.। अपणा जाणी नै अलवेसर, मत मूको बोसारी।। अरियण जण ना कंद निकंदौ, ज्य का रूख कुठारी ।२। श्री.। सख संपत दीजै गुरु मेरे, हेत हियै बहु धारी। 'अमर' तणी आशा पूरीज, सनिजर निजर निहारी ।। श्री.। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०२) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह जिनकुशलसूरि-होरी ___ राग-पूरवी वसन्त असे "कुशल" सुरिंद नीके रंग, मंडप मझ होरी खेल मचाये । औसे। ताल कंसाल मृदंग मनोहर, वाजिन चंग बजाए ॥१॥असे मिल मिल सुश्रावक मुविवेकी, गहिर वसंत गवाए ॥ २ ॥असे। चंदन चोवा अवर अरगजा, छिड़कत भक्ति सुभाए ॥ ३ ॥ असे।। घटा मंडाणी जिम श्रावण धन, अबीर गुलाल उडाए ॥४॥से। हस हस छंदै देत तरोग, आणंद अंग न माए ॥ ५ ॥ असे मिल मिल टोरी खेलत होरी, भवि गुरु भक्ति भराए ॥६॥असे। 'अमरसिंधुर' चित हित उछरंगे, फाग वसन्त सहाए ॥ ७॥ असे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनकुशलसूरि-गीत ( १०३ ) जिनकुशलसूरि-गीत राग-वसन्त कुशल सूरीसर ध्यावो रे, परमानंद पावो । कुशल ०। इल उदयो सुरतरु अवतारी, वारी जाऊँ बार हजारी रे। पर.१। परचा साचा जग में पेखी, नमय सदा नर नारी रे। पर.२॥ जल दातार विरुद जग चावौ, दिन २ चढ़ता दावो रे । पर.३। भविजन मिलनै भावना भावौ, गहिर सरे गुण गावोरे। पर.४। 'अमर' सेवक नै अपणो जाणी, सुख संपदा वधावो रे । पर.१ जिनमहेन्द्रसूरि-गहूँली देसी गरवानी धन "सूरत" नगर सचंग, राजै तिहां सिंघ सरंग। सध समकित गण जस संग, गोरी मिल 'गोहली' नित गावै। मणि मोतीय थाल वधावै । गोरा० ॥१॥ वड वखती तखत विराजै, छति अधिकी अोपम छाजै। भावठ भय रै भाजै । गोरी० ॥२॥ "महेन्द्र" सूरि महाराजा, वाजै जस अवचल जस वाजा। राजै "खरतर" गछ राजा । गोरी० ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०४ ) बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह सोलह शृङ्गार सुचंगै । भंगे । गोरी० ॥ ४ ॥ 1 मृग नयणी मिल मन रंगै, सझि भोली मिल भाव अति चित हित अधिक आणंदें, विनयै आयो गुरु वंदें । छिन में पातिक दल छंदें । गोरी ० ॥ ५ ॥ गोंडली कर मंगल गावै, निमुंछण करि मल भावें । वंदण करि वेग वधावें । गोरी० ॥ ६ ॥ 1 मुख मुलकै मधुरी वांगी, भ्रमलाम दीयै हित आंणी । पट वरग सुगुरु गुण खांणी । गोरी० ॥ ७ ॥ कोडे युग राज स कीजै, सहु सिंघ आपण जांखोजे । सीस 'अमर' एम दीजै । गोरी० ॥ ८ ॥ इती भी पदम् । जिनमहेन्द्रसूरि-गहूंली ( म्हनुणु रे पियारा हो जिनजी ए चाल मैं छै ) वड वखती साहिब, वहिला तखत पधारो । वहिला० । ए अरज सुगुरु श्रवधारो हो । वड० |१| सूर उदय थई वेला, शिकाय में थईय अबेला हो । वड० |२| काका, भल सदगुरु वंदण भाव हो । वड ०। ३ । सदायक, गंद्रक मिलनें गुण गावै हो । वड० | ४ | Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनमहेन्द्रसूरि-गहूँली ( १०५) - - दरसण वहिलो दीजै, करुणाकर सुनिजर कीजै हो । वड ०।। देशना वहिली दीजै, राजेसर सिंघ ज्युं रीझै हो । वड०।६। मीठी श्री मुख वाणी, साकर ने द्राख समाणी हो । वड ०७/ "महिंद्रसरि" महाराजा, वाजै जस अवचल वाना हो । वड०८। 'अमर' आसीस सदाई, वाधै नित रंग वधाई हो । वड०।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०६ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह भैरव-गीतानि भैरव-मतवाला-गीत राग-फाग नित नमियै "भैरव" मतवाला, नित नमियै । समकित अमृत पान के रसिये, सोहै अरध चंद्र भाला । नित० ॥१॥ कालौ गोरौ महिमा धारी, ____ मरु "मंडोवर" गढ वाला। नित० ॥२॥ उदय करीजें वीर तखत नौ, "खरतरगच्छ" के रखवाला। नित०॥३॥ तेल सिन्दूर खोल तन सोहै, कंठ धरै पुहप की माला । नित० ॥४॥ सेवक जन पर करुणा कीजै, पूरो वंछित ततकाला । नित०॥५॥ वर त्रिशूल डमरू कर शोभित, तुम दुरजन के मद गाला । नित० ॥६॥ कलियुग में अवतार धरचौ है, तुम संकर को चर ताला । नित० ॥७॥ क० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भैरव-गीतानि ( १०७) "गोवरधन" पर महिर निजर कर, सुणियै एह अरज माला । नित०॥८॥ मुझे सहाय करी दुख हरिगै, माता चामुन्ड के बालो । नित०॥४॥ भैरव-गीत राग-फाग ( दे गयौ गिरधारी गारी, ए चाल, राग-काफी में वसंत ) आयो री "भैरव" भूपाला, ए तो पूजक जन प्रतिपाला रो। भै./प्रा.। . एतो मद छकिया मतवाला री, भैरव भूपाला ।भै. श्रा.। शत्र नीर सीर के शोषक, काला महा कंकाला । भगत जनुं की भीर पधारत, दायक सुर करसाला री।।भै.। आ.। मौजी मणधारी मछराला, चावा चामुंड वाला । डमरूडाक घूघर घमकाला, चालै इम चर ताला री।३। भै.। आ.। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०८ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह राका पूनिम सम मुख राजे, अधचंद्र सग भालो। मस्तक मुकुट राजत फणिधर को, एतोजागतीजोत जटालोरी।४। भै.। प्रा.। उर विशाल वक्षस्थल अनुपम, कंठ फबै फूल माला । छवि अधिकी दूणी दुति छाजै, एतो वरदायक विगताला री।शमै.। आ.। संघ सकल के सुख के दायक, ___ "खरतरगच्छ" के प्रतिपाला। 'अमरसिंधुर' वीनत अवधारो, परियण कंद उदाला री।६। भै.।प्रा. भैरव-होरी राग-फाग भैरव भूपाल रमै होरी, भैरवजी. भैरव भूपाल । खेतल भूपाल खेलै होरी, खेतलजी खेतल भूपाल खेले होरी। वांवन वीरां मांहि विराजे, चौसठ जोगणि की टोरी ।भैरव०।१। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भैरव-गीतानि ( १०६) मस्तक वाकै मुगट विराजै, कांनै कुंडल की जोरी । भैरव०।२। पग पायजेभ घूघर कडि घमकै, फिरती देत भमर फेरी । भैरव०।३। वीर मिले वाजिन वजावै, जोगणि फाग गावत गौरी । भैरव०१४। वीण वजावे नृत्य नचावै, हस हसकै गाढत होरी । भैरव०। ५ । लाल गुलाल अबीर उडावत, केसर कुंकम मझ घोरी । भैरव०।६। चौमुज धारी है अवतारी, चितरो लेत सबन चोरी । भैरव०।७। बघरयालो मदमत वालो, कापत संकट की कोरी । भैरव०।८। स्यांम भैरव है सुख को दायक, सुप्रसन हुय दै सुत जोरी । भैरव०।।। आराध्यां ए ततखिण आवै, धणी हमारो ध्रम धोरी। भैरव०॥१०॥ "चिंतामणिजी" की चरण की सेवा, रात दिवस करै कर जोरी । भैरव०११॥ सेवक कुँ सुख संपत दायिक, "अमर" पाणंद दीयै सुख जोरी। भैरव०।१२। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११० ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह पद-संग्रह समकित-गीत राग-फाग सुध समकित सदगुरु दरसायो, सुध समकित० । मिथ्या तिमर हरन के कारण, ज्ञानामृत तिहां निपजायो । सुध०।१। वचन सलाका कर अंजवायो, हृदय नयण तब विकसायो । सुध० ॥२॥ तीन तत्व की ललित त्रिभंगी, प्रगट पणे गुण परसायो । सुध०।३। देव सेव "चिंतामणि" चित धर, सुगुरु साधु गुरु मन भायो । सुध०।४। दया मूल ध्रम कुं चित धरता, __भव भय निकट नहीं आयो । सुध० ।५। ज्ञान विवेक विनय चित धरतां, तप जप ध्यान धरम आयो । सुध०।६। क्रम कोरी की दोरी तोरी, केवल गुण तब भल पायो । सुध०।७। रमणी रसीया शिवपुर वसीयो, अखय 'अमर' पद मन भायो । सुध०।८। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समकित - गीत समकित गीत राग - कैरबो पाया पाया पाया वे, सुगुण भवि समकित पाया वे । सुगुण नर. । दोष अदार रहित नित दीपै, देव निरंजन ध्याया वे । सुगुण ० | १ | दश विधि साधु धर्म के दीपक, ( १११ ) धन्य गुरु नाम धराया वे । सगुण ० | २ | शील सन्नाह घरै जै साचो, उपसम अनुभव लाया वे । सुगुण ० १३ | ज्ञान विवेक विनय गुण राचे, दया धर्म चित लाया वे । सगुण ० |४| ऐसो समकित चित हित दायिक, निस वासर मन भाया वे । सुगुख० | ५| सुध समकित सैजे जन राचे, तेह "अमर" पद पाया वे । सुगुण० | ६ | 00 Jain Educationa International सत - दृढता-गीत राग - अंगलै री, रागणी खम्भायती परज बरे सत मत छोडि, सुगुण नर सुगरे । सत मत० । सत राखण कुं नीर नींच घर, हरचंद राय भरे रे | सत० | १ | For Personal and Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११२ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह सतवादी भल भूप शिरोमणि, पांडव वन विचरै रे । सत०।२। नल राजा दवदंती नारी, वर वन वास वरै रे । सत०३। सत सीता यै जो मन धरियो, अनल सैनीर करै रे । सत०।४। सत संसारे जग तस लहीजै, 'अमर' आणंद धरै रे ।सत । शील-परस्त्रीसंग त्याग-गीत राग-वसन्त न कर नाह परनार तणौ संग, कह्यौ हमारी कर रे, हां नहीं रेशन कर। निज कुल में क्युं कलंक लगावै, क्यु भटकत घर घर रे, हां नहीं रे।। न कर। निस वासर में नींद न श्रावत, पर घर में रहै डर रे, हां नहीं रे।३। न कर राज में दंडे लोक में भंडे, अपजस नौ ए घर रे, हां नहीं रे।४। न कर। धान पाणी नी होय न रुचता, नीच कहावै नर रे, हां नहीं रेशन कर। धन लुटै छुटै बल वीरज, पग पग ताकै अरि रे, हां नहीं रे।६। न कर। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देरांणी-जेठाणी-झगरा (११३ ) शीलवंत हुय सिंह सरीखा, ___कुण गंजे तसु नर रे, हां नहीं रे ।७। न कर। अँठो भोजन किम आचरिौं, वमित वं कूकर रे, हां नहीं रे।।न कर। सगण सनाह निज सीख हियै धर, 'अमर' शील गण धर रे, हां नहीं रेहान कर। देराणी-जेठाणी-झगरा देराणी जेठांणी दोय बहु झगरी री। डरपाई तौहि नाहिं डरी री, देरांणी जेठाणी दोय अजब लरीरी।। दे। देराणी दिल की है झूठी, __ मोहन मॅदरी तेन हरी री।२। दे। १. मोहनी राणी कुमता अने विवेक राजा नी राणी सुमता, एतले कुमता देराणी अने सुमता जेठाणी ए दोयां रै झगड़ी लागौ एतले पर परणते कुमता ते कर्म सत्ता मूल गुण नै पाछी ठेले छ द्रव्य क्रिया थी डरावै तौहि न डरै, एतले द्रव्य क्रिया करतां कुमत पाली न पड़े। २. देराणी ते कुमत ते कर्म परिणती छै, ते झूठी विचारणा छै, ते भाव क्रिया मन प्रमोद करै एहवी भाव क्रिया उदै नहीं प्रावण देवै कपटी लीधी मुंधड़ी। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११४ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह जुलम कियो जेठाणी जाण्यो, नख सिख में तब रोष भरी री।३। दे। नेउर उनको उन छिन लीनो, सुरंग चूनरीया तिण फारी री । ४ ।। हार हिया को तिण हर लीनो, देराणी तब रोस भरी री । ५। दे। पिउ नै जाय पुकारण लागी, जेठ श्रवण सुणि चित्त धरी री । ६ । दे। भोजाई से देवर लरीयौ, ऐसी वार्फ खबर परी री।७। दे। ३. एहवौ अन्याय जाणी सुमता जेठाणायै वितर्क ते तरङ्ग भाव लहिरी मूल गुण विचारि ने। ४. विनय मिथ्यात्त्व पगा नो गुण तद्रूपी नेउर खोस लीणों एतले ४ मिथ्यात्व में झोले छै। तिण देराणीय जेठाणी नी श्रावरण रूप ओढणी फाड़ नांखी, तिवार। ५. देराणी कुमता रौ विनय मिथ्यात्त्व तेहनो विनयरूप मिथ्याप तेहनो कोमलता रूपी गुण हार ते ले लीधो । तिवार कुमता देरांणी रोस भरांणी एतले कोमलता गई कठोर पणो आयो एतले तीव्र घणै मिथ्यात्त्व नै उदयै विशेष कुमत मोहाशक्त थई। ६. तिषारै विवेक राजाये आपणो येष्टता मूल गुण मन में धरी ने। ७. सुमता से मोह झगड़ती जाण तेहनी खबर ज्ञान गुणे थी जाणि में। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देरांणी-जेठाणी-झगरा निज बंधव त्रिय निठुरा जाणी, उन पर ममता कछु न धरी री | ८ | दे० । दोनां कुं देवटो दीनों, ऊभा न राख्या एक घरी री | ६ | दे० । अपनों राज अमरपुर कीनों, लखमी लीला सजस वरी री | १० | दे० । पिउ प्यारी बहु प्रीत बढाणी, मुनिजन ताकी सोह करी री | ११ | दे० । -✪✪ निद्रा त्याग गीत राग --- फाग ( ११५ ) नींदड़ली को संग नहीं कीजै, नींदड़ली, नींदडली को संग०| रंग में भंग करत है यारो, छिटक छेह याकुं दीजै । नींदड़ ० | १ | Jain Educationa International 5. मोह अनाद काल नों सगपण भाईपणा नो मित्राचार न गिरयौ, ति से स्नेह न गिरयौ ते मोहनी कुमति स्त्री समेत देही थी मोह कुमता काढी देसवटो ते पर परत परही काढी १ घड़ी पिग्ण न राख्या | ६- १०. निज गुण चतुष्टयी धार में अमर शिवनगरे वासौ । बस्यौ राज मुक्ति नगरे की धौ । अनन्त ज्ञान लक्ष्मी तद्रूपी जस चेतन राय विवेक सहित सुमत स्त्री संघाते शिवनगर नौ राज करै । For Personal and Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११६ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह ज्ञान ध्यान की है या वैरण, कबहु संग या को नहु कीजै। नींदड़०।२। पांच प्रमाद बडे है भाई, वाको भी बेसास नहीं कीजै । नींदड़०।३। ध्रम धन हरण करत प्रीतडली, कपटी को क्या संग कीजै । नींदड़० ।। चोर मुसत है लोक हसत है, नींदड़ली कहो किम कीजै । नींदड़ ।। नींद निवारो धर्म संभारो, छिनमे करम अरी छीजै । नींदड़०।६। नव पद ध्यावो नव निधि पावो __ लायक लीला ज्यं लीजे । नींदड़० ७) "चिंतामणिजी" कै चरण कमल की, 'अमर' सेव मन सुध कीजै । नींदड़० ।। अमल-नशा-गीत श्रमली नैं अमल भलौ आयो। पटणी पूरब घर निपजायो, सो अपणे नगरै आयो । अ.१॥ चटी देख के कुंत करायो, साहूकारे लिवरायो । अ.॥२॥ चोखी देखी भाव करायो, आरोग्यां ततखिण आयो। अ.॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भंग नशा-गीत अमली अपणै घर मझलायो,गलणी चाढने सोझायो। पा४। केसर वरणौ जांण कसंभो, सो खोभा भर भर पायो । अ.१५॥ साकर देकै खार भंजायो, इतरै अमल तुरत आयो । अ.।६। दूणो पोरस देह दिपायो, भोग जोग मैं सुख पायो ।.७/ 'अमल करै सिरदार सवायो,जय लखमीवर घर आयो।अ. भांग नशा-गीत राग-फागः भांगडली आज भली आई, भांगडली भां० । पाहडी भांग वखाणत पुरजन, सो पोठां भर भर आई। भां.। १। भला पान वटदार बिराजै, केसर वरणी कहवाई । भा.।२। चोखी जाण चतुरघर लाई, स्याणे नर मिल सांझाई । भां.। ३। भलै ठाम लेनै भिजवाई, साफी घात के निचुवाई। मां.। ४ । घात कुंडी मैं घोट घुमाई, मांहै मिरचां ठेलाई। मां.। ५। छयल मिलि में तुरत छणाई, रंग सुरंग तिहां दिवराई। मां.।६। सौखी साई नाम न भाई, प्याला भर भर में पाई। भां. ७ ॥ घडी दोय से आई धाई, दिल खुस आंखें दरसाई। मां.। ८। रंग तरंग लहर जब आई, मन मस्ताने भए भाई।भा.।। बे परवाही मगन तन मन मैं, ऐसी भांग अजब आई । भां.।१०। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११८ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह अध्यात्म-भंग राग-वसन्त भांगडली अाज भली आई, भां० । विनय विवेक सो वसंत वणी है, सरधा भूम है सुखदाई । भां०।१। तप भेदादि बहुत है तरवर, अनुभव फल फूलन छाई । भां०।२। शुच संतोष नय जलपूरित है, भविक नीव मिल मिल आई । भा०।३। फरुणा रस की कुंडी कीनी, भाव भांगडली मझ ठाई । मा०।४। ज्ञान घोटे से घात घुमाई, मन दृढता मिरचां लाई । भा०।५। विविध भेद नय चीर छणाई, प्रेम पियाले भर पाई। भां०।६। शुक्ल ध्यान की सुरखी आई, मार्नु जाण मफर खाई । भां०।७१ समकित जिन मंदिर में बैठे, मूल सुगुण प्रतमा ठाई । भां०।८। तन मन से इकतारी लाई, रंग तरंग गुण मणि गाई । भा० । । । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीव प्रबोध प्रभाती गीत मस्ताने, अजय आई। भ० | १० | बेपरवाही भए ऐसी भांग निहचें मंदिर बैठे मंदिर बैठे निरखें, "अमर सिंधुर" Jain Educationa International पदवी पाई। मां० | ११ | | -● *Djpunj जीव प्रबोध- प्रभाती राग - परभाती भोर भयो सुणि प्रांणी हो, भविजन भोर० मिथ्यामति निस दूर निवारी, दश दिश जोति भराणी हो । भविजन भोर० ॥ १ ॥ जाग जाग भ्रम माग लाग हिव, उपसम रस मन आणी । पुन्य संयोगे नर भव पायो, गुरु मुख वाट पिछाणी हो । भविजन भोर० ||२|| तीन तत्व मन सुध ओरोधो, मोक्ष मारग निसांणी । दान दया तप जप खप करतां, अजर 'अमर' हुय प्राणी हो । भविजन भार० ॥३॥ ( ११६ ) नींद-गीत राग- परज ऐसे सोए नींद में आणंद भरी री, ऐसे० आनंद भरी री । मोहराय के महाराज मैं, ऐसे० श्राणंद० । श्रांकणी | | For Personal and Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२० ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह चौगत चतुर ढोलीय पोटे, प्रेम पथरणां लाया री। अप मारग प्रोसीसा भाया,तब तन मन सुख पाया हारी।ऐ.।आ.। लोभ लहर के जहर कह रहै, ता निद्रा भरमाया री। कुमता नार लगी है केडे, वासै चित ललचाया हारी।ऐ.प्रा./२। काम क्रोध वाकै है संगी, मिथ्या मान बढाया री। रागद्वष दो मीत मिले है, जाणे मा का जाया हारी।ऐ. बा.३। चतुर न चेतै जोलुं मनमैं, तो लु नींद हराया री। 'अमर' मूल आतम गुण जाणे, चेतै चेतन राया होरी।ऐ.। आ.४| इति । वैराग्य-पद जगत मै को केहनौ नहीं जी, जीव विचारी ने जोय । मात पिता सुत कामिनी जी, थिर काहूकै न होय । ज०।। साठ सहिस सुत सगरनां जी, सुलसानां सुत बत्तीस । परते पहुंता सही जी, राम जं जगदीस । ज०।२। जनक तजी जिन रक्षतै जी, परगत कीध प्रयाण । दुरयोधन दुरगत गयो जी, मात पिता नव रह्यौ मांन । ज०॥३॥ पंचम करम प्रबंधता जी, मोक्षता ए मन धार । धीरता ए मन धारज्यो जो, एह संसार असार । ज०।४। धरम इक सार संसार में जी, सद्गत सुक्ख दातार । धरम करो भवजल तरो जी, 'अमर' जग एह आधार । ज श इति पदम् । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकत्व - पद एकत्व-पद तु नहि किसकी को नहि तेरो, श्रवधू आप इकेला है। चौगत केरी चहुट मची है, हटवाडे का मेला है | तु ० |१| रामत नट नांगर ज्यु' राजे, खिरा इक केरा खेला है। सांझ सराहि भरीसी दोस, ग्रह सम खाली झेला है | तु ० |२| किसका सुत पति सुन्दर नारी, किसका गुरुनें चेला है । चेत चेत रे 'अमर' भमर तु, आतम राम इकेला है | तु ० |३| XX----- Jain Educationa International आत्म-प्रबोध राग - जंगलो ऐसे कही जाय कैसे, काया माया मेरी सही रे | ऐसै.। का। १ । काया माया कारमी, पीपल जेहो पान चंचल जोबन थाउखो, जेहो संध्या वान | ऐसे । का. । २ । पर पुद्गल काया रची, जीव द्रव्य कै योग । ( १२१ ) भावातम पुद्गल मिली, भोगवते हैं भोग । ऐसे । का. | ३ | करता चेतन करम को, जाणत है सब कोई । होइ । ऐसै.। का. । ४ । I जो जैसी प्राप्त करै, भुक्ता तै सो करता कर्म वसै परै, निज गुण दृष्टि न पर परणतसै परणमै अनुभव धंधे , जोय । होय । ऐसे । का. । ५ । । । For Personal and Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२२ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह जबुधी भए जीवडे, राचे रमणी रूप । मद माते भए मानवी, परत विषय के कूप । ऐसें.।का।६। पांच प्रधाने मिले जई, खलदल करम से जाय। तेवीसत संकर संग हुई, ध्रम धन लुटै सोय । ऐसें.! का.।७। जोबनीयो जोरे चढे, राचै रमणी रंग। वडपण आए वालहा, उड गए रंग पतंग । ऐस. का.।८। जोवन जाते सीस पर, वैस लागे वग्ग । जोर जरा को जांण कै, उड गए काले कग्ग । ऐसें.। का.।।। जोबनीयो जातो रहै, निवले पंच रतन्न । गत मति दंत गए गुणी,गय लोयण गय कन्न। ऐसे.का.१०॥ सिथल अंग होवै सही, कह्यौ न मान कोय । धन धृती लै सुत सबे, कह्यौ न मानें कोय । ऐसै.। का.११॥ पीछे पछतावै पडै, मैं हुवो मती हीन । बहि तैवारै बापडी, ध्रम मैं न भयो लीन । ऐस.। का..१२॥ तो तै चेता चतुर नर, करो कछु भ्रम काज । 'अमर' लहौ जिम आतमा,राचौ अवचल राज। ऐस.। का.॥१३॥ जीव-प्रबोध-पद राग-वसन्त (भोरी है री मईया एतो, कपटी है बहुत कन्हैया. भोरी, ए चाल) अनुपम देश लही श्रारजकुल, लयो श्रावक कुल सुखकर रे। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीव-प्रबोध-पद ( १२३ ) सुणि सीख रे भईया, हां रे मैं तो लेत हुँ तेरी बलईया । सुषि०॥१॥ सुगुरु तणो संयोग लयो है, तो तू सूत्रारथ के सुणि रे। सुणि॥२॥ तीन तत्त्व धरियै चित हित घर, एतौ सुध समकित नो घर रे । सुणि०॥३॥ चौकड़ी च्योर कषाय विडारी, एतो राग द्वष परिहर रे। सुणि॥४॥ सुमता सागर मझ झीली ने, तूं तो पातिक मल परिहर रे । सुणि॥५॥ करम आठ अरि दूर करी ने, तूं तो ज्ञानादिक गुण वर रे। सुणि॥६॥ एहवो समकित भल अाराधी, "अमर" संपद आदर रे । सुणि०॥७॥ जीव-प्रबोध-गीत राग-सांमेरी रे जीव कोधी जेह कमाई, किधी. रे जीव भोगवीयै तै भाई!रे। तु सुख संपति केरै कारण, कोड कर चतुराई । पूरव पाप प्रसंगे प्राणी, मिलै कहो किम आई रेजीव०॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२४) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह वाहे पेड पाक के अंगण, अंब मिलै किम आई। किधी जीवै जेह कमाई, धुरते मिलसी धाई ।रे जीव०।२। लिखीयो लेख टरै नहि टारे,मन न रहौ मुरझाई। 'अमर' एक धीरज मन धरता, बाधै रंग वधाई ।रे जीव०३। चिन्ता-निवारण-गीत राग-सामेरी रे जीव चिंता चित नवधरोयौ, लहिणो हुयसो लहिौ।रे जीव.। तं झुरझुर कैनीर क्य नाखत, अपनो एह न कहीयै। अपनों हो तो क्यं उठ जातो, साचौ ए सरदहीयै।रे जीव..१ लहिणायत ज्यु लेखें कारण, पर घर वार पठईयै। लेखै कीधैं वार न लावै, फिर घर पीछो पुलईयारे जीव.।२ ताहरौ नहीं, नहीं तुइनको, मोह न किनसै करीयै। 'अमर' एक श्रवचल ध्रम तेरो,या नित चित परीयारे जीव.३ मन-प्रबोध-गीत राग-अलहीयो बेलावल भजय न क्यों भगवान, मनारे तु भजय न क्यौं भगवान । उत्तम कुल लहि के श्रावक को, भयो सब जुगत को जाण । मनारे।भाश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रेरणा गीत (१२५) काम क्रोध अब करे है कुसंगी, किहां गयो तेरो विज्ञान । लालच सै बहु चित ललचायो, ध्रम धन की कर हांन । मनारे० म०२। अव ही चेत आतम गुण आदर, सदगुरु की सुणि वांणि । मन वच काया कर एकांते, धरम सुकल धर ध्यान । मनारे०म०३। सब संसार स्वारथीयो दीस, परसिध तु पहिचान । 'अमर' एक है धर्म सखाई, परमानंद निधान । मनारे भ०४। प्रेरणा-गीत राग-परभाती भज रे जीव निरंजन भोला, क्या उपजावत अवर किलोला। भजरे । शिववासी अविचल अविनासी, ज्ञानानंदी सुगुण अमोला। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२६ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह सहिजानंद सरूपी साहिब, आनंदधन वाको कुण करें तोला । मजरे ।। निराकार निकलंक निरंजन, निरलेपी नवि बोलत बोला। नहिं इन्द्री नहि वेद है वाकै, नहि राग नहि द्वेष सतोला । मजरे०।२। शिव मंदिर में सुख सेजडली, शिव सुन्दर से प्रीत अतोला। भुगता भोग को 'अमर' समर भल, तु पिण सुख पामीस तिण तोला । मजरे० ॥३॥ अनुभव-पद राग-सारंग आतम अनुभव रस पोजीौ, अनुभव अमृत रस पीजिये। काम क्रोध मद माया मोडी, गुरु मुख ज्ञान लहीजीयै। प्रा.॥१॥ परगुणसुं कहुँ प्रीत न करीयै, निज गुण ज्ञान गहीजीयै। आ.।२। जे जिन आठ अरीगण जीता, ताको ध्यान धरीजीयै। आ.।३। तन मन वचन करी इकतानें, उपसम अंग धरीजीयै। आ.।४। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आत्म-शिक्षा-सिझाय ( १२७ ) पाठ करम ए छ अतुली बल, पिशुन वसै न परीजीयै । ओ.।। 'अमरसिंधुर' अनुभव अभ्यासै, सिवपुर नां सुख लीजीयै। आ.।६। आत्म-शिक्षा-सिझाय ( सुणि गोवालणी गोरसडा वाली तु अलगी रहिनें, ए देसी) सुणि साजनजी करम लग्या छै केड कुमति मति प्रापै। सुध समकित जी सुमति त्रियानो संग मिली ते कापै ॥ .। ए आदी अनादी तणां वैरी, जे जीव भणी कोधौ जेरी, जे भटकावै छै भव फेरी। सुणि।१। ध्रम कारज करतां धमकावै, ए सुभमति गति मैं अटकावै, ए लालच लोभ दिसा लावै । सुणि।२। ए काम क्रोध में उपजावै, ए माया ममता मन लावै, ए मद मच्छर मैं नहि मावै । सुणि०।३। अविरत एहने छ पटरांणी, ते मोहराय ने मन मांनी, जे नरक तणी छै नींसाणी । सुणि०।४। पर परणितसै जे जीयराता, ते केम लहे स्यै सुख साता, दुरगत दोहग नां छै दाता । सुणि० । ५। सदगुरु शीखडली मनधरीग, सुधसमकित करणी नित करीमै, भल सुजस सोभाग तदा वरीयै। सुणि०।६। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२८ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह तप जप संयम कुजे राता, ते सदा लहेसी सुख साता। गुणी जन तेहनों गुण गाता । सुणि० । ७। वाते क्रम अरि दुरै कीजै, पातिक नों पडदौ जिम छीजै, अनुभव अमृत रस तिण पीजै । सुणि० । ८ । शुध श्रावक भ्रम ने धारीजै, विषया रस दूरै वारीजै, मानव भव सफलो इम कीजै । सुणि.18 साची धम शीख होयडै घरीशै, वर अखय महाशिव सुख वरीये, ए'अमर' वाणि गुण मणि गहियो। सुणि०।१०। इति आत्म-शिक्षा-शिझाय । चेतन-सुमति-गीत ___ राग-सोरठी वसन्त नाह मेरो अब निठुर भयो है । कहो सखी कैसे कीजै एरो सखी ॥ कहो सखी। मो तजकै अब और भजत है, कपटी कुटल कहीजे, एरी सखी कपटी । नाहकहो०॥१॥ कुलवट मारग कहि समझायो, छिन भर तोहि न छीजै, एरी सखी छिन । निगुण नाह हठ शठ वादी, राग नहीं किम रीमैं, एरी सखी राग० । नाह० । कहो॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन-सुमति-गीत ( १२६ ) हित नी बात कहुँ हित जांणी, तौ खिण खिण मैं खीजे, एरी सखी तौ० । पर घर अपणौ जांणि रहित है, निरबुध ते पभणीजै, एरी सखी निरबुध० । नाह० । कहो॥३॥ मदमातो मोहन है मेरो, निज पर सुध न लहीजै, एरी सखी निज० । निज नारी की सोध न जाणे, बालम विकल भणीजै, एरी सखी बालम | नाह० । कहो॥४॥ कुलटा के यो केड लग्यो है, मेरो कहो न मनीजै, एरी सखी मेरो । 'अमर' सोभाग वगै घर आयां, चेतन चित्त धरीज, एरी सखी चेतन० । नाह० । कहो ॥॥ चेतन-सुमति-गीत राग-सोरठी वसन्त मेरो पिया मेरो कह्यो री न मानत. पैस रमै पर घर मैं, एरी सखी पैस रमै० । मेरो। पूरवली पिण प्रीत न जांणी, कुल मती भयो करमै । एरी सखी. कामे. १॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३० ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह वा कुलटा है नीत अनीती, धन धूती लियै छिन मैं । एरी सखो. ध.। मे। जनम फकीर भयो जब जाणे, छेह देत इक छिन मैं । एरी सखी. छ.। मे.।२। या कुमता मेरे केड लगी है, भरमायो तिण भरमैं । एरोसखी. भ.। मे। प्रसिध विवेक मंत्री पाठवायकै, घेर अण्णाव घर मैं । एरी सखी. थे। मे।३। सुमति सोहागण नामतो साचो, खिजमत कर खिन बिन मैं । एरी सखी. खि.मे.। अवचल वास वसै पिउ अनुपम, "अमर" प्रीत शिव घर मैं । एरी सखी. अ.। मे.[४॥ -०४चेतन-सुमति-गीत राग-रामकली पुनः अडाणो आज आणंद भयो सुण सजनी री, आज० रजनी सफल विहाणी री। प्राण जीवन निज गेह पधारे, हरष हीये बहु पाणीरी। आ.।१। सरपा सुंदर मिंदर मांही, मुमता सेज विछाई री। राघडली बातडली करतां, सारी सफल विहांणी री। पा.।२। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चेतन-सुमति-गीत (१३१ ) मिथ्यो गणिकायै भरमायो, माल सवे मुसखायो री। जनम फकीर भए जब जैसे, तब अपनें घर आयो री । आ.।। मुमति सोहामणि सै मन लायो, प्राण प्रोगै सुख पायो री। अवचल प्रीत बधी अति अनुपम, अजर 'अमर' पद पायोरी। प्रा.४। चेतन-सुमति-गीत राग-जंगलौ नेहरो लगायो सहीयो मेरो कह्यो मानें नही रे। नेहरो। निगुणो भरमायो सहीयां, मेरो कह्यो माने नहीं रे। बहुरंगी मेरो बाल हो, महाबली महाराय । मदमातो रातो फिरे, राख्यौ ही न रहाय । ने.। मेरो.।१। पहिली मो परणी हती, प्रीत रीत भल जोय । रंग रमता इक सेज मैं, कपट न हुँतो कोय । ने.। मेरो.।२। कुलटा जब काने लगी, भरमायो तिण भूप। निजघर तज भज गयो तासुधर, पड्यो रूडो देखे रूप! ने.। मे।३। वसीयो बालम तासु घर, पलक न बोडै संग । कुमति नार के. पडी, रातो रंग पतंग । ने.। मेरो.।४। रंग रसीयो वसीयो तिहाँ, सुगुणी नी तज सेज । प्रीतम प्यारी तज गयो, निगुणौ नाह निहेज । ने.। मेरो.श Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३२ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवम संग्रह माल मुस्यो तिण माननी, निधन भयो जब नाह। जनमै जैसे जब भए, लह्यो नहीं कछु लाह । ने.। मेरो.।६। निज पर आए नाह तब, मुझ से कर मन मेल । प्रीत रीत वाधी प्रसिध, खूब मचायो खेल । ने.। मेरो.।। प्रिय प्यारी हिल मिल वस, मुगत महिल में जाय । मुमत त्रिया चेतन सदा,'अमर' आनंद मनाय । ने.। मेरो.।। मेरो को मान्यो सहीरे. घेतन-सुमति-गीत राग-वसन्त आज आणंद भयो सखी मेरै तो, अधिक लह्यो आणंदा । मन मोहन मेरे अब घर आए, उलसे मन मकरंदा ।आज.१॥ सुविवेक मंत्रीसर वाकै संगी, सोभी साथ कहंदा । अाज.।। आज अम्हारै अंगना ऊगो तो, सुखकर सुरतरु कंदा । आज.३। मोतीयडे मेहडलो बूठौ तो, हरष हीयै हुलसंदा । आज.४॥ पर घरणीसाम्हो नवि पेखें तो, कुमत कपित दुखदंदा । आज.५॥ नाह हमारो निज घर आयो तो, हिल मिल केल करंदा । श्राज.६। परमानंद लहै पिउ प्यारी, विरहन कै गए वृन्दा । आज.७/ चेतनराय नैं सुमति सोहागणि, 'अमर' लहै अनिंदा। आज.।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीव-प्रबोध-गीत ___( १३३ ) जीव-प्रबोध-गीत राग-धन्याश्री, अडाणो वसन्त सुमति भज हो कुमति तज हो, अरे जिय पाप करत खिन न न न न न न न हो। सु.कु.१॥ इण संसार में अवतरि भविजन, घरम करत सोइ धन न न न न न न न हो। सु.कु.।२। पाप संताप दुरित दव समिवा, उलटी घटा घन न न न न न न न हो। सु.कु.१३॥ घरम पखें धंधै नित धावत, भमर भमत भण न न न न न न न हो। सु. कु.४१ मिथ्यातम अघ दूर हरेवा, उदयो तेज सुतरण न न न न न न न हो । सु.कु.।। पंच प्रमाद तजौ भवि प्राणी, ध्रम उद्यम करो धन न न न न न न न हो । सु.कु.।६। "अमर" महा अविचल सुखदायक, धरम करो जी तुम्हें भविजन न न न न न न न हो। सु.कु. ७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३४ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन संग्रह जीव-सीखामण-गीत पर श्रावो जी सुगुणा री सजनां । सुगुणां री सजनां न थइये निगुणां । घर। आंकयो । आवो मेरे सजनां बैसो घर अंगनां, कहै सो बात सुणो रो अरधंगना । घर ॥१॥ निज घर भजनां, पर घर तजना, ____ कथन हमारो कंतजी करणा । घर० ॥२॥ सुगत कुठारी, निपट निठारी, प्रीत रीत यासै परहरणां । घर०।३। कुमत कुमारी की गत है री न्यारी, यास नेह न कबहु न करणा । घर०।४। ए नहीं परणी सुगत करणी, चतुर न करत याकी आचरणा । घर०।५। भ्रम धन लँटै बीरज बल चुटे, ऐसारी काम कोहे कुरी करणा । घर०।६। सुमत सुनारी पिउ कु प्यारी, 'अमर' प्रीत नीत याही से करणां घर०७। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीव-सिखावण-गीत ( १३५ ) जीव-सिखावण-गीत राग-काफी या अलबेली को रूप अनोपम, तिणस सुरता लगी तेरी, लगी तोरी रे नेह दोरी। या०। १०। प्राणनाथ प्रीतम मन मोहन, मान लेहु सीखन मेरी । या०।२। एन कुनारी बहु पति कीने, लीधो ध्रम धन कुं हेरी । या०।३। मुख नी मीठी चितनो भूठी, छल मै लेत हात छरी । या०।४। योको कयो करिस जो प्रीतम, नरक निसाणी सुगत वेरी । या० ।५। कुमति कुनार को संग न करिये, फंद परत नहि भव फेरी । या०।६। चेतनराय सुमत वच सुणिकर, __"अमर" प्रीत अवचन तेरी । या०।७। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३६) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह सुमति-कुमति-गीत राग-खम्भायती मेरी राय चेतन नै सुध न लई, विरहानल ताप सै बरी भई । मे०।१। मिथ्या मंदर गणिका सुंदर, कुमति कुनारी एक ठई। मे।२। तो कुं कुलटा कान लगंतां, तिण भुरकी सिर डार दई । मे०।३। परणी थी मुझ अधिकै प्रेम, ते तो प्रीत विसार दई । मे।४। उन• अपने मिंदर राखी, नवली सै भई प्रीत नई । मे। ५ । लहुड़ी लाडी बहु भरमायक, ध्रन धम ताको खोस लई । मे०।६। निरधन हुयके निज घर आयो, सिध बुध सारी भूल गई । मे०।७। कुमति कुनारी दूर गई तब, सुमता सै फिर मेल भई । मे०।८। रस रंगे पिउ प्यारी रमतां, विरह विथा सब दर गई। मे।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुभव-वर्षा ( १३७ ) मेरी राय चेतन ने शुद्ध लई, तब विरह विथा सब दूर गई । सुख संपत की रास बढाई, अजर "अमर" पद वेग लई। मे०१०॥ अनुभव वर्षों राग--मल्हार अनुभव वरषा आई सुचेतन. अनु० । विवेक बदरिया बहु बन आई, सुरत घटो धन छाई । सखी. अनु.।१। सुभ भावन सो वाय सुहावत, ज्ञान झरी झर लाई। कुमति कुगत कुंदूर करी तब, सुमति सुगति मन भाई । सुचे. अनु. ।। निहचै नयसो वनीय बीजरीया, विवहार गरज गजाई। सुमता रस जल सै भवि झीलत, तनकी तपत बुझाई । सुचे. अनु. ३॥ ऐसी अनभव वर्षा आवत, तौ लहै सुजस सबोई। सासय राज लहै शिवपुर को, "अमर" आणंद वधाई । सुचे. अनु.।४। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३८ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह चेतन-वसंत राग--वसन्त फागुण फाग सहाए सखी मेरी, अलवेसर घर पाए । फा. कुमति कुनारी केड लगी ताको, घर तज भज इहां धाए । फा.११॥ वैरण सौक विरह तन व्यापत, सो मेरे मन भाए । फा.। चेतनराय चतुर अति चंचल, निजगुण सुध दरसाए । फा.।२। सह चारण जांणि संतोष, प्रोत रीत परसाए । फा. हित चंछक ध्रम धनकी संचक, लायक नेह लगाए । फा.।३। अब मैं भई हूं परमानंदित, हरष हियै हुलसाए । फा.। 'अमर' आनंद लहै पिउ प्यारी, परम महा सुखपाए । फा.॥४॥ अनुभव-होरी राग---फाग अनुभव रस, अनुभव रस अजब मची होरी । अनु.। विनय विवेक सु वसंत बनी है, फाग राग गावत गोरी। अनु.॥१॥ ज्ञान ध्यान वनराज वण्यो है, मन मांजर आंबे मोरी। अनु.।। नय सातन की नदी वहत है,भविक भ्रमर आवत दोरी। अनु.॥३॥ चेतनराय चतुर अति चंगे, विरह विथा कुं नित तोरी। अनु.॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुमति-होरी सुमति सोहागण संग रमत है, ज्ञान गुलाल भरी झोरी । अनु.।५। सुच संतोष भल केसर घोरी, जुगत मिली है या जोरी। अनु. | ६ | प्रेम पिचरका उपसम जल भर, धार चलावत भ्रम धोरी । अनु.|७| फाग मनायो ति सुख पायो, कप गई कर्म तणी कोरी । अनु. ८| निज सुभाव रत रामत रमतां, पर परिणित दोरी तोरी। अनु. | ६ | प्रीत रीत बाधी अनुपम, 'अमर' आनंद रमत होरी। अनु. १०। .. सुमति- होरी ( राग - जंगलै री ठुमरी में होरी ) Jain Educationa International म्हारे हरप से आई होरी री, म्हांरे हरष० । सुमति सोहागण निज घर आई, जुगत भई अब जोरी री । म्हांरै . १ । पिउचित हित की प्रीत पिछानी, कुमता कुकरी कोरी री । म्हांरै . २ | दिल सुध समकित गुण दरसायो, गुणवंती या गोरी री । म्हांरै. ३ | निस वासर रस रंगै रमतां, 'विरह' विथा कं तोरी री । म्हांरै . ४ । काम क्रोध याकै कछु नाहीं, भांमणि ऐसी भोरी री । म्हांरै . ५। पिउ प्यारी की जोरी है जुगति, हरप 'अमर' रमै होरी री । म्हांरै. --- ( १३६ ) For Personal and Private Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४० ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह होरी (भलैरी पेच मोपै डारयो री रसको, तेरो चितवन में करे जोरी कसको. ए चाल मै छ, राग-बसंत अडाणो) भल पाई होरी रस रंग भरी री, खेलत अनुभव हरष धरी री। भल आई० खेलत. कणी॥ अविरति श्राद मिथ्यात न मोहै, भूल अनादनी जेह परी री । भल० खेलत०।१॥ निम श्रातम गुण कं निपजावे, कोह लोह कू दूर करी री । भल० खेलत०।२। सुमति सोहागणि सै मन लायो, सहिजानंदित सुविध वरी री । भल० खेलत०३। अनुभव ताकै घरमै आये, अवचल लखमी सहज वरी री। भल० खेलत०४। केवल वरीयो सिव सुख दरीयो, कोडि सूरज दुति मंदकरी री । भल० खेलता आनंदघन अवचल पद पाए, "अमरसिंधुर" ए होरी भलीरी । भल० खेलत०।६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होरी होरी ( पुनः राग अड़ाणौ मैं बसंत ) इति श्री भलाई होरी, भल आई होरी | सुगुणि प्रिया से लगी रंग डोरी, भल० सुगुणि० । या चाहत मेरो हेत हीया को, मैं चितरो लीधो चोरी री । भल० | १| सु० । भलोरी चाहत मेरे घर को भोरी, मोकुं ललचायो बहु लहुरी | भल०|२| सु० | माल हमारो सब मुसखायो, कुमत नार की लहि खोरी री | भल० / ३ | सु० । पछताय के घर पीछे आए, जुगति जांगीर जोरी री | भल० |४| सु० । अब इनसे इकलास भयो है, काटेंगे दोहग दुख की कोरी री | मल ०|५| सु० । प्रिउ प्यारी रस रंग रमतां, 'अमर' अनोपम भल होरी री । भल० । ६ । सु० | Jain Educationa International ( १४१ ) १८ सं० । १८ रा मिती फागुण सुदि १५ भृगुवारे । ५००--- For Personal and Private Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४२ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह चेतन-सुमति-होरी राग--वसन्त जंगली ए तौ हरख सै आई होरी रे, एतो हरख सै आई होरी। सुमत सोहागण से रस दमता, विरह विथा कुतोरी रे। ए.।१। अपने वालम से अंतर नांहीं, यह भामन है भोरी रे। ए.।२। कुमति कनार को संग निवारी, एतो धरमण थापी धोरी रे। ए.॥३॥ ए हरणाखी मोहित चाहै, इण सम नार न ओरी रे। ए.।४। इतना दिन में या घरणो विन, दुख दीठा लख कोरी री । ए.॥ अब तो भई रे आनंद वधाई,एतो 'अमर' संपद सुख पाई री।ए.६। सुमति-होरी सुमत सोहागण राय चेतन भल, ऐसे रमत होरी में एरी सखि । ऐ.। श्रद्धा भूप्न सुसमकित बन है, सफल फलत है छिन में । ए. स. स.।११ स. ऐ.। आगम नय सो नदियां अनुपम, सलिल संतोष है जिन में । ए. स. स.।२।स. ऐ.। गुण गण टोरी भोरी मिली है, सो रमती सुच जल में । ए. स. सो.।३।स. ऐ.। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसन्त-होरी (१४३ ) ज्ञान गुलाल ने प्रेम पिचरका, सो डारत छिन छिन में । ए. स. सो.।४। सु. ऐ.। वाणी अनहद वाज वजत है, हास हसत आपन में। ए. स. हा. शस. ऐ.। गिरवाई सो गोठ जिमत है, चतुरोई चौपर में । ए. स. च. १६। सु.ऐ.। प्रोत रीत सो प्याले पीवत, मन भए मस्ताई में । ए. स. म. सु. ऐ.। 'अमरसिंधुर' ऐसे खेल मचत है, अपणे अनुभव रस में । ए. स. अ. सु. ऐ.। -:०::: वसंत-होरी राग-वसन्त वसंत सुवरषा आई, सखी मेरी वसंत । निज घर से नर त्रिय वन आए, सो बादरीय बनाई। पिउ प्यारी हिल मिल के खेलत, सो सुभ बादल आई।१।१०। लाल गुलाल अबीर उडावत, सो रज नभ वन छाई। केसर की पिचकोरी चलत है,सो वरषा झरीय लगाई ।२।०। डफ चंग वजत सु गाज गत है, रंग सु धनुष सुहाई। चंचल नयन सो दामनि चमकै, सुरत घटा घन छाई ।३।१०। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४४ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह चोवा चंदन कीच मच्यौ है, तिसलन सुरत डिगाई। वसंत में वरषा ऐसो बनी है, 'अमर' महा सुखदाई।४।१०। चेतन-सुमति-होरी* राग-वसन्त नणद तुहारो नवल सनेही, आज राज घर आयो । अम्ह प्रीतम सु सनेह धरी बहु, वाणी मधुर बोलायो. वा० ॥१॥ न०॥ संवर वाड़ी अतिह सुरंगी, . ताही मझ बसायौ. वारी ताही। मैं भी प्राण प्रियो संग रंग, ज्ञान गुलाल मंगायो. वारी ज्ञा० ॥२॥ न०॥ भर भर झोरी होरी कै मिस, अबीर कैबीच मिलायो. वा० अ०। करुणा केसर अतिह अनोपम, रंग सुरंग करायो. वारी रं० ॥३॥ न०॥ *सुमता स्त्री चेतन राजानी कहै छै शुद्ध सम्यक्त नी ऊपनी श्रद्धा तद्रपी नाद ने कहै छै तुम्हारा भार अम्हारै बरे विवेक परधान अम्हारै भरि चेतन महाराज तिरणा से आवा नै मिल्यौ छै। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुमति - होरी प्रेम पिचरका भाव सु जल भर, ताकेँ खूब रमायो विनय विवेक दो साजन मिलने, बारी ता० । राग फाग भल गायो. वारी रा० ||४|| न० ॥ राग द्वेष रज दूर उडांय कै, समकित रव उजरायो, बा० स० । मैं भी पिया के संग रमतो, 'अमर' सोभाग वधायो. वा० अ० ॥ ५॥ न० ॥ ( १४५ ) सुमति- होरी राग - कहर में वसन्त महाराज मेरे संग भए हैं, हित से रखेंगे होरी में । एरी सखि हि० । Jain Educationa International प्राणनाथ भल गेह पधारे, मैं हरखित भई मन में । एरी सखि ६० | १| म० । e कुलटा याकै कान लगी थी, कुमत देत छिन छिन में । एरी सखि कु० |२| म० । धम को धन ति सब मुसखायो, तब चेतन थयो तन में एरी सखि त० |३| म० | For Personal and Private Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४६ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथावि स्तवन-संग्रह मूलगी प्यारी तब मन भाई, घेर दे पायो घर में । एरी सखि घे०४।मा आदर देत बाग में आयो, तब हरखित भई (तब) मन में । एरी सखि त शमन ज्ञान गुलाल क्षमा जल लायो, छिरकत है छिन छिन में। एरी सखि छि०।६।म। प्रेम पियालो मैं भर पायो, मस्त भए तर मन में । एरी सखि म०७ मा मगन भए यह मोख नगर में, "अमर" सुमत घर मन में । एरी सखि १०म० चेतन-सुमति-होरो राग- वसन्त सुनो री सखि ऐसे रमो होरी, पाठ करम की तोरियै कोरी। सु०। राग द्वष दोष दूर विडारी, काम क्रोध ममता कुं मारी। सु०।१। साधु संगत करियै सुखकारी, सुच संतोष हियै में धारी। सु०।२। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुभव-होरी ( १४७ । तप जप संयम गुण उजवारी, शील धरम नव वाड़ संभारी । सु०।३। केवल कमला लहि हितकारी, चौ घन घाती दूर निवारी । सु०।४। मूलातम गुण तेम विचारी, शिव रमणी परणी सुखकारी । सु। ५। सुमत प्रिया से प्रीत वधारी, चेतनराय "अमर" पद पारी । सु०।६। अनुभव-होरी राग- तोड़ी मारू वसन्त हरष सुं अनुभव होरी पाई, सुविवेकी जनम रमत सदाई । हरष सुं०। सुच संतोष सु सीतल जल है, ज्ञान गुलाल सो गहिर बनाई । प्रेम पिचरका छूटत छिन छिन, । ___ भर भर मुट्ठीयां अबीर उडाई । हरष सुं०।१। सात नयन की सतार भली है, विविध नयन वाजिंत्र वजाई । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४८ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह चंग मता सोइ चंग वण्यो है, फाग राग सो गुण मणि गाई । हरप सुं०१२। असे फाग वसंत अनोपम, अनुभवतां सो अंग अनाई । "अमरसिंधुर" अपणो अलवेसर, रमसी सो दिन रंग वधाई । हरष सुं०।३। संवत् १८८८ वर्षे मिती फागुण सुदि ६ रवौ श्री मंबुई विंदरे एकादशी चतुर्मासी कृता लिखतं वाचक अमर सिंधुर गणि पं० रूपचन्द्र पं । अणदा वाचनार्थ श्री बृहत्खर(तर) भट्टारक गच्छे श्री जिनकुशलमूरिशाखायां । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पटवा संघ-तीर्थमाला स्तवन (१४८) पटवा संघ-तीर्थमाला स्तवन (सं० १८६०) स्वस्ति श्री सुखदायक लायक ऋषभ जिणंद । शत्रुज गिरि मंडण दुख खंडण सुरतरु कंद ।। सकल करम खल कुंजर हरणे सिंह समान । सुगुरु मुझे इम सांभल उल्हसो बुद्ध विनांन ॥१॥ बाफणा गोत्र वदीतो "बहादरमल" सुसेठ । लखमीधर लख ग्यांने अवर सहू तसु हेठ ।। सिंघ शेजा नो कीजै लीजै लखमी लाह । सकल सजाई इम चितसि मेली (कीधी) वाह वाह ॥ २॥ लघु बंधव च्यारे तेजवै ततषिण ताम । शेवज गिरनो सिंघ करावो अति अभिराम । वड बंधव नो वचन सुणी में कीध प्रर्माण । सफल जनम जांणी में चित हित अधिको आँण ॥३॥ कंकोचरी कागद लिख मेन्या देस विदेश । "पालीपुर" सिंघ आव्यो वाध्यो हरष विशेष । सरव जिनालय पूज करावें भल सुभ भाव । दान सुपात्र दैता दिन दिन चढतै दाव ॥४॥ सिंघ तिलक कीधो "श्रीमहेंदररि" मुणिंद । सुरगण मझ सोहै अधिपति जिम सोहम इंद॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५०) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन- संग्रह 'जेसलमेर' 'उदयपुर ' 'जालोर' 'जयपुर ' जाण । 'लखखेऊ' ना लायक श्रावक गुणमणि खांण ॥ ५ ॥ कॉम | 'अजमेरी' 'कोटाई' 'जोधपुर ' भ्रम जात्र करेवा आव्या करता प्रभु गुण गांम ॥ 'मारवाडी' 'मेवाडी' 'गोटवाडी' पिण तोम | 'गुजराती' 'नागोरी' 'अलकापुरी' मन नी हांम ॥ ६ ॥ 'वड खरतरगछ' नायक " माहिंदसूरि" सूरिंद | "भावहर्ष" गछ खरतर, “पदमसूरि" आणंद || 'बड चारिज' खरतर, "कीर्तिमूरि” पहिचान । 'पंजाबी पूज लौका' पूज "रामचंद ” तिम जांन ॥ ७ ॥ " 'दिग अंबर' धारिक श्री "अनंतकी तिं” पहिचान | सोहै सुप्रमांण || सहस परिमाण । बहुविध श्रांण ॥ ८ ॥ साधु सातसे सिंघ मांहे सिंघ संख्या इहां सोह्रै पनर भोजन भगत करीति जुगतै सुभ वेला शुभ महूरत सिंघै कीध प्रमांण । चढत नगारा ठोर दीपैंत चलंत नीसांग ॥ सूरा सावधन हुय चाले चंचल चंग | गोरंगी मिल गायै, सिंघवी विरुद सुचंग ॥ ६ ॥ & देता दोन प्रमांण करी आव्या 'वरकांण' । हरष सवायै तंबू ऊ ँचा कीधा तां ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पटवासंघ-तीर्थमाला-स्तवन (१५१ ) धन धन धनो जूनो तीरथ भेट्यो धाम । पूजा सतर प्रकारी करतां श्रावक भाई ताम ॥१०॥ श्री "वरकांणापास" जुहार्या जगपति जाम । प्रथम तीरथ भेटतां पाप पुलाया ताम ।। "नाडोलै" जगनायक पदमप्रभु परसिद्ध । विविध प्रकारै पूज करी भई समकित वृद्ध ॥११॥ 'नडुलाई जिन नमीय गमीय रोग में रोस । सुधै मन सेवंतां समकित नो को पोस । शांतीसर प्रभु पूज्या 'सादडी' नगर मुचंग । "राणपुरै रिसहेसर पूज्यां भव भय भंग ॥१२॥ घण थाट वहिवाटै आन्या 'घाणेराव' । श्री महावीर मुंछालो भेट्या दुरगत नो रल्योदाव ॥ 'सेमली' पास जुहार्या जूनो तीरथ जाण । 'सीरोही' सुखदाई भेट्या भलहल भांण ॥१॥ 'वामणवाडै' वीर जिणंद सदा सदा सुखकंद । 'जीवतस्यांम' जुहार्या फट गए भव भय कंद ।। आव्यो संघ 'अणादरें गांमै केरी पाज । 'आबू' अचल गिरंद भेट्या सिवपुर नी ए सांज ॥१४॥ 'देवलवाड' देव जुहार्या आद जिणंद । दरस सरस लहि सिंघसकल लह्यो अधिक पाणंद ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५२ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह द्रव्यत मावत पूज करी मिल विविध प्रकार । सुश्रावक मिल सफल करै अपणो अवतार ॥१५॥ छप्पन कोड सोनईया छलबल करि में जेण । भल प्रासाद करायो तीरथ भाव्यो तेण ॥ 'वर्द्धमान' गुरुराज तणो लहि वर उपदेस । मांखण जिम दल कोराव्यो सोभा वधीय विशेष ॥१६॥ घोडे चढीयो विमल मंत्री प्रभु सनमुख जोय । निरखीह रख्या सिंघ लोक मन अचरिज होइ । .................. . . . . . . . . ........."आगल सनमुख कीध प्रमाण । दिन २ हरख सवायो सुरगिरि निकटता जाण ॥ सिंघ पागम सुणि 'पालीतांणा' नो चउविह संघ । सिंघ वधावै अधिक आणंदै धर उछरंग ॥२॥ तलहटीयै डेरा कीया तंबू ऊँचा (कीधा) ताण । सोहामण संदर गुण गावै चतुर सजाण ॥ 'पालतणी' जात्र करी पहिली तेह प्रमाण । ऊँच मनै ऊँचा चढ बीजी जात्रा जाण ॥२६॥ मूल नायक मन रंगे भेट्या भाद जिणंद । चौमुख पंग गुहार्या फेल्या दुरगत फंद ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . पटवा संघ तीर्थमाला-स्तवन (१५३ ) पूरबे निनाणू वार समोसर्या रिषभ जिणंद । पगला रायण तल प्रणमंता सख नो लयो कंद ॥ अजित शांति पुंडरीक नमंता नयणानंद । चेईय चैत्यवंदन कर पाम्यो परमानंद ॥२७॥ सुचता विनये कीधी स्नात्र पवित्र उदार । सग क्षेत्र धन खरचै प्रघल मने अणपार ।। बहु मोला आभरण चढावै प्रभु ने अंग । हेम घड्या नग जडीया राजै नवमन रंग ॥२८॥ कडा कंठी कंडल में हार वीजोरा सार । मुगट तिलक मणि जडीया कहितां नाव पार।। श्रादिनाथ भंडार भरावे उजल चित । उज्जल धर्म आराधै बहु विध खरचै वित्त ॥२६॥ वड भट्टारक खरतर "महिन्द्र सूरि" मुणिंद । चंद जेम चढती कला दीपै तेज दिणंद ॥ सिंघ माल पहिरावी "दोनमल्ल" नै । ताम । "जोरावर" जसधर ना सीधा बंछित काम ॥३०॥ इण पर भाव भगत भल कीधा दिन पचत्रीस । चढत नगारो दीधो सफली मन सजगोस ।। "नवखंड पास" जुहार्या नरभव में लह्यो सार । "गवडी पास" जी भेट्या ए प्रातम अाधार ॥३१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि स्तवन संग्रह सिंघ समेलो सरब हुआ तिहाँ साठ हजार । "मोरवाडे" जात्रा थई सहु करै जै जै कार || सिंघनी ओस पूरांणी अधिक वध्यो श्राणंद | सुजस सवायो धवल अमल जिम पूँनिम चंद ॥३२॥ "बाफणा " गोत्र वदीतो " बहादरमल " वखांण । " सवाईसिंघ" “मगनजी" "जोर विर" जग जांण ॥! " परतापमल्ल" "दानमल" सिंघवी पदनो धार । " जेसलमेरी" लखमी लाह लीयो सुखकार ||३३|| १५४ -कलश संवत् 'अढारेरै तेणु' वच्छर मास आसाढ उदार ए । सहु संघ समेलै तीर्थयात्रा की उदार ए || ति हेतु "वाचक अमर सिन्धुर" भाव भल चितधार ए । भेट्या तीरथ जनम सफलो जात्र मल जयकार ए ॥ ३३॥ इति तीर्थमाला स्तवनम् पाछा पंथ पुलंता " राधनपुर " हितधार । प्रासादें जिन पूज्या, सुध समकित संभार || गाथा १६ तक गुटके में है, फिर लिखते हुये छोड़ा हुआ है । अन्त की गाथायें एक अन्य प्रति से- जिसका केवल अन्त पत्र ही प्राप्त है, दी गई है । उस पत्र के बोर्डर में निनोक्त २ पद्य और लिखे हुए हैं चिह्नित नहीं किया गया । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जं जं .. पार्श्व शान्ति-स्तवन पार्श्व -स्तवन ... Jain Educationa International ... ... ... बाल पणे तिहुं ज्ञान विराजित, उरग तणो जे उपगारी॥ जै, जै, ॥ ३ ॥ कमठ सठी को मान बिडारण, धींगडमल्ल धनुषधारी ॥ जै. जै, ॥ ४ ॥ विषय विषोपम सरिखा जाणी, मोह मान ममता मारी ॥ जै. जै. ५ ॥ केवल वरीयो शिवसुख दरीयो, तरण तारण गुण संभारी ॥ जै. जै. ६ ॥ भविजन तारे पतित उधारे, अविचल पद लहैं अवतारी ॥ जै. जै. 'श्रमरचंद ' दै आणंदै, तिम वंदे मिल नरनारी ॥ जै. जै. शान्ति जिन स्तवन ... हो लागे प्यारी । जै जै ॥२॥ ... ( १५५ ) शान्ति ... • हक आस पूरण भणी, कलि मांहे उदयो सुरकंद ॥ शां. ३ || अचरानंदन जग जयो, तुम सरिखो नहीं देव न कोय | 'अमरसिंधुर' नै पीयें, सुख संपत सुनिजर दृग जोय || शां. ४ ॥ ... For Personal and Private Use Only ७ ॥ ८ ॥ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५६ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह कुशल गुरु छंद थूभ देरावर जाण, मरोट सथान बहु माम॥४६॥ बडी* गुरु शोभा बीकानेर, . जपतां शत्र थई गया जेर । मुलत्राणे पावौ सेवंता रमी, साध्या जिहां पंच नदी पंच पीर ॥४७॥ किंरोहर मालपुरै बहु क्रीत, रिणी नवहर सोहे राजीत । भला नर सेव करै भटनेर, सठाम दिपंतो सांगानेर ॥४८॥ लुलीने पाय लागंत लाहोर, जागंती जोत गुरु जालोर । प्रसीधो पाटन सोहै पाट, शेत्र जै लाग रहया गहगाट ॥४६॥ गुरु ना पाय पूजै गिरनार, खंभायत तेम महा मुखकार । सदा सुखदाई सूरत सांम, ममोई विंदर बांधी माम॥५०॥ *वधी जेपी ने शुत्रु किया जिहां जेर । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुशल गुरु-छंद भलो गुरु थांन सोहै भरवच्छ, कहीजै भुज्ज देसावर कच्छ । मोटा गुरु मांडवीय मंडाण, मुदै मुदरे पुर वाधी वांन ॥ ५१ ॥ जोषांग सुंथान तणी भल जोड़, राजै तिहां राज भलो रोठोड़ । उदैपुर ईडर बाद सुधान, मोहंतो मालपुरै सुप्रमांण ||| ५२ ॥ मेड नागोर सु मोमन्न, चूरू चित चाह धरा कहै धन्न । गुढै गुरू वाहडमेर विशाल, महिम्मा मालापुरै सुविशाल ॥ ५३ ॥ सोभूत जैतारण साचो सांम, तौरपुर तेम सुधारे कांम । हो गुरू खेजडलै सुप्रधान, देवीकोट देवगढ सुप्रमांण ॥ ५४ ॥ होइल कीरत गरै आज, जां दुख नीर नों तीर जिहाज । श्रहो वीरम्मपुरै राजरीत, तबु तिमरीपुर तेम प्रतीत ।। ५५|| Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ( १५७ ) Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५८ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह ओपे भल थान अहिंमदाबाद, भला भीद मांल महा सु प्रसाद । पाखु अमरासर कीरत आज, तौरने तेम गुरू सिरताज ॥५॥ सांचोर सेव कहै दिल शुद्ध, दिल्ली पुर माँभू बधी बहु वृद्ध । श्रासा भल पूरै आगरे मांभू, वदु मिरजापुर तेम बखांण ॥५६॥ काशी सुखराशि पुरंतो प्रेम, विहार विसाला नमैं नित नेम। राजै गुरू रंगपुरे भल रीत, पाटलीपुर माभू बाधी बहु प्रीत ॥५७॥ बालोघरे अजीमगंज बखाण, कहु कि कीरत जाण । ढाकै हुगलीपुर पूरे प्रेम, दीप गुरू देरै साचौ तेम ॥५८॥ सुरंगे पाटण साचौ साम, वहाणपुरै पिण बखाण । आराध्याँ आवै श्री गुरूराज, कृपानिध कोड़ सुधार काज ॥५६॥ आबू (टिप्पणी दो) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुशल गुरु छंद ( १५६ ) गुरू गुण गावै गामो गाम, थटांणा धुंद तिणे ठांम ठाम ! अहो इल माभू न दूजौ देव, सुरिन्द मुणिंद करंत सु मेव ॥६०॥ पूजै गुरू पाय धरि बहु प्रेम, नेहै अल जात कर नित नेम । आसा तिहां पूरै श्री (गुरू) राय, दीयै सुखरास निवास सदाय ॥६१॥ सदी सकलाई साची जाण, जात्री मिल पावै राजा रांण । घणां ज्यारै घोड़ता रो घमसांण, पुणतां तास न होय प्रमाण ॥६२॥ प्रणम्मै पाय धरी दीय धोक, सदा सुख त्यांह न व्या शोक । प्रणम्मै पुनिम पुनिम पाय, लीला नै लच्छ मिले तियां आय॥६३॥ जपै जिण काज गुरू में जेह, तुरत्त मिलावे आणी तेह । न हैजे प्राय नमै नरनार, तिहां घर बाधै जय जयकार ॥६४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६०) बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि स्तवन राँग्रह कलश कवित्त जपता जयजयकार, सगुरू सुखरास समापे । जपतां जयजयकार, कष्ट कंदल नै कापै ॥ जपतां जयजयकार, चित्त नी चिंता चूरै । जपतां जयजयकार, प्रघल मन आसा पूरै॥ संवत् अदार वारण वरस, मंबई विंदर मन रली । कुशलेस सगुरू गुण गावतां अमर सिंधुर पासो फली॥६५॥ -इति श्री(अन्तिम तीसरा पत्रही प्राप्त ) चक्र श्वरी-स्तवन देशी-गरबानी देवी चकेसरी, संघ सकल आधार नम परमेश्वरी । देवी० । देवी आदीसर अोलग सारै देवी संत जनां नै साधार । देवी श्रापद भय थी तुं तारै । देवी० ॥१॥ देवी जिन शासन ने उजवाले, देवी भक्त जनां ने प्रतिपाले । देवी सेत्रुजा गिरी ऊपर माल्है। देवी० ॥२॥ देवी चिन्ता तू सगली चूरै, देवी प्रघल मनोरथ तूं पूरै । देवी दुख दालिद्र हरै दूरै। देवी० ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम्बिका-गीतम् ( १६१ ) देवी दोपै तुं चढते दावै, देवी गुणियन जन मिल गुण गावै । देवी म्हारी मोताजो री जोड़ी कोई नावै । देवी०॥४॥ देवी सुख संपति मुझ ने दीजै, देवी कूरम दृग मो पर कीजै । देवी सकल मनोरथ मुझ सीझे । देवी० ॥५॥ ए अरज सुणी देवी आवौ, माय दिन दिन चढत करौ दावौ । माय तुझ चौ विरूद अठै चावौ । देवी० ॥६॥ भल अरज सुणी भीरै श्रावौ, देवी सुख दायक मुख फरमावौ । देवी वंछित "अमर" नै दिवरावौ । देवी० ॥७॥ अम्बिका-गीतम् देशी-गरबानी मां अंबाई,तो दरसण थी अडसिध नवनिध पाई। माई.॥१॥ माई रेवंतगिरि ऊपर मान्है, माई गहिर गुणे नित प्रति गाजै । माई छत अधिकी ओपम छाजै ॥ माई ॥२॥ माई नेमिसर ना चरण नमै, माई दोषी जननै तुरत दमै । माई गहिरो दुख नै तुरत दमै ॥ माई ॥३॥ माई चिन्ता पिण मननी चूरै, माई प्रेम अधिक लखमी पूरै। माई चरण नमै उदयै सूरै ॥ माई ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६२ ) बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि स्तवन संग्रह माय आराध्या ततखिग ओ, वा निज सेवक सुख पावै । ____ माय गोरंगी मिल गु.गावै ।। माई० ॥५॥ निज दास नी आसा तुरत पूरै, देवी नयणानंद चढते नरै। म. अधिके पुण्य ने अंकूरै ॥ माई० ॥६॥ माय नेह निजर भर निरखीजै, माय बंछित सुख मुझनै दीजै । माय कारज एतौ हिव कीजै ॥ माई ॥७॥ वर सुजस बाल जगत बाजे, सबली सिंघ असवारी छाजे । . भावड भय तो दरस भाजै ॥ माई० ॥८॥ वड़ बखती वीनति अबधारी, इक सबल भरोसो छै थारो। अलवेसर आपद थी तारौ ॥ माई० ॥६॥ आतंक अरी अलिगा हरिजौ, देवी सुख संपत वहिला दीजो। 'अमरेस' आपणड़ा जाणी जै ॥ माई० ॥१०॥ इति अम्बिका गीतम् । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JAIN PRINTING PRESS, KOTA,