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जीव-प्रबोध-गीत
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जीव-प्रबोध-गीत
राग-धन्याश्री, अडाणो वसन्त
सुमति भज हो कुमति तज हो, अरे जिय पाप करत खिन न न न न न न न हो। सु.कु.१॥ इण संसार में अवतरि भविजन, घरम करत सोइ धन न न न न न न न हो। सु.कु.।२। पाप संताप दुरित दव समिवा, उलटी घटा घन न न न न न न न हो। सु.कु.१३॥ घरम पखें धंधै नित धावत, भमर भमत भण न न न न न न न हो। सु. कु.४१ मिथ्यातम अघ दूर हरेवा, उदयो तेज सुतरण न न न न न न न हो । सु.कु.।। पंच प्रमाद तजौ भवि प्राणी, ध्रम उद्यम करो धन न न न न न न न हो । सु.कु.।६। "अमर" महा अविचल सुखदायक, धरम करो जी तुम्हें भविजन न न न न न न न हो। सु.कु. ७॥
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