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( १३४ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन संग्रह
जीव-सीखामण-गीत
पर श्रावो जी सुगुणा री सजनां । सुगुणां री सजनां न थइये निगुणां । घर। आंकयो । आवो मेरे सजनां बैसो घर अंगनां,
कहै सो बात सुणो रो अरधंगना । घर ॥१॥ निज घर भजनां, पर घर तजना,
____ कथन हमारो कंतजी करणा । घर० ॥२॥ सुगत कुठारी, निपट निठारी,
प्रीत रीत यासै परहरणां । घर०।३। कुमत कुमारी की गत है री न्यारी,
यास नेह न कबहु न करणा । घर०।४। ए नहीं परणी सुगत करणी,
चतुर न करत याकी आचरणा । घर०।५। भ्रम धन लँटै बीरज बल चुटे,
ऐसारी काम कोहे कुरी करणा । घर०।६। सुमत सुनारी पिउ कु प्यारी,
'अमर' प्रीत नीत याही से करणां घर०७।
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