________________
जीव-सिखावण-गीत
( १३५ )
जीव-सिखावण-गीत
राग-काफी
या अलबेली को रूप अनोपम, तिणस सुरता लगी तेरी, लगी तोरी रे नेह दोरी। या०।
१०। प्राणनाथ प्रीतम मन मोहन,
मान लेहु सीखन मेरी । या०।२। एन कुनारी बहु पति कीने,
लीधो ध्रम धन कुं हेरी । या०।३। मुख नी मीठी चितनो भूठी,
छल मै लेत हात छरी । या०।४। योको कयो करिस जो प्रीतम,
नरक निसाणी सुगत वेरी । या० ।५। कुमति कुनार को संग न करिये,
फंद परत नहि भव फेरी । या०।६। चेतनराय सुमत वच सुणिकर, __"अमर" प्रीत अवचन तेरी । या०।७।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org