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(१३६) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
सुमति-कुमति-गीत
राग-खम्भायती मेरी राय चेतन नै सुध न लई,
विरहानल ताप सै बरी भई । मे०।१। मिथ्या मंदर गणिका सुंदर,
कुमति कुनारी एक ठई। मे।२। तो कुं कुलटा कान लगंतां,
तिण भुरकी सिर डार दई । मे०।३। परणी थी मुझ अधिकै प्रेम,
ते तो प्रीत विसार दई । मे।४। उन• अपने मिंदर राखी,
नवली सै भई प्रीत नई । मे। ५ । लहुड़ी लाडी बहु भरमायक,
ध्रन धम ताको खोस लई । मे०।६। निरधन हुयके निज घर आयो,
सिध बुध सारी भूल गई । मे०।७। कुमति कुनारी दूर गई तब,
सुमता सै फिर मेल भई । मे०।८। रस रंगे पिउ प्यारी रमतां,
विरह विथा सब दर गई। मे।।
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