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बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि स्तवन संग्रह
सिंघ समेलो सरब हुआ तिहाँ साठ हजार । "मोरवाडे" जात्रा थई सहु करै जै जै कार || सिंघनी ओस पूरांणी अधिक वध्यो श्राणंद | सुजस सवायो धवल अमल जिम पूँनिम चंद ॥३२॥ "बाफणा " गोत्र वदीतो " बहादरमल " वखांण । " सवाईसिंघ" “मगनजी" "जोर विर" जग जांण ॥! " परतापमल्ल" "दानमल" सिंघवी पदनो धार । " जेसलमेरी" लखमी लाह लीयो सुखकार ||३३||
१५४
-कलश
संवत् 'अढारेरै तेणु' वच्छर मास आसाढ उदार ए । सहु संघ समेलै तीर्थयात्रा की उदार ए ||
ति हेतु "वाचक अमर सिन्धुर" भाव भल चितधार ए । भेट्या तीरथ जनम सफलो जात्र मल जयकार ए ॥ ३३॥ इति तीर्थमाला स्तवनम्
पाछा पंथ पुलंता " राधनपुर " हितधार । प्रासादें जिन पूज्या, सुध समकित संभार || गाथा १६ तक गुटके में है, फिर लिखते हुये छोड़ा हुआ है । अन्त की गाथायें एक अन्य प्रति से- जिसका केवल अन्त पत्र ही प्राप्त है, दी गई है । उस पत्र के बोर्डर में निनोक्त २ पद्य और लिखे हुए हैं चिह्नित नहीं किया गया ।
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